03 December 2012

!!! चाणक्य की सीख !!!


चाणक्य एक जंगल में झोपड़ी बनाकर रहते थे। वहां अनेक लोग उनसे परामर्श और ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे। जिस जंगल में वह रहते थे, वह पत्थरों और कंटीली झाडि़यों से भरा था। चूंकि उस समय प्राय: नंगे पैर रहने का ही चलन था, इसलिए उनके निवास तक पहुंचने में लोगों को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता था। वहां पहुंचते-पहुंचते लोगों के पांव लहूलुहान हो जाते थे।


एक दिन कुछ लोग उस मार्ग से बेहद परेशानियों का सामना कर चाणक्य तक पहुंचे। एक व्यक्ति उनसे निवेदन करते हुए बोला, ‘आपके पास पहुंचने में हम लोगों को बहुत कष्ट हुआ। आप महाराज से कहकर यहां की जमीन को चमड़े से ढकवाने की व्यवस्था करा दें। इससे लोगों को आराम होगा।’ उसकी बात सुनकर चाणक्य मुस्कराते हुए बोले, ‘महाशय, केवल यहीं चमड़ा बिछाने से समस्या हल नहीं होगी। कंटीले व पथरीले पथ तो इस विश्व में अनगिनत हैं। ऐसे में पूरे विश्व में चमड़ा बिछवाना तो असंभव है। हां, यदि आप लोग चमड़े द्वारा अपने पैरों को सुरक्षित कर लें तो अवश्य ही पथरीले पथ व कंटीली झाडि़यों के प्रकोप से बच सकते हैं।’ वह व्यक्ति सिर झुकाकर बोला, ‘हां गुरुजी, मैं अब ऐसा ही करूंगा।’

इसके बाद चाणक्य बोले, ‘देखो, मेरी इस बात के पीछे भी गहरा सार है। दूसरों को सुधारने के बजाय खुद को सुधारो। इससे तुम अपने कार्य में विजय अवश्य हासिल कर लोगे। दुनिया को नसीहत देने वाला कुछ नहीं कर पाता जबकि उसका स्वयं पालन करने वाला कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंच जाता है।’ इस बात से सभी सहमत हो गए।


!!! माँ का कर्ज !!!



एक बेटा पढ़-लिख कर बहुत बड़ा आदमी बन गया । पिता के स्वर्गवास के बाद माँ ने हर तरह का काम करके उसे इस काबिल बना दिया था । शादी के बाद पत्नी को माँ से शिकायत रहने लगी के वो उन के स्टेटस मे फिट नहीं है । लोगों को बताने मे उन्हें संकोच होता की ये अनपढ़ उनकी माँ-सास है । बात बढ़ने पर बेटे ने एक दिन माँ से कहा-

" माँ_मै चाहता हूँ कि मै अब इस काबिल हो गया हूँ कि कोई भी क़र्ज़ अदा कर सकता हूँ । मै और तुम दोनों सुखी रहें इसलिए आज तुम मुझ पर किये गए अब तक के सारे खर्च सूद और व्याज के साथ मिला कर बता दो । मै वो अदा कर दूंगा । फिर हम अलग-अलग सुखी रहेंगे ।
माँ ने सोच कर उत्तर दिया -
"बेटा_हिसाब ज़रा लम्बा है ,सोच कर बताना पडेगा।मुझे थोडा वक्त चाहिए ।"

बेटे ना कहा - " माँ _कोई ज़ल्दी नहीं है । दो-चार दिनों मे बात देना ।"
रात हुई, सब सो गए । माँ ने एक लोटे मे पानी लिया और बेटे के कमरे मे आई । बेटा जहाँ सो रहा था उसके एक ओर पानी डाल दिया । बेटे ने करवट ले ली । माँ ने दूसरी ओर भी पानी डाल दिया। बेटे ने जिस ओर भी करवट ली_माँ उसी ओर पानी डालती रही तब परेशान होकर बेटा उठ कर खीज कर बोला कि माँ ये क्या है ? मेरे पूरे बिस्तर को पानी-पानी क्यूँ कर डाला...?

माँ बोली-
" बेटा, तुने मुझसे पूरी ज़िन्दगी का हिसाब बनानें को कहा था । मै अभी ये हिसाब लगा रही थी कि मैंने कितनी रातें तेरे बचपन मे तेरे बिस्तर गीला कर देने से जागते हुए काटीं हैं । ये तो पहली रात है ओर तू अभी से घबरा गया ...? मैंने अभी हिसाब तो शुरू भी नहीं किया है जिसे तू अदा कर पाए।"

!!! अहंकार का नाश !!!


यह कथा उस समय की है जब लंका जाने के लिए भगवान श्रीराम ने सेतु निर्माण के पूर्व समुद्र तट पर शिवलिंग स्थापित किया था। वहाँ हनुमानजी को स्वयं पर अभिमान हो गया तब भगवान राम ने उनके अहम का नाश किया। यह कथा इस प्रकार है-

जब समुद्र पर सेतुबंधन का कार्य हो रहा था तब भगवान राम ने वहाँ गणेशजी और नौ ग्रहों की स्थापना के पश्चात शिवलिंग स्थापित करने का विचार किया। उन्होंने शुभ मुहूर्त में शिवलिंग लाने के लिए हनुमानजी को काशी भेजा। हनुमानजी पवन वेग से काशी जा पहुँचे। उन्हें देख भोलेनाथ बोले- “पवनपुत्र!” दक्षिण में शिवलिंग की स्थापना करके भगवान राम मेरी ही इच्छा पूर्ण कर रहे हैं क्योंकि महर्षि अगस्त्य विन्ध्याचल पर्वत को झुकाकर वहाँ प्रस्थान तो कर गए लेकिन वे मेरी प्रतीक्षा में हैं। इसलिए मुझे भी वहाँ जाना था। तुम शीघ्र ही मेरे प्रतीक को वहाँ ले जाओ। यह बात सुनकर हनुमान गर्व से फूल गए और सोचने लगे कि केवल वे ही यह कार्य शीघ्र-अतिशीघ्र कर सकते हैं।

