11 December 2012

!!! सर्दी के मौसम में हरी सब्जियां खाएं, सेहत बनाएं !!!


अगर आप अपने आपको एकदम फिट रखना चाहते हैं, तो सब्जियों से दोस्ती कर लें. आम तौर पर देखा जाता है कि लोग सब्जी खाना पसंद नहीं करते. लेकिन सब्जियों में छिपे गुणों के बारे में अगर आप जान लें, तो 
शायद ही आप कभी सब्जी खाने के लिए मना करें.


पालक के फायदे-

पालक की सब्जी विटामिन-बी, विटामिन-सी से भरी होती है. पालक में कैल्शियम की मात्रा भी काफी होती है.

पालक का रस आंखों की रोशनी के लिए काफी अच्छा होता है. इतना ही नहीं, पालक खाने से रक्त की कमी पूरी हो जाती है और पालक का रस पीने से पथरी कभी नहीं होती.

मेथी के गुण-

मेथी की हरी पत्तियां हो या सूखे दाने, दोनों ही काफी फायदेमंद होते हैं.

डायबिटीज और उच्च रक्तचाप के मरीजों के लिए मेथी काफी फायदेमंद है. इतना ही नहीं, मेथी हमें बेहतर स्वास्थ्य के साथ सौंदर्य भी प्रदान करती है. मेथी का पेस्ट आंखों के नीचे लगाने से कालापन दूर हो जाता है.

सांस में बदबू से अगर आप परेशान हैं, तो मेथी के दानों को पानी में डालकर उबालें और उस पानी से गरारा करें.

पत्ता गोभी-

पत्ता गोभी पोषक से भरी होती है. हरी पत्ता गोभी में विटामिन-ई काफी मात्रा में होता है.

छोटी पत्ता गोभी में ज्यादा कैल्शियम होता है. इसमें पाए जाने वाला कोलोन कैंसर को रोकने में मददगार है.

सब्जियां सेहत का खजाना होती हैं. रोजाना सब्जी खाने से आप एकदम स्वस्थ रहते हैं. इतना ही नहीं, हरी सब्जी खाने से आपकी आंखों की रोशनी कम नहीं होती है. और आप अन्य बीमारियों से भी बचे रहते हैं.


!!! सेहत के लिए फायदेमंद 'अमरूद' !!!


अमरूद खाने में जितने स्वादिष्ट लगते हैं. उससे कहीं ज्यादा ये सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं. सर्दी के मौसम में मिलने वाला ये फल सेहत के लिए किसी खजाने से कम नहीं है.


अमरूद खाने के फायदे

- अगर आप कब्ज की समस्या
से परेशान हैं, तो अमरूद जरूर खाएं. ये फल कब्ज की समस्या को ठीक करने में कारगर साबित होता है.
- अमरूद फेफड़ों को स्वस्थ रखता है.
- ये दमा के रोगियों को फायदा पहुंचाता है.
- ये खून के बहाव को ठीक रखता है. जिससे हृदय स्वस्थ रहता है.
- अगर किसी को भांग का नशा चढ़ गया है, तो अमरूद खाएं. अमरूद खाने से नशा जल्द उतर जाएगा.
- भोजन करने के बाद अगर ये फल खाया जाए, तो भोजन में मौजूद सारे तत्व असानी से डाइजेस्ट हो जाते हैं.
-अगर आपके दांतों में दर्द रहता है, तो अमरूद के पत्ते चबाएं.

- इस फल को खाने से हाई ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है.
- इसमें कैल्शियम भी अच्छी मात्रा में मौजूद होता है, जो कि हमारे शरीर की हड्डियों और दांतों को स्वस्थ रखता है.
- जिन व्यक्तियों के नाक-कान से खून आता हो, उन्हें भी इस फल का सेवन करना चाहिए.

अमरूद खाने के फायदों के बारे में जानकर आज से ही आप इस फल का सेवन करना शुरू कर दें. सर्दी के मौसम में अमरूद आपको असानी से बाजार में मिल जाते हैं और ये ज्यादा महंगे भी नहीं होते हैं.


!!! करम वापिस बरस रहे हैं.. !!!


एक बार देवताओं ने सभा की | उस सभा में एक प्रस्ताव स्वीकृत हुआ कि गंगा जी मृत्युलोक में सभी प्राणियों के पापों को लेती है अतः वह सबसे बड़ी पापिनी है और अब उन्हें सभा में नहीं आने दिया जाएगा | जब गंगा जी ने सुना तो वे सभा में आकर बोलीं, देवताओं ! यह आपका कहना ठीक है कि मैं मृत्युलोक में सब के पापों को लेती हूं किन्तु मैं तो सारे पापों को समुंद्र में डाल देती हूं | अपने पास नहीं रखती | देवताओं ने कहा ‘यह बात तो ठीक है | 

