17 September 2012

कुछ ध्यान से समझने वाली बाते


" माँ - बाप की आँखों मे दो बार ही आंसू आते है |
एक तो लड़की घर छोड़े तब और दूसरा लड़का मुह मोड़े तब | पत्नी पसंद से मिल सकती है |
मगर माँ तो पुण्य से ही मिलती है | इसलिए पसंद से मिलने वाली के लिए पुण्य से मिलने वाली को मत ठुकरा देना | जब तू छोटा था तो माँ की शय्यां गीली रखता था , अब बड़ा हुआ तो माँ की आँख गीली रखता है | तू कैसा बेटा है ?

तूने जब धरती पर पहला साँस लिया तब तेरे माँ - बाप तेरे पास थे | अब तेरा फ़र्ज़ है की 
माता - पिता जब अंतिम सांस ले तब तू उनके पास रहे | "

सांसारिक जीवन में इंसान की तीन अवस्था होती है जिनमे तीन काम जरुरी है
  • 1. बचपन में ज्ञान कमाना जरुरी है
  • 2. जवानी में रुपये - पैसे कमाना जरुरी है
  • 3. बुढ़ापे में पुन्य कमाना जरुरी है
जो दूसरों की बुराई खोजता या देखता है, वो उस मक्खी के जैसा होता है जो खुबसूरत जिस्म को छोड़ कर मवाद वाले जख्म पर जाकर बैठती है,

जिंदगी की आधी परेशानियाँ ऐसे ही दूर हो जाएगी, अगर.......
अगर हम एक दूसरे के बारे में बोलने कि जगह, एक दूसरे से बोलना सीख लें

आज का पारिवारिक माहोल होटल की तरह हो गया है ...
जैसे होटल में कौनसी टेबल पर कौन बैठा है किसी को नहीं पता होता....
एक आता है दूसरा चला जाता है ....
यही हाल आज के इन्सान का है,
एक घर में दो भाई है तो पहला आगे के दरवाजे से आता है ,
तो दूसरा पीछे के दरवाजे से बहार निकल जाता है..
किसी को किसी से जोई मतलब ही नहीं है...
सब अपने आप में मस्त है .

तुम दूसरों से आशीर्वाद मांगते हो, जरा यह भी सोचो, 
तुम्हें स्वयं... का आशीर्वाद मिल रहा है या नहीं? 
तुम्हारा पवित्र विचार और पवित्र आचार तुम्हारा अपना आशीर्वाद है.

परिवार में कभी आपसी बातचीत बंद नहीं करना... 
चाहे कितना भी झगडा करो कितना भी बोलो
चाहे मार दो या मार खा लो ..
लेकिन बातचीत कभी बंद मत करो.....क्यों की बातचीत बंद होते ही सुलह के सरे रास्ते बंद हो जाते है ,,,,,,,
तो बातचीत कभी बंद मत करो..

प्रश्न-नारियल को श्री फल क्यों कहते हैं?
उत्तर-नारियल धरती से जितना भी पानी लेता है,अपने बढ़ने के लिए,वेह उसके उपकार को नहीं भूलता है,और सारा पानी अपने अन्दर संचित करके रखता है,मीठा बनाये रखता है,जिससे लोगों की उस पानी को प्यास मिट जाए.इसलिए नारियल को श्री फल कहते हैं,उसके अन्दर भी कल्याण की भावना है.तोह हमारे अंदर क्यों नहीं है?

बच्चों के झगडे में बडों को और सास बहू के झगडों में बाप बेटे को कभी नहीं पडना चाहिये । संभव है कि दिन में सास बहू में कुछ कहा सुनी हो तो स्वाभाविक है कि वे इसकी शिकायत रात घर लौटे अपने पति से करेगी । पतियों को उनकी शिकायत गौर से सुननी चाहिये, सहानुभूति भी दिखानी चाहिये । मगर जब सोकर उठे तो आगे पाठ-पीछे सपाट की नीति ही अपनानी चाहिये, तभी घर में एकता कायम रह सकती है ।

जीवन में कभी समझौता करना पड़े तो कोई गल नहीं, क्योंकि, झुकता वही है जिसमें जान होती है, अकड़ तो मुरदे की पहचान होती है।