यहाँ हनुमानजी को अभिमान हुआ और वहाँ भगवान राम ने उनके मन के भाव को जान लिया। भक्त के कल्याण के लिए भगवान सदैव तत्पर रहते हैं। हनुमान भी अहंकार के पाश में बंध गए थे। अतः भगवान राम ने उन पर कृपा करने का निश्चय कर उसी समय वारनराज सुग्रीव को बुलवाया और कहा-“हे कपिश्रेष्ठ! शुभ मुहूर्त समाप्त होने वाला है और अभी तक हनुमान नहीं पहुँचे। इसलिए मैं बालू का शिवलिंग बनाकर उसे यहाँ स्थापित कर देता हूँ।”

तत्पश्चात उन्होंने सभी ऋषि-मुनियों से आज्ञा प्राप्त करके पूजा-अर्चनादि की और बालू का शिवलिंग स्थापित कर दिया। ऋषि-मुनियों को दक्षिणा देने के लिए श्रीराम ने कौस्तुम मणि का स्मरण किया तो वह मणि उनके समक्ष उपस्थित हो गई। भगवान श्रीराम ने उसे गले में धारण किया। मणि के प्रभाव से देखते-ही-देखते वहाँ दान-दक्षिणा के लिए धन, अन्न, वस्त्र आदि एकत्रित हो गए। उन्होंने ऋषि-मुनियों को भेंटें दीं। फिर ऋषि-मुनि वहाँ से चले गए।

मार्ग में हनुमानजी से उनकी भेंट हुई। हनुमानजी ने पूछा कि वे कहाँ से पधार रहे हैं? उन्होंने सारी घटना बता दी। यह सुनकर हनुमानजी को क्रोध आ गया। वे पलक झपकते ही श्रीराम के समक्ष उपस्थिति हुए और रुष्ट स्वर में बोले-“भगवन! यदि आपको बालू का ही शिवलिंग स्थापित करना था तो मुझे काशी किसलिए भेजा था? आपने मेरा और मेरे भक्तिभाव का उपहास किया है।”

श्रीराम मुस्कराते हुए बोले-“पवनपुत्र! शुभ मुहूर्त समाप्त हो रहा था, इसलिए मैंने बालू का शिवलिंग स्थापित कर दिया। मैं तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ नहीं जाने दूँगा। मैंने जो शिवलिंग स्थापित किया है तुम उसे उखाड़ दो, मैं तुम्हारे लाए हुए शिवलिंग को यहाँ स्थापित कर देता हूँ।” हनुमान प्रसन्न होकर बोले-“ठीक है भगवन! मैं अभी इस शिविलंग को उखाड़ फेंकता हूँ।”

उन्होंने शिवलिंग को उखाड़ने का प्रयास किया, लेकिन पूरी शक्ति लगाकर भी वे उसे हिला तक न सके। तब उन्होंने उसे अपनी पूंछ से लपेटा और उखाड़ने का प्रयास किया। किंतु वह नहीं उखड़ा। अब हनुमान को स्वयं पर पश्चात्ताप होने लगा। उनका अहंकार चूर हो गया था और वे श्रीराम के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगे।

इस प्रकार हनुमान ने अहम का नाश हुआ। श्रीराम ने जहाँ बालू का शिवलिंग स्थापित किया था उसके उत्तर दिशा की ओर हनुमान द्वारा लाए शिवलिंग को स्थापित करते हुए कहा कि ‘इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने के बाद मेरे द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा करने पर ही भक्तजन पुण्य प्राप्त करेंगे।’ यह शिवलिंग आज भी रामेश्वरम में स्थापित है और भारत का एक प्रसिद्ध तीर्थ है।


!!! अमर फल आंवला !!!





भारत के ऋषि मुनियो ने लाखो - लाखो वर्ष एक -एक वृक्ष और पौधे पर गहन अनुसंधान किया और फिर उस पर धार्मिक और वैज्ञानिकता की मौहर लगा कर आम भारतीयो और पृथ्वी वासियो को उसके गुणो का लाभ दिलाया ऐसे ही पवित्र और वैज्ञानिक गुणो वाला एक वृक्ष है "आवला "
आवले के वृक्ष मे दैवीय शक्तियों का वास होता है

रोगो से लड़ने की अनुपम शक्ति के कारण ही इस वृक्ष को अमर फल का नाम भी प्रदान किया गया


चिक्तिसा परामर्श हेतु हमसे संपर्क करने वालो में सर्वाधिक संख्या उन रोगियों की होती है जो उदर रोगों से पीड़ित होते है - जैसे अपच,भूख न लगना, गैस, एसिडिटी और सबसे मुख्य रोग कब्ज़ |
अनियमित दिनचर्या और अनुचित आहार-विहार के अलावा मानसिक तनाव, नाना प्रकार के कारणवश होने वाली चिंता का सीधा प्रभाव नींद और पाचन संस्थान पर पड़ता है और व्यक्ति अनिद्रा तथा अपच का शिकार हो जाता है और इस स्थिति का निश्चित परिणाम होता है कब्ज़ होना | कब्ज़ कई व्याधियों की जड़ होती है जिसमे बवासीर, वात प्रकोप, एसिडिटी, गैस और जोड़ों का दर्द आदि व्याधियां कब्ज़ के ही देन होती है |

तो आज मैं चर्चा करने जा रहे है जिसमे सारे रोगों को दूर करने की शक्ति है,जो की ठंढी प्रकृति का है तथा इसकी विशेषता यह है की सूखने पर भी इसके गुण नष्ट नहीं होते | इसे आप हरा या सुखा किसी भी रूप में खाकर इसके सामान गुण का लाभ उठा सकते है | जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ आयुर्वेद में मशहूर बनौषधि जिसका नाम है " आँवला"

संस्कृत में आँवले को अमरफल, आदिफल, आमलकी , धात्री फल आदि नामों से पहचाना जाता है | लेतीं नाम :- एम्ब्लिका ओफिसिनेलिस( Emblica officinalis )

आँवला सर्दी की ऋतू में ताजा मिलता है | नवम्बर से मार्च तक अवाला ताजा मिलता रहता है | जनवरी-फ़रवरी में आवला अपने पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है |

जो आंवला आकर में बड़ा होता हो, गुदे में रेशा नहीं हो, बेदाग और हलकी-सी लाली लिए हुए हो, वह आँवला सबसे उत्तम होता है | वैसे सर्दियों में ही इसका मुरब्बा, अचार, जैम आदि बनाए |


आँवले में विटामिन- सी ( "C") पाया जाता है | एक आँवले में विटामिन- सी की मात्रा चार नारंगी और आठ टमाटर या चार केले के बराबर मिलता है | इसलिए यह शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति में महत्वपूर्ण है | विटामिन-सी की गोलियों की अपेक्षा आँवले का विटामिन-सी सरलता से पच जाता है |

आँवले में पाए जाने वाले कार्बोहायड्रेटस में मुख्य है रेशेदार 'पेक्टिन' | यह रक्तवाहिनियों के विकारों को नष्ट करने में सक्षम है | यह फल मधुरता और शीतलता के कारण पित को शान्त करता है |यह फल पितनाश्क होने के कारण पित-प्रधान रोगों की प्रधान औषधि है |


आँवले में ५८ मि .ग्रा. कैलोरी, ०.५ मि .ग्रा. प्रोटीन, ५० मि .ग्रा. कैल्सियम, १.२ मि .ग्रा. लोहा, ९ मि .ग्रा. विटामिन , ०.०३ मि .ग्रा. थायोमिन, ०.०१ मि .ग्रा. रिबोफ्लोविन, ०.२ मि .ग्रा. नियासिन, ६०० मि .ग्रा. विटामिन-सी |

आँवले के गुद्दे में जल ८१.२ प्रतिशत, कार्बोहाईड्रेट १४.१ प्रतिश, खनिज लवण ०.7 प्रतिशत, रेशा ३.४ प्रतिशत, वसा ०.१ प्रतिशत और फास्फोरस ०.०२ प्रतिशत होता है | आँवले में कई विटामिन होते है , जिनमे प्रमुख है - विटामिन -सी, यानि स्कार्बिक एसिड | आँवले में गेलिक एसिड, टैनिन और आल्ब्युमिन भी मौजूद होते है |


कब्ज़ में आँवला रात को एक चम्मच पिसा हुआ पानी या दूध के साथ लेने से सुबह शौच साफ़ आता है , कब्ज़ नहीं रहती | इससे आंते और पेट हलकी और साफ़ रहता है |

आंतरिक शक्ति बढ़ने वाली औषधियों का प्रधान घटक आँवला ही है | आँवले में एक रसायन होता है, जिसका नाम सकसीनिक अम्ल है | सकसीनिक अम्ल बुढ़ापे को रोकता है और इसमें पुनः यौवन प्रदान करने की शक्ति भी होती है | इसमें विद्यमान विभिन्न रसायन बीमार और जीर्ण कोशिकाओं के पुनर्निर्माण में अपना अच्छा योगदान देते है |


आँवले के नियमित सेवन से नेत्रज्योति और स्मरणशक्ति बढती है | यह गर्भवती महिला के लिए हितकर है | इससे ह्रदय की बेचैनी, धड़कन, मेदा, रक्तचाप,दाद आदि में लाभदायक है |

मधुमेह के रोगीओं के लिए :- सूखे आँवले और जामुन की गुठली समान मात्रा में पिस ले | इसकी दो चम्मच नित्य प्रातः भूखे पेट पानी के साथ फंकी लें | मधुमेह में निश्चित तौर पर फायद होगा | मधुमेह रोगीओं के लिए आँवले का ताजा रस लाभप्रद होता है | इसके सेवन से रक्त में शक्कर बनाना कम हो जाता है | आँवला पाउडर १ चम्मच दो बार पानी या दूध के साथ लेने से मधुमेह में लाभ होता है |

वैसे तो आंवले शरीर के सम्बंधित अधिकांश रोगों से लड़ने में कारगर है , परन्तु मैं यहाँ कुछ रोग जो वर्तमान में ज्यादा लोग ग्रसित है उसके बारे में बताते है :-

उच्च रक्तचाप :- आँवले में सोडियम को कम करने की क्षमता होती है | इसलिए रक्तचाप के रोगी के लिए आँवले का उपयोग लाभदायक है | यह रक्त बढाने और साफ़ करने में सहायक है तथा इससे शरीर को आवश्यक रेशा मिलता है |

