23 July 2013

!!! शिव जी के दस प्रमुख अवतार !!!



शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के दस प्रमुख अवतार ।
यह दस अवतार इस प्रकार है जो मानव को सभी इच्छित फल प्रदान करने वाले हैं-

1. महाकाल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में पहला अवतार महाकाल नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का महाकाल स्वरुप अपने भक्तों को भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला परम कल्याणी हैं। इस अवतार की शक्ति मां महाकाली मानी जाती हैं।

2. तार- शिव के दस प्रमुख अवतारों में दूसरा अवतार तार नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का तार स्वरुप अपने भक्तों को भुक्ति-मुक्ति दोनों फल प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति तारादेवी मानी जाती हैं।

3. बाल भुवनेश- शिव के दस प्रमुख अवतारों में तीसरा अवतार बाल भुवनेश नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का बाल भुवनेश स्वरुप अपने भक्तों को सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को बाला भुवनेशी माना जाता हैं।

4.षोडश श्रीविद्येश- शिव के दस प्रमुख अवतारों में चौथा अवतार षोडश श्रीविद्येश नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का षोडश श्रीविद्येश स्वरुप अपने भक्तों को सुख, भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी षोडशी श्रीविद्या माना जाता हैं।

5. भैरव- शिव के दस प्रमुख अवतारों में पांचवा अवतार भैरव नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का भैरव स्वरुप अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति भैरवी गिरिजा मानी जाती हैं।

6. छिन्नमस्तक- शिव के दस प्रमुख अवतारों में छठा अवतार छिन्नमस्तक नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का छिन्नमस्तक स्वरुप अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति देवी छिन्नमस्ता मानी जाती हैं।

7. धूमवान- शिव के दस प्रमुख अवतारों में सातवां अवतार धूमवान नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का धूमवान स्वरुप अपने भक्तों की सभी प्रकार से श्रेष्ठ फल देने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी धूमावती माना जाता हैं।

8. बगलामुख- शिव के दस प्रमुख अवतारों में आठवां अवतार बगलामुख नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का बगलामुख स्वरुप अपने भक्तों को परम आनंद प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी बगलामुखी माना जाता हैं।

9. मातंग- शिव के दस प्रमुख अवतारों में नौवां अवतार मातंग के नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का मातंग स्वरुप अपने भक्तों की समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी मातंगी माना जाता हैं।

10. कमल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में दसवां अवतार कमल नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का कमल स्वरुप अपने भक्तों को भुक्ति और मुक्ति प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी कमला माना जाता हैं।

विद्वानो के मत से उक्त शिव के सभी प्रमुख अवतार व्यक्ति को सुख, समृद्धि, भोग, मोक्ष प्रदान करने वाले एवं व्यक्ति की रक्षा करने वाले हैं।



!!! चंद लम्हों का यह शिव मंत्र..सारी दिक्कतों का जल्द करे काम तमाम !!!



हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक त्रिदेवों में ब्रह्मदेव सृष्टि, विष्णु पालन तो शिव संहारक शक्ति के रूप में पूजनीय है। हालांकि त्रिदेव एक ही ईश्वर की तीन शक्तियां और कल्याणकारी स्वरूप माने जाते हैं। खासतौर पर शिव नाम का अर्थ और भाव ही कल्याण, शुभ और मंगल से हैं। जिसमें संकेत साफ है कि शिव नाम या भक्ति मन, वचन और कर्म में शुभ को स्थान देकर अशुभ से दूर ले जाते हैं।

शास्त्र कहते हैं कि शिव नाम बुरे भाव, विचार व इच्छाओं का अंत कर प्राणी को जगत के कल्याण का कारण बनाता है। शिव का तमोगुणी संहारक रूप भी असल में तामसी, पापी या बुरी शक्तियों का अंत कर कर धर्म व सद्गुणों का रक्षक है, जो जगत के लिए कल्याणकारी ही है। इसलिए वह शिव व शंकर यानी निराकार व साकार दोनों ही रूपों में वंदनीय है।

सांसारिक जीवन में भी अनेक अवसरों पर इच्छा या स्वार्थ के वशीभूत होने से हर इंसान के मन या विचारों में पैदा हुए दोष छोटी या बड़ी परेशानियों का कारण बनते हैं। शास्त्रों में बताए कुछ शिव मंत्र मन को पावनता से जोड़ सारी दिक्कतों का जल्द अंत करने वाले माने गए हैं।

खासतौर पर सोमवार या विशेष शिव तिथि पर यहां बताए जा रहे शिव मंत्र का स्मरण पाप व संकटनाशक माना गया है। सोमवार को शिव की सफेद चंदन, अक्षत, बिल्वपत्र, सफेद फूल के साथ दूध से बनी सफेद रंग की मिठाईयों का भोग लगाएं। धूप व दीप लगाकर नीचे लिखा शिव मंत्र बोलें व शिव की आरती कर कष्ट व संकटमुक्ति की कामना करें -

नमो रुद्राय महते सर्वेशाय हितैषिणे।
नन्दी संस्थाय देवाय विद्याभकराय च।।
पापान्तकाय भर्गाय नमोनन्ताय वेधसे।
नमो मायाहरेशाय नमस्ते लोकशंकर।।


!!! बिल्वपत्र वृक्ष की इस मंत्र के साथ करें पूजा..खूब बरसेगी लक्ष्मी !!!


हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक बिल्वपत्र में शिव का वास माना गया है। बिल्वपत्र से शिव की पूजा भी पापनाशक मानी गई है। वहीं एक पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक बिल्वपत्र की पूजा लक्ष्मी कृपा से ऐश्वर्य और धनसंपन्न बनाने वाली भी है। क्योंकि माना जाता है कि जब समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी प्रकट हुई तो लक्ष्मी का स्वामी बनने को लेकर देव-दानवों में संघर्ष हुआ। उस दौरान देवी ने बिल्वपत्र वृक्ष में समय बिताया और बाद में श्रीहरि विष्णु को अपना स्वामी चुना। इसलिए बिल्वपत्र श्रीवृक्ष के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ।

यही कारण है कि देवी व शिव उपासना के विशेष दिनों नवमी व चतुर्दशी तिथि पर विशेष मंत्रों के साथ बिल्वपत्र पूजा पाप व दरिद्रता का अंत कर वैभवशाली बनाने वाली बताई गई है। यह पूजा लक्ष्मी कृपा की कामना से हर रोज भी शुभ है।

जानते हैं विशेष मंत्र के साथ बिल्वपत्र पूजा का आसान उपाय-

- सुबह स्नान के बाद लाल या सफेद वस्त्र पहन बिल्वपत्र के वृक्ष की पूजा में चंदन, फूल व फूल माला, फल, वस्त्र, तिल, अनाज अर्पित करें। धूप व दीप जलाकर नीचे लिखा मंत्र बोल बिल्वपत्र वृक्ष की पूजा करें -

श्रीनिवास नमस्तेस्तु श्रीवृक्ष शिववल्लभ।
ममाभिलषितं कृत्वा सर्वविघ्रहरो भव।।

- मंत्र पूजा के बाद लक्ष्मी कृपा की कामना के साथ शिव आरती या लक्ष्मी आरती भी करें और बिल्वपत्र की परिक्रमा करें। यथासंभव इस दिन बिना नमक का भोजन कर मौन व्रत रखें।


!!! नव गृह वाटिका ​ !!!


प्राचीन काल से मानव भविष्य को जानने की इच्छा रखता हॆ ऒर भविष्य सुधारने को प्रयत्नशील शील रहता हॆ:समभ्वत: उसके मन में यह विचार रहता हो कि पूर्व ज्ञान होने से समस्या का बेहतर निदान हो सकता हॆ, आकाशीय पिन्ड मानव जीवन एवं उसके दिन प्रतिदिन के व्यवहार पप कितना प्रभाव डालते हॆं, विवादास्पद विषय हॆ;
परम्परागत रूप मे ज्योतिषीय आधार में नवग्रह माने गये हॆं, सात दिनों पर आधारित सात ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध वॄह्स्पति,शुक्र, शनि ऒर दो छाया ग्रह राहु व केतु, प्रत्येक ग्रह का एक एक प्रतिनिधि पॊधा या वॄक्ष होता हॆ.इन पॊधों के संरक्षण व संवर्धन से मानवता का ऒर जीव का कल्याण होता हॆ,ऎसा प्राचीन ग्रंथों में कहा गया हॆ. आइये बारी बारी से इन प्रतिनिधि पॊधों के विषय में जाने;

१ सूर्य: का प्रतिनिधि पॊधा हॆ मदार या आक इसे क्षीर-पर्ण,व अर्क भी कहते हें यह पूरे भारत में पाया जाता हॆ यह जंगली रूप बिना किसी विशेष देखभाल के उगता हॆ.यह कॆलोट्रोपिस प्रोसीरा कहलाता हॆ ऒर इसकी फ़ॆमिली हॆ- एसक्लिपियेडेसी. इसकी पत्तियो ऒर तने मॆं एक विषॆले तत्व fकेलोट्रोपिनf ऒर fकेलोट्रोपेजेनिनf होते हॆं.इसकी पत्तियों व तने को तोडने पर निकलने वाले सफ़ेद दूध नुमा रस जिसे लेटेक्स कहते हॆं, मेंffमदारेलबमf ऒर fमदारफ़्लूविलf नामक तत्व पाये जाते हॆं , यह पॊधा कागज़ बनाने के काम भी आता हॆ,इसका रस सूखने पर,गादा होकर गटापार्चा जॆसा हो जाता हॆ. आत्म हत्या व गर्भपातमें इसका प्रयोग प्राय; होता हॆ.


ऒषधीय गुण;मदार की जड, प्राय: हाथी-पांव रोग,कोढ, पुराने एक्जिमा के अतिरिक्त दस्तों व पेचिश में भी प्रयोग में लाते हॆं.मिस्र मेंअरब घाटी इसके फ़लों का आकर छोटे आम जॆसा होता हॆ.