अच्छा ! तो वरुण देवता अब सभा से बाहर हो जांय क्योंकि वे सबसे बड़े पापी हैं |’ वरुण देवता ने हाथ जोड़कर कहा कि देवताओं ! मैं गंगा जी से पाप तो लेता अवश्य हूं किन्तु मैं भी उसे अपने पास नहीं रखता | उन पापों को मैं मेघों को दे देता हूं |” देवताओं ने पुनः विचार किया कि बात तो ठीक है | फिर यह निश्चय हुआ कि अब मेघराज हम लोगों कि सभा में नहीं आ सकेंगे |

मेघराज भी उठ खड़े हुए और उन्होंने हाथ जोड़कर कहा ‘देवताओं ! मेरी भी एक बात आप सुनें | यह बिलकुल ही सत्य है कि मैं समुद्र से सबके पापों को ले लेता हूं किन्तु मैं भी अपने
पास नहीं रखता हूं | देवताओं ने पूछा कि आप उन पापों का क्या करते हैं ?

इस पर मेघराज जी ने उत्तर दिया कि “मैं लोगों के पापों और कर्मों को इन्हीं पर बरसा देता हूँ|”

मित्रो, इस कहानी से आप क्या शिक्षा लेते हैं? कृपया लिखें ।


!!! गुरु बनना हंसी खेल नहीं !!!



एक महात्मा जी अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे | रास्ते में एक सांप घायल अवस्था में पड़ा हुआ था और उस पर तमाम चींटियाँ लग रही थी | सांप हिल सकता नहीं था बैचैन होकर अपना फन उठाता था फिर गिर जाता था |

महात्मा जी उसे देखकर रो पड़े | शिष्यों को समझ में नहीं आया | उन्होंने कहा कि महाराज जी आप क्यों रो रहे हैं ? महात्मा जी बोले कि कर्मों का ऐसा विधान है जिसे जीव अपनी अज्ञानता में नहीं समझ पाता है | यह सांप कभी गुरु बना था | महात्माओं की नक़ल की और इतने शिष्य बनाये | इसने शिष्यों से तरह तरह की तन मन धन की सेवा ली लेकिन उनकी आत्माओं का कल्याण नहीं कर सका | क्योंकि इसने अपनी आत्मा का भी कल्याण नहीं किया था | अब कर्मी के जाल में फंसकर वह गुरु सांप बना और उसके सारे शिष्य चींटियाँ बन गये हैं | अब ये चींटिया इस घायल सांप को काट रही हैं और कह रही हैं कि मेरी सेवाओं का बदला दो | तुमने मुझे क्यों धोखे में रक्खा , मेरा आत्म कल्याण नहीं किया और ये बेचारा सांप ऐसी अधोगति में पड़ा हुआ पीड़ा सह रहा है और कुछ कर नहीं पा रहा है |

महात्मा जी ने आगे कहा कि गुरु बनना कोई हंसी खेल नहीं है , सबसे ख़राब काम है | चेले बनाकर उनकी सेवाओं को लेकर अगर आत्म कल्याण उनका न किया तो वो आत्माएं अपना बदला मांगती है | गृहस्थों के खून पसीने की कमाई की रोटी खाकर जो साधू उनका कल्याण नहीं करता तो ये रोटियां उसके आँतों को फाड़ देती हैं |

!!! शिव को प्राणनाथ कहा गया है !!!


शिव को प्राणनाथ कहा गया है। शास्त्रों में बताई शिव की शक्तियों और शिव भक्ति की महिमा पर गौर करें तो यहां प्राण का संबंध मात्र जीवन से ही नहीं है, बल्कि जीवन से जुड़ी हर उन सुख-समृद्धि की कामनाओं से भी है, जो शिव भक्ति से सिद्ध होकर मन और जीवन की हर घड़ी में उत्साह, उमंग और ऊर्जा बनाएं रखती हैं।जीवन में ऐसे ही रूप में प्राणों का संचार करने वाली शिव भक्ति के लिए की कुछ विशेष घडिय़ा मंगलकारी मानी गई है। इनमें अष्टमी, चतुर्दशी, सोमवार आदि खास हैं।

विशेष तौर पर शास्त्रों में गुरुवार के साथ अष्टमी के संयोग में शिव पूजा में शमी पत्र का चढ़ावा धन व सौभाग्य की इच्छा जल्द पूरी करने वाली मानी गई है। क्योंकि शिव भक्ति सुख-सौभाग्य के स्वामी गुरु बृहस्पति को भी प्रसन्न करती है।

जानते हैं शिव भक्ति की सरल पूजा विधि के साथ

विशेष शमी अर्पण मंत्र -- गुरुवार व अष्टमी के योग में विशेष तौर पर शाम के वक्त शिवालय में तांबे के कलश में गंगाजल या पवित्र जल में गंगाजल, अक्षत, सफेद चंदन मिलाकर शिवलिंग पर ऊँ नम: शिवाय यह मंत्र बोलते हुए अर्पित करें।
- जल अर्पण के बाद शिव की अक्षत, रौली, बिल्वपत्र, सफेद वस्त्र, जनेऊ, घी की मिठाई के साथ शमी पत्र नीचे लिखे मंत्र बोल यश, धन व जाने-अनजाने पापों के नाश की कामना करते हुए चढ़ाएं -अमङ्गलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च।दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येऽहं शमीं शुभाम्।।-

जल अर्पण, पूजा व शमी पत्र चढ़ावे के बाद शिव की धूप, दीप व कर्पूर आरती कर प्रसाद ग्रहण करें।


!!! भगवान कार्तिकेय !!!



