02 December 2012

नर हो न निराश करो मन को



नर हो न निराश करो मन को

कुछ काम करो कुछ काम करो 
जग में रह के निज नाम करो।

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो!
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को 
नर हो न निराश करो मन को।

सँभलो कि सुयोग न जाए चला 
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला!
समझो जग को न निरा सपना 
पथ आप प्रशस्त करो अपना।
अखिलेश्वर है अवलम्बन को 
नर हो न निराश करो मन को।।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ 
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ!
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो 
उठ के अमरत्व विधान करो।
दवरूप रहो भव कानन को 
नर हो न निराश करो मन को।।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
सब जाय अभी पर मान रहे 
मरणोत्तर गुंजित गान रहे।
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को।।

!!! हिन्दू अपमान का नहीं ... बल्कि एक "गौरवशाली" शब्द है !!!




अक्सर हम हिन्दू लोगों को बरगलाने के लिए..... हमें यह सिखाया जाता है कि.... "हिन्दू" शब्द..... हमें.... मुस्लिमों या फिर कहा जाए तो.... अरब वासियों ने दिया है...!


दरअसल... ऐसी बातें करने के पीछे कुछ स्वार्थी तत्वों का मकसद यह रहा होगा कि..... हिन्दू ..... अपने लिए "हिन्दू" शब्द सुनकर..... खुद में ही अपमानित महसूस करें..... और, हिन्दुओं में आत्मविश्वास नहीं आ पाए..... फिर.... हिन्दुओं को खुद पर गर्
व करने या ..... दुश्मनों के विरोध की क्षमता जाती रहेगी ...!

और, बहुत दुखद है कि..... समुचित ज्ञान के अभाव में.... बहुत सारे हिन्दू भी... उसकी ऐसी ... बिना सर-पैर कि बातों को सच मान बैठे हैं..... और, खुद को हिन्दू कहलाना पसंद नहीं करते हैं..... जबकि, सच्चाई इसके बिल्कुल ही उलट है...!

हिन्दू शब्द.... हमारे लिए... अपमान का नहीं बल्कि ... गौरव की बात है...... और, हमारे प्राचीन ग्रंथों एक बार नहीं.... बल्कि, बार-बार "हिन्दू शब्द" गौरव के साथ प्रयोग हुआ हुआ है....!

वेदों और पुराणों में हिन्दू शब्द का सीधे -सीधे उल्लेख इसीलिए नहीं पाया जाता है कि.... वे बेहद प्राचीन ग्रन्थ हैं.... और, उस समय हिन्दू सनातन धर्म के अलावा और कोई भी धर्म नहीं था...... जिस कारण.... उन ग्रंथों में .. सीधे -सीधे ... हिन्दू शब्द का उपयोग बेमानी था..!

साथ ही.... वेद .. पुराण जैसे ग्रन्थ.... मानव कल्याण के लिए हैं.... हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई ... जैसे क्षुद्र सोच उस समय नहीं थे.... इसीलिए ... उन ग्रंथों में .... हिन्दू शब्द पर ज्यादा दवाब नहीं दिया है... लेकिन प्रसंगवश .. हिन्दू और हिन्दुस्थान शब्द का उल्लेख वेदों में भी है..!

@@@@ ऋग्वेद में एक ऋषि का नाम "सैन्धव" था जो बाद में "हैन्दाव/ हिन्दव" नाम से प्रचलित हुए... जो बाद में अपभ्रंश होकर ""हिन्दू"" बन गया..!

@@@@ साथ ही.... ऋग्वेद के ही ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द इस प्रकार आया है...
हिमालयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं ।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ।।
( अर्थात....हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिन्दुस्थान कहते हैं )

@@@@ सिर्फ वेद ही नहीं ... बल्कि.. मेरु तंत्र ( शैव ग्रन्थ) में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया है....
'हीनं च दूष्यत्येव हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये'
( अर्थात... जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं)

@@@@ इतना ही नहीं.... लगभग यही मंत्र यही मन्त्र शब्द कल्पद्रुम में भी दोहराई गयी है.....
'हीनं दूषयति इति हिन्दू '
( अर्थात... जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं)

@@@@ पारिजात हरण में"हिन्दू" को कुछ इस प्रकार कहा गया है |
हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टम
हेतिभिः शत्रुवर्गं च स हिंदुरभिधियते ।।

@@@@ माधव दिग्विजय में हिन्दू शब्द इस प्रकार उल्लेखित है ....

