28 November 2012

कर्म रहस्य:-


पुरुष और प्रकृति -ये दो हैं ।

जिसमे से पुरुष परिवर्तनशील नहीं होता और प्रकृति परिवर्तनशील होती है।जब पुरुष प्रकृति के साथ संबंध जोड़ता है तब प्रकृति की 'क्रिया' पुरुष का 'कर्म' बन जाती है।प्रकृतिक क्रियायों से पुरुष की ममता रहती है,इससे जो भी परिवर्तनशील क्रिया रहती है वो 'कर्म' कहलाती है।

जब प्राकृतिक क्रियायों से पुरुष की ममता टूट जाती है तो वही 'कर्म' पुरुष के लिए 'अकर्म' हो जाता है।

कर्म तीन तरह के होते हैं -क्रियमाण,संचित,और प्रारब्ध।वर्तमान मे किए गए कर्म क्रियमाण ,वर्तमान से पहले के किए गए कर्म 'संचित' और संचित मे से जो कर्म फल देने के लिए उन्मुख होते हैं वो 'प्रारब्ध' कर्म कहलाते हैं।
क्रियमाण कर्म दो तरह के होते है-शुभ और अशुभ।शास्त्रानुसार किए गए कर्म शुभ और काम,क्रोध,लोभ,आसक्ति आदि को लेकर जो कर्म किए जाते है वो अशुभ कर्म कहलाते हैं।शुभ और अशुभ कर्मो के दो परिणाम-फल और संस्कार है।फल और संस्कार के दो भेद है शुद्ध और अशुद्ध। क्रियमाण कर्म का महत्व अधिक होता है ,शास्त्रों के नीति और नियम के अनुशार किए गए कर्म से शुद्ध फल और शुद्ध संस्कार की प्राप्ति होती है। 

!!! तिल का आयुर्वेद में महत्त्व !!!



तिलस्नायीतिलोद्व‌र्त्तीतिलहोमीतिलोदकी।
तिलभुक्तिलदाताचषट्तिला:पापनाशना:॥


अर्थात् तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल के तेल द्वारा शरीर में मालिश, तिल से ही यज्ञ में आहुति, तिल मिश्रित जल का पान, तिल का भोजन इनके प्रयोग से मकर संक्रांति का पुण्य फल प्राप्त होता है और पाप नष्ट हो जाते हैं।

- इन सर्दियों में काले तिल लाये और साफ कर एक बोतल में भर कर रख लें । दिन में २-३ बार सौंफ की तरह फांक लें ; क्योंकि ये बहुत लाभकारी है ।

- आयुर्वेद में तिल को तीव्र असरकारक औषधि के रूप में जाना जाता है।

- काले और सफेद तिल के अतिररिकत लाल तिल भी होता है। सभी के अलग-अलग गुणधर्म हैं।

- यदि पौष्टिकता की बात करें तो काले तिल शेष दोनों से अधिक लाभकारी हैं। सफेद तिल की पौष्टिकता काले तिल से कम होती है जबकि लाल तिल निम्नश्रेणी का तिल माना जाता है।

- तिल में चार रस होते हैं। इसमें गर्म, कसैला, मीठा और चरपरा स्वाद भी पाया जाता है।

- तिल हजम करने के लिहाज से भारी होता है। खाने में स्वादिष्ट और कफनाशक माना जाता है। यह बालों के लिए लाभप्रद माना गया है।

- दाँतों की समस्या दूर करने के साथ ही यह श्वास संबंधी रोगों में भी लाभदायक है।

- स्तनपान कराने वाली माताओं में दूध की वृद्धि करता है।

- पेट की जलन कम करता है ।

- बुद्धि को बढ़ाता है।

- बार-बार पेशाब करने की समस्या पर नियंत्रण पाने के लिए तिल का कोई सानी नहीं है।

- यह स्वभाव से गर्म होता है इसलिए इसे सर्दियों में मिठाई के रूप में खाया जाता है। गजक, रेवड़ियाँ और लड्डू शीत ऋतु में ऊष्मा प्रदान करते हैं।

- तिल में विटामिन ए और सी छोड़कर वे सभी आवश्यक पौष्टिक पदार्थ होते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं। तिल विटामिन बी और आवश्यक फैटी एसिड्स से भरपूर है।