ह्रदय एवं मस्तिस्क की निर्बलता :- आधा भोजन करने के पश्चात् हरे आंवलों का रस ३५ ग्राम पानी में मिलकर पी लें, फिर आधा भ्जोजन करें | इस पारकर २१ दिन सेवन करने से ह्रदय एवं मस्तिस्क की दुर्बलता दूर होकर स्वास्थ्य सुधर जाता है | स्मरण-शक्ति बढती है |

कोलेस्ट्रोल , ह्रदय रोग से बचाव :- एक चम्मच आँवले की फंकी नित्य लेने से ह्रदय रोग होने से बचाव होता है | कच्चे हरे आँवले का रस चौथाई कप, अध कप पानी, स्वादानुसार मिश्री मिलकर पीते रहने से कोलेस्ट्रोल कम होकर सामान्य हो जाता है , जिससे ह्रदय रोग से बचाव होता है |

सुन्दर संतान :- नित्य एक आँवले का मुरब्बा गर्भावस्था में सेवन करते रहने से मान स्वस्थ्य रहती हुई सुन्दर, गौरवर्ण संतान को जन्म देगी |

नेत्र-ज्योतिवर्धक :- एक कांच का गिलास पानी से भरकर नित्य रात को उसमे एक चम्मच पिसा हुआ आँवला दल दें | प्रातः बिना हिलाए आधा पानी छानकर उससे नेत्रों को धोये तथा बचा हुआ आधा पानी आँवले सहित पियें | इस तरह लगातार चार महीने सेवन करने से नेत्र ज्योति बढ़ जाएगी

!!! अष्टाध्यायी !!!

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संस्कृत के व्याकरण के अष्टाध्यायी पुस्तक उच्चकोटि की पुस्तक है, इसके लेखक पाणिनि ऋषि वेद और इसकी स्नस्क्तित के सामान नतमस्तक होते हैं और व्याकरण के नियमानुसार वह इसमें किसी प्रकार की भी भूल नही देखता है l इसलिए यह कहना की वेद उन अश्भ्य मनुष्यों के बनाये हुए हैं जो जंगली जानवरों से लड़ने, भेड़ बकरियां चराने, और थोड़ी से खेती बाडी करने के अतिरिक्त कुछ जानते नही थे सरासर अज्ञान और बुद्धिहीनता पर आधारित है l


एक यूनानी इतिहासकार लिखता है की यूनान के बड़े बड़े हकीम भारत के छोटे से छोटे वैध्य की बराबरी नही कर सकते हैं l जिस योग्यता से भारत वर्ष के वैध्य आकाश के हालात बतलाते हैं उस योग्यता से यूनान के हकीम जमीन के हालात भी नही बता सकते l भारत वर्ष का ज्योतिष विज्ञान पूर्णतः विकसित और पूर्ण है l इस विज्ञान के प्राचीन लेखक बताते हैं की इसका आरम्भ वेद से होता है l ज्योतिष वेद का एक अंग है l



यूरोप के जिन विद्वानों ने संस्कृत का अध्ययन बिना पूर्व दोषों के किया है उन्होंने बिना संदेह इस बात को स्वीकार किया है की विश्व में आज तक जितना ज्ञान विज्ञान प्रकाशित हुआ है उस सब के आविष्कारक आर्य ही थे l जब दुनिया की दूसरी जातियां अज्ञान की नींद से उठी ही नही थीं तब तक भारत के आर्य सब कलाओं और विधाओं में आविष्कार कर उनको पूर्णतया विकसित कर चुके थे l इसलिए हंटर साहब लिखते हैं की वर्तमान समय में भी जितना ज्ञान भारत वर्ष यूटोप को सिखा सकता है उतना ज्ञान यूरोप भारत को नही सिखा सकय l आजकल भारत वर्ष यूरोप से केवल भोतिकता सीख रहा है, परन्तु जब हम संस्कृत साहित्य को पढ़ते हैं तो भोतिक विज्ञान का भी विस्तार से संस्कृत में लिखा है l परन्तु इसको जाननेवाले कम हैं और उस कारण भारत वर्ष यूरोप का आभारी बना है l Electricity, Meteorology, Hydrology, Chemistry, Botany इत्यादि सब विज्ञान संस्कृत में हैं और बहुत ऊंची पद्धति से लिखे हैं l यूरोप अभी तक मनोविज्ञान में बहुत पीछे है और भारत वर्ष शब्दियों तक इसका पाठ पढ़ा सकता है l अतः हम आशा करते हैं की यूरोप के लोग संस्कृत का जितना अध्ययन करते जायेंगे उतना ही भारत से बहुत कुछ सीख सकेंगे l

संस्कृत में विभिन्न विज्ञानों का भंडार पड़ा है l प्रत्येक विज्ञान के लेखकों ने स्वीकार किया है की प्रत्येक विज्ञान का मूल वेद से शुरू होता है l वेदों में सब विज्ञानों भोतिक और अध्यात्मिक का बीज अर्थात मूल विद्यमान है l

विज्ञान के लेखक ने उसके जानने का दवा नही किया है परन्तु यह कहा है की हम इस ज्ञान को वेद से प्राप्त कर इसका स्पष्टीकरण कर रहे हैं l



मुंबई के पूर्व राज्यपाल इन्फिन्स्त्न लिखते हैं " संस्कृत भाषा यूनानी से अधिक पूर्ण और लातिनी से अधिक विशाल और दोनों से अधिक मीठी और वैज्ञानिक है l इस भाषा की रचना इस प्रकार श्रेष्ठ और वैज्ञानिक की इस से अधिक पूर्ण, सम्पन्न और वैज्ञानिक रचना होना सम्भव नही है l "

जय हिन्दू राष्ट्र !