ओंकारमंत्रमूलाढय पुनर्जन्म दृढाशयः ।
गोभक्तो भारतगुरूर्हिन्र्हिंदू सनदूषकः ॥

( अर्थात ... वो जो ओमकार को ईश्वरीय ध्वनि माने... कर्मो पर विश्वास करे, गौ पालक रहे... तथा .... बुराइयों को दूर रखे.... वो हिन्दू है )

@@@ और तो और.... हमारे ऋग्वेद (८:२:४१) में 'विवहिंदु' नाम के
राजा का वर्णन है.... जिसने 46000 गाएँ दान में दी थी..... विवहिंदु बहुत पराक्रमी और दानी राजा था..... और, ऋग वेद मंडल 8 में भी उसका वर्णन है|

#### सिर्फ इतना ही नहीं.... हमारे धार्मिक ग्रंथों के अलावा भी अनेक जगह पर हिन्दू शब्द उल्लेखित है....

*** (656 -661 ) इस्लाम के चतुर्थ खलीफ़ा अली बिन अबी तालिब लिखते हैं कि ....... वह भूमि जहां पुस्तकें सर्वप्रथम लिखी गईं, और जहां से विवेक तथा ज्ञान की‌ नदियां प्रवाहित हुईं, वह भूमि हिन्दुस्तान है। (स्रोत : 'हिन्दू मुस्लिम कल्चरल अवार्ड ' - सैयद मोहमुद. बाम्बे 1949.)

*** नौवीं सदी के मुस्लिम इतिहासकार अल जहीज़ लिखते हैं..... "हिन्दू ज्योतिष शास्त्र में, गणित, औषधि विज्ञान, तथा विभिन्न विज्ञानों में श्रेष्ठ हैं।
मूर्ति कला, चित्रकला और वास्तुकला का उऩ्होंने पूर्णता तक विकास किया है।
उनके पास कविताओं, दर्शन, साहित्य और नीति विज्ञान के संग्रह हैं।

भारत से हमने कलीलाह वा दिम्नाह नामक पुस्तक प्राप्त की है।

इन लोगों में निर्णायक शक्ति है, ये बहादुर हैं। उनमें शुचिता, एवं शुद्धता के सद्गुण हैं।

मनन वहीं से शुरु हुआ है।

@@@@ इस तरह हम देखते हैं कि.... इस्लाम के जन्म से हजारों-लाखों साल पूर्व से हिन्दू शब्द प्रचलन में था.... और, हिन्दू तथा हिन्दुस्थान शब्द ... पूरी दुनिया में आदर सूचक एवं सम्मानीय शब्द था...!

साथ ही इन प्रमाणों से बिल्कुल ही स्पष्ट है कि.... हिन्दू शब्द ना सिर्फ हमारे प्राचीन ग्रंथों में उल्लेखित है ... बल्कि... हिन्दू धर्म और संस्कृति हर क्षेत्र में उन्नत था.... साथ ही , हमारे पूर्वज काफी बहादुर थे और उनमे निर्णायक शक्ति थी... जिस कारण विधर्मियों की..... हिन्दू और हमारे हिंदुस्तान के नाम से ही फट जाती थी..... जिस कारण उन्होंने ये अरब वाली कहानी फैला रखी है...!

इसीलिए मित्रों..... सेकुलरों और धर्मभ्रष्ट अवं पथभ्रष्ट लोगों कि नौटंकियों पर ना जाएँ..... और " गर्व से कहो, हम हिन्दू हैं " ।


जय महाकाल...!!!