- इसमें मीथोनाइन और ट्रायप्टोफन नामक दो बहुत महत्त्वपूर्ण एमिनो एसिड्स होते हैं जो चना, मूँगफली, राजमा, चौला और सोयाबीन जैसे अधिकांश शाकाहारी खाद्य पदार्थों में नहीं होते। ट्रायोप्टोफन को शांति प्रदान करने वाला तत्व भी कहा जाता है जो गहरी नींद लाने में सक्षम है। यही त्वचा और बालों को भी स्वस्थ रखता है। मीथोनाइन लीवर को दुरुस्त रखता है और कॉलेस्ट्रोल को भी नियंत्रित रखता है।

- तिलबीज स्वास्थ्यवर्द्धक वसा का बड़ा स्त्रोत है जो चयापचय को बढ़ाता है।

- यह कब्ज भी नहीं होने देता।

- तिलबीजों में उपस्थित पौष्टिक तत्व,जैसे-कैल्शियम और आयरन त्वचा को कांतिमय बनाए रखते हैं।

- तिल में न्यूनतम सैचुरेटेड फैट होते हैं इसलिए इससे बने खाद्य पदार्थ उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकता है।



- सौ ग्राम सफेद तिल से १००० मिलीग्राम कैल्शियम प्राप्त होता हैं। बादाम की अपेक्षा तिल में छः गुना से भी अधिक कैल्शियम है।

- काले और लाल तिल में लौह तत्वों की भरपूर मात्रा होती है जो रक्तअल्पता के इलाज़ में कारगर साबित होती है।

- तिल में उपस्थित लेसिथिन नामक रसायन कोलेस्ट्रोल के बहाव को रक्त नलिकाओं में बनाए रखने में मददगार होता है।

- तिल के तेल में प्राकृतिक रूप में उपस्थित सिस्मोल एक ऐसा एंटी-ऑक्सीडेंट है जो इसे ऊँचे तापमान पर भी बहुत जल्दी खराब नहीं होने देता। आयुर्वेद चरक संहित में इसे पकाने के लिए सबसे अच्छा तेल माना गया है।

- मकर संक्रांति के पर्व पर तिल का विशेष महत्त्व माना जाता है। इस दिन इसे दान देने की परम्परा भी प्रचलित है। इस दिन तिल के उबटन से स्नान करके ब्राह्मणों एवं गरीबों को तिल एवं तिल के लड्डू दान किये जाते हैं। यह मौसम शीत ऋतु का होता है, जिसमें तिल और गुड़ से बने लड्डू शरीर को गर्मी प्रदान करते हैं। प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि संक्रांति के दिन तिल का तेल लगाकर स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल की आहुति देना, पितरों को तिल युक्त जल का अर्पण करना, तिल का दान करना एवं तिल को स्वयं खाना, इन छह उपायों से मनुष्य वर्ष भर स्वस्थ, प्रसन्न एवं पाप रहित रहता है।

- तैल शब्द की व्युत्पत्ति तिल शब्द से ही हुई है। जो तिल से निकलता वह है तैल। तिल का यह तेल अनेक प्रकार के सलादों में प्रयोग किया जाता है। तिल गुड़ का पराठा, तिल गुड़ और बाजरे से मिलाए गए ठेकुए उत्तर भारत में विशेष रूप से प्रचलित हैं। करी को गाढ़ा करने के लिये छिकक्ल रहित तिल को पीसकर मसाले में भूनने की भी प्रथा अनेक देशों में है।

- अलीबाबा चालीस चोर की कहानी में सिमसिम शब्द का प्रयोग तिल के लिये ही किया गया है। यही सिमसिम यूरोप तक पहुँचते पहुँचते बिगड़कर अंग्रेजी सिसेम हो गया।

- यज्ञादि हविष्य में तिल प्रधानता से प्रयुक्त किया जाता है जिसे सभी देवता प्रसन्‍नता केसाथ ग्रहण करते हैं। मनुस्मृति में कहा गया है- त्रीणि श्राद्धे पवित्राणि दौहित्रः कुतपस्तिलाः। त्रीणि चात्र प्रशंसन्ति शौचमक्रोधमत्वराम्।। अर्थात श्राद्ध कर्म में काले तिल तथा लक्ष्मी आराधना में सफेद तिल की हविष्य प्रयोग करने से शीघ्र लाभ होता है। घृत में तिल मिलाकर श्री यज्ञ करने से माता लक्ष्मी की अति शीघ्र कृपा होती है।

- जन्म दिवस केअवसर पर बालकों को गाय के घृत में आधा चम्मच काले तिल का सेवन कराना भावी क‌ष्टों से निवारण का अचूक साधन है।