‘‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’’



सनातन भारतीय संस्कृति में प्रणव (ॐ) के बाद सर्वाधिक एवं विशिष्ट शब्द हैं—

‘‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’’। 

यह नन्हीं-सी, विराट् शब्दावली अकराण या अनायास ही नहीं बन गयी थी, 

बल्कि हमारे ऋषियों-मनीषियों के दीर्घकालीन गवेषणात्मक चिन्तन, ध्यान, आत्मानुभूति (ब्रह्मदर्शन) के फल-स्वरूप ही बन पायी।

‘‘सत्यम शिवम् सुन्दरम्’’— यह अनुपम शब्दावली, तीन स्तरों पर व्याप्त ईश्वरीय सत्ता की परिचायिका है। तीन स्तरों पर व्याप्त अनादि, अनन्त, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान्, परम कृपालु परमेश्वर को हम एक शब्द में ‘‘शिव’’ कहकर व्यक्त करते हैं। दो अक्षरों के इस छोटे से सरल नाम में संपूर्ण ब्रह्माण्ड का सार समाया हुआ है। 

यदि मनुष्य के लिये सबसे अधिक कल्याणकारी, अमृतोपम कुछ हो सकता है तो वह यही लगुतम, महानतम और मधुरतम शब्द है ‘‘शिव’’।


मेरे रोम -रोम में तुम ही तुम हो
इस संसार के रक्षक तुम ही तुम हो
बोलो ॐ नमः शिवाय


!! हर हर महादेव !!


!!! पद्म पुराण !!!


महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित संस्कृत भाषा में रचे गए अठारण पुराणों में से एक पुराण ग्रंथ है। सभी अठारह पुराणों की गणना में ‘पदम पुराण’ को द्वितीय स्थान प्राप्त है। श्लोक संख्या की दृष्टि से भी इसे द्वितीय स्थान रखा जा सकता है। पहला स्थान स्कंद पुराण को प्राप्त है। पदम का अर्थ है-‘कमल का पुष्प’। चूंकि सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी ने भगवाननारायण के नाभि कमल से उत्पन्न होकर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञान का विस्तार किया था, इसलिए इस पुराण को पदम पुराण की संज्ञा दी गई है। इस पुराण में भगवान विष्णु की विस्तृत महिमा के साथ, भगवान श्रीराम तथा श्रीकृष्ण के चरित्र, विभिन्न तीर्थों का माहात्म्य शालग्राम का स्वरूप, तुलसी-महिमा तथा विभिन्न व्रतों का सुन्दर वर्णन है।


यह पुराण सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वतंर और वंशानुचरित –इन पाँच महत्वपूर्ण लक्षणों से युक्त है। भगवान विष्णु के स्वरूप और पूजा उपासना का प्रतिपादन करने के कारण इस पुराण को वैष्णव पुराण भी कहा गया है। इस पुराण में विभिन्न पौराणिक आख्यानों और उपाख्यानों का वर्णन किया गया है, जिसके माध्यम से भगवान विष्णु से संबंधित भक्तिपूर्ण कथानकों को अन्य पुराणों की अपेक्षा अधिक विस्तृत ढंग से प्रस्तुत किया है। पदम-पुराण सृष्टि की उत्पत्ति अर्थात् ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना और अनेक प्रकार के अन्य ज्ञानों से परिपूर्ण है तथा अनेक विषयों के गम्भीर रहस्यों का इसमें उद्घाटन किया गया है। इसमें सृष्टि खंड, भूमि खंड और उसके बाद स्वर्ग खण्ड महत्वपूर्ण अध्याय है। फिर ब्रह्म खण्ड और उत्तर खण्ड के साथ क्रिया योग सार भी दिया गया है।

विद्वानों के अनुसार इसमें पांच और सात खण्ड हैं। किसी विद्वान ने पांच खण्ड माने हैं और कुछ ने सात। पांच खण्ड इस प्रकार हैं-

1.सृष्टि खण्ड: इस खण्ड में भीष्म ने सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में पुलस्त्य से पूछा। पुलस्त्य और भीष्म के संवाद में ब्रह्मा के द्वारा रचित सृष्टि के विषय में बताते हुए शंकर के विवाह आदि की भी चर्चा की।

2.भूमि खण्ड: इस खण्ड में भीष्म और पुलस्त्य के संवाद में कश्यप और अदिति की संतान, परम्परा सृष्टि, सृष्टि के प्रकार तथा अन्य कुछ कथाएं संकलित है।

3.स्वर्ग खण्ड: स्वर्ग खण्ड में स्वर्ग की चर्चा है। मनुष्य के ज्ञान और भारत के तीर्थों का उल्लेख करते हुए तत्वज्ञान की शिक्षा दी गई है।

4. ब्रह्म खण्ड: इस खण्ड में पुरुषों के कल्याण का सुलभ उपाय धर्म आदि की विवेचन तथा निषिद्ध तत्वों का उल्लेख किया गया है। पाताल खण्ड में राम के प्रसंग का कथानक आया है। इससे यह पता चलता है कि भक्ति के प्रवाह में विष्णु और राम में कोई भेद नहीं है। उत्तर खण्ड में भक्ति के स्वरूप को समझाते हुए योग और भक्ति की बात की गई है। साकार की उपासना पर बल देते हुए जलंधर के कथानक को विस्तार से लिया गया है।

5.क्रियायोग सार खण्ड: क्रियायोग सार खण्ड में कृष्ण के जीवन से सम्बन्धित तथा कुछ अन्य संक्षिप्त बातों को लिया गया है। इस प्रकार यह खण्ड सामान्यत: तत्व का विवेचन करता है।

!!! अनन्त-मूल (कृष्णा सारिवा) औषधीय प्रयोग !!!

