07 October 2012

अच्छी सेहत का राज ...




दोस्तों शायद आप सोच रहे होंगे की इस Artical मे आपको मै कुछ 2 +2 =4 जैसा सीधा तरीका बताने वाला हूँ , सेहत के लिए , है ना ? 

चलिए ,सेहत का नुस्खा जानने के पहले हम ये तो जान लें , की सेहत या स्वास्थ्य (health) की परिभाषा क्या है ? आप किसे स्वस्थ मानेंगे ?किसी bodybuilder को, किसी हीरो को, कोई गोरा इंसान , कोई बहत सुंदर महिला ,कोई famous person, कोई अमीर या कोई पहलवान ?
दोस्तों ये सारे आधार सफलता के हो सकते हैं सेहत के नहीं !


आयुर्वेद के शब्दों मे स्वस्थ वही है जिसकी अग्नि सम है ,सारे system (heart ,kidney ,lungs ,stomach etc .) सही काम कर रहे हैं ,समय से भूख , समय से motion, समय से सही नींद जिसे आती है ! जिसकी आत्मा ,मन और 10 इन्द्रियां प्रसन्न है, 

मतलब देखना,सुनना,बोलना,सूंघना सांस लेना, महसूस करना वगेरह जिसका सही है वही स्वस्थ है !

संपूर्ण स्वस्थ्य वही है जो ना सिर्फ शरीर से बल्कि मन से भी स्वस्थ है ! ऐसे लोग आपको अक्सर दिख जाएँगे जो दिखने मे तो पहलवान हैं पर मन से बड़े कमजोर हैं , depressed हैं ! ऐसे लोग भी स्वास्थय की सीमा मे नहीं आते हैं !


चलिए , अब बात करते हैं अच्छी सेहत के formula की .....


जिस तरह एक तिपाई (स्टूल) तीन पैरों पर टिका होता है , उसी तरह आपकी health भी स्टूल की तरह इन तीन पैरों पर टिकी होती है , ये हैं -






1 आहार ,भोजन (Food

2 व्यायाम,कसरत (Exercise
3 आराम ( Rest, Comfort )


अच्छी सेहत के पेपर को हम 100 numbers का मान सकते हैं , जिसमे आहार ,व्यायाम और आराम इन तीनो sections को हम 30 -30 numbers का मान सकते हैं , बचे हुए 10 no. grace के (medicines etc .) लिए रख सकते हैं !


health के पेपर मे पास होने के लिए तीनो section मे अलग अलग पास होना जरूरी है तभी totally उसे पास माना जाएगा ! लेकिन दोस्तों होता ये है की भोजन के section मे तो हम 30 मे से 28 no. ले आते हैं , लेकिन व्यायाम और आराम के section मे 4 या 5 से ज्यादा no. नहीं ला पाते , इसीलिए in total हम health के पेपर मे अधिकतर फ़ैल ही हो जाते हैं , या supplementary लाते हैं , फिर वो जो 10 marks ग्रेस के हैं मतलब medicines, injections, doctor etc . उनकी सहायता से फिर हम health के passing marks ला पाते हैं !,है ना?


36 % से पास होने वाला और 90 -95 % से distinction लाने वाले मे जो अंतर होता है वही अंतर एक healthy और बीमार मे होता है ! और आप जानते हैं की जब numbers बहुत ही कम हों तो passing marks (doctors ,medicines ) भी उसे पास नहीं करा सकते , वो तो फिर फेल ही होता है finally !

चलिए अब इन तीनो के बारे मे भी थोड़ी सी चर्चा कर ली जाए ------


1. भोजन (Food )

 जिस तरह किसी कार का भोजन पेट्रोल होता है जो उसे चलने की energy देता है , उसी तरह हमारा खाना हमारी इस machine (बॉडी) को चलाने की energy देता है ! आप भी जानते हैं की पेट्रोल जितनी बढ़िया quality (speed वाला,) का होगा उतनी ही ज्यादा mileage देगा और engine भी उतना ही सही रहेगा .वहीँ घांसलेट मिला हलकी quality का पेट्रोल गाड़ी की mileage और life दोनों कम कर देगा ! उसी तरह बढ़िया ,healthy , nutritious food आपको healthy और fit रखेगा ! 

लेकिन यहाँ मै एक बात कहना चाहुंगा , की शुरू से ही खाना हम 2 कारणों से लेते हैं -----1 .शक्ति (energy ) के लिए और 2 . स्वाद (taste) के लिए ..


शक्ति और स्वाद की कुश्ती मे , अधिकतर जीतता स्वाद ही है , है ना ? और स्वाद ,अपने २ सेकंड के स्वाद के लिए हमे वो चीजें भी खिला देता है जो हमारे लिए कही से भी फायदेमंद नहीं हैं ! (pizza ,burger ,junk फ़ूड, spicy ,cold drink ,drink .............)


२.व्यायाम (exercise

 ये किसी भी रूप मे हो सकती है ,योग,एरोबिक्स,प्राणायाम, morning walk, jogging ,इत्यादि !

व्यायाम उस police की तरह है जो सारे शहर मे मुस्तेदी से गस्त करती है और कही भी चोर ,बदमाशो का अड्डा नहीं बनने देती ! उसी तरह exercise आपकी body को rhythm मे, tone मे रखती है , और मोटापा, B.P. आलस्य जैसी बिमारियों को शारीर से दूर रखती है !
जिस तरह इक शर्ट iron (प्रेस) करने के बाद ही चमकती है और सलवट से रहित सुंदर दिखती है , उसी तरह exercise आपकी body को fit रखती है रिंकल्स देर से पड़ते हैं और बॉडी ग्लो भी करती है !


3 . आराम (Rest )

यहाँ मै आराम की बात कर रहा हूँ आलस की नहीं ! दिन भर जीतोड़ मेहनत करने के बाद जो किया जाता है वो आराम है और सुबह उठने के बाद जो सज्जन बिना कुछ किये ही थक जाते हैं , वापस बिस्तर की शरण मे चले जाते हैं ,वो आलस है ना की आराम !

कोई भी मोटर या मशीन ज्यादा देर लगातार चलाने पर गरम होकर ख़राब हो सकती है इसीलिए बीच बीच मे उसे बंद कर के आराम देते हैं ,उसी तरह दिन भर ,लगातार शारीर और मन से थकने के बाद हमे भी हमारी मशीन को ठंडा ओर repair करने के लिए आराम की जरूरत होती है ! परमात्मा ने दिन काम के लिए और रात आराम के लिए बनाई है !

तो दोस्तों अगर हमे वाकई मे healthy रहना है तो हमे अपने health के तीनो पेरों को मजबूत रखना पड़ेगा !

आयुर्वेद मे 13 तरह की अग्नियाँ (fire ) बताई गई हैं ,जिनमे से एक है जठराग्नि !



जिगर की आग यानि पेट की अग्नि (जठराग्नि) की ,जो हमारे स्वस्थ रहने का एक मुख्य साधन है ! जब तक हमारी जठराग्नि सही है ,तब तक हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा है,और जहाँ यह अनियमित हुई वहीँ पेट की बीमारियों को आमंत्रण शुरू हो जाता है !

आयुर्वेद मे 13 तरह की अग्नियाँ (fire) बताई गई हैं ,जिनमे से एक है जठराग्नि ! जठर=पेट (stomach) अग्नि =आग (fire)

जिस तरह रसोई मे खाना पकाने के लिए हमें गैस की जरुरत होती है , उसी तरह पेट मे गया हुआ खाना पचाने के लिए हमें जिस उर्जा की जरुरत होती है उसे ही जठराग्नि कहते हैं !

आपने देखा होगा कई व्यक्ति बहुत गरिष्ठ (भारी), heavy खाना खाकर भी उसे आराम से पचा लेते हैं,जबकि कई मूंग की खिचड़ी जैसा हल्का भोजन भी नहीं पचा पाते ! कभी हमें भूख बहुत अच्छी लगती है, तो कभी हमारा खाने की तरफ देखने का भी मन नहीं करता ,है ना?

दोस्तों इसके पीछे कई कारण काम करते हैं ,जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे!

जठराग्नि 4 तरह की होती है-

1 . समाग्नी- जब खाया हुआ अन्न अच्छे से पच जाए!

2 . विषमाग्नि-जब कभी तो खाना पच जाये,कभी नहीं पचे, digestion irregular हो !

3 . मन्दाग्नि -जब हमारी पेट की गैस का बर्नर बिलकुल sim पर हो और बहुत हल्का खाना भी नहीं पचे !

4 . तिक्ष्नाग्नी -बड़ी गैस भट्टी के बड़े बर्नर से निकलती तेज आंच जैसी अग्नि जो non veg . ,उरद का हलुवा जैसे heavy food को भी आसानी से पचा लेती है!

अब ये तो अग्नि की भिन्नता के आधार पर व्यक्तियों के 4 प्रकार हुए ! जिनमे समाग्नी ही स्वास्थ्य की परिचायक है! जरुरी नहीं की जिस व्यक्ति की जो अग्नि है ,वही जिंदगी भर उसके पेट मे बनी रहे !

जठराग्नि को प्रभावित करने वाले कारक factor -

1. काल (टाइम)  


आपने देखा होगा की December, January मे हमारे पेट की अग्नि अपनी पूर्णता पर होती है, हम जो भी खाते हैं आसानी से पच जाता है! हमे अच्छी भूख लगती है ,शरीर मे भी हल्कापन रहता है, इसीलिए गाजर का हलवा या उरद के लड्डू (मुहं मे पानी आ गया ना ) जैसी गरिष्ठ चीजे भी हम बड़ी आसानी से पचा जाते हैं !

वहीँ जून ,जुलाई मे जब गर्मी, बारिश, उमस (humidity) से हमारा शरीर आक्रांत रहता है, हमे भूख नहीं लगती है , २ रोटी भी पचाना मुश्किल होता है, है ना? ये काल का प्रभाव है !

2 . अनियमित खानपान (irregular diet)

दोस्तों कुदरत ने हमारे शरीर की प्रत्येक गतिविधि को बड़े ही practically एक समय की सारणी मे आबद्ध किया है ! इसे हम आम भाषा मे जैविक घडी biological clock कहते हैं !

ऐसा अधिकतर होता है की बिना अलार्म के ठीक 5 बजे हमारी नींद खुल जाती है, बिस्तर से उतरते ही हमे nature call (motion) आ जाता है, ठीक 11 बजे हमे भूख लग आती है ,रात मे ठीक 10 या 11 बजे हमे नींद आने लगती है, होता है ना? लेकिन ये उन खुशकिस्मत लोगो के साथ होता है जिनकी नियमित दिनचर्या होती है !


दोस्तों जठराग्नि मतलब वो पाचक रस जो खाने को पचाते हैं ! हमारा शरीर हमारी जैविक घडी के अनुसार एक निश्चित समय पर , एक निश्चित मात्रा मे पेट मे पाचक रस स्रावित करता है जो की उस अन्न को पचाने के लिए आवश्यक होता है ! और उस पाचक स्राव की मात्रा और secretion के टाइम का निर्धारण हर इंसान की जैविक घडी के अनुसार अलग अलग होता है!

मान लीजिये आप नियम से रोजाना सुबह 11 बजे और शाम 8 बजे खाना खाते हैं, तब आपका शरीर बिना नागा रोज fix time पर पेट मे पाचक रस का स्राव कर देता है और पेट मे आया अन्न सही तरीके से पच कर आपकी सेहत को बनाये रखता है !

दोस्तों समस्या तब होती है जब हमारा खाने का समय निश्चित नहीं होता कभी हम 9 बजे ही खा लेते हैं तो कभी काम की व्यस्तता मे दिन के २-३ बजे तक पेट मे खाना डालने की फुर्सत भी नहीं मिलती है ,ऐसे मे आपके शरीर का biological system , जो स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है वो disturb हो जाता है ! फिर ऐसा होने लगता है की जब आपका पेट पाचक रस (जठराग्नि) छोड़ता है, खाना पचाने के लिए तब पेट मे खाना नहीं होता 


और अपने काम से निबट कर अपनी सहूलियत से जब आप पेट मे खाना डालते हैं तब पाचक रस का स्राव नहीं होता ! 

क्योंकि शरीर की biological clock तो अपने ही नियम से चलेगी , ना की आपके मूड से, है ना ?

ये कुछ उसी तरह है की जब गैस की लो (आंच) तेज होती है तब उस पर पकाने के लिए कुछ नहीं होता ,बर्तन खाली होता है तो जाहिर है बर्तन ज्यादा गरम हो जाएगा या जल जाएगा (एसिडिटी की शुरुआत ) और जब आप गैस चूल्हे पर बर्तन मे बहुत सारी चीजें पकाने के लिए रखते हैं तो पता पड़ता है की गैस ही ख़तम हो गई है ! इसी दिनचर्या से फिर शुरुआत होने लगती है पेट की परेशानियों (भूख ना लगना ,constipation, acidity, gastritis जैसी बिमारियों की ).............

आहार-संबंधी कुछ महत्वपूर्ण बातों का रखें ध्यान !!!



आयुर्वेद की एक प्रचलित कहावत है- जैसा भोजन वैसा ही भेष। निरोगी शरीर, स्वस्थ तन, मन और हमारी लंबी उम्र, ये सब निर्भर करता है हमारे द्वारा ग्रहण किए जाने वाले भोजन पर। पर्याप्त भोजन और भोजन करने की सही विधि हमारी शारीरिक और मानसिक क्षमता में असीमित वृध्दि करता है। शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि सही भोजन से हम अपने शरीर को बीमार होने से बचा सकते हैं।



आयुर्वेद के अनुसार हमारे भोजन को पचाने वाली आग की जठराग्नि कहा जाता है। ये आग ही हमारे शरीर के अंदर भोजन को पचाने का कार्य करती है। इस आग का सटीक संतुलन ही भोजन के शरीर के रग-रग तक पहुंचाने में समर्थ होता है। चीनी चिकित्सा में यह माना जाता है कि पेट और प्लीहा एक दूसरे से बंधे होते हैं। हमारे पेट में क्वी नामक जीवनी शक्ति होती है। जिसकी अनुपस्थिति हमारे लिए घातक हो सकती है। अच्छी सेहत के लिए क्वी का बनना बहुत महत्वपूर्ण है जो कि स्वस्थ पेट से निकलती है। हमारे पेट को हमेशा नमी की आवश्यकता होती है और अगर इसकी नमी सूख जाए तो कर्ठ प्रकार की बीमारियां जैसे सांस-संबंधी समस्याएं, मुंह और मसूढ़े संबंधी समस्याएं पैदा होती है।

स्वस्थ सेहत के आयुर्वेदिक नुस्खे:-

अपनी जठराग्नि को उत्तेजित करने के लिए अदरक का प्रयोग जरूरी है। अदरक के एक टुकड़े को नींबू के रस में डुबोकर उस पर नमक डालकर खा लें। यह सामान्य सा प्रयोग लार ग्रंथियों की मदद से जठराग्नि को तेज करताहै। ये भोजन को पचाकर शरीर को कई तरह की ऊर्जा प्रदान करता है। जिनका प्रयोग हमारा शरीर कई प्रकार से करता है।

दोपहर के समय जठराग्नि अपने चरमोत्कर्ष पर होती है। इसलिए ये खाने को पचा पाने में पूरी तरह सक्षम होती है। दोपहर के समय में फेरबदल नहीं करना चाहिए। साथ ही इस बात की भी कोशिश करनी चाहिए कि सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद कुछ भी न खाएं।

सुबह का नाश्ता दिन में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए नाश्ता अच्छा और पौष्टिक होना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार सुबह के नाश्ते को न करना शरीर पर अत्याचार करने के जैसा है।

खाना तभी खाएं जब आपको भूख लगे। संभवत: इतनी भ देर न कर दें कि आप के शरीर को कष्ट होने लगे खासकर सुबह के समय में।

ठंडे पेय और आइसक्रीम रहित दुनिया-हमारी जठराग्नि ठंडे भोज्य पदार्थों जैसे ठंडे पेय पदार्थ और आइसक्रीम आदि के संपर्क में आकर मंदी हो जाती है। जिसके कारण भोजन सही ढंग से पच नहीं पाता और हमें पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिलती। 

इसलिए हमें हमेशा पके हुए और गर्म भोजन को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। ऐसा भोजन आसानी से पचता है। खाना खाते समय हमें पानी नहीं पीना चाहिए। लेकिन अगर आवश्यक हो जाए तो हल्का गर्म पानी या फिर अदरक वाली चाय पीने चाहिए क्योंकि खाने के दौरान पानी या कोई अन्य द्रव्य लेने से पाचक रस पतला हो जाता है जिससे वह सही ढंग से पच नहीं पाता। खाने से एक घंटे पहले या एक घंटे के बाद पानी पीने का सही समय होता है।

भोजन का आदर करें:- 

आयुर्वेद के अनुसार भोजन करने से पहले हमें ध्यानमग्न होकर प्रार्थना करनी चाहिए क्योंकि भोजन स्वयं को समाप्त कर हमें संतुष्टि और शक्ति प्रदान करना है। इसलिए कम से कम हमें खाने के समय इसका आदर करना चाहिए।

भोजन करते समय पूरा ध्यान भोजन की तरफ ही होना चाहिए। इस समय टीवी देखना, पुस्तक आदि पढ़ना या कोई अन्य काम नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से हमारे पाचन की गति कम होती है और हमारे संवेदनशील पेट पर इसका गहरा असर पड़ता है। जितनी भूख हो खाना उतना ही खाना चाहिए। भूख से अधिक या भूख से कम खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकरक हो सकता है। इससे पाचक रस का ज्यादा बहाव हो जाने के कारण खाना नीचे की ओर सरकने लगता है जो कि पेट की मांसपेशियों और पाचन को नकारात्मक तौर पर प्रभावित करता है।


हमेशा खुले और शांत माहौल में ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। खड़े होकर खाना नुकसानदायक हो सकता है।

खाना हमेशा चबा-चबाकर और धीरे-धीरे खाना चाहिए। जिससे खाना जल्दी पचता है। भोजन की प्रकृति को देखते हुए भोजन को तीन रूपों में बांटा गया है। सात्विक भोजन, राजसी भोजन और तामसी भोजन।

सात्विक भोजन : 

सात्विक भोजन हमारे चित्त को शांत और स्वभाव को स्नेहपूर्ण बनाते हैं। इससे हमारी मानसिकता सुधरती है। बादाम, शहद ताजे फल, दूध, आदि इसके अंतर्गत आते हैं।

राजसी भोजन: 

राजसी भोजन हमारी मानसिकता को ऐशोआराम पसंद और भड़काऊ बनाता है। विभिन्न प्रकार के पकवान, मिठाई, लस्सी, मसालेदार चीजें इसका अंग है।

तामसी भोजन : 

तामसी भोजन के अंतर्गत मांस-मंदिरा, प्याज, लहसुन आदि आता है जो हमारे आलस्य को बढ़ाता है। हमारे व्यवहार को खराब करता है ओर हमें बुरी चीजों की ओर आकर्षित करता है।

खाने की चीजों का तालमेल जरूरी- कई बार अपने स्वाद को और अधिक बढ़ाने के लिए हम कई सारी चीजों को एक साथ मिला देते हैं जिससे उनके गुण समाप्त हो जाते हैं। कुछ फल जैसे आम, पपीता, संतरा आदि को दूध में मिलाया जाता है जिसे आयुर्वेद में निषेध माना गया है। किसी भी दो फलों और सब्जियों को आपस में मिला देना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। इसलिए एक बार में एक फल या एक ही सब्जी खाएं।
ताजा दही और गरम चावल, खट्टे फल और दूध, नमकयुक्त मसालेदार भोजन के तुरंत बाद दूध आदि नहीं लेना चाहिए।

वितरीत मौसम की फल व सब्जियां भी नुकसानदायक हो सकती है।

संपूर्ण भोजन- 

भोजन नीचे दिए गए क्रम में करना चाहिए !



संपूर्ण भोजन पुष्टिकर और स्वास्थ्यवर्ध्दक होता है। संपूर्ण भोजन का मतलब देखने में सुन्दर, अच्छी खुशबू वाला और छ: प्रकार के रसों से युक्त होना चाहिए। 

जैसे - खट्टा मीठा, नमकीन, मसालेदार, कसैला और सुगंधित। भोजन में इन सभी रसों की मात्रा एक निश्चित अनुपात में होनी चाहिए।

इसमें किसी भी रस का मौजूद न होना भोजन को असंपूर्ण बनाता है। ये सारे रस ज्यादातर फलों में पाए जाते हैं।

भोजन जरूरत से ज्यादा पका हुआ नहीं होना चाहिए। इससे कई बीमारियों का न्यौता मिलता है।

बासी भोजन नहीं खाना चाहिए। खाना पकने के तीन घंटे बाद बासी हो जाती है। इसलिए इसे पुन: गरम करने से बचना चाहिए।


खाना खाते वक्त पानी को नहीं भूलना चाहिए। हमारे शरीर में 70 भाग पानी है। ये हमारे शरीर से कइ्र विषैले पदार्थों को बाहर निकालता ळै। पानी को उबालकर ठंडा करके पीना चाहिए। पानी में हमें कई पोषक तत्त्वों को अलग से मिला सकते हैं। पानी हमारी त्वचा में नमी बनाए रखने में भी सहायक होती है।


पित्त-पथरी? बिना आपरेशन सफ़ल चिकित्सा: easy remedies for gallstones

गाल ब्लाडर में पथरी (gallstones)बनना एक भयंकर पीडादायक रोग है। इसे ही पित्त पथरी कहते हैं। पित्ताषय में दो तरह की पथरी बनती है।
प्रथम कोलेस्ट्रोल निर्मित पथरी।
दूसरी पिग्मेन्ट से बननेवाली पथरी।

ध्यान देने योग्य है कि लगभग८०% पथरी कोलेस्ट्रोल तत्व से ही बनती हैं।वैसे तो यह रोग किसी को भी और किसी भी आयु में हो सकता है लेकिन महिलाओं में इस रोग के होने की सम्भावना पुरुषों की तुलना में लगभग दूगनी हुआ करती है।पित्त लिवर में बनता है और इसका भंडारण गाल ब्लाडर में होता है।यह पित्त वसायुक्त भोजन को पचाने में मदद करता है। जब इस पित्त में कोलेस्ट्रोल और बिलरुबिन की मात्रा ज्यादा हो जाती है,तो पथरी निर्माण के लिये उपयुक्त स्थिति बन जाती है।पथरी रोग में मुख्य रूप से पेट के दायें हिस्से में तेज या साधारण दर्द होता है।भोजन के बाद पेट फ़ूलना,अजीर्ण होना,दर्द और उल्टी होना इस रोग के प्रमुख लक्छण हैं।

प्रेग्नेन्सी,मोटापा,मधुमेह,,अधिक बैठे रेहने की जीवन शैली, तेल घी अधिकता वाले भोजन,और शरीरमें खून की कमी से पित्त पथरी रोग होने की सम्भावना बढ जाती है।

दो या अधिक बच्चों की माताओं में भी इस रोग की प्रबलता देखी जाती है।

अब मैं कुछ आसान घरेलू नुस्खे प्रस्तुत कर रहा हूं जिनका उपयोग करने से इस भंयकर रोग से होने वाली पीडा में राहत मिल जाती है और निर्दिष्ट अवधि तक इलाज जारी रखने पर रोग से मुक्ति मिल जाती है।