कार्तिकेय शिव पार्वती के पुत्र हैं तथा सदैव बालक रूप ही रहते हैं। परंतु उनके इस बालक स्वरूप का भी एक रहस्य है। इनका एक नाम स्कन्द भी है और इन्हें दक्षिण भारत में 'मुरुगन' भी कहा जाता है।


एक बार शंकर भगवान ने पार्वती के साथ जुआ खेलने की अभिलाषा प्रकट की। खेल में भगवान शंकर अपना सब कुछ हार गए। 

हारने के बाद भोलेनाथ अपनी लीला को रचते हुए पत्तो के वस्त्र पहनकर गंगा के तट पर चले गए। कार्तिकेय जी को जब सारी बात पता चली, तो वह माता पार्वती से समस्त वस्तुएं वापस लेने आए। इस बार खेल में पार्वती जी हार गईं तथा कार्तिकेय शंकर जी का सारा सामान लेकर वापस चले गए। अब इधर पार्वती भी चिंतित हो गईं कि सारा सामान भी गया तथा पति भी दूर हो गए। पार्वती जी ने अपनी व्यथा अपने प्रिय पुत्र गणेश को बताई तो मातृ भक्त गणोश जी स्वयं खेल खेलने शंकर भगवान के पास पहुंचे। गणेश जी जीत गए तथा लौटकर अपनी जीत का समाचार माता को सुनाया। इस पर पार्वती बोलीं कि उन्हें अपने पिता को साथ लेकर आना चाहिए था। गणेश जी फिर भोलेनाथ की खोज करने निकल पड़े। भोलेनाथ से उनकी भेंट हरिद्वार में हुई। 

उस समय भोले नाथ भगवान विष्णु व कार्तिकेय के साथ भ्रमण कर रहे थे। पार्वती से नाराज़ भोलेनाथ ने लौटने से मना कर दिया। भोलेनाथ के भक्त रावण ने गणेश जी के वाहन मूषक को बिल्ली का रूप धारण करके डरा दिया। मूषक गणेश जी को छोड़कर भाग गए। इधर भगवान विष्णु ने भोलेनाथ की इच्छा से पासा का रूप धारण कर लिया था। गणेश जी ने माता के उदास होने की बात भोलेनाथ को कह सुनाई। इस पर भोलेनाथ बोले कि हमने नया पासा बनवाया है, अगर तुम्हारी माता पुन: खेल खेलने को सहमत हों, तो मैं वापस चल सकता हूँ।
पार्वती का श्राप

गणेश जी के आश्वासन पर भोलेनाथ वापस पार्वती के पास पहुंचे तथा खेल खेलने को कहा। इस पर पार्वती हंस पड़ी व बोलीं ‘अभी पास क्या चीज़ है, जिससे खेल खेला जाए।’ यह सुनकर भोलेनाथ चुप हो गए। इस पर नारद जी ने अपनी वीणा आदि सामग्री उन्हें दी। इस खेल में भोलेनाथ हर बार जीतने लगे। एक दो पासे फैंकने के बाद गणेश जी समझ गए तथा उन्होंने भगवान विष्णु के पासा रूप धारण करने का रहस्य माता पार्वती को बता दिया। सारी बात सुनकर पार्वती जी को क्रोध आ गया। रावण ने माता को समझाने का प्रयास किया, पर उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तथा क्रोधवश उन्होंने भोलेनाथ को श्राप दे दिया कि गंगा की धारा का बोझ उनके सिर पर रहेगा। नारद जी को कभी एक स्थान पर न टिकने का अभिषाप मिला। भगवान विष्णु को श्राप दिया कि यही रावण तुम्हारा शत्रु होगा तथा रावण को श्राप दिया कि विष्णु ही तुम्हारा विनाश करेंगे। कार्तिकेय को भी माता पार्वती ने कभी जवान न होने का श्राप दे दिया।

