30 November 2012

!!! ताजमहल तेजोमहालय शिव मंदिर है !!!


ताजमहल में शिव का पाँचवा रूप अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजित है

आगरा के ताज महल, इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा नहीं बनाया गया था. यह शिव का वैदिक हिंदू मंदिर है, लंबे समय से पहले बनाया था.


प्रसिद्ध पुरातत्वविद् पी.एन. ओक ने अपनी पुस्तक में यह खुलासा किया है. इस पुस्तक पर इंदिरा फिरोज खान (कांग्रेस PM, जिसके पिता का नाम बदल दिया है, अपने मुगल इस्लामी जड़ों को छिपाने के लिए) द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया था |

श्री पी.एन. ओक अपनी पुस्तक "Tajmahal is a Hindu Temple Palace" में 100 से भी अधिक प्रमाण और तर्को का हवाला देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है। श्री पी.एन. ओक साहब को उस इतिहास कार के रूप मे जाना जाता है तो भारत के विकृत इतिहास को पुर्नोत्‍थान और सही दिशा में ले जाने का किया है। मुगलो और अग्रेजो के समय मे जिस प्रकार भारत के इतिहास के साथ जिस प्रकार छेड़छाड की गई और आज वर्तमान तक मे की जा रही है, उसका विरोध और सही प्रस्तुतिकारण करने वाले प्रमुख इतिहासकारो में पुरूषोत्तम नाथ ओक साहब का नाम लिया जाता है। ओक साहब ने ताजमहल की भूमिका, इतिहास और पृष्‍ठभूमि से लेकर सभी का अध्‍ययन किया और छायाचित्रों छाया चित्रो के द्वारा उसे प्रमाणित करने का सार्थक प्रयास किया। श्री ओक के इन तथ्‍यो पर आ सरकार और प्रमुख विश्वविद्यालय आदि मौन जबकि इस विषय पर शोध किया जाना चाहिये और सही इतिहास से हमे अवगत करना चाहिये। किन्‍तु दुःख की बात तो यह है कि आज तक उनकी किसी भी प्रकार से अधिकारिक जाँच नहीं हुई। यदि ताजमहल के शिव मंदिर होने में सच्चाई है तो भारतीयता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। आज भी हम जैसे विद्यार्थियों को झूठे इतिहास की शिक्षा देना स्वयं शिक्षा के लिये अपमान की बात है, क्‍योकि जिस इतिहास से हम सबक सीखने की बात कहते है यदि वह ही गलत हो, इससे बड़ा राष्‍ट्रीय शर्म और क्‍या हो सकता है ?

यह पुस्तक पढ़ने के लिए लिंक:
http://www.scribd.com/doc/102386339/



** बुद्ध का भक्त **



एक राजा बुद्ध का बड़ा भक्त था। उसने सोचा कि प्रजा को सुखी रखना उसका कर्तव्य है, इसलिए उसने महल के द्वार पर स्वर्ण-मुद्राओं से भरे थाल रखवा दिए और घोषणा करवा दी कि प्रत्येक व्यक्ति दो-दो मुट्ठी मुद्राएं ले जाए। यह सुनकर प्रजा में खुशी की लहर दौड़ गई। सब अपना-अपना काम छोड़कर स्वर्ण-मुद्राएं लेने राजमहल की ओर जाने लगे। लोग महल के द्वार पर आते और दो-दो मुट्ठी स्वर्ण- मुद्राएं लेकर चले जाते।

बुद्ध एक ब्रह्मचारी के रूप में वहां पहुंचे। उन्होंने दो मुट्ठी मुद्राएं उठाईं और चल दिए। कुछ दूर आगे जाने के बाद वह लौट आए। उन्होंने मुद्राएं वहीं पटक दीं। राजा ने इसका कारण पूछा तो बोले- सोचा, शादी कर लूं। पर इतनी मुद्राओं से कैसे काम चलेगा? राजा बोला- दो मुट्ठी और ले लो। बुद्ध ने चार मुट्ठी मुद्राएं उठा लीं और चल दिए। थोड़ी देर बाद वह फिर लौट आए और बोले- शादी करूंगा तो घर भी चाहिए।


राजा बोला- दो मुट्ठी और ले लो। बुद्ध मुद्राएं लेकर गए मगर लौट आए और बोले- बच्चे होंगे, तो उनका भी तो खर्चा होगा। राजा ने कहा- दो मुट्ठी और ले लो। यह सुनकर बुद्ध अपने असली रूप में प्रकट हो गए। राजा ने उन्हें प्रणाम किया। बुद्ध राजा से बोले- हे राजन्, एक बात जान लो। यदि तुम्हारी प्रजा दूसरों के सहारे जीने लगेगी, तो उसका कभी कल्याण नहीं होगा। उसे परिश्रम करके आजीविका पाने का रास्ता दिखाओ, तभी प्रजा सुखी रहेगी और उसका कल्याण होगा। बुद्ध की बात सुनकर राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया।

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"A patriot must always be 
ready to defend his country ."




गाय के घी का महत्त्व -





आज खाने में घी ना लेना एक फेशन बन गया है . बच्चे के जन्म के बाद डॉक्टर्स भी घी खाने से मना करते है . दिल के मरीजों को भी घी से दूर रहने की सलाह दी जाती है .ये गौमाता के खिलाफ एक खतरनाक साज़िश है . रोजाना कम से कम २ चम्मच गाय का घी तो खाना ही चाहिए .

- यह वात और पित्त दोषों को शांत करता है .
- चरक संहिता में कहा गया है की जठराग्नि को जब घी डाल कर प्रदीप्त कर दिया जाए तो कितना ही भारी भोजन क्यों ना खाया जाए , ये बुझती नहीं .
- बच्चे के जन्म के बाद वात बढ़ जाता है जो घी के सेवन से निकल जाता है . अगर ये नहीं निकला तो मोटापा बढ़ जाता है .

- हार्ट की नालियों में जब ब्लोकेज हो तो घी एक ल्यूब्रिकेंट का काम करता है .
- कब्ज को हटाने के लिए भी घी मददगार है .
- गर्मियों में जब पित्त बढ़ जाता है तो घी उसे शांत करता है .

- घी सप्तधातुओं को पुष्ट करता है .
- दाल में घी डाल कर खाने से गेस नहीं बनती .
- घी खाने से मोटापा कम होता है .
- घी एंटी ओक्सिदेंट्स की मदद करता है जो फ्री रेडिकल्स को नुक्सान पहुंचाने से रोकता है .
- वनस्पति घी कभी न खाए . ये पित्त बढाता है और शरीर में जम के बैठता है .


- घी को कभी भी मलाई गर्म कर के ना बनाए . इसे दही जमा कर मथने से इसमें प्राण शक्ति आकर्षित होती है . फिर इसको गर्म करने से घी मिलता है . इसे बनाते वक़्त अगर भगवान का भजन और स्मरण किया जाए तो इसकी खुशबु और स्वाद ही अनोखा होगा .


दूध पीने के नियम --



बोर्नविटा , होर्लिक्स के विज्ञापनों के चलते माताओं के मन में यह बैठ जाता है की बच्चों को ये सब डाल के दो कप दूध पिला दिया बस हो गया . चाहे बच्चे दूध पसंद करे ना करे , उलटी करे , वे किसी तरह ये पिला के ही दम लेती है . फिर भी बच्चों में केलशियम की कमी , लम्बाई ना बढना , इत्यादि समस्याएँ देखने में आती है .आयुर्वेद के अनुसार दूध पिने के कुछ नियम है ---

- सुबह सिर्फ काढ़े के साथ दूध लिया जा सकता है .
- दोपहर में छाछ पीना चाहिए . दही की प्रकृति गर्म होती है ; 
जबकि छाछ की ठंडी .

- रात में दूध पीना चाहिए पर बिना शक्कर के ; हो सके तो गाय का घी 

१- २ चम्मच दाल के ले . दूध की अपनी प्राकृतिक मिठास होती है जो हम शक्क डाल देने के कारण अनुभव ही नहीं कर पाते .

- एक बार बच्चें अन्य भोजन लेना शुरू कर दे जैसे रोटी , चावल , सब्जियां तब उन्हें गेंहूँ , चावल और सब्जियों में मौजूद केल्शियम प्राप्त होने लगता है . अब वे केल्शियम के लिए सिर्फ दूध पर निर्भर नहीं .

- कपालभाती प्राणायाम और नस्य लेने से बेहतर केल्शियम (ग्रहण) एब्ज़ोर्प्शन होता है और केल्शियम , आयरन और विटामिन्स की कमी नहीं हो सकती साथ ही बेहतर शारीरिक और मानसिक विकास होगा .

- दूध के साथ कभी भी नमकीन या खट्टे पदार्थ ना ले .त्वचा विकार हो सकते है .

- बोर्नविटा , कॉम्प्लान या होर्लिक्स किसी भी प्राकृतिक आहार से अच्छे नहीं हो सकते . इनके लुभावने विज्ञापनों का कभी भरोसा मत करिए . बच्चों को खूब चने , दाने , सत्तू , मिक्स्ड आटे के लड्डू खिलाइए

- प्रयत्न करे की देशी गाय का दूध ले .
- जर्सी या दोगली गाय से भैंस का दूध बेहतर है .
- दही अगर खट्टा हो गया हो तो भी दूध और दही ना मिलाये , खीर और कढ़ी एक साथ ना खाए .खीर के साथ नमकीन पदार्थ ना खाए .