- व्यक्ति के हाथ से जितना तिल का दान किया जाता है उसका भविष्य उतना ही अच्छा बनता चला जाता है। प्रत्येक वैदिक कर्म में तिल की आवश्यकता होती है तथा इसके बिना कोई यज्ञ पूर्ण नहीं होता।

- तिल भगवान विष्णु को अति प्रिय है। इस लिये उनकी पूजा में तिल का प्रयोग किया जाता है।

- यह व्रत-पूजा में प्रयोग तथा खाने योग्य पदार्थ है।

तिल के घरेलू सुझाव-

* कब्ज दूर करने के लिये तिल को बारीक पीस लें एवं प्रतिदिन पचास ग्राम तिल के चूर्ण को गुड़, शक्कर या मिश्री के साथ मिलाकर फाँक लें।

* पाचन शक्ति बढ़ाने के लिये समान मात्रा में बादाम, मुनक्का, पीपल, नारियल की गिरी और मावा अच्छी तरह से मिला लें, फिर इस मिश्रण के बराबर तिल कूट पीसकर इसमें में मिलाएँ, स्वादानुसार मिश्री मिलाएँ और सुबह-सुबह खाली पेट सेवन करें। इससे शरीर के बल, बुद्धि और स्फूर्ति में भी वृद्धि होती है।

* प्रतिदिन रात्रि में तिल को खूब चबाकर खाने से दाँत मजबूत होत हैं।

* यदि कोई जख्म हो गया हो तो तिल को पानी में पीसकर जख्म पर बांध दें, इससे जख्म शीघ्रता से भर जाता है।

* तिल के लड्डू उन बच्चों को सुबह और शाम को जरूर खिलाना चाहिए जो रात में बिस्तर गीला कर देते हैं। तिल के नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और रोग प्रतिरोधकशक्ति में वृद्धि होती है।

* पायरिया और दाँत हिलने के कष्ट में तिल के तेल को मुँह में १०-१५ मिनट तक रखें, फिर इसी से गरारे करें। इससे दाँतों के दर्द में तत्काल राहत मिलती है। गर्म तिल के तेल में हींग मिलाकर भी यह प्रयोग किया जा सकता है।

* पानी में भिगोए हुए तिल को कढ़ाई में हल्का सा भून लें। इसे पानी या दूध के साथ मिक्सी में पीस लें। सादा या गुड़ मिलाकर पीने से रक्त की कमी दूर होती है।

* जोड़ों के दर्द के लिये एक चाय के चम्मच भर तिल बीजों को रातभर पानी के गिलास में भिगो दें। सुबह इसे पी लें। या हर सुबह एक चम्मच तिल बीजों को आधा चम्मच सूखे अदरक के चूर्ण के साथ मिलाकर गर्म दूध के साथ पी लें। इससे जोड़ों का दर्द जाता रहेगा।

* तिल गुड़ के लड्डू खाने से मासिकधर्म से संबंधित कष्टों तथा दर्द में आराम मिलता है।

* भाप से पकाए तिल बीजों का पेस्ट दूध के साथ मिलाकर पुल्टिस की तरह लगाने से गठिया में आराम मिलता है।


!!! अनन्नास के औषधीय प्रयोग !!!











21 कामला (पीलियां):-*हल्दी चूर्ण 2 ग्राम और मिश्री तीन ग्राम मिलाकर सेवन करने से कामला रोग में लाभ होता है।
*अनन्नास का रस पीलिया रोग को दूर करता है।"

22 मासिक-धर्म की रुकावट होने पर:-*अनन्नास के कच्चे फलों के 10 ग्राम रस में, पीपल की छाल का चूर्ण और गुड़ 1-1 ग्राम मिलाकर सेवन करने से मासिक-धर्म की रुकावट दूर होती है।
*अनन्नास के पत्तों का काढ़ा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग पीने से भी मासिक-धर्म की रुकावट दूर होती है।"

23 कृमि रोग:-पके अनन्नास के रस मे छुहारा खुरासानी अजवायन और बायविडंग का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर, थोडे़ से शहद के साथ 5-10 ग्राम की मात्रा में चटाने से बालकों के कृमि रोग नष्ट होते हैं।
अनन्नास के पत्तों के रस में थोड़ा शहद मिलाकर रोज 2 ग्राम से 10 ग्राम तक सेवन करने कृमि रोग नष्ट होता है।"

24 बुखार:-अनन्नास फलों का रस देने से अथवा 20 ग्राम रस में शहद मिलाकर पिलाने से, पसीना आता है, मूत्र खुलकर आता है और बुखार का वेग कम हो जाता है।