संस्कॄत में इसे क्षीर पर्ण या अर्क कहते हॆं, मदार की विशेषता यह भी हॆ कि मदार ग्रीष्म को विकट परिस्थितियों को बखूबी सह लेता हॆ, भीषण गर्मियों मे जब ऒर पॊधे मॄत प्राय हो जाते हॆं मदार में बहार रहती हॆ.वॆद्य मनोरमा में मदार की तुलना सूर्य से करते हुए लिखा हॆ कि तीक्ष्णता ऒर उज्ज्वलता में सूर्य भगवान के समान हे अर्क! मॆं आपका अभि नन्दन करता हूं, जहां आप यानि

मदार नहीं होंगे वह्म ,उस प्रदेश में में नहीं रहूंगा. ;तो यह हॆ रोमयुक्त मांसल पत्तियों ऒर बॆजनी फ़ूल वाले मदार क्षीर पर्ण की महिमा. होमियोपॆथी में आक का प्रयोग कोढ से सुन्न पडे अंगों में नई चेतना के संचार हेतु लाते हॆं.






२ चंद्र: का प्रतिनिधि पॊधा हॆ पलाश,जिसे सामान्य भाषा में किंशुक, टॆसू या ढाक भी कहते हॆं.,संस्कृत में इसे पलाश ही कहते हॆं.लॆटिन में यह ब्यूटिया फ़्रोंडोसा कहलाता हॆ.ऒर फ़ॆमिली हॆ-लॆग्यूमिनोसी.


एक कहावत प्रसिद्ध हॆ,-ढाक के तीन पात,,पलाश का पॊध बडा महत्वपूर्ण हॆ यह मध्यम ऊंचाई ,लगभग १५ मीटर का वॄक्ष हॆ.इसमें वसन्त ॠतु में,होली के आ आसपास सुन्दर गहरे लाल या नारंगी रंग के फूल आते हॆं.इन फ़ूलों से एक रंग भी तॆयार होता हॆ. एक कथा के अनुसार शिव पार्वती के एकान्त में बाधा पहुंचाने पर, पार्वती ने अग्नि देव को श्राप दे दिया जिसके फ़लस्वरूप यह पॊधा बना,अत: यह पलाश अग्नि का ही रूप हॆ. टेसऊ के बीज कामोत्तेजक होते हॆं. आयुर्वेद में इसका बहुत महत्व हॆ. ढाक गरीब की क्रोकरी हॆ,पत्तल व दॊने इसी से बनते हॆं. दक्षिण भारत में जो काम केले के पत्तों से लिया जाता हॆ, उत्तर में वही काम ढाक के पत्ते करते हॆं. इसके तने से एक गॊंद मिलता हॆ जिसे कमर-कस कहते हॆं. यह स्त्री रोगों में बहुत काम आता हॆ. नोबुल पुरस्कार विजेता,प्रसिद्ध भारतीय कवि श्री रवीन्द्र नाथ टॆगोर को पलाश के फूल बहुत पसन्द करते थे ऒर उन्होंने शांतिनिकेतन में अपनी कुटिया के चारों ओर पलाश के वॄक्ष ही लगवाए,ऒर कुटिया क नाम रखा-पलाशी;उनकी साहित्व साधना यहीं से होती थी.



ऒषधीय गुण धर्म;ढाक की छाल व पत्तियों में काइनोटॆनिक एसिड तथा गॆलिक एसिड होता हॆ ऒर बीजों में पलासोनिन पाया जाता हॆ. पलाश के फूल स्तम्भक, तॄष्णा शामक कोढ दूर करने वाला,कह च पित्त नाशक,भूख बढाने वाले होते हॆ. पत्ते यकॄत उत्तेजक होते हॆं. इसका गोंद भी स्तम्भक, अम्लानाशक,खासी निवारक व संग्रहणी को दूर करता हॆ.पलाश के पत्तों का काढा पीने से अफ़ारा व पेट दर्द दूर होता हॆ.,पलाश के बीजों के चूर्ण क एक एक चम्मच दो बार खाने से पेट के सब कीडे मर कर बाहर आ जाते हॆं. इसकी जड के रस के सेवन से अनॆच्छिक वीर्यस्राव रुकता हॆ,ऒर काम शक्ति प्रबल होही हॆ ज्डों के रस में गेहूं के दाणे तीन दिन भिगो कर खाने से यॊन रोग ठीक हो जाते हॆं व काम शक्ति में वॄद्धि होती हॆ.


३.मंगल: का प्रतिनिधि हॆ खॆर या कत्था,लॆटिन में इसे अकेसिआ कटॆचू कहते हॆं,इसकी फ़ॆमिली मिमोसी हॆ.यह मध्यम ऊंचाई वाला कांटे दार वॄक्ष हॆ इसके कांटे बिल्ली के पंजों की तरह होते हॆं, इसी से इसे कटेचू नाम दिया गया हॆ. इसके पत्ते व बीज प्रोतीन युक्त होते हॆं इसका स्वरस वात सम्बन्धी रोगों को व सूजन को ठीक करता हॆ. दस्त ऒर पेचिश को भी ठीक करता हॆ.इसके पत्ते व टहनियां बकरी एवं ऊंट बडे चाव से खाते हॆं उनके लिए यह विशेष उपयोगी हॆ.
इसकी लकडी भी बहुत उपयोगी होती हॆ.इमारती लकडी की तरह ही अन्य उपकरणो एवं हलों को बनाने मे इसका इस्तेमाल होता हॆ,लकडी का कोयला भी अति मूल्यवान होता हॆ विशेषत: सोने,चांदी पर काम करने वालों के लिए. व लोहारों के लिए. हल, चाकू छुरी,तलवार की मूठ व हत्थे,हुक्के की नली व गन्ने की पिराई मे भी इसका उपयोग होता हॆ इस पर पॊलिश भी आसानी से व अच्छी हो
जाती हॆक तथा कफ़,पित्त संशोधक हॆ.यह सूजन को हटाने वाला,कीडॊं को मारने वाला,रक्त शोधक,रक्त वर्धक,पसीना लाने वाला,पाचक हॆ. त्वचा रोगोंमें सर्प, बिच्छू ततॆयां,भ्रमरी आदि के दंश पर इसके पत्तों क लेप बहुत गुणकारी होता हॆ

