12 December 2012

!!! ये हैं मेथी खाने के SUPERB ADVANTAGES !!!


मेथी एक ऐसी सब्जी है जो स्वादिष्ट होने के साथ ही कई तरह के स्वास्थ्य लाभ भी देती है। मेथी की पत्तियों को सब्जी के तरह व इससे प्राप्त दानों को यानी मेथीदानों को मसाले के रूप में उपयोग में लाया जाता है। मेथी व मेथीदानें का सेवन तो हम सभी करते हैं लेकिन उसके औषधिय गुणों के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं आइए आज हम आपको बताते हैं मेथी के ऐसे ही कुछ गुणों के बारे में.......


लो-ब्लडप्रेशर में - मेथी की सब्जी में अदरक,गर्म मसाला डालकर खाने से निम्न रक्तचाप में फायदा होता है।

एसिडिटी में बढिय़ा उपचार - डायरिया और हार्टबर्न के अलावा मेथी के रस से पेट और आंत की सभी समस्याएं दूर होती हैं। अगर आप अल्सर और एसिडिटी को ठीक करना चाहते हैं तो मेथी और मठ्ठे को घोल कर पीएं। सिर्फ यही नहीं अगर आप रोज़ सुबह खाली पेट कुछ मेथी के दानें खाएगें तो पेट के सभी रोग दूर होगें।

त्वचा संबधी रोगों से निजात- अगर आपको खुजली, जलन, फोड़े-फुंसी और गांठ की समस्या है तो आपको कुछ ग्राम मेथी खाने की आवश्यकता है। न सिर्फ खानें से बल्कि इसके पेस्ट को लगाने से भी फायदा होता है। अगर रुसी की समस्या है तो बालों में मेथी और दही मिला कर लगाने से यह समस्या जल्द दूर हो जाएगी।

कोलेस्ट्रॉल संतुलन- डॉक्टरों का कहना है कि यह हार्ट रोगियों के लिए एक वरदान के समान है जिसे वह रोज अपने भोजन में खा कर अपने बढे हुए कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम कर सकता है। अगर मेथी के दाने ज्यादा कड़वे हों तो उन्हें कैप्सूल के रूप में भी खाया जा सकता है।

डाइबिटीज के रोगियों के लिए लाभदायक- रिसर्च के अनुसार यह जानकारी प्राप्त हुई है कि यह टाइप 2 के मधुमेह रोगियों के लिए काफी लाभकारी होता है। अगर रोगी रोज दिन में 6-7 मेथी के दानों का या फिर मेथी के पानी का सेवन करें तो उसका शुगर लेवल कम हो सकता है।

सिर की त्वचा में समस्या- मेथी को पूरी रात भिगो दें और सुबह उसे गाढ़ी दही में मिला कर अपने बालों और जड़ो में लगाएं। उसके बाद बालों को धो लें इससे रुसी और सिर की त्वचा में जो भी समस्या होगी वह दूर हो जाएगी। साथ ही मेथी के अधिक सेवन से भी बाल स्वस्थ रहते हैं।

साइटिका में- आयुर्वेदिक चिकित्सकों के अनुसार मेथी के बीज आर्थराइटिस और साइटिका के दर्द से निजात दिलाने में मदद करते हैं। इसके लिए 1 ग्राम मेथी दाना पाउडर और सोंठ पाउडर को थोड़े से गर्म पानी के साथ दिन में दो-तीन बार लेने से लाभ होता है।

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11 December 2012

!!! सर्दी के मौसम में हरी सब्जियां खाएं, सेहत बनाएं !!!


अगर आप अपने आपको एकदम फिट रखना चाहते हैं, तो सब्जियों से दोस्ती कर लें. आम तौर पर देखा जाता है कि लोग सब्जी खाना पसंद नहीं करते. लेकिन सब्जियों में छिपे गुणों के बारे में अगर आप जान लें, तो 
शायद ही आप कभी सब्जी खाने के लिए मना करें.


पालक के फायदे-

पालक की सब्जी विटामिन-बी, विटामिन-सी से भरी होती है. पालक में कैल्शियम की मात्रा भी काफी होती है.

पालक का रस आंखों की रोशनी के लिए काफी अच्छा होता है. इतना ही नहीं, पालक खाने से रक्त की कमी पूरी हो जाती है और पालक का रस पीने से पथरी कभी नहीं होती.

मेथी के गुण-

मेथी की हरी पत्तियां हो या सूखे दाने, दोनों ही काफी फायदेमंद होते हैं.

डायबिटीज और उच्च रक्तचाप के मरीजों के लिए मेथी काफी फायदेमंद है. इतना ही नहीं, मेथी हमें बेहतर स्वास्थ्य के साथ सौंदर्य भी प्रदान करती है. मेथी का पेस्ट आंखों के नीचे लगाने से कालापन दूर हो जाता है.

सांस में बदबू से अगर आप परेशान हैं, तो मेथी के दानों को पानी में डालकर उबालें और उस पानी से गरारा करें.

पत्ता गोभी-

पत्ता गोभी पोषक से भरी होती है. हरी पत्ता गोभी में विटामिन-ई काफी मात्रा में होता है.

छोटी पत्ता गोभी में ज्यादा कैल्शियम होता है. इसमें पाए जाने वाला कोलोन कैंसर को रोकने में मददगार है.

सब्जियां सेहत का खजाना होती हैं. रोजाना सब्जी खाने से आप एकदम स्वस्थ रहते हैं. इतना ही नहीं, हरी सब्जी खाने से आपकी आंखों की रोशनी कम नहीं होती है. और आप अन्य बीमारियों से भी बचे रहते हैं.


!!! सेहत के लिए फायदेमंद 'अमरूद' !!!


अमरूद खाने में जितने स्वादिष्ट लगते हैं. उससे कहीं ज्यादा ये सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं. सर्दी के मौसम में मिलने वाला ये फल सेहत के लिए किसी खजाने से कम नहीं है.


अमरूद खाने के फायदे

- अगर आप कब्ज की समस्या
से परेशान हैं, तो अमरूद जरूर खाएं. ये फल कब्ज की समस्या को ठीक करने में कारगर साबित होता है.
- अमरूद फेफड़ों को स्वस्थ रखता है.
- ये दमा के रोगियों को फायदा पहुंचाता है.
- ये खून के बहाव को ठीक रखता है. जिससे हृदय स्वस्थ रहता है.
- अगर किसी को भांग का नशा चढ़ गया है, तो अमरूद खाएं. अमरूद खाने से नशा जल्द उतर जाएगा.
- भोजन करने के बाद अगर ये फल खाया जाए, तो भोजन में मौजूद सारे तत्व असानी से डाइजेस्ट हो जाते हैं.
-अगर आपके दांतों में दर्द रहता है, तो अमरूद के पत्ते चबाएं.

- इस फल को खाने से हाई ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है.
- इसमें कैल्शियम भी अच्छी मात्रा में मौजूद होता है, जो कि हमारे शरीर की हड्डियों और दांतों को स्वस्थ रखता है.
- जिन व्यक्तियों के नाक-कान से खून आता हो, उन्हें भी इस फल का सेवन करना चाहिए.

अमरूद खाने के फायदों के बारे में जानकर आज से ही आप इस फल का सेवन करना शुरू कर दें. सर्दी के मौसम में अमरूद आपको असानी से बाजार में मिल जाते हैं और ये ज्यादा महंगे भी नहीं होते हैं.


!!! करम वापिस बरस रहे हैं.. !!!


एक बार देवताओं ने सभा की | उस सभा में एक प्रस्ताव स्वीकृत हुआ कि गंगा जी मृत्युलोक में सभी प्राणियों के पापों को लेती है अतः वह सबसे बड़ी पापिनी है और अब उन्हें सभा में नहीं आने दिया जाएगा | जब गंगा जी ने सुना तो वे सभा में आकर बोलीं, देवताओं ! यह आपका कहना ठीक है कि मैं मृत्युलोक में सब के पापों को लेती हूं किन्तु मैं तो सारे पापों को समुंद्र में डाल देती हूं | अपने पास नहीं रखती | देवताओं ने कहा ‘यह बात तो ठीक है | 

अच्छा ! तो वरुण देवता अब सभा से बाहर हो जांय क्योंकि वे सबसे बड़े पापी हैं |’ वरुण देवता ने हाथ जोड़कर कहा कि देवताओं ! मैं गंगा जी से पाप तो लेता अवश्य हूं किन्तु मैं भी उसे अपने पास नहीं रखता | उन पापों को मैं मेघों को दे देता हूं |” देवताओं ने पुनः विचार किया कि बात तो ठीक है | फिर यह निश्चय हुआ कि अब मेघराज हम लोगों कि सभा में नहीं आ सकेंगे |

मेघराज भी उठ खड़े हुए और उन्होंने हाथ जोड़कर कहा ‘देवताओं ! मेरी भी एक बात आप सुनें | यह बिलकुल ही सत्य है कि मैं समुद्र से सबके पापों को ले लेता हूं किन्तु मैं भी अपने
पास नहीं रखता हूं | देवताओं ने पूछा कि आप उन पापों का क्या करते हैं ?

इस पर मेघराज जी ने उत्तर दिया कि “मैं लोगों के पापों और कर्मों को इन्हीं पर बरसा देता हूँ|”

मित्रो, इस कहानी से आप क्या शिक्षा लेते हैं? कृपया लिखें ।


!!! गुरु बनना हंसी खेल नहीं !!!



एक महात्मा जी अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे | रास्ते में एक सांप घायल अवस्था में पड़ा हुआ था और उस पर तमाम चींटियाँ लग रही थी | सांप हिल सकता नहीं था बैचैन होकर अपना फन उठाता था फिर गिर जाता था |

महात्मा जी उसे देखकर रो पड़े | शिष्यों को समझ में नहीं आया | उन्होंने कहा कि महाराज जी आप क्यों रो रहे हैं ? महात्मा जी बोले कि कर्मों का ऐसा विधान है जिसे जीव अपनी अज्ञानता में नहीं समझ पाता है | यह सांप कभी गुरु बना था | महात्माओं की नक़ल की और इतने शिष्य बनाये | इसने शिष्यों से तरह तरह की तन मन धन की सेवा ली लेकिन उनकी आत्माओं का कल्याण नहीं कर सका | क्योंकि इसने अपनी आत्मा का भी कल्याण नहीं किया था | अब कर्मी के जाल में फंसकर वह गुरु सांप बना और उसके सारे शिष्य चींटियाँ बन गये हैं | अब ये चींटिया इस घायल सांप को काट रही हैं और कह रही हैं कि मेरी सेवाओं का बदला दो | तुमने मुझे क्यों धोखे में रक्खा , मेरा आत्म कल्याण नहीं किया और ये बेचारा सांप ऐसी अधोगति में पड़ा हुआ पीड़ा सह रहा है और कुछ कर नहीं पा रहा है |

महात्मा जी ने आगे कहा कि गुरु बनना कोई हंसी खेल नहीं है , सबसे ख़राब काम है | चेले बनाकर उनकी सेवाओं को लेकर अगर आत्म कल्याण उनका न किया तो वो आत्माएं अपना बदला मांगती है | गृहस्थों के खून पसीने की कमाई की रोटी खाकर जो साधू उनका कल्याण नहीं करता तो ये रोटियां उसके आँतों को फाड़ देती हैं |

!!! शिव को प्राणनाथ कहा गया है !!!


शिव को प्राणनाथ कहा गया है। शास्त्रों में बताई शिव की शक्तियों और शिव भक्ति की महिमा पर गौर करें तो यहां प्राण का संबंध मात्र जीवन से ही नहीं है, बल्कि जीवन से जुड़ी हर उन सुख-समृद्धि की कामनाओं से भी है, जो शिव भक्ति से सिद्ध होकर मन और जीवन की हर घड़ी में उत्साह, उमंग और ऊर्जा बनाएं रखती हैं।जीवन में ऐसे ही रूप में प्राणों का संचार करने वाली शिव भक्ति के लिए की कुछ विशेष घडिय़ा मंगलकारी मानी गई है। इनमें अष्टमी, चतुर्दशी, सोमवार आदि खास हैं।

विशेष तौर पर शास्त्रों में गुरुवार के साथ अष्टमी के संयोग में शिव पूजा में शमी पत्र का चढ़ावा धन व सौभाग्य की इच्छा जल्द पूरी करने वाली मानी गई है। क्योंकि शिव भक्ति सुख-सौभाग्य के स्वामी गुरु बृहस्पति को भी प्रसन्न करती है।

जानते हैं शिव भक्ति की सरल पूजा विधि के साथ

विशेष शमी अर्पण मंत्र -- गुरुवार व अष्टमी के योग में विशेष तौर पर शाम के वक्त शिवालय में तांबे के कलश में गंगाजल या पवित्र जल में गंगाजल, अक्षत, सफेद चंदन मिलाकर शिवलिंग पर ऊँ नम: शिवाय यह मंत्र बोलते हुए अर्पित करें।
- जल अर्पण के बाद शिव की अक्षत, रौली, बिल्वपत्र, सफेद वस्त्र, जनेऊ, घी की मिठाई के साथ शमी पत्र नीचे लिखे मंत्र बोल यश, धन व जाने-अनजाने पापों के नाश की कामना करते हुए चढ़ाएं -अमङ्गलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च।दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येऽहं शमीं शुभाम्।।-

जल अर्पण, पूजा व शमी पत्र चढ़ावे के बाद शिव की धूप, दीप व कर्पूर आरती कर प्रसाद ग्रहण करें।


!!! भगवान कार्तिकेय !!!