" सूर्योदयके साथ ही बिस्तर छोड़ देना चाहिए ,
ऐसा न करने से सिर पर पाप चढ़ता है | महिलाये जो की घर की लक्ष्मी है ,
इन लक्स्मियो को सूर्योदय के साथ ही उठ जाना चाहिए | लक्स्मन थोड़ी देर मे उठे
तो एक बार चल जायेगा , पर लक्ष्मी का देर से उठना बिलकुल नहीं चलेगा |
जिन घर - परिवारों मे लक्स्मन के साथ लक्ष्मी भी देर सुबह तक सोई पड़ी रहती है
उन घरो की ' असली - लक्ष्मी ' रूठ जाया करती है | और घर छोड़कर चली जाया करती है | "

डाक्टर और गुरु के सामने झूंठ मत बोलिये क्योंकिं यह झूंठ बहुत महंगा पड सकता है । गुरु के सामने झूंठ बोलने से पाप का प्रायश्चित नही होगा, डाक्टर के सामने झूंठ बोलने से रोग का निदान नहीं होगा । डाक्टर और गुरु के सामने एकदम सरल और तरल बनकर पेश हो । आप कितने ही होशियार क्यों न हो तो भी डाक्टर और गुरु के सामने अपनी होशियारी मत दिखाइये, क्योंकिं यहां होशियारी बिल्कुल काम नहीं आती । 

सज धज कर जिस दिन मौत की शेह्जादी आएगी न सोना काम आएगा न चांदी आएगी....
छोटा सा तू कितने बड़े अरमान है तेरे...मिट्टी का तू सोने के सब सामान है तेरे
मिट्टी की काया मिट्टी में जिस दिन समाएगी..........न सोना काम आएगा न चांदी आयेगी....

राजेश अग्रवाल
Photo: सज धज कर जिस दिन मौत की शेह्जादी आएगी न सोना काम आएगा न चांदी आएगी....
छोटा सा तू कितने बड़े अरमान है तेरे...मिट्टी का तू सोने के सब सामान है तेरे
मिट्टी की काया मिट्टी में जिस दिन समाएगी..........न सोना काम आएगा न चांदी आयेगी....


सज धज कर जिस दिन मौत की शेह्जादी आएगी न सोना काम आएगा न चांदी आएगी....

छोटा सा तू कितने बड़े अरमान है तेरे...मिट्टी का तू सोने के सब सामान है तेरे

मिट्टी की काया मिट्टी में जिस दिन समाएगी..........न सोना काम आएगा न चांदी आयेगी....

कुछ सावधानियां बरते तो हिडेन कैमरा का शिकार होने से बच सकते है


कुछ सावधानियां बरते तो हिडेन कैमरा का शिकार होने से बच सकते हैं।हिडेन कैमरा के छिपे होने की कुछ खास जगह


एक दोस्‍त ने मुझे कहा हमारे कालेज की एक लड़की का वीडियो यूट्यूब में पड़ा हुआ है वीडियो में वह एक ट्रायल रूम में कपड़े बदल रहीं थी, इस तरह की खबरें आज कल आए दिन टीवी और अखबारों की सुर्खियां बनी रहती हैं। लेकिन अगर हम किसी होटल या फिर अनजान कमरे में जाने से पहले कुछ सावधानियां बरते तो हिडेन कैमरा का शिकार होने से बच सकते हैं। हिडेन कैमरा के छिपे होने की कुछ खास जगह कमरे में रखा हुआ फूलों का गमला फोटो फ्रेम बीच में लगा हुआ पंखा बाथरूम शॉवर जब भी आप कपड़े चेंज करने के लिए किसी शोरूम के ट्रायल रूम में जाएं तो सबसे पहले ऊपर की ओंर दिए गए कोनों और शीशे को चेक कर लें, ट्रायल रूम में हो सकता है शीशे के पीछे हिडेन कैमरा लगा हो, शीशे में हिडेन कैमरा चेक करने के लिए, सबसे पहले शीशे में एक उंगली रखें अगर शीशे में रखी गई उंगली और शीशे में दिख रही उंगली के बीच में गैप रहता है तो मतलब ये ओरीजनल शीशा है, लेकिन अगर शीशे में रखी गई उंगली के बीच में कोई गैप नहीं रहता है और वे जुड़ी रहती हैं तो मतलब शीशे के पीछे सब कुछ दिख रहा है और हो सकता है वहां पर कैमरा लगा हो जो सब रिकार्ड कर रहा हो। रूम में अगर कोई आवाज आ रही है तो उसे ध्‍यान से सुनें क्‍योंकि कुछ हिडेन कैमरे मोशन सेंसिटिव होतें हैं जो अपने आप ऑन हो जाते हैं। रूम में जब भी जाएं एक बार सभी लाइटें बंद करके पूरे रूम का मुआयना करें लें कि कही कोई रेड लाइट या फिर ग्रीन लाइट तो नहीं जल रहीं है। अगर आपके मन में हिडेन कैमरा होने का शक हो बाजार में आरएफ सिंग्‍नल डिटेक्‍टर या फिर बग डिटेक्‍टर ले खरीद लें, ये डिवाइस रूम में हिडेन कैमरा होने पर आपको सर्तक कर देंगी। जागो जगाओ भारत बचाओ ! जयहिंद
Rajesh Agrawal

