कैसे गयासुद्दीन गाजी बना गंगाधर...
शुरुआत होती है गंगाधर (गंगाधर नेहरू नहीं), यानी मोतीलाल नेहरू के पिता से नेहरू उपनाम बाद में मोतीलाल ने खुद लगा लिया था, जिसका शाब्दिक अर्थ था नहर वाले, वरना तो उनका नाम होना चाहिये था मोतीलाल ’धर’, लेकिन जैसा कि इस खानदान की नाम बदलने की आदत थी उसी के मुताबिक उन्होंने यह किया ।
रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज की किताब ए लैम्प फॉर इंडिया - द स्टोरी ऑफ मदाम पंडित में उस तथाकथित गंगाधर का चित्र छपा है, जिसके अनुसार गंगाधर असल में
एक सुन्नी मुसलमान था, जिसका असली नाम गयासुद्दीन गाजी था। आप सोच रहें होगें की ये कैसे पता चला?
दरअसल नेहरू ने खुद की आत्मकथा में एक जगह लिखा था कि उनके दादा अर्थात मोतीलाल के पिता गंगा धर थे, ठीक वैसा ही जवाहर की बहन कृष्णा ने भी एक जगह लिखा है कि उनके दादाजी मुगल सल्तनत (बहादुरशाह जफर के समय) में नगर कोतवाल थे।
अब इतिहासकारों ने खोजा तो पाया कि बहादुरशाह जफर के समय कोई भी हिन्दू इतनी महत्वपूर्ण ओहदे पर नहीं था।
और खोजबीन पर पता चला कि उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे नाम थे भाऊ सिंह और काशीनाथ, जो कि लाहौरी गेट दिल्ली में तैनात थे, लेकिन किसी गंगा धर नाम के व्यक्ति का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला (मेहदी हुसैन की पुस्तक बहादुरशाह जफर और १८५७ का गदर, १९८७ की आवृत्ति), रिकॉर्ड मिलता भी कैसे, क्योंकि गंगा धर नाम तो बाद में अंग्रेजों के कहर से डर कर बदला गया था, असली नाम तो था गयासुद्दीन गाजी।
जब अंग्रेजों ने दिल्ली को लगभग जीत लिया था, तब मुगलों और मुसलमानों के दोबारा विद्रोह के डर से उन्होंने दिल्ली के सारे हिन्दुओं और मुसलमानों को शहर से बाहर करके तम्बुओं में ठहरा दिया था, अंग्रेज वह गलती नहीं दोहराना चाहते थे, जो हिन्दू राजाओं (पृथ्वीराज चैहान ने) ने मुसलमान आक्रांताओं को जीवित छोडकर की थी, इसलिये उन्होंने चुन-चुन कर मुसलमानों को मारना शुरु किया, लेकिन कुछ मुसलमान दिल्ली से भागकर पास के इलाकों मे चले गये थे। उसी समय यह परिवार भी आगरा की तरफ कूच कर गया हमने यह कैसे जाना?
नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि आगरा जाते समय उनके दादा गंगा धर को अंग्रेजों ने रोक कर पूछताछ की थी, लेकिन तब गंगा धर ने कहा था कि वे मुसलमान नहीं हैं, बल्कि कश्मीरी पंडित हैं और अंग्रेजों ने उन्हें आगरा जाने दिया बाकी तो इतिहास में सब हैं ही।
यह धर उपनाम कश्मीरी पंडितों में आमतौर पाया जाता है, और इसी का अपभ्रंश होते-होते और धर्मान्तरण होते-होते यह दर या डार हो गया जो कि कश्मीर के अविभाजित हिस्से में आमतौर पाया जाने वाला नाम है ।
लेकिन मोतीलाल ने नेहरू नाम चुना ताकि यह पूरी तरह से हिन्दू सा लगे। इतने पीछे से शुरुआत करने का मकसद सिर्फ यही है कि हमें पता चले कि खानदानी लोग क्या होते हैं ।
कहा जाता है कि आदमी और घोडे को उसकी नस्ल से पहचानना चाहिये, प्रत्येक व्यक्ति और घोडा अपनी नस्लीय विशेषताओं के हिसाब से ही व्यवहार करता है, संस्कार उसमें थोडा सा बदलाव ला सकते हैं, लेकिन उसका मूल स्वभाव आसानी से बदलता नहीं है।
एम कैम कैसी शेम,नेम का ये गेम हैं,,,
नाम बदनाम हैं मगर अपुन का फ़ेम हैं
Rajesh Agrawal