कार्तिकेय शिव पार्वती के पुत्र हैं तथा सदैव बालक रूप ही रहते हैं। परंतु उनके इस बालक स्वरूप का भी एक रहस्य है। इनका एक नाम स्कन्द भी है और इन्हें दक्षिण भारत में 'मुरुगन' भी कहा जाता है।


एक बार शंकर भगवान ने पार्वती के साथ जुआ खेलने की अभिलाषा प्रकट की। खेल में भगवान शंकर अपना सब कुछ हार गए। 

हारने के बाद भोलेनाथ अपनी लीला को रचते हुए पत्तो के वस्त्र पहनकर गंगा के तट पर चले गए। कार्तिकेय जी को जब सारी बात पता चली, तो वह माता पार्वती से समस्त वस्तुएं वापस लेने आए। इस बार खेल में पार्वती जी हार गईं तथा कार्तिकेय शंकर जी का सारा सामान लेकर वापस चले गए। अब इधर पार्वती भी चिंतित हो गईं कि सारा सामान भी गया तथा पति भी दूर हो गए। पार्वती जी ने अपनी व्यथा अपने प्रिय पुत्र गणेश को बताई तो मातृ भक्त गणोश जी स्वयं खेल खेलने शंकर भगवान के पास पहुंचे। गणेश जी जीत गए तथा लौटकर अपनी जीत का समाचार माता को सुनाया। इस पर पार्वती बोलीं कि उन्हें अपने पिता को साथ लेकर आना चाहिए था। गणेश जी फिर भोलेनाथ की खोज करने निकल पड़े। भोलेनाथ से उनकी भेंट हरिद्वार में हुई। 

उस समय भोले नाथ भगवान विष्णु व कार्तिकेय के साथ भ्रमण कर रहे थे। पार्वती से नाराज़ भोलेनाथ ने लौटने से मना कर दिया। भोलेनाथ के भक्त रावण ने गणेश जी के वाहन मूषक को बिल्ली का रूप धारण करके डरा दिया। मूषक गणेश जी को छोड़कर भाग गए। इधर भगवान विष्णु ने भोलेनाथ की इच्छा से पासा का रूप धारण कर लिया था। गणेश जी ने माता के उदास होने की बात भोलेनाथ को कह सुनाई। इस पर भोलेनाथ बोले कि हमने नया पासा बनवाया है, अगर तुम्हारी माता पुन: खेल खेलने को सहमत हों, तो मैं वापस चल सकता हूँ।
पार्वती का श्राप

गणेश जी के आश्वासन पर भोलेनाथ वापस पार्वती के पास पहुंचे तथा खेल खेलने को कहा। इस पर पार्वती हंस पड़ी व बोलीं ‘अभी पास क्या चीज़ है, जिससे खेल खेला जाए।’ यह सुनकर भोलेनाथ चुप हो गए। इस पर नारद जी ने अपनी वीणा आदि सामग्री उन्हें दी। इस खेल में भोलेनाथ हर बार जीतने लगे। एक दो पासे फैंकने के बाद गणेश जी समझ गए तथा उन्होंने भगवान विष्णु के पासा रूप धारण करने का रहस्य माता पार्वती को बता दिया। सारी बात सुनकर पार्वती जी को क्रोध आ गया। रावण ने माता को समझाने का प्रयास किया, पर उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तथा क्रोधवश उन्होंने भोलेनाथ को श्राप दे दिया कि गंगा की धारा का बोझ उनके सिर पर रहेगा। नारद जी को कभी एक स्थान पर न टिकने का अभिषाप मिला। भगवान विष्णु को श्राप दिया कि यही रावण तुम्हारा शत्रु होगा तथा रावण को श्राप दिया कि विष्णु ही तुम्हारा विनाश करेंगे। कार्तिकेय को भी माता पार्वती ने कभी जवान न होने का श्राप दे दिया।

पार्वती का वरदान
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इस पर सर्वजन चिंतित हो उठे। तब नारद जी ने अपनी विनोदपूर्ण बातों से माता का क्रोध शांत किया, तो माता ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। नारद जी बोले कि आप सभी को वरदान दें, तभी मैं वरदान लूंगा। पार्वती जी सहमत हो गईं। तब शंकर जी ने कार्तिक शुक्ल के दिन जुए में विजयी रहने वाले को वर्ष भर विजयी बनाने का वरदान मांगा। भगवान विष्णु ने अपने प्रत्येक छोटे- बड़े कार्य में सफलता का वर मांगा, परंतु कार्तिकेय जी ने सदा बालक रहने का ही वर मांगा तथा कहा, ‘मुझे विषय वासना का संसर्ग न हो तथा सदा भगवत स्मरण में लीन रहूं।’ अंत में नारद जी ने देवर्षि होने का वरदान मांगा। माता पार्वती ने रावण को समस्त वेदों की सुविस्तृत व्याख्या देते हुए सबके लिए तथास्तु कहा।

षण्मुख, द्विभुज, शक्तिघर, मयूरासीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की आराधना दक्षिण भारत में बहुत प्रचलित हैं ये ब्रह्मपुत्री देवसेना-षष्टी देवी के पति होने के कारण सन्तान प्राप्ति की कामना से तो पूजे ही जाते हैं, इनको नैष्ठिक रूप से आराध्य मानने वाला सम्प्रदाय भी है।
तारकासुर के अत्याचार से पीड़ित देवताओं पर प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने पार्वती जी का पाणिग्रहण किया। भगवान शंकर भोले बाबा ठहरे। उमा के प्रेम में वे एकान्तनिष्ठ हो गये। अग्निदेव सुरकार्य का स्मरण कराने वहाँ उज्ज्वल कपोत वेश से पहुँचे। उन अमोघ वीर्य का रेतस धारण कौन करे? भूमि, अग्नि, गंगादेवी सब क्रमश: उसे धारण करने में असमर्थ रहीं। अन्त में शरवण (कास-वन) में वह निक्षिप्त होकर तेजोमय बालक बना। कृत्तिकाओं ने उसे अपना पुत्र बनाना चाहा। बालक ने छ: मुख धारण कर छहों कृत्तिकाओं का स्तनपान किया। उसी से षण्मुख कार्तिकेय हुआ वह शम्भुपुत्र। देवताओं ने अपना सेनापतित्व उन्हें प्रदान किया। तारकासुर उनके हाथों मारा गया।

स्कन्द पुराण के मूल उपदेष्टा कुमार कार्तिकेय (स्कन्द) ही हैं। समस्त भारतीय तीर्थों का उसमें माहात्म्य आ गया है। पुराणों में यह सबसे विशाल है।

स्वामी कार्तिकेय सेनाधिप हैं। सैन्यशक्ति की प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन इनकी कृपा से सम्पन्न होता है। ये इस शक्ति के अधिदेव हैं। धनुर्वेद पद इनकी एक संहिता का नाम मिलता है, पर ग्रन्थ प्राप्य नहीं है।
संस्कृत ग्रंथ अमरकोष के अनुसार कार्तिकेय के निम्न नाम हैं:

भूतेश
भगवत्
महासेन
शरजन्मा
षडानन
पार्वतीनन्दन
स्कन्द
सेनानी
अग्निभू
गुह
बाहुलेय
तारकजित्
विशाख
शिखिवाहन
शक्तिश्वर
कुमार
क्रौञ्चदारण

आंवले के प्रयोग - 2 (द्वितीय भाग)



वमन (उल्टी) : -* हिचकी तथा उल्टी में आंवले का 10-20 मिलीलीटर रस, 5-10 ग्राम मिश्री मिलाकर देने से आराम होता है। इसे दिन में 2-3 बार लेना चाहिए। केवल इसका चूर्ण 10-50 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ भी दिया जा सकता है।


* त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) से पैदा होने वाली उल्टी में आंवला तथा अंगूर को पीसकर 40 ग्राम खांड, 40 ग्राम शहद और 150 ग्राम जल मिलाकर कपड़े से छानकर पीना चाहिए।


*आंवले के 20 ग्राम रस में एक चम्मच मधु और 10 ग्राम सफेद चंदन का चूर्ण मिलाकर पिलाने से वमन (उल्टी) बंद होती है।

* आंवले के रस में पिप्पली का बारीक चूर्ण और थोड़ा सा शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आने के रोग में लाभ होता है।

* आंवला और चंदन का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर 1-1 चम्मच चूर्ण दिन में 3 बार शक्कर और शहद के साथ चाटने से गर्मी की वजह से होने वाली उल्टी बंद हो जाती है।

* आंवले का फल खाने या उसके पेड़ की छाल और पत्तों के काढ़े को 40 ग्राम सुबह और शाम पीने से गर्मी की उल्टी और दस्त बंद हो जाते हैं।

* आंवले के रस में शहद और 10 ग्राम सफेद चंदन का बुरादा मिलाकर चाटने से उल्टी आना बंद हो जाती है।

संग्रहणी : -मेथी दाना के साथ इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर 10 से 20 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार पिलाने से संग्रहणी मिट जाती है।

"मूत्रकृच्छ (पेशाब में कष्ट या जलन होने पर) : -* आंवले की ताजी छाल के 10-20 ग्राम रस में दो ग्राम हल्दी और दस ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से मूत्रकृच्छ मिटता है।

* आंवले के 20 ग्राम रस में इलायची का चूर्ण डालकर दिन में 2-3 बार पीने 
से मूत्रकृच्छ मिटता है।

विरेचन (दस्त कराना) : -रक्त पित्त रोग में, विशेषकर जिन रोगियों को विरेचन कराना हो, उनके लिए आंवले के 20-40 मिलीलीटर रस में पर्याप्त मात्रा में शहद और चीनी को मिलाकर सेवन कराना चाहिए।

अर्श (बवासीर) : -* आंवलों को अच्छी तरह से पीसकर एक मिट्टी के बरतन में लेप कर देना चाहिए। फिर उस बरर्तन में छाछ भरकर उस छाछ को रोगी को पिलाने से बवासीर में लाभ होता है।

* बवासीर के मस्सों से अधिक खून के बहने में 3 से 8 ग्राम आंवले के चूर्ण का सेवन दही की मलाई के साथ दिन में 2-3 बार करना चाहिए।

* सूखे आंवलों का चूर्ण 20 ग्राम लेकर 250 ग्राम पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रात भर भिगोकर रखें। दूसरे दिन सुबह उसे हाथों से मलकर छान लें तथा छने हुए पानी में 5 ग्राम चिरचिटा की जड़ का चूर्ण और 50 ग्राम मिश्री मिलाकर पीयें। इसको पीने से बवासीर कुछ दिनों में ही ठीक हो जाती है और मस्से सूखकर गिर जाते हैं।

* सूखे आंवले को बारीक पीसकर प्रतिदिन सुबह-शाम 1 चम्मच दूध या छाछ में मिलाकर पीने से खूनी बवासीर ठीक होती है।

* आंवले का बारीक चूर्ण 1 चम्मच, 1 कप मट्ठे के साथ 3 बार लें।

* आंवले का चूर्ण एक चम्मच दही या मलाई के साथ दिन में तीन बार खायें।

शुक्रमेह : -धूप में सुखाए हुए गुठली रहित आंवले के 10 ग्राम चूर्ण में दुगनी मात्रा में मिश्री मिला लें। इसे 250 ग्राम तक ताजे जल के साथ 15 दिन तक लगातार सेवन करने से स्वप्नदोष (नाइटफॉल), शुक्रमेह आदि रोगों में निश्चित रूप से लाभ होता है।

खूनी अतिसार (रक्तातिसार) : -यदि दस्त के साथ अधिक खून निकलता हो तो आंवले के 10-20 ग्राम रस में 10 ग्राम शहद और 5 ग्राम घी मिलाकर रोगी को पिलायें और ऊपर से बकरी का दूध 100 ग्राम तक दिन में 3 बार पिलाएं।

रक्तगुल्म (खून की गांठे) : -आंवले के रस में कालीमिर्च डालकर पीने से रक्तगुल्म खत्म हो जाता है।

प्रमेह (वीर्य विकार) : -* आंवला, हरड़, बहेड़ा, नागर-मोथा, दारू-हल्दी, देवदारू इन सबको समान मात्रा में लेकर इनका काढ़ा बनाकर 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम प्रमेह के रोगी को पिला दें।

* आंवला, गिलोय, नीम की छाल, परवल की पत्ती को बराबर-बराबर 50 ग्राम की मात्रा में लेकर आधा किलो पानी में रातभर भिगो दें। इसे सुबह उबालें, उबलते-उबलते जब यह चौथाई मात्रा में शेष बचे तो इसमें 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट होती है।

पित्तदोष : -आंवले का रस, शहद, गाय का घी इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर आपस में घोटकर लेने से पित्त दोष तथा रक्त विकार के कारण नेत्र रोग ठीक होते हैं|

_______________________________@भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है|



!!! औषधि सतावरी(Asparagus) चमत्कार !!!