भारत में जीवन को चलाने के लिए कितनी चीजे होती हैं


भारत में जीवन को चलाने के लिए जितनी जरूरत की चीजे होती हैं वो हर समान हर जगह होती है |
Indian Council for Agricultural Research (ICAR) के दस्तावेज के अनुसार भारत में 14,785 वस्तुएं होती हैं| ये भारत की सभी राज्यों में एक समान होती हैं और भा
रत के उन शहरों या गाँव को बाहर से केवल नमक मंगाना पड़ता है, बाकी हर जरूरत की चीज उसी राज्य में हो जाती हैं|

ज्यादातर लोग आज की बनी रोटी कल खाना पसंद नहीं करेंगे, कुछ तो ऐसे भी है जो सुबह की बनी रोटी शाम को भी नही खाते, अब मैं अगर आपसे बोलूँ की आज रोटी बनाकर उसको पौलिथीन में पैक कर देता हूँ, उसको ४ दिन बाद खाने को कौन राजी होगा?
आप सोच रहे होंगे की क्या बेतुकी बातें कर रहा हूँ, अब जरा सोचो की आटे को सड़ाकर बनाई हुई ब्रेड और पाँव रोटी जो पता नही कितने दिन पहले की बनी हुई है, उसको इतना मजे ले कर क्यों खाते हो ? क्यों बर्गर और ब्रेड पकोड़ा खाते वक्त ये बातें दिमाग में नही आती हैं ?

अगर हम ताजा रोटी खाने की परम्परा को दकियानुसी मान कर ४-५ दिन पहले बनी बासी रोटी खाने को अपनी शान समझते है तो हम पढ़े लिखे मूर्खो के सिवा और कुछ नही है, यूरोप के गधों के पीछे आँख बंद कर चलने वाली भेड़ चाल को हमें छोड़ना ही होगा, यूरोप और अमेरिका में चूकी मौसम की अनुकूलता नहीं है, साल में नौ महीने ठण्ड पड़ती है और उनके यहाँ कभी भी बारिस हो जाती है और बर्फ भी बहुत पड़ती है, धुप का दर्शन तो साल में 300 दिन होता ही नहीं है | इसके अलावा उनके कृषि क्षेत्र में कुछ होता नहीं है, कुल मिलाके दो ही चीजें होती हैं, आलू और प्याज और थोडा बहुत गेंहू| यूरोप में ब्रेड खाना उनकी मज़बूरी है, वहाँ का तापमान इतना कम रहता है की रोटी बनाना संभव ही नही है, आटा गूँथने के लिए पानी चाहिए लेकीन वहाँ छः महीने तो बर्फ जमी रहती है, इसीलिए वहाँ ब्रेड बनाई जाती है जिसमें आटा गूँथने की जरुरत नहीं होती है, आटे को सड़ाकर ब्रेड बना दी जाती है, और अत्यंत कम तापमान की वजह से वो चार पांच दिनों तक खराब नही होती है, भारतीय जलवायु के हिसाब से ब्रेड उचित नहीं है, भारतीय जलवायु में ब्रेड जैसे नमीयुक्त खाद्य पदार्थ जल्दी खराब होते हैं, तापमान बहुत कम होने के कारण उनके शरीर में मैदे से बनी ब्रैड पच जाती है पर भारत में तापमान बहुत अधिक होता है जो भारतीयों के लिये सही नही, इससे कब्ज की शिकायत होती है और कब्ज होने से सैंकडों बीमारियां लगती है, हजारों सालों से भारत में ताजे आटे को गूंथकर ही रोटी बनाई और खाई जाती है, हमारे पूर्वज इतने तो समझदार थे जो उन्होने ब्रैड आदि खाना शुरू नही किया तो आप भी समझदार बनिये,

