28 August 2013


यंत्र व् माला में कैसे प्राण प्रतिष्ठा करे उसका पूर्ण विधान
यंत्र व् माला में कैसे प्राण प्रतिष्ठा करे उसका पूर्ण विधान 






जय माँ तारा ..

हे माँ तारा तू आज अपने नील सरस्वती रूप धर के मुझ पर अपनी कृपा दृष्टी बनाये रखना ताकि मै इस पोस्ट द्वारा पूर्ण रूप से प्रमाणिक विधान मेरे मित्रो को उपलब्ध करवा सकू ......
जय माँ नील तारा ...


मेरे परम मित्रो आप को तो शायद यह ज्ञात ही होगा की अनादि काल से साधना क्षेत्र में यंत्रो का उपयोग होता आ रहा है और होता रहेगा ...
आज इस बर्तमान में लाखो यंत्र मिल जायेंगे श्रीयंत्र से शुरू करके नवग्रह यंत्र तक .. देवी देवताओ के यंत्र से लेकर भुत पिशाच तक के यंत्र उपलब्ध है बाजार में ....इन यंत्रो की महत्व कितना है यह तोह मुझे नहीं पता .. पर साधना क्षेत्र में यंत्रो की आवस्यकता तोह शुरू से ही था .. क्योंके यंत्र उस देव वर्ग का साक्षात् स्वरुप होता है .. और इन यंत्रो पर साधना करना अतिउत्तम भी माना गया है .. 


परन्तु किसी भी यंत्र पर साधना शुरू करने से पहले आप को कुछ बाते पता होना अवश्यक ही नहीं अनिर्वार्य भी है ...
1 यंत्र सुभ मुहूर्त में सुद्ध परिस्थिति में बनाया गया है या नहीं ...
2 यंत्र पूर्ण रूप से प्राणप्रतिष्ठित है या नहीं ...
3 क्या उस यंत्र का श्राप उद्धार किया गया है ? क्योंकि अधिकांस देव वर्ग किसी न किसी कारन से श्रापित है ....
जब तक इन देव वर्ग का उद्धार क्रिया ना की जाय तब तक वेह पूर्ण रूप से आप पर कृपा भी नहीं कर सकते क्योंकि जो खुद शापित है वोह भला कैसे ..?
4 क्या यंत्र का अमृत अभिषेक करवाके यंत्र को पूर्ण रूप से चैतन्य जीवित जाग्रत अमर किया गया है या नहीं .. ?


गुरुदेव की कृपा से मुझे जो चार यंत्र का विधान प्राप्त हुआ है उसे आप सबके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ ...


1 देवी शक्ति की साधना हेतु ...अर्थात समस्त देविओ हेतु तारा से लेकर कमला तक ..


2 देवताओ हेतु .. शिव विष्णु से शुरू करके यमराज की भी साधना इस यन्त्र पर सम्पन्न कर सकते है ..


3 शिव शक्ति सायुज्य साधना हेतु अर्थात जिस साधना में देव वर्ग और देवी मंत्र दोनों समलित हो उसे सायुज्य साधना कहते है 


4 भुत प्रेत पिशाच यक्ष यक्शनी योगिनी अप्सरा गंधर्व जैसे दास वर्ग हेतु ..



वैसे तोह इस यंत्र को चौसठ योगिनी यंत्र कहा जाता है पर मैंने इसी यन्त्र पर बहुत से साधना सम्पन्न करवाया है ओर् स्वम् किया भी हूँ .. इसी लिए में पूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ की इस यंत्र पर समस्त साधना की जा सकती है ...


चार माला
1
 रुद्राक्ष की जिन पर समस्त साधना सम्पन्न की जा सकती है बगला व् विष्णु ..व् विष्णु अवतारों को छोड़ कर ..
2 हल्दी माला व् पिला हकिक माला ...बागला जी की अनुष्ठान हेतु ..
3 कमल गट्टे की या स्फटिक माला लक्ष्मी साधना हेतु ..
4 तुलसी माला विष्णु और उनके अवतारों की साधना हेतु ..


मित्रो आप लोग एक बात हमेशा याद रखियेगा की अगर आप अपने स्वम् के हातो से निर्मित प्राणप्रतिष्ठित चैतन्य यंत्र पर विस्वास नहीं कर पाय तोह आप दुसरे जगह से मंगाए गए यन्त्र पर भी पूर्ण विश्वास नहीं कर पाएंगे ..
और पैसे के साथ समय का भी बर्बादी निश्चित ...
सामग्री ...