पार्वती का वरदान
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इस पर सर्वजन चिंतित हो उठे। तब नारद जी ने अपनी विनोदपूर्ण बातों से माता का क्रोध शांत किया, तो माता ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। नारद जी बोले कि आप सभी को वरदान दें, तभी मैं वरदान लूंगा। पार्वती जी सहमत हो गईं। तब शंकर जी ने कार्तिक शुक्ल के दिन जुए में विजयी रहने वाले को वर्ष भर विजयी बनाने का वरदान मांगा। भगवान विष्णु ने अपने प्रत्येक छोटे- बड़े कार्य में सफलता का वर मांगा, परंतु कार्तिकेय जी ने सदा बालक रहने का ही वर मांगा तथा कहा, ‘मुझे विषय वासना का संसर्ग न हो तथा सदा भगवत स्मरण में लीन रहूं।’ अंत में नारद जी ने देवर्षि होने का वरदान मांगा। माता पार्वती ने रावण को समस्त वेदों की सुविस्तृत व्याख्या देते हुए सबके लिए तथास्तु कहा।

षण्मुख, द्विभुज, शक्तिघर, मयूरासीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की आराधना दक्षिण भारत में बहुत प्रचलित हैं ये ब्रह्मपुत्री देवसेना-षष्टी देवी के पति होने के कारण सन्तान प्राप्ति की कामना से तो पूजे ही जाते हैं, इनको नैष्ठिक रूप से आराध्य मानने वाला सम्प्रदाय भी है।
तारकासुर के अत्याचार से पीड़ित देवताओं पर प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने पार्वती जी का पाणिग्रहण किया। भगवान शंकर भोले बाबा ठहरे। उमा के प्रेम में वे एकान्तनिष्ठ हो गये। अग्निदेव सुरकार्य का स्मरण कराने वहाँ उज्ज्वल कपोत वेश से पहुँचे। उन अमोघ वीर्य का रेतस धारण कौन करे? भूमि, अग्नि, गंगादेवी सब क्रमश: उसे धारण करने में असमर्थ रहीं। अन्त में शरवण (कास-वन) में वह निक्षिप्त होकर तेजोमय बालक बना। कृत्तिकाओं ने उसे अपना पुत्र बनाना चाहा। बालक ने छ: मुख धारण कर छहों कृत्तिकाओं का स्तनपान किया। उसी से षण्मुख कार्तिकेय हुआ वह शम्भुपुत्र। देवताओं ने अपना सेनापतित्व उन्हें प्रदान किया। तारकासुर उनके हाथों मारा गया।

स्कन्द पुराण के मूल उपदेष्टा कुमार कार्तिकेय (स्कन्द) ही हैं। समस्त भारतीय तीर्थों का उसमें माहात्म्य आ गया है। पुराणों में यह सबसे विशाल है।

स्वामी कार्तिकेय सेनाधिप हैं। सैन्यशक्ति की प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन इनकी कृपा से सम्पन्न होता है। ये इस शक्ति के अधिदेव हैं। धनुर्वेद पद इनकी एक संहिता का नाम मिलता है, पर ग्रन्थ प्राप्य नहीं है।
संस्कृत ग्रंथ अमरकोष के अनुसार कार्तिकेय के निम्न नाम हैं:

भूतेश
भगवत्
महासेन
शरजन्मा
षडानन
पार्वतीनन्दन
स्कन्द
सेनानी
अग्निभू
गुह
बाहुलेय
तारकजित्
विशाख
शिखिवाहन
शक्तिश्वर
कुमार
क्रौञ्चदारण

आंवले के प्रयोग - 2 (द्वितीय भाग)



वमन (उल्टी) : -* हिचकी तथा उल्टी में आंवले का 10-20 मिलीलीटर रस, 5-10 ग्राम मिश्री मिलाकर देने से आराम होता है। इसे दिन में 2-3 बार लेना चाहिए। केवल इसका चूर्ण 10-50 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ भी दिया जा सकता है।


* त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) से पैदा होने वाली उल्टी में आंवला तथा अंगूर को पीसकर 40 ग्राम खांड, 40 ग्राम शहद और 150 ग्राम जल मिलाकर कपड़े से छानकर पीना चाहिए।


*आंवले के 20 ग्राम रस में एक चम्मच मधु और 10 ग्राम सफेद चंदन का चूर्ण मिलाकर पिलाने से वमन (उल्टी) बंद होती है।

* आंवले के रस में पिप्पली का बारीक चूर्ण और थोड़ा सा शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आने के रोग में लाभ होता है।

* आंवला और चंदन का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर 1-1 चम्मच चूर्ण दिन में 3 बार शक्कर और शहद के साथ चाटने से गर्मी की वजह से होने वाली उल्टी बंद हो जाती है।

* आंवले का फल खाने या उसके पेड़ की छाल और पत्तों के काढ़े को 40 ग्राम सुबह और शाम पीने से गर्मी की उल्टी और दस्त बंद हो जाते हैं।

* आंवले के रस में शहद और 10 ग्राम सफेद चंदन का बुरादा मिलाकर चाटने से उल्टी आना बंद हो जाती है।

संग्रहणी : -मेथी दाना के साथ इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर 10 से 20 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार पिलाने से संग्रहणी मिट जाती है।

