06 October 2012

33 ""कोटि"" देवी-देवता..!


लोगों ... ख़ास कर मुस्लिमों को इस बात की बहुत बड़ी गलतफहमी है कि...... हिन्दू सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं...!

मुस्लिमों की ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें सुनकर तो ऐसा लगता है कि...... भगवान् ने मूर्खता का सारा ठेका ... थोक के भाव में मुस्लिमों को ही दे रखा है..... तभी वे, कभी भी अक्ल की बात करते ही नहीं हैं...!!

मुस्लिमों की देखा देखी... आज कल उनके सरपरस्त और वर्णसंकर प्रजाति के लोगों को

भी ...( जिसे आधुनिक बोलचाल की भाषा में ""सेक्यूलर"" भी कहा जाता जाता है)... भी ऐसा ही बोलते देखा जा सकता है ...!

लेकिन ऐसा है नहीं..... और, सच्चाई इसके बिलकुल ही विपरीत है...!

दरअसल.... हमारे वेदों में उल्लेख है .... 33 ""कोटि"" देवी-देवता..!

अब ""कोटि"" का अर्थ ""प्रकार"" भी होता है.. और ............ ""करोड़"" भी...!

तो... मूर्खों ने उसे हिंदी में .... करोड़ पढना शुरू कर दिया...... जबकि वेदों का तात्पर्य ..... 33 कोटि ... अर्थात ..... 33 प्रकार के देवी-देवताओं से है... (उच्च कोटि .. निम्न कोटि..... इत्यादि शब्द तो आपने सुना ही होगा.... जिसका अर्थ भी करोड़ ना होकर ..प्रकार होता है)

ये एक ऐसी भूल है.... जिसने वेदों में लिखे पूरे अर्थ को ही परिवर्तित कर दिया....!

इसे आप इस निम्नलिखित उदहारण से और अच्छी तरह समझ सकते हैं....!
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अगर कोई कहता है कि...... बच्चों को ""कमरे में बंद रखा"" गया है...!
और दूसरा इसी वाक्य की मात्रा को बदल कर बोले कि...... बच्चों को कमरे में "" बन्दर खा गया"" है..... !!
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कुछ ऐसी ही भूल ..... अनुवादकों से हुई ..... अथवा... दुश्मनों द्वारा जानबूझ कर दिया गया.... ताकि, इसे HIGHLIGHT किया जा सके..!

सिर्फ इतना ही नहीं.... हमारे धार्मिक ग्रंथों में साफ-साफ उल्लेख है कि.... ""निरंजनो निराकारो.. एको देवो महेश्वरः""............. अर्थात.... इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं... जो निरंजन...निराकार महादेव हैं...!

साथ ही... यहाँ एक बात ध्यान में रखने योग्य बात है कि..... हिन्दू सनातन धर्म ..... मानव की उत्पत्ति के साथ ही बना है..... और प्राकृतिक है...... इसीलिए ... हमारे धर्म में प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर जीना बताया गया है...... और, प्रकृति को भी भगवान की उपाधि दी गयी है..... ताकि लोग प्रकृति के साथ खिलवाड़ ना करें....!

जैसे कि....
@@ गंगा को देवी माना जाता है...... क्योंकि ... गंगाजल में सैकड़ों प्रकार की हिमालय की औषधियां घुली होती हैं..!

@@ गाय को माता कहा जाता है ... क्योंकि .... गाय का दूध अमृततुल्य ... और, उनका गोबर... एवं गौ मूत्र में विभिन्न प्रकार की ... औषधीय गुण पाए जाते हैं...!

@@ तुलसी के पौधे को भगवान इसीलिए माना जाता है कि.... तुलसी के पौधे के हर भाग में विभिन्न औषधीय गुण हैं...!

@@ इसी तरह ... वट और बरगद के वृक्ष घने होने के कारण ज्यादा ऑक्सीजन देते हैं.... और, थके हुए राहगीर को छाया भी प्रदान करते हैं...!

यही कारण है कि.... हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों में ..... प्रकृति पूजा को प्राथमिकता दी गयी है..... क्योंकि, प्रकृति से ही मनुष्य जाति है.... ना कि मनुष्य जाति से प्रकृति है..!

कालांतर में.... ईसाई और... इस्लाम सरीखे... बिना सर-पैर वाले सम्प्रदायों के आ जाने के कारण..... और, उनके द्वारा... प्रकृति का सम्मान नहीं करने के कारण ही....... आज हम ग्लोबल वार्मिंग .... और, ओजोन परत जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं..!

अतः.... प्रकृति को धर्म से जोड़ा जाना और उनकी पूजा करना सर्वथा उपर्युक्त है.... !

यही कारण है कि........ हमारे धर्म ग्रंथों में.... सूर्य, चन्द्र... वरुण.... वायु.. अग्नि को भी देवता माना गया है.... और, इसी प्रकार..... कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैं...!

इसीलिए, आपलोग बिलकुल भी भ्रम में ना रहें...... क्योंकि... ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं... जो निरंजन...निराकार महादेव हैं...!

बाकी के ईसा मसीह वगैरह.... को संत या महापुरुष कहा जा सकता है.... परन्तु भगवान् नहीं...!
और... इस्लाम के प्रतिपादक ... मुहम्मद तो.... अपने समय के दुर्दांत लुटेरे और नामचीन बलात्कारी थे ही....!

जय महाकाल...!!!

!!! ककडी (snake cucumber) के फायदे !!!


ककडी को संस्कृत भाषा में कर्कटी कहा जाता है . यह गर्मी की ऋतु में खूब पैदा होती है और शरीर की गर्मी और उससे उत्पन्न व्याधियों को समाप्त करती है . इसकी लताएँ होती हैं .प्राचीन काल से ही इसका प्रयोग हमारे देश में होता आया है . प्राचीन ग्रन्थों में इसका वर्णन शाक के रूप में किया गया है . इसकी सब्जी खाने से हमारे शरीर को अनेकों लाभ पहुंचते हैं . अगर किसी भी बीमारी में और चीजों का निषेध हो तब भी इसकी सब्जी को खाया जा सकता है . यह सुपाच्य होती है .

इसका छौंक लगाकर इसे पकाया और खाया जाना चाहिए . छौंक लगाने को संस्कृत में संस्कारित करना कहा जाता है ; अर्थात शाक के सभी दोषों को समाप्त करके उसके गुणों की अभिवृद्धि करना! छौंक ऐसा न लगाया जाए कि शाक के गुण ही समाप्त हो जाएँ .

इसे मधुर रस से युक्त मन गया है ; अर्थात यह पित्त का शमन करती है , पाचन की कमी को ठीक कर देती है , acidity की समस्या को समाप्त कर देती है . पाचन ठीक से न हो रहा हो तो ककडी की सब्जी अवश्य खानी चाहिए . इससे पेट की सभी समस्याएँ ठीक हो जाती हैं . 1 ग्राम ककडी के बीजों के पावडर में 4 ग्राम मुलेठी का पावडर मिलाकर 500 ग्राम पानी मिलाकर रात को मिट्टी के बर्तन में भिगो दें . सवेरे इसका पानी छानकर पीने से acidity , के अल्सर और infections ठीक हो जाते हैं .

यह मूत्रल है . यह किडनी की सफाई कर देती है . पेशाब की जलन और रुककर urine आने की समस्या ठीक हो जाती है . प्यास अधिक लगती हो ककडी का सेवन कच्चे रूप में नियमित तौर पर करना चाहिए . ककडी को कच्चा सवेरे या फिर मध्यान्ह में ही करना चाहिए . रात्रि को ककडी ,खीरे , टमाटर और मूली आदि का प्रयोग करने से शरीर में वायु की अभिवृद्धि होती है ; अफारा आ सकता है और कफ बढ़ता है .

ककडी को कच्चे रूप में खाना हो तो नमक बुरककर न रखें . हाँ , नमक से छुआ छुआकर खा सकते हैं . इससे स्वाद भी आ जाएगा , और ककडी के आवश्यक तत्व भी सुरक्षित रहेंगे . कच्ची शाक खाने के कुछ देर बाद भोजन खाएं . इससे शाक भी पूरा लाभ देता है ; अच्छे से पच जाता है और भोजन भी कम खाया जाता है , जिससे मुटापा भी नहीं बढ़ता . कच्चा पक्का भोजन साथ साथ लेने से पाचन की क्रिया में बाधा आती है और आवश्यक तत्व भली प्रकार सोखने में अवरुद्धता आती है . ककडी खाने के तुरंत बाद पानी न पीयें . दूध और ककडी विरुद्धाहार हैं .

अगर B.P. high होने की समस्या है ; तो ककडी रामबाण है . सवेरे खाली पेट कच्ची ककडी चबा चबाकर खाएं . नियमित रूप से ऐसा करने पर रक्तचाप ठीक होना प्रारम्भ हो जाता है . जलने पर कच्ची ककडी काटकर लगा दें . तुरंत आराम आ जायेगा . चेहरे पर झाइयाँ हों तो माजूफल , जायफल और ककडी घिसकर , पेस्ट बनाकर चेहरे पर उबटन की तरह लगायें . झाइयाँ ठीक हो जाएँगी .

इसके बीजीं की गिरी भी शीतल होती है . यह ठंडाई में डाली जाती है . इसके बीज भी मूत्रल होते है . ये शक्ति भी प्रदान करते हैं . इनके बीजों के पावडर को मिश्री में मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लेने से कमजोरी दूर होती है . प्रमेह और प्रदर ठीक होते हैं और धातुरोगों का निवारण होता है .

Pregnancy में अफारा होने पर ककडी की जड़ों को धोकर, कूटकर,, काढ़ा बनाकर , नमक मिलाकर लें . Pregnancy या delivery की pain से राहत पानी हो तो delivery के तीन महीने पहले से ही ; 3 ग्राम ककडी की जड़ + 1 कप दूध +1 कप पानी मिलाकर मंदी आंच पर पकाएं . जब आधा रह जाए तो पी लें . ऐसा करने से पीड़ा से तो राहत मिलेगी ही , शिशु भी स्वस्थ होगा .

!!! जौ (barley) के फायदे !!!


जौ को यव और धान्यराज भी कहा जाता है . यह सभी अनाजों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह एकमात्र बुद्धि वर्धक अनाज है . किसी भी रोग के लिए यह निरापद है इसका सेवन बिना झिझके किसी भी रोग के लिए निरापद रूप से किया जा सकता है . यह बहुत कम परिश्रम से ही बंजर या पथरीली भूमि पर भी उग जाता है . यह वास्तव में अनाज नहीं बल्कि औषधि है .

भुने हुए जौ के आटे से बना हुआ सत्तू शीतल और पौष्टिक पेय होता है . मीठा और ठंडा सत्तू गर्मी के दिनों में पीने से पित्त शांत होता है और शीतलता मिलती है . 


मिश्री मिलाकर पीने से अधिक शीतलता मिलती है . जौ खांसी के लिए अचूक दवाई है . जौ को जलाकर इसकी राख 1- 1 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सवेरे शाम चाटने से खांसी बिलकुल ठीक हो जाती है . इसके पौधे की राख को भी खांसी के लिए 1-1 ग्राम की मात्रा में लिया जा सकता है . श्वास रोगों में भी यह राख शहद के साथ ली जा सकती है .

अगर इस राख को 1-1 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लिया जाए तो पेशाब खुलकर आता है और किडनी की समस्या ठीक हो जाती है . शुगर की बीमारी में यह अनाज लिया जाए तो दवा का काम करता है . इस बीमारी के उपचार के लिए 10 ग्राम जौ +5 ग्राम तिल +3 ग्राम मेथी दाना ; इन तीनो को दरदरा कूटकर मिट्टी के बर्तन में रात को भिगो दें . सवेरे सवेरे इस पानी को छानकर पी लें . 

इससे गर्मी भी शांत होगी और पेशाब की जलन भी खत्म हो जाएगी . शुगर की बीमारी में जौ चने और गेहूँ की मिस्सी रोटी खानी चाहिए .इससे सभी खनिज , विटामिन, कैल्शियम और लौह तत्व भी भरपूर मात्रा में मिल जाते हैं। इस रोटी को खाने से कमजोरी भी दूर होती है

इसका दलिया रात को मिटटी के बर्तन में पानी में भिगो दें . सवेरे इसका पानी निथारकर पीने से शीतलता व शक्ति मिलती है . बचे हुए दलिए को ऐसे ही पका लें या फिर खीर बना लें . इससे ताकत बढती है।


जौ रक्तशोधक होता है . इससे त्वचा भी सुन्दर हो जाती है . जौ के आटे को खाने से ही नहीं वरन लगाने से भी चेहरे की सुन्दरता निखरती है . बारीक जौ के आटे में खीरे और टमाटर का रस मिलाकर चेहरे पर लेप करें . कुछ देर ऐसे ही रहने दें . बाद में धो लें . ऐसा कुछ दिन करने से चेहरा खिल उठेगा .

यवक्षार या जौ का क्षार हल्के मटमैले रंग का होता है . यह बहुत सी बीमारियों के लिए रामबाण है . इसे बनाना बहुत आसान है . आधे पके हुए जौ के पौधों को उखाडकर उनके टुकड़े कर लें . इसको जलाकर राख बना लें राख में पानी मिलाकर अच्छी तरह से हिलाएं . 10-15 मिनट के लिए रख दें . फिर से हिलाएं और 10-15 मिनट तक रख दें . ऐसा चार पांच बार करें . फिर ऊपर के तिनके निकाल कर पानी को निथारकर फेंक दें . नीचे के बचे हुए सफ़ेद रंग के गाढे द्रव को धीमी आंच पर धीरे धीरे पकाएं . 

जब यह काफी गाढ़ा हो जाए तो इसे सुखा लें . यही मटमैला सा पाऊडर यवक्षार कहलाता है . इसे जौ के बीजों को जलाकर भी प्राप्त कर सकते हैं . इसकी 1-2 ग्राम की मात्रा शहद के साथ लेने से खांसी और अस्थमा जैसी बीमारियों से छुटकारा मिलता है . पानी के साथ लेने पर पथरी और किडनी की समस्याओं से राहत मिलती है . भूख कम लगती हो तो आधा ग्राम 
यवक्षार रोटी में रखकर खाएं . यह कई तरह की दवाओं में प्रयोग में लाया जाता है .

इस अनाज को पवित्र माना गया है . हवन में में यव (जौ ) और तिल डाले जाते हैं . इससे वातावरण के बैक्टीरिया आदि समाप्त हो जाते हैं . इसे खाने से शरीर के विजातीय तत्व खत्म हो जाते हैं या बाहर निकल जाते हैं . आजकल के प्रदूषित वातावरण में प्रदूषित खाद्यान्नों का प्रभाव कम करना हो तो जौ का सेवन अवश्य ही करना चाहिए . इसके निरंतर सेवन से कई प्रकार की अंग्रेजी दवाइयां लेने से भी बचा जा सकता है .

द्वारका शारदा पीठ



यह भारत की सात पवित्र पुरियों में से एक हैं,

जिनकी सूची निम्नांकित है:

अयोध्या मथुरा माया काशी काशी अवन्तिका।
पुरी द्वारवती जैव सप्तैता मोक्षदायिका:॥
गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित चार धामों में से एक धाम और सात पवित्र पुरियों में से एक पुरी है। वस्तुत: द्वारका दो हैं-

गोमती द्वारका,

बेट द्वारका, गोमती द्वारका धाम है, बेट द्वारका पुरी है। बेट द्वारका के लिए समुद्र मार्ग से जाना पड़ता है। मान्यता है कि द्वारका को श्रीकृष्ण ने बसाया था और मथुरा से यदुवंशियों को लाकर इस संपन्न नगर को उनकी राजधानी बनाया था, किंतु उस वैभव के कोई चिह्न अब नहीं दिखाई देते। कहते हैं, यहाँ जो राज्य स्थापित किया गया उसका राज्यकाल मुख्य भूमि में स्थित द्वारका अर्थात गोमती द्वारका से चलता था। बेट द्वारका रहने का स्थान था। (यहाँ समुद्र में ज्वार के समय एक तालाब पानी से भर जाता है। उसे गोमती कहते हैं। इसी कारण द्वारका गोमती द्वारका भी कहलाती है)।

कुशस्थली

द्वारका का प्राचीन नाम है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था। बाद में त्रिविकम भगवान ने कुश नामक दानव का वध भी यहीं किया था। त्रिविक्रम का मंदिर द्वारका में रणछोड़जी के मंदिर के निकट है। ऐसा जान पड़ता है कि महाराज रैवतक (बलराम की पत्नी रेवती के पिता) ने प्रथम बार, समुद्र में से कुछ भूमि बाहर निकाल कर यह नगरी बसाई होगी।

मान्यता है कि द्वारका को श्रीकृष्ण ने बसाया था और मथुरा से यदुवंशियों को लाकर इस संपन्न नगर को उनकी राजधानी बनाया था, किंतु उस वैभव के कोई चिह्न अब नहीं दिखाई देते।

हरिवंश पुराण के अनुसार कुशस्थली उस प्रदेश का नाम था जहां यादवों ने द्वारका बसाई थी।

विष्णु पुराण के अनुसार,अर्थात् आनर्त के रेवत नामक पुत्र हुआ जिसने कुशस्थली नामक पुरी में रह कर आनर्त पर राज्य किया। विष्णु पुराण से सूचित होता है कि प्राचीन कुशावती के स्थान पर ही श्रीकृष्ण ने द्वारका बसाई थी-'कुशस्थली या तव भूप रम्या पुरी पुराभूदमरावतीव, सा द्वारका संप्रति तत्र चास्ते स केशवांशो बलदेवनामा'।

कुशावती का अन्य नाम कुशावर्त भी है। एक प्राचीन किंवदंती में द्वारका का संबंध 'पुण्यजनों' से बताया गया है। ये 'पुण्यजन' वैदिक 'पणिक' या 'पणि' हो सकते हैं। अनेक विद्वानों का मत है कि पणिक या पणि प्राचीन ग्रीस के फिनीशियनों का ही भारतीय नाम था। ये लोग अपने को कुश की संतान मानते थे । इस प्रकार कुशस्थली या कुशावर्त नाम बहुत प्राचीन सिद्ध होता है। पुराणों के वंशवृत्त में शार्यातों के मूल पुरुष शर्याति की राजधानी भी कुशस्थली बताई गई है।

महाभारत, के अनुसार कुशस्थली रैवतक पर्वत से घिरी हुई थी-'कुशस्थली पुरी रम्या रैवतेनोपशोभितम्'। जरासंध के आक्रमण से बचने के लिए श्रीकृष्ण मथुरा से कुशस्थली आ गए थे और यहीं उन्होंने नई नगरी द्वारका बसाई थी। पुरी की रक्षा के लिए उन्होंने अभेद्य दुर्ग की रचना की थी जहां रह कर स्त्रियां भी युद्ध कर सकती थीं-

