श्रीमद्भगवद्गीता में भी भगवान कृष्ण ने पीपल को स्वयं का स्वरूप बताया है। इसे 'अश्वत्थ' कहकर पुकारा गया है। यही कारण है कि देवमूर्ति की पूजा या मंदिर न जाने की दशा में पीपल पूजा ही दरिद्रता दूर कर सुख, ऐश्वर्य व धन की कामना को पूरी करने वाली मानी गई है।
इसके लिए हर रोज या विशेष वार, तिथियों पर एक विशेष मंत्र का ध्यान कर पीपल पूजा का महत्व बताया गया है। तस्वीरों के जरिए जानिए पीपल के धार्मिक महत्व के साथ मंत्र विशेष से पीपल पूजा की सरल विधि -
जीवन अनिश्चताओं से भरा है। सुख-दु:ख का सिलसिला इस बात को साबित भी करते हैं। जीवन के इन तमाम उतार-चढ़ावों के बाद भी इंसान तन, मन या आत्म बल के बूते बुरे वक्त का सामना कर सुखों को सुनिश्चित करता है।
हिन्दू धर्मग्रंथ भी तन, मन और आत्मा को सबल बनाने वाले ऐसे ही धार्मिक उपायों को उजागर करते हैं, जो सरल ही नहीं, बल्कि प्रकृति रूप ईश्वर के दर्शन व संगति का बेहतर जरिया भी हैं। ऐसा ही एक उपाय है - अश्वत्थ यानी पीपल के पेड़ की पूजा।
हिन्दू धर्म ग्रंथ श्रीमद्गभगवदगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं को अश्वत्थ स्वरूप बताया है। वहीं शास्त्रों में पीपल के वृक्ष में अनेक देवताओं का वास माना गया है। इसलिए जीवन से जुड़ी तमाम परेशानियों, संकट, रोग व दरिद्रता से बचने, नवग्रह दोष शांति के लिए हर रोज देव वृक्ष पीपल की पूजा यहां बताए मंत्र से करना बहुत ही शुभ माना गया है।
- सुबह स्नान के बाद सफेद या पीले रेशमी वस्त्र पहन पवित्र स्थान या देवालय में स्थित पीपल वृक्ष की जड़ में गाय के दूध व पवित्र गंगाजल में गुलाब के फूल, तिल, चंदन मिलाकर अर्पित करते हुए नीचे लिखा मंत्र संकटनाश व समृद्धि की कामना से बोलें -
आयु: प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यं शरणं गत:।
देहि देव महावृक्ष त्वामहं शरणं गत:।।
अश्वत्थ ह्युतझुग्वास गोविन्दस्य सदाप्रिय।
अशेषं हर मे पापं वृक्षराज नमोस्तुते।
- जल अर्पण व मंत्र स्तुति के बाद कोई भी मिठाई या मीठा नैवेद्य चढ़ाकर इष्ट या शिव, विष्णु की आरती करें।