सतावरी

सतावरी एक चमत्कारीक औषधि है जिसका भारत में हजारों वर्षो से आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्रयोग किया जाता रहा है। सतावरी एक प्राकृतिक बेल है जो औषधीय प्रयोग के साथ साथ हर घर, बगीचे में सुन्दरता के लिए और बंजड पड़े जंगल में भी पाई जाती है, 

सतावरी की जड़ें पत्ते व नई कोपले सब हमारे लिए बहुत उपयोगी होती हैं।लेकिन जड़ का महत्व इन सब से अधिक है। अधिकतर जड़ों को ही औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता हैं। सतावरी का स्वाद फीका होता है। नई निकली कोपलो से स्वादिस्ट सब्जी बनाई जाती है। सतावरी के फल मटर जैसे गोल लाल रंग के होते हैं। 

इस की जड़े लम्बी गोल, उंगली की तरह मोटी मटमैले रंग की होती हैं। सतावरी शीतल व स्निग्ध होती है। शारीरिक ताकत के लिए, कुशाग्र बुद्धि के लिए, स्मरण शक्ति व एकाग्रता बढ़ाने के लिए, पेट की जलन और आंखों के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। स्त्री के स्तनों में दूध की वृद्धि के लिए स्त्री प्रजनन तंत्र की मजबूती के लिए यह एक बेहतर टानिक है। 


सतावरी वीर्यवर्धक, बलवर्धक, ठंडा, दूध को बढ़ाने वाली, खून को साफ करने वाली, तथा सूजन आदि को दूर करता है।यह दस्त तथा वातपित्त, गर्भ के विकार श्वेत प्रदर प्रदर रोग नपुंसकता स्वप्नदोष मूत्राघात मूत्रविकार दस्त बुखार मिर्गी अम्लपित्त विषनाशक बवासीर खूनी दस्त हिस्टीरिया श्वास मूर्छा अनिंद्रा सिर का दर्द सूखी खांसी पेट-दर्द ,पक्षाघात सर-दर्द, गठिया, घुटनो का दर्द ,पैर के तलवों में जलन, गर्दन अकड़ना, साइटिका, हाथों में दर्द ,पेशाब संबन्धी रोग, आंतरिक चोट के अलावा शुक्र-वर्धन ,यौन -शक्ति बढ़ाने, महिलाओं के बाँझपन के इलाज के लिए किया जाता है आयुर्वेदिक दवाओं सतावरी धृत, नारी वटी नारायण तेल, विष्णु तेल, सतावरयादी चुर्णू, शत मूल्यादि लौह आदि सतावरी से ही बनती हैं।



एक व्यक्ति द्वारा सतावरी की जड का रस 10 से 20 मिलीलीटर इसकी जड का चूर्ण 3 से 6 ग्राम और जड़ का काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर तक की मात्रा में लिया जाना उपयुक्त होता है।



  1. 5 काली मिर्चों को पीस ले और दो चम्मच सतावरी चूर्ण के साथ मिला ले इसे दो गिलास पानी में उबाल ले इसे छान कर दिन में दो बार ले ने से जुखाम ठीक हो जाता है।
  2. सामान मात्रा में सतावरी और अड़ूसे के पत्ते और मिश्री को पानी में उबालकर दिन में 3 बार पीने से सूखी खांसी ठीक हो जाती है।
  3. सतावरी का काढ़ा बनाए इसमें 1 ग्राम पीपल का चूर्ण मिलाए रोगी को दिन में 2-3 बार पिलाये इस से कफ साफ़ होगा और खांसी भी ठीक हो जाएगी।
  4. 10 ग्राम सतावरी पिसी हुई को पांच काली मिर्च के साथ मिलाकर पानी में घोट कर सुबह-शाम पिया जायें तो जुकाम ठीक हो जाता है।
  5. सतावरी की ताजी जड़ का रस और बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर उबाल ले ओर इस तेल से सिर पर मालिश करने से सिर का दर्द और आधे सिर का दर्द खत्म हो जाता है।
  6. एक गिलास दूध में 25 ग्राम सतावरी चूर्ण और अदरक का रस मिलाकर उबाले इसे छान कर रोगी को दिन में 2 बार देने से आंखों के सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
  7. सतावरी की नए कोपल की सब्जी देसी घी में बनाकर खाने से रतौंधी (रात का अंधापन) समाप्त होता है।
  8. गीली सतावरी को दूध के साथ पीसकर व छानकर दिन में 3-4 बार पीलाने से खूनी दस्त बंद हो जाते हैं।
  9. सतावरी की ताजा जड़ का रस शहद के साथ मिलाकर दिन 2 बार लेने से एसिडिटी का रोग दूर हो जाता है।
  10. गठिया रोग के लिए हर रोज घुटनों पर सतावरी के तेल की मालिश करने से घुटनों का दर्द ठीक होता है।
  11. सतावरी की खीर में घी मिलाकर खाने से अनिंद्रा की समस्या दूर होती है ।
  12. 2 चम्मच सतावरी की जड़ का रस 1 कप दूध के साथ सुबह-शाम सेवन से कुछ महीनो मे ही मिर्गी के रोग मे सुधार आता है।
  13. सतावरी के पत्तों का चूर्ण बनाकर दुगने घी में पकाकर घावों पर लगाने से पुराना घाव भी ठीक हो जाता है।
  14. 2 -2 चम्मच सतावरी और गिलोय के रस में शक्कर मिलाकर खाने से वात-ज्वर खत्म हो जाता है।
  15. या सतावरी और गिलोय के 50 से 60 ग्राम काढ़े में शहद मिलाकर पीने से भी ज्वर खत्म हो जाता है।
  16. धातु वृद्धी के लिए समान मात्रा में सतावरी, अश्वगंधा ,कौंच के बीज, गोखरू और आंवला मिलकर चूर्ण बना लें।एक छोटी चम्मच सुबह-शाम गाय के दूध या पानी के साथ ले। और 10 ग्राम सतावरी चूर्ण दूध मिश्री के साथ मिला कर पीने से वीर्य का पतलापन दूर हो जाता है।
  17. 2 चम्मच सतावरी चूर्ण में शक्कर मिलें दूध के साथ सुबह-शाम पीने से नपुंसकता दूर होती है।
  18. या सतावरी और असगन्ध के 5 ग्राम चूर्ण को दूध में उबाल कर पीने से नपुंसकता ठीक हो जाती है।
  19. 5 ग्राम सतावरी को एक गिलास दूध में धीमी आंच पर मिश्री मिलाकर 5 मिनट तक उबालें, इस दूध को पीने से ही कुछ महीनों में नपुंसकता बिलकुल ठीक हो जाती है। और सहवास की कमजोरी दूर हो जाती है।
  20. शारीरिक ताकत के लिए 250 ग्राम सतावरी की जड़ का चूर्ण और बराबर की मिश्री को पीसकर और एक चम्मच मिश्रण को एक गिलास गुनगुने दूध के साथ सुबह-शाम लेने से स्वप्नदोष का रोग दूर होकर शरीर मजबूत बनता है।
  21. ताजा सतावरी की जड़ को बीच से चीरकर तिनके को निकाल दें और इसे 200 ग्राम दूध और मिश्री के साथ पिस कर खाएं तो भी धातु में वृद्धि होगी। और दूध के साथ इसके चूर्ण को पका कर खाने से संभोग शक्ति बढ़ती है।
  22. सतावरी या आंवला का रस शहद में मिला कर पीने से जल्द ही वीर्य शुद्ध होने लगता है। अथवा गोखुरू का काढ़ा बनाकर व शहद मिला कर पीने से भी वीर्य शुद्ध हो जाता है।
  23. गोखरू और सतावरी का शर्बत बनाकर पीने से मूत्रविकार ठीक हो जाते हैं। पेशाब के साथ धातु का आना भी बंद हो जाता है।
  24. 25 ग्राम सतावरी के रस में बराबर का गाय का दूध मिलाकर पीने से गुर्दे की पथरी टूट टूट कर पेशाब के रस्ते बाहर निकल जाती है।
  25. 20 ग्राम गोखरू और बराबर का सतावरी चूर्ण को 2 गिलास पानी में उबालकर, छानकर उसमे 10 ग्राम मिश्री और 2 चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से रोगी की पेशाब की रूकावट और जलन खत्म हो जाती है।
  26. 5 ग्राम सतावरी के चूर्ण को दूध के साथ रोजाना सेवन करने से बवासीर के मस्से ठीक हो जाते हैं।
  27. 2 चम्मच सतावरी की ताजा जड़ का रस150 ग्राम दूध के साथ सुबह-शाम पीने से हिस्टीरिया ठीक हो जाता है।
  28. एक ग्राम सतावरी चूर्ण में समान मात्रा में घी मिलाकर दूध में उबालकर पीने से मूर्च्छा अम्लपित, रक्त पित, वात विकार, दमा और तृष्णा आदि रोग खत्म हो जाते है।वात रोग के रोगी समान मात्रा में सतावरी और पीपल को साथ साथ पीसकर छान ले और नियमित एक चम्मच चूर्ण सुबह दूध से ले वात रोगों में लाभ होता है।
  29. सतावरी की जड़ का चूर्ण और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण1चम्मच दिन में 3 बार 1 कप दूध के साथ पिलाने से न केवल स्त्रियों के स्तनों में दूध की कमी दूर होगी, बल्कि मासिक स्राव के बाद आई कमजोरी भी दूर होगी।
  30. सतावरी को गाय के दूध में पीस कर सेवन करने से स्त्री का दूध मीठा और पौष्टिक हो जाता है।समान मात्रा में सतावरी, सौंफ, बिदारीकंद को पीसकर 5 ग्राम दूध या पानी से लेने से महिलाओं की छाती का जमा हुआ दूध उतरने लगता है।
  31. सतावरी और कमलनाल को समान मात्रा में लेकर पीसे और गाय के दूध के साथ सेवन करे इससे सातवें महीने में गर्भ के रोग नष्ट होते हैं।
  32. शहद के साथ सतावरी का चूर्ण सेवन करने से या शतावर के रस को शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 चम्मच सुबह शाम सेवन करने से प्रदर रोग मे आराम आता है।
  33. या सतावरी चूर्ण को एक गिलास दूध या पानी के साथ मिलाकर उबाले आधा रह जाने पर खांड मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर रोग ठीक हो जाता है।
  34. रक्तपित्त के लिए 250 मिलीलीटर दूध में सतावरी की जड़ तथा गोखरू का 5 -5 ग्राम चूर्ण मिला कर आधा रह जाने तक उबाले यह दूध रोगी को दिन में 2 बार दे रक्तपित्त ठीक होगा।
  35. अथवा एक किलो पानी में 15 -15 ग्राम गोखरू और सतावरी की जड़ तथा एक गिलास गाय का दूध मिला कर आधा रह जाने तक उबाले और रोगी स्त्री को दिन में 2 – 3 बार पिलाये योनी से रक्त स्राव रुक जाएगा।
  36. विशेष:- एक चम्मच का अर्थ है चाय का छोटा चम्मच (5 ग्राम) एक गिलास यानी के 250 ग्राम( दूध पानी आदि)
  37. सतावरी सिर में दर्द पैदा करता है। लेकिन शहद के साथ सतावरी का सेवन करने से इसका यह दोष खत्म हो जाता है।


!!! अंडे का सच और रहस्य !!!


आजकल मुझे यह देख कर अत्यंत खेद और आश्चर्य होता है की अंडा शाकाहार का पर्याय बन चुका है ,...खैर मै ज्यादा भूमिका और प्रकथन में न जाता हुआ सीधे तथ्य पर आ रहा हूँ

मादा स्तनपाईयों (बन्दर बिल्ली गाय मनुष्य) में एक निश्चित समय के बाद अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है उदारहरणतः मनुष्यों में यह महीने में एक बार,.. चार दिन तक होता है जिसे माहवारी या मासिक धर्म कहते है ..उन दिनों में स्त्रियों को पूजा पाठ चूल्हा रसोईघर आदि से दूर रखा जाता है ..यहाँ तक की स्नान से पहले किसी को छूना भी वर्जित है कई परिवारों में ...शास्त्रों में भी इन नियमों का वर्णन है

इसका वैज्ञानिक विश्लेषण करना चाहूँगा ..मासिक स्राव के दौरान स्त्रियों में मादा हार्मोन (estrogen) की अत्यधिक मात्रा उत्सर्जित होती है और सारे शारीर से यह निकलता रहता है ..