25 पित्त के लिए:-*इसके पके फलों के टुकड़े करके एक दिन चूने के पानी में रखकर, सुखाकर, शक्कर की चासनी में डालकर मुरब्बा बना लें। यह पित्त का शमन और चित्त को प्रसन्न करता है।

*अनन्नास का शर्बत या रस 10 ग्राम और चाशनी 20 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से पित्त शांत और हृदय शक्तिशाली होता है।"

26 दांतों का दर्द:-पके हुए अनन्नास का रस निकालकर उसके रस को रूई में भिगोकर मसूढ़ों पर लगाने से दांतों का दर्द नष्ट होता है।

27 कब्ज:-अनन्नास के कच्चे फल का रस 40 ग्राम से लेकर 80 ग्राम तक की मात्रा में सेवन करने से मल आसानी से निकल जाता है।

28 कैन्सर (कर्कट) रोग:-अनन्नास का रस 1 गिलास रोजाना सुबह-शाम पीने से शरीर के अंदर के एक-एक अस्वस्थ तन्तु स्वस्थ हो जाते हैं तथा शरीर हर तरह से रोगों से मुक्त हो जाता है।

29 गर्भपात (गर्भ का न ठहरना):-कच्चे अनन्नास का रस बार-बार अधिक मात्रा में पीने से गर्भपात हो जाता है।

30 अग्निमान्द्यता (अपच):-* अनन्नास के छोटे-छोटे टुकड़ों में सेंधानमक और कालीमिर्च को पीसकर चूर्ण के रूप में डालकर खाने से अपच, अजीर्ण और मंदाग्नि में लाभ होता है।
*अनन्नास के ताजे फल को काटकर सेंधानमक और कालीमिर्च के साथ देने लाभ होता है।"
31 पेट के कीड़ों के लिए:-*अनन्नास के 20 ग्राम रस में अजवायन 2 ग्राम, बायविंडग का चूर्ण 2 ग्राम को मिलाकर पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
*अनन्नास के फल का 1 गिलास रस रोजाना पीने से लाभ होता हैं।
*अनन्नास को खाली पेट खाने से भी पेट के कीड़े मर जाते हैं।
*अनन्नास के फल का रस सुबह 7 दिन तक खुराक के रूप में पिलाने से पेट के सारे कीड़े मर जाते हैं। ध्यान रहे कि इसका रस गर्भवती महिलाओं को पीने नहीं देना चाहिए।"

32 पेट में दर्द:-अनन्नास के 10 ग्राम रस में अदरक का रस लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग, भुनी हींग लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग और सेंधानमक लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग को मिलाकर पीने से पेट में होने वाले दर्द में आराम मिलता है।

33 मूत्ररोग:-अनन्नास का रस व शर्बत पीने से पेशाब में जलन की विकृति खत्म होती है

34 एलर्जी:-अनन्नास का रस एलर्जी वाले स्थान पर लगाने और पीने से लाभ होता है।

35 हृदय के रोग:-अनन्नास में कई ऐसे रस पाए जाते हैं जो पाचक रस (एंजाइम) के रूप में कार्य करते हैं। इसके नियमित सेवन से हृदय सम्बन्धी सामान्य रोगों से मुक्ति मिलती है। इसका अम्लीय गुण शरीर में बनने वाले अनावश्यक पदार्थों को बाहर निकाल देता है और शारीरिक शक्ति में वृद्धि करता है। एक कप अनन्नास का रस रोजाना पीने से दिल की बीमारी से निजात मिलती है|"

36 तुंडिका शोथ (टांसिल):-अनन्नास का रस पीने से टांसिलों की सूजन का दर्द समाप्त होता है।

37 घमौरियों के होने पर:-अनन्नास का गूदा घमौरियों पर लगाने से लाभ होता है।

38 कंठ रोहिणी के लिए:-अनन्नास का रस पीने से कंठ रोहिणी (डिप्थीरिया) की झिल्ली कट जाती है और गला साफ हो जाता है। यह इस रोग की प्रमुख औषधि है। ताजे अनन्नास में `पेप्सिन´ (पित्त का प्रधान अंश) होता है। इससे गले की खराश में बहुत आराम आता है।

39 टांसिल का बढ़ना:-टांसिल के बढ़ जाने पर अनन्नास का जूस गर्म करके पीना चाहिए।

40 गले के रोग में:-*अनन्नास का रस पीने से गले की सूजन और तालुमूल प्रदाह (तालु की जलन) समाप्त हो जाती है।
*गले के अलग-अलग रोगों में अनन्नास का रस पीने से बहुत लाभ मिलता है|"

कुण्डलिनी शक्ति क्या है ?



