13 May 2015

अमरूद की पत्तियों में छुपा है हर बीमारी का इलाज

1. अमरूद की पत्तियां के फायदे

अमरूद एक पसंदीदा फल है। यह स्‍वादिष्‍ट होने के साथ-साथ कई तरह के स्‍वास्‍थ्‍य गुणों से भी भरपूर है। हालांकि, हममें से ज्‍यादातर लोग इस तथ्‍य से पूरी तरह से अनजान हैं कि अमरूद के पत्‍ते भी बहुत फायदेमंद होते है। आपको यह जानकर आश्‍चर्य होगा कि अमरूद के पत्‍तों में मौजूद अद्भुत एंटीऑक्‍सीडेंट, एंटीबैक्‍टीरियल और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण कई प्रकार की स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को दूर करने में मदद करते है। त्‍वचा, बाल और स्‍वास्‍थ्‍य की देखभाल के लिये अमरूद की ताजी पत्‍तियों का रस या फिर इसकी बनी हुई चाय बहुत ही फायदेमंद होती है। आइए जानें अमरूद की पत्तियां स्‍वास्‍थ्‍य के लिए किस प्रकार से फायदेमंद होती है।




2. वजन में लाये कमी

अमरूद की पत्तियां जटिल स्टार्च को शुगर में बदलने की प्रक्रिया को रोकता है जिसके द्वारा शरीर के वजन को घटाने में सहायता मिलती है। अमरूद के पत्‍ते कार्बोहाइड्रेट की गति को रोकता है, जो उपलब्ध यौगिक के रूप में लीवर में टूटता है और वजन घटाने का समर्थन करता है।




3. मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद

जापान में यकुल्ट सेंट्रल इंस्टीट्यूट में अमरूद के पत्तों से बनी चाय पर एक शोध किया गया। शोध के निष्‍कर्ष के अनुसार, अमरूद पत्ती से बनी चाय में एल्फा-ग्लूकोसाइडिस एंजाइम गतिविधि को कम कर मधुमेह रोगियों में प्रभावी रूप से रक्त शर्करा को कम करती है। इसके अलावा यह सुक्रोज और माल्‍टोज को सोखने से शरीर को रोकती है जिससे शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है। अमरूद की पत्ती से बनी चाय 12 सप्ताह पीने से इंसुलिन के उत्पादन में वृद्धि के बिना रक्त में शर्करा के स्तर को कम कर सकते हैं।




4. कार्डियोवस्कुलर प्रभाव


अमरूद के पत्‍तों से बनी चाय दिल और संचार प्रणाली के लिए उपयोगी होती है। 2005 में प्रकाशित एक प्रयोगशाला अध्ययन के मुताबिक, अमरूद के पत्तों में मौजूद यौगिक रक्तचाप और हृदय की दर को कम करने में मदद करते हैं। अमरूद के पत्‍तों से बनी चाय के सेवन से ब्‍लड लिपिड, ब्‍लड में कोलेस्ट्रॉल का निम्‍न स्‍तर और अस्वस्थ ट्राइग्लिसराइड्स में सुधार करने में मदद मिलती है।



5. डायरिया का उपचार

अमरूद की पत्तियां डायरिया और पेचिश के लिए अद्भुत उपचार भी है। समस्‍या होने पर 30 ग्राम अमरूद की पत्तियां और एक मुट्ठी चावल के आटे को दो गिलास पानी में मिलाकर उबाल लें। डायरिया के इलाज के लिए इस मिश्रण को दिन में दो बार पीयें। पेचिश के इलाज के लिए, अमरूद की पत्तियों और जड़ों को लेकर 90 डिग्री सेल्सियस पर 20 मिनट के लिए उबालें। इस पानी को छानकर दिन में दो बार पेचिश से राहत पाने तक लें।





6. पाचन तंत्र को दुरुस्‍त रखें

अमरूद की पत्तियां पाचन एंजाइम के उत्‍पादन को बढ़ाकर पाचन तंत्र को दुरुस्‍त रखने में मदद करता है। शक्तिशाली एंटी-बैक्‍टीरियल एजेंट प्रभावी ढंग से पेट के अस्‍तर से हानिकारक बैक्‍टीरिया को नष्‍ट करने और बैक्‍टीरिया से विषाक्‍त एंजाइमों के प्रसार को रोकने में मदद करता है। अमरूद के पत्तों फूड प्‍वाइजनिंग, उल्टी और मतली से भी राहत प्रदान करते हैं।



7. एलर्जी दूर करें

अमरूद की पत्‍तियों का रस किसी भी प्रकार की एलर्जी को दूर कर सकता है। अमरूद की पत्तियों में एलर्जी अवरोधक गुण पाया जाते है यह उस वायरस को खत्‍म करता है जिससे एलर्जी पैदा होती है। साथ ही यह एलर्जी से होने वाली खुजलाहट को दूर करने में भी मददगार होता है। एलर्जी में खुजलाहट बहुत ही आम होता है। अत: एलर्जी को कम करने से खुजलाहट अपने आप कम हो जाती है।

