अक्सर देखा जाता है कि लोग भोजन के समय टीवी देखते रहते हैं या अखबार पढ़ते रहते हैं या कुछ और करते रहते हैं लेकीन ऐसा करना उचित नहीं,क्योंकि मन में दो चीजे एक साथ नहीं बसती , मन एक समय में एक विषय को पकड़ता है और हम सम्पूर्ण संसार को एक साथ भरना चाहते हैं जो संभव नहीं और यहीं हम भूल कर जाते हैं.छोटी-छोटी बातें हैं जो गंभीर असर हम सब के जीवन पर डालती हैं.
प्रकृति से हम जो कुछ भी ग्रहण करते हैं जैसे भोज्य पदार्थ, पेय पदार्थ, वायु , पांच ज्ञानेन्द्रियों से जो कुछ भी हमारा मन प्राप्त करता है, कर्म इन्द्रियों से हम जो कुछ भी प्राप्त करते हैं,और मन में संगृहीत सूचनाओं के मनन से जैसा भाव मन में उठता है. इन सब से हमारे अंदर का गुण समीकरण बदलता है और गुण समीकरण में आया परिवर्तन ही हमारे वर्तमान को चलाता है.
जैसा गुण समीकरण अन्दर होगा ,वैसे विचार मन-बुद्धि में उठेंगे, जैसे बिचार उठते हैं वैसे हम कर्म करते हैं,जैसे हम कर्म करते हैं, वैसा फल हमें मिलता है , और कर्म के आधार पर हमारा अगला जन्म भी आधारित होता है, भोजन बनाना, भोजन सामग्री, भोजन बनानें वाले और करनें वाले की मन की स्थितियां ऎसी कुछ बातें हैं जिनको हमें ध्यान रखना चाहिए.
भोजन के स्वाद
भोजन के छै: स्वाद होते है.
१. - मधुर स्वाद २. - खट्टा स्वाद ३. -नमकीन स्वाद ४. - तीखा स्वाद ५. - कड़वा स्वाद ६. - कसैला स्वाद
१.- मधुर स्वाद - मधुर स्वाद वाले खाद पदार्थ सर्वाधिक पुष्टिकर माने जाते हैं ।वे शरीर से उन महत्वपूर्ण विटामिनों एवं खनिज-लवणों को ग्रहण करते हैं जिसका प्रयोग शर्करा को पचाने के लिये किया जाता है । इस श्रेणी में आने वाले खाद पदार्थों में समूचे अनाज के कण, रोटी, पास्ता, चावल, बीज एवं बादाम हैं.
२. - खट्टा स्वाद - छाछ, खट्टी मलाई, दही एवं पनीर है अधिकांश अधपके फल भी खट्टे होते हैं । खट्टे खाद्पदार्थ का सेवन करने से हमारी भूख बढ़ती है यह आपके लार एवं पाचक रसों का प्रवाह तेज करती है । खट्टे भोजन का अति सेवन करने से हमारे शरीर में दर्द तथा ऐंठन की अधिक सम्भावना रहती है.
३. - नमकीन स्वाद - नमक आदि
४. - तीखा स्वाद - प्याज, अदरक, सरसों, लाल मिर्च.
५. - कड़वा स्वाद - हरी सब्जियों, चाय,काफी आदि.
६. - कसैला स्वाद- अजवाइन, खीरा, बैंगन,सेव, रूचिरा, झड़बेरी, अंगूर एवं नाशपाती भी कसैले होते हैं.
भोजन के प्रकार
भोजन तीन प्रकार के हो सकते हैं - "सात्विक", "राजसिक" एवं "तामसिक".
१. सात्विक - सात्विक भोजन सदा ही ताज़ा पका हुआ, सादा, रसीला, शीघ्र पचने वाला, पोषक, चिकना, मीठा एवं स्वादिष्ट होता है. यह मस्तिष्क की उर्जा में वृद्धि करता है और मन को प्रफुल्लित एवं शांत रखता है, सोचने-समझने की शक्ति को और भी स्पष्ट बनाता है. सात्विक भोजन शरीर और मन को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखने में बहुत अधिक सहायक है.जो अपने अच्छे-बुरे स्वास्थ्य के लिए अच्छे और मध्यम भोजन को चुनना चाहते हैं अर्थात जो आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक तीनो प्रकार से अच्छा स्वास्थ्य पाना चाहते हैं उन्हे सात्विक भोजन करना चाहिए।
बादाम, शहद ताजे फल, दूध, गाय का दूध, घी, पके हुए ताजे फल, बादाम, खजूर, सभी अंकुरित अन्न व दालें, टमाटर, परवल, तोरई, करेला जैसी सब्जियां, पत्तेदार साग सात्विक मानी गयीं हैं. घर में सामान्यतः प्रयोग किये जाने वाले मसाले जैसे हल्दी, अदरक, इलाइची, धनिया, सौंफ और दालचीनी सात्विक होते हैं.