कुण्ड का अर्थ है कोई पदार्थ किसी पात्र में संग्रहित है जैसे ,जल का कुण्ड अर्थात जल एक गढ़े में संग्रहित हो कर जल कुण्ड बन गया | ठीक उसी प्रकार हमारी शक्ति एक कुण्ड में संग्रहित है वह शक्ति जो परमात्मा ने हमें उपहार स्वरुप दिया है | 

वह शक्ति जिसके द्वारा हम जीवित हैं |वह शक्ति जो हमारे रक्त शिराओं में रक्त को प्रवाहित करता है | वह शक्ति जो हमारे विभीन भावनाओं को मह्शूश कराता है आखिर हम भावनाएं कैसे मह्शूश करते हैं | 

हम प्रेम ,घृणा , क्रोध ,आनंद आदि कैसे मह्शूश करते हैं | कौन भीतर बैठ कर यह सब मह्शूश करता है |और किसके द्वारा मह्शूश करता है | ये हमारे रहश्य में उतरने के पहले के प्रश्न हैं जो सार्थक हैं |अधिकांश व्यक्ति इन प्रश्नों पर ध्यान नहीं देता क्यों ? क्योंकि वह वासनाओं से परेशान वह नित्य प्रति अपनी क्षुधा पूर्ति में लगा रहता है ,काम में डूबा रहता है और जब इससे थोडा उपर उठता है तो हम सुखी रहेंगे भविष्य में इसलिए धन कमा सकें ऐसा सोचता है मोटर बँगला के चक्कर में पड जाता है | 


ये बुरा नहीं है किन्तु इसमें हीं डूब जाना ठीक नहीं | ईश्वर ने अदभुत शक्ति दी हमारे अंदर वह है संतानोत्पति की क्षमता किन्तु हम इसमें हीं डूब जातें हैं | डूब जातें है का मतलब संतान उत्पन्न किया फिर उसके लालन पालन में लग गये |यह भी अनिवार्य है किन्तु इसी में फंसे रह जाना उचित नहीं | हम कब अपने लिए समय देतें हैं | 

बस जरा सा इससे बाहर निकले की हमारी यात्रा आरम्भ हुई परमात्मा के तरफ बहुत आसान है बस जरा मनोबल को मजबूत करने की आवश्यकता है और बाहर निकलने की चेष्टा चाहिए | भौतिक शास्त्र में एक सिद्धांत है ऊर्जा का क्षय नहीं होता सिर्फ रूपांतरण होता है और यह बिलकुल सत्य है | कुण्डलिनी शक्ति जगाने के कर्म में बस इसी सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है |

वह शक्ति जो हमारे कण कण में बह रही है उसे सुनियोजित करके एक विशेष विधि द्वारा एक विशेष स्थान तक पहुँचाया जाए | कौन सा स्थान है वह जहाँ उस शक्ति को पहुंचाना है ,वह है सिर में स्थित "सहस्त्रार चक्र" बस विशेष उर्जा को वहाँ पहुंचा देना है फिर आनंद की शुरुआत हो गयी | 


तो आइये शुरुआत करते हैं | आपके प्रश्न आमंत्रित हैं | आप सिर्फ और सिर्फ कुण्डलिनी शक्ति पर प्रश्न करें आपका स्वागत है |



क्या आप जानते है ???


क्या आप जानते है ऐलुमिनियम के पात्रो में कुछ पकाकर खाना सबसे खतरनाक है और आधुनिक विज्ञान इसको मानता हैं।यहाँ  तक कि आयुर्वेद में भी ऐलुमिनियम के पात्र वर्जित हैं।

जिस पात्र में खाना पकाया जाता है, उसके तत्व खाने के साथ शरीर मे चले जाते है और क्योकि ऐलुमिनियम भारी धातू हैं इसलिये शरीर का ऐसक्रिटा सिस्टम इसको बाहर नहीं निकल पाता। ये अंदर ही इकट्ठा होता रहता हैं और बाद में टीबी और किडनी फ़ेल होने का कारण बनता हैं। आंकड़ों से पता चलता है जब से अंग्रेजों ने एल्युमिनियम के बर्तन भारत में भेजे हैं पेट के रोगों में बढ़ोत्तरी हुई है।


अंग्रेजों ने भगत सिंह, उधम सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे जितने भी क्रांतिकारियों को अंग्रेजो ने जेल में डाला। उन सबको जानबुझ कर ऐलुमिनियम के पात्रो में खाना दिया