'तथैव दुर्गसंस्कारं देवैरपि दुरासदम्, स्त्रियोऽपियस्यां युध्येयु: किमु वृष्णिमहारथा:'।
भगवान कृष्ण के जीवन से सम्बन्ध होने के कारण इसका विशेष महत्व है। महाभारत के वर्णनानुसार कृष्ण का जन्म मथुरा में कंस तथा दूसरे दैत्यों के वध के लिए हुआ। इस कार्य को पूरा करने के पश्चात वे द्वारका (काठियावाड़) चले गये। आज भी गुजरात में स्मार्त ढंग की कृष्णभक्ति प्रचलित है। यहाँ के दो प्रसिद्ध मन्दिर 'रणछोड़राय' के हैं, अर्थात् उस व्यक्ति से सम्बन्धित हैं जिसने ऋण (कर्ज) छुड़ा दिया। इसमें जरासंध से भय से कृष्ण द्वारा मथुरा छोड़कर द्वारका भाग जाने का अर्थ भी निहित है। किन्तु वास्तव में 'बोढाणा' भक्त की प्रीति से कृष्ण का द्वारका से डाकौर चुपके से चला आना और पंडों के प्रति भक्त का ऋण चुकाना- यह भाव संनिहित है। ये दोनों मन्दिर डाकौर (अहमदाबाद के समीप) तथा द्वारका में हैं। दोनों में वैदिक नियमानुसार ही यजनादि किये जाते हैं।

तीर्थयात्रा में यहाँ आकर गोपीचन्दन लगाना और चक्राक्डित होना विशेष महत्त्व का समझा जाता है। यह आगे चलकर कृष्ण के नेतृत्व में यादवों की राजधानी हो गयी थी। यह चारों धामों में एक धाम भी है। कृष्ण के अन्तर्धान होने के पश्चात प्राचीन द्वारकापुरी समुद्र में डूब गयी। केवल भगवान का मन्दिर समुद्र ने नहीं डुबाया। यह नगरी सौराष्ट्र (काठियावाड़) में पश्चिमी समुद्रतट पर स्थित है। मोक्ष तीर्थ हिन्दुओं के चार धामों में से एक गुजरात की द्वारिकापुरी मोक्ष तीर्थ के रूप में जानी जाती है । पूर्णावतार श्रीकृष्ण के आदेश पर विश्वकर्मा ने इस नगरी का निर्माण किया था । श्रीकृष्ण ने मथुरा से सब यादवों को लाकर द्वारका में बसाया था। महाभारत में द्वारका का विस्तृत वर्णन है जिसका कुछ अंश इस प्रकार है-द्वारका के मुख्य द्वार का नाम वर्धमान था । नगरी के सब ओर सुन्दर उद्यानों में रमणीय वृक्ष शोभायमान थे, 

जिनमें नाना प्रकार के फलफूल लगे थे। यहाँ के विशाल भवन सूर्य और चंद्रमा के समान प्रकाशवान् तथा मेरू के समान उच्च थे। नगरी के चतुर्दिक चौड़ी खाइयां थीं जो गंगा और सिंधु के समान जान पड़ती थीं और जिनके जल में कमल के पुष्प खिले थे तथा हंस आदि पक्षी क्रीड़ा करते थे । सूर्य के समान प्रकाशित होने वाला एक परकोटा नगरी को सुशोभित करता था जिससे वह श्वेत मेघों से घिरे हुए आकाश के समान दिखाई देती थी । रमणीय द्वारकापुरी की पूर्वदिशा में महाकाय रैवतक नामक पर्वत (वर्तमान गिरनार) उसके आभूषण के समान अपने शिखरों सहित सुशोभित होता था । नगरी के दक्षिण में लतावेष्ट, पश्चिम में सुकक्ष और उत्तर में वेष्णुमंत पर्वत स्थित थे और इन पर्वतों के चतुर्दिक् अनेक उद्यान थे। महानगरी द्वारका के पचास प्रवेश द्वार थे । 


शायद इन्हीं बहुसंख्यक द्वारों के कारण पुरी का नाम द्वारका या द्वारवती था। पुरी चारों ओर गंभीर सागर से घिरी हुई थी। सुन्दर प्रासादों से भरी हुई द्वारका श्वेत अटारियों से सुशोभित थी। तीक्ष्ण यन्त्र, शतघ्नियां , अनेक यन्त्रजाल और लौहचक्र द्वारका की रक्षा करते थे। द्वारका की लम्बाई बारह योजना तथा चौड़ाई आठ योजन थी तथा उसका उपनिवेश (उपनगर) परिमाण में इसका द्विगुण था । द्वारका के आठ राजमार्ग और सोलह चौराहे थे जिन्हें शुक्राचार्य की नीति के अनुसार बनाया गया था ('अष्टमार्गां महाकक्ष्यां महाषोडशचत्वराम् एव मार्गपरिक्षिप्तां साक्षादुशनसाकृताम्'महाभारत सभा पर्व 38) द्वारका के भवन मणि, स्वर्ण, वैदूर्य तथा संगमरमर आदि से निर्मित थे। श्रीकृष्ण का राजप्रासाद चार योजन लंबा-चौड़ा था, वह प्रासादों तथा क्रीड़ापर्वतों से संपन्न था। उसे साक्षात् विश्वकर्मा ने बनाया था । श्रीकृष्ण के स्वर्गारोहण के पश्चात समग्र द्वारका, श्रीकृष्ण का भवन छोड़कर समुद्रसात हो गयी थी जैसा कि विष्णु पुराण के इस उल्लेख से सिद्ध होता है-

'प्लावयामास तां शून्यां द्वारकां च महोदधि: वासुदेवगृहं त्वेकं न प्लावयति सागर:,।

रणछोड़ जी मंदिर

कहा जाता है कृष्ण के भवन के स्थान पर ही रणछोड़ जी का मूल मंदिर है। यह परकोटे के अंदर घिरा हुआ है और सात-मंज़िला है। इसके उच्चशिखर पर संभवत: संसार की सबसे विशाल ध्वजा लहराती है। यह ध्वजा पूरे एक थान कपड़े से बनती है। द्वारकापुरी महाभारत के समय तक तीर्थों में परिगणित नहीं थी।

जैन सूत्र अंतकृतदशांग में द्वारवती के 12 योजन लंबे, 9 योजन चौड़े विस्तार का उल्लेख है तथा इसे कुबेर द्वारा निर्मित बताया गया है और इसके वैभव और सौंदर्य के कारण इसकी तुलना अलका से की गई है। रैवतक पर्वत को नगर के उत्तरपूर्व में स्थित बताया गया है। पर्वत के शिखर पर नंदन-बन का उल्लेख है।

श्रीमद् भागवत में भी द्वारका का महाभारत से मिलता जुलता वर्णन है। इसमें भी द्वारका को 12 योजन के परिमाण का कहा गया है तथा इसे यंत्रों द्वारा सुरक्षित तथा उद्यानों, विस्तीर्ण मार्गों एवं ऊंची अट्टालिकाओं से विभूषित बताया गया है,।

माघ के शिशुपाल वध के तृतीय सर्ग में भी द्वारका का रमणीक वर्णन है। 
वर्तमान बेट द्वारका श्रीकृष्ण की विहार-स्थली यही कही जाती है।
यहाँ का द्वारिकाधीश मंदिर, रणछोड़ जी मंदिर व त्रैलोक्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है ।

आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक शारदा पीठ यहीं है ।
द्वारिका हमारे देश के पश्चिम में समुन्द्र के किनारे पर बसी है । आज से हज़ारों साल पहले भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था । कृष्ण मथुरा में पैदा हुए, गोकुल में पले, पर राज उन्होंने द्वारका में ही किया । यहीं बैठकर उन्होंने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली । पांडवों को सहारा दिया । धर्म की जीत कराई और, शिशुपाल और दुर्योधन जैसे अधर्मी राजाओं को मिटाया । द्वारका उस जमाने में राजधानी बन गई थीं । बड़े-बड़े राजा यहाँ आते थे और बहुत-से मामले में भगवान कृष्ण की सलाह लेते थे ।

द्वारिकाधीश मंदिर

द्वारिकाधीश मन्दिर, द्वारका, गुजरात

द्वारिकाधीश मंदिर कांकरोली में राजसमंद झील के किनारे पाल पर स्थित है । मेवाड के चार धाम में से एक द्वारिकाधीश मंदिर भी आता है, द्वारिकाधीश काफ़ी समय पूर्व संवत 1726-27 में यहाँ ब्रज से कांकरोली पधारे थे । मंदिर सात मंज़िला है। भीतर चांदी के सिंहासन पर काले पत्थर की श्रीकृष्ण की चतुर्भुजी मूर्ति है। कहते हैं, यह मूल मूर्ति नहीं है। मूल मूर्ति डाकोर में है। द्वारिकाधीश मंदिर से लगभग 2 किमी दूर एकांत में रुक्मिणी का मंदिर है। कहते हैं, दुर्वासा के शाप के कारण उन्हें एकांत में रहना पड़ा। कहा जाता है कि उस समय भारत में बाहर से आए आक्रमणकारियों का सर्वत्र भय व्याप्त था, क्योंकि वे आक्रमणकारी न सिर्फ मंदिरों कि अतुल धन संपदा को लूट लेते थे बल्कि उन भव्य मंदिरों व मुर्तियों को भी तोड कर नष्ट कर देते थे । तब मेवाड यहाँ के पराक्रमी व निर्भीक राजाओं के लिये प्रसिद्ध था । 



सर्वप्रथम प्रभु द्वारिकाधीश को आसोटिया के समीप देवल मंगरी पर एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया, तत्पश्चात उन्हें कांकरोली के ईस भव्य मंदिर में बड़े उत्साह पूर्वक लाया गया । आज भी द्वारका की महिमा है । यह चार धामों में एक है । सात पुरियों में एक पुरी है । इसकी सुन्दरता बखानी नहीं जाती । समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरें उठती है और इसके किनारों को इस तरह धोती है, जैसे इसके पैर पखार रही हों । पहले तो मथुरा ही कृष्ण की राजधानी थी । पर मथुरा उन्होंने छोड़ दी और द्वारका बसाई । द्वारका एक छोटा-सा-कस्बा है । कस्बे के एक हिस्से के चारों ओर चहारदीवारी खिंची है इसके भीतर ही सारे बड़े-बड़े मन्दिर है । द्वारका के दक्षिण में एक लम्बा ताल है । इसे गोमती तालाब कहते है । द्वारका में द्वारकाधीश मंदिर के निकट ही आदि शंकराचार्य द्वारा देश में स्थापित चार मठों में से एक मठ भी है।