आधा सीसी; इसके बीजों का चूर्ण सूघने मात्र सेमस्तक के अन्दर जमा हुवा कफ़ पतला होकर नाक के रास्ते बाहर निकल आता हॆ.
दांतों के रोगों में,इसकी ताजी जड की दातुन करने से दांत मोती की तरह चमकने लगते हॆं,दांतों का दर्द,मसूढो की कमजोरी मुंह से दुर्गन्ध आना,दांत का हिलना भी ठीक हो जाता हॆ.






४.बुध या मरकरी: इसका प्रतिनिधि पॊधा हॆ;अपामार्ग, लटजीरा या,चिरचिटा; लॆटिन में इसे कहते हॆं एकिरेंथस एस्पेरा ऒर इसकी फॆमिली हॆ-एमेरेंथेसी. अपामार्ग का अर्थ हॆ,जो दोषों को संशोधित करे असाध्य रोगों का भी अंत करे.अपामार्ग एक ऎसा दिव्य पॊधा हॆ जो प्रसव काल से लेकर जीवन के अंत समय तक के रोगों को दूर करने की क्षमता रखता हॆ.


यह पॊधा भारत में सभी प्रांतों में जंगलीरूप में पाया जाता हॆ. वर्षा ऋतु में यह विशेषकर पाया जाता हॆ.अपामार्ग का पोधा १ से ३ फ़ुट ऊंचा होता हॆ.शाखाएं पतली पर गांठों पर मोटा होता हॆ. पत्ते अडाकार ऒर र्रोम युक्त होते हॆं पुष्प मन्जरी पत्तों के बीच से निकलती हॆ. अपामार्ग में पॊटेशियम की मात्रा बहुत अधिक होती हॆ.


श्वास रोग, अपामार्ग की जड में बलगम,खांसी ऒर दमा को दूर करने के चमत्कारी गुण हॆं,इस पॊधे की ८-१० सूखे पत्तों को हुक्के में रख कर पीने से सांस लेने में लाभ होता हॆ.बच्चों की काली खांसी इसके बीजों की राख को शहद के साथ चटाने से जल्दी ही ठीक हो जाती हॆ. सुख प्रसव;प्रसव पीडा प्रारम्भ होने से पहले अपामार्ग की जड को एक धागे से कमर में बांधने से आसानी से प्रसव होता हॆ.पर प्रसव के तुरन्त बाद उसे हटा लेना चाहिये. ८० वर्ष के वॄद्ध व्यक्ति भी अपामार्ग की जड से दातुन करें तो उनके दांत भी स्वस्थ देखे गये हॆं वॄद्धावस्था मे दांतों की मजबूती का यही रहस्य हॆ.








५.वॄहस्पति या गुरु जुपीटर: इसका प्रतिनिधि पॊधा हॆ पीपल, या अश्वत्थ. लॆटिन में फ़ाइकस रॆलिजिओसा फ़ॆमिली हॆ-मोरेसी पीपल का वॄक्ष भारत में पवित्र माना जाता हॆ,एसा विश्वास हॆ कि इसी वॄक्ष के नीचॆ,गया में,भगवान बुद्ध ने कठिन तपस्या करके ज्ञान प्राप्त किया था.यह आज से बहुत पहले २८८बी.सी.में लगाया गया था, इस वॄक्ष को प्रसन्नता, स्मॄद्धि, दीर्ह्ग जीवन ऒर सॊभाग्य का प्रतीक माना गया हॆ. ऒषधीय गुण धर्म; .इस वॄक्ष की जड, छाल, पत्ते, फूल सभी उपयोगी होते हॆं.छाल प्रदर में उपयोगी,फल दस्तावर, ऒर बीज ठंडक देने वाले होते हॆं. पेड की छाल,बालों के कीदों को नष्ट करती हॆ.पत्तियां व नई कोंपलें पेट साफ़ करती हॆं.

इसके पेड घने व छायादार होतॆ हॆं, मन्द गति में भी हवा चले तो भी इसके पत्ते हिलने लगते हॆं,अत: इसके पत्ते अस्थिर चित्त का प्रतीक कहे गये हॆं उपमा दी जाती हॆ-पीपर पात सरिस मन डॊलाf अत: यह अस्थिर मन का प्रतीक भी हॆ.पीपल की ताजी टहनी प्रतिदिन दातुन करने से दांत मजबूत होते हॆं,मसूढों की सूजन व मुख कीदुर्ग>ध समाप्त हो जाती हॆ.पीपल के पत्ते गुड के साथ चबा कर खाने से पेट क दर्द खतम हो जाता हॆ. पीपल के पत्ते मिश्री के साथ घोट कर पीने से पीलिया रोग भी ठीक हो जाता हॆ.