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विभिन्न भाषाओं के नाम :
हिंदी कालीसर, कालीदूधी, श्यामलता, सारिवा।

संस्कृत कृष्णसारिवा, कृष्णमूली, कालपेशी, चंदन बंगाली सारिवा कालघंटिका, सुभद्रा श्यामलता।
मराठी मोठीकावड़ी, उपरसरी, कालीकावड़ी,
गुजराती काली उपलसरी, धूरीबेल।
बंगला श्यामलता, दूधी, कलघंटी।
पंजाबी अनन्तमूल।

अंग्रेजी इंडियन सारसापरीला (Indian Sasaprila.P.)
लैटिन इकनोकार्पस फ्रटीसंस (Ichnocarpust Frutescens)


गुण: यह वात पित्त, रक्तविकार, प्यास, अरुचि, उल्टी, बुखारनाशक, शीतल, वीर्यवर्द्धक, कफनाशक, मधुर, धातुवर्द्धक, भारी, स्निग्ध, कड़वी, सुगन्धित, स्तनों के दूध को शुद्ध करने वाला, जलन, मंदाग्नि और सांस-खांसी नाशक है।

विभिन्न रोगों में अनन्तमूल से उपचार:

1 सिर दर्द :-*अनन्तमूल की जड़ को पानी में घिसने से बने लेप को गर्म करके मस्तक पर लगाने से पीड़ा दूर होती है।
*लगभग 6 ग्राम अनन्तमूल को 3 ग्राम चोपचीनी के साथ खाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।"

2 बच्चों का सूखा रोग :-अनन्तमूल की जड़ और बायबिडंग का चूर्ण बराबर की मात्रा में मिलाकर आधे चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम सेवन कराने से बच्चे का स्वास्थ्य सुधर जाता है।

3 पथरी और पेशाब की रुकावट :-अनन्तमूल की जड़ के 1 चम्मच चूर्ण को 1 कप दूध के साथ 2 से 3 बार पीने से पेशाब की रुकावट दूर होकर पथरी रोग में लाभ मिलता है। मूत्राशय (वह स्थान जहां पेशाब एकत्रित होता है) का दर्द भी दूर होता है।

4 रक्तशुद्धि हेतु (खून साफ करने के लिए) :-100 ग्राम अनन्तमूल का चूर्ण, 50 ग्राम सौंफ और 10 ग्राम दालचीनी मिलाकर चाय की तरह उबालें, फिर इसे छानकर 2-3 बार नियमित रूप से पीने से खून साफ होकर अनेक प्रकार के त्वचा रोग दूर होंगे।

5 मुंह के छाले :-शहद के साथ अनन्तमूल की जड़ का महीन चूर्ण मिलाकर छालों पर लगाएं।

6 घाव :-अनन्तमूल का चूर्ण घाव पर बांधते रहने से वह जल्द ही भर जाता है। घाव पर अनन्तमूल पीसकर लेप करने से लाभ होता है।

7 पीलिया (कामला) :-*1 चम्मच अनन्तमूल का चूर्ण और 5 कालीमिर्च के दाने मिलाकर एक कप पानी में उबालें। पानी आधा रह जाए, तब छानकर इसकी एक मात्रा नियमित रूप से एक हफ्ते तक सुबह खाली पेट पिलाने से रोग दूर हो जाएगा।
*अनन्तमूल की जड़ की छाल 2 ग्राम और 11 कालीमिर्च दोनों को 25 मिलीलीटर पानी के साथ पीसकर 7 दिन पिलाने से आंखों एवं शरीर दोनों का पीलापन दूर हो जाता है तथा कामला रोग से पैदा होने वाली अरुचि और बुखार भी नष्ट हो जाता है।"

8 सर्प के विष में :-चावल उबालने के पश्चात उसके पानी को किसी बर्तन में निकालकर, अनन्तमूल की जड़ का महीन चूर्ण 1 चम्मच मिलाकर दिन में 2 या 3 बार पिलाने से लाभ होगा।

9 गर्भपात की चिकित्सा :-*जिन स्त्रियों को बार-बार गर्भपात होता हो, उन्हें गर्भस्थापना होते ही नियमित रूप से सुबह-शाम 1-1 चम्मच अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण सेवन करते रहना चाहिए। इससे गर्भपात नहीं होगा और शिशु भी स्वस्थ और सुंदर होगा।

*उपदंश या सूजाक के कारण यदि बार-बार गर्भपात हो जाता हो तो अनन्तमूल का काढ़ा 3 से 6 ग्राम की मात्रा में गर्भ के लक्षण प्रकट होते ही सेवन करना करना प्रारम्भ कर देना चाहिए। इससे गर्भ नष्ट होने का भय नहीं रहता है। इससे कोई भी आनुवांशिक रोग होने वाले बच्चे पर नहीं होता है। "

10 नेत्र रोग (आंखों की बीमारी) :-*अनन्तमूल की जड़ को बासी पानी में घिसकर नेत्रों में अंजन करने से या इसके पत्तों की राख कपड़े में छानकर शहद के साथ आंखों में लगाने से आंख की फूली कट जाती है।
*अनन्तमूल के ताजे मुलायम पत्तों को तोड़ने से जो दूध निकलता है उसमें शहद मिलाकर आंखों में लगाने से नेत्र रोगों में लाभ होता है।
*अनन्तमूल से बने काढ़े को आंखों में डालने से या काढ़े में शहद मिलाकर लगाने से नेत्र रोगों में लाभ होता है।"