 १) गाजर और ककडी का रस प्रत्येक १०० मिलिलिटर की मात्रा में मिलाकर दिन में दो बार पीयें। अत्यन्त लाभ दायक उपाय है।


२) नींबू का रस ५० मिलिलिटर की मात्रा में सुबह खाली पेट पीयें। यह उपाय एक सप्ताह तक जारी रखना उचित है।

३) सूरजमुखी या ओलिव आईल ३० मिलि खाली पेट पीयें।इसके तत्काल बाद में १२० मिलि अन्गूर का रस या निम्बू का रस पीयें। यह विधान कुछ हफ़्तों तक जारी रखने पर अच्छे परिणाम मिलते हैं।


४) नाशपती का फ़ल खूब खाएं। इसमें पाये जाने वाले रसायनिक तत्व से पित्ताषय के रोग दूर होते हैं।

५) विटामिन सी याने एस्कोर्बिक एसिड के प्रयोग से शरीर का इम्युन सिस्टम मजबूत बनता है।यह कोलेस्ट्रोल को पित्त में बदल देता है। ३-४ गोली नित्य लें।



६) पित्त पथरी रोगी भोजन में प्रचुर मात्रा में हरी सब्जीयां और फ़ल शामिल करें। ये कोलेस्ट्रोल रहित पदार्थ है।

७) तली-गली,मसालेदार चीजों का परहेज जरुरी है।

८) शराब,चाय,काफ़ी एवं शकरयुक्त पेय हानिकारक है।

९) एक बार में ज्यादा भोजन न करें। ज्यादा भोजन से अधिक मात्रा में कोलेस्ट्रोल निर्माण होगा जो हनिकारक है।

१०) आयुर्वेद में उल्लेखित कतिपय औषधियां इस रोग में लाभदायक साबित हो सकती हैं।कुटकी चूर्ण,त्रिकटु चूर्ण,आरोग्य वर्धनी वटी,फ़लत्रिकादि चूर्ण,जैतुन का तैल ,नींबू का रस आदि औषधियां व्यवहार में लाई जाती हैं।

हार्ट अटैक के बाद जीवन शैली और घरेलू उपचार.

हार्ट अटैक के बाद की जीवन शैली और घरेलू उपचार

एक बार हार्ट अटैक झेल चुके हृदय के मरीजों को अत्यन्त सावधानी के साथ अपनी जीवन शैली में ऐसे बदलाव अपनाने चाहिये जिससे दूसरी बार अटैक से बचे रहें। मैं ऐसे रोगियों के लिये परामर्ष के तौर पर कुछ लाभदायक बातें और निर्देश यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। अपने चिकित्सक के परामर्श से अमल में लाकर लाभ उठावें।

१) हार्ट अटैक के बाद रोगी २-३ सप्ताह पूर्ण विश्राम करें।
२) विश्राम अवधि के बाद धीरे-धीरे चलने का अभ्यास करें। हां ,ज्यादा थकावट मेहसूस नहीं होनी चाहिय। शारीरिक सक्रियता लगातार बढाते जाएं। तकलीफ़ मालुम ना हो तो तेज चलने का उपक्रम भी करते रहें।
३) मन में निराशा,चिंता,टेंशन बिल्कुल न आने दें। प्रसन्न रहना हार्ट रोगियों के लिये टानिक का काम करता है। अटैक पडने के एक दो माह बाद तबीयत ठीक हो तो सेक्स करने मे भी कोइ अडचन नही है।
४) अपने ब्लड प्रेशर की नियमित जांच करवाते रहना चाहिये। खून में कोलेस्ट्रोल के लेविल की जांच भी नियमित अंतराल पर करवाते रहें।
५) हार्ट के मरीजों के भोजन में हरी सब्जीयां और फ़लों की अधिकता जरूरी है। अंकुरित किये हुए मैथी बीज सोयाबीन बीज मूंग,अलसी बीज खाने की आदत डालना आवश्यक है।
६) आंवला विटामिन सी का उत्तम स्रोत है। यह हृदय के लिये अमृत समान फ़ल है। नित्य १० मिलि. आंवला रस पीना लाभदायक है।
७) अदरक का हार्ट पर उत्तम प्रभाव देखा गया है। इससे कोलेस्त्रोल का लेविल घटता है। और अदरक के प्रभाव से खून में थक्का भी नहीं जमता है।
८) नींबू के नियमित सेवन से खून की नलियों मे कोलेस्ट्रोल नहीं जम पाता है। एक नींबू का रस मामूली गरम जल में रोजाना लेते रहें।
९) आयुर्वेदिक चिकित्सक हृदय रोगियों में अर्जुनारिषट का बहुतायत से प्रयोग करते हैं ।
इससे परिसंचरण तन्त्र मजबूत होता है। हार्ट की सुरक्छा के लिये यह औषधि प्रसिद्ध हो चुकी है।
१०) शहद १५ ग्राम एक नींबू के रस में मिलाकर लेने से हृदय की ताकत में इजाफ़ा होता है।
११) ताजा अनुसंधान में पता चला है कि लहसुन की ४ कली चाकू से बारीक काटकर १०० ग्राम दूध में उबालकर लेने से खून में थक्का नहीं जमता है और कोलेस्ट्रोल का लेविल भी कम हो जाता है।

हार्ट के मरीज ऊपर बताये गये उपाय अपनाकर अपने हृदय को सुरक्छित रखते हुए दूसरे हार्ट अटैक से बचे रहेंगे और उनका इम्युन सिस्टम भी शक्तिशाली बन जाएगा।

माईग्रेन(आधाशीशी) रोग का सरल उपचार

माईग्रेन (अर्धावभेदक)क्या है?

सिरदर्द एक आम रोग है और प्रत्येक व्यक्ति को कभी न कभी इसे मेहसूस करता ही है।इस रोग के विशेषग्य इसके कारण के मामले में एकमत न होकर अलग-अलग राय रखते हैं। सभी की राय है कि माईग्रेन के विषय में और अनुसंधान की आवश्यकता है। अभी तक माईग्रेन की तीव्रता का कोइ वैग्यानिक माप नहीं है।

माईग्रेन एक रक्त परिसंचरण(vascular) तंत्र की व्याधि है। मस्तिष्क की रुधिर वाहिकाओं का आकार बढ जाने से याने खून की नलिकाएं फ़ैल जाने से इस रोग का संबंध माना जाता है। इन रुधिर वाहिकाओं पर नाडियां(नर्व्ज) लिपटी हुई होती हैं। जब रक्त वाहिकाएं फ़ैलकर आकार में बढती हैं तो नाडियों पर तनाव बढता है और फ़लस्वरूप नाडियां एक प्रकार का केमिकल निकालती हैं जिससे दर्द और सूजन पैदा होते हैं,यही माईग्रेन है।


 

माईग्रेन अक्सर हमारे सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम पर हमला करता है। इस नाडीमंडल की अति सक्रियता से आंतों में व्यवधान होकर अतिसार,वमन भी शिरोवेदना के साथ होने लगते हैं। इससे आमाषय स्थित भोजन भी देरी से आंतों में पहुंचता है। माईग्रेन की मुख मार्ग से ली गई दवा भी भली प्रकार अंगीकृत नहीं हो पाती है। प्रकाश और ध्वनि के प्रति असहनशीलता पैदा हो जाती है। रक्त परिवहन धीमा पडने से चर्म पीला पड जाता है और हाथ एवं पैर ठंडे मेहसूस होते हैं।

माईग्रेन का सिरदर्द गर्मी,मानसिक तनाव,अपर्याप्त नींद से बढ जाता है। करीब ७० प्रतिशत माईग्रेन रोगियों का पारिवारिक इतिहास देखें तो उनके नजदीकी रिश्तेदारों में इस रोग की मौजूदगी मिलती है। पुरुषों की बनिस्बत औरतों में यह रोग ज्यादा होता है। इस रोग को आधाशीशी भी कहते हैं ।यह ज्यादातर सिर के बांये अथवा दाहिने भाग में होता है। कभी-कभी यह दर्द ललाट और आंखों पर स्थिर हो जाता है। सिर के पिछले भाग में गर्दन तक भी माईग्रेन का दर्द मेहसूस होता है। माईग्रेन का सिरदर्द ४ घंटे से लेकर ३-४ दिन की अवधि तक बना रह सकता है। बहुत से माईग्रेने रोगियों में सिर के दोनों तरफ़ दर्द पाया जाता है। माईग्रेन एक बार बांयीं तरफ़ होगा तो दूसरी बार दांये भाग में हो सकता है। माईग्रेन का दर्द सुबह उठते ही प्रारंभ हो जाता है और सूरज के चढने के साथ रोग भी बढता जाता है। दोपहर बद दर्द में कमी हो जाती है। ऐसा देखने में आया है कि ६० साल की उम्र के बाद यह रोग हमला नहीं करता है।

इस रोग के इलाज में माडर्न दवाएं ज्यादा सफ़ल नहीं हैं। साईड ईफ़ेक्ट ज्यादा होते हैं। निम्नलिखित उपाय निरापद और कारगर हैं--

१) बादाम १०-१२ नग प्रतिदिन खाएं। यह माईग्रेन का बढिया उपचार है।

२) बंद गोभी(पत्ता गोभी) को कुचलकर एक सूती कपडे में बिछाकर मस्तक (ललाट) पर बांधें। रात को सोते वक्त या दिन में भी सुविधानुसार कर सकते हैं। जब गोभी का पेस्ट सूखने लगे तो नया पेस्ट बनाककर पट्टी बांधें। मेरे अनुभव में यह माईग्रेन का सफ़ल उपाय हैं।



३) अंगूर का रस २०० मिलि सुबह -शाम पीयें। बेहद कारगर नुस्खा है।

४) नींबू के छिलके कूट कर पेस्ट बनालें। इसे ललाट पर बांधें । जरूर फ़ायदा होगा।



५) गाजर का रस और पालक का रस दोनों करीब ३०० मिलि पीयें ।आधाशीशी में गुणकारी है।



६) गरम जलेबी २०० ग्राम नित्य सुबह खाने से भी कुछ रोगियों को लाभ हुआ है।

७) आधा चम्मच सरसों के बीज का पावडर ३ चम्मच पानीमें घोलक्रर नाक में रखें । माईग्रेन का सिरदर्द कम हो जाता है।

७) सिर को कपडे से मजबूती से बांधें। इससे खोपडी में रक्त का प्रवाह कम होकर सिरदर्द से राहत मिल जाती है।




८) माईग्रेन रोगी देर से पचने वाला और मसालेदार भोजन न करें।
९) विटामिन बी काम्प्लेक्स का एक घटक नियासीन है। यह विटामिन आधाशीशी रोग में उपकारी है। १०० मिलि ग्राम की मात्रा में रोज लेते रहें।

१०) तनाव मुक्त जीवन शैली अपनाएं।



११) हरी सब्जियों और फ़लों को अपने भोजन में प्रचुरता से शामिल करें।

फ़ल-चिकित्सा:फ़लों से करें रोग निवारण


यह तो सभी जानते हैं कि फ़ल और सब्जियां सबसे अच्छे भोज्य पदार्थ हैं।अत: भोजन में इनको ज्यादा से ज्यादा शामिल करना अच्छे स्वास्थ के लिये बेहद जरूरी है। यहां मैं उन लोगों के लिये जो विभिन्न प्रकार के रोगों से संघर्ष करते हुए जीवन जी रहे हैं ,रोगों के अनुसार फ़लों व सब्जियों से चिकित्सा का विधान प्रस्तुत कर रहा हूं। आप युर्वेदिक,ऐलोपैथिक,यूनानी जो भी ईलाज ले रहे हों ,फ़ल-सब्जी की चिकित्सा से आप अतिरिक्त लाभ उठा सकते हैं। फ़लों और सब्जियों में एन्टिओक्सीडेंट्स पाये जाते हैं। शरीर का इम्यून पाव्रर यानी रोगों से लडने की क्षमता बढती है।