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द्वारिका-धाम की यात्रा...
http://www.haaram.com/

भगवान श्री कृष्ण से सम्बंधित तमाम धार्मिक स्थल देश-विदेश में प्रसिद्द हैं. गुजरात में द्वारिका का नाम जग-जाहिर है. कुछ प्रमुख धार्मिक स्थलों की सैर करते हैं-

द्वारका

गुजरात के पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित द्वारका हिंदुओं के चार सबसे पवित्रतम तीर्थस्थलों (चार धाम) में से एक है और भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ी हुई अधिकतर विंâवदंतियों में इसका जिक्र होता है। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण वंâस का वध करने के बाद मथुरा छोड़कर पूरे यादव वंश के साथ सौराष्ट्र समुद्र तट पर पहुंचे और स्वर्णद्वारका नामक नगर का निर्माण किया, फिर यहीं से उन्होंने अपने साम्राज्य पर शासन किया। ऐसी कथा है कि भगवान श्री कृष्ण ने स्वर्गारोहण के समय अपने परिजनों और भक्तों से स्वर्णद्वारका छोड़ने और उसके एक दिन डूबने की बात कही थी । आज तक यह समुद्र में डूबी हुई है। खुदाई से इसकी पुष्टि हुई है।

द्वारकाधीश मंदिर

मान्यता है कि मूल द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पौत्र वङ्कानाभ ने उनके (हरि-गृह) आवास के ऊपर करवाया था। इसे जगत मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। यह मंदिर २५०० साल पुराना है। यह ऊंची मीनार और हाल से युक्त है। यहां का ७२ स्तंभों पर निर्मित ७८.३ मीटर ऊंचा द्वारकाधीश मंदिर (जगत मंदिर) पांच मंजिलों वाला भव्य मंदिर, गोमती और अरब सागर के संगम पर स्थित है। मंदिर के गुंबद से सूर्य और चंद्रमा से सुसज्जित ८४ मीटर लंबा बहुरंगी ध्वज लहराता रहता है।

मंदिर में दो प्रवेश द्वार हैं, उत्तर में स्थित मुख्य द्वार 'मोक्ष द्वार' कहलाता है। दक्षिण का प्रवेश द्वारा 'स्वर्ग द्वार' कहलाता है। इसके बाहर ५६ डग भर कर गोमती नदी तक पहुंचते हैं।

रुक्मिणी देवी मंदिर :

द्वारका के इतिहास में विभिन्न अवधियों का प्रतिनिधित्व करते अनेकानेक मंदिर हैं, लेकिन तीर्थयात्रियों के बीच आकर्षण का एक और मुख्य वेंâद्र भगवान कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी का मंदिर है। रुक्मिणी को धन और सौंदर्य की देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। यह छोटा-सा मंदिर नगर से १.५ किमी उत्तर में स्थित है। मंदिर की दीवारें खूबसूरत पेंटिंग्स से सजी हुई हैं। इनमें रुक्मिणी को श्रीकृष्ण के साथ दिखाया गया है।

गोमती घाट मंदिर :

चक्रघाट पर गोमती नदी अरब सागर में मिलती है। यहीं पर गोमती घाट मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि यहां पर स्नान करने से मुक्ति मिलती है। द्वारकाधीश मंदिर के पिछले प्रवेश द्वार से गोमती नदी दिखायी देती है। गोमती और समुद्र के संगम पर ही भव्य समुद्र नारायण मंदिर (संगम नारायण मंदिर) भी है।

इन मंदिरों के अलावा नागेश्वर महादेव मंदिर, गोपी तालाब भी तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का वेंâद्र है। यह द्वारका से २० किमी उत्तर में स्थित है। नागेश्वर महादेव मंदिर शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

भाल्का तीर्थ :

कहा जाता है कि इसी स्थान पर हिरण चर्म को धारण कर सो रहे कृष्ण को हिरण समझकर मारा गया तीर जाकर लगा और इस तरह उनकी इहलीला समाप्त हुई थी। कृष्ण का त्रिवेणी घाट पर दाह-संस्कार किया गया था।
इसी के पास सोम (चंद्र) द्वारा स्थापित सोमनाथ मंदिर है। कहा जाता है कि मूल मंदिर सोने का था। इसके गिरने के बाद रावण ने चांदी के मंदिर का निर्माण किया। इसके ढहने के बाद श्रीकृष्ण ने लकड़ी के मंदिर का निर्माण किया। बाद में भीमदेव ने पाषाण मंदिर का निर्माण किया। सोमनाथ में एक सूर्य मंदिर भी है।

मेला और त्यौहार :

अगस्त और सितंबर के महीने में द्वारका में जन्माष्टमी धूमधाम से मनायी जाती है।

वैसे पहुंचें : हवाई, रेल और सड़क तीनों मार्गों से द्वारका पहुंचा जा सकता है। द्वारका से सबसे करीब का एअरपोर्ट है, १३५ किमी दूर स्थित जामनगर एअरपोर्ट। द्वारका में रेलवे स्टेशन है। सरकारी और निजी बस सेवाओं के अलावा टैक्सी से भी द्वारका पहुंचा जा सकता है।

*कालीमिर्च* के कुछ रामबाण प्रयोग।


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किचन में जब चटपटा खाना बनाने की बात हो या सलाद को जायकेदार बनाना हो तो कालीमिर्च का प्रयोग किया जाता है। पिसी काली मिर्च सलाद, कटे फल या दाल शाक पर बुरक कर उपयोग में ली जाती है।

1- त्वचा पर कहीं भी फुंसी उठने पर, काली मिर्च पानी के साथ पत्थर पर घिस कर अनामिका अंगुली से सिर्फ फुंसी पर लगाने से फुंसी बैठ जाती है।

2- काली मिर्च को सुई से छेद कर दीये की लौ से जलाएं। जब धुआं उठे तो इस धुएं को नाक से अंदर खीच लें। इस प्रयोग से सिर दर्द ठीक हो जाता है। हिचकी चलना भी बंद हो जाती है।

3- काली मिर्च 20 ग्राम, जीरा 10 ग्राम और शक्कर या मिश्री 15 ग्राम कूट पीस कर मिला लें। इसे सुबह शाम पानी के साथ फांक लें। बावासीर रोग में लाभ होता है।

4- शहद में पिसी काली मिर्च मिलाकर दिन में तीन बार चाटने से खांसी बंद हो जाती है

5- आधा चम्मच पिसी काली मिर्च थोड़े से घी के साथ मिला कर रोजाना सुबह-शाम नियमित खाने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।

6- काली मिर्च 20 ग्राम, सोंठ पीपल, जीरा व सेंधा नमक सब 10-10 ग्राम मात्रा में पीस कर मिला लें। भोजन के बाद आधा चम्मच चूर्ण थोड़े से जल के साथ फांकने से मंदाग्रि दूर हो जाती है।

7- चार-पांच दाने कालीमिर्च के साथ 15 दाने किशमिश चबाने से खांसी में लाभ होता है।

8- यदि आपका ब्लड प्रेशर लो रहता है, तो दिन में दो-तीन बार पांच दाने कालीमिर्च के साथ 21 दाने किशमिश का सेवन करे।

9- बुखार में तुलसी, कालीमिर्च तथा गिलोय का काढ़ा लाभ करता है।

10- काली मिर्च बॉडी का फैट घटाने में मदद करती। वजन घटाने के अन्य तरीके अपनाने के साथ ही आप खाने में काली मिर्च की अमाउंट बढ़ा दें।

!!! जागो हिन्दुओ जागो !!!




अगर आप हिन्दू हैं तो ये लेख अवश्य पढ़ें
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शुरुआत की लाइनों से ही ये लेख आपको इसे पूरा पढने पर बाध्य कर देगा जागो हिन्दुओ जागो

भारत मे मुस्लिम तकरीबन ३५ प्रतिशत की वृद्धिदर से बढ़ रहे है | जब की हिन्दुओ की वृधि दर लगभग १९ प्रतिशत ही हैं | इस वृधि दर से भारत का इस्लामीकरण तय हैं | भारत मे लोकतंत्र हैं और यही प्रणाली इसे इस्लामिक देश यानि दारुल इस्लाम बनाएगी २०३० नहीं तो २०५० वरना २०६० तो निश्चित ही | पर अब भी समय हैं कुछ उपाय हैं जिनका हिंदू समुदाय पालन करे तो देश को बचा पायेगा |

१. किसी भी कौम को अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए २.१ की निषेचन दर चाहिए | यानि हर गैर मुस्लिम दंपत्ति को ३ बच्चे पैदा करने होंगे अगर मुसलमानों के बराबर आबादी संतुलन रखना हैं |

२. भारत मे उन हिन्दुओ को भी जिन्हें बहुत आर्थिक समस्या हैं न्यूनतम ३ बच्चे तो परिवार मे करने ही चाहिए | वर्ना सक्षम लोग ४ बच्चे प्रति परिवार करे | वेद मे १० बच्चो तक आज्ञा हैं |

४. भाइयो, ये लोकतंत्र हैं यहाँ जिसकी लाठी उसकी भैस का सिद्धांत चलता हैं डॉक्टर इंजिनियर नहीं पंचर जोडने वालो की सरकार बनेगी | लोकतंत्र मे बहु-संस्कृति तो पनपती है पर इस्लामिक साम्राज्य मे तो लोकतंत्र भी नहीं चलपता | सिर्फ मुल्ला मौलवियो की हुकूमत चलती हैं | दूर क्यों जाए पाकिस्तान का हाल देख लीजिए |