- अध जमे दही का सेवन ना करे .
- चावल में दूध के साथ नमक ना डाले .
- सूप में ,आटा भिगोने के लिए , दूध इस्तेमाल ना करे .

- द्विदल यानी की दालों के साथ दही का सेवन विरुद्ध आहार माना जाता है . अगर करना ही पड़े तो दही को हिंग जीरा की बघार दे कर उसकी प्रकृति बदल लें .

- रात में दही या छाछ का सेवन ना करे .


!!!! आखिर कौन है श्री राजीव दीक्षित ???


आपने श्री राजीव दीक्षित जी के बारे में कई बार सुना होगा पर क्या आप उनके कार्यों के बारे में भी जानते है ??

अगर आपके ह्रदय में अपने देश के लिए थोडा सा भी प्रेम है तो कृपया थोडा सा समय निकाल कर एक बार श्री राजीव दीक्षित जी के बारे में अवश्य जाने।

यहाँ श्री राजीव दीक्षित जी द्वारा किये गए कुछ कार्यो के बारे में एक संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है। नीचे लिखे गए किसी भी कार्य के बारे में पूरी जान

कारी के लिए उनके व्याख्यान सुने। www.rajivdixit.com

* भोपाल गैस हत्याकांड की गुनाहगार कंपनी (UNION CARBIDE - एक अमेरिकी कंपनी) जिसकी वजह से २२,००० लोगो की जान गयी, उस कंपनी को हमारी सरकार ने माफ़ कर दिया था लेकिन श्री राजीव दीक्षित जी को यह बात नहीं जमी और उन्होंने इस २२,००० बेगुनाह भारतीयों की हत्या करने वाली कंपनी को इस देश से भगाया।

* श्री राजीव दीक्षित जी ने १९९१ में डंकल प्रस्ताव के खिलाफ घूम-घूम कर जन-जागृति की और रैलियाँ निकालीं।

* उन्होंने विदेशी कंपनियों द्वारा हो रही भारत की लूट, खासकर कोका कोला और पेप्सी जैसे प्राण हर लेने वाले, जहरीले कोल्ड ड्रिंक्स आदि के खिलाफ अभियान चलाया और कानूनी कार्यवाही की।

* १९९१-९२ में राजस्थान के अलवर जिले में केडिया कम्पनी (जो हर दिन चार करोड़ लीटर दारू बनाने वाली थी) के शराब-कारखानों को बन्द करवाने में श्री राजीव भाई जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

* १९९५-९६ में टिहरी बाँध के खिलाफ ऐतिहासिक मोर्चे में उन्होंने बहुत संघर्ष किया और वहाँ पर हुए पुलिस लाठी चार्ज में उन्हें काफी चोटें भी आई।

इसी प्रकार श्री राजीव दीक्षित जी ने CARGILL, DU PONT, केडिया जैसी कई बड़ी विदेशी कंपनियों को भगाया जो इस देश को बड़े पैमाने पर लूटने की नियत से इस देश में अपना डेरा जमाना चाहती थी।

उसके बाद १९९७ में सेवाग्राम आश्रम, वर्धा में प्रख्यात् इतिहासकार प्रो० धर्मपाल के साथ अँग्रेजों के समय के ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन करके समूचे देश को संगठित और आन्दोलित करने का काम किया। अपने व्याख्यानों से देश के स्वाभिमान को जगाने, देश को संगठित करने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान निभाया। राजीव भाई ने स्वदेशी आंदोलन तथा आजादी बचाओ आंदोलन की शुरुआत की तथा इनके प्रवक्ता बने।

मजबूत तथ्यों और दमदार आवाज के साथ उनके व्याख्यानों में इतनी सच्चाई और चुम्बक- जैसा आकर्षण होता था कि सभी लोग उन्हें सुनने के लिए खींचे चले आते थे। उनके दिमाग में ५,००० से भी अधिक वर्षो का ज्ञान समाहित था।


उन्हें चलता फिरता "एनसाइक्लोपेडिया" कहा जाता है।
श्री राजीव जी के हृदय में अत्यंत तीव्र ज्वाला थी, इस भ्रष्ट तंत्र, भ्रष्ट व्यवस्था के प्रति। इस देश कि गरीबी को देखकर उनकी आखो से आंसु निकल पड़ते थे।