इसकी पुष्टि के लिए एक छोटा सा प्रयोग करिये ..एक गमले में फूल या कोई भी पौधा है तो उस पर रजस्वला स्त्री से दो चार दिन तक पानी से सिंचाई कराइये ..वह पौधा सूख जाएगा ,

अब आते है मुर्गी के अण्डे की ओर

१) पक्षियों (मुर्गियों) में भी अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है अंतर केवल इतना है की वह तरल रूप में ना हो कर ठोस (अण्डे) के रूप में बाहर आता है ,

२) सीधे तौर पर कहा जाए तो अंडा मुर्गी की माहवारी या मासिक धर्म है और मादा हार्मोन (estrogen) से भरपूर है और बहुत ही हानिकारक है

३) ज्यादा पैसे कमाने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर आजकल मुर्गियों को भारत में निषेधित ड्रग ओक्सिटोसिन(oxyt ocin) का इंजेक्शन लगाया जाता है जिससे के मुर्गियाँ लगातार अनिषेचित (unfertilized) अण्डे देती है

४) इन भ्रूणों (अन्डो) को खाने से पुरुषों में (estrogen) हार्मोन के बढ़ने के कारण कई रोग उत्पन्न हो रहे है जैसे के वीर्य में शुक्राणुओ की कमी (oligozoospermi a, azoospermia) , नपुंसकता और स्तनों का उगना (gynacomastia), हार्मोन असंतुलन के कारण डिप्रेशन आदि ...

वहीँ स्त्रियों में अनियमित मासिक, बन्ध्यत्व , (PCO poly cystic oveary) गर्भाशय कैंसर आदि रोग हो रहे है

५) अन्डो में पोषक पदार्थो के लाभ से ज्यादा इन रोगों से हांनी का पलड़ा ही भारी है .

६) अन्डो के अंदर का पीला भाग लगभग ७० % कोलेस्ट्रोल है जो की ह्रदय रोग (heart attack) का मुख्य कारण है

7) पक्षियों की माहवारी (अन्डो) को खाना धर्म और शास्त्रों के विरुद्ध , अप्राकृतिक , और अपवित्र और चंडाल कर्म है

8) अन्डो में से चूजा ( मुर्गी-मुर्गा ) बहार आता है ,एक निश्चित समय पर

और चूजो में रक्त-मांस-हड्डी -मज्जा-वीर्य-रस आदि होता है,चाहे उसे कही से भी काँटों,

अन्डो में से घ्रणित द्रव्य निकलता है,जब उसे तोड़ते हो,दोनों परिस्तिथियों में वह रक्त ( जीवन ) का प्रतिक है- मतलब अंडा खाना मासांहार ही है..

इसकी जगह पर आप दूध पीजिए जो के पोषक , पवित्र और शास्त्र सम्मत भी है |


10 December 2012

!!! ‎'गुरु बिनु ज्ञान कहाँ जग माही' !!!


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'अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींचकर शक्ति में निर्मित करते हैं।' महर्षि अरविंद का उक्त कथन शिक्षक की गरिमा
के सर्वथा अनुकूल ही है। शिक्षक राष्ट्र निर्माता है और राष्ट्र के निर्माण की प्रत्येक प्रक्रिया में शिक्षकीय महत्व को नकारा नहीं जा सकता ।

र्वरायुक्त पारिवारिक धरातल पर शिक्षक संस्कारित ज्ञान की फसल बोता है और स्वच्छ एवं स्वस्थ क्षेत्रीय वातावरणीय जलवायु में श्रेष्ठता रूपी नागरिक की उन्नत उपज देता है। इस दृष्टि में शिक्षक संस्कारों का पोषक है। सही अर्थों में राष्ट्र की संस्कृति का कुशल शिल्पी है, जो संगठित, धैर्यवान, संस्कारवान, विवेकवान युवा शक्ति का निर्माण करता है।

शिक्षक संस्कृति से तादात्म्य स्थापित कर शिक्षार्थी में ज्ञान के गरिमामय पक्ष का बीजारोपण करता है। फलस्वरूप शिक्षार्थी में शिक्षा के प्रति गहन अभिरुचि जाग्रत होती है। शिक्षक वह सेतु है, जो शिक्षार्थी को शिक्षा के उज्ज्वल पक्षों से जोड़ता है। संस्कारित शिक्षार्थी शिक्षा के उपवन को अपने ज्ञान-पुष्प की सुरभि से महकाते हैं तथा परिवार, समाज एवं राष्ट्र को गौरवान्वित करते हैं।

उत्तम शिक्षा, योग्य शिक्षक और अनुशासित शिक्षार्थी ही संस्कारित, सुसभ्य और स्वच्छ-स्वस्थ समाज का निर्माण करने का सामर्थ्य रखते हैं। संस्कृति का उद्गम ही श्रेष्ठ संस्कारोंके गर्भ से होता है, जिससे सामाजिक गतिविधियों को सांस्कृतिक शक्ति का संबल प्राप्त होता है।

राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका का कोई सानी नहीं है। विद्यार्थियों में स्नेह, सद्भाव, भ्रातृत्व भाव, नैतिकता, उदारता, अनुशासन जैसे चारित्रिक सद्गुणों की समष्टि गुरु के माध्यम से ही संभव होती है। समाज-जीवन में स्नेह एवं सद्भाव तथा सामंजस्य की सद्प्रेरणा गुरु से ही प्राप्त होती है क्योंकि शिक्षा का मूल उद्देश्य ही चरित्र निर्माण करना है। शिक्षक शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास का हरसंभव प्रयास करता है। शिक्षक को एक ऐसा दीपक माना गया है जो सेवापर्यंत दीप्तमान रहते हुए विद्यार्थियों के प्रगतिपथ को अपने ज्ञान का आलोक प्रदान करता रहता है।



!!! सरस्वती नदी की कहानी !!!


विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी प्राचीन भारत की जीवनधारा थी। वैदिक काल में वह सदानीरा महानदी थी, जो हिमालय से अवतरित होकर सागर में समाहित होती थी। प्राचीन ऋषि-महर्षियों को वेदों जैसे अनमोल ग्रंथों की रचना करने के लिए प्रेरित करने वाली सरस्वती, महाभारत की भी साक्षी रही थी। उत्तर महाभारत काल में उसके जल स्तर में कमी होने लगी। पौराणिक काल में वह पवित्र सरोवरों का रूप धारण कर लघुरूपधारिणी वंदनीय नदी बनकर रह गयी। कालांतर में सरस्वती जलशून्य होकर विस्मृत हो गयी।

कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि सरस्वती एक काल्पनिक नदी है, इस नाम की न कोई नदी है और न थी। यह सत्य है कि सरस्वती नदी अब अपने मूल रूप में नहीं है। लेकिन प्रमाणों के अभाव में सरस्वती नदी के अस्तित्व को नकार देना मूर्खता है। 

प्रमाणों को खोज पाने में मिली असफलता से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि सरस्वती काल्पनिक नदी है। दुर्भाग्यवश हम इन बुद्धिजीवियों की बातों को सत्य मानकर सत्य की खोज करना ही छोड़ देते हैं। सन 2002 तक सरस्वती नदी की खोज के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए। पिछले कुछ वर्षों में हुए अनुसंधानों से पता चला है कि सरस्वती नदी हिमालय के रुपिन-सुपिन ग्लेशियरों से निकल कर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा गुजरात से होती हुई अरब सागर तक बहती थी। आज से लगभग चार हज़ार वर्ष पहले यह जलशून्य हो गई। सरस्वती की खोज एक कठिन कार्य है क्योंकि लम्बा समय होने के कारण अधिकतर प्रमाण नष्ट हो गए हैं। लेकिन इससे हताश होकर हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर की खोज करना नहीं छोड सकते। अगर हम इन बुद्धिजीवियों की बात मानकर सत्य की खोज करना छोड़ देते तो महाभारत में वर्णित द्वारका नगरी को भी कभी न खोज पाते। काश विलुप्त सरस्वती की जीवनगाथा में अंतर्निहित भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के उदय की गाथा को ये बुद्धिजीवी समझ पाते।

भारत के अधिकांश प्राचीन ग्रंथों में सरस्वती नदी का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, मनुस्मृति और महाभारत में सरस्वती का वर्णन किया गया है।

ऋग्वेद में सरस्वती की सर्वाधिक जानकारी है। सरस्वती की स्तुति में 75 मन्त्र हैं, जो ऋग्वेद के नौ मण्डलों में समाहित हैं। इन मन्त्रों की रचना विभिन्न ऋषियों ने काल एवं परिस्थितियों के अनुरूप की। ऋग्वेद ७:९५:२ में कहा गया है, " एकमेव चैतन्यमयी पवित्र सरस्वती नदी पर्वतों से अवतरित होकर सागर में समाहित होती है। वह इस भूलोक में राजा नहुष की प्रजा को पौष्टिक तत्त्व, दूध एवं घी प्रदान करती है"। ऋग्वेद २:४१:१६ में स्तुति की गयी है, " हे सरस्वती! आप माताओं में श्रेष्ठ माता, नदियों में उत्तम महानदी और देवियों में अग्रगण्य देवी हो। हे माता ! हम सब अज्ञानी हैं। आप हमें ज्ञान प्रदान करें।" ऋग्वेद के मन्त्र २:४१:१७, १८ में वर्णन मिलता है कि सरस्वती माता से सुखमय जीवन का आश्रय प्राप्त होता है। साथ ही वे अन्न तथा बल प्रदान कर सत्य के मार्ग पर चलने वाली हैं। ऋग्वेद मन्त्र ६:६१:१०,१२; ७:३६:६ में सरस्वती को सात बहनों वाली और सिन्धु नदी की माता कहा गया है। इन मंत्रो से प्रकट होता है कि ऋग्वेदिक काल में सरस्वती सदानीरा महानदी थी, जो हिमालय की हिमाच्छादित शिखाओं से अवतरित होकर आज के पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, सिंध प्रदेश व गुजरात क्षेत्र को सिंचित कर शस्य-श्यामला बनती थी। इस सन्दर्भ में ऋग्वेद मन्त्र १०:७५:५ एवं ३:२३:४ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शतुद्री (सतलज), परुशणी (रावी), असिक्नी (चेनाब), वितस्ता, आर्जीकीया (व्यास) एवं सिन्धु, पंजाब की ये सभी नदियाँ सरस्वती की सहायक नदियाँ थीं।

मनुस्मृति ३:१७ के अनुसार "देवनदी सरस्वती व दृषद्वती के मध्य देवताओं द्वारा निर्मित जो भूप्रदेश है उसे ब्रह्मावर्त कहते हैं"। स्पष्टः ब्रह्मावर्त का निर्माण सरस्वती और दृषद्वती द्वारा संचित मृदा से हुआ होगा। यही स्थल महाभारत काल में कुरुक्षेत्र कहलाया।

ब्राह्मण ग्रंथों में सरस्वती नदी के शिथिल होकर सर्पाकार मार्ग से पश्चिम दिशा में बहने का वर्णन मिलता है। ताण्डय ब्राह्मण २५:१०:११,१२ मन्त्र सरस्वती नदी के वृद्धावस्था में प्रवेश होने का संकेत करते हैं। इन ग्रंथों में पहली बार सरस्वती के उद्गम स्थल प्लक्षप्रसवण एवं विनशन, राजस्थान के मरुस्थल का वह स्थान जहाँ सरस्वती विलुप्त हुई, का उल्लेख मिलता है। इन मन्त्रों से ज्ञात होता है कि सरस्वती का उदय हिमालय से होता था। ब्राह्मण काल में सरस्वती राजस्थान के मरुस्थल में विनशन में आकर सूख चुकी थी।

इसी प्रकार महाभारत और पुराणों में सरस्वती का वर्णन किया गया है।

पिछले कुछ वर्षों में उपग्रह से लिए गए चित्रों के माध्यम से वैज्ञानिकों ने एक ऐसी विशाल नदी के प्रवाह-मार्ग का पता लगा लिया है जो किसी समय पर भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में बहती थी। उपग्रह से लिए गए चित्र दर्शाते हैं कि कुछ स्थानों पर यह नदी आठ किलोमीटर चौड़ी थी और कि यह चार हज़ार वर्ष पूर्व सूख गई थी। किसी प्रमुख नदी के किनारे पर रहने वाली एक विशाल प्रागैतिहासिक सभ्यता की खोज ने इस प्रबल होते आधुनिक विश्वास को और पुख़्ता कर दिया है कि सरस्वती नदी अन्ततः मिल गई है। इस नदी के प्रवाह-मार्ग पर एक हज़ार से भी अधिक पुरातात्त्विक महत्व के स्थल मिले हैं और वे ईसा पूर्व तीन हज़ार वर्ष पुराने हैं। इनमें से एक स्थल उत्तरी राजस्थान में प्रागैतिहासिक शहर कालीबंगन है। इस स्थल से कांस्य-युग के उन लोगों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी का ख़ज़ाना मिला है जो वास्तव में सरस्वती नदी के किनारों पर रहते थे। पुरातत्त्वविदों ने पाया है कि इस इलाक़े में पुरोहित, किसान, व्यापारी तथा कुशल कारीगर रहा करते थे। इस क्षेत्र में पुरातत्त्वविदों को बेहतरीन क़िस्म की मोहरें भी मिली हैं जिन पर लिखाई के प्रमाण से यह संकेत मिलता है कि ये लोग साक्षर थे। लेकिन दुर्भाग्यवश इन मोहरों की गूढ़-लिपि का अर्थ नहीं निकाला जा सका है। आज सिंधु घाटी की सभ्यता प्राचीनतम सभ्यता जानी जाती है। वास्तव में यह सभ्यता एक बहुत बड़ी सभ्यता का अंश है, जिसके अवशिष्ट चिन्ह उत्तर में हिमालय की तलहटी (मांडा) से लेकर नर्मदा और ताप्ती नदियों तक और उत्तर प्रदेश में कौशाम्बी से गांधार (बलूचिस्तान) तक मिले हैं। अनुमानत: यह पूरे उत्तरी भारत में थी। यदि इसे किसी नदी की सभ्यता ही कहना हो तो यह उत्तरी भारत की नदियों की सभ्यता है। इसे कुछ विद्वान प्राचीन सरस्वती नदी की सभ्यता या फिर सरस्वती-सिन्धु सभ्यता कहते हैं। कालांतर में बदलती जलवायु और राजस्थान की ऊपर उठती भूमि के कारण सरस्वती नदी सूख गयी।


!!!! ठंड में रोजाना मूली खाने से ये 8 प्रॉब्लम्स जड़ से खत्म हो जाएंगी !!!