५. जो बच्चे हो उन्हें वैदिक धर्मं (हिंदू धर्मं) की मूलभूत जानकारी तो दे ही ताकि वे धर्मं निष्ठा बने | सिर्फ आबादी ही काफी नहीं, अगर धर्मं के बारे मे जानकारी ना होगी तो जैसे की आजकल के कथित धर्मनिरपेक्ष लोग हैं यानि हिंदू विरोधी वैसे ही बन जायेंगे |

६.> ४ वेद, ६ शास्त्र, ११ उपनिषद , वाल्मीकि रामायण, संशोधित महाभारत आदि ग्रन्थ उपलब्ध ना हो तो भी एक सत्यार्थ प्रकाश तो रखिये ही | उस पुस्तक को पढने के बाद हिंदू धर्मं मे निष्ठा अपने आप आ जाती हैं |

७. संगठित रहिये, क्योकि जंगल मे वही जीव बच पाते हैं जो संगठित रहते है
| अपने परिवार, मोहल्ला , रिश्तेदार, जाती और धर्मं के नाम पर संगठित रहिये | कमजोरी को ताकत बनाने का यही तरीका हैं धर्मं के नाम पर एक
होइए और विघटन को वर्गीकरण के तौर पर लीजिए |

८. जातिवाद के विचार रखते हैं तो भी धर्मं को वरीयता दे | जब धर्मं ही नहीं रहेगा तो जाती कहा बचेगी | तो कोई भी जाती हिंदू विरोधी याँ मुसलमानों की तलवे चाटने वाला नेता ना रखे | ये धर्मं से भी द्रोह है और जाती से भी क्यों की धर्मं से जाती है जाती से धर्मं नहीं |

९. समाज मे धर्मं रक्षा के प्रति जागरूकता फैलाये | भारत का इस्लामीकरण हो रहा हैं और हमे उसे रोकना है ये बात अधिक से अधिक लोगो तक पहुचाये |

१०. भारत का इस्लामीकरण रोकने का एक स्थायी उपाय हैं के भारत को आर्य राष्ट्र/हिंदू राष्ट्र /वैदिक राष्ट्र (य जो कहना चाहे ) बनाये | भारत का संविधान वेदों के आधार पर रखे |

११. नए हिन्दुवादी दल याँ जब तक कोई खुल के सत्य बोलने वाला दल नहीं आता तब तक हर दल के हिन्दुयीकरण की निति पर चले | जब कोई वोट मांगने आये चाहे वो किसी भी दल का हो तो उस से पूछिए की क्या वो हिंदू(आर्य) राष्ट्र का समर्थन करता हैं? उसके हां कहने पर ही उसको वोट दीजिए |


१२. हिंदू संगठनो को आर्थिक रूप से मजबूत करिये क्यों की यही वो राष्ट्रवादी संगठन है जो आपातकल मे अपने लोगो की रक्षा करते हैं |

१३. अरबराष्ट्रवादियो का आर्थिक बहिष्कार करिये | जो रहे यहाँ, खाए यहाँ का, पर माने अरब की संस्कृति और भारत को अरब बनाने के लिए आबादी बढ़ाये उनका अर्थ बहिष्कार ही उत्तम उपाय हैं |

१५. जो राष्ट्रवाद और भारतीय संस्कृति और भारतीय धर्मं पर पर चलना चाहते हैं याँ चलने को तैयार हो जाते हैं पूरा उनको सहयोग दीजिए |

१६. मैं ये नहीं कह रहा के आप मुस्लिमो से आर्थिक लेन-देन बंद कर दे | आर्थिक लाभ लीजिए पर आर्थिक लाभ दीजिए मत |

१७. चमड़े का प्रयोग ना करे | ना केवल इस से आप जीव हत्या और पर्यावरण बचायेंगे | अपितु बड़े मुस्लिम कारोबारियों को जिनकी आस्था भारतीय संविधान से ज्यादा शरिया मे होती हैं आर्थिक नुक्सान पहुचायेंगे | ये अर्थीक बहिष्कार का ही अंग हुआ |

१८. मांसाहार का त्याग करे, पुनः उन्ही कारणों से | क्यों की मांस उद्योघ मे हिंदू न्यून हैं | हिन्दुओ मे यादव भाई अगर गाय का दूध बेचते हैं तो मुस्लिम उसी गाये का मांस | इस लिए मांस हर त्यागिये देश धर्मं और समाज के लिए |

१९. इधन और ऊर्जा बचाए | आप के द्वारा इस्तेमाल किए गए पेट्रोल से तेल उत्पादक इस्लामिक देश डॉलर कमाते हैं और वही रकम भारत मे जेहाद और आतंकवाद के लिए खर्च की जाती है | इसलिए पेट्रोल बचाए बिजली बचाए सौर्य उर्जा प्रयोग करे व अन्य प्राकृतिक संसाधन प्रयोग करे |
२१. मुसलमानों से मित्रता रखे | उनसे संपर्क ना तोड़े और अच्छे से बात करे | जैसे ये हमसे भाई जान कर के करते हैं | इनसे स्वस्थ चर्चा इस्लाम पर रखे और सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने को प्रेरित करते रहे

२२. इनको वापस वैदिक धर्मं मे आने को कहे | शुद्धि के लाभ बताये |

२५. अगर कोई हिंदू लड़की किसी मुस्लिम लड़के से शादी करने जा रही है क्या कैसे भी संपर्क मे है तो तुरंत उसके घर वालो को सूचित करे | किसी भी तरह हिंदू लड़की को मुस्लिम लड़के के प्यार के जाल से बचाए |

२६. हिंदू विरोधी मीडिया का बहिष्कार करे | हिंदू विरोधी अखबार को मत ख़रीदे जैसे टाइम्स ऑफ इंडिया , हिन्दुस्थान टाइम्स , दैनिक हिन्दुस्थान इत्यादि | हिंदू विरोधी चैनल जैसे अन. डी. टी .वी इत्यादि मत देखिये | दूसरों को भी यही करने को कहिये |

२७. अपने लोगो को काम दीजिए | जो काम विशेष कर मुस्लिम करते हैं
वो हिन्दुओ को सिखलाइए और फिर उन्हें काम पर रखिये |

२८. हिंदू राष्ट्र का समर्थन करने वालो का यथा संभव सहयोग करे | यानि तन-मन-धन जैसे हो सके |

२९. भारत की संस्कृति धर्मं को बचाना हैतो वैदिक राष्ट्र बनाना हैं | बस
यही हमारा नारा हैं |

३०. द्रण प्रतिज्ञ हो जाइये की किसी भी हाल मे हमे भारत को दारुल इस्लाम (इस्लामिक देश) नहीं बनने देना हैं
|
उपरोक्त उपायों पर अमल करने का प्रयास करे | 

वर्णव्यवस्था और जातिप्रथा ::



बड़े ही दुःख की बात है कि अधिकांश हिन्दू वर्णव्यवस्था और जातिप्रथा के बीच में कोई अंतर नहीं समझते . और यही अज्ञानता हिन्दू समाज में आपसी भेदभाव , और ऊंच नीच का विचार पैदा करने का कारण बना हुआ है . इसी विचार के कारण हिन्दू एकजुट नहीं हो पा रहे है .वास्तव में वर्णव्यवस्था किसी के जन्म के आधार पर नहीं , बल्कि उसके कर्मों के आधार पर तय की जाती है .कुछ लोग जातिप्रथा का आधार ऋग्वेद के पुरुषसूक्त के मन्त्र 12 का उदाहरण देते हैं . जिसमे कहा है .

ब्राह्मणों अस्य मुखमासीद बाहू राजन्यः कतः
उरू तदस्य यद् वैश्यः पदाभ्याम शूद्रो अजायत "


कुछ लोग इस मन्त्र का अर्थ इस तरह करते है , कि उस ईश्वर के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, जांघों से वैश्य और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए. लेकिन इस मन्त्र से यह बात सिद्ध नहीं होती कि ब्राहण , क्षत्रिय , और वैश्य उच्च वर्ण हैं और शरीर के नीचे होने वाले पैरों के समान शूद्र नीच समझे जाएँ .

ऐसे मुर्ख यह नहीं जानते कि यदि शूद्र पैरों की तरह अपवित्र और अशुद्ध है तो सभी हिन्दू देवी, देवताओं. और अपने माता, पिता और गुरुओं का चरण स्पर्श करके उनका आदर क्यों करते हैं? उनका शिर स्पर्श क्यों नहीं करते?

वास्तव में वर्णव्यवस्था लोगों के व्यवसाय, यानि उनके कर्मों के अनुसार निर्धारित की जाति थी .

किसी परिवार में जन्म होने के आधार पर नहीं.
गीता में स्पष्ट कहा गया है 

"चातुर्वर्ण्य मया स्रष्टअम गुण कर्म विभागशः गीता .अध्याय 4 श्लोक 13

फिर भी जो लोग खुद को सवर्ण बता कर शूद्रों को हेय समझते हैं . वह इस बात पर गौर करें कि .महर्षि वाल्मीकि न तो ब्राहमण थे और न ही क्षत्रिय या वैश्य थे .सभी जानते है कि वह शूद्र थे . फिर भी इस सत्य को जानने के बाद भी जब भगवान राम ने किसी कारण से सीता जी को छोड़ दिया था , तो उनको वाल्मीकि जी के आश्रम में भेज दिया था . वह चाहते तो सीता जी को उनके मायके नेपाल भेज देते .


इसी तरह हिदू जिस गीता को भगवान के वचन मानते हैं , वह महाभारत का एक अंश है .जिसकी रचना व्यास जी ने की थी . और व्यास भी सवर्ण नहीं थे .

जाति व्यवस्था मिटाने का एक ही उपाय हो सकता है . कि किसी को शूद्र कहकर उसका महत्त्व कम न करें , बल्कि उनको आर्य कहकर सम्मान करते हुए ऋषियों की संतान समझें . जाति प्रथा मुसलमानों की देन है .