बिना मीडिया की सहायता के उन्होंने पूरे देश को जगाया।

राजीव दीक्षित जी के अन्दर एक महान वैज्ञानिक, एक महान विचारक, एक महान इतिहासकार, एक महान वैद्य, एक महान वक्ता, एक महान शोधकर्ता, एक महापुरुष के सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने बिना दवाईयों के पूरा जीवन स्वस्थ रहने के अत्यंत सरल सिद्धांत बताये, जिनसे आज लाखो लोग लाभान्वित हो रहे हैं।

राजीव भाई ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की 150वीं जयंती की शाम को कोलकाता में आयोजित किये गए कार्यक्रम का नेतृत्व किया, जो कि विभिन्न संगठनों व प्रख्यात व्यक्तियों द्वारा प्रोत्साहित व प्रचारित किया गया था और पूरे देश में मनाया गया था। उन्होंने नयी दिल्ली में स्वदेशी जागरण मंच के नेतृत्व में 50,000 लोगों को संबोधित किया।

हमारे देश का धन विदेशी बेंको में काले धन के रूप में जमा पड़ा है, इस बात की जानकारी सबसे पहले पूरे देश की जनता को भाई राजीव दीक्षित जी ने ही बताई थी।
जनलोकपाल जेसे कानूनों के बारे में सर्वप्रथम इस देश को श्री राजीव दीक्षित जी ने ही बताया। राइट टू रिजेक्ट और राइट तो रिकॉल जैसे कई मजबूत कानूनों के बारे में पूरे देश को जानकारी दी।

भारत को पुनः विश्वगुरु कैसे बनाया जाये, इसका बहुत ही सरल और प्रमाणिक उपाय श्री राजीव दीक्षित जी ने ही बताये। हमारे देश के हजारों- लाखों साल पुराने स्वर्णिम अतीत को कई वर्षो तक अध्ययन कर पूरे देश को इस बारे में बताया और हमारे गौरव से अवगत करवाया। अंग्रेजी भाषा की सच्चाई के बारे में पूरे देश को बताया। संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता के बारे में गहन अध्ययन कर देश को बताया। देश में पहली बार विदेशी कंपनियों के षड्यन्त्र के बारे में बहुत बड़े स्तर लोगो पर बताया। स्वदेशी के स्वीकार और विदेशी के बहिष्कार की बात देश को पूरी प्रमाणिकता के साथ बताया।

भारत की विश्व को क्या क्या देन रही, इस बारे में अति महत्वपूर्ण जानकारियां बताई। श्री राजीव दीक्षित जी ने ही हमें बताया की सबसे पहले प्लेन का आविष्कार भारत के श्री बापू जी तलपडे ने किया था वो भी राइट बंधुओ से सात साल पहले। जन गन मन और वन्दे मातरम की सच्चाई के बारे में पहली बार पूरे देश को उन्होंने ही बताया। पहली बार इस देश में श्री राम कथा को एक नए देशभक्ति सन्दर्भ में प्रस्तुत करने वाले भी श्री राजीव दीक्षित जी ही है।
उदारीकरण और वैश्वीकरण की सच्चाई को पूरे देश के सामने रखा और इसके कई दुष्प्रभावों से देश को बचाने के लिए अपनी अंतिम स्वांस तक प्रयास करते रहे।

हमारे देश के गाँव गाँव में जाकर इस देश की हर एक समस्या को देखा, समझा तथा उसके निवारण के लिए प्रभावशाली उपाय बताये और किये। वो होमियोपेथी और आयुर्वेद के महान विद्वान रहे है। महर्षि वाघभट्ट जी के "अष्टांग हृदयं" नामक ग्रन्थ को कई वर्षी तक अध्ययन कर उसे आज की जलवायु एवं परिस्थितियों के हिसाब से पुनर्रचित किया तथा बहुत ही सरल तरीकों से उसे आम जनता के बीच बताया जिससे हम बिना किसी दवाई के, बस खाने-पीने आदि के समय और सही तरीके मात्र से स्वस्थ रहने के उपाय बताये।

श्री राजीव दीक्षित ने लाखोँ लोगो के दिलो-दिमाग में प्रत्यक्ष रूप से देशभक्ति की ज्वाला नहीं अपितु धधकता लावा प्रज्वलित किया। इस देश को कैसे महाशक्ति बनाया जा सकता है, इसके लिए बहुत ही सरल उपाय बताये जिन उपायों पर आज बहुत से लोग कार्य कर रहे हैं।
ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए बहुत ही जबरदस्त उपाय बताये। ग्लोबल वार्मिंग एवं वैश्विक भुखमरी को एक साथ ख़त्म करने के लिए पूरे प्रमाणों के साथ सिद्ध किया की अगर मांसाहारी खाना खाना बंद कर दिया जाये तो दोनों समस्याओं से एक साथ छुटकारा पाया जा सकता है। विदेशी षणयंत्रों से पहली बार पूरे देश को अवगत करवाया। उनके पास हर एक समस्या का समाधान बहुत ही सरलता और प्रमाणिकता के साथ उपलब्ध रहता था।