६.शुक्र ,वीनस: का प्रतिनिधि वॄक्ष हॆ-गूलर,संस्कॄत मॆं इसे उदम्बर या उडम्बर कहते हॆं लॆटिन में फ़ाइकस रॆसीमोसा फ़ेमिली मोरेसी.,यह भी एकघना,छायादार ,पेड हॆ एक विशेष बात इसके बारे में यह हॆ कि प्राचीन ग्रथों में भी इसका वर्णन मिलता हॆ-खास कर अथर्व वेद में.जो लगभग २५०० साल पुराना हॆकहा जाता हॆ कि प्रसिध राजा हरिश्चन्द्र जो इक्षावाकु वंश के थे,उनका मुकुट उदम्बर वॄक्ष की टहनी से बना था जो सोने से जडी थी.ऒर उनका सिंहासन उदम्बर की ल्कडी से ही बना था.


अथर्ववेद के अनुसार गूलर का वॄक्ष पुष्टि देने में सर्व श्रेष्ठ कहागया हॆ. इसके फल का दूध घी के साथ सेवन करने से बूढा भी जवान हो जाता हॆ,ऒर कहा गया हॆ कि इंद्र देव की प्रेरणा से ही अपनी तेजस्विता के साथ यह ऒदुम्बर ,प्रजा व वॆभव के साथ हमे उपलब्ध हुआ हॆ..इसका तना लम्बा,मोटा तथा टेढा होता हॆ. इसमें फल सारे साल लगते रहते हॆं अत; इसे बारह मासी भी कहा जाता हॆ. इसमे फल गोलाकार १-२ इंच व्यास के,कच्ची अवस्था में हरे ऒर पकने पर हल्के लाल हो जाते हॆं.
इनमें टॆनिन,मोम व रबड तथा राख मॆं सिलिका ऒर फस्फोरिक एसिड पाये जाते हॆं.


ऒषधीय गुण धर्म: छाल व कच्चे फल स्तम्भन,प्रमेह नाशक ऒर दाह नाशक हॆ.पके फल श्लेश्म दूर करने वाले,मन को प्रसन्न करने वाले व दाह नाशक हॆ.५ग्रम गूलर के पत्तों के रस में शहद मिलाकर पिलाने से रक्तपित्त मिटता हॆ. इससे रक्तातिसार में भी तुरन्त लाभ होता हॆ. इसके दूध की ८-१० बूंदें दो बताशों मे भर कर रोज खिलाने से मूत्र रोग मिटते हॆं.



७.शनि: इसका प्रतिनिधि पॊधा हॆ-शमी,खिजरी या छ्योंकर,लॆटिन में- प्रोसोपिस स्पा सिजॆरा,इसका पर्याय हे प्रोसोपिस सिनेरेरिया,इसकि फ़ेमिली या कुल हॆ लॆग्यूमिनोसी. इसका इतिहास भी प्राचीन हॆ,प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत आठवीं पुस्तक में fकर्ण पर्वf में अध्याय ३०,श्लोक २४ में शमी,पीलू व करीर के वृक्षों का वर्णन हॆ.."विराट पर्व" में पांड्वों ने विराट की राजधानी मेम जाने से पूर्व अपने अस्त्रदि शमी वॄक्ष में ही छिपा के रखे थे.तमिल नाडु में इसे पवित्र पेड माना जाता हॆ ऒर भगवान शिव व श्री मुरुगन के मंदिरों के स्थल भी एसी वॄक्ष के नीचे होते हॆं.
शमी का वॄक्ष बडा उपयोगी होता हॆ.विशेष रूप से मरुस्थलीय क्षेत्र में क्यॊंकि वहां के वातावरण में यही पेड खूब फलता फूलता हॆ,रेत के टीलों एवं मिट्टी को इसकी जडॆ.बांध कर रखती हॆं इसकी पत्तियों को सभी मवेशी,भेढें, बकरियां, ऊंट,गधे, आदि के अतिरिक्त पश्चिमी राजस्थान में काला हिरन ऒर चिंकारा भी इसकी फलियों व पत्तियों पर निर्भर रहते हॆं.


ऒषधीय उपयोग व गुणधर्म;.

शमी के फूलों को पीस कर चीनी मिला कर खाने से गर्भावस्था के दॊरान गर्भपात नहीं होता.इसकी छाल को पानी में भिगो कर जो द्रव निकलता हॆ उसमें सूजन को दूर करने वाले गुण पाए जाते हशमी पॊधे से मई, जून के महीने मे एक गोंद प्राप्त होता हॆ. पेड की छाल कडवी,व तेज होती हॆ. कीडे मारने वाली,कोढ को ठीक करने वाली,पेचिश,अस्थमा,श्वास रोगों को मिटाने वाली,ल्यूकोडर्मा,मांसपेशियों के विकारों को ठीक करती हॆ. इसकी पत्तियों का धुआं नेत्रों को नुकसान नहीं पहुंचाता बल्कि नेत्र रोगों को ठीक करता हॆ.वॄक्ष की छाल वात रोग,रोठिया,खांसी,सामान्य जुकाम,अस्थमा के साथ बिच्छू के काटे का भी इलाज होता हॆ, पंजाब में इससे सांप काटने का भी इलाज होता हॆ.