11 दमा :-दमे में अनन्तमूल की 4 ग्राम जड़ और 4 ग्राम अडू़से के पत्ते के चूर्ण को दूध के साथ दोनों समय सेवन करने से सभी श्वास व वातजन्य रोगों में लाभ होता है।

12 लंबे बालों के लिए :-अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 2-2 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार पानी के साथ सेवन करने से सिर का गंजापन दूर होता है।

13 दंत रोग :-अनन्तमूल के पत्तों को पीसकर दांतों के नीचे दबाने से दांतों के रोग दूर होते हैं।

14 स्तनशोधक :-अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 3 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से स्तनों की शुद्धि होती है। यह दूध को बढ़ा देता है। जिन महिलाओं के बच्चे बीमार और कमजोर हो, उन्हें अनन्तमूल की जड़ का सेवन करना चाहिए।

15 पेट के दर्द में :-अनन्तमूल की जड़ को 2-3 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी में घोटकर पीने से पेट दर्द नष्ट होता है।

16 मंदाग्नि (अपच) :-अनन्तमूल का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से पाचन क्रिया बढ़ती है। इससे पाचनशक्ति बढ़ती है तथा रक्तपित्त दोष का नाश होता है।

17 मूत्रविकार (पेशाब की खराबी) :-अनन्तमूल की छोटी जड़ को केले के पत्ते में लपेटकर आग की भूभल में रख दें। जब पत्ता जल जाये तो जड़ को निकालकर भुने हुए जीरे और शक्कर के साथ पीसकर, गाय का घी मिलाकर सुबह-शाम लेने से मूत्र और वीर्य सम्बंधी विकार दूर होते हैं। बारीक पिसी हुई अनन्तमूल की जड़ के चूर्ण का लेप मूत्रेन्द्रिय पर करने से मूत्रेन्द्रिय की जलन मिटती है।

18 अश्मरी (पथरी) में :-अश्मरी एवं मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट होना) में अनन्तमूल की जड़ का 5 ग्राम चूर्ण गाय के दूध के साथ दिन में सुबह और शाम सेवन करने से लाभ होता है।

19 सन्धिवात (जोड़ों का दर्द) :-अनन्तमूल के चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार देने से सन्धिवात में लाभ होता है।

20 रक्तविकार :-*अनन्तमूल 30 ग्राम, जौकुट कर 1 लीटर पानी में पकावें, जब यह आठवां भाग शेष बचे तो इसे छानकर उचित मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से खुजली, दाद, कुष्ठ आदि रक्तविकार दूर होते हैं।
*अनन्तमूल 500 ग्राम जौकुट कर 500 मिलीलीटर खौलते हुए पानी में भिगो दें और 2 घण्टे बाद छान लें। 50 ग्राम की मात्रा में दिन में 4-5 बार पिलाने से रक्तविकार और त्वचा के विकार शीघ्र दूर होते हैं।

*पीपल की छाल और अनन्तमूल इन दोनों को चाय के समान फांट (घोल) बनाकर सेवन करने से दाद-खाज, खुजली, फोड़े-फुन्सी तथा गर्मी के विकारों में लाभ होता है।

*सफेद जीरा 1 चम्मच और अनन्तमूल का चूर्ण 1 चम्मच दोनों का काढ़ा बनाकर पिलाने से खून साफ हो जाता है।
*फोड़े-फुन्सी-गंडमाला और उपदंश सम्बंधी रोग मिटाने के लिए अनन्तमूल की जड़ों का 75 से 100 मिलीलीटर तक काढ़ा दिन में 3 बार पिलाना चाहिए।
*अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 1 ग्राम और बायविडंग का चूर्ण 1 ग्राम दोनों को पीसकर देने से अधिक गम्भीर बच्चे भी नवजीवन पा जाते हैं।"

21 दाह (जलन) :-अनन्तमूल चूर्ण को घी में भूनकर लगभग आधा ग्राम से 1 ग्राम तक चूर्ण, 5 ग्राम शक्कर के साथ कुछ दिन तक सेवन करने से चेचक, टायफायड आदि के बाद की शरीर में होने वाली गर्मी की जलन दूर हो जाती है।

22 ज्वर (बुखार) :-अनन्तमूल की जड़, खस, सोंठ, कुटकी व नागरमोथा सबको बराबर लेकर पकायें, जब यह आठवां हिस्सा शेष बचे तो उतारकर ठंडा कर लें। इस काढे़ को पिलाने से सभी प्रकार के बुखार दूर होते हैं।

23 विषम ज्वर (टायफाइड):-अनंनतमूल की जड़ की छाल का 2 ग्राम चूर्ण सिर्फ चूना और कत्था लगे पाने के बीड़े में रखकर खाने से लाभ होता है।

24 वात-कफ ज्वर :-अनन्तमूल, छोटी पीपल, अंगूर, खिरेंटी और शालिपर्णी (सरिवन) को मिलाकर बना काढ़ा गर्म-गर्म पीने से वात का बुखार दूर हो जाता है।

25 बालों का झड़ना (गंजेपन का रोग) :-2 ग्राम अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण रोजाना खाने से सिर के बाल उग आते हैं और सफेद बाल काले होने लगते हैं।