उच्च रक्त
चाप:अंगूर,टमाटर,अखरोट,तरबूज,संतरा,सेवफ़ल,केला,नाशपती, पत्तागोभी,लहसुन ककडी,नींबू,

रक्ताल्पता,एनीमिया,खून की कमी:

टमाटर,संतरा,अंगूर,सेवफ़ल,स्ट्राबेरी,चुकंदर,गाजर,अंजीर,आलूबुखारा,दाख,पालक,शलजम,

उच्च कोलेस्टरोल(खराब वाला):

आम,अखरोट ,सेवफ़ल,जामुन,गाजर,प्याज,लहसुन,संतरा,

हृदय के रोग:

सेवफ़ल,अख्र्रोट,केला,पाएनेपल,तरबूज,नाशपती

लिवर के विकार:

पपीता,नीबू,अंगूर,गाजर,टमाटर,ककडी,चुकंदर

धमनियां कठोर हो जाना:

संतरा,टमाटर,सेवफ़ल,स्ट्राबेरी,अखरोट,केला

मधुमेह,डायबीटीज,शूगर:

टमाटर,तरबूज,नाशपती,अमरूद ,खट्टे फ़ल

छोटी आंत में पीडा,मरोड,दर्द:

अंगूर टमाटर ,सेवफ़ल,केला,अमरूद,पाईनेपल

खांसी:

अंगूर,सेवफ़ल,स्ट्राबेरी,नाशपती,पाईनेपल,गाजर,नींबू.प्याज,पालक,संतरा

अतिसार,दस्त लगना:

सेवफ़ल

बदहजमी:

पपीता,सेवफ़ल,अंगूर,गाजर,चुकंदर,नीबू,संतरा,पाईनेपल, पालक

बवासीर:

सेवफ़ल,केला ,अंगूर,संतरा,पपीता,पाईनेपल,गाजर,पालक,शलजम

संधिवात:

अंगूर,सेवफ़ल,गाजर,नींबू,नाशपाती,ककडी,पाईनेपल,टमाटर,लाल मिर्च,संतरा,चुकंदर,पालक

गठिया:अनानास(पाईनेपल),ककडी,चुकंदर,पालक,टमाटर

दांत की तकलीफ़:
अंगूर,स्ट्राबेरी

चर्म रोग:

सेवफ़ल,टमाटर,पपीता,अखरोट,स्ट्राबेरी

फ़्लू बुखार:

नींबू,पाईनेपल,लोकाट,स्ट्राबेरी

गर्भवती को उल्टी होना:

नाशपती कमर दर्द: तरबूज,नाशपती

पीठ दर्द:
तरबूज,नाशपती

मोटापा:

नीबू,संतरा,अंगूर,पाईनेपल,पपीता,चुकंदर,गोभी,टमाटर। सेवफ़ल सप्ताह में एक बार आधा किलो जूस पीयें।

वातव्याधि:

विटामिन" सी" और एंटी ओक्सेडेंट परिपूर्ण फ़लों का सेवन करं।

हार्ट अटेक,स्ट्रोक:

रसभरी फ़ल(रास्पबेरी) जितना भी पचा सकें ,खाएं। इससे धमनी का रक्त दाब घटता है और कोलेस्टरोल की मात्रा भी संतुलित होती हैं।

मुख पाक,मुख के संक्रमण:

सतरा,नाशपती,अमरूद

किडनी फ़ेल्योर रोगी:

जो रोगी डायलिसिस पर चल रहे हों उन्हें ककडी का जूस कई महीने देते रहने से डायलिसिस की जरूरत नहीं रहेगी। किडनी एक्टीवेट करने वाला फ़ल है।सेवफ़ल,संतरा,नीबू,गाजर,चुकंदर का रस भी उपयोगी हैं।

बुढापा रोकने वाले फ़ल:

सेवफ़ल,पत्तागोभी,ब्रोकली,जामुन,आंवला,लहसुन,अंगूर,,मूली,पालक,टमाटर

दमा,अस्थमा:

गाजर,संतरा,नाशपाती,लाल मिर्च

सर्दी,जुकाम:
लहसुन,गाजर,पत्तागोभी,नीबू,प्याज,संतरा,स्त्राबेरी,पाईनेपल

कब्ज:

गाजर,पत्तागोभी,,अंजीर,अंगूर,संतरा,पपीता,आलूबुखारा,कद्दू,चुकंदर,सेवफ़ल,शलजम

चेहरे पर कील,मुहासे:
आम,गाजर,अंगूर,संतरा,तरबूज,प्याज,कद्दू,पालक,स्ट्राबेरी

ब्लाडर,मूत्राषय समस्याएं:

नीबू,ककडी,गाजर,सेवफ़ल,

नींद की कमी,निद्राल्पता:

नीबू,गाजर,अंगूर,सेवफ़ल

पीलिया:
नीबू,गाजर,नाशपाती,अंगूर,पालक,चुकंदर,ककडी,पपीता

नाडी मंडल का दर्द,न्यूराईटीज:

पाईनेपल,सेवफ़ल,गाजर,चुकंदर,संतरा

मासिक धर्म के विकार:
आलू बुखारा,शलजम,,चुकंदर,पालक,अंगूर

एक्जीमा:
गाजर,लाल अंगूर,पालक,ककडी,चुकंदर
सिर दर्द:
नीबू,गाजर,अंगूर,पालक

मिर्गी रोग,एपिलेप्सी:
पालक,अंजीर,गाजर,लाल अंगूर

किडनी विकार:
सेवफ़ल,नीबू,संतरा,ककडी,गाजर,चुक्कंदर

पेट के अल्सर:
अंगूर,गोभी,गाजर

गले के विकार:
नीबू,संतरा,पाईनेपल,गाजर,मूली,पालक,आलूबुखारा,टमाटर,प्याज

हार्ट अटैक :सामान्य जानकारी






हृदय हमारे शरीर में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है।संपूर्ण शरीर मे रक्त परिसंचरण हृदय की मांसपेशी के जरिये ही होता है।कोरोनरी धमनी के माध्यम से दिल की मांसपेशियों को रक्त की आपूर्ति होती रहती है और इसी प्रक्रिया से दिल की पेशियां जीवंत रकर कार्यक्षम बनी रहती है।जब इन रक्त वाहिकाओं में खून का थक्का जमने से रक्त परिभ्रमण रूक जाता है तो हार्ट अटैक का दौरा पड जाता है। हृदय की जिन मांस पेशियों को रक्त की आपूर्ति नहीं होती हैं वे मरने लगती हैं। हार्ट अटैक पडने के बाद के १-२ घंटे रोगी के जीवन को बचाने की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण होते हैं।बिना देर किये फ़ौरन मरीज को किसी बडे अस्पताल में पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिये। प्राथमिक चिकित्सा के तौर पर रोगी की जिबान के नीचे सोर्बिट्रेट और एस्प्रिन की गोली रखना चाहिये। समय पर ईलाज मिलने से रक्त का थक्का घुल जाता है और प्रभावित मांसपेशी फ़िर से काम करने लगती है।


हार्ट अटैक के प्रमुख लक्षण--




रोगी को छाती के मध्य भाग में दवाब,बैचेनी,भयंकर दर्द,भारीपन और जकडन मेहसूस होती है। यह हालत कुछ समय रहकर समाप्त हो जाती है लेकिन कुछ समय बाद ये लक्षण फ़िर उपस्थित हो सकते हैं।

अगर यह स्थिति आधा घंटे तक बनी रहती है और सोर्बिट्रेट गोली के इस्तेमाल से भी राहत नहीं मिलती है तो यह हृदयाघात का पक्का प्रमाण माना चाहिये। छाती के अलावा शरीर के अन्य भागों में भी बेचैनी मेहसूस होती है।भुजाओं ,कंधों,गर्दन,कमर और जबडे में भी दर्द और भारीपन मेहसूस होता है।

छाती में दर्द होने से पहिले रोगी को सांस में कठिनाई और घुटन के लक्षण हो सकते हैं। अचानक जोरदार पसीना होना,उल्टी होना और चक्कर आने के लक्षण भी देखने को मिलते हैं। कभी-कभी बिना दर्द हुए दम घुटने जैसा मेहसूस होता है।

जैसा कि ऊपर बताया गया है हार्ट अटैक के लक्षण प्रकट होते ही रोगी को एस्प्रिन की गोली देना चाहिये। घुलन शील एस्प्रिन(डिस्प्रिन) मिल जाए तो आधी गोली पानी में घोलकर पिलानी चाहिये। सोर्बिट्रेट गोली तुरंत जिबान के नीचे रखना चाहिये। एस्प्रिन में रक्त को पतला करने का गुण होता है। रक्त पतला होकर थक्का घुलने लगता है और प्रभावित मांस पेशी को खून मिलने से वह पुन: काम करने लगती है।

इसके बाद हार्ट अटैक रोगी को तुरंत किसी बडे अस्पताल में जहां ईसीजी और रक्त की जांच के साधन हो, पहुंचाने की व्यवस्था करें। साधन विहीन अस्पताल में समय नष्ट करने से रोगी अक्सर मौत के मुंह में चले जाते हैं।रोगी को एक या ज्यादा से ज्यादा डेढ घंटे में बडे अस्पताल में पहुंचाना बेहद जरूरी है। याद रखें, आधे से ज्यादा हृदयाघात के मरीज अस्पताल पहुंचने से पहिले ही मर जाते हैं।


कोलेस्टरोल कम करने के आसान उपाय.




कोलेस्टरोल मुख्यत: ३ प्रकार के होते हैं।

१) एल.डी एल.कोलेस्टरोल- 

यह हानिकारक कोलेस्टरोल रक्त वाहिकाओं में जमता रहता है, जिससे वे भीतर से संकरी हो जाती है और उनमें दौडने वाले खून के प्रवाह में बाधा उत्पन्न होने से हार्ट अटैक और हाई ब्लड प्रेशर जैसे हृदय रोग जन्म लेते हैं।
२) एच.डी.एल.कोलेस्टरोल--

यह लाभदायक कोलेस्टरोल माना जाता है । खून में इसका वांछित स्तर बना रहने से हृदय रोगों की संभावना कम हो जाती है। यह खराब और हानिकारक कोलेस्टरोल को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया में मददगार होता है।

३) ट्राईग्लिसराईड कोलेस्टरोल भी हानिकारक होता है। 

हार्ट अटैक रोग में इसकी जिम्मेदारी काफ़ी अहम मानी गई है।
कोलेस्टरोल नियंत्रित और कम करने के लिये निम्न उपाय करना उचित है--

१) पर्याप्त रेशे वाली खाद्य वस्तुएं दैनिक भोजन में शामिल करें।हरी पत्तेदार सब्जियों में प्रचुर रेशा होता है। इनका ज्युस भी लाभदायक है। सब्जियों में कोलेस्टरोल नहीं होता है।

२) सभी तरह के फ़ल खाएं। कोलेस्टरोल घटाने में इनका विशेष महत्व है।

३) साबुत अनाज,भूरे चावल जई,सोयाबीन का उपयोग करना लाभप्रद है। सोयाबीन में उच्चकोटि का प्रोटीन होताहै।। आलू और चावल में कोलेस्टरोल और सोडियम नहीं होते हैं और कोलेस्टरोल नियंत्रण के लिये इनके उपयोग की अनदेखी नहीं करना चाहिये।



४) टमाटर ,गाजर,सेवफ़ल,नारंगी,पपीता आदि फ़ल खूब खाएं।

५) एक अनुसंधान में यह तथ्य सामने आया है कि काली और हरी चाय का उपयोग कोलेस्टरोल नियंत्रण का सशक्त उपाय है। ज्यादा चाय पीने वालों को हार्ट अटैक की संभावना कम हो जाती है। लेकिन यह चाय दूध और शकर रहित होनी चाहिये।




