07 December 2012

!!! फ़ूल और पत्थर की कहानी !!!



नदी किनारे एक गेंदे का पौधा उपज आया,कुछ दिनों बाद उसमें फ़ूल आ गया चहकता, खिलता हुआ फ़ूल नदी में पडे एक पत्थर को देख कर बोला -"मुझे तुम्हारी स्थिति पर बडा तरस आता है

दिन रात पानी के बहाव में घिसते जाते हो घिसते जाते हो ...

कैसा जीवन है तुम्हारा".

पत्थर ने कुछ नहीं कहा और बात आयी गयी हो गयी । कुछ दिन बाद वही फ़ूल एक पूजा की थाली में था और खुद को सोने के सिंहासन पर विराजमान शालिग्राम भगवान पर चढने के लिये तैय्यार था अचानक उसकी नजर शालिग्राम भगवान पर पडी और यह वही पत्थर था जिसके प्रति उसने हेय भावना रखी थी.

फूल मन मसोस कर रह गया और जब अगले दिन उसे शालिग्राम भगवान के चरणों से साफ़ किया जा रहा था तभी वह पत्थर जो शालिग्राम भगवान बन चुका था बोला -"मित्र पुष्प ! जीवन में जो घिस घिस कर परिष्कृत और परिमार्जित होते हैं

वहीं धन्यता की सीढियां चढते हैं और दूसरों के प्रति हेय भावना रखने वाले उन्हे तुच्छ समझने वालों को अंत में लज्जित ही होना पडता हैं ।


सत्य सनातन धर्म की जय....
हर हर महादेव......
जय महाकाल.....
जय माँ भवानी.....


!!! विजेता मेंढक !!!

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बहुत समय पहले की बात है !! एक सरोवर में बहुत सारे मेंढक रहते थे !! सरोवर के बीचों -बीच एक बहुत पुराना धातु का खम्भा भी लगा हुआ था जिसे उस सरोवर को बनवाने वाले राजा ने लगवाया था !! खम्भा काफी ऊँचा था और उसकी सतह भी बिलकुल चिकनी थी !!


एक दिन मेंढकों के दिमाग में आया कि क्यों ना एक रेस करवाई जाए !! रेस में भाग लेने वाली प्रतियोगीयों को खम्भे पर चढ़ना होगा और जो सबसे पहले एक ऊपर पहुच जाएगा वही विजेता माना जाएगा !!

रेस का दिन आ पंहुचा !! चारो तरफ बहुत भीड़ थी !! आस -पास के इलाकों से भी कई मेंढक इस रेस में हिस्सा लेने पहुचे !! माहौल में सरगर्मी थी !! हर तरफ शोर ही शोर था !!

रेस शुरू हुई, लेकिन खम्भे को देखकर भीड़ में एकत्र हुए किसी भी मेंढक को ये यकीन नहीं हुआ कि कोई भी मेंढक ऊपर तक पहुंच पायेगा !! हर तरफ यही सुनाई देता - "अरे ये बहुत कठिन है !! वो कभी भी ये रेस पूरी नहीं कर पायंगे !! सफलता का तो कोई सवाल ही नहीं !! इतने चिकने खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता !!"

और यही हो भी रहा था, जो भी मेंढक कोशिश करता, वो थोड़ा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता !! कई मेंढक दो -तीन बार गिरने के बावजूद अपने प्रयास में लगे हुए थे !!

पर भीड़ तो अभी भी चिल्लाये जा रही थी - "ये नहीं हो सकता , असंभव !!" और वो उत्साहित मेंढक भी ये सुन-सुनकर हताश हो गए और अपना प्रयास छोड़ दिया !!

लेकिन उन्ही मेंढकों के बीच एक छोटा सा मेंढक था, जो बार -बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ ऊपर चढ़ने में लगा हुआ था !! वो लगातार ऊपर की ओर बढ़ता रहा और अंततः वह खम्भे के ऊपर पहुच गया और इस रेस का विजेता बना !!

उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ !! सभी मेंढक उसे घेर कर खड़े हो गए और पूछने लगे - "तुमने ये असंभव काम कैसे कर दिखाया, भला तुम्हे अपना लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति कहाँ से मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुमने ये विजय कैसे प्राप्त की ??"

तभी पीछे से एक आवाज़ आई - "अरे उससे क्या पूछते हो , वो तो बहरा है !!"

अक्सर हमारे अन्दर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की काबीलियत होती है, पर हम अपने चारों तरफ मौजूद नकारात्मकता की वजह से खुद को कम आंक बैठते हैं और हमने जो बड़े-बड़े सपने देखे होते हैं उन्हें पूरा किये बिना ही अपनी ज़िन्दगी गुजार देते हैं !! आवश्यकता इस बात की है हम हमें कमजोर बनाने वाली हर एक आवाज के प्रति बहरे और ऐसे हर एक दृश्य के प्रति अंधे हो जाएं !! और तब हमें सफलता के शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक पायेगा !!

काला नमक --


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= यह भी ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मददरूप, वायु शामक है । पेट फ़ूलने की समस्या मे मददरुप है। इसके सेवन से डकार शुद्ध आती है और छोटे बच्चो की कब्ज की समस्या मे इसका उपयोग होता है ।


= काला नमक बनाने के लिये सेंधा नमक और साजीखार सम प्रमाण मे ले। साजीखार का उपयोग पापड बनाने में होता है और यह पंसारी की दुकान पर आसानी से मिलता है। इस मिश्रण को पानी मे घोलें । अब इसे धीमी आंच पर गर्म करे और पूरा पानी जला दें । अंत मे जो बचेगा वह काला नमक है ।

= नमक आवश्यक है पर उसे कम से कम मात्रा में खाना चाहिए ।


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@भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है|

!!! बवासीर का प्रभावी हर्बल उपचार !!!



इस बीमारी को अर्श, पाइस या मूलव्याधि के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग में गुदा की भीतरी दीवार में मौजूद खून की नसें सूजने के कारण तनकर फूल जाती हैं। इससे उनमें कमजोरी आ जाती है और मल त्याग के वक्त जोर लगाने से या कड़े मल के रगड़ खाने से खून की नसों में दरार पड़ जाती हैं और उसमें से खून बहने लगता है।


कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। 



बवासीर के प्रकार

खूनी बवासीर

खूनी बवासीर में किसी प्रक़ार की तकलीफ नही होती है केवल खून आता है। पहले पखाने में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिफॅ खून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। टट्टी के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आखिरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नही जाता है।

बादी बवासीर

बादी बवासीर रहने पर पेट खराब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। बवासीर की वजह से पेट बराबर खराब रहता है। न कि पेट गड़बड़ की वजह से बवासीर होती है। इसमें जलन, ददॅ, खुजली, शरीर मै बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। टट्टी कड़ी होने पर इसमें खून भी आ सकता है। इसमें मस्सा अन्दर होता है। मस्सा अन्दर होने की वजह से पखाने का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है उसे डाक्टर अपनी जवान में फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीडा होती है। बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंग़जी में फिस्टुला कहते हें। फिस्टुला प्रक़ार का होता है। भगन्दर में पखाने के रास्ते के बगल से एक छेद हो जाता है जो पखाने की नली में चला जाता है। और फोड़े की शक्ल में फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से पखाना भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की आखिरी स्टेज होने पर यह केंसर का रूप ले लेता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है।




बवासीर के कारण

कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। अतः अनुवांशिकता इस रोग का एक कारण हो सकता है। जिन व्यक्तियों को अपने रोजगार की वजह से घंटों खड़े रहना पड़ता हो, 

जैसे बस कंडक्टर, ट्रॉफिक पुलिस, पोस्टमैन या जिन्हें भारी वजन उठाने पड़ते हों,- जैसे कुली, मजदूर, भारोत्तलक वगैरह, उनमें इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है। कब्ज भी बवासीर को जन्म देती है, कब्ज की वजह से मल सूखा और कठोर हो जाता है 