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मूली बहुत गुणकारी और सरलता से मिलने वाली सब्जी है। ठंड में रोजाना थोड़ी मूली को सलाद के रूप में लेना चाहिए 


क्योंकि इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, गन्धक, आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी होता है। मूली में विटामिन ए भी होता है। इसके अलावा भी ठंड के मौसम में सलाद के रूप में मूली खाने के अनेक फायदे आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ फायदों के बारे में

- मूली के रस में थोड़ा नमक और नीबू का रस मिलाकर नियमित रूप में पीने से मोटापा कम होता है और शरीर सुडौल बन जाता है।


- मूली के पत्ते काटकर नींबू निचोड़ के खाने से पेट साफ होता है व स्फूर्ति रहती है

- सुबह-सुबह मूली के नरम पत्तों पर सेंधा नमक लगाकर खाने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है।

- थकान मिटाने और अच्छी नींद लाने में भी मूली काफी फायदेमंद होती है।

- ब्लडप्रेशर के रोगियों के लिए मूली का सलाद के रूप में नियमित रूप से सेवन अच्छा माना गया है क्योंकि हाई ब्लड प्रेशर को शांत करने में मूली मदद करती है।

- पेट संबंधी रोगों में यदि मूली के रस में अदरक का रस और नीबू मिलाकर नियम से पियें तो भूख बढ़ती है। पेट के कीड़ों को नष्ट करने में भी कच्ची मूली फायदेमंद साबित होती है।

- मूली शरीर से कार्बन डाई ऑक्साइड निकालकर ऑक्सीजन प्रदान करती है। मूली हमारे दाँतों और हड्डियों को मजबूत करती है।

- मूली हमारे दांतों को मजबूत करती है तथा हड्डियों को शक्ति प्रदान करती है। मूली का ताजा रस पीने से मूत्र संबंधी रोगों में राहत मिलती है। पीलिया रोग में भी मूली लाभ पहुंचाती है।

___________________________@भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है|


09 December 2012

दिखावे पर मत जाओ अपनी अकल लगाओ!


चीनी, कैँडी और च्युइँगगम का प्रयोग बंद करो और यदि मीठा खाना ही है तो गुड़ खाओ! जानिए चीनी का प्रयोग कैसे हानिकारक है और गुड़ किस प्रकार लाभदायक है! पढ़िए और सोचिये !!!

1- चीनी मिलें हमेशा घाटे में रहती हैं। चीनी बनाना एक मँहगी प्रक्रिया है और हजारों करोड़ की सब्सिडी और चीनी के ऊँचे दामों के बावजूद किसानों को छह छह महीनों तक उनके उत्पादन का मूल्य नहीं मिलता है!

2-चीनी के उत्पादन से रोजगार कम होता है वहीं गुड़ के उत्पादन से भारत के तीन लाख से कहीं अधिक गाँवों में करोड़ों लोगों को रोजगार मिल सकता है।

3- चीनी के प्रयोग से डायबिटीज, हाइपोग्लाइसेमिया जैसे घातक रोग होते हैं!

4-चीनी चूँकि कार्बोहाइड्रेट होता है इसलिए यह सीधे रक्त में मिलकर उच्च रक्तचाप जैसी अनेक बीमारियों को जन्म देता है जिससे हर्ट अटेक का खतरा बढ़ जाता है!

5-चीनी का प्रयोग आपको मानसिक रूप से भी बीमार बनाता है। यहाँ पढ़ेंwww.macrobiotics.co.uk/sugar.htm

6-गुड़ में फाइबर और अन्य पौष्टिक तत्व बहुत अधिक होते हैं जो शरीर के बहुत ही लाभदायक है!

7-गुड़ में लौह तत्व और अन्य खनिज तत्व भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं!

8- गुड़ भोजन के पाचन में अति सहायक है। खाने के बाद कम से कम बीस ग्राम गुड़ अवश्य खाएँ। आपको कभी बीमारी नहीं होगी!

9-च्युइँगगम और कैँडी खाने से दाँत खराब होते हैं!

10-गुड़ के निर्माण की प्रक्रिया आसान है और सस्ती है जिससे देश को हजारों करोड़ रुपए का लाभ होगा और किसान सशक्त बनेगा!


जय हिंद! जय भारतवर्ष!! =





** कागज के टुकड़े **


एक बार एक बूढ़े आदमी ने अफवाह फैलाई कि उसके पड़ोस में रहने वाला नौजवान चोर है। यह बात दूर-दूर तक फैल गई। आसपास के लोग उस नौजवान से बचने लगे। नौजवान परेशान हो गया। कोई उस पर विश्वास ही नहीं करता था। तभी चोरी की एक वारदात हुई और शक उस नौजवान पर गया। उसे गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन कुछ दिनों के बाद सबूत के अभाव में वह निर्दोष साबित हो गया। निर्दोष साबित होने के बाद वह नौजवान चुप नहीं बैठा। उसने बूढ़े आदमी पर गलत आरोप लगाने के लिए मुकदमा दायर कर दिया।

अदालत में बूढ़े आदमी ने अपने बचाव में न्यायाधीश से कहा- मैंने जो कुछ कहा था वह एक टिप्पणी से ज्यादा कुछ नहीं था। किसी को नुकसान पहुंचाना मेरा मकसद नहीं था। न्यायाधीश ने बूढ़े आदमी से कहा- आप एक कागज के एक टुकड़े पर वो सब बातें लिखें जो आपने उस नौजवान बारे में कही थीं और जाते समय उस कागज के टुकडे़-टुकड़े करके घर के रास्ते पर फेंक दें। और कल फैसला सुनने के लिए आ जाएं। बूढ़े व्यक्ति ने वैसा ही किया। अगले दिन न्यायाधीश ने बूढ़े आदमी से कहा कि फैसला सुनने से पहले आप बाहर जाएं और उन कागज के टुकड़ों को जो आपने कल बाहर फेंक दिए थे, इकट्ठा कर ले आएं। बूढ़े आदमी ने कहा- मैं ऐसा नहीं कर सकता। उन टुकड़ों को तो हवा कहीं से कहीं उड़ा कर ले गई होगी। अब वे नहीं मिल सकेंगे। मैं कहां-कहां उन्हें खोजने के लिए जाऊंगा?

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¤¤ ज़िन्दगी का कड़वा सच ¤¤



एक भिखारी था| वह न ठीक से खाता था, न पीता था, जिस वजह से उसका बूढ़ा शरीर सूखकर कांटा हो गया था| उसकी एक-एक हड्डी गिनी जा सकती थी| 

उसकी आंखों की ज्योति चली गई थी| उसे कोढ़ हो गया था| बेचारा रास्ते के एक ओर बैठकर गिड़गिड़ाते हुए भीख मांगा करता था| एक युवक उस रास्ते से रोज निकलता था| भिखारी को देखकर उसे बड़ा बुरा लगता|


उसका मन बहुत ही दुखी होता| वह सोचता, वह क्यों भीख मांगता है? जीने से उसे मोह क्यों है? भगवान उसे उठा क्यों नहीं लेते?


एक दिन उससे न रहा गया| वहभिखारी के पास गया और बोला - "बाबा, तुम्हारी ऐसी हालत हो गई है फिर भी तुम जीना चाहते हो? 

तुम भीख मांगते हो, पर ईश्वर से यह प्रार्थना क्यों नहीं करते कि वह तुम्हें
अपने पास बुला ले?"

भिखारी ने मुंह खोला - "भैया तुम जो कह रहे हो, वही बात मेरे मन में भी उठती है| मैं भगवान से बराबर प्रार्थना करता हूं, पर वह मेरी सुनता ही नहीं| शायद वह चाहता है कि मैं इस धरती पर रहूं, जिससे दुनिया के लोग मुझे देखें और समझें कि एक दिन मैं भी उनकी ही तरह था, लेकिन वह दिन भी आ सकता है, जबकि वे मेरी तरह हो सकते हैं| इसलिए किसी को घमंड नहीं करना चाहिए|"


लड़का भिखारी की ओर देखता रह गया| उसने जो कहा था, उसमें
कितनी बड़ी सच्चाई समाई हुई थी| यह जिंदगी का एक कड़वा सच था, जिसे मानने वाले प्रभु की सीख भी मानते हैं|

कृपया सोने से पहले भगवान को एकबार सच्चे मन से याद करेँ। !!!!!


!!! ऐतिहासिक एवं भाषाई प्रमाण !!!





१००० ईसा पूर्व महाभारत में गुप्त और मौर्य कालीन राजाओं तथा जैन(१०००-७०० ईसा पूर्व) और बौद्ध धर्म(७००-२०० ईसा पूर्व) का भी वर्णन नहीं आता। 


साथ ही शतपथ ब्राह्मण (११०० ईसा पूर्व) एवं छांदोग्य-उपनिषद(१००० ईसा पूर्व) में भी महाभारत के पात्रों का वर्णन मिलता हैं। अतएव यह निश्चित तौर पर १००० ईसा पूर्व से पहले रची गयी होगी।

६००-४०० ईसा पूर्व पाणिनि द्वारा रचित अष्टाध्यायी(६००-४०० ईसा पूर्व) में महाभारत और भारत दोनों का उल्लेख हैं तथा इसके साथ साथ श्रीकृष्ण एवं अर्जुन का भी संदर्भ आता है अतएव यह निश्चित है कि महाभारत और भारत पाणिनि के काल के बहुत पहले से ही अस्तित्व में रहे थे।

प्रथम शताब्दी यूनान के पहली शताब्दी के राजदूत डियोक्ररायसोसटम (Dio Chrysostom) यह बताते है 
की दक्षिण-भारतीयों के पास एक लाख श्लोकों का एक ग्रंथ है, जिससे यह पता चलता है कि महाभारत पहली शताब्दी में भी एक लाख श्लोकों का था। महाभारत की कहानी को ही बाद के मुख्य यूनानी ग्रंथों इलियड और ओडिसी में बार-बार अन्य रुप से दोहराया गया, जैसे धृतराष्ट्र का पुत्र मोह, कर्ण-अर्जुन प्रतिसपर्धा आदि।

संस्कृत की सबसे प्राचीन पहली शताब्दी की एमएस स्पित्ज़र पाण्डुलिपि में भी महाभारत के १८ पर्वों की अनुक्रमणिका दी गयी है


, जिससे यह पता चलता है कि इस काल तक महाभारत १८ पर्वों के रुप में प्रसिद्ध थी, यद्यपि १०० पर्वों की अनुक्रमणिका बहुत प्राचीन काल में प्रसिद्ध रही होगी, क्योंकि वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना सर्वप्रथम १०० पर्वों में की थी, जिसे बाद में सूत जी ने १८ पर्वों के रुप में व्यवस्थित कर ऋषियों को सुनाया था।

______________________@भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है|


08 December 2012

!!! राम कथा और हनुमान की उपस्तिथि !!!



आज की इस विषम परिस्थिति में मनुष्य मात्र के लिए , विशेषतया युवकों एवं बालकों के लिए भगवन हनुमान की उपासना अत्यंत अवश्यक है I हनुमान जी बुधि -बल -शौर्य प्रदान करते हैं और उनके स्मरण मात्र से अनेक रोगों का प्रशमन होता है I मानसिक दुर्बलताओं के संघर्ष में उनसे सहायता प्राप्त होती है 

गोस्वामी तुलसीदास जी को श्री राम के दर्शन में उन्हीं से सहायता प्राप्त हुई थी I

वे आज जहाँ भी श्री राम कथा होती है , वहां पहुंचते हैं और मस्तक झुकाकर , रोमांच - कंटकित होकर , नेत्रों में अश्रू भरकर श्री राम कथा का सiदर श्रवण करते हैं I

हनुमान जी भगवत्त तत्व विज्ञानं , पराभक्ति और सेवा के ज्वलंत उधारण हैं 


07 December 2012

!!! फ़ूल और पत्थर की कहानी !!!