8. मुंहासे की समस्‍या से निजात दिलाये


अमरूद की पत्तियों एंटीसेप्‍टिक होने के कारण बैक्‍टीरिया को दूर करने में मदद करती है। मुंहासे की समस्‍या में ताजी पत्‍तियों को पीस कर दाग धब्‍बों के साथ मुंहासो पर लगाएं। नियमित रूप से ऐसा करने से धीरे-धीरे मुंहासों की समस्‍या दूर हो जाती है।




बुखार में उपयोग लाए जा सकते हैं ये रामबाण आदिवासी नुुस्खे

बुखार में हमारा ध्यान हमेशा शरीर के बढ़े हुए तापमान पर जाता है, लेकिन इसके बारे में सही जानकारी बहुत कम लोगों को है। दरअसल, बुखार कोई रोग नहीं, बल्कि शरीर में हो रही कई प्रकार की गड़बड़ियों का सूचक है। ध्यान देने की बात ये है कि बुखार को मजाक में लेना घातक भी हो सकता है। यूं तो बाजार में शरीर के तापमान को कम करने के लिए दवाइयों की भरमार है, लेकिन इन दवाइयों के साइड इफेक्ट्स को भी ध्यान में रखना जरूरी है।

यदि हम हर्बल नुस्खों को अपनाएंगे तो किसी भी प्रकार साइड इफेक्ट्स की संभावनाएं काफी कम हो जाती है। यहां जानिए कुछ हर्बल नुस्खे जो बुखार को दूर करने में कारगर हैं। आदिवासी इलाकों में इन्हीं नुस्खों से बुखार का इलाज किया जाता है।


1.आदिवासियों के अनुसार रत्ती पौधे की पत्तियों की सब्जी बेहद शक्तिवर्धक होती है। इस सब्जी का सेवन बुखार से ग्रस्त व्यक्ति को कराया जाए तो बुखार उतर जाता है। आदिवासियों का ये भी मानना है कि इन पत्तियों की चाय बनाकर पीने से बुखार उतर जाता है, साथ ही सर्दी और खांसी में भी राहत मिलती है।

2. सप्तपर्णी की छाल का काढ़ा पिलाने से बदन दर्द और बुखार में आराम मिलता है। डांग-गुजरात के आदिवासियों के अनुसार, जुकाम और बुखार होने पर सप्तपर्णी की छाल, गिलोय का तना और नीम की आंतरिक छाल की समान मात्रा को कुचलकर काढ़ा बनाया जाए और रोगी को दिया जाए तो अतिशीघ्र आराम मिलता है। आधुनिक विज्ञान भी इसकी छाल से प्राप्त डीटेइन और डीटेमिन जैसे रसायनों को क्विनाइन से बेहतर मानता है।

3. बुखार में जब सिर दर्द हो और सारे बदन में भी दर्द हो तो सिवान की पत्तियों को पीसकर सिर पर और शरीर के दर्द वाले हिस्सों पर लेप करने से दर्द और जलन समाप्त हो जाती हैं। डांगी आदिवासियों के अनुसार सिवान की पत्तियों और छाल के रस में तिल के तेल को मिलाकर मालिश करने से बुखार के दौरान होने वाले शारीरिक दर्द में राहत मिलती है।

4. सूरजमुखी की पत्तियों का रस निकाल कर मलेरिया आदि बुखार आने पर शरीर पर लेपित किया जाता है। पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि यह रस शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है।

5. डांग-गुजरात के आदिवासी सोनापाठा की लकड़ी का छोटा-सा प्याला बनाते हैं और रात को इसमें पानी भरकर रख लेते हैं। इस पानी को अगली सुबह उस रोगी को देते हैं, जो लगातार बुखार से ग्रस्त है। आदिवासी इसकी जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर कुल्ले करने की भी सलाह देते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये शरीर में बुखार के दौरान तापमान को नियंत्रित तो करता ही है, इसके अलावा मुंह के स्वाद को बेहतर बनाने में भी मदद करता है।

6. आदिवासी लोग हंसपदी के संपूर्ण अंगों यानी तना, पत्ती, जड़, फल और फूल लेकर सुखा लेते हैं और फ़िर एक साथ चूर्ण तैयार करते हैं। इस चूर्ण का चुटकी भर भाग शहद के साथ सुबह और शाम लेने से बुखार में आराम मिलता है।

7. पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि हुरहुर की जड़ों के रस की कुछ मात्रा (लगभग 5 से 10 मिली) सुबह और शाम मरीज को पिलाने से बुखार के बाद आई कमजोरी या सुस्ती में लाभ होता है।



12 May 2015

!!! भूकंप से जुड़े गाय के संकेत !!!