*** तुलसी एक 'दिव्य पौधा' ***



भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे का बहुत महत्व है और इस पौधे को बहुत पवित्र माना जाता है। ऎसा माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा नहीं होता उस घर में भगवान भी रहना पसंद नहीं करते। माना जाता है कि घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगा कलह और दरिद्रता दूर करता है। इसे घर के आंगन में स्थापित कर सारा परिवार सुबह-सवेरे इसकी पूजा-अर्चना करता है। यह मन और तन दोनों को स्वच्छ करती है। इसके गुणों के कारण इसे पूजनीय मानकर उसे देवी का दर्जा दिया जाता है। तुलसी केवल हमारी आस्था का प्रतीक भर नहीं है। इस पौधे में पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तुलसी को महत्वपूर्ण माना गया है। भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है।

* लिवर (यकृत) संबंधी समस्या: तुलसी की 10-12 पत्तियों को गर्म पानी से धोकर रोज सुबह खाएं। लिवर की समस्याओं में यह बहुत फायदेमंद है।


* पेटदर्द होना: एक चम्मच तुलसी की पिसी हुई पत्तियों को पानी के साथ मिलाकर गाढा पेस्ट बना लें। पेटदर्द होने पर इस लेप को नाभि और पेट के आस-पास लगाने से आराम मिलता है।

* पाचन संबंधी समस्या : पाचन संबंधी समस्याओं जैसे दस्त लगना, पेट में गैस बनना आदि होने पर एक ग्लास पानी में 10-15 तुलसी की पत्तियां डालकर उबालें और काढा बना लें। इसमें चुटकी भर सेंधा नमक डालकर पीएं।

* बुखार आने पर : दो कप पानी में एक चम्मच तुलसी की पत्तियों का पाउडर और एक चम्मच इलायची पाउडर मिलाकर उबालें और काढा बना लें। दिन में दो से तीन बार यह काढा पीएं। स्वाद के लिए चाहें तो इसमें दूध और चीनी भी मिला सकते हैं।

* खांसी-जुकाम : करीब सभी कफ सीरप को बनाने में तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी की पत्तियां कफ साफ करने में मदद करती हैं। तुलसी की कोमल पत्तियों को थोडी- थोडी देर पर अदरक के साथ चबाने से खांसी-जुकाम से राहत मिलती है। चाय की पत्तियों को उबालकर पीने से गले की खराश दूर हो जाती है। इस पानी को आप गरारा करने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

* सर्दी से बचाव : बारिश या ठंड के मौसम में सर्दी से बचाव के लिए तुलसी की लगभग 10-12 पत्तियों को एक कप दूध में उबालकर पीएं। सर्दी की दवा के साथ-साथ यह एक न्यूट्रिटिव ड्रिंक के रूप में भी काम करता है। सर्दी जुकाम होने पर तुलसी की पत्तियों को चाय में उबालकर पीने से राहत मिलती है। तुलसी का अर्क तेज बुखार को कम करने में भी कारगर साबित होता है।

* श्वास की समस्या : श्वास संबंधी समस्याओं का उपचार करने में तुलसी खासी उपयोगी साबित होती है। शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है। नमक, लौंग और तुलसी के पत्तों से बनाया गया काढ़ा इंफ्लुएंजा (एक तरह का बुखार) में फौरन राहत देता है।

* गुर्दे की पथरी : तुलसी गुर्दे को मजबूत बनाती है। यदि किसी के गुर्दे में पथरी हो गई हो तो उसे शहद में मिलाकर तुलसी के अर्क का नियमित सेवन करना चाहिए। छह महीने में फर्क दिखेगा।

* हृदय रोग : तुलसी खून में कोलेस्ट्राल के स्तर को घटाती है। ऐसे में हृदय रोगियों के लिए यह खासी कारगर साबित होती है।

* तनाव : तुलसी की पत्तियों में तनाव रोधीगुण भी पाए जाते हैं। तनाव को खुद से दूर रखने के लिए कोई भी व्यक्ति तुलसी के 12 पत्तों का रोज दो बार सेवन कर सकता है।

* मुंह का संक्रमण : अल्सर और मुंह के अन्य संक्रमण में तुलसी की पत्तियां फायदेमंद साबित होती हैं। रोजाना तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है।

* त्वचा रोग : दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है। नैचुरोपैथों द्वारा ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में तुलसी के पत्तों को सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है।
तुलसी की ताजा पत्तियों को संक्रमित त्वचा पर रगडे। इससे इंफेक्शन ज्यादा नहीं फैल पाता।

* सांसों की दुर्गध : तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है। पायरिया जैसी समस्या में भी यह खासा कारगर साबित होती है।

* सिर का दर्द : सिर के दर्द में तुलसी एक बढि़या दवा के तौर पर काम करती है। तुलसी का काढ़ा पीने से सिर के दर्द में आराम मिलता है।

* आंखों की समस्या : आंखों की जलन में तुलसी का अर्क बहुत कारगर साबित होता है। रात में रोजाना श्यामा तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखों में डालना चाहिए।

* कान में दर्द : तुलसी के पत्तों को सरसों के तेल में भून लें और लहसुन का रस मिलाकर कान में डाल लें। दर्द में आराम मिलेगा।

* ब्लड-प्रेशर को सामान्य रखने के लिए तुलसी के पत्तों का सेवन करना चाहिए।

* तुलसी के पांच पत्ते और दो काली मिर्च मिलाकर खाने से वात रोग दूर हो जाता है।

* कैंसर रोग में तुलसी के पत्ते चबाकर ऊपर से पानी पीने से काफी लाभ मिलता है।

* तुलसी तथा पान के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर देने से बच्चों के पेट फूलने का रोग समाप्त हो जाता है।

* तुलसी का तेल विटामिन सी, कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर होता है।

* तुलसी का तेल मक्खी- मच्छरों को भी दूर रखता है।

* बदलते मौसम में चाय बनाते हुए हमेशा तुलसी की कुछ पत्तियां डाल दें। वायरल से बचाव रहेगा।

* शहद में तुलसी की पत्तियों के रस को मिलाकर चाटने से चक्कर आना बंद हो जाता है।

* तुलसी के बीज का चूर्ण दही के साथ लेने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।

* तुलसी के बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में वृध्दि होती है।

रोज सुबह तुलसी की पत्तियों के रस को एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीने से स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है। तुलसी की केवल पत्तियां ही लाभकारी नहीं होती। 

तुलसी के पौधे पर लगने वाले फल जिन्हें अमतौर पर मंजर कहते हैं, पत्तियों की तुलना में कहीं अघिक फायदेमंद होता है। विभिन्न रोगों में दवा और काढे के रूप में तुलसी की पत्तियों की जगह मंजर का उपयोग भी किया जा सकता है। इससे कफ द्वारा पैदा होने वाले रोगों से बचाने वाला और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला माना गया है। 

किंतु जब भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें, उन्हें दांतों से न चबाकर सीधे ही निगल लें। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि तुलसी के पत्तों में पारा धातु के अंश होते हैं। जो चबाने पर बाहर निकलकर दांतों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे दंत और मुख रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।

तुलसी का पौधा मलेरिया के कीटाणु नष्ट करता है। नई खोज से पता चला है इसमें कीनोल, एस्कार्बिक एसिड, केरोटिन और एल्केलाइड होते हैं। तुलसी पत्र मिला हुआ पानी पीने से कई रोग दूर हो जाते हैं। इसीलिए चरणामृत में तुलसी का पत्ता डाला जाता है। तुलसी के स्पर्श से भी रोग दूर होते हैं। तुलसी पर किए गए प्रयोगों से सिद्ध हुआ है कि रक्तचाप और पाचनतंत्र के नियमन में तथा मानसिक रोगों में यह लाभकारी है। इससे रक्तकणों की वृद्धि होती है। तुलसी ब्र्म्ह्चर्य की रक्षा करने एवं यह त्रिदोषनाशक है।

!!..जय हिन्द..!!..जय भारत..!!...जय महाकाल !!

कुछ लोग कहते हैं कि राम भगवान नहीं थे !!!

Photo: कुछ लोग कहते हैं कि राम भगवान नहीं थे, वे तो राजा थे। कुछ का मानना है कि वे एक का‍‍ल्पनिक पात्र हैं। वे कभी हुए ही नहीं। वर्तमान काल में राम की आलोचना करने वाले कई लोग मिल जाएँगे। राम के खिलाफ तर्क जुटाकर कई पुस्तकें लिखी गई हैं। इन पुस्तक लिखने वालों में मुस्लिम इतिहासकारों ,वामपंथी विचारधारा और धर्मांतरित लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया है। तर्क से सही को गलत और गलत को सही सिद्ध किया जा सकता है। तर्क की बस यही ताकत है। तर्क वेश्याओं की तरह होते हैं।

उनकी आलोचना स्वागतयोग्य है। जो व्यक्ति हर काल में जिंदा रहे या जिससे लोगों को खतरा महसूस होता है, आलोचना उसी की ही होती है। मृत लोगों की आलोचना नहीं होती। जिस व्यक्ति की आलोचना नहीं होती वे इतिहास में खो जाते हैं।

आलोचकों के कारण राम पौराणिक थे या ऐतिहासिक इस पर शोध हुए हैं और हो रहे हैं। सर्वप्रथम फादर कामिल बुल्के ने राम की प्रामाणिकता पर शोध किया। उन्होंने पूरी दुनिया में रामायण से जुड़े करीब 300 रूपों की पहचान की।

राम के बारे में एक दूसरा शोध चेन्नई की एक गैरसरकारी संस्था भारत ज्ञान द्वारा पिछले छह वर्षो में किया गया है। उनके अनुसार अगली 10 जनवरी को राम के जन्म के पूरे 7122 वर्ष हो जाएँगे। उनका मानना है कि राम एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। वाल्मीकि रामायण में लिखी गई नक्षत्रों की स्थिति को 'प्ले‍नेटेरियम' नामक सॉफ्टवेयर से गणना की गई तो उक्त तारीख का पता चला। यह एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जो आगामी सूर्य और चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणी कर सकता है।