नदी किनारे एक गेंदे का पौधा उपज आया,कुछ दिनों बाद उसमें फ़ूल आ गया चहकता, खिलता हुआ फ़ूल नदी में पडे एक पत्थर को देख कर बोला -"मुझे तुम्हारी स्थिति पर बडा तरस आता है

दिन रात पानी के बहाव में घिसते जाते हो घिसते जाते हो ...

कैसा जीवन है तुम्हारा".

पत्थर ने कुछ नहीं कहा और बात आयी गयी हो गयी । कुछ दिन बाद वही फ़ूल एक पूजा की थाली में था और खुद को सोने के सिंहासन पर विराजमान शालिग्राम भगवान पर चढने के लिये तैय्यार था अचानक उसकी नजर शालिग्राम भगवान पर पडी और यह वही पत्थर था जिसके प्रति उसने हेय भावना रखी थी.

फूल मन मसोस कर रह गया और जब अगले दिन उसे शालिग्राम भगवान के चरणों से साफ़ किया जा रहा था तभी वह पत्थर जो शालिग्राम भगवान बन चुका था बोला -"मित्र पुष्प ! जीवन में जो घिस घिस कर परिष्कृत और परिमार्जित होते हैं

वहीं धन्यता की सीढियां चढते हैं और दूसरों के प्रति हेय भावना रखने वाले उन्हे तुच्छ समझने वालों को अंत में लज्जित ही होना पडता हैं ।


सत्य सनातन धर्म की जय....
हर हर महादेव......
जय महाकाल.....
जय माँ भवानी.....


!!! विजेता मेंढक !!!

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बहुत समय पहले की बात है !! एक सरोवर में बहुत सारे मेंढक रहते थे !! सरोवर के बीचों -बीच एक बहुत पुराना धातु का खम्भा भी लगा हुआ था जिसे उस सरोवर को बनवाने वाले राजा ने लगवाया था !! खम्भा काफी ऊँचा था और उसकी सतह भी बिलकुल चिकनी थी !!


एक दिन मेंढकों के दिमाग में आया कि क्यों ना एक रेस करवाई जाए !! रेस में भाग लेने वाली प्रतियोगीयों को खम्भे पर चढ़ना होगा और जो सबसे पहले एक ऊपर पहुच जाएगा वही विजेता माना जाएगा !!

रेस का दिन आ पंहुचा !! चारो तरफ बहुत भीड़ थी !! आस -पास के इलाकों से भी कई मेंढक इस रेस में हिस्सा लेने पहुचे !! माहौल में सरगर्मी थी !! हर तरफ शोर ही शोर था !!

रेस शुरू हुई, लेकिन खम्भे को देखकर भीड़ में एकत्र हुए किसी भी मेंढक को ये यकीन नहीं हुआ कि कोई भी मेंढक ऊपर तक पहुंच पायेगा !! हर तरफ यही सुनाई देता - "अरे ये बहुत कठिन है !! वो कभी भी ये रेस पूरी नहीं कर पायंगे !! सफलता का तो कोई सवाल ही नहीं !! इतने चिकने खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता !!"

और यही हो भी रहा था, जो भी मेंढक कोशिश करता, वो थोड़ा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता !! कई मेंढक दो -तीन बार गिरने के बावजूद अपने प्रयास में लगे हुए थे !!

पर भीड़ तो अभी भी चिल्लाये जा रही थी - "ये नहीं हो सकता , असंभव !!" और वो उत्साहित मेंढक भी ये सुन-सुनकर हताश हो गए और अपना प्रयास छोड़ दिया !!

लेकिन उन्ही मेंढकों के बीच एक छोटा सा मेंढक था, जो बार -बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ ऊपर चढ़ने में लगा हुआ था !! वो लगातार ऊपर की ओर बढ़ता रहा और अंततः वह खम्भे के ऊपर पहुच गया और इस रेस का विजेता बना !!

उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ !! सभी मेंढक उसे घेर कर खड़े हो गए और पूछने लगे - "तुमने ये असंभव काम कैसे कर दिखाया, भला तुम्हे अपना लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति कहाँ से मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुमने ये विजय कैसे प्राप्त की ??"

तभी पीछे से एक आवाज़ आई - "अरे उससे क्या पूछते हो , वो तो बहरा है !!"

अक्सर हमारे अन्दर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की काबीलियत होती है, पर हम अपने चारों तरफ मौजूद नकारात्मकता की वजह से खुद को कम आंक बैठते हैं और हमने जो बड़े-बड़े सपने देखे होते हैं उन्हें पूरा किये बिना ही अपनी ज़िन्दगी गुजार देते हैं !! आवश्यकता इस बात की है हम हमें कमजोर बनाने वाली हर एक आवाज के प्रति बहरे और ऐसे हर एक दृश्य के प्रति अंधे हो जाएं !! और तब हमें सफलता के शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक पायेगा !!

काला नमक --


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= यह भी ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मददरूप, वायु शामक है । पेट फ़ूलने की समस्या मे मददरुप है। इसके सेवन से डकार शुद्ध आती है और छोटे बच्चो की कब्ज की समस्या मे इसका उपयोग होता है ।


= काला नमक बनाने के लिये सेंधा नमक और साजीखार सम प्रमाण मे ले। साजीखार का उपयोग पापड बनाने में होता है और यह पंसारी की दुकान पर आसानी से मिलता है। इस मिश्रण को पानी मे घोलें । अब इसे धीमी आंच पर गर्म करे और पूरा पानी जला दें । अंत मे जो बचेगा वह काला नमक है ।

= नमक आवश्यक है पर उसे कम से कम मात्रा में खाना चाहिए ।


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@भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है|

!!! बवासीर का प्रभावी हर्बल उपचार !!!



इस बीमारी को अर्श, पाइस या मूलव्याधि के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग में गुदा की भीतरी दीवार में मौजूद खून की नसें सूजने के कारण तनकर फूल जाती हैं। इससे उनमें कमजोरी आ जाती है और मल त्याग के वक्त जोर लगाने से या कड़े मल के रगड़ खाने से खून की नसों में दरार पड़ जाती हैं और उसमें से खून बहने लगता है।


कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। 



बवासीर के प्रकार

खूनी बवासीर

खूनी बवासीर में किसी प्रक़ार की तकलीफ नही होती है केवल खून आता है। पहले पखाने में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिफॅ खून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। टट्टी के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आखिरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नही जाता है।

बादी बवासीर

बादी बवासीर रहने पर पेट खराब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। बवासीर की वजह से पेट बराबर खराब रहता है। न कि पेट गड़बड़ की वजह से बवासीर होती है। इसमें जलन, ददॅ, खुजली, शरीर मै बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। टट्टी कड़ी होने पर इसमें खून भी आ सकता है। इसमें मस्सा अन्दर होता है। मस्सा अन्दर होने की वजह से पखाने का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है उसे डाक्टर अपनी जवान में फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीडा होती है। बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंग़जी में फिस्टुला कहते हें। फिस्टुला प्रक़ार का होता है। भगन्दर में पखाने के रास्ते के बगल से एक छेद हो जाता है जो पखाने की नली में चला जाता है। और फोड़े की शक्ल में फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से पखाना भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की आखिरी स्टेज होने पर यह केंसर का रूप ले लेता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है।




बवासीर के कारण

कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। अतः अनुवांशिकता इस रोग का एक कारण हो सकता है। जिन व्यक्तियों को अपने रोजगार की वजह से घंटों खड़े रहना पड़ता हो, 

जैसे बस कंडक्टर, ट्रॉफिक पुलिस, पोस्टमैन या जिन्हें भारी वजन उठाने पड़ते हों,- जैसे कुली, मजदूर, भारोत्तलक वगैरह, उनमें इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है। कब्ज भी बवासीर को जन्म देती है, कब्ज की वजह से मल सूखा और कठोर हो जाता है 

जिसकी वजह से उसका निकास आसानी से नहीं हो पाता मलत्याग के वक्त रोगी को काफी वक्त तक पखाने में उकडू बैठे रहना पड़ता है, जिससे रक्त वाहनियों पर जोर पड़ता है और वह फूलकर लटक जाती हैं। बवासीर गुदा के कैंसर की वजह से या मूत्र मार्ग में रूकावट की वजह से या गर्भावस्था में भी हो सकता है।



बवासीर के लक्षण

बवासीर का प्रमुख लक्षण है गुदा मार्ग से रक्तस्राव जो शुरूआत में सीमित मात्रा में मल त्याग के समय या उसके तुरंत बाद होता है। यह रक्त या तो मल के साथ लिपटा होता है या बूंद-बूंद टपकता है। कभी-कभी यह बौछार या धारा के रूप में भी मल द्वारा से निकलता है। 


अक्सर यह रक्त चमकीले लाल रंग का होता है, मगर कभी-कभी हल्का बैंगनी या गहरे लाल रंग का भी हो सकता है। कभी तो खून की गिल्टियां भी मल के साथ मिली होती हैं

                      मलद्वार के आसपास खुजली होना
                      मल त्याग के समय कष्ट का आभास होना
                      मलद्वार के आसपास पीडायुक्त सूजन
                      मलत्याग के बाद रक्त का स्त्राव होना
                      मल्त्याग के बाद पूर्ण रुप से संतुष्टि न महसूस करना


बवासीर के आयुर्वेदिक उपचार

• डेढ़-दो कागज़ी नींबू अनिमा के साधन से गुदा में लें। दस-पन्द्रह संकोचन करके थोड़ी देर लेते रहें, बाद में शौच जायें। यह प्रयोग 4- 5 दिन में एक बार करें। 3 बार के प्रयोग से ही बवासीर में लाभ होता है । साथ में हरड या बाल हरड का नित्य सेवन करने और अर्श (बवासीर) पर अरंडी का तेल लगाने से लाभ मिलता है। 

• नीम का तेल मस्सों पर लगाने से और 4- 5 बूँद रोज़ पीने से लाभ होता है।

• करीब दो लीटर छाछ (मट्ठा) लेकर उसमे 50 ग्राम पिसा हुआ जीरा और थोडा नमक मिला दें। जब भी प्यास लगे तब पानी की जगह पर यह छास पी लें। पूरे दिन पानी की जगह यह छाछ (मट्ठा) ही पियें। चार दिन तक यह प्रयोग करें, मस्से ठीक हो जायेंगे। 


• अगर आप कड़े या अनियमित रूप से मल का त्याग कर रहे हैं, 
तो आपको इसबगोल भूसी का प्रयोग करने से लाभ मिलेगा। आप लेक्टूलोज़ जैसी सौम्य रेचक औषधि का भी प्रयोग कर सकते हैं। 

• आराम पहुंचानेवाली क्रीम, मरहम, वगैरह का प्रयोग आपको पीड़ा और खुजली से आराम दिला सकते हैं।

• ऐसे भी कुछ उपचार हैं जिनमे शल्य चिकित्सा की और अस्पताल में भी रहने की ज़रुरत नहीं पड़ती।


बवासीर के उपचार के लिये अन्य आयुर्वेदिक औषधियां हैं: अर्शकुमार रस, तीक्ष्णमुख रस, अष्टांग रस, नित्योदित रस, रस गुटिका, बोलबद्ध रस, पंचानन वटी, बाहुशाल गुड़, बवासीर मलहम वगैरह।


बवासीर की रोकथाम:

• अपनी आँत की गतिविधियों को सौम्य रखने के लिये, फल, सब्ज़ियाँ, सीरियल, ब्राउन राईस, ब्राउन ब्रेड जैसे रेशेयुक्त आहार का सेवन करें। 


• तरल पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन करें।


05 December 2012

heart attack का आयुर्वेदिक इलाज !






दोस्तो अमेरिका की बड़ी बड़ी कंपनिया जो दवाइया भारत मे बेच रही है ! वो अमेरिका मे 20 -20 साल से बंद है ! आपको जो अमेरिका की सबसे खतरनाक दवा दी जा रही है ! वो आज कल दिल के रोगी (
heart patient) को सबसे दी जा रही है !! भगवान न करे कि आपको कभी जिंदगी मे heart attack आए !लेकिन अगर आ गया तो आप जाएँगे डाक्टर के पास !


और आपको मालूम ही है एक angioplasty आपरेशन आपका होता है ! angioplasty आपरेशन मे डाक्टर दिल की नली मे एक spring डालते हैं ! उसको stent कहते हैं ! और ये stent अमेरिका से आता है और इसका cost of production सिर्फ 3 डालर का है ! और यहाँ लाकर वो 3 से 5 लाख रुपए मे बेचते है और ऐसे लूटते हैं आपको !

और एक बार attack मे एक stent डालेंगे ! दूसरी बार दूसरा डालेंगे ! डाक्टर को commission है इसलिए वे बार बार कहता हैं angioplasty करवाओ angioplasty करवाओ !! इस लिए कभी मत करवाए !