जिसकी वजह से उसका निकास आसानी से नहीं हो पाता मलत्याग के वक्त रोगी को काफी वक्त तक पखाने में उकडू बैठे रहना पड़ता है, जिससे रक्त वाहनियों पर जोर पड़ता है और वह फूलकर लटक जाती हैं। बवासीर गुदा के कैंसर की वजह से या मूत्र मार्ग में रूकावट की वजह से या गर्भावस्था में भी हो सकता है।



बवासीर के लक्षण

बवासीर का प्रमुख लक्षण है गुदा मार्ग से रक्तस्राव जो शुरूआत में सीमित मात्रा में मल त्याग के समय या उसके तुरंत बाद होता है। यह रक्त या तो मल के साथ लिपटा होता है या बूंद-बूंद टपकता है। कभी-कभी यह बौछार या धारा के रूप में भी मल द्वारा से निकलता है। 


अक्सर यह रक्त चमकीले लाल रंग का होता है, मगर कभी-कभी हल्का बैंगनी या गहरे लाल रंग का भी हो सकता है। कभी तो खून की गिल्टियां भी मल के साथ मिली होती हैं

                      मलद्वार के आसपास खुजली होना
                      मल त्याग के समय कष्ट का आभास होना
                      मलद्वार के आसपास पीडायुक्त सूजन
                      मलत्याग के बाद रक्त का स्त्राव होना
                      मल्त्याग के बाद पूर्ण रुप से संतुष्टि न महसूस करना


बवासीर के आयुर्वेदिक उपचार

• डेढ़-दो कागज़ी नींबू अनिमा के साधन से गुदा में लें। दस-पन्द्रह संकोचन करके थोड़ी देर लेते रहें, बाद में शौच जायें। यह प्रयोग 4- 5 दिन में एक बार करें। 3 बार के प्रयोग से ही बवासीर में लाभ होता है । साथ में हरड या बाल हरड का नित्य सेवन करने और अर्श (बवासीर) पर अरंडी का तेल लगाने से लाभ मिलता है। 

• नीम का तेल मस्सों पर लगाने से और 4- 5 बूँद रोज़ पीने से लाभ होता है।

• करीब दो लीटर छाछ (मट्ठा) लेकर उसमे 50 ग्राम पिसा हुआ जीरा और थोडा नमक मिला दें। जब भी प्यास लगे तब पानी की जगह पर यह छास पी लें। पूरे दिन पानी की जगह यह छाछ (मट्ठा) ही पियें। चार दिन तक यह प्रयोग करें, मस्से ठीक हो जायेंगे। 


• अगर आप कड़े या अनियमित रूप से मल का त्याग कर रहे हैं, 
तो आपको इसबगोल भूसी का प्रयोग करने से लाभ मिलेगा। आप लेक्टूलोज़ जैसी सौम्य रेचक औषधि का भी प्रयोग कर सकते हैं। 

• आराम पहुंचानेवाली क्रीम, मरहम, वगैरह का प्रयोग आपको पीड़ा और खुजली से आराम दिला सकते हैं।

• ऐसे भी कुछ उपचार हैं जिनमे शल्य चिकित्सा की और अस्पताल में भी रहने की ज़रुरत नहीं पड़ती।


बवासीर के उपचार के लिये अन्य आयुर्वेदिक औषधियां हैं: अर्शकुमार रस, तीक्ष्णमुख रस, अष्टांग रस, नित्योदित रस, रस गुटिका, बोलबद्ध रस, पंचानन वटी, बाहुशाल गुड़, बवासीर मलहम वगैरह।


बवासीर की रोकथाम:

• अपनी आँत की गतिविधियों को सौम्य रखने के लिये, फल, सब्ज़ियाँ, सीरियल, ब्राउन राईस, ब्राउन ब्रेड जैसे रेशेयुक्त आहार का सेवन करें। 


• तरल पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन करें।