पेट्रोल, डीजल आदि की समस्या का छुटकारा पाने के लिए कुछ साथियों के साथ मिलकर उन्होंने गोबर गैस से व्हिकल चलाने के सफल प्रयोग किये जिसमें नाम मात्र का खर्चा आता है।

श्री राजीव दीक्षित जी ने ही पेप्सी और कोका-कोला जैसे खतरनाक जहर के बारे में पहली बार पूरे देश को बताया तथा लोगो को बहुत बड़े स्तर पर जागृत किया।
हमारे देश की बिजली उत्पादन से सम्बंधित समस्या के प्रमाणिक उपाय बताये।
उनके द्वारा बताये गए सभी उपाय इतने असरदार, दमदार और सरल है की उन्हें जिस दिन लागू किया जाये उसी दिन उस समस्या का समाधान हो जाये।
उनके ह्रदय में स्वदेश के प्रति इतनी तड़प थी की वो रात दिन अपने अंतिम स्वांस तक बस स्वदेश और स्वदेशी के लिए ही कार्य करते रहे। उन्होंने पूरे देश में १५,००० से अधिक प्रत्यक्ष व्याख्यान दिए और अगर उनके अप्रत्यक्ष व्याख्यानों (T.V., CD, DVD, Internet etc) को शामिल किया जाये तो गिनती करना असंभव हो जायेगा।

श्री राजीव दीक्षित जी ने विभिन्न विषयों पर अनेकों लेख व पुस्तकें लिखी हैं - बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का मकड़जाल, अष्टांग ह्रदयम् (स्वदेशी चिकित्सा), हिस्ट्री ऑफ द एमेन्सिस, भारत और यूरोपीय संस्कृति, स्वदेशी : एक नया दर्शन, हिन्दुस्तान लिवर के कारनामे आदि आदि।
श्री राजीव दीक्षित ने पिछले ३० वर्षो तक हमारे देश के लिए कई घातक कानूनों को बनने से रोका तथा कई अच्छे कानून बनवाने में उनका योगदान रहा। भारतीय और पश्चिमी संस्कृति, सभ्यता आदि पर गहन अध्ययन कर पूरे देश के सामने रखा। श्री धर्मपाल जी के साथ मिलकर हमारे पुराने गौरवशाली इतिहास को पुनः एकत्रित किया और पूरे देश में प्रचारित किया।


उन्होंने कई बार अपनी जान पर खेलकर कई घातक कानूनों और खतरनाक विदेशी कम्पनियों को हमारे देश में आने से रोका। देश की रक्षा करते हुए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा, लेकिन श्री राजीव दीक्षित जी पीछे नहीं हटे।

देश हित के कई कार्यो में कई बार उन्हें और उनके साथियों को लाठियां-गोलियां खानी पड़ी लेकिन उन्होंने कभी अपने कदम पीछे नहीं बढ़ाये। श्री राजीव दीक्षित ने भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने के लिए एक बहुत ही मजबूत आधार बनाकर हमें दिया है जिस पर इस देश को बहुत जल्द महाशक्ति बनाया जा सकता है।
श्री राजीव दीक्षित जी बिना मीडिया की सहायता के ही पूरे देश के कोने कोने में जाकर रात-दिन व्याख्यान देते रहे।
उनकी आवाज जैसे भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ आग उगलने वाली आवाज हो।

उनके सीने में देश के प्रति इतना प्रेम एवं तड़प थी की जेसे वो एक पल में ही इस देश को पुनः विश्वगुरु बना दे और अगर आज ही उनके बताये गए उपायों को हमारे देश में लागू कर दिया जाये तो सच में एक ही पल में ये देश पुनः विश्वगुरु बन सकता है।

हमारे देश की गरीबी, भूखमरी आदि विकट समस्याओं को देखकर उनका दिल भर आता था। श्री राजीव दीक्षित ने हमें हमारे स्वर्णिम अतीत के बारे में बताकर हमारा स्वाभिमान जगाया। 'भारत स्वाभिमान आन्दोलन' उनके दिमाग की ही देन है।

स्वामी रामदेव जी के संपर्क में आने के बाद ९ जनवरी २००९ को स्वामीजी और श्री राजीव दीक्षित जी ने भारत स्वाभिमान ट्रस्ट शुरू किया और इसका पूर्ण दायित्व अपने कंधो पर संभाला और पूरे देश के गांव-गांव शहर शहर में घूम कर स्वदेशी कि अलख जगाई। श्री राजीव दीक्षित जी ने पूर्ण निर्भीकता के साथ विदेशी कंपनियों की पोल खोली तथा बहुत सारी विदेशी कंपनियों को हमारे देश से खदेड़ा जो कि हमारे देश को बहुत बुरी तरह लूट रही थी/लुटने वाली थी।