तो फिर आप बोलेंगे हम क्या करे ????!

आप इसका आयुर्वेदिक इलाज करे बहुत बहुत ही सरल है ! पहले आप एक बात जान ली जिये ! angioplasty आपरेशन कभी किसी का सफल नहीं होता !! क्यूंकि डाक्टर जो spring दिल की नली मे डालता है !! वो spring बिलकुल pen के spring की तरह होता है ! और कुछ दिन बाद उस spring की दोनों side आगे और पीछे फिर blockage जमा होनी शुरू हो जाएगी ! और फिर दूसरा attack आता है ! और डाक्टर आपको फिर कहता है ! angioplasty आपरेशन करवाओ ! और इस तरह आपके लाखो रूपये लूटता है और आपकी ज़िंदगी इसी मे निकाल जाती है ! ! !

अब पढ़िये इसका आयुर्वेदिक इलाज !!
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हमारे देश भारत मे 3000 साल एक बहुत बड़े ऋषि हुये थे उनका नाम था महाऋषि वागवट जी !!
उन्होने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है अष्टांग हृदयम!! और इस पुस्तक मे उन्होने ने बीमारियो को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखे थे ! ये उनमे से ही एक सूत्र है !!

वागवट जी लिखते है कि कभी भी हरद्य को घात हो रहा है ! मतलब दिल की नलियो मे blockage होना शुरू हो रहा है ! तो इसका मतलब है कि रकत (blood) मे acidity(अमलता ) बढ़ी हुई है !

अमलता आप समझते है ! जिसको अँग्रेजी मे कहते है acidity !!

अमलता दो तरह की होती है !
एक होती है पेट कि अमलता ! और एक होती है रक्त (blood) की अमलता !!
आपके पेट मे अमलता जब बढ़ती है ! तो आप कहेंगे पेट मे जलन सी हो रही है !! खट्टी खट्टी डकार आ रही है ! मुंह से पानी निकाल रहा है ! और अगर ये अमलता (acidity)और बढ़ जाये ! तो hyperacidity होगी ! और यही पेट की अमलता बढ़ते-बढ़ते जब रक्त मे आती है तो रक्त अमलता(blood acidity) होती !!

और जब blood मे acidity बढ़ती है तो ये अमलीय रकत (blood) दिल की नलियो मे से निकल नहीं पाता ! और नलिया मे blockage कर देता है ! तभी heart attack होता है !! इसके बिना heart attack नहीं होता !! और ये आयुर्वेद का सबसे बढ़ा सच है जिसको कोई डाक्टर आपको बताता नहीं ! क्यूंकि इसका इलाज सबसे सरल है !!

इलाज क्या है ??
वागबट जी लिखते है कि जब रकत (blood) मे अमलता (acidty) बढ़ गई है ! तो आप ऐसी चीजों का उपयोग करो जो छारीय है !

आप जानते है दो तरह की चीजे होती है !

अमलीय और छारीय !!
(acid and alkaline )

अब अमल और छार को मिला दो तो क्या होता है ! ?????
((acid and alkaline को मिला दो तो क्या होता है )?????

neutral होता है सब जानते है !!
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तो वागबट जी लिखते है ! कि रक्त कि अमलता बढ़ी हुई है तो छारीय(alkaline) चीजे खाओ ! तो रकत की अमलता (acidity) neutral हो जाएगी !!! और रक्त मे अमलता neutral हो गई ! तो heart attack की जिंदगी मे कभी संभावना ही नहीं !! ये है सारी कहानी !!

अब आप पूछोगे जी ऐसे कौन सी चीजे है जो छारीय है और हम खाये ?????

आपके रसोई घर मे सुबह से शाम तक ऐसी बहुत सी चीजे है जो छारीय है ! जिनहे आप खाये तो कभी heart attack न आए ! और अगर आ गया है ! तो दुबारा न आए !!
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सबसे ज्यादा आपके घर मे छारीय चीज है वह है लोकी !! जिसे दुदी भी कहते है !! english मे इसे कहते है bottle gourd !!! जिसे आप सब्जी के रूप मे खाते है ! इससे ज्यादा कोई छारीय चीज ही नहीं है ! तो आप रोज लोकी का रस निकाल-निकाल कर पियो !! या कच्ची लोकी खायो !!

स्वामी रामदेव जी को आपने कई बार कहते सुना होगा लोकी का जूस पीयों- लोकी का जूस पीयों !
3 लाख से ज्यादा लोगो को उन्होने ठीक कर दिया लोकी का जूस पिला पिला कर !! और उसमे हजारो डाक्टर है ! जिनको खुद heart attack होने वाला था !! वो वहाँ जाते है लोकी का रस पी पी कर आते है !! 3 महीने 4 महीने लोकी का रस पीकर वापिस आते है आकर फिर clinic पर बैठ जाते है !

वो बताते नहीं हम कहाँ गए थे ! वो कहते है हम न्योर्क गए थे हम जर्मनी गए थे आपरेशन करवाने ! वो राम देव जी के यहाँ गए थे ! और 3 महीने लोकी का रस पीकर आए है ! आकर फिर clinic मे आपरेशन करने लग गए है ! और वो इतने हरामखोर है आपको नहीं बताते कि आप भी लोकी का रस पियो !!

तो मित्रो जो ये रामदेव जी बताते है वे भी वागवट जी के आधार पर ही बताते है !! वागवतट जी कहते है रकत की अमलता कम करने की सबे ज्यादा ताकत लोकी मे ही है ! तो आप लोकी के रस का सेवन करे !!

कितना करे ?????????
रोज 200 से 300 मिलीग्राम पियो !!

कब पिये ??

सुबह खाली पेट (toilet जाने के बाद ) पी सकते है !!
या नाश्ते के आधे घंटे के बाद पी सकते है !!
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इस लोकी के रस को आप और ज्यादा छारीय बना सकते है ! इसमे 7 से 10 पत्ते के तुलसी के डाल लो
तुलसी बहुत छारीय है !! इसके साथ आप पुदीने से 7 से 10 पत्ते मिला सकते है ! पुदीना बहुत छारीय है ! इसके साथ आप काला नमक या सेंधा नमक जरूर डाले ! ये भी बहुत छारीय है !!
लेकिन याद रखे नमक काला या सेंधा ही डाले ! वो दूसरा आयोडीन युक्त नमक कभी न डाले !! ये आओडीन युक्त नमक अम्लीय है !!!!

तो मित्रो आप इस लोकी के जूस का सेवन जरूर करे !! 2 से 3 महीने आपकी सारी heart की blockage ठीक कर देगा !! 21 वे दिन ही आपको बहुत ज्यादा असर दिखना शुरू हो जाएगा !!!
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कोई आपरेशन की आपको जरूरत नहीं पड़ेगी !! घर मे ही हमारे भारत के आयुर्वेद से इसका इलाज हो जाएगा !! और आपका अनमोल शरीर और लाखो रुपए आपरेशन के बच जाएँगे !!

और पैसे बच जाये ! तो किसी गौशाला मे दान कर दे ! डाक्टर को देने से अच्छा है !किसी गौशाला दान दे !! हमारी गौ माता बचेगी तो भारत बचेगा !!
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आपने पूरी post पढ़ी आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!

इन बीमारियो के इलाज के लिए और अच्छी तरह समझने के लिए यहाँ
जरूर जरूर click करे !!

http://www.youtube.com/watch?=C8NbDw4QGVM&feature=plcp

वन्देमातरम !!
अमर शहीद राजीव दीक्षित जी की जय



!!! भारत में चाय का इतिहास जाने !!!


पूरी post नहीं पढ़ सकते तो यहाँ click करे !
https://www.youtube.com/watch?v=XSQyc_PnJy4
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मित्रो चाय के बारे मे सबसे पहली बात ये कि चाय जो है वो हमारे देश भारत का उत्पादन नहीं है ! अंग्रेज़ जब भारत आए थे तो अपने साथ चाय का पौधा लेकर आए थे ! और भारत के कुछ ऐसे स्थान जो अंग्रेज़ो के लिए अनुकूल (जहां ठंड बहुत होती है) वहाँ पहाड़ियो मे चाय के पोधे लगवाए और उसमे से चाय होने लगी !

तो अंग्रेज़ अपने साथ चाय लेकर आए भारत मे कभी चाय हुई नहीं !1750 से पहले भारत मे कहीं भी चाय का नाम और निशान नहीं था ! ब्रिटिशर आए east india company लेकर तो उन्होने चाय के बागान लगाए ! और उन्होने ये अपने लिए लगाए !

क्यूँ लगाए ???

चाय एक medicine है इस बात को ध्यान से पढ़िये !चाय एक medicine है लेकिन सिर्फ उन लोगो के लिए जिनका blood pressure low रहता है ! और जिनका blood pressure normal और high रहता है चाय उनके लिए जहर है !!

low blood pressure वालों के लिए चाय अमृत है और जिनका high और normal रहता है चाय उनके लिए जहर है !
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अब अंग्रेज़ो की एक समस्या है वो आज भी है और हजारो साल से है !सभी अंग्रेज़ो का BP low रहता है ! सिर्फ अंग्रेज़ो का नहीं अमरीकीयों का भी ,कैनेडियन लोगो का भी ,फ्रेंच लोगो भी और जर्मनस का भी, स्वीडिश का भी !इन सबका BP LOW रहता है !

कारण क्या है ???

कारण ये है कि बहुत ठंडे इलाके मे रहते है बहुत ही अधिक ठंडे इलाके मे ! उनकी ठंड का तो हम अंदाजा नहीं लगा सकते ! अंग्रेज़ और उनके आस पास के लोग जिन इलाको मे रहते है वहाँ साल के 6 से 8 महीने तो सूरज ही नहीं निकलता ! और आप उनके तापमान का अनुमान लगाएंगे तो - 40 तो उनकी lowest range है ! मतलब शून्य से भी 40 डिग्री नीचे 30 डिग्री 20 डिग्री ! ये तापमान उनके वहाँ समानय रूप से रहता है क्यूंकि सूर्य निकलता ही नहीं ! 6 महीने धुंध ही धुंध रहती है आसमान मे ! ये इन अंग्रेज़ो की सबसे बड़ी तकलीफ है !!

ज्यादा ठंडे इलाके मे जो भी रहेगा उनका BP low हो जाएगा ! आप भी करके देख सकते है ! बर्फ की दो सिलियो को खड़ा कर बीच मे लेट जाये 2 से 3 मिनट मे ही BP लो होना शुरू हो जाएगा ! और 5 से 8 मिनट तक तो इतना low हो जाएगा जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी ! फिर आपको शायद समझ आए ये अंग्रेज़ कैसे इतनी ठंड मे रहते है !घरो के ऊपर बर्फ, सड़क पर बर्फ,गड़िया बर्फ मे धस जाती है ! बजट का बड़ा हिस्सा सरकारे बर्फ हटाने मे प्रयोग करती है ! तो वो लोग बहुत बर्फ मे ररहते है ठंड बहुत है blood pressure बहुत low रहता है !

अब तुरंत blood को stimulent चाहिए ! मतलब ठंड से BP बहुत low हो गया ! एक दम BP बढ़ाना है तो चाय उसमे सबसे अच्छी है और दूसरे नमबर पर कॉफी ! तो चाय उन सब लोगो के लिए बहुत अच्छी है जो बहुत ही अधिक ठंडे इलाके मे रहते है ! अगर भारत मे कश्मीर की बात करे तो उन लोगो के लिए चाय,काफी अच्छी क्यूंकि ठंड बहुत ही अधिक है !!
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लेकिन बाकी भारत के इलाके जहां तापमान सामान्य रहता है ! और मुश्किल से साल के 15 से 20 दिन की ठंड है !वो भी तब जब कोहरा बहुत पड़ता है हाथ पैर कांपने लगते है तापमान 0 से 1 डिग्री के आस पास होता है ! तब आपके यहाँ कुछ दिन ऐसे आते है जब आप चाय पिलो या काफी पिलो !

लेकिन पूरे साल चाय पीना और everytime is tea time ये बहुत खतरनाक है ! और कुछ लोग तो कहते बिना चाय पीए तो सुबह toilet भी नहीं जा सकते ये तो बहुत ही अधिक खतरनाक है !
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इसलिए उठते ही अगर चाय पीने की आपकी आदत है तो इसको बदलीये !!
नहीं तो होने वाला क्या है सुनिए !अगर normal BP आपका है और आप ऐसे ही चाय पीने की आदत जारी रखते है तो धीरे धीरे BP high होना शुरू होगा ! और ये high BP फिर आपको गोलियो तक लेकर जाएगा !तो डाक्टर कहेगा BP low करने के लिए गोलिया खाओ ! और ज़िंदगी भर चाय भी पियो जिंदगी भर गोलिया भी खाओ ! डाक्टर ये नहीं कहेगा चाय छोड़ दो वो कहेगा जिंदगी भर गोलिया खाओ क्यूंकि गोलिया बिकेंगी तो उसको भी कमीशन मिलता रहेगा !