"मूत्रकृच्छ (पेशाब में कष्ट या जलन होने पर) : -* आंवले की ताजी छाल के 10-20 ग्राम रस में दो ग्राम हल्दी और दस ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से मूत्रकृच्छ मिटता है।

* आंवले के 20 ग्राम रस में इलायची का चूर्ण डालकर दिन में 2-3 बार पीने 
से मूत्रकृच्छ मिटता है।

विरेचन (दस्त कराना) : -रक्त पित्त रोग में, विशेषकर जिन रोगियों को विरेचन कराना हो, उनके लिए आंवले के 20-40 मिलीलीटर रस में पर्याप्त मात्रा में शहद और चीनी को मिलाकर सेवन कराना चाहिए।

अर्श (बवासीर) : -* आंवलों को अच्छी तरह से पीसकर एक मिट्टी के बरतन में लेप कर देना चाहिए। फिर उस बरर्तन में छाछ भरकर उस छाछ को रोगी को पिलाने से बवासीर में लाभ होता है।

* बवासीर के मस्सों से अधिक खून के बहने में 3 से 8 ग्राम आंवले के चूर्ण का सेवन दही की मलाई के साथ दिन में 2-3 बार करना चाहिए।

* सूखे आंवलों का चूर्ण 20 ग्राम लेकर 250 ग्राम पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रात भर भिगोकर रखें। दूसरे दिन सुबह उसे हाथों से मलकर छान लें तथा छने हुए पानी में 5 ग्राम चिरचिटा की जड़ का चूर्ण और 50 ग्राम मिश्री मिलाकर पीयें। इसको पीने से बवासीर कुछ दिनों में ही ठीक हो जाती है और मस्से सूखकर गिर जाते हैं।

* सूखे आंवले को बारीक पीसकर प्रतिदिन सुबह-शाम 1 चम्मच दूध या छाछ में मिलाकर पीने से खूनी बवासीर ठीक होती है।

* आंवले का बारीक चूर्ण 1 चम्मच, 1 कप मट्ठे के साथ 3 बार लें।

* आंवले का चूर्ण एक चम्मच दही या मलाई के साथ दिन में तीन बार खायें।

शुक्रमेह : -धूप में सुखाए हुए गुठली रहित आंवले के 10 ग्राम चूर्ण में दुगनी मात्रा में मिश्री मिला लें। इसे 250 ग्राम तक ताजे जल के साथ 15 दिन तक लगातार सेवन करने से स्वप्नदोष (नाइटफॉल), शुक्रमेह आदि रोगों में निश्चित रूप से लाभ होता है।

खूनी अतिसार (रक्तातिसार) : -यदि दस्त के साथ अधिक खून निकलता हो तो आंवले के 10-20 ग्राम रस में 10 ग्राम शहद और 5 ग्राम घी मिलाकर रोगी को पिलायें और ऊपर से बकरी का दूध 100 ग्राम तक दिन में 3 बार पिलाएं।

रक्तगुल्म (खून की गांठे) : -आंवले के रस में कालीमिर्च डालकर पीने से रक्तगुल्म खत्म हो जाता है।

प्रमेह (वीर्य विकार) : -* आंवला, हरड़, बहेड़ा, नागर-मोथा, दारू-हल्दी, देवदारू इन सबको समान मात्रा में लेकर इनका काढ़ा बनाकर 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम प्रमेह के रोगी को पिला दें।

* आंवला, गिलोय, नीम की छाल, परवल की पत्ती को बराबर-बराबर 50 ग्राम की मात्रा में लेकर आधा किलो पानी में रातभर भिगो दें। इसे सुबह उबालें, उबलते-उबलते जब यह चौथाई मात्रा में शेष बचे तो इसमें 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट होती है।

पित्तदोष : -आंवले का रस, शहद, गाय का घी इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर आपस में घोटकर लेने से पित्त दोष तथा रक्त विकार के कारण नेत्र रोग ठीक होते हैं|

_______________________________@भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है|



!!! औषधि सतावरी(Asparagus) चमत्कार !!!



सतावरी

सतावरी एक चमत्कारीक औषधि है जिसका भारत में हजारों वर्षो से आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्रयोग किया जाता रहा है। सतावरी एक प्राकृतिक बेल है जो औषधीय प्रयोग के साथ साथ हर घर, बगीचे में सुन्दरता के लिए और बंजड पड़े जंगल में भी पाई जाती है, 

सतावरी की जड़ें पत्ते व नई कोपले सब हमारे लिए बहुत उपयोगी होती हैं।लेकिन जड़ का महत्व इन सब से अधिक है। अधिकतर जड़ों को ही औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता हैं। सतावरी का स्वाद फीका होता है। नई निकली कोपलो से स्वादिस्ट सब्जी बनाई जाती है। सतावरी के फल मटर जैसे गोल लाल रंग के होते हैं। 