मुंबई में अनेक वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, व्यवसाय जगत की हस्तियों के समक्ष इस शोध को प्रस्तुत किया गया। और इस शोध संबंधित तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए इसके संस्थापक ट्रस्टी डीके हरी ने एक समारोह में बताया था कि इस शोध में वाल्मीकि रामायण को मूल आधार मानते हुए अनेक वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, ज्योतिषीय और पुरातात्विक तथ्यों की मदद ली गई है। इस समारोह का आयोजन भारत ज्ञान ने आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग के साथ मिलकर किया था।

कुछ वर्ष पूर्व वाराणसी स्थित श्रीमद् आद्य जगदगुरु शंकराचार्य शोध संस्थान के संस्थापक स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती ने भी अनेक संस्कृत ग्रंथों के आधार पर राम और कृष्ण की ऐतिहासिकता को स्थापित करने का कार्य किया था।

इस के अलावा नेपाल, लाओस, कंपूचिया, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड आदि देशों की लोकसंस्कृति व ग्रंथों में आज भी राम जिंदा है। दुनिया भर में बिखरे शिलालेख, भित्ति चित्र, सिक्के, रामसेतु, अन्य पुरातात्विक अवशेष, प्राचीन भाषाओं के ग्रंथ आदि से राम के होने की पुष्टि होती है।

आलोचकों को चाहिए कि वे इस तरह और इस तरह के तमाम अन्य शोधों की भी आलोचना करें और इन पर भी सवाल उठाएँ, तभी नए-नए शोधों को प्रोत्साहन मिलेगा। एक दिन सारी आलोचनाएँ ध्वस्त हो जाएँगी। क्यों? क्योंकि द्वेषपूर्ण आलोचनाएँ लचर-पचर ही होती हैं। दूसरे के धर्म की प्रतिष्ठा गिराकर स्वयं के धर्म को स्थापित करने के उद्देश्य से की गई आलोचनाएँ सत्य के विरुद्ध ही मानी जाती हैं।

कहते हैं कि किसी देश, धर्म और संस्कृति को खत्म करना है तो उसके इतिहास पर सवाल खड़े करो, फिर तर्क द्वारा इतिहास को भ्रमित करो- बस तुम्हारा काम खत्म। फिर उसे खत्म करने का काम तो उस देश, धर्म और संस्कृति के लोग खुद ही कर देंगे।

अंग्रेज इस देश और यहाँ के धर्म और इतिहास को इस कदर भ्रमित कर चले गए कि अब उनके कार्य की कमान धर्मांतरण कर चुके लोगों, राजनीतिज्ञों व कट्टरपंथियों ने सम्भाल ली है।

विखंडित करने के षड्यंत्र के पहले चरण का परिणाम यह हुआ कि हम अखंड भारत से खंड-खंड भारत हो गए। एक समाज व धर्म से अनेक जाति और धर्म के हो गए। आज का जो भारतीय उपमहाद्वीप है और वहाँ की जो राजनीति तथा समाज की दशा है वह अंग्रेजों की कूटनीति का ही परिणाम है।

जब कोई प्रशासन और सैन्य व्यवस्था, व्यक्ति या पार्टी 10 वर्षों में देश को नष्ट और भ्रष्ट करने की ताकत रखता है तो यह सोचा नहीं जाना चाहिए कि मुस्लिम आक्रंताओ और 200 साल के राज में अंग्रेजों ने क्या किया होगा? अंग्रेजों ने हमें बहुत कुछ दिया लेकिन सब कुछ छीनकर।

यह सोचने वाली बात है कि हम दुनिया कि सबमें पुरानी कौम और पुराने मुल्कों में गिने जाते हैं, लेकिन इतिहास के नाम पर हमारे पास मात्र ढाई से तीन हजार वर्षों का ही इतिहास संरक्षित है। हम सिंधु घाटी की सभ्यता से ही शुरू माने जाते हैं। हमें आर्यों के बाद सीधे बुद्धकाल पर कुदा दिया जाता है। बीच की कड़ी राम और कृष्ण को किसी षड्यंत्र के तहत इतिहास की पुस्तकों में कभी शामिल ही नहीं किया गया।

कुछ लोग कहते हैं कि राम भगवान नहीं थे, वे तो राजा थे। कुछ का मानना है कि वे एक का‍‍ल्पनिक पात्र हैं। वे कभी हुए ही नहीं। वर्तमान काल में राम की आलोचना करने वाले कई लोग मिल जाएँगे। राम के खिलाफ तर्क जुटाकर कई पुस्तकें लिखी गई हैं। इन पुस्तक लिखने वालों में मुस्लिम इतिहासकारों ,वामपंथी विचारधारा और धर्मांतरित लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया है। तर्क से सही को गलत और गलत को सही सिद्ध किया जा सकता है। तर्क की बस यही ताकत है। तर्क वेश्याओं की तरह होते हैं।

उनकी आलोचना स्वागतयोग्य है।
जो व्यक्ति हर काल में जिंदा रहे या जिससे लोगों को खतरा महसूस होता है, आलोचना उसी की ही होती है। मृत लोगों की आलोचना नहीं होती। जिस व्यक्ति की आलोचना नहीं होती वे इतिहास में खो जाते हैं।

आलोचकों के कारण राम पौराणिक थे या ऐतिहासिक इस पर शोध हुए हैं और हो रहे हैं। सर्वप्रथम फादर कामिल बुल्के ने राम की प्रामाणिकता पर शोध किया। उन्होंने पूरी दुनिया में रामायण से जुड़े करीब 300 रूपों की पहचान की।

राम के बारे में एक दूसरा शोध चेन्नई की एक गैरसरकारी संस्था भारत ज्ञान द्वारा पिछले छह वर्षो में किया गया है। उनके अनुसार अगली 10 जनवरी को राम के जन्म के पूरे 7122 वर्ष हो जाएँगे। उनका मानना है कि राम एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। वाल्मीकि रामायण में लिखी गई नक्षत्रों की स्थिति को 'प्ले‍नेटेरियम' नामक सॉफ्टवेयर से गणना की गई तो उक्त तारीख का पता चला। यह एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जो आगामी सूर्य और चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणी कर सकता है।

मुंबई में अनेक वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, व्यवसाय जगत की हस्तियों के समक्ष इस शोध को प्रस्तुत किया गया। और इस शोध संबंधित तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए इसके संस्थापक ट्रस्टी डीके हरी ने एक समारोह में बताया था कि इस शोध में वाल्मीकि रामायण को मूल आधार मानते हुए अनेक वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, ज्योतिषीय और पुरातात्विक तथ्यों की मदद ली गई है। इस समारोह का आयोजन भारत ज्ञान ने आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग के साथ मिलकर किया था।

कुछ वर्ष पूर्व वाराणसी स्थित श्रीमद् आद्य जगदगुरु शंकराचार्य शोध संस्थान के संस्थापक स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती ने भी अनेक संस्कृत ग्रंथों के आधार पर राम और कृष्ण की ऐतिहासिकता को स्थापित करने का कार्य किया था।

इस के अलावा नेपाल, लाओस, कंपूचिया, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड आदि देशों की लोकसंस्कृति व ग्रंथों में आज भी राम जिंदा है। दुनिया भर में बिखरे शिलालेख, भित्ति चित्र, सिक्के, रामसेतु, अन्य पुरातात्विक अवशेष, प्राचीन भाषाओं के ग्रंथ आदि से राम के होने की पुष्टि होती है।

आलोचकों को चाहिए कि वे इस तरह और इस तरह के तमाम अन्य शोधों की भी आलोचना करें और इन पर भी सवाल उठाएँ, तभी नए-नए शोधों को प्रोत्साहन मिलेगा। एक दिन सारी आलोचनाएँ ध्वस्त हो जाएँगी। क्यों? क्योंकि द्वेषपूर्ण आलोचनाएँ लचर-पचर ही होती हैं। दूसरे के धर्म की प्रतिष्ठा गिराकर स्वयं के धर्म को स्थापित करने के उद्देश्य से की गई आलोचनाएँ सत्य के विरुद्ध ही मानी जाती हैं।

कहते हैं कि किसी देश, धर्म और संस्कृति को खत्म करना है तो उसके इतिहास पर सवाल खड़े करो, फिर तर्क द्वारा इतिहास को भ्रमित करो- बस तुम्हारा काम खत्म। फिर उसे खत्म करने का काम तो उस देश, धर्म और संस्कृति के लोग खुद ही कर देंगे।

अंग्रेज इस देश और यहाँ के धर्म और इतिहास को इस कदर भ्रमित कर चले गए कि अब उनके कार्य की कमान धर्मांतरण कर चुके लोगों, राजनीतिज्ञों व कट्टरपंथियों ने सम्भाल ली है।

विखंडित करने के षड्यंत्र के पहले चरण का परिणाम यह हुआ कि हम अखंड भारत से खंड-खंड भारत हो गए। एक समाज व धर्म से अनेक जाति और धर्म के हो गए। आज का जो भारतीय उपमहाद्वीप है और वहाँ की जो राजनीति तथा समाज की दशा है वह अंग्रेजों की कूटनीति का ही परिणाम है।

जब कोई प्रशासन और सैन्य व्यवस्था, व्यक्ति या पार्टी 10 वर्षों में देश को नष्ट और भ्रष्ट करने की ताकत रखता है तो यह सोचा नहीं जाना चाहिए कि मुस्लिम आक्रंताओ और 200 साल के राज में अंग्रेजों ने क्या किया होगा? अंग्रेजों ने हमें बहुत कुछ दिया लेकिन सब कुछ छीनकर।

यह सोचने वाली बात है कि हम दुनिया कि सबमें पुरानी कौम और पुराने मुल्कों में गिने जाते हैं, लेकिन इतिहास के नाम पर हमारे पास मात्र ढाई से तीन हजार वर्षों का ही इतिहास संरक्षित है। हम सिंधु घाटी की सभ्यता से ही शुरू माने जाते हैं। हमें आर्यों के बाद सीधे बुद्धकाल पर कुदा दिया जाता है। बीच की कड़ी राम और कृष्ण को किसी षड्यंत्र के तहत इतिहास की पुस्तकों में कभी शामिल ही नहीं किया गया।

"जिसका गुरु जैसा होगा.... उसका चेला (अनुयायी) भी वैसा ही होगा"...!