भूकंप से जुड़े गाय के संकेत
1. यदि गाय लगातार एक हफ्ते तक अकारण ही अपनी निर्धारित क्षमता से कम दूध देती है तो इसे भूकंप का संकेत समझना चाहिए। ऐसी स्थिति में कहीं भूकंप आने की संभावनाएं होती हैं।
2. यदि बैल रात को बिना वजह ही चिल्लाता है तो ये भी भूकंप आने का संकेत है। ऐसा होने पर निकट भविष्य में भूकंप आ सकता है।
3. यदि कोई गाय दुखी दिखाई देती है तो ये उस देश के राजा के लिए अशुभ संकेत है। आज के समय में राजा का अर्थ शासन-प्रशासन से समझना चाहिए।
4. यदि कोई गाय जमीन कुरेदती हुई दिखाई दे तो इससे क्षेत्र में रोग बढ़ने की संभावनाएं बढ़ती हैं। ये अशुभ संकेत है और इसका असर यह होता है कि जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
5. यदि कोई गाय डर कर जोर-जोर से चिल्लाती है तो इसे चोरी होने का संकेत समझना चाहिए।6. यदि कोई गाय बिना कारण जोर-जोर से चिल्लाती है तो ये किसी अनर्थ का संकेत है। गाय का चिल्लाना किसी बड़ी परेशानी की ओर इशारा करता है।

प्रकृति देती है भूकंप के संकेत

1. भूकंप आने से सात दिन पूर्व ही प्रकृति भी संदेश देती है। दिन की शुरुआत में तेज वायु, दोपहर में अग्रि यानी अधिक तापमान, शाम को वर्षा एवं रात्रि में जल से भूमि कंपित होती है।
2. उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, पुनर्वसु, मृगशिरा, अश्विनी ये सात नक्षत्र वायु से संबंधित हैं। यदि इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप के योग बनते हैं तो सात दिन पूर्व से चारों ओर धूल उड़ने लगती हैं। वृक्षों को तोड़ने वाली हवा चलती है। सूर्य मंद होता है। जनता में ज्वर एवं खांसी की पीड़ा रहती है।
3. पुष्य, कृत्तिका, विशाखा, भरणी, मघा, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वा फाल्गुनी, ये सात नक्षत्र अग्रि यानी तपन से संबंधित हैं। इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप आने के योग होते हैं तो सात दिन पूर्व आकाश लाल होता है। जंगलों में आग लगती है। ज्वर एवं पीलिया के रोगी बढ़ जाते हैं।
4. अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तराषाढ़ा, अनुराधा, ये सात नक्षत्र वर्षा से संबंधित हैं। इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप आने की संभावना हो तो सात दिन पूर्व से ही भारी वर्षा होती है। बिजली चमकती है।


5. रेवती, पूर्वाषाढ़ा, आद्रा, अश्लेषा, मूल, उत्तराभाद्रपद, शतभिषा, ये सात नक्षत्र जल से संबंधित है। यदि इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप आने के योग बनते हैं तो सात दिन पूर्व से समुद्र एवं नदी के तट पर रहने वाले लोगों को रोग होते हैं। भारी वर्षा होती है।
6. ये सभी संकेत भूकंप आने से पहले ही सूचित कर देते हैं। जहां पर पक्षी व्याकुल दिखाई दें एवं चींटियां और जमीन के अंदर रहने वाले अन्य जीव बाहर निकलने लगे, जानवर एक दिशा में लगातार देखते रहते हैं तो भूकंप आने के योग बनते हैं।

भूकंप से संबंधित ग्रह योग


1. जब-जब भी भारत या भारत के आसपास के देशों में भूकंप आया है, उस समय में मंगल और शनि की एक-दूसरे पर परस्पर दृष्टि रहती है। शनि-मंगल के कारण ही भूकंप के योग बनते हैं।
2. जिस दिन सूर्य, मंगल, शनि या गुरु का नक्षत्र रहता है एवं इस दिन यदि मंगल की शनि या शनि की मंगल पर दृष्टि हो, सूर्य की मंगल पर या गुरु एवं मंगल की सूर्य पर परस्पर दृष्टि हो तो भूकंप आ सकता है। 25 अप्रैल 2015 को ऐसे ही योग बने थे और आज 12 मई को भी ये योग बन रहे हैं।
3. भूकंप आने का एक बड़ा कारण सूर्य और चंद्र ग्रहण भी है। कुछ दिन पहले 20 मार्च एवं 4 अप्रैल 2015 को सूर्य और चंद्र ग्रहण हुआ था। जब भी इस प्रकार दो ग्रहण एक साथ होते है, भूकंप की स्थिति निर्मित होती है। ऐसा पूर्व में भी हो चुका है।
4. जब-जब भूकंप आए हैं, उनकी तारीखों पर बनने वाले योगों का विश्लेषण करने ये बात सामने आई है कि भूकंप के समय मंगल, शनि, सूर्य एवं गुरु के नक्षत्र के साथ इन ग्रहों की परस्पर एक-दूसरे पर दृष्टि रहती है या नवांश में इन ग्रहों की एक-दूसरे पर दृष्टि रहती है। पूर्णिमा एवं अमावस्या तिथि के आसपास की तिथियों पर भूकंप आने की संभावनाएं अधिक होती हैं। इसके साथ ही सूर्य और चंद्र ग्रहण भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।