इस की जड़े लम्बी गोल, उंगली की तरह मोटी मटमैले रंग की होती हैं। सतावरी शीतल व स्निग्ध होती है। शारीरिक ताकत के लिए, कुशाग्र बुद्धि के लिए, स्मरण शक्ति व एकाग्रता बढ़ाने के लिए, पेट की जलन और आंखों के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। स्त्री के स्तनों में दूध की वृद्धि के लिए स्त्री प्रजनन तंत्र की मजबूती के लिए यह एक बेहतर टानिक है। 


सतावरी वीर्यवर्धक, बलवर्धक, ठंडा, दूध को बढ़ाने वाली, खून को साफ करने वाली, तथा सूजन आदि को दूर करता है।यह दस्त तथा वातपित्त, गर्भ के विकार श्वेत प्रदर प्रदर रोग नपुंसकता स्वप्नदोष मूत्राघात मूत्रविकार दस्त बुखार मिर्गी अम्लपित्त विषनाशक बवासीर खूनी दस्त हिस्टीरिया श्वास मूर्छा अनिंद्रा सिर का दर्द सूखी खांसी पेट-दर्द ,पक्षाघात सर-दर्द, गठिया, घुटनो का दर्द ,पैर के तलवों में जलन, गर्दन अकड़ना, साइटिका, हाथों में दर्द ,पेशाब संबन्धी रोग, आंतरिक चोट के अलावा शुक्र-वर्धन ,यौन -शक्ति बढ़ाने, महिलाओं के बाँझपन के इलाज के लिए किया जाता है आयुर्वेदिक दवाओं सतावरी धृत, नारी वटी नारायण तेल, विष्णु तेल, सतावरयादी चुर्णू, शत मूल्यादि लौह आदि सतावरी से ही बनती हैं।



एक व्यक्ति द्वारा सतावरी की जड का रस 10 से 20 मिलीलीटर इसकी जड का चूर्ण 3 से 6 ग्राम और जड़ का काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर तक की मात्रा में लिया जाना उपयुक्त होता है।