श्री राजीव दीक्षित जी ने ही डंकल प्रस्ताव के खिलाफ पूरे देश में गाँव गाँव जाकर जागृति फैलाई वरना आज हम अन्न के दाने दाने के लिए विवश हो जाते।

श्री राजीव दीक्षित जी लाखों युवाओ को देशभक्ति की राह पर लाये और उनके जीवन को दिव्य बना दिया जो की पश्चिमी सभ्यता एवं मानसिक गुलामी में पूर्ण रूप से डूब चुके थे। श्री राजीव दीक्षित जी अपनी हर एक बात प्रामाणिकता के साथ कहते थे उनके पास हर एक बात के तथ्य,सबूत होता था। उनके दिमाग में कम्पूटर से भी तेज गणनाएँ कर पाने की अद्भुत क्षमता थी। श्री राजीव दीक्षित जी के पास बहुत बार विदेशी कंपनियों और आसुरी ताकतों की धमकियां एवं ऑफर भी आते थे परन्तु श्री राजीव दीक्षित ना तो कभी बिके और न ही कभी रुके।

श्री राजीव दीक्षित जी पुरे जीवन ब्रह्मचारी रहे तथा पूरा का पूरा जीवन देश हित के कार्यो में लगा दिया। श्री राजीव दीक्षित जी ने ही हमें “पूर्ण स्वराज” की परिभाषा समझाई और इसे प्राप्त करने के बहुत ही असरदार तरीके बताये।

राजीव भाई जिनका निष्कलंक जीवन सादगी, स्वदेशी, पवित्रता, भक्ति, श्रद्धा, विश्वास से भरा हुआ था। चाहे लोगों ने उन्हें कितना भी कष्ट दिया हो उन्होंने उफ नहीं की।

पूज्य स्वामी रामदेव जी का राजीव भाई से पहला संवाद कनखल के आश्रम में हुआ था। राजीव भाई लगभग दो ढाई दशक से अपना संपूर्ण जीवन लोगों के लिये जी रहे थे। राजीव भाई भगवान के भेजे हुए एक श्रेष्ठतम रचना थे, धरती पर एक ऐसी सौगात जिसे हम चाह कर भी पुन: निर्मित नहीं कर सकते।

राजीव भाई के ह्रदय में एक ऐसी आग थी, जिससे प्रतीत होता था कि वे अभी ही भ्रष्टतंत्र को, भ्रष्टाचार को खत्म कर देंगे। ‘भारत स्वाभिमान आंदोलन' के साथ आज पूरा देश उनके साथ खडा हुआ है।

हम सबको मिल करके भारत स्वाभिमान का जो संकल्प राजीव भाई ने लिया था, उसे पूरा करना है और अब वो साकार रुप ले चुका है। जब भारत स्वाभिमान का आंदोलन बहुत बड़े चरण पर है तो एक बहुत बडी क्षति हुई है जिसे शब्दों में बयान नही किया जा सकता। ये ह्रदय की नहीं बल्कि समस्त राष्ट्र की पीड़ा है।

व्यक्ति जब समिष्ट के संकल्प के साथ जीने लगता है तो वो सबका प्रिय हो जाता है। वे अपने माता-पिता के लाल नही थे, बल्कि करोडों-करोडों लोगों के दुलारे और प्यारे थे। वे भारत माता के लाल थे। एक मां की कोख धन्य होती है जब ऐसे लाल पैदा होते है। राजीव भाई हमारे भाई ही नहीं बल्कि देश के करोडों-करोडों लोगों के भाई थे। प्रतिभावान, विनम्र, निष्कलंक जीवन था राजीव भाई का। राजीव भाई को 'इन्साइक्लोपीडिया' कहा जाता था। वे चलते-फिरते अथाह ज्ञान के सागर थे। 5000 वर्षों का ज्ञान, असीम स्मृति वाले, अपरिमित क्षमता वाले थे राजीव भाई। आर्थिक मामलों पर उनका स्वदेशी विचार सामान्य जन से लेकर बुद्धिजीवियों तक को आज भी प्रभावित करता है। उनकी जिव्हा पर स्वयं माँ सरस्वती जी विराजमान रहते थे। उनकी आवाज में इतना ओज है की जो भी उनको एक बार सुन ले वो उनका भक्त हो जाये।