ये ही हाल टमाटर की चटनी का है
इसीलिए सभी राष्ट्रभक्त भाई बहनों से निवेदन है की ब्रेड, पाँव रोटी, सौस जैसी चीजों से बने खाद्य पदार्थ का पूरी तरह से बहिष्कार करें और अन्य को भी प्रेरित करें।




Rajesh Agrawal

कृष्ण यजुर्वेद... कठोपनिषद...


उपनि‍षदों में कर्म तथा पुनर्जन्‍म की अवधारणाओं को एक सि‍द्धान्‍त का रूप दि‍या गया है... "कठोपनि‍षद्" में इस वि‍चार को स्‍पष्‍ट रूप से व्‍यक्‍त कि‍या गया है कि‍ मृतक की आत्‍मा नवीन शरीर धारण करती है... आत्‍मा अपने कर्म तथा ज्ञान के अनुसार जड़ वस्‍तुओं जैसे पेड़ या पौधों का स्‍वरूप भी ग्रहण कर सकती है...

'कठोपनिषद्' कृष्णयजुर्वेद की कठशाखा के अन्तर्गत है। इसमें यम और नाचिकेता के संवादरूप से ब्रह्मविद्या का बड़ा विशद वर्णन किया गया है। इसकी वर्णन

शैली बड़ी ही सुबोध और सरल है। श्रीमद्भगवद्गीता में भी इसके कई मन्त्रों का कहीं शब्दतः और कहीं अर्थतः उल्लेख है। इसमें अन्य उपनिषदों की भाँति जहाँ तत्त्वाज्ञान का गम्भीर विवेचन है, वहां नचिकेता का चरित्र पाठक के सामने एक अनुपम आदर्श की उपस्थिति करता है।

'न देने योग्य गौ के दान से दाता का उल्टे अमंगल होता है' इस विचार से सात्त्विक बुद्धि-सम्पन्न ॠषिकुमार नचिकेता अधीर हो उठे । उनके पिता वाजश्रवस-वाजश्रवा के पुत्र उद्दालक ने विश्वजित नामक महान यज्ञ के अनुष्ठान में अपनी सारी सम्पत्ति दान कर दी, किन्तु ॠषि-ॠत्विज और सदस्यों की दक्षिणा में अच्छी-बुरी सभी गौएँ दी जा रही थीं । पिता के मंगल की रक्षा के लिए अपने अनिष्ट की आशंका होते हुए भी उन्होंने विनयपूर्वक कहा-'पिताजी ! मैं भी आपका धन हूँ, मुझे किसे दे रहे हैं?['तत कस्मै मां दास्यसि’ ]

उनका यह प्रश्न ठीक ही था, क्योंकि वस्तुतः सर्वदान तो तभी हो सकता है जब कोई वस्तु अपनी न रहे और यहां अपने पुत्र के मोह से ही ब्राह्मणों को निकम्मी और निरर्थक गौएँ दी जा रही थीं; अतः इस मोह से पिता का उद्धार करना उनके लिये उचित ही था।

इसी तरह कई बार पूछने पर जब वाजश्रवा ने खीझकर कहा कि मैं तुझे मृत्यु को दूँगा तो उन्होंने यह जानकर भी कि पिताजी क्रोधवश ऐसा कह गये हैं, उनके कथन की उपेक्षा नहीं की।

परिणाम के लिए, वे पहले से ही प्रस्तुत थे । उन्होंने हाथ जोड़कर पिता से कहा -'पिताजी ! शरीर नश्वर है, पर सदाचरण सर्वोपरि है । आप अपने वचन की रक्षा के लिए यम सदन जाने की मुझे आज्ञा दें ।'

