हमारी संस्कृति में चरण स्पर्श करने की परंपरा है. व्यक्ति स्वयं से आयु में या रिश्ते-नाते में ब़डे व्यक्ति के चरण स्पर्श करता है. महिलाएं अपने से ब़डी महिलाओं के चरण स्पर्श करती है. जिसके चरण स्पर्श किये जाते है वह दुआएँ, आशीर्वाद, आशीष, सदवचन बोलते हैं.चरण स्पर्श करने से व्यक्ति की शालीनता,विनम्रता,शिष्टाचार व्यक्त होता है. उसे संस्कारी माना जाता है.
कोई व्यक्ति कितना ही मलिन स्वभाव का हो, कितना ही दुश्चरित्र हो, कितना ही अपवित्र और दूषित विचारों का हो, यदि उसके भी चरण स्पर्श किए जाते हैं तो उसके मुख से आशीर्वाद, दुआ, सद्वचन ही निकलता है अथवा यदि वह ऎसा नहीं करता है तो अपने चरण स्पर्श के दौरान मौन रह जाता है, कुछ भी नहीं बोलता.
व्यक्ति का मौन हो जाना, उसकी अंतर्मुखता को दर्शाता है. अंतर्मन से सामान्यत: व्यक्ति सकारात्मक ही सोचता है, नकारात्मक नहीं जगत व्यवहार में भी कहा जाता है "मौनं स्वीकृति लक्षणम्" अर्थात् मौन व्यक्ति आपके प्रति अपने पक्षपात की स्वीकृति मौन द्वारा ही दे देता है.
इसलिए चरण स्पर्श, चरणवंदन, चरण स्तुति, चरण पूजा, चरण स्मृति कभी भी व्यर्थ नहीं जाते, इनके सुपरिणाम अवश्य मिलते हैं. जिसे हम चरण स्पर्श करके ब़डा बनाते हैं, वह ब़डा ही रहता है, छोटे विचार मन में नहीं ला सकता, चाहे आशीर्वाद बोलकर दे या मौन रह जाए.
चरण स्पर्श का वैज्ञानिक द्रष्टिकोण विज्ञान में न्यूटन ने एक नियम का उल्लेख किया है कि इस भौतिक संसार में सभी वस्तुएँ "गुरूत्वाकर्षण" के नियम से बंधी हैं और गुरूत्व भार सदैव आकçषात करने वाले की तरफ जाता है. हमारे शरीर में भी यही नियम है. सिर को उत्तरी धु्रव और पैरों को दक्षिणी धु्रव माना जाता है अर्थात् गुरूत्व ऊर्जा या चुंबकीय ऊर्जा या विद्युत चुंबकीय ऊर्जा सदैव उत्तरी ध्रुव से प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र (cycle) पूरा करती है.
इसका आशय यह हुआ कि मनुष्य के शरीर में उत्तरी ध्रुव (सिर) से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर दक्षिणी धु्रव (पैरों) की ओर प्रवाहित होती है और दक्षिणी ध्रुव पर यह ऊर्जा असीमित मात्रा मे स्थिर हो जाती है, यहाँ ऊर्जा का केंद्र बन जाता है.
शरीर क्रिया वैज्ञानियों ने यह सिद्ध कर लिया है कि हाथों और पैरों की अंगुलियों और अंगूठों के पोरों (अंतिम सिरा) में यह ऊर्जा सर्वाधिक रूप से विद्यमान रहती है तथा यहीं से आपूर्ति और मांग की प्रक्रिया पूर्ण होती है. पैरों से हाथों द्वारा इस ऊर्जा के ग्रहण करने की प्रक्रिया को ही हम "चरण स्पर्श" करना कहते हैं.
चरणस्पर्श से पहले पैर पखारने का महत्व
इसका आशय यह हुआ कि मनुष्य के शरीर में उत्तरी ध्रुव (सिर) से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर दक्षिणी धु्रव (पैरों) की ओर प्रवाहित होती है और दक्षिणी ध्रुव पर यह ऊर्जा असीमित मात्रा मे स्थिर हो जाती है, यहाँ ऊर्जा का केंद्र बन जाता है.
शरीर क्रिया वैज्ञानियों ने यह सिद्ध कर लिया है कि हाथों और पैरों की अंगुलियों और अंगूठों के पोरों (अंतिम सिरा) में यह ऊर्जा सर्वाधिक रूप से विद्यमान रहती है तथा यहीं से आपूर्ति और मांग की प्रक्रिया पूर्ण होती है. पैरों से हाथों द्वारा इस ऊर्जा के ग्रहण करने की प्रक्रिया को ही हम "चरण स्पर्श" करना कहते हैं.