६) तेल और वनस्पति घी में तली वस्तुएं खाने से खराब कोलेस्टरोल तेजी से बढता है। इनसे बचें।सब्जी, दाल का स्वाद मसालों से बढाएं। तेल,घी न्युनतम व्यवहार करें। कचोरी समोसे तो कभी न खाएं। लेकिन इस जगह यह लिखना भी जरूरी है कि जेतुन का तेल कोलेस्टरोल कम करता है। मंहगा जरूर है पर बहुत ज्यादा फ़ायदेमंद भी है।


७) मांस खाने से खराब कोलेस्टरोल बढता है। यह हृदय रोग उत्पन्न करता है। मांस खाना छोड दें।


८) लहसुन का प्रयोग कोलेस्टरोल घटाता है। सुबह ३-४ लहसुन की कली कच्ची चबाकर खाएं। इसमें खून को पतला करने के तत्व हैं जो खून मे थक्का जमने से बचाव करते हैं। भोजन में भी पर्याप्त लहसुन का प्रयोग करें।

९) कच्चा प्याज ,बादाम, अखरोट,खारक का समुचित उपयोग उत्तम है। इनमें उच्चकोटि की वसा पायी जातीहै।

१०) शकर से कोलेस्टरोल की वृद्धि होती है। अत: न्युनतम उपयोग करें।

११) मछली का तेल बुरे कोलेस्टरोल को नियंत्रित करता है। काड लिवर आईल भी उत्तम है।

१२) नियमित रुप से व्यायाम( घूमने,सीढी चढने) करने से कोलेस्टरोल नियंत्रण में रहता है।

योगासन और प्राणायाम कोलेस्टरोल घटाने मे आशातीत लाभप्रद परिणाम प्रस्तुत करते हैं।

१३) एलोपैथी के चिकित्सक कोलेस्टरोल कम करने के लिये स्टेटिन दवा का व्यवहार करते हैं।

१४) आयुर्वेदिक वैध्य अर्जुन की छाल का काढा,त्रिफ़ला,पुनर्नवा मंडूर ,आरोग्यवर्धिनी वटी तथा चन्द्रप्रभा वटी का उपयोग करते हैं।

१५) कोलेस्टरोल कम करने के लिये जीवनशैली में बदलाव बेहद जरूरी है। मोटापा कम करने से भी कोलेस्टरोल नियंत्रण में मदद मिलती है। आलसी जीवन से कोलेस्टरोल बढता है।

सब्जी और फ़लों से करें रोगों का ईलाज.

गाजर के गुण:



गाजर मे प्रचुर मात्रा में विटामिन ए होता है। यह विटामिन बीटा केरोटीन के रूप में मौजूद रहता है।लिवर में बीटा केरोटीन विटामिन ए में बदल जाता है।गाजर के रस में केंसर विरोधी तत्व पाये जाते हैं। अनुसंधान में पाया गया है कि गाजर में केंसर को ठीक करने के गुण विद्ध्यमान हैं। यह फ़ेफ़डे,स्तन और बडी आंत के केंसर से बचाव करता है।चर्म विकृतियों में भी गाजर का उपयोग लाभप्रद रहता है। चेहरे पर कांति के लिये गाजर का उपयोग किया जाना चाहिये।गाजर हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है। इसे टोनिक के रूप में व्यवहार करना चाहिये। यह नेत्रों के लिये बेहद फ़ायदेमंद है।बुढापे में आने वाले मोतियाबिंद की रोकथाम करता है। गाजर हमारे शरीर के सेल्स को तंदुरस्त रखते हुए बुढापा आने की गति को धीमा करता है।शरीर की खरोंच,घाव ठीक करने के लिये गाजर को कूटकर लगाना चाहिये। गाजर को मेश करके उसमे थोडा सा शहद मिलाकर फ़ेस पेक की तरह इस्तेमाल करने से चेहरे की खूबसूरती में इजाफ़ा होता है।इसमें संक्रमण (इन्फ़ेक्शन। विरोधी तत्व होते हैं।गाजर में अल्फा केरोटीन और ल्युटीन तत्व होने की वजह से हृदय रोगों से भी बचाव करता है।शरीर को स्वच्छ और विजातीय पदार्थों से मुक्त रखने में गाजर की महती भूमिका हो सकती है।यह लिवर की सहायता करके पित्त दोष का निवारण करता है और चर्बी घटाता है।

सेवफ़ल के गुण:


 

 सेवफ़ल में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाये जाते हैं। इसमें खनिज तत्व और विटामिन अधिक मात्रा में मौजूद रहते है। सेवफ़ल में उपस्थित लोह तत्व से शरीर में नया खून बनने में मदद मिलती है। गुर्दे की पथरी वाले रोगियों को नियमित रूप से सेवफ़ल इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। सेवफ़ल में कब्ज तोडने की अद्भुत शक्ति है। कच्चे सेवफ़ल के नियमित उपयोग से कब्ज का स्थाई ईलाज हो जाता है। उबले सेवफ़ल खाने से बच्चों के अतिसार(दस्त लगने) में लाभ होता है। हृदय-रोगों में सेवफ़ल अति गुणकारी सिद्ध हुआ है। उच्च रक्तचाप में इसका उपयोग लाभदायक है।इसमें अच्छी मात्रा में पोटेशियम और फ़ास्फ़ोरस पाया जाता और सोडियम नही के बराबर होता है। यही कारण है कि सेवफ़ल हृदय रोगों में इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। इसमे पेक्टीन होता है जो कोलेस्टरोल(एल्डीएल) को घटाता है। दो सेवफ़ल नित्य खाने से कोलेस्टरोल १६ % तक कम हो जाता है।सेवफ़ल में उपस्थित पेक्टीन शरीर मे गेलेक्टेरुनिक एसीड उत्पन्न करता है जिससे इन्सुलिन की जरूरत कम हो जाती है।इस प्रकार सेवफ़ल डायबीटीज में हितकारी है।इसीलिये तो कहते हैं"an apple a day keeps doctor away."

चुकंदर के गुण:






पारंपरिक रूप से चुकंदर शरीर में नया खून बनाने वाले फ़ल के रूप में जाना जाता है। चुकंदर लिवर,पित्ताषय,तिल्ली, और गुर्दे के विकारों को लाभप्रद पाया गया है। इन अंगों के दूषित तत्वों को बाहर निकालने की शक्ति चुकंदर में पाई गई है। चुकंदर में विटामिन सी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।केल्शियम,फ़ास्फ़ोरस और लोह तत्व भी खूब होता है।इसमें पाये जाने वाले आयरन से कब्ज नहीं होती है। चुकंदर अपने क्छारीय तत्वों की वजह से अम्लपित्त(एसीडीटी) में उपयोगी रहता है। चुकंदर धमनियों में केल्शियम जमने के रोग में अति उपयोगी है।  चुकंदर ब्लड प्रेशर को सामान्य और नियमित करता है। चुकंदर के जूस में शहद मिलाकर पीने से आमाषय के अल्सर में लाभ मिलता है। चुकंदर का जूस और गाजर का जूस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से पित्ताषय(गाल ब्लाडर) और किडनी के रोग नष्ट होते हैं।

चुकंदर में पाया जाने वाला क्लोरिन लिवर के विजातिय पदार्थों को निष्कासित करने(डिटाक्सीफ़ाई) में मददगार होता है। 


सोडियम,पोटेशियम,फ़ासफ़ोरस,क्केल्शियम,आयोडीन,आयरन,ताम्र,विटामिन-बी१,बी२,बी३,बी६ और विटामिन "सी" पाया जाता है।
इसमें एक शक्तिशाली एन्टिआक्सीडेंट पाया जाता है जिसका नाम है- बीटासायनिन. इसमें केंसर से लडने और प्रतिकार की शक्ति है। चुकंदर के गहरे लाल रंग के लिये बीटासायनिन उत्तरदायी है।


कटहल के गुण:

कटहल के फ़ल में कई प्रकार के महत्वपूर्ण प्रोटीन्स,कार्बोहाईड्रेट्स और विटामिन्स पाये जाते हैं।


सब्जी के तौर पर इस्तेमाल किये जाने वाले कटहल से अचार और पापड भी बनाये जाते हैं। कटहल की पत्तियों की राख में अल्सर को ठीक करने के गुण होते हैं। पके हुए कटहल का गूदा निकालकर भली प्रकार मेश करें,फ़िर उबालकर ठंडा करें,यह मिश्रण पीना जबर्दस्त स्फ़ूर्तिदायक होता है। यह मिश्रण शरीर में टानिक का काम करता है। कटहल के छिलकों से निकलने वाले दूध को गांठनुमा सूजन अथवा कटे-फ़टे चमडे ,घाव पर लगावें तो लाभ होता है। कटहल की कोंपलों को कूटकर गोली बनालें। इनको चूसने से स्वर भंग और गले के रोगों में फ़ायदा होता है। इसकी पत्तियों का रस शूगर रोगियों और उच्च रक्तचाप में लाभ पहुंचाता है। कटहल की जड का काढा बनाकर दमा रोगी को पिलाना लाभप्रद होता है। इसमें केंसर से लडने के गुण भी हैं। कटहल से मानव शरीर में प्रोटीन,कर्बोहायड्रेट और विटामिन्स की यथोचित आपूर्ति होती है। इसमें अति न्यून मात्रा में केलोरी और फ़ेट होते है अत: वजन कम करने वालों के लिये भी उपयोगी है। कब्ज रोग से परेशान व्यक्ति इसका नियमित इस्तेमाल करके कब्ज से छुटकारा पा सकते हैं। कटहल की जड का उपयोग कई प्रकार के चर्म रोगों में सफ़लता से किया जा सकता है।


केला के गुण:

केला दुनियं भर में सबसे विस्तृत क्छेत्र में उपयोग होने वाला फ़ल है। इसे छिलका उतारकर या छिलका सहित खाया जा सकता है।





इसमें सोडियम की मात्रा कम और पोटेशियम ज्यादा होने से उच्च रक्तचाप में लाभप्रद फ़ल है। हाई ब्लड प्रेशर की जटिलताओं को भी नियंत्रित करता है। केले में पाया जाने वाला रेशा भी इसमें सहायता करता है। केले में उपस्थित पोटेशियम के प्रभाव से गुर्दों के जरिये केल्शियम की कम हानि होती है और इस प्रकार केला अस्थिक्छरण रोग में लाभ देता है। अतिसार रोग मे केला अत्यंत हितकारी है। इससे ईलेक्ट्रोलाईट्स की पूर्ति होती है और पौषक तत्वों का शरीर में संचय होता है। केले में अम्लता विरोधी तत्वों की मौजूदगी से पेप्टिक अल्सर के रोगियों को केला खाने की सलाह दी जा सकती है।केले में उपस्थित पेक्टीन से आंतों की कार्यकुशलता बढती है और कब्ज रोग में फ़ायदा होता है। कच्चा केला शूगर रोगियों के लिये बेहद लाभ प्रद है। केले के अंदर केरोटोनाईड होता है,इससे विटामिन ए की पूर्ति होती है और रात्री अंधत्व रोग में इस्तेमाल करना प्रयोजनीय है। पर्यात मात्रा में केले का सेवन करते रहने से किडनी के केंसर से बचाव हो सकता है लेकिन प्रोसेस्ड जूस ज्यादा उपयोग करने से किडनी के केंसर की संभावना बढ जाती है।


पाईनेपल(अनानास) के गुण:


वैसे तो सभी ताजा फ़लों में प्रचुर मात्रा में एन्जाईम्स होते हैं लेकिन पाईनेपल में एक अद्भुत एन्जाईम होता है जिसे ब्रोमेलैन कहा जाता है।ब्रोमेलैन की उपस्थिति से यह फ़ल शरीर के किसी भाग में आई सूजन में लाभकारी है और पीडानाशक भी है। इसमें विटामिन सी का भंडार है। पाईनेपल चोंट,खरोंच,मोच,मांसपेशी खिंचने,शौथ में हितकारी फ़ल माना गया है।इसके सूजन विरोधी गुण से संधिवात और गठिया रोगी लाभान्वित हो सकते हैं। शल्य क्रिया के बाद की सूजन ठीक करने में भी इसका व्यवहार होना उचित है। ब्रोमैलेन प्रोटीन पचाने में भी सहयोगी रहता है।यहां यह भी बताना उचित होगा कि एन्जाईम्स ताप से नष्ट हो जाते हैं ,इसलिये पाईनेपल या जूस को ऊबालना हानिकारक है|


जामुन के गुण:

1) जामुन की गुठली चिकित्सा की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी मानी गई है। इसकी गुठली के अंदर की गिरी में 'जंबोलीन' नामक ग्लूकोसाइट पाया जाता है। यह स्टार्च को शर्करा में परिवर्तित होने से रोकता है। इसी से मधुमेह के नियंत्रण में सहायता मिलती है। 



२)जामुन के कच्चे फलों का सिरका बनाकर पीने से पेट के रोग ठीक होते हैं। अगर भूख कम लगती हो और कब्ज की शिकायत रहती हो तो इस सिरके को ताजे पानी के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह और रात्रि, सोते वक्त एक हफ्ते तक नियमित रूप से सेवन करने से कब्ज दूर होती है और भूख बढ़ती है।

३) इन दिनों कुछ देशों में जामुन के रस से विशेष औषधियों का निर्माण किया जा रहा है, जिनके माध्यम से सिर के सफेद बाल आना बंद हो जाएँगे।
४) गले के रोगों में जामुन की छाल को बारीक पीसकर सत बना लें। इस सत को पानी में घोलकर 'माउथ वॉश' की तरह गरारा करना चाहिए। इससे गला तो साफ होगा ही, साँस की दुर्गंध भी बंद हो जाएगी और मसूढ़ों की बीमारी भी दूर हो जाएगी।

५) विषैले जंतुओं के काटने पर जामुन की पत्तियों का रस पिलाना चाहिए। काटे गए स्थान पर इसकी ताजी पत्तियों का पुल्टिस बाँधने से घाव स्वच्छ होकर ठीक होने लगता है क्योंकि, जामुन के चिकने पत्तों में नमी सोखने की अद्भुत क्षमता होती है।

६) जामुन यकृत को शक्ति प्रदान करता है और मूत्राशय में आई असामान्यता को सामान्य बनाने में सहायक होता है।

७) जामुन का रस, शहद, आँवले या गुलाब के फूल का रस बराबर मात्रा में मिलाकर एक-दो माह तक प्रतिदिन सुबह के वक्त सेवन करने से रक्त की कमी एवं शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। यौन तथा स्मरण शक्ति भी बढ़ जाती है।

८) जामुन के एक किलोग्राम ताजे फलों का रस निकालकर ढाई किलोग्राम चीनी मिलाकर शरबत जैसी चाशनी बना लें। इसे एक ढक्कनदार साफ बोतल में भरकर रख लें। जब कभी उल्टी-दस्त या हैजा जैसी बीमारी की शिकायत हो, तब दो चम्मच शरबत और एक चम्मच अमृतधारा मिलाकर पिलाने से तुरंत राहत मिल जाती है।
९) जामुन और आम का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से मधुमेह के रोगियों को लाभ होता है।

१०) गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है।

जामुन स्वाद में खट्टा-मीठा होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है। इसमें उत्तम किस्म का शीघ्र अवशोषित होकर रक्त निर्माण में भाग लेने वाला तांबा पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यह त्वचा का रंग बनाने वाली रंजक द्रव्य मेलानिन कोशिका को सक्रिय करता है, अतः यह रक्तहीनता तथा ल्यूकोडर्मा की उत्तम औषधि है। इतना ध्यान रहे कि अधिक मात्रा में जामुन खाने से शरीर में जकड़न एवं बुखार होने की सम्भावना भी रहती है। इसे कभी खाली पेट नहीं खाना चाहिए और न ही इसके खाने के बाद दूध पीना चाहिए।

संतरा (नारंगी) के गुण:




नारंगी रंग का दिखने वाला संतरा ठंडा, तन और मन को प्रसन्नता देने वाला फल है। यह जितना खाने में स्‍वादिष्‍ट होता है उतना ही स्‍वास्‍थ्‍य के लिए भी फायदेमंद होता है। एक व्यक्ति को जितनी विटामिन ‘सी’ की आवश्यकता होती है, वह एक संतरें को प्रतिदिन खाते रहने से पूरी हो जाती है। संतरे के सेवन से शरीर स्वस्थ रहता है, चुस्ती-फुर्ती बढ़ती है, त्वचा में निखार आता है तथा सौंदर्य में वृद्धि होती है। प्रस्तुत है इसके कुछ प्रयोग-


1. संतरे का सेवन जहाँ जुकाम में राहत पहुँचाता है, वहीं सूखी खाँसी में भी फायदा करता है। यह कफ को पतला करके बाहर निकालता है।

2. संतरे में प्रचुर मात्रा में विटामिन सी, लोहा और पोटेशियम काफी होता है। संतरे की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें विद्यमान फ्रुक्टोज, डेक्स्ट्रोज, खनिज एवं विटामिन, शरीर में पहुंचते ही ऊर्जा देना प्रारंभ कर देते हैं।

3. संतरे का एक गिलास रस तन-मन को शीतलता प्रदान कर थकान एवं तनाव दूर करता है, हृदय तथा मस्तिष्क को नई शक्ति व ताजगी से भर देता है।

4. पेचिश की शिकायत होने पर संतरे के रस में बकरी का दूध मिलाकर लेने से काफी फायदा मिलता है।


5. संतरे का नियमित सेवन करने से बवासीर की बीमारी में लाभ मिलता है। रक्तस्राव को रोकने की इसमें अद्भुत क्षमता है।

6. तेज बुखार में संतरे के रस का सेवन करने से तापमान कम हो जाता है। इसमें उपस्थित साइट्रिक अम्ल मूत्र रोगों और गुर्दा रोगों को दूर करता है।

7. दिल के मरीज को संतरे का रस शहद मिलाकर देने से आश्चर्यजनक लाभ मिलता है।

8. संतरे के सेवन से दाँतों और मसूड़ों के रोग भी दूर होते हैं।




9. छोटे बच्चों के लिए तो संतरे का रस अमृततुल्य है। उन्हें स्वस्थ व हृष्ट-पुष्ट बनाने के लिए दूध में चौथाई भाग मीठे संतरे का रस मिलाकर पिलाने से यह एक आदर्श टॉनिक का काम करता है।

10. जब बच्चों के दाँत निकलते हैं, तब उन्हें उल्टी होती है और हरे-पीले दस्त लगते हैं। उस समय संतरे का रस देने से उनकी बेचैनी दूर होती है तथा पाचन शक्ति भी बढ़ जाती है।

11. पेट में गैस, अपच, जोड़ों का दर्द, उच्च रक्तचाप, गठिया, बेरी-बेरी रोग में भी संतरे का सेवन बहुत कुछ लाभकारी होता है।





12. गर्भवती महिलाओं तथा यकृत रोग से ग्रसित महिलाओं के लिए संतरे का रस बहुत लाभकारी होता है। इसके सेवन से जहाँ प्रसव के समय होने वाली परेशानियों से मुक्ति मिलती है, वहीं प्रसव पीड़ा भी कम होती है। बच्चा स्वस्थ व हृष्ट-पुष्ट पैदा होता है|

13. संतरे के सूखे छिलकों का महीन चूर्ण गुलाब जल या कच्चे दूध में मिलाकर पीसकर आधे घंटे तक लेप लगाने से कुछ ही दिनों में चेहरा साफ, सुंदर और कांतिमान हो जाता है। कील मुँहासे-झाइयों व साँवलापन दूर होता है।

14. संतरे के ताजे फूल को पीसकर उसका रस सिर में लगाने से बालों की चमक बढ़ती है। बाल जल्दी बढ़ते हैं और उसका कालापन बढ़ता है।

आम के गुण:

आम सिर्फ स्वाद में ही नम्बर वन नहीं है, यह अनेक गुणों का भी खजाना है। आइये जानते हैं कि आम किन-किन घातक बीमारियों में मिटाने में हमारी मदद कर सकता है


1. शहद के साथ पके आम के सेवन से क्षयरोग एवं प्लीहा के रोगों में लाभ होता है तथा वायु और कफ दोष दूर होते हैं।

2. यूनानी चिकित्सकों के अनुसार, पका आम आलस्य को दूर करता है तथा मूत्र संबंधी रोगों का सफाया करता है।

3. प्राकृतिक रूप से पका हुआ आम क्षयरोग यानी टीबी को मिटाता है, गुर्दे एवं बस्ति (मूत्राशय) खोई हुई शक्तियों को लौटाता है।

4. जिन लोगों को शुक्रप्रमेह शारीरिक विकारों और वातादि यानी वायु संबंधी दोषों के कारण संतानोत्पत्ति न होती हो उनके लिए पका आम किसी वरदान से कम नहीं है। मतलब कि संतान सुख से वंचित दंपत्ती के लिये आम बेहद लाभदायक होता है।

5. प्राकृतिक रूप से पके हुए ताजे आम के सेवन से पुरूषों में शुक्राणुओं की कमी, नपुंसकता, दिमागी कमजोरी आदि रोग दूर होते हैं।

६)कच्चे और पके दोनों तरह के आम कई तरह की किस्मों में मिलते हैं । कच्चे आम में गैलिक एसिड के कारण खटास होती है। आम के पकने के साथ उसका रंग भी सफेद से पीला हो जाता है। यही पीले रंग का कैरोटीन हमारे शरीर में जाकर विटामिन 'ए' में परिवर्तित हो जाता है। इसमें विटामिन 'सी' भी काफी होता है।

कच्चा आम-

कच्चे आम में बहुत से गुण पाए जाते हैं। कच्चे आम को आग में भूनकर पानी में मसलकर आम का पन्ना बनाते हैं। फिर इसमे भुना हुआ जीरा, सेंधानमक और कालीमिर्च डालते हैं। इस पन्ना को पीने से लू लगने के रोग में आराम आता है। आम के पन्ना को शरीर पर मलने से ठण्डक मिलती है।
७) पका आम
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मीठे और पके आम शरीर में वीर्य को बढ़ाने वाले, ताकत पैदा करने वाले, त्वचा को निखारने वाले, ठंडे और पित्त को सन्तुलित रखने वाले होते हैं।


८) आमरस-



 आम का रस भारी- ताकत बढ़ाने वाला, वात को हरने वाला, दस्त लाने वाला, प्यास को कम करने वाला और शरीर में कफ की मात्रा को बढ़ाने वाला होता है। अगर आम के रस को निकालकर उसमे बराबर मात्रा में दूध और सफेद बूरा या इच्छानुसार मिश्री मिलाकर कपड़े में छानकर इस्तेमाल किया जाए तो ये बहुत ही स्वादिष्ट आम का रस बन जाता है।
लाभकारी-

९) दूध और मिश्री मिला हुआ आम का रस शरीर के अन्दर से पित्त को समाप्त करता है। ये पुष्टिदायक, रुचिकारक और वीर्य तथा बल को बढ़ाने वाला होता है। ये आम का रस स्वाद में मीठा और तासीर में ठंडा होता है। आम का रस यक्ष्मा (टी.बी) के रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी है। इसको पीने से बुखार तथा खांसी जैसे रोग दूर हो जाते हैं। यक्ष्मा (टी.बी ) के रोगी की सांस जब चढ़ने लगती है, बलगम में खून आता हो तो ऐसे समय में रोगी को आम का रस देने से बहुत लाभ होता है।
कब न खाएँ :