राजस्थान के बिशनोइ समाज "खेजरी वॄक्ष संरक्षण"पर भारत सरकार की सहायता से एकfअमॄता देवी बिशनोई वन्य जीवन संरक्षण राष्ट्रीय पुरस्कारfकी स्थापना की हॆ.




८.राहु: इस छाया ग्रह का प्रतिनिधि हॆ दूब, राम घास,दूर्बा या,काली घास;संस्कॄत में इसे ध्रुव या हरितली व लॆटिन में इसे साइनोडोन डेक्टीलोन कहते हॆं.फ़ेमिली हॆ-पोएसी. नंगे पॆर चलना घास पर सेहत के लिए बहुत फ़ायदे मन्द होता हॆ.इससे नेत्र ज्योति बढ्ती हॆ ऒर शरीर की कई व्याधियां दूर हो जाती हॆं.


दूब घास विशेषता यह हॆ कि यह सूर्य के प्रकाश में हरा भरा रहता हॆ पर छाया में उतना नहीं.इसके विकास के लिये २४-३७.सी का तापमान सबसे उपयुक्त रहता हॆ.यह ४-१५ से.मी.तक लम्बा होता हॆ.इसकी जड बडी गहरी होती हॆ. ऒर सतह के नीचे २ मीटर तक फॆल सकती हॆ. गरम वातावरण मएं यह पूरे विश्व में पाया जाता हॆ.दूब घास ऒर घासों की तुलना में अधिक तेजी से फ़ेलता हॆ क्योंकि इसमे प्रतिकूल मॊसम को सहने की क्षमता हॆ.यह आक्रामक भी हॆ.इसी कारणसे इसे डेविल या शॆतान घास भी कहते हॆं. इसकी पत्तियां
भूरे हरे रंग की होती हं जिसमें से गुच्छॊं से ३-७ मन्जरी निकलती हॆं.




ऒषधीय गुण; दूब वाइरस ऒर बॆक्टीरिया प्रतिरोधी होता हॆ.इसे पानी में उबाल कर पानी के कुल्ले करने से मुंह के छाले दूर हो जाते हॆं.दूब को चूने मे मिला कर पीस कर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीकहो जाता हॆ.दूब का काढा वेदना नाशक हॆ मूत्र की जलन को शान्त करता हॆ,मूत्र नली के संक्रमण को दूर करने के अतिरिक्त यह प्रोस्ट्रेट ग्रन्थि, उपदंश व पेचिश के इलाज में भी काम आता हॆ


मधुमेह में व ग्लूकोज की कमी को दूर करने में भी यह उपयोगी सिद्ध हुआ हॆ.प्रयोग शाला के चूहों पर इलाहाबाद विश्व विद्यालय के शोध कर्ताओ ने अपने शोध मे यह पाया हॆ.इस बात की प्रबल सम्भावना हॆ कि भविष्य में मधु मेह क इलाज दूब घास से हो. आंख दुखने पर इसके पत्तों को पीस कर पलकों पर बांधने से आराम मिलता हॆ. इसकी जड मस्सों से रक्त प्रवाह रोकती हे.इसके पत्तों क रस ताजे जख्मों ऒर घावों पर लगाते हॆ.पेचिश ऒर दस्त भी इसी से ठीक होते हॆं.

९.केतु: इस छाया ग्रह का प्रतिनिधि हॆ एक घास जेसे कहत्ते हॆं.- कुश,संस्कॄत में दर्भ,लॆटिन में इसे डॆस्मोस्टॆचिया बाइ-पिन्नेटा कहते हॆं. अथर्व वेद में इस दर्भ महिमा गायी गयी हॆ अथर्व वेद संहिता में लिखा हॆ कि जल वर्षक मेघ विद्युत के साथ गर्जना करते हें उससे स्वर्ण मय जल बिंदु ऒर कुश की उत्पत्ति हुई, ऒर पुरुषों को दीर्घ जीवन व तेजस्विता प्रदान करने के लिए दर्भ उनके शरीर से बांधा जाता हॆ. क्योंकि दर्भ शत्रु संहारक ऒर विद्वेशी शत्रुओं को संतप्त करने वाली हॆ. दर्भ पूरे भारत में गर्म व सुखे इलाकों में पाई जाती हॆ.




इसका तना मूत्र वर्धक,उत्तेजक तथा पेचिश में उपयोगी होता हॆ. नवीन तम खोजों से यह ज्ञात हुआ हॆ कि दर्भ के तने में पांच एल्केलायड पाए जाते हॆं जो किसी भी प्रकार के खून को बहने से रोकते की क्षमता रखते हॆं.

इस प्रकार हमने देखा कि सारे ग्रह ऒर उनके प्रतिनिधि पॊधे मानव जाति की रक्षा हेतु प्रतिबद्ध हॆं. दूरस्थ ग्रह मनुष्य की कितनी रक्षा कर सकते हॆं यह तो हमें मालूम नहॆं पर ये प्रतिनिधि पॊधे अपने गुणॊ से हमें जरूर कई बीमारियों से बचा सकते हॆं.