ॠषि सहम गये , पर पुत्र की सत्यपरायणता देखकर उसे यमपुरी जाने की आज्ञा उन्होंने दे दी । नचिकेता ने पिता के चरणों में सभक्ति प्रणाम किया और वे यमराज की पुरी के लिए प्रस्थित हो गये । यमराज काँप उठे । अतिथि ब्राह्मण का सत्कार न करने के कुपरिणाम से वे पूर्णतय परिचित थे और ये तो अग्नितुल्य तेजस्वी ॠषिकुमार थे, जो उनकी अनुपस्थिति में उनके द्वार बिना अन्न-जल ग्रहण किए तीन रात बिता चुके थे ।


यम जलपूरित स्वर्ण-कलश अपने ही हाथों में लिए दौड़े । उन्होंने नचिकेता को सम्मानपूर्वक पाद्यार्घ्य देकर अत्यन्त विनय से कहा -'आदरणीय ब्राह्मणकुमार! पूज्य अतिथि होकर भी आपने मेरे द्वार पर तीन रात्रियाँ उपवास में बिता दीं, यह मेरा अपराध है । आप प्रत्येक रात्रि के लिये एक-एक वर मुझसे माँग लें ।

'मृत्यो ! मेरे पिता मेरे प्रति शान्त-संकल्प, प्रसन्नचित्त और क्रोधरहित हो जाएँ और जब मैं आपके यहाँ से लौटकर घर जाऊँ, तब वे मुझे पहचानकर प्रेमपूर्वक बातचीत करें ।' पितृभक्त बालक ने प्रथम वर माँगा ।
'तथास्तु' यमराज ने कहा।

'मृत्यो ! स्वर्ग के साधनभूत अग्नि को आप भलीभाँति जानते हैं । उसे ही जानकर लोग स्वर्ग में अमृतत्त्व-देवत्व को प्राप्त होते हैं, मैं उसे जानना चाहता हूँ । यही मेरी द्वितीय वर-याचना है ।'


'यह अग्नि अनन्त स्वर्ग-लोक की प्राप्ति का साधन है । ' यमराज नचिकेता को अल्पायु, तीक्ष्ण बुद्धि तथा वास्तविक जिज्ञासु के रूप में पाकर प्रसन्न थे । उन्होंने कहा- 'यही विराट रूप से जगत की प्रतिष्ठा का मूल कारण है । इसे आप विद्वानों की बुद्धिरूप गुहा में स्थित समझिये ।'
उस अग्नि के लिए जैसी जितनी ईंटें चाहिए, वे जिस प्रकार रखी जानी चाहिए तथा यज्ञस्थली निर्माण के लिए आवश्यक सामग्रियाँ और अग्निचयन करने की विधि बतलाते हुए अत्यन्त सन्तुष्ट होकर यम ने द्वितिय वर के रूप में कहा- 'मैने जिस अग्नि की बात आपसे कहीं, वह आपके ही नाम से प्रसिद्ध होगी और आप इस विचित्र रत्नों वाली माला को भी ग्रहण कीजिए ।'

'हे नचिकेता, अब तीसरा वर माँगिये ।' श्रद्धा-समन्वित नचिकेता ने कहा- 'आत्मा का प्रत्यक्ष या अनुमान से निर्णय नहीं हो पाता । अत: मैं आपसे वहीं आत्मतत्त्व जानना चाहता हूँ । कृपापूर्वक बतला दीजिए ।'

यम झिझके । आत्म-विद्या साधारण विद्या नहीं । उन्होंने नचिकेता को उस ज्ञान की दुरूहता बतलायी, पर उनको वे अपने निश्चय से नहीं डिगा सके । यम ने भुवन मोहन अस्त्र का प्रयोग किया- सुर-दुर्लभ सुन्दरियाँ और दीर्घकाल स्थायिनी भोग-सामग्रियों का प्रलोभन दिया, पर ॠषिकुमार अपने तत्त्व-सम्बंधी गूढ़ वर से विचलित नहीं हो सके ।