भोज पत्र या समर्थ अनुसार स्वर्ण रजत ताम्र ..
अस्टगंध की स्याही या कुंकुम हल्दी चन्दन मिश्रित स्याही या कुछ भी ना हो तो सिंदूर ही जल में घोल कर स्याही बना लीजिये ..
अनार की कलम चमेली की कलम या स्वर्ण रजत कलम मोर पंख या फिर दाहिने हात की अनामिका ऊँगली लिखने के लिए प्रयोग कर सकते है ..
दिशा उत्तर ..दिन कसी भी शुभ दिन .. समय महानिशा या ब्रह्मा मुहूर्त .. वस्त्र लाल स्वेत या फिर सुद्ध जो भी उपलब्ध हो ..
आसनी सिद्ध या पद्म ..
तिन अभिषेक पात्र .. पुष्प दुर्बा अक्षत चन्दन कुंकुम धुप बत्ती ..
सर्व प्रथम गुरु गणेश भैरव शिव शक्ति पूजन पार्थना व् आज्ञा ले .. फिर हात में जल लेके संकल्प करे ..
विधान ....
तिन पात्रो में से एक में सुद्ध जल हात धोने के लिए ..
एक में चन्दन कुंकुम मिश्रित ..
एक के जल में अमृत अवाहन करे पात्र के ऊपर दाहिना हात रक्खे निम्न मंत्र की 11 बार उच्चारण करे ..

।। ॐ अमृते अम्रितोद्भवे अमृतवर्षिणी अमृतं आकर्षय त्वं सिद्धि देहि स्वाहा।।


अब आप बजोट के ऊपर वस्त्र बिछाके उस पर भोज पत्र में यन्त्र की रचना करे ..
यन्त्र बनाने के बाद आप बजोट पर एक ताम्र पात्र स्थापत करे व् उसके ऊपर यन्त्र को पुनः स्थापित करे ..
सबसे पहले यन्त्र की संक्षिप्त पूजन सम्पन्न करे ..
फिर निम्न मंत्र उच्चारण के साथ 2 1 बार अक्षत यंत्र पर चढ़ाइए ..


।। ॐ यंत्रराजायै विद्माहे महायंत्राय धीमहि तन्नो यंत्र: प्रचोदयात।।



अब आप अपना बायाँ हात ह्रदय के ऊपर रख के दाहिने हात में दुर्बा को शुकरी या मृगी मुद्रा से पकड़ के दुर्बा के अगर भाग से यन्त्र को छू छू के निम्न मंत्र का 21 बार उच्चारण करे ...

।। ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हंसः (अमुक यंत्रस्य)त्वाग्र शास्त्र मांस मेदोस्थी मज्जा शुक्राणी धातवः (अमुक यंत्रस्य)वांग मनशचक्षु श्रोत्र घ्राण मुख जिव्हा सर्वानी इंद्रियानी शब्द स्पर्श गंध प्रानायान समानोदान व्यानाः सर्वे प्राणाः ज्ञान दर्शन प्रानश्च इहेव आगच्छत आगच्छत संवोषट स्वाहा अत्र तिष्टत तिष्ठत ठः ठः अत्र मम सन्नीहिता भवत भवत वषट स्वाहा अत्र सर्वजन सौख्याय चिरकालं नन्दंतु वाद्वंता वज्र मया भवन्तु अहं वज्रमयान करोमि स्वाहा।।



दूर्वा को पास में रख दे व् हात धो लीजिये


अब आप निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ 21 बार अक्षत चढ़ाये ..


।। ॐ ॐ ॐ ह्रीं स्त्रीं क्रींॐ ॐ ॐ।।

हात धो लीजिये और अब आप जिस पात्र के जल में अमृत अवाहन किया उस पात्र में दुर्बा को डुबो डुबो कर निम्न मंत्र के साथ यन्त्र पर21 बार छींटे दे ...



।।हौं हं सः संजीवनी जूं जीवं प्रानग्रंथिस्थं कुरु कुरु स्वाहा।।


अब आप कुंकुम चन्दन मिश्रित जल से यन्त्र के सामने अर्घ्य दे ..

अब आप यंत्र सामने मुद्रा प्रदर्शित करे देव हेतु लिंग मुद्रा देवी के लिए योनि मुद्रा ।।
इसके बाद आप हात में फुल लेके निम्न श्लोक के साथ यन्त्र पर अर्पण कीजिये ..



।।नाना सुगंध पुष्पाणि यथा कालोद भवानी च पुष्पंजलिरमया दत्तं गृहान परमेश्वरी/परमेश्वरा।।



अब आप दोनों हात जोड़ कर पार्थना करे ...


।।आहवानां ना जानामि न जानामि विसर्जनम
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरी/परमेश्वरा ..
मंत्र हिनं क्रिया हिनं भक्ति हिनं सुरेश्वरि/सुरेश्वर ..
यत पूजितं मया देवी/देव परिपूर्णं तदस्तु मे।।



आप का यंत्र पूर्ण रूप से प्राण प्रतिष्ठित श्राप मुक्त चैतन्य हो चूका है ..


गुरु मन्त्र या इस्ट मन्त्र का एक माला जप करके गुरुदेव के श्री चरणोंमें कुछ पुष्प लेके मन ही मन उनसे सभी त्रुटियो के लिए क्षमा मांगते हुए विधि को पूर्ण करने की पार्थना के साथ चढ़ा दीजिये ...