08 October 2012

एकादशी के दिन चावल क्यों नहीं खाते ?



एकादशी का व्रत क्यों करते है

शास्त्रों में कहा गया है-

आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु. 
बुद्धिं तु सारथि विद्धि येन श्रेयोअहमाप्नुयाम. 

अर्थात आत्मा को रथी जानो, शरीर को रथ और बुद्धि को सारथी मानो. इनके संतुलित व्यवहार (आचरण) से ही श्रेय अर्थात श्रेष्ठत्व की प्राप्त होती है. इसमें इंद्रिय रूपी घोड़े तथा मन रूपी की लगाम होना भी जरुरी है. इस प्रकार दस इन्द्रियों के बाद मन को भी ग्यारहवीं इन्द्रिय शास्त्र ने माना है. अतएव इंद्रियों की कुल संख्या एकादश होती है.

एकादशी तिथि को मन:शक्ति का केन्द्र चन्द्रमा क्षितिज की एकादशवीं कक्षा पर अवस्थित होता है. यदि इस अनुकूल समय में मनोनिग्रह की साधना की जाए तो वह फलवती सिद्ध हो सकती है. इसी वैज्ञानिक आशय से ही एकादशेन्द्रियभूत मन को एकादशी तिथि के दिन धर्मानुष्ठान एवं व्रतोपवास द्वारा निग्रहीत करने का विधान किया गया है. यदि सार रूप में कहा जाए तो एकादशी व्रत करने का अर्थ है- अपनी इंद्रियों पर निग्रह करना.


एकादशी में चावल वर्जित क्यों

एकादशी के दिन चावल न खाने के संदर्भ में यह जानना आवश्यक है कि चावल और अन्य अन्नों की खेती में क्या अंतर है. यह सर्वविदित है कि चावल की खेती के लिए सर्वाधिक जल की आवश्यकता होती है. एकादशी का व्रत इंद्रियों सहित मन के निग्रह के लिए किया जाता है. ऎसे में यह आवश्यक है कि उस वस्तु का कम से कम या बिल्कुल नहीं उपयोग किया जाए जिसमें जलीय तत्व की मात्रा अधिक होती है.

कारण- चंद्र का संबंध जल से है. वह जल को अपनी ओर आकषित करता है. यदि व्रती चावल का भोजन करे तो चंद्रकिरणें उसके शरीर के संपूर्ण जलीय अंश को तरंगित करेंगी. परिणामत: मन में विक्षेप और संशय का जागरण होगा. इस कारण व्रती अपने व्रत से गिर जाएगा या जिस एकाग्रता से उसे व्रत के अन्य कर्म-स्तुति पाठ, जप, श्रवण एवं मननादि करने थे, उन्हें सही प्रकार से नहीं कर पाएगा. ज्ञातव्य हो कि औषधि के साथ पथ्य का भी ध्यान रखना आवश्यक होता है.

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