'आप बड़े भाग्यवान हैं ।' यम ने नचिकेता के वैराग्य की प्रशंसा की और वित्तमयी संसार गति की निन्दा करते हुए बतलाया कि विवेक- वैराग्यसम्पन्न पुरुष ही ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के अधिकारी हैं । श्रेय-प्रेय और विद्या-अविद्या के विपरीत स्वरूप का यम ने पूरा वर्णन करते हुए कहा-'आप श्रेय चाहते हैं तथा विद्या के अधिकारी हैं ।'

'हे भगवन ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो सब प्रकार के व्यावहारिक विषयों से अतीत जिस परब्रह्म को आप देखते हैं मुझे अवश्य बतलाने की कृपा कीजिये ।'

'आत्मा चेतन है। वह न जन्मता है, न मरता है । न यह किसी से उत्पन्न हुआ है और न कोई दूसरा ही इससे उत्पन्न हुआ है ।' नचिकेता की जिज्ञासा देखकर यम अत्यंन्त प्रसन्न हो गए थे । उन्होंने आत्मा के स्वरूप को विस्तारपूर्वक समझाया-'वह अजन्मा है , नित्य है, शाश्वत है, सनातन है, शरीर के नाश होने पर भी बना रहता है। वह सूक्ष्म-से -सूक्ष्म और महान से भी महान है । वह समस्त अनित्य शरीर में रहते हुए भी शरीररहित है, समस्त अस्थिर पदार्थों में व्याप्त होते हुए भी सदा स्थिर है । वह कण-कण में व्याप्त है । सारा सृष्टि क्रम उसी के आदेश पर चलता है । अग्नि उसी के भय से चलता है, सूर्य उसी के भय से तपता है, इन्द्र, वायु और पाँचवाँ मृत्यु उसी के भय से दौड़ते हैं । जो पुरुष काल के गाल में जाने के पूर्व उसे जान लेते हैं, वे मुक्त हो जाते हैं । शोकादि क्लेशों को पार कर परमानन्द को प्राप्त कर लेते हैं ।'


यम ने कहा, 'वह न तो वेद के प्रवचन से प्राप्त होता है, न विशाल बुद्धि से मिलता है और न केवल जन्मभर शास्त्रों के श्रवण से ही मिलता है। वह उन्हीं को प्राप्त होता है, जिनकी वासनाएँ शान्त हो चुकी हैं, कामनाएँ मिट चुकी हैं और जिनके पवित्र अन्त:करण को मलिनता की छाया भी स्पर्श नहीं कर पाती जो उसे पाने के लिए अत्यन्त व्याकुल हो जाते हैं । आत्म-ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद उद्दालक पुत्र कुमार नचिकेता लौटे तो उन्होंने देखा कि वृद्ध तपस्वियों का समुदाय भी उनके स्वागतार्थ खड़ा है ।

Rajesh Agrawal

मेरा प्रिय और सपनो का घर का रास्ता



GEOGRAPHICAL COORDINATE TO MY NATIVE – HOME

23.217775,82.20506

From Railway Station to My home – JUST CLICK ON BELOW RED LINK

रेलवे स्टेशन से मेरे घर का रास्ता - आप सिर्फ़ इस पर क्लिक करे

From Bus Stand to My Home - JUST CLICK ON BELOW RED LINK

बस स्टैंड से मेरे घर का रास्ता - आप सिर्फ़ इस पर क्लिक करे

Decimal Degrees (WGS84)
****************************************
Latitude Longitude
23.217775 82.20506
****************************************
Degrees, Minutes & Seconds
****************************************
Latitude       Longitude
N23 13 03   E82 12 18
****************************************
GPS
****************************************
Latitude          Longitude
N 23 13.066  E 82 12.304
****************************************
UTM
****************************************
        X        Y

44N 623304 2568139
****************************************









Rajesh Agrawal

****Be alert and Safe! Please read...****



This happened in Mumbai.. An incident narrated by one of the Chartered Accountants...

This happened in Mumbai.......

I cannot stop myself from sharing this with all of you. It all started when I received a call from someone claiming that he was from my mobile service provider and he asked me to shutdown my phone for 2 hours for 3G update to take place. As I was rushing for a meeting, I did not question and shutdown my cell phone.

After 45 minutes I felt very suspicious since the caller did not even introduce his name. I quickly turned on my cell phone and I saw several missed calls from my family members and the others were from the number that had called me earlier - 3954380.