२. राजसिक - जो लोग चाहते हैं कि वो सिर्फ मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ बने उन्हे राजसिक भोजन करना चाहिए।कड़वा, खट्टा, नमकीन, तेज़, चरपरा और सूखा होता है. पूरी, पापड़, बिजौड़ी जैसे तले हुए पदार्थ , तेज़ स्वाद वाले मसाले, मिठाइयाँ, दही, बैंगन, गाजर-मूली, उड़द, नीबू, मसूर, चाय-कॉफी, पान राजसिक भोजन के अर्न्तगत आते हैं.
३. तामसिक - जो लोग चाहते हैं कि भोजन करने से सिर्फ उनका शरीर ताकतवर और मजबूत बने उन लोगों को तामसिक भोजन करना चाहिए। बासी, जूठा, ठंडा, अधपका, गंधयुक्त आहार लेगा पुराने, पुन: पकाये हुए, कृत्रिम, अति तले हुए, चर्बीदार या भारी भोजन जैसे - मांस, मछली और अन्य सी-फ़ूड, वाइन, लहसुन, प्याज और तम्बाकू, पेस्ट्री, पिज्जा, बर्गर, ब्रेड, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक, तंदूरी रोटी, रुमाली रोटी, नान, बेकरी उत्पाद, तम्बाकू, शराब, डिब्बाबंद व फ्रोज़न फ़ूड, ज़रूरत से ज्यादा चाय-कॉफी, केक, अंडे, जैम, कैचप, नूडल्स, चिप्स समेत सभी तले हुए पदार्थ होते हैं। ये शरीर में गरमी पैदा करते हैं. इसलिए इन्हें तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा गया है।
कई धर्मो में वैष्णवजन प्याज लहसुन का उपयोग नहीं करते. प्याज शरीर को लाभ पहुंचाने के हिसाब से चाहे कितना ही लाभकारी और गुणकारी क्यों न हो लेकिन मानसिक और आध्यात्मिक नज़रिये से यह एक तेज और निचले दर्जे का तामसिक भोजन का पदार्थ है।दोनों ही अपना असर गरमी के रूप में दिखाते हैं, शरीर को गरमी देते हैं जिससे व्यक्ति की काम वासना में बढ़ोतरी होते है। ऐसे में उसका मन अध्यात्म से भटक जाता है।इनकी तासीर या गुणों के कारण ही इनका त्याग किया गया है.इसी तरह से मांस खाने से शरीर में मांस भले ही बढ़ जाए लेकिन उससे मानसिक ओर आध्यात्मिक स्वास्थ्य की आशा कभी नही करनी चाहिए।
राजसी एवं तामसी खादपदार्थ दोनों में एक संतुलित, एक समान मन-शरीर अनुभव को अवलंबित करने की क्षमता नहीं है.|भोजन जितना बासी और ठंडा होगा उतना ही पचने में देर लगेगी. तामसिक भोजन अतिक्रियाशीलता, आलस्य एवं अति निद्रा उत्पन्न करता है. इसलिए इन्द्रियों को सुस्त करते हैं एवं आवेग को तीव्र तथा प्रभावशून्य रखते हैं.
हमेशा गर्म और ताजा भोजन करने पर जोर दिया जाता है क्योकि अगर भोजन गरम हो तो भोजन की गर्मी और पेट की गर्मी मिलकर उसे जल्दी पचा देती है. इसलिए पेट की अग्नि को हम ‘जठराग्नि’ कहते है और इसीलिए कहा जाता है कि गर्म भोजन करो.क्योंकि भोजन अगर ठंडा हो तो पेट की अकेली गर्मी के आधार पर ही उसका पाचन होता है, तो जो भोजन छः घंटे में पचना होता है वह बारह घंटे में पचेगा और पचने में जितनी देर लगती है उतनी ही ज्यादा देर तक नींद आएगी क्योंकि जब तक भोजन न पच जाये तब तक मस्तिष्क को उर्जा नहीं मिलती क्योंकि मस्तिष्क जो है वह लक्जरी है. अतः सारी उर्जा, सारी शक्ति पहले भोजन को पचाने में लगती है और यही कारण है कि भोजन के बाद नींद मालूम पड़ती है क्योंकि मस्तिष्क को जितनी शक्ति मिलनी चाहिए वह नहीं मिलती.
तामसी भोजन आलस्य बढ़ाता है, राजसी भोजन क्रोध बढ़ाता है और सात्विक भोजन प्रेम बढ़ाता है . शरीर भोजन से ही बना है, इसलिए बहुत कुछ भोजन पर ही निर्भर है. तामसी प्रेम नहीं कर सकता, वह प्रेम की मांग करता है. उसकी शिकायत है कि उससे कोई प्रेम नहीं करता.सत्व प्रेम देता है.
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