चरणस्पर्श से पहले पैर पखारने का महत्व
यहां एक और महत्वपूर्ण प्राचीन परंपरा की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित किया जाता है कि प्राचीनकाल में जब ऋषि, मुनि, योगी या संतजन किसी राज दरबार में आते थे तो राजा पहले शुद्ध जल से उनके चरण धोता (चरण पखारना) था, तत्पश्चात् चरण स्पर्श की परंपरा पूर्ण करता था.
चरण स्पर्श से पहले चरण धोने के पीछे संभवत: यह वैज्ञानिक कारण रहा होगा कि चरणों में एकत्रित विद्युत-चुंबकीय ऊर्जा चलकर आने से अत्यधिक तीव्रता से प्रवाहित है और गर्म है, धोने से यह सामान्य अवस्था में आ जाती है और जो व्यक्ति चलकर आता है, उसकी मानसिक और शारीरिक थकान/बेचैनी के कारण वह एकाएक शुभाशीषर्वाद देने की स्थिति में नहीं होता है, जल से उसका संपर्क आने से वह भी सामान्य स्थिति में आ जाता है, अब चरण स्पर्श पूर्णत: सकारात्मक स्थिति में होगा.
फिर व्यक्ति उस चरणामृत को ग्रहण करता है.
चरण स्पर्श से पहले चरण धोने के पीछे संभवत: यह वैज्ञानिक कारण रहा होगा कि चरणों में एकत्रित विद्युत-चुंबकीय ऊर्जा चलकर आने से अत्यधिक तीव्रता से प्रवाहित है और गर्म है, धोने से यह सामान्य अवस्था में आ जाती है और जो व्यक्ति चलकर आता है, उसकी मानसिक और शारीरिक थकान/बेचैनी के कारण वह एकाएक शुभाशीषर्वाद देने की स्थिति में नहीं होता है, जल से उसका संपर्क आने से वह भी सामान्य स्थिति में आ जाता है, अब चरण स्पर्श पूर्णत: सकारात्मक स्थिति में होगा.
फिर व्यक्ति उस चरणामृत को ग्रहण करता है.
जिसका आशय है कि अप्रत्यक्ष रूप से आपने परम पिता परमात्मा के किसी संत,महापुरुष,गुरुजनों के चरण स्पर्श कर लिए हैं, उनके चरणों से नि:सृज जल आपके शरीर में चला गया है. चरण सेवा, चरण वंदना, चरण पखारन, चरण स्मृति का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है कि प्रत्येक भारतीय चरणामृत पूर्ण श्रद्धा के साथ ग्रहण करता है. चरणों से निकले या धोए हुए जल को अमृत की संज्ञा दी जाती है. अमृत वह तत्व है जो ऊर्जा, उत्साह, शक्ति और दीर्घायु प्रदान करता है.
कैसे करे चरण स्पर्श
चरण स्पर्श करते समय यदि बायें हाथ से बायें पैर और दायें हाथ से दायें पैर का स्पर्श किया जाए तो सजातीय ऊर्जा का प्रवेश, सजातीय अंग से तेजी से और पूर्णरूप से होता है जबकि इसके विपरीत करने से ऊर्जा प्रवाह अवरोध या रूकावट के साथ होता है.
एक और पहलू यह है कि जब व्यक्ति चरण स्पर्श करता है तो जिस व्यक्ति के चरण स्पर्श किए जाते हैं, उसके हाथ सहज ही चरण स्पर्श करने वाले व्यक्ति के सिर पर जाते हैं और उसके सहस्रार चक्र से स्पर्श होते हैं. सहस्रार चक्र में सक्रियता उत्पन्न होती है जिससे ज्ञान, बुद्धि और विवेक का विकास सहज ही होने लगता है.
जिससे ज्ञान, बुद्धि और विवेक का विकास सहज ही होने लगता है. जो ऊर्जा, उत्साह, शक्ति और दीर्घायु प्रदान करता है.जिससे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह शुरू हो जाता है. क्या चरण स्पर्श की इस प्रक्रिया को अब भी हम परंपरा या रूढि़वादिता, अंध-विश्वास का नाम देगे. शायद नहीं.
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