  1. 5 काली मिर्चों को पीस ले और दो चम्मच सतावरी चूर्ण के साथ मिला ले इसे दो गिलास पानी में उबाल ले इसे छान कर दिन में दो बार ले ने से जुखाम ठीक हो जाता है।
  2. सामान मात्रा में सतावरी और अड़ूसे के पत्ते और मिश्री को पानी में उबालकर दिन में 3 बार पीने से सूखी खांसी ठीक हो जाती है।
  3. सतावरी का काढ़ा बनाए इसमें 1 ग्राम पीपल का चूर्ण मिलाए रोगी को दिन में 2-3 बार पिलाये इस से कफ साफ़ होगा और खांसी भी ठीक हो जाएगी।
  4. 10 ग्राम सतावरी पिसी हुई को पांच काली मिर्च के साथ मिलाकर पानी में घोट कर सुबह-शाम पिया जायें तो जुकाम ठीक हो जाता है।
  5. सतावरी की ताजी जड़ का रस और बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर उबाल ले ओर इस तेल से सिर पर मालिश करने से सिर का दर्द और आधे सिर का दर्द खत्म हो जाता है।
  6. एक गिलास दूध में 25 ग्राम सतावरी चूर्ण और अदरक का रस मिलाकर उबाले इसे छान कर रोगी को दिन में 2 बार देने से आंखों के सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
  7. सतावरी की नए कोपल की सब्जी देसी घी में बनाकर खाने से रतौंधी (रात का अंधापन) समाप्त होता है।
  8. गीली सतावरी को दूध के साथ पीसकर व छानकर दिन में 3-4 बार पीलाने से खूनी दस्त बंद हो जाते हैं।
  9. सतावरी की ताजा जड़ का रस शहद के साथ मिलाकर दिन 2 बार लेने से एसिडिटी का रोग दूर हो जाता है।
  10. गठिया रोग के लिए हर रोज घुटनों पर सतावरी के तेल की मालिश करने से घुटनों का दर्द ठीक होता है।
  11. सतावरी की खीर में घी मिलाकर खाने से अनिंद्रा की समस्या दूर होती है ।
  12. 2 चम्मच सतावरी की जड़ का रस 1 कप दूध के साथ सुबह-शाम सेवन से कुछ महीनो मे ही मिर्गी के रोग मे सुधार आता है।
  13. सतावरी के पत्तों का चूर्ण बनाकर दुगने घी में पकाकर घावों पर लगाने से पुराना घाव भी ठीक हो जाता है।
  14. 2 -2 चम्मच सतावरी और गिलोय के रस में शक्कर मिलाकर खाने से वात-ज्वर खत्म हो जाता है।
  15. या सतावरी और गिलोय के 50 से 60 ग्राम काढ़े में शहद मिलाकर पीने से भी ज्वर खत्म हो जाता है।
  16. धातु वृद्धी के लिए समान मात्रा में सतावरी, अश्वगंधा ,कौंच के बीज, गोखरू और आंवला मिलकर चूर्ण बना लें।एक छोटी चम्मच सुबह-शाम गाय के दूध या पानी के साथ ले। और 10 ग्राम सतावरी चूर्ण दूध मिश्री के साथ मिला कर पीने से वीर्य का पतलापन दूर हो जाता है।
  17. 2 चम्मच सतावरी चूर्ण में शक्कर मिलें दूध के साथ सुबह-शाम पीने से नपुंसकता दूर होती है।
  18. या सतावरी और असगन्ध के 5 ग्राम चूर्ण को दूध में उबाल कर पीने से नपुंसकता ठीक हो जाती है।
  19. 5 ग्राम सतावरी को एक गिलास दूध में धीमी आंच पर मिश्री मिलाकर 5 मिनट तक उबालें, इस दूध को पीने से ही कुछ महीनों में नपुंसकता बिलकुल ठीक हो जाती है। और सहवास की कमजोरी दूर हो जाती है।
  20. शारीरिक ताकत के लिए 250 ग्राम सतावरी की जड़ का चूर्ण और बराबर की मिश्री को पीसकर और एक चम्मच मिश्रण को एक गिलास गुनगुने दूध के साथ सुबह-शाम लेने से स्वप्नदोष का रोग दूर होकर शरीर मजबूत बनता है।
  21. ताजा सतावरी की जड़ को बीच से चीरकर तिनके को निकाल दें और इसे 200 ग्राम दूध और मिश्री के साथ पिस कर खाएं तो भी धातु में वृद्धि होगी। और दूध के साथ इसके चूर्ण को पका कर खाने से संभोग शक्ति बढ़ती है।
  22. सतावरी या आंवला का रस शहद में मिला कर पीने से जल्द ही वीर्य शुद्ध होने लगता है। अथवा गोखुरू का काढ़ा बनाकर व शहद मिला कर पीने से भी वीर्य शुद्ध हो जाता है।
  23. गोखरू और सतावरी का शर्बत बनाकर पीने से मूत्रविकार ठीक हो जाते हैं। पेशाब के साथ धातु का आना भी बंद हो जाता है।
  24. 25 ग्राम सतावरी के रस में बराबर का गाय का दूध मिलाकर पीने से गुर्दे की पथरी टूट टूट कर पेशाब के रस्ते बाहर निकल जाती है।
  25. 20 ग्राम गोखरू और बराबर का सतावरी चूर्ण को 2 गिलास पानी में उबालकर, छानकर उसमे 10 ग्राम मिश्री और 2 चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से रोगी की पेशाब की रूकावट और जलन खत्म हो जाती है।
  26. 5 ग्राम सतावरी के चूर्ण को दूध के साथ रोजाना सेवन करने से बवासीर के मस्से ठीक हो जाते हैं।
  27. 2 चम्मच सतावरी की ताजा जड़ का रस150 ग्राम दूध के साथ सुबह-शाम पीने से हिस्टीरिया ठीक हो जाता है।
  28. एक ग्राम सतावरी चूर्ण में समान मात्रा में घी मिलाकर दूध में उबालकर पीने से मूर्च्छा अम्लपित, रक्त पित, वात विकार, दमा और तृष्णा आदि रोग खत्म हो जाते है।वात रोग के रोगी समान मात्रा में सतावरी और पीपल को साथ साथ पीसकर छान ले और नियमित एक चम्मच चूर्ण सुबह दूध से ले वात रोगों में लाभ होता है।
  29. सतावरी की जड़ का चूर्ण और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण1चम्मच दिन में 3 बार 1 कप दूध के साथ पिलाने से न केवल स्त्रियों के स्तनों में दूध की कमी दूर होगी, बल्कि मासिक स्राव के बाद आई कमजोरी भी दूर होगी।
  30. सतावरी को गाय के दूध में पीस कर सेवन करने से स्त्री का दूध मीठा और पौष्टिक हो जाता है।समान मात्रा में सतावरी, सौंफ, बिदारीकंद को पीसकर 5 ग्राम दूध या पानी से लेने से महिलाओं की छाती का जमा हुआ दूध उतरने लगता है।
  31. सतावरी और कमलनाल को समान मात्रा में लेकर पीसे और गाय के दूध के साथ सेवन करे इससे सातवें महीने में गर्भ के रोग नष्ट होते हैं।
  32. शहद के साथ सतावरी का चूर्ण सेवन करने से या शतावर के रस को शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 चम्मच सुबह शाम सेवन करने से प्रदर रोग मे आराम आता है।
  33. या सतावरी चूर्ण को एक गिलास दूध या पानी के साथ मिलाकर उबाले आधा रह जाने पर खांड मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर रोग ठीक हो जाता है।
  34. रक्तपित्त के लिए 250 मिलीलीटर दूध में सतावरी की जड़ तथा गोखरू का 5 -5 ग्राम चूर्ण मिला कर आधा रह जाने तक उबाले यह दूध रोगी को दिन में 2 बार दे रक्तपित्त ठीक होगा।
  35. अथवा एक किलो पानी में 15 -15 ग्राम गोखरू और सतावरी की जड़ तथा एक गिलास गाय का दूध मिला कर आधा रह जाने तक उबाले और रोगी स्त्री को दिन में 2 – 3 बार पिलाये योनी से रक्त स्राव रुक जाएगा।
  36. विशेष:- एक चम्मच का अर्थ है चाय का छोटा चम्मच (5 ग्राम) एक गिलास यानी के 250 ग्राम( दूध पानी आदि)
  37. सतावरी सिर में दर्द पैदा करता है। लेकिन शहद के साथ सतावरी का सेवन करने से इसका यह दोष खत्म हो जाता है।