मीडिया ने कभी भी श्री राजीव दीक्षित को एवं उनके व्याख्यानों को नहीं दिखाया नहीं तो आज हमारा देश महाशक्ति बन चुका होता लेकिन फिर भी उनके पुरुषार्थ की वजह से आज देश जाग रहा है तथा उनके सपनों के भारत को बनाने के लिए लाखों करोडों लोग तैयार हो चुके है, तथा दिन-रात कार्य कर रहे है। अब इस देश को विश्वगुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता क्योकि इसकी नीव श्री राजीव दीक्षित के हाथो से स्थापित की गई है। श्री राजीव दीक्षित के समर्थक उनके कार्यो को पूरा करने के लिए अपनी जान तक देने को तैयार रहते है। बहुत ही जल्द एक नए भारत का उदय आप देखेंगे।

एक श्री राजीव दीक्षित जी के शरीर को तो मिटा दिया गया है पर अब इस देश में लाखो-करोडो राजीव भाई पैदा हो गए है उन्हें मिटाना मुश्किल ही नहीं वरन असंभव भी है, हम सब मिलकर स्वर्णिम भारत का निर्माण अवश्य करेंगे चाहे कुछ भी हो जाये। श्री राजीव दीक्षित जी कोई व्यक्ति नहीं थे, अपितु वो एक “दिव्य-आत्मा”, एक विचार, एक क्रांति का आगाज, एक स्वदेशी अलख थे। वो भारत मां के अनमोल रत्न थे। जब वह बोलते थे तो घण्टों मन्त्र-मुग्ध होकर लोग उनको सुनते रहा करते थे। राजीव भाई का मानना था कि उदारीकरण, निजीकरण, तथा वैश्वीकरण, ये तीन ऐसी बुराइयां है, जो हमारे समाज को तथा देश की संस्कृति व विरासत को तोड़ रही है।

भारतीय न्यायपालिका तथा क़ानून व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि भारत अभी भी उन कानूनों तथा अधिनियमों में जकड़ा हुआ है जिनका निर्माण ब्रिटिश राज में किया गया था और इससे देश लगातार गर्त में जाता जा रहा है। राजीव दीक्षित जी स्वदेशी जनरल स्टोर्स कि एक श्रृंखला बनाने का समर्थन करते थे, जहाँ पर सिर्फ भारत में बने उत्पाद ही बेंचे जाते हैं। इसके पीछे के अवधारणा यह थी, कि उपभोक्ता सस्ते दामों पर उत्पाद तथा सेवाएं ले सकता है और इससे निर्माता से लेकर उपभोक्ता, सभी को सामान फायदा मिलता है, अन्यथा ज्यादातर धन निर्माता व आपूर्तिकर्ता कि झोली में चला जाता है।

राजीव भाई ने टैक्स व्यवस्था के विकेन्द्रीकरण की मांग की और कहा कि वर्तमान व्यवस्था दफ्तरशाही में भ्रष्टाचार का मूल कारण है। उनका दावा था कि कि टैक्स का 80 प्रतिशत भाग राजनेताओं व अधिकारी वर्ग को भुगतान करने में ही चला जाता है, और सिर्फ 20 प्रतिशत विकास कार्यों में लगता है। उन्होंने वर्तमान बजट व्यवस्था की पहले कि ब्रिटिश बजट व्यवस्था से तुलना की और इन दोनों व्यवस्थाओं को सामान बताते हुए आंकड़े पेश किये। राजीव भाई का स्पष्ठ मत था कि आधुनिक विचारकों ने कृषि क्षेत्र को उपेक्षित कर दिया है। किसान का अत्यधिक शोषण हो रहा है तथा वे आत्महत्या की कगार पर पहुँच चुके हैं। वो हर बात तथ्यों, सबूतों, आकडो एवं दस्तावेजों के साथ कहते थे. जब वो भारत के स्वर्णिम अतीत का गुण-गान करते अथवा विदेशियों के द्वारा की गई आर्थिक लूट के आँकडे गिनवाना शुरू होते थे तो प्रतीत होता था जेसे उनका दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज चलता हो। उस “दिव्य-आत्मा” के दिमाग में ५,००० से भी ज्यादा वर्षों का ज्ञान समाहित था। उन्हें चलता-फिरता सुपर कम्पुटर कहा जाता था।

श्री राजीव दीक्षित जी को अगर ज्ञात-अज्ञात इतिहास के सबसे महान स्वदेशी महापुरुष कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। श्री राजीव भाई जी का जीवन सादगी, पवित्रता, समर्पण, उत्साह, जोश, स्वदेशी भाव से पूर्ण था। उन्होंने पहले “आज़ादी बचाओ आंदोलन” और फिर “भारत स्वाभिमान” के तहत पुरे देश को संगठित और आंदोलित किया। बारम्बार प्रणाम है ऐसे माता-पिता के चरणों में जिन्होंने इस “दिव्य-आत्मा” को जन्म दिया। वो अपने माता-पिता के ही नहीं अपितु सम्पूर्ण देश के प्यारे-दुलारे है. वो माँ भारती के लाल है।

उपरोक्त लिखी गयी इन सभी बातो के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए श्री राजीव दीक्षित के व्याख्यान सुने। www.rajivdixit.com
एक बार विकिपीडिया पर भी उनके बारे में अवश्य पढ़े।

...धन्यवाद...