!!! बिल्वपत्र से भी ज्यादा शुभ है शिव पूजा में इस फूल को चढ़ाना !!!

शिव की उपासना में बिल्वपत्र का चढ़ावा बहुत ही शुभ और पुण्य देने वाला माना जाता है। धार्मिक आस्था है कि बिल्वपत्र का शिव को चढ़ावा जन्म-जन्मान्तर के पाप और दोषों का नाश करता है। वैसे भी शिव की पूजा में कुदरती सामग्रियों के चढ़ावे का महत्व है। इनमें तरह-तरह के पेड़-पौधों के पत्ते, फूल और फल शामिल होते हैं।


शास्त्रों में भगवान् शिव शंकर पर फूल चढाने का बहुत अधिक महत्त्व बताया गया है ! अतः इसका उल्लेख करना आवश्यक है -


शास्त्रों ने कुछ फूलों के चढाने से मिलने वाले फल का तारतम्य बतलाया है , जैसे दस स्वर्ण - माप के बराबर स्वर्ण- दान का फल 



  •  एक आक के फूल को चढाने से मिल जाता है , 
  •  हज़ार आक के फूलों कि अपेक्षा एक कनेर का फूल, 
  •  हज़ार कनेर के फूलों के चढाने कि अपेक्षा एक बिल्व -पत्र से मिल जाता है 

  •  और हज़ार बिल्व-पत्रों कि अपेक्षा एक गूमा-फूल ( द्रोण -पुष्प ) , 
  • हज़ार गूमा से बढ़कर एक चिचिडा ( अपामार्ग) , 
  • हज़ार अपमार्गों से बढ़कर एक कुश का फूल , 
  • हज़ार कुश के फूलों से बढ़कर एक शमी का पत्ता , 
  • हज़ार शमी के पत्तों से बढ़कर एक नीलकमल , 
  • हज़ार नीलकमल से बढ़कर एक धतूरा , 
  • हज़ार धतूरों से बढ़कर एक शमी का फूल होता है ! 




* अंत में शास्त्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि फूलों कि प्रजाति में सबसे बढ़कर नीलकमल ही भगवान् शिव जी का सर्वाधिक प्रिय पुष्प है ! *


शास्त्रों के मुताबिक इन फूल-पत्तों में कुछ ऐसे भी हैं, जिनको शिव पूजा में चढ़ाना बिल्वपत्र से भी ज्यादा पुण्य और फल देने वाला माना गया है। धार्मिक महत्व के नजरिए से जानिए शिव को चढ़ाए जाने वाले कौन से हैं ये फूल और पत्ते -





- एक आंकड़े का फूल चढ़ाना सोने के दान के बराबर फल देता है,



- एक हजार आंकड़े के फूल के बराबर एक कनेर का फूल फलदायी,


- एक हजार कनेर के फूल के बराबर एक बिल्वपत्र फल देता है,


हजार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी,


- हजार गूमा के बराबर एक अपामार्ग, लटजीरा या,चिरचिटा या चिचिड़ा,


- हजार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल,


- हजार कुश फूलों के बराबर एक शमी का पत्ता,



- हजार शमी के पत्तो के बराबर एक नीलकमल,



हजार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा




- हजार धतूरों से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है।



इस तरह शमी का फूल शिव को चढ़ाना शिव भक्ति से तमाम मनचाही कामनाओं को पाने का सबसे श्रेष्ठ उपाय है।




बाबा के प्रिय सावन माह के बारे आधिक जाने ..अपने धर्म को और करीब से माने : जय बाबा घुइसरनाथ जी

हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया।

सावन के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है। एक पौराणिक कथा का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने के बाद जब महादेव इस विष का पान करते हैं तो वह मूर्च्छित हो जाते हैं।
उनकी दशा देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं और उन्हें होश में लाने के लिए निकट में जो चीजें उपलब्ध होती हैं, उनसे महादेव को स्नान कराने लगते हैं। इसके बाद से ही जल से लेकर तमाम उन चीजों से महादेव का अभिषेक किया जाता है। भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और समीपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है।
विष की उग्रता को कम करने के लिए अत्यंत ठंडी तासीर वाले हिमांशु अर्थात चन्द्रमा को धारण कर रखा है। और श्रावण मास आते-आते प्रचण्ड रश्मि-पुंज युक्त सूर्य ( वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ में किरणें उग्र आतपयुक्त होती हैं।) को भी अपने आगोश में शीतलता प्रदान करने लगते हैं। भगवान सूर्य और शिव की एकात्मकता का बहुत ही अच्छा निरूपण शिव पुराण की वायवीय संहिता में किया गया है। यथा-
'दिवाकरो महेशस्यमूर्तिर्दीप्त सुमण्डलः।
निर्गुणो गुणसंकीर्णस्तथैव गुणकेवलः।
अविकारात्मकष्चाद्य एकः सामान्यविक्रियः।
असाधारणकर्मा च सृष्टिस्थितिलयक्रमात्‌। एवं त्रिधा चतुर्द्धा च विभक्तः पंचधा पुनः।
चतुर्थावरणे षम्भोः पूजिताष्चनुगैः सह। शिवप्रियः शिवासक्तः शिवपादार्चने रतः।
सत्कृत्य शिवयोराज्ञां स मे दिषतु मंगलम्‌।'