26 खूनी दस्त :-अनन्तमूल का चूर्ण 1 ग्राम, सोंठ, गोंद या अफीम को थोड़ी-सी मात्रा में लेकर दिन में सुबह और शाम सेवन करने से खूनी दस्त बंद हो जाता है।

27 मूत्र के साथ खून का आना :-अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 50 ग्राम से 100 ग्राम को गिलोय और जीरा के साथ लेने से जलन कम होती है और पेशाब के साथ खून आना बंद होता है।

28 कमजोरी :-अनन्तमूल के चूर्ण के घोल को वायविडंग के साथ 20-30 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से कमजोरी मिट जाती है।

29 प्रदर रोग :-50-100 ग्राम अनन्तमूल के चूर्ण को पानी के साथ प्रतिदिन 2 बार सेवन करने से प्रदर में फायदा होता है।

30 उपदंश (सिफिलिस) में :-उपदंश से पैदा होने वाले रोगों में अनन्तमूल का चूर्ण रोज 2 मिलीग्राम से 12 मिलीग्राम तक खाने से लाभ होता है।

31 पेशाब का रंग काला और हरा होना :-अगर पेशाब का रंग बदलने के साथ-साथ गुर्दे में भी सूजन हो रही हो तो 50 से 100 ग्राम अनन्तमूल का चूर्ण गिलोय और जीरे के साथ देने से लाभ होता है।

32 होठों का फटना :-अनन्तमूल की जड़ को पीसकर होठ पर या शरीर के किसी भी भाग पर जहां पर त्वचा के फटने की वजह से खून निकलता हो इसका लेप करने से लाभ होता है।

33 एड्स :-*अनन्तमूल का फांट 40 से 80 मिलीलीटर या काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर प्रतिदिन में 3 बार पीयें।
*अनन्तमूल को कपूरी, सालसा आदि नामों से जाना जाता है। यह अति उत्तम खून शोधक है। अनन्तमूल के चूर्ण के सेवन से पेशाब की मात्रा दुगुनी या चौगुनी बढ़ती है। पेशाब की अधिक मात्रा होने से शरीर को कोई हानि नहीं होती है। यह जीवनी-शक्ति को बढ़ाता है, शक्ति प्रदान करता है। यह मूत्र विरेचन (मूत्र साफ करने वाला), खून साफ करना, त्वचा को साफ करना, स्तन्यशोध (महिला के स्तन को शुद्ध करना), घाव भरना, शक्ति बढ़ाना, जलन खत्म करना आदि गुणों से युक्त है। इसका चूर्ण 50 मिलीग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह शाम खायें। यह सुजाक जैसे रोगों को दूर करता है।"

34 गठिया रोग :-लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अन्तमूल के रोजाना सेवन से गठिया रोग में उत्पन्न भोजन की अरुचि (भोजन की इच्छा न करना) दूर हो जाता है। गठिया रोग में अनन्त की जड़ को फेंटकर 40 मिलीलीटर रोजाना सुबह-शाम रोगी को सेवन कराने से रोग ठीक होता है।

35 गंडमाला (स्क्रोफुला) :-अनन्तमूल और विडंगभेद को पीसकर पानी में मिलाकर काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाने और गांठों पर लगाने से गंडमाला (गले की गांठे) दूर हो जाती हैं।

ये करें तो सफेद बाल सफेद नहीं रहेंगे काले हो जाएंगे



ये करें तो सफेद बाल सफेद नहीं रहेंगे काले हो जाएंगे
वैसे तो एक उम्र के बाद बाल सफेद होना शरीर की एक सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन अगर बाल उम्र कम उम्र में सफेद हो जाए तो चिंता का विषय बन जाते हैं। 


कई बार अनियमित दिनचर्या व प्रदूषण तो कई बार अनुवांशिकता कम उम्र में बाल सफेद होने का कारण बन जाती है। अगर आपके साथ भी यही समस्या है 

कम उम्र में ही आपके बाल सफेद हो गए तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं बालों को फिर से काला करने के कुछ देसी नुस्खे....

आधा कप दही में चुटकी भर काली मिर्च और चम्मच भर नींबू रस मिलाकर बालों में लगाएं। बेसन और दही के घोल से बालों को धोएं। बाल सफेद से काले होने लगेंगे।


मेथी भी बालों को सफेद होने से रोकती है।

प्रतिदिन शुद्ध घी से सिर की मालिश करके भी बालों के सफेद होने की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।
कुछ दिनों तक, नहाने से पहले रोज सिर में प्याज का पेस्ट लगाएं। बाल सफेद से काले होने लगेंगे।

- भृंगराज और अश्वगंधा की जड़ें बालों के लिए वरदान मानी जाती हैं। इनका पेस्ट नारियल के तेल के साथ बालों की जड़ों में लगाएं और 1 घंटे बाद गुनगुने पानी से अच्छीं तरह से बाल धो लें। इससे बालों की कंडीशनिंग भी होगी और बाल काले भी होंगे।

तिल खाएं और तिल से बना तेल बालों में लगाए, तिल का प्रयोग बालों को काला करने में बहुत मदद करता है।
तुरई के टुकड़े कर उसे सूखा कर कूट लें। फिर कूटे हुए मिश्रण में इतना नारियल तेल डालें कि वह डूब जाएं। इस तरह चार दिन तक उसे तेल में डूबोकर रखें फिर उबालें और छान कर बोतल भर लें। इस तेल की मालिश करें। बाल काले होंगे।

गेहूं के पौधे यानी जवारे का रस पीने से भी बाल कुछ समय बाद काले हो जाते हैं।