I called my parents and I was shocked that they sounded very worried asking me whether I am safe. My parents told me that they had received a call from someone claiming that they had me with them and asking for money to let me free. The call was so real and my parents even heard 'my voice' crying out loud asking for help. My parent was at the bank waiting for next call to proceed for money transfer. I told my parents that I am safe and asked them to lodge a police report.

Right after that I received another call from the guy asking me to shutdown my cell phone for another 1 hour which I refused to do and hung up. They keep calling my cell phone until the battery had run down. I myself lodged a police report and I was informed by the officer that there were many such scams reported. MOST of the cases reported that the victim had already transferred the money! And it is impossible to get back the money. Be careful as this kind of scam might happen to any of us!!! Those guys are so professional and very convincing during calls. If you are asked to shut down your cell phone for updates by the service provider, ASK AROUND!
Your family or friends might receive the same call.
Be Safe and Stay Alert!

Please pass around to your family and friends !!!

Thank you.





Rajesh Agrawal

भारत की विश्व को देन


भारत की विश्व को देन : गणित शास्त्र-१


गणित शास्त्र की परम्परा भारत में बहुत प्राचीन काल से ही रही है। गणित के महत्व को प्रतिपादित करने वाला एक श्लोक प्राचीन काल से प्रचलित है।

यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वद् वेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितम्।। (याजुष ज्योतिषम)

अर्थात् जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि सबसे ऊपर रहती है, उसी प्रकार वेदांग और शास्त्रों में गणित सर्वोच्च स्थान पर स्थित है।

ईशावास्योपनिषद् के शांति मंत्र में कहा गया है-


ॐपूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।


यह मंत्र मात्र आध्यात्मिक वर्णन नहीं है, अपितु इसमें अत्यंत महत्वपूर्ण गणितीय संकेत छिपा है, जो समग्र गणित शास्त्र का आधार बना। मंत्र कहता है, यह भी पूर्ण है, वह भी पूर्ण है, पूर्ण से पूर्ण की उत्पत्ति होती है, तो भी वह पूर्ण है और अंत में पूर्ण में लीन होने पर भी अवशिष्ट पूर्ण ही रहता है। जो वैशिष्ट्य पूर्ण के वर्णन में है वही वैशिष्ट्य शून्य व अनंत में है। शून्य में शून्य जोड़ने या घटाने पर शून्य ही रहता है। यही बात अनन्त की भी है।

हमारे यहां जगत के संदर्भ में विचार करते समय दो प्रकार के चिंतक हुए। एक इति और दूसरा नेति। इति यानी पूर्णता के बारे में कहने वाले। नेति यानी शून्यता के बारे में कहने वाले। यह शून्य का आविष्कार गणना की दृष्टि से, गणित के विकास की दृष्टि से अप्रतिम रहा है।

भारत गणित शास्त्र का जन्मदाता रहा है, यह दुनिया भी मानने लगी है। यूरोप की सबसे पुरानी गणित की पुस्तक "कोडेक्स विजिलेन्स" है। यह पुस्तक स्पेन की राजधानी मेड्रिड के संग्राहलय में रखी है। इसमें लिखा है-

"गणना के चिन्हों से (अंकों से) हमें यह अनुभव होता है कि प्राचीन  हिन्दुओ की बुद्धि बड़ी पैनी थी तथा अन्य देश गणना व ज्यामिति तथा अन्य विज्ञानों में उनसे बहुत पीछे थे। यह उनके नौ अंकों से प्रमाणित हो जाता है, जिनकी सहायता से कोई भी संख्या लिखी जा सकती है।"

नौ अंक और शून्य के संयोग से अनंत गणनाएं करने की सामर्थ्य और उसकी दुनिया के वैज्ञानिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका की वर्तमान युग के विज्ञानी लाप्लास तथा अल्बर्ट आईंस्टीन ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है।

भारतीय अंकों की विश्व यात्रा की कथा विश्व के अनेक विद्वानों ने वर्णित की है। इनका संक्षिप्त उल्लेख पुरी के शंकराचार्य श्रीमत् भारती कृष्णतीर्थ जी ने अपनी गणित शास्त्र की अद्भुत पुस्तक "वैदिक मैथेमेटिक्स" की प्रस्तावना में किया है।