!!! अंडे का सच और रहस्य !!!


आजकल मुझे यह देख कर अत्यंत खेद और आश्चर्य होता है की अंडा शाकाहार का पर्याय बन चुका है ,...खैर मै ज्यादा भूमिका और प्रकथन में न जाता हुआ सीधे तथ्य पर आ रहा हूँ

मादा स्तनपाईयों (बन्दर बिल्ली गाय मनुष्य) में एक निश्चित समय के बाद अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है उदारहरणतः मनुष्यों में यह महीने में एक बार,.. चार दिन तक होता है जिसे माहवारी या मासिक धर्म कहते है ..उन दिनों में स्त्रियों को पूजा पाठ चूल्हा रसोईघर आदि से दूर रखा जाता है ..यहाँ तक की स्नान से पहले किसी को छूना भी वर्जित है कई परिवारों में ...शास्त्रों में भी इन नियमों का वर्णन है

इसका वैज्ञानिक विश्लेषण करना चाहूँगा ..मासिक स्राव के दौरान स्त्रियों में मादा हार्मोन (estrogen) की अत्यधिक मात्रा उत्सर्जित होती है और सारे शारीर से यह निकलता रहता है ..


इसकी पुष्टि के लिए एक छोटा सा प्रयोग करिये ..एक गमले में फूल या कोई भी पौधा है तो उस पर रजस्वला स्त्री से दो चार दिन तक पानी से सिंचाई कराइये ..वह पौधा सूख जाएगा ,

अब आते है मुर्गी के अण्डे की ओर

१) पक्षियों (मुर्गियों) में भी अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है अंतर केवल इतना है की वह तरल रूप में ना हो कर ठोस (अण्डे) के रूप में बाहर आता है ,

२) सीधे तौर पर कहा जाए तो अंडा मुर्गी की माहवारी या मासिक धर्म है और मादा हार्मोन (estrogen) से भरपूर है और बहुत ही हानिकारक है

३) ज्यादा पैसे कमाने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर आजकल मुर्गियों को भारत में निषेधित ड्रग ओक्सिटोसिन(oxyt ocin) का इंजेक्शन लगाया जाता है जिससे के मुर्गियाँ लगातार अनिषेचित (unfertilized) अण्डे देती है

४) इन भ्रूणों (अन्डो) को खाने से पुरुषों में (estrogen) हार्मोन के बढ़ने के कारण कई रोग उत्पन्न हो रहे है जैसे के वीर्य में शुक्राणुओ की कमी (oligozoospermi a, azoospermia) , नपुंसकता और स्तनों का उगना (gynacomastia), हार्मोन असंतुलन के कारण डिप्रेशन आदि ...

वहीँ स्त्रियों में अनियमित मासिक, बन्ध्यत्व , (PCO poly cystic oveary) गर्भाशय कैंसर आदि रोग हो रहे है

५) अन्डो में पोषक पदार्थो के लाभ से ज्यादा इन रोगों से हांनी का पलड़ा ही भारी है .

६) अन्डो के अंदर का पीला भाग लगभग ७० % कोलेस्ट्रोल है जो की ह्रदय रोग (heart attack) का मुख्य कारण है

7) पक्षियों की माहवारी (अन्डो) को खाना धर्म और शास्त्रों के विरुद्ध , अप्राकृतिक , और अपवित्र और चंडाल कर्म है

8) अन्डो में से चूजा ( मुर्गी-मुर्गा ) बहार आता है ,एक निश्चित समय पर

और चूजो में रक्त-मांस-हड्डी -मज्जा-वीर्य-रस आदि होता है,चाहे उसे कही से भी काँटों,

अन्डो में से घ्रणित द्रव्य निकलता है,जब उसे तोड़ते हो,दोनों परिस्तिथियों में वह रक्त ( जीवन ) का प्रतिक है- मतलब अंडा खाना मासांहार ही है..

इसकी जगह पर आप दूध पीजिए जो के पोषक , पवित्र और शास्त्र सम्मत भी है |