भूखे पेट आम न खाएँ। इसके अधिक सेवन से रक्त विकार, कब्ज और पेट में गैस बनती है। कच्चा आम अधिक खाने से गला दर्द, अपच, पेट दर्द हो सकता है। कच्चा आम खाने के तुरंत बाद पानी न पिएँ। मधुमेह के रोगी आम से परहेज करें। खाने से पहले आम को ठंडे पानी या फ्रिज में रखें, इससे इसकी गर्मी निकल जाएगी।


करेला के गुण:


एक असाध्य बीमारी है मधुमेह ‘डायबिटीज’ । करेला मधुमेह के रोगियों के लिए ‘अमृत’ तुल्य है। 100 मिली. के रस में इतना ही पानी मिलाकर दिन में तीन बार लेने से लाभ होता है और प्रात: चार किलोमीटर टहलना चाहिए तथा मिठाई खाने से परहेज रखना चाहिए। करेला मधुमेह के अलावा अन्य शारीरिक तकलीफों में भी लाभदायक है। 

जैसे-

कब्ज : नित्य करेला सेवन करने से कब्ज दूर होता है। यह एक अनुपम सब्जी है और इसमें ज्यादा तेल-मसाले नहीं डालने चाहिए।
पीलिया : ताजा करेले का रस सुबह-शाम पीने से लाभ होता है।
दमा : दमा के मरीज भी करेले का रस सुबह खाली पेट लेकर राहत पा सकते हैं। सब्जी भी ज्यादा खानी चाहिए।
पथरी : पथरी गुर्दे की हो या मूत्राशय की, इसे तोड़कर बाहर निकालने की क्षमता करेला रखता है। करेले का रस दिन में दो बार और दोनों समय भोजन में करेले की सब्जी खानी चाहिए।

खूनी बवासीर : मस्से फटने से रक्तस्राव होता है जिसे खूनी बवासीर कहा जाता है। रोगी नित्य दिन में दो समय करेले के रस में दो चम्मच शक्कर मिलाकर पिये तो लाभ होगा।
पाचन शक्ति : यदि पाचन शक्ति कमजोर हो तो किसी भी प्रकार करेले का नित्य सेवन करने से पाचन शक्ति मजबूत होती है। करेला स्वयं भी शीघ्र पचता है।
खून की शुध्दि : करेला खून की शुध्दि करने में पूरी तरह सक्षम है। यदि त्वचा-रोग हो तो भी रक्त-शुध्दि हेतु करेले का रस कुछ दिनों तक आधा-आधा कप पीना लाभदायक है। इस प्रकार कड़ुवा करेला अनेकों रोगों में औषधि रूप में काम आ सकता है बशर्ते उसे उसी रूप में लिया जाये- रस या सब्जी बनाकर।

लौकी के गुण:



सब्जी के रुप में खाए जाने वाली लौकी हमारे शरीर के कई रोगों को दूर करने में सहायक होती है। यह बेल पर पैदा होती है और कुछ ही समय में काफी बड़ी हो जाती है। वास्तव में यह एक औषधि है और इसका उपयोग हजारों रोगियों पर सलाद के रूप में अथवा रस निकालकर या सब्‍जी के रुप में एक लंबे समय से किया जाता रहा है।

लौकी को कच्‍चा भी खाया जाता है, यह पेट साफ करने में भी बड़ा लाभदायक साबित होती है और शरीर को स्‍वस्‍य और शुद्ध भी बनाती है। लंबी तथा गोल दोनों प्रकार की लौकी वीर्य वर्धक , पित्‍त तथा कफनाशक और धातु को पुष्ट करने वाली होती है। आइए इसके औषधीय गुणों पर एक नज़र डालते हैं-

1. हैजा होने पर 25 एम.एल. लौकी के रस में आधा नींबू का रस मिलाकर धीरे-धीरे पिएं। इससे मूत्र बहुत आता है।

2.खांसी, टीबी, सीने में जलन आदि में भी लौकी बहुत उपयोगी होती है।

3.हृदय रोग में, विशेषकर भोजन के पश्चात एक कप लौकी के रस में थोडी सी काली मिर्च और पुदीना डालकर पीने से हृदय रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

4.लौकी में श्रेष्‍ठ किस्म का पोटेशियम प्रचुर मात्रा में मिलता है, जिसकी वजह से यह गुर्दे के रोगों में बहुत उपयोगी है और इससे पेशाब खुलकर आता है।

5.लौकी श्‍लेषमा रहित आहार है। इसमें खनिज लवण अच्‍छी मात्रा में मिलते है।

6.लौकी के बीज का तेल कोलेस्‍ट्रॉल को कम करता है तथा हृदय को शक्‍ति देता है। यह रक्‍त की नाडि़यों को भी तंदुरस्त बनाता है। लौकी का उपयोग आंतों की कमजोरी, कब्‍ज, पीलिया, उच्‍च रक्‍तचाप, हृदय रोग, मधुमेह, शरीर में जलन या मानसिक उत्‍तेजना आदि में बहुत उपयोगी है।


टमाटर के गुण:




टमाटर स्वादिष्ट होने के साथ पाचक भी होता है। पेट के रोगों में इसका प्रयोग औषधि की तरह किया जा सकता है। जी मिचलाना, डकारें आना, पेट फूलना, मुँह के छाले, मसूढ़ों के दर्द में टमाटर का सूप अदरक और काला नमक डालकर लिया जाए तो तुरंत फायदा होता है।

टमाटर के सूप से शरीर में स्फूर्ति आती है। पेट भी हल्का रहता है। सर्दियों में गर्मागर्म सूप जुकाम इत्यादि से बचाता है। अतिसार, अपेंडिसाइटिस और शरीर की स्थूलता में टमाटर का सेवन लाभदायक है। रक्ताल्पता में इनका ‍निरंतर प्रयोग फायदा देता है।

टमाटर की खूबी है कि इसके विटामिन गर्म करने से भी नष्ट नहीं होते। बेरी-बेरी, गठिया तथा एक्जिमा में इसका सेवन आराम देता है। ज्वर के बाद की कमजोरी दूर करने में इससे अच्छा कोई विकल्प नहीं। मधुमेह के रोग में यह सर्वश्रेष्ठ पथ्य है।

टमाटर में विटामिन 'सी' होता है, जो कि इम्युनिटी के स्तर को बढ़ाता है जिससे साधारण सर्दी और कफ की शिकायत नहीं होती। गॉल स्टोन और लिवर कन्जेशन में भी टमाटर का सेवन कारगर है। हम कह सकते हैं कि टमाटर पोषक तत्वों का खजाना है, क्योंकि इसमें पाए जाने वाला विटामिन 'ए' आँखों और त्वचा के लिए व पोटेशियम मांसपेशियों में होने वाली ऐंठन में भी फायदा पहुँचाता है।

टमाटर में जो लाल रंग का तत्व होता,उसे लायकोपिन कहते हैं,यह तत्व शरीर को विजातीय पदार्थों(टाक्सीन्स) से मुक्त करने में सहायक है।लायकोपिन शरीर को फ़्री रेडिकल्स से मुक्त करने के मामले में बीटा केरोटीन(एन्टी ओक्सीडेन्ट) से भी आगे है।

अनुसंधान में पाया गया है कि टमाटर के नियमित सेवन से प्रोस्टेट केंसर से बचाव होता है।इसराईल के वैग्यानिकों के अनुसार टमाटर फ़ेफ़डे,बडी आंत और गर्भाषय के केंसर से बचाव करता है।और सबसे सुखप्रद तथ्य ये कि टमाटर सेवन करने से व्यक्ति लंबे समय तक बुढापे की चपेट मे नहीं आता है।


पपीता के गुण:


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पपीता न केवल एक स्वादिष्ट फ़ल है बल्कि इसमे उपस्थित औषधीय गुणों का विशेष महत्व है।

पपीते में उच्च मात्रा में पोटेशियम तत्व पाया जाता है और इसके गूदे में भरपूर विटामिन" ए " मिलता है। पपीता के बीज और पत्तियां अपने कीटाणुनाशक गुणों के चलते आंतों में निवास करने वाले किटाणुओं को मारने के लिये प्रयोग किये जा सकते हैं।इसके नियमित उपयोग से कब्ज रोग का ईलाज हो जाता है।इसमें पाये जाने वाले पापैन(प्रोटीन) का हमारे शरीर के पाचन संस्थान को चुस्त-दुरस्त रखने का उत्तरदायित्व है। पपीते का जूस नियमित पीने से बडी आंत की सफ़ाई होती है और उसमें स्थित संक्रमण,श्लेष्मा और पीप का निष्कासन होने लगता है। ऐसे घाव जो अन्य चिकित्सा से ठीक न हो रहे हों पपीता का छिलका उन घावों पर कुछ रोज लगाकर अच्छे परिणाम की उम्मीद रखना चाहिये। पपीता में सूजन विरोधी और केंसर से बचाने के गुण मौजूद हैं।इस सूजन विनाशक गुण के चलते पपीता उन लोगों के लिये फ़ायदेमंद है जो शौथ,संधिवात ,गठिया रोग से पीडित है। 

पपीता उदर रोगों में लाभकारी है। आमाषय को स्वच्छ करता है। एक ताजा अध्ययन का निष्कर्ष है कि ३-४ रोज सिर्फ़ पपीता खाने से आमाषय और आंतों को आशातीत लाभ मिलता है।

कच्चा पपीता खाने से मासिक धर्म के विकार नष्ट होते हैं। मासिक धर्म खुलकर और नियमित आने लगता है। पपीता उन लोगों के लिये अमृत समान है जो सर्दी,खासी,फ़्लु से बार-बार परेशान रहते हैं। पपीता का उपयोग करने से हमारे शरीर का इम्युन सिस्टम मजबूत होता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्छमता में इजाफ़ा होता है।गर्भवतियों में सुबह की मिचली नियंत्रित करने के लिये पपीता का सेवन हितकारी है।

धमनियों के कठोर होने के दोष को निवारण करने में पपीता उपयोगी है। शूगर रोगियों की हृदय की बीमारियों में पपीता अत्यंत हितकारी है।पपीता का रेशा खराब कोलेस्टरोल(एल्डीएल) का स्तर घटाता है और इस प्रकार हृदय की सुरक्छा करता है। इसके नियमित सेवन से अंगों और ग्रंथियों में केंसर की रोकथाम और बचाव होता है।


कद्दू(काशीफ़ल) के गुण:




कद्दू में मुख्य रूप से बीटा केरोटीन पाया जाता है, जिससे विटामिन ए मिलता है। पीले और संतरी कद्दू में केरोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत ज्यादा होती है। बीटा केरोटीन एंटीऑक्सीडेंट होता है जो शरीर में फ्री रैडिकल से निपटने में मदद करता है। कद्दू ठंडक पहुंचाने वाला होता है। इसे डंठल की ओर से काटकर तलवों पर रगड़ने से शरीर की गर्मी खत्म होती है। कद्दू लंबे समय के बुखार में भी असरकारी होता है। इससे बदन की हरारत या उसका आभास दूर होता है।

कद्दू के बीज भी बहुत गुणकारी होते हैं। कद्दू व इसके बीज विटामिन सी और ई, आयरन, कैलशियम मैग्नीशियम, फॉसफोरस, पोटैशियम, जिंक, प्रोटीन और फाइबर आदि के भी अच्छे स्रोत होते हैं। यह बलवर्धक, रक्त एवं पेट साफ करता है, पित्त व वायु विकार दूर करता है और मस्तिष्क के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। प्रयोगों में पाया गया है कि कद्दू के छिलके में भी एंटीबैक्टीरिया तत्व होता है जो संक्रमण फैलाने वाले जीवाणुओं से रक्षा करता है।

कद्दू का रस भी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। यह मूत्रवर्धक होता है और पेट संबंधी गड़बड़ियों में भी लाभकारी रहताहै। यह खून में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने में सहायक होता है और अग्नयाशय को भी सक्रिय करता है। इसी वजह से चिकित्सक मधुमेह के रोगियों को कद्दू के सेवन की सलाह देते हैं।