तो आप अब निर्णय लेलों जिंदगी भर BP की गोलीया खाकर जिंदा रहना है तो चाय पीते रहो ! और अगर नहीं खानी है तो चाय पहले छोड़ दो !
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एक जानकारी और !

आप जानते है गर्म देश मे रहने वाले लोगो का पेट पहले से ही अम्लीय (acidic) होता ! और ठंडे देश मे रहने वाले लोगो का पेट पहले से ही क्षारीय (alkaline) होता है ! और गर्म देश मे रहने वाले लोगो का पेट normal acidity से ऊपर होता है और ठंड वाले लोगो का normal acidity से भी बहुत अधिक कम ! मतलब उनके blood की acidity हम मापे और अपने देश के लोगो की मापे तो दोनों मे काफी अंतर रहता है !

अगर आप ph स्केल को जानते है तो हमारा blood की acidity 7.4 ,7.3 ,7.2 और कभी कभी 6.8 के आस पास तक चला जाता है !! लेकिन यूरोप और अमेरिका के लोगो का +8 और + 8 से भी आगे तक रहता है !

तो चाय पहले से ही acidic (अम्लीय )है और उनके क्षारीय (alkaline) blood को थोड़ा अम्लीय करने मे चाय कुछ मदद करती है ! लेकिन हम लोगो का blood पहले से ही acidic है और पेट भी acidic है ऊपर हम चाय पी रहे है तो जीवन का सर्वनाश कर रहे हैं !तो चाय हमारे रकत (blood ) मे acidity को और ज्यादा बढ़ायी गई !! और जैसा आपने राजीव भाई की पहली post मे पढ़ा होगा (heart attack का आयुर्वेदिक इलाज मे )!

आयुर्वेद के अनुसार रक्त (blood ) मे जब अमलता (acidity ) बढ़ती है तो 48 रोग शरीर मे उतपन होते है ! उसमे से सबसे पहला रोग है ! कोलोस्ट्रोल का बढ़ना ! कोलोस्ट्रोल को आम आदमी की भाषा मे बोले तो मतलब रक्त मे कचरा बढ़ना !! और जैसे ही रक्त मे ये कोलोस्ट्रोल बढ़ता है तो हमारा रक्त दिल के वाहिका (नालियो ) मे से निकलता हुआ blockage करना शुरू कर देता है ! और फिर हो blockage धीरे धीरे इतनी बढ़ जाती है कि पूरी वाहिका (नली ) भर जाती है और मनुष्य को heart attack होता है !

तो सोचिए ये चाय आपको धीरे धीरे कहाँ तक लेकर जा सकती है !!

इसलिए कृपया इसे छोड़ दे !!!
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अब आपने इतनी अम्लीय चाय पी पीकर जो आजतक पेट बहुत ज्यादा अम्लीय कर लिया है ! इसकी अम्लता को फिर कम करिए !

कम कैसे करेंगे ??

सीधी सी बात पेट अम्लीय (acidic )है तो क्षारीय चीजे अधिक खाओ !
क्यूकि अमल (acidic) और क्षार (alkaline) दोनों लो मिला दो तो neutral हो जाएगा !!

तो क्षारीय चीजों मे आप जीरे का पानी पी सकते है पानी मे जीरा डाले बहुत अधिक गर्म करे थोड़ा ठंडा होने पर पिये ! दाल चीनी को ऐसे ही पानी मे डाल कर गर्म करे ठंडा कर पिये !

और एक बहुत अधिक क्षारीय चीज आती है वो है अर्जुन की छाल का काढ़ा 40 -45 रुपए किलो कहीं भी मिल जाता है इसको आप गर्म दूध मे डाल कर पी सकते है ! बहुत जल्दी heart की blockage और high bp कालोस्ट्रोल आदि को ठीक करता है !!

एक और बात आप ध्यान दे इंसान को छोड़ कर कोई जानवर चाय नहीं पीता कुत्ते को पिला कर देखो कभी नहीं पियेगा ! सूघ कर इधर उधर हो जाएगा ! दूध पिलाओ एक दम पियेगा ! कुत्ता ,बिल्ली ,गाय ,चिड़िया जिस मर्जी जानवर को पिला कर देखो कभी नहीं पियेगा !!

और एक बात आपके शरीर के अनुकूल जो चीजे है वो आपके 20 किलो मीटर के दायरे मे ही होंगी ! आपके गर्म इलाके से सैंकड़ों मील दूर ठंडी पहड़ियों मे होने वाली चाय या काफी आपके लिए अनुकूल नहीं है ! वो उनही लोगो के लिए है! आजकल ट्रांसपोटेशन इतना बढ़ गया है कि हमे हर चीज आसानी से मिल जाती है ! वरना शरीर के अनुकूल चीजे प्र्तेक इलाके के आस पास ही पैदा हो पाएँगी !!
तो आप चाय छोड़े अपने अम्लीय पेट और रक्त को क्षारीय चीजों का अधिक से अधिक सेवन कर शरीर स्व्स्थय रखे
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आपने पूरी post पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !!
और अधिक जानकारी के लिए यहाँ click करे

https://www.youtube.com/watch?v=XSQyc_PnJy4

अमर शहीद राजीव दीक्षित जी की जय !

वन्देमातरम !



!!! ये हैं हर तरह की हेयरप्रॉब्लम्स का पक्का इलाज !!!


बाल झडऩा, कमजोर होना, डेंड्रफ व दो मुंहे होना आदि समस्याएं किसी को भी हो सकती हैं। हेयरप्रॉब्लम्स का मुख्यकारण स्ट्रेसफुल लाइफ और पोषकतत्वों की कमी होती ैहै। आजकल लोगों पर काम का इतना है ऐसे में वे बालों पर ध्यान ही नहीं दे पाते हैं। अगर आपको बालों से संबंधित कोई भी परेशानी है तो यहां हम बालों की खूबसूरती को बढ़ाने और लंबे समय तक हेल्दी रखने के कुछ बहुत ही आसान और कारगर उपाय बता रहे हैं, जो प्रयोग करने पर यकीनन आपको बेहद पसंद आएंगे...


प्रयोग: 1
दो चम्मच त्रिफला पाउडर 2 कप पानी में डालकर अच्छी तरह उबालें। फिर इसे छानकर ठंडा कर लें। इस पानी को 2-3 बार बालों में डालें तथा 5 मिनट बाद शैंपू कर लें। बाल चमकदार व मुलायम बनेंगे। डेंड्रफ होने पर त्रिफला के स्थान पर नीम की पत्तियों का पाउडर लें इसी विधि से ही प्रयोग करें। डेंड्रफ की समस्या धीरे-धीरे कम होने लगेगी।

प्रयोग:2
आंवले का पेस्ट बालों में लगाकर 20 मिनट रखें फिर शैंपू कर दें। बालों में मजबूती आएगी। बालों में सोने के पहले तेल लगाएं। सुबह उठकर गर्म पानी में टॉवेल डुबाकर, निचोड़कर सिर पर बांधें। 5 मिनट बाद शैंपू को पानी में घोलकर बाल धो लें। तेल के पश्चात दो बार शैंपू करें। इससे आपके बाल चमकीले तथा मुलायम हो जाएँगे।

प्रयोग:3
आधा कटोरी हरी मेहंदी पावडर लें। इसमें गर्म दूध (गाय का) डालकर पतला लेप बना लें। इसी लेप में एक बड़ा चम्मच आयुर्वेदिक हेयर ऑइल डालें। इसे अच्छी तरह से मिला लें। जब यह लेप ठंडा हो जाए तब बालों की जड़ों में लगाएं। 20 मिनट छोड़कर आयुर्वेदिक शैंपू पानी में घोलकर बालों को धो लें। इस डीप कंडीशनर द्वारा आपके बालों को पोषण भी मिलेगा एवं उसमें बाउंस(लोच)भी आ जाएगा।

________________________@भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है|


04 December 2012

** चांद में दाग और दीपक तले अंधेरा **


एक व्यक्ति अक्सर रात में चांद को निहारता रहता था। वह चांद की सुंदरता और शीतलता के बजाय उसके दाग-धब्बों को देखकर सोचता कि चांद में दाग-धब्बे क्यों हैं? इसी तरह एक दिन जब उसकी पत्नी ने रात के समय घर में दीया जलाया तो उसने दीये को उठाया और बोला, 'दीपक तले अंधेरा क्यों है?' वह कई लोगों से यह प्रश्न करता। सभी उसके इस प्रश्न को सुनकर चुप हो जाते थे। वह व्यक्ति सोचता, जब तक इन प्रश्नों का जवाब नहीं पा लूंगा चैन से नहीं बैठूंगा। एक दिन उसने सुकरात का नाम सुना।

वह अपने प्रश्नों का जवाब पाने के लिए उनके पास गया और बोला, 'भला चांद में दाग-धब्बे क्यों और दीपक तले अंधेरा क्यों? प्रकृति ने जब इनको बनाया तो इनमें कमी क्यों पैदा की?' उसकी इस बात पर सुकरात बोले, 'भले मानस यह बताओ, ईश्वर ने इंसान बनाया तो उसमें कमी क्यों है? तुम दीपक और चांद की कमी को देख रहे हो। उनकी कमी का बखान कर रहे हो। क्या तुम अपने अंदर की कमी का बखान भी ऐसे ही घूम-घूम कर सबके सामने कर सकते हो?' उसकी बात पर व्यक्ति कुछ सोचता रहा। उसे सोच में पड़े दे खकर सुकरात बोले, 'जिसकी जैसी दृष्टि होती है, उसे वैसा ही दिखाई देता है।

हर वस्तु की अच्छाई देखने का स्वभाव बनाओ, बुराई की ओर ध्यान ही मत दो। जिस तरह तुम दीपक और चांद की कमी देख रहे हो, उसी तरह उनके गुणों की ओर देखो। चांद दाग-धब्बों से ग्रसित होकर भी शीतलता और रोशनी प्रदान करता है, उसी तरह दीपक तले अंधेरा रहने पर भी वह सबको प्रकाश देता है, अपनी ऊष्मा व ज्योति से भटके लोगों को प्रकाश देता है।' यह सुनकर व्यक्ति सुकरात के आगे नतमस्तक होकर बोला, 'हां महाराज, वाकई मैं सब में बुराई देखने के कारण बुरी प्रवृत्ति की ओर ही ध्यान देता था लेकिन अब मैं अच्छाई की ओर प्रवृत्त रहूंगा।' उसे अपने प्रश्नों का जवाब मिल गया था।

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!!! धर्मराज युधिष्ठिर ने निभाया था भ्रातृ धर्म !!




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गहन वन से तृषार्त पाण्डव गुजर रहे थे। पानी की तलाश में वे इधर-उधर घूम ही रहे थे कि अकस्मात उन्हें एक सरोवर दिखाई दिया। भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव जल पीने के पूर्व ही मृत्यु का ग्रास बन गए।


कारण यह था कि एक यक्ष ने उनसे प्रश्न किए थे, किंतु उन्होंने उस ओर ध्यान नहीं दिया और बिना जवाब दिए ही पानी पीने लगे। लेकिन वे यक्ष का कोपभाजन बने और उन्हें मृत्यु प्राप्त हुई।

इतने में युधिष्ठिर आए और पानी पीने की कोशिश करने लगे। उनसे भी यक्ष ने प्रश्न किए, जिनके युधिष्ठिर ने समुचित उत्तर दे दिए।

तब यक्ष ने प्रसन्न होकर कहा, 'तुम जल पीने के अधिकारी हो। मेरी इच्छा है कि तुम्हारे चारों भ्राताओं में से किसी एक को जीवन दान दूं। बोलो, मैं किसे पुनर्जीवित करूं?'

प्रश्न बड़ा ही विचित्र था और साथ ही कठिन भी, क्योंकि युधिष्ठिर को चारों भाई एक समान प्रिय थे, तथापि एक क्षण भी सोचे बिना वे बोले, 'यक्षश्रेष्ठ आप नकुल को ही जीवन दान दें।'

यक्ष हंस पड़ा और बोला, 'धर्मराज, कौरवों से युद्ध में भीम की गदा और अर्जुन का गांडीव बड़ा ही उपयोगी सिद्ध होगा। इन दो सगे भाइयों को छोड़कर नकुल का जीवन क्यों चाहते हो।'

धर्मराज बोले, 'यक्षश्रेष्ठ हम पांचों भ्राता ही माताओं के स्नेह चिह्न हैं। माता कुंती के पुत्रों से मैं शेष हूं, किंतु माद्री मां के तो दोनों ही पुत्र मर चुके हैं। अतः यदि एक के ही जीवन का प्रश्न है, तो माद्री मां के नकुल का ही पुनर्जीवन इष्ट है।'

यक्ष ने सुना, तो भावविह्वल हो बोला, 'युधिष्ठिर तुम धर्मतत्व के ज्ञाता हो, मैं तो सिर्फ तुम्हारी परीक्षा ले रहा था कि तुम वास्तव में धर्म के अवतार हो या नहीं। अतएव मैं चारों भाईयों को जीवन देता हूं।'