Photo: दुनिया में जहाँ कहीं भी मुस्लिम हैं...... वे अपने आपको सर्वश्रेष्ठ बताते हैं.... और, इस्लाम को सबसे पुरातन धर्म बताते हैं...!

हालाँकि ये काफी हास्यास्पद और बेहद बेतुकी सी बात है..... फिर भी..... इसमें मुस्लिमों का कोई दोष नहीं है........ क्योंकि, ""जिसका गुरु जैसा होगा.... उसका चेला (अनुयायी) भी वैसा ही होगा""...!

क्या आप जानते हैं कि..... इस्लाम का प्रतिपादक और अल्लाह का तथाकथित भूत.... सॉरी... दूत...... मुहम्मद दुनिया का सबसे बड़ा गप्पबाज व्यक्ति था....!

मुहम्मद ने.... लूट के दौरान.. इतनी गप्पें हांकी हैं कि.... उन गप्पों को सुनकर..... कोई शराबी या अफीमची भी शरमा जाएगा...!

मुहम्मद ने ये गप्पें लोगों पर अपना प्रभाव बनाने के लिए हांकी थी..... और, उन्हें पूरा विश्वास था कि.... जब तक मुल्ले मदरसों में कुरान पढ़ते रहेंगे...... तब तक, वे निपट मूर्ख ही रहने वाले हैं..... तथा, उनके गप्पों पर कोई उंगली नहीं उठाने वाला है...!

मुहम्मद साहब ने कुरान कैसी-कैसी गप्पें हांकी हैं..... जरा आप भी एक-दो नमूना देख लें...... और, अपना सामान्य ज्ञान बढ़ाएं....

@@@ रसूल अपने कपड़ों में कुछ बरसाती बादलों को रख लेते थे ... और, फिर जब चाहते थे... उन बादलों से इतनी बरसात कर देते थे कि.... जिस से मक्का शहर की गलियां भर जाती थी . ............... अबू दाऊद- जिल्द 3 किताब 31 हदीस ५०८१

@@@ अनस ने कहा कि रसूल को रास्ते में एक खजूर का पेड़ मिला .....जो दर्द से इस तरह कराह रहा था , जैसे गर्भवती ऊंटनी कराहती है .
और, जब रसूल ने उस पेड़ पर हाथ फिराया तो उसका दर्द ख़त्म हो गया और पेड़ शांत हो गया..... .बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 783 , 784 और 785

@@@ अनस ने कहा कि... एक बार जब रास्ते में कहीं पानी नहीं था .. और, जिहादी प्यासे मर रहे थे ..... तो रसूल ने अपनी उँगलियों से इतना पानी निकाल दिया कि जिस से 1500 लोगों की प्यास बुझ गयी .............. बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 776

@@@ एक बार जब रसूल मीना की पहाड़ी पर खड़े हुए थे .... तो, उन्होंने अपनी उंगली से चाँद के दो टुकडे कर दिए .
एक टुकड़ा पहाड़ी की एक तरफ गिरा .... और, दूसरा टुकड़ा दूसरी तरफ गिर गया .....मुस्लिम - किताब 39 हदीस 6725 , 6726 , और 6728

### लगता है कि मुहम्मद साहब फुरसत के समय मूर्ख जिहादियों पर अपना प्रभाव डालने के लिए ऐसे ही बेतुकी गप्पें मारते रहते थे ....
अन्यथा ऐसी असंभव और मूर्खतापूर्ण बातों पर केवल वही विश्वास कर सकता है ,जिसके अक्ल का दिवाला निकल गया हो .

क्योंकि.... इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार चन्द्रमा का आकार पृथ्वी से एक तिहाई से भी कम है .(The Moon] is less than one-third the size of Earth (radius about 1,738 कि मी )

फिर भी.... यदि आधा चन्द्रमा टूट कर अरब पर गिर गया होता..... तो, मुहम्मद और मक्का मदीना समेत कई अरब देश मिट गए होते.... और, आज दुनिया को ये दुर्दिन नहीं देखना होता...!

अब आप खुद ही सोचें कि..... जिस इस्लाम का प्रतिपादक मुहम्मद ही इतना बड़ा गप्पी.... और, डींग हांकू हो...... उसके अनुयायी कैसे होंगे....????

कुरान पढ़ कर .... मुझे तो लगता है कि..... अगर आप भी ... अपना काम धाम छोड़ कर.... लूटमार और बलात्कार करने लगो..... जम कर डींगें हांकना शुरू कर दो.... तो शायद आप भी मुस्लिमों के लिए अल्लाह के दूत और रसूल बन सकते हो....!

जय महाकाल...!!!

दुनिया में जहाँ कहीं भी मुस्लिम हैं...... वे अपने आपको सर्वश्रेष्ठ बताते हैं.... और, इस्लाम को सबसे पुरातन धर्म बताते हैं...!

हालाँकि ये काफी हास्यास्पद और बेहद बेतुकी सी बात है..... फिर भी..... इसमें मुस्लिमों का कोई दोष नहीं है........ क्योंकि, ""जिसका गुरु जैसा होगा.... उसका चेला (अनुयायी) भी वैसा ही होगा""...!

क्या आप जानते हैं कि..... इस्लाम का प्रतिपादक और अल्लाह का तथाकथित भूत.... सॉरी... दूत...... मुहम्मद दुनिया का सबसे बड़ा गप्पबाज व्यक्ति था....!

मुहम्मद ने.... लुट के दौरान.. इतनी गप्पें हांकी हैं कि.... उन गप्पों को सुनकर..... कोई शराबी या अफीमची भी शरमा जाएगा...!

मुहम्मद ने ये गप्पें लोगों पर अपना प्रभाव बनाने के लिए हांकी थी..... और, उन्हें पूरा विश्वास था कि.... जब तक मुल्ले मदरसों में कुरान पढ़ते रहेंगे...... तब तक, वे निपट मूर्ख ही रहने वाले हैं..... तथा, उनके गप्पों पर कोई उंगली नहीं उठाने वाला है...!

मुहम्मद साहब ने कुरान कैसी-कैसी गप्पें हांकी हैं..... जरा आप भी एक-दो नमूना देख लें...... और, अपना सामान्य ज्ञान बढ़ाएं....

@@@ रसूल अपने कपड़ों में कुछ बरसाती बादलों को रख लेते थे ... और, फिर जब चाहते थे... उन बादलों से इतनी बरसात कर देते थे कि.... जिस से मक्का शहर की गलियां भर जाती थी . ............... अबू दाऊद- जिल्द 3 किताब 31 हदीस ५०८१

@@@ अनस ने कहा कि रसूल को रास्ते में एक खजूर का पेड़ मिला .....जो दर्द से इस तरह कराह रहा था , जैसे गर्भवती ऊंटनी कराहती है .
और, जब रसूल ने उस पेड़ पर हाथ फिराया तो उसका दर्द ख़त्म हो गया और पेड़ शांत हो गया..... .बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 783 , 784 और 785

@@@ अनस ने कहा कि... एक बार जब रास्ते में कहीं पानी नहीं था .. और, जिहादी प्यासे मर रहे थे ..... तो रसूल ने अपनी उँगलियों से इतना पानी निकाल दिया कि जिस से 1500 लोगों की प्यास बुझ गयी .............. बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 776

@@@ एक बार जब रसूल मीना की पहाड़ी पर खड़े हुए थे .... तो, उन्होंने अपनी उंगली से चाँद के दो टुकडे कर दिए .
एक टुकड़ा पहाड़ी की एक तरफ गिरा .... और, दूसरा टुकड़ा दूसरी तरफ गिर गया .....मुस्लिम - किताब 39 हदीस 6725 , 6726 , और 6728

### लगता है कि मुहम्मद साहब फुरसत के समय मूर्ख जिहादियों पर अपना प्रभाव डालने के लिए ऐसे ही बेतुकी गप्पें मारते रहते थे ....
अन्यथा ऐसी असंभव और मूर्खतापूर्ण बातों पर केवल वही विश्वास कर सकता है ,जिसके अक्ल का दिवाला निकल गया हो .

क्योंकि.... इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार चन्द्रमा का आकार पृथ्वी से एक तिहाई से भी कम है .(The Moon] is less than one-third the size of Earth (radius about 1,738 कि मी )

फिर भी.... यदि आधा चन्द्रमा टूट कर अरब पर गिर गया होता..... तो, मुहम्मद और मक्का मदीना समेत कई अरब देश मिट गए होते.... और, आज दुनिया को ये दुर्दिन नहीं देखना होता...!

अब आप खुद ही सोचें कि..... जिस इस्लाम का प्रतिपादक मुहम्मद ही इतना बड़ा गप्पी.... और, डींग हांकू हो...... उसके अनुयायी कैसे होंगे....????

कुरान पढ़ कर .... मुझे तो लगता है कि..... अगर आप भी ... अपना काम धाम छोड़ कर.... लूटमार और बलात्कार करने लगो..... जम कर डींगें हांकना शुरू कर दो.... तो शायद आप भी मुस्लिमों के लिए अल्लाह के दूत और रसूल बन सकते हो....!

जय महाकाल...!!!