वे लिखते हैं "इस संदर्भ में यह कहते हर्ष होता है कि कुछ तथाकथित भारतीय विद्वानों के विपरीत आधुनिक गणित के मान्य विद्वान यथा प्रो. जी.पी. हाल्स्टैंड. प्रो. गिन्सबर्ग, प्रो. डी. मोर्गन, प्रो. हटन- जो सत्य के अन्वेषक तथा प्रेमी हैं, ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया और प्राचीन भारत द्वारा गणितीय ज्ञान की प्रगति में दिए गए अप्रतिम योगदान की निष्कपट तथा मुक्त कंठ से भूरि-भूरि प्रशंसा की है।"

इनमें से कुछ विद्वानों के उदाहरण इस विषय में स्वत: ही विपुल प्रमाण प्रस्तुत करेंगे।

प्रो. जी.पी. हाल्स्टेंड अपनी पुस्तक "गणित की नींव तथा प्रक्रियाएं" के पृष्ठ २० पर कहते हैं, "शून्य के संकेत के आविष्कार की महत्ता कभी बखानी नहीं जा सकती है।" "कुछ नहीं" को न केवल एक नाम तथा सत्ता देना वरन् एक शक्ति देना हिन्दू जाति का लक्षण है, जिनकी यह उपज है। यह निर्वाण को डायनमो की शक्ति देने के समान है। अन्य कोई भी एक गणितीय आविष्कार बुद्धिमत्ता तथा शक्ति के सामान्य विकास के लिए इससे अधिक प्रभावशाली नहीं हुआ।

इसी संदर्भ में बी.बी.दत्त अपने प्रबंध " संख्याओ  को व्यक्त करने की आधुनिक विधि (इंडियन हिस्टोरिकल क्वार्टरली, अंक ३, पृष्ठ ५३०-४५०) में कहते हैं " हिन्दुओ  ने दाशमलविक पद्धति बहुत पहले अपना ली थी। किसी भी अन्य देश की गणितीय अंकों की भाषा प्राचीन भारत के समान वैज्ञानिक तथा पूर्णता को नहीं प्राप्त कर सकी थी। उन्हें किसी भी संख्या को केवल दस बिंबों की सहायता से सरलता से तथा सुन्दरतापूर्वक व्यक्त करने में सफलता मिली। हिन्दू संख्या अंकन पद्धति की इसी सुन्दरता ने विश्व के सभ्य समाज को आकर्षित किया तथा उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया।"

इसी संदर्भ में प्रो. गिन्सबर्ग "न्यू लाइट ऑन अवर न्यूमरल्स" लेख, जो बुलेटिन आफ दि अमेरिकन मैथेमेटिकल सोसायटी में छपा, के पृष्ठ ३६६-३६९ में कहते हैं, "लगभग ७७० ई, सदी में उज्जैन के हिन्दू विद्वान कंक को बगदाद के प्रसिद्ध दरबार में अब्बा सईद खलीफा अल मन्सूर ने आमंत्रित किया। इस तरह हिन्दू अंकन पद्धति अरब पहुंची। कंक ने हिन्दू ज्योतिष विज्ञान तथा गणित अरबी विद्वानों को पढ़ाई। कंक की सहायता से उन्होंने ब्रह्मपुत्र के "ब्रह्म स्फूट सिद्धान्त" का अरबी में अनुवाद किया। फ्रांसीसी विद्वान एम.एफ.नाऊ की ताजी खोज यह प्रमाणित करती है कि सातवीं सदी के मध्य में सीरिया में भारतीय अंक ज्ञात थे तथा उनकी सराहना की जाती थी।"

बी.बी. दत्त अपने लेख में आगे कहते हैं "अरब से मिश्र तथा उत्तरी अरब होते हुए ये अंक धीरे-धीरे पश्चिम में पहुंचे तथा ग्यारहवीं सदी में पूर्ण रूप से यूरोप पहुंच गए। यूरोपियों ने उन्हें अरबी अंक कहा, क्योंकि उन्हें अरब से मिले। किन्तु स्वयं अरबों ने एकमत से उन्हें हिन्दू अंक (अल-अरकान-अलहिन्द) कहा"।


Rajesh Agrawal