दुर्वा की खास बातें जानेंगे तो आप भी मानेंगे ये है चमत्कारी:



क्या आप जानते हैं श्रीगणेश को एक विशेष प्रकार की घास अर्पित की जाती है जिसे दुर्वा कहते हैं। दुर्वा के कई चमत्कारी प्रभाव हैं। यहां जानिए दुर्वा से जुड़ी खास बातें-


गणपति अथर्वशीर्ष में उल्लेख है-
यो दूर्वांकरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।
अर्थात- जो दुर्वा की कोपलों से (गणपति की) उपासना करते हैं उन्हें कुबेर के समान धन की प्राप्ति होती है।

प्रकृति द्वारा प्रदान की गई वस्तुओं से भगवान की पूजा करने की परंपरा बहुत प्राचीन है। जल, फल, पुष्प यहां तक कि कुश और दुर्वा की घास द्वारा अपनी प्रार्थना ईश्वर तक पहुंचाने की सुविधा हमारे धर्मशास्त्रों में दी गई है। दुर्वा चढ़ाने से श्रीगणेश की कृपा भक्त को प्राप्त होती है और उसके सभी कष्ट-क्लेश समाप्त हो जाते हैं।

हमारे जीवन में दुर्वा के कई उपयोग हैं। दुर्वा को शीतल और रेचक माना जाता है। दुर्वा के कोमल अंकुरों के रस में जीवनदायिनी शक्ति होती है। पशु आहार के रूप में यह पुष्टिïकारक एवं दुग्धवर्धक होती है। प्रात:काल सूर्योदय से पहले दूब पर जमी ओंस की बूंदों पर नंगे पैर घूमने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।

पंचदेव उपासना में दुर्वा का महत्वपूर्ण स्थान है। यह गणपति और दुर्गा दोनों को अतिप्रिय है। पुराणों में कथा है कि पृथ्वी पर अनलासुर राक्षस के उत्पात से त्रस्त ऋषि-मुनियों ने इंद्र से रक्षा की प्रार्थना की। इंद्र भी उसे परास्त न कर सके। देवतागण शिव के पास गए। शिव ने कहा इसका नाश सिर्फ गणेश ही कर सकते हैं। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर श्रीगणेश ने अनलासुर को निगल लिया। जब उनके पेट में जलन होने लगी तब ऋषि कश्यप ने 21 दुर्वा की गांठ उन्हें खिलाई और इससे उनकी पेट की ज्वाला शांत हुई।

दुर्वा जिसे आम भाषा में दूब भी कहते हैं एक प्रकार ही घास है। इसकी विशेषता है कि इसकी जड़ें जमीन में बहुत गहरे (लगभग 6 फीट तक) उतर जाती हैं। विपरीत परिस्थिति में यह अपना अस्तित्व बखूबी से बचाए रखती है। दुर्वा गहनता और पवित्रता की प्रतीक है। इसे देखते ही मन में ताजगी और प्रफुल्लता का अनुभव होता है। शाक्तपूजा में भी भगवती को दुर्वा अर्पित की जाती है।

पांच दुर्वा के साथ भक्त अपने पंचभूत-पंचप्राण अस्तित्व को गुणातीत गणेश को अर्पित करते हैं। इस प्रकार तृण के माध्यम से मानव अपनी चेतना को परमतत्व में विलीन कर देता है।

श्रीगणेश पूजा में दो, तीन या पांच दुर्वा अर्पण करने का विधान तंत्र शास्त्र में मिलता है। इसके गूढ़ अर्थ हैं। संख्याशास्त्र के अनुसार दुर्वा का अर्थ जीव होता है जो सुख और दु:ख ये दो भोग भोगता है। जिस प्रकार जीव पाप-पुण्य के अनुरूप जन्म लेता है। उसी प्रकार दुर्वा अपने कई जड़ों से जन्म लेती है। दो दुर्वा के माध्यम से मनुष्य सुख-दु:ख के द्वंद्व को परमात्मा को समर्पित करता है। तीन दुर्वा का प्रयोग यज्ञ में होता है। ये आणव (भौतिक), कार्मण (कर्मजनित) और मायिक (माया से प्रभावित) रूपी अवगुणों का भस्म करने का प्रतीक है।