अर्थात् भगवान सूर्य महेश्वर की मूर्ति हैं, उनका सुन्दर मण्डल दीप्तिमान है, वे निर्गुण होते हुए भी कल्याण मय गुणों से युक्त हैं, केवल सुणरूप हैं, निर्विकार, सबके आदि कारण और एकमात्र (अद्वितीय) हैं।

सावन के प्रधान देवता शिव हैं । उन्हें सर्वाधिक प्रसन्न करने का सर्वोत्तम उपाय गंगाजल से जलाभिषेक है। सावन के सोमवार को शिव अर्चना का विशेष महत्व होता है। सावन में किस प्रकार शिव की आराधना विशेष फलादयी हो जाती है, सावन शिव को अत्यंत प्रिय क्यों है, धर्मग्रंथों में इसकी प्रसंगवश व्याख्या की गई है। सावन के महीने में शिवजी को रोजाना बिल्व पत्र चढ़ाए। बिल्व पत्र की संख्या 108 हो तो सबसे अच्छा परिणाम मिलता है।

शिवजी का पूजन कर निर्माल्य का तिलक लगाए तो भी जल्दी विवाह के योग बनते हैं। हर सोमवार खासतौर पर सावन माह के सोमवार को शिवलिंग का जल या पंचामृत से अभिषेक करें। कालसर्प दोष के निवारण के लिये नाग पंचमी के दिन शिव की पूजा कर चांदी के नाग का जोड़ा चढ़ाएं और एक जोड़ा चांदी का सर्प बहते जल में बहाएं। कालसर्प योग हो और जीवन में लगातार गंभीर बाधा आ रही हो तब किसी विद्वान ब्राह्मण से राहु और केतु के मंत्रों का जप कराया जाना चाहिए और उनकी सलाह से राहु और केतु की वस्तुओं का दान या तुलादान करना चाहिए।

सावन में हर राशि का व्यक्ति शिव पूजन से पहले काले तिल जल में मिलाकर स्नान करे। शिव पूजा में कनेर, मौलसिरी और बेलपत्र जरुर चढ़ावें। इसके अलावा जानते हैं कि किस राशि के व्यक्ति को किस पूजा सामग्री से शिव पूजा अधिक शुभ फल देती है...
मेष – इस राशि के व्यक्ति जल में गुड़ मिलाकर शिव का अभिषेक करें। शक्कर या गुड़ की मीठी रोटी बनाकर शिव को भोग लगाएं। लाल चंदन 
व कनेर के फूल चढ़ावें।
वृष- इस राशि के लोगों के लिए दही से शिव का अभिषेक शुभ फल देता है। इसके अलावा चावल, सफेद चंदन, सफेद फूल और अक्षत यानि चावल चढ़ावें।
मिथुन – इस राशि का व्यक्ति गन्ने के रस से शिव अभिषेक करे। अन्य पूजा सामग्री में मूंग, दूर्वा और कुशा भी अर्पित करें।
कर्क – इस राशि के शिवभक्त घी से भगवान शिव का अभिषेक करें। साथ ही कच्चा दूध, सफेद आंकड़े का फूल और शंखपुष्पी भी चढ़ावें।
सिंह – सिंह राशि के व्यक्ति गुड़ के जल से शिव अभिषेक करें। वह गुड़ और चावल से बनी खीर का भोग शिव को लगाएं। गेहूं और मंदार के फूल भी चढ़ाएं।
कन्या – इस राशि के व्यक्ति गन्ने के रस से शिवलिंग का अभिषेक करें। शिव को भांग, दुर्वा व पान चढ़ाएं।
तुला – इस राशि के जातक इत्र या सुगंधित तेल से शिव का अभिषेक करें और दही, शहद और श्रीखंड का प्रसाद चढ़ाएं। सफेद फूल भी पूजा में शिव को अर्पित करें।
वृश्चिक – पंचामृत से शिव का अभिषेक वृश्चिक राशि के जातकों के लिए शीघ्र फल देने वाला माना जाता है। साथ ही लाल फूल भी शिव को जरुर चढ़ाएं।
धनु – इस राशि के जातक दूध में हल्दी मिलाकर शिव का अभिषेक करे। भगवान को चने के आटे और मिश्री से मिठाई तैयार कर भोग लगाएं। पीले या गेंदे के फूल पूजा में अर्पित करें।
मकर – नारियल के पानी से शिव का अभिषेक मकर राशि के जातकों को विशेष फल देता है। साथ ही उड़द की दाल से तैयार मिष्ठान्न का भगवान को भोग लगाएं। नीले कमल का फूल भी भगवान का चढ़ाएं।
कुंभ – इस राशि के व्यक्ति को तिल के तेल से अभिषेक करना चाहिए। उड़द से बनी मिठाई का भोग लगाएं और शमी के फूल से पूजा में अर्पित करें। यह शनि पीड़ा को भी कम करता है।
मीन – इस राशि के जातक दूध में केशर मिलाकर शिव पर चढ़ाएं। भात और दही मिलाकर भोग लगाएं। पीली सरसों और नागकेसर से शिव का चढ़ाएं।