प्रोस्टेट ग्रंथि बढने के रोग में ३० ग्राम कद्दू के बीज(छिलका रहित) तवे पर सेक लें और खाएं। ऐसा दिन में तीन बार करें। इन बीजों में फ़ायटोस्टरोल तत्व की उपस्थिति से प्रोस्टेट ग्रंथि सिकुडकर मूत्र बिना रुक्कावट खुलकर आने लगता है।


प्याज के गुण:

 

कुछ चीजें ऐसी हैं कि जिन्हे हम अनजाने में खाते है लेकिन वे हमारे स्वास्थ्य के लिये फ़ायदेमंद होती हैं।साधारण तौर पर हम प्याज का उपयोग खाने को रुचिकर बनान के हिसाब से करते हैं। लेकिन जानने योग्य यह है कि प्याज गर्म तासीर वाला होता है और स्वास्थ्य संबंधी कईे परेशानियों को दूर करने वाला साबित होता है।

रक्त दोष दूर करने के लिये प्याज के ५० ग्राम रस में १०ग्राम मिश्री और २ ग्राम जीरा सफ़ेद भुना हुआ मिलालें।

अजीर्ण याने बदहजमे की शिकायत हो तो प्याज के छोटे छोट टुकडे काट लें उसमें नींबू निचोड लें और भोजन के सार्थ सेवन करें

बच्चों को बदहजमी होने पर उनको प्याज के रस की ३-४ बूंदे चटानी चाहिये।प्याज पीसकर बालों में लगा्ने से खोपडी के बाल काले उगने लगेगे। जिस जगह सिर के बाल उड गये हों वहां प्याज का रस ऊंगली से मालिश करें , वहां बाल उगने लगेंगे।

प्याज मं क्वेरसेटिन नामक एन्टिओक्सीडेंट प्रचुरता से पाया जाता है जो आमाषय के केंसर की रोक थाम करता है। यह लाल और पीले प्याज में पाया जाता है ,

सफ़ेद प्याज में नहीं मिलता है। प्याज का यह एन्टिओक्सीडेंट रक्तवहा नलिकाओं में खून के थक्के जमने स रोकता है,खून को पतला करता है,खराब कोलेस्टरोल कम करता है और बढिया कोलेस्टरोल का स्तर ऊंचा करता है। दमा रोगी और पुरानी खासी के मरीज प्याज के सेवन से लाभान्वित होते हैं। 

धमनी काठिन्य रोग में प्याज सेवनीय है।
प्याज सूजन विरोधी गुण रखता है,संक्रमण में एन्टिबायोटिक के रूप मे काम करता है। प्याज में केंसर से लडने की की क्षमता है।
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मांसाहार और हमारा स्वास्थ्य-

अब यह तथ्य पूर्णत: संदेह से परे है कि मांस खाना मानव शरीर के स्वास्थ्य के लिये बेहद हानिकारक है। मास भक्षण से होने वाली बीमारिया और स्वास्थ्य संबंधी हानियां इतनी ज्यादा हैं कि उनके उल्लेख से तो एक बडा ग्रंथ तैयार हो जाएगा। संक्षेप में गिनाएं तो मांसाहार से मनुष्य निम्न रोगों से ग्रसित हो सकता है-

रक्ताल्पता,छाती का केंसर,अपेंडीसाईटीज, प्रोस्टेट ग्रंथि का केंसर, बडी आंत का केंसर,पित्ताषय में पथरी बनना,गठिया,संधिवात, कब्ज,मोटापा,मधुमेह, बवासिर, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट अट्टेक ये वे रोग हैं जो शाकाहारी लोगों की तुलना में मांसाहारियों को ही ज्यादा होते हैं।

मांस भक्षण से आपके शरीर में पशुऒं को खिलाई गई जहरीली दवाएं,हारमोन और रसायनिक पदार्थ भी पहुंच जाते हैं। जानने योग्य बात है कि शाकाहारी लोग मांसाहारी लोगों के तुलना में २५% कम बीमार पडते हैं और कभी बीमार हो भी गए तो उनकी रिकवरी(स्वास्थ्य लाभ) थौडे समय में हो जाता है।दर असल मानव शरीर शाकाहार के हिसाब से ही निर्मित हुआ है। अधिक उम्र के मांसाहारियों का पाचन बिगड जाता है। अत: मांसाहार शरीर को शक्ति, और उर्जा प्रदान करने के बजाय सुस्ती,बैचेनी,क्रोधऔर दुख: से आक्रांत कर लेता है। मानव और शाकाहारी पशुओं की वसा और कोलेस्टरोल पचाने की क्षमता सीमित होती है। धमनियां कठोर होने लगती हैं जिससे रक्त का प्रवाह हृदय के ओर कम हो जाता है। परिणामस्वरूप हार्ट अटेक की संभावना बढ जाती है।

वैग्यानिकों का एक समूह यह मत रखता है कि हमारे शरीर के लिय संतृप्त वसा की जरूरत नहीं है। जबकि दूसरे वैग्यानिक कहते हैं कि स्वस्थ रहने के लिये संतृप्त वसा बेहद आवश्यक है। सभी प्रकार की वसा तो नुकसान देह नहीं होती हैं लेकिन पशुओं से प्राप्त वसा सीधे ही हृदय पर बुरा असर डालती है। रक्त परिसंचरण तंत्र पर व्यापक रूप से बुरा असर पडता है। इसके अलावा मांस भक्षण से मोटापा बढता है जो आज के युग की बहुत बडी समस्या है।



 

 मांसाहार हमारी पाचन संस्थान पर ज्यादा बोझ डालता है। बहुत देर से पचता है। मांस बहुत लंबे समय तक आंतों में पडा रहता है। यह स्थिति केंसर पनपने के अनुकूल होती है। आंतों में पडे मांस में सडने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है और सडा हुआ मास आतों की झिल्लियों से चिपक जाता है। ये जहरीले पदार्थ लिवर ,आतों और किडनी में रोग उत्पन्न कर देते हैं।।मांस में कई प्रकार के जहरीले तत्व मौजूद होते हैं जो मानव में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न कर मृत्यु का कारण बनते हैं।

महिलाओं पर किये गये एक अनुसंधान की रिपोर्ट है कि अधिक मात्रा में मांस खाने वाली महिलाओं में केंसर से मरने का खतरा २०% ज्यादा होता है जबकि हृदय रोगों की चपेट में आकर मरने का खतरा ५०% अधिक रहता है। इस अध्ययन में यह निष्कर्ष भी सामने आया है कि मांसाहार पर नियंत्रण कर ११॓% पुरुष और १६% महिलाओं को अकाल मौत से बचाया जा सकता है।रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि मांस में सबसे निम्न दर्जे की वसा होती है जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। यह भी कहा गया है कि मांस में केंसर पैदा करने वाले रसायन पाये जाते हैं। जो आहार रोग उत्पन्न करे और मनुष्य की मृत्यु का कारण बने उसे दर असल आहार की श्रेणी में रखना ही गलत है। क्या स्वाद और संतुष्टि के लिये जीवन को संकट में डालना उचित है? जबकि फ़लों और सब्जियों से भी यही संतुष्टि पाकर स्वास्थ्य को उन्नत किया जा सकता है?

 

 मांसाहारियों में प्रोस्टेट ग्रंथि में केंसर का खतरा ४०% अधिक रहता है।

स्टडी में बताया गया है कि मांसभक्षी को हृदय रोगों से मरने का खतरा शाकाहारी की तुलना में दूगना रहता है। केंसर से मरने का खतरा ६०% ज्यादा रहता है। इसके अलावा ३०% अधिक खतरा अन्य रोगों से मरने का रहता है। मोटापा जो कई रोगों का आश्रय स्थल है जैसे हाई ब्लड प्रेशर,डाईबीटीज और पित्ताषय के रोग शाकाहारियों में कम देखने को मिलता है।

अमेरिका की केंसर सोसायाटी का मत है कि आहार में से मांस हटाकर और शाकाहार को प्रोत्साहित कर अमेरिका में प्रतिवर्ष ९ लाख नये केंसर रोगियों में से ३५% रोगियों का जीवन बचाया जा सकता है।


चिकित्सा वैग्यानिक खुलासा प्रमाणित कर चुके हैं कि मांस का नियमित प्रयोग शरीर में विभिन्न रोगों को आसानी से प्रवेश का न्योता है। मांस भक्षण से केंसर,गठिया,टाईफ़ाईड,पेट में अल्सर,पीलिया,सिरदर्द,हृदय रोग,पागलपन और गुदा का भगंदर जैसे रोगों के पैदा होने की प्रबल संभावना रहती है।

मांस,शराब,गांजा,भांग,अफ़ीम आदि तामसिक भोजन कहलाते हैं। लेकिन आज मांस के व्यंजन उच्च जीवन शैली के प्रतीक माने जाने लगे हैं।यह स्थिति भयावह है। लेकिन देर से ही सही अब अमेरिका,यूरोप,जापान आदि देशों में लोग शाकाहारी भोजन की महत्ता समझने लगे हैं और प्रतिवर्ष ऐसे लोगों की तादाद में इजाफ़ा हो रहा है।विभिन्न शोध रेपोर्टों मे यह निष्कर्ष आया है कि मांसाहार से जटिल रोगों की पैदाईश होती है।मांसाहारी लोगों की रक्त-नलिकाओं में कोलेस्टरोल(चिकनाई) जम जाती है,इससे दिल को पहुंचने वाले खून की आपूर्ति में बाधा आने लगती है।उच्च रक्तचाप की स्थिति बनने लगती है। नतीजतन हार्ट अटैक और लकवा जैसे रोग हमला करने की जुगत में तैयार रहते हैं।मांसाहारी पुरुषों में प्रोस्टेट- केंसर होने की ज्यादा संभावना रहती है,जबकि मांसाहारी औरतों में गर्भाषय,डिम्बाषय और स्तन का केन्सर होने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है।

चिकित्सा वैग्यानिकों की शोध में यह तथ्य भी उभरकर आया है कि मांसाहारी लोग शाकाहारी लोगों की बनिस्बत ज्यादा बीमार पडते हैं।जबकि शाकाहारी लोग अगर बीमार पडते भी हैं तो मामूली किस्म के उपचार या ईलाज से वे ठीक हो जाते हैं। एक तथ्य यह भी है कि जहां मांसाहार जितना कम होगा वहां केंसर रोग उतना ही कम तादाद में मिलता है।

ध्यान देने योग्य है कि एक किलो मांस में करीब १२-१३ ग्रेन यूरिक एसीड पाया जाता है।यह केमिकल एक प्रकार का जहर है जिसकी मात्रा खून में अधिक हो जाने पर दिल की जलन,लिवर रोग, टी बी, श्वास रोग,रक्ताल्पता,गठिया,हिस्टीरिया आदि भयानक रोग पैदा हो जाते हैं।

एक वैग्यानिक ने यह साबित किया है कि दही और खट्टी छाछ मानव के दीर्घ जीवन के लिये आवश्यक भोजन पदार्थ हैं। इनसे जोडों में जमा हुआ यूरिक एसीड बाहर निकल जाता है।सुचारू रक्त परिसंचरण के लिये यूरिक एसीड को शरीर से बहार निकाला पहला काम है। शाकाहार से शक्ति पैदा होती है जबकि मांसाहार से शरीर में उत्तेजना और दिमाग में हिंसक विचार पैदा होते हैं। मांसाहार शरीर में सुस्ती पैदा करता है और थॊडे से परिश्रम से थकावट मेहसूस होने लगती है।मांसाहारी मानव का शरीर कई जटिल रोगों का आश्रय स्थल बन जाता है। सारांश के तौर पर हमने समझा कि मांसाहारी भोजन की बनिस्बत शाकाहारी भोजन शरीर और मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम है।