08 October 2012

ऐसे करे दंडवत प्रणाम





प्रणाम करने का एक तरीका होता है. आईये जाने हमें कैसे प्रणाम करना चाहिये. दंडवतप्रणाम श्रीभगवान को दण्डवत अर्थात जैसे कोई डंडा पृथ्वी पर गिर जाता है,उसी प्रकार पृथ्वी पर गिरकर प्रणाम करना भक्ति का २५वां अंग है.इस प्रणाम में सर्वतो भावेन आत्मसमर्पण की भावना है. इसमें भक्त अपने को नितांत असहाय जानकार अपने शरीर इन्द्रिय मन को भगवान् के अर्पण कर देता है. यह आवश्यक है कि दण्डवत प्रणाम के समय चादर कुरता कमीज बनियान आदि को उतार देना चाहिए.

१.- मंदिर में ठाकुर को अपने बाये रखकर प्रणाम करना चाहिए.

२.- कपड़ों सहित हमेशा पंचांग प्रणाम करना चाहिए.

३.- पूरा लेट कर प्रणाम करना हो, केवल परिधान के वस्त्र(कमर के नीचे के पहरावा)को छोड़कर सब वस्त्र उतार देने चाहिए क्योंकि जहाँ दण्डवत प्रणाम करने की विधि का उल्लेख है,वहां लिखा है-जो व्यक्ति जामा कमीज कुरता चदरादि पहने हुए श्रीभगवान को दण्डवत प्रणाम करता है,उसका प्रणाम प्रभु स्वीकार नहीं करते है.इसलिए दण्डवत प्रणाम करते समय इस बात को सदा रखना चाहिए.महिलाओं द्वारा लेटकर प्रणाम नहीं करना चाहिए.

४.- पुरे वस्त्र पहन कर जो पूरा लेटकर प्रणाम करता है उसे सात जन्म तक कुष्ठ रोगी होना पड़ता है,वराह पूरण में ऐसा लिखा है-


"वस्त्र आवृत देहास्तु यो नरः प्रनमेत मम

श्वित्री सा जयते मूर्ख सप्त जन्मनी भामिनी"

६.- गुरुदेव को सामने से , नदी को, एवं सवारी को, उधर से प्रणाम करना चाहिए, जिधर से वह आ रही हो.

७.- मंदिर के पीछे से, भोजन करते समय, शयन के समय ठाकुर, गुरु, संत, वरिष्ठ या किसी को भी प्रणाम नहीं करना चाहिए.


श्रीभगवान् के सामने, अथवा उनकी सवारी आने पर,श्रीगुरुदेव के सामने और किसी भी वैष्णव महत पुरुष के सामने आने पर खड़े हो जाना चाहिए,उनके आने पर बैठे नहीं रहना चाहिए,जब तक स्वयं न बैठ जाएँ और बैठने की आज्ञा न दें. इसमें श्रीभगवान एवं श्रीगुरुजनों के प्रति सम्मान एवं आदर की भावना निहित है,जो उनकी कृपा प्राप्ति का एक साधन है. इस आचरण से श्रीहरि गुरु वैष्णवजन अतिशीघ्र प्रसन्न होते हैं एवं भक्ति की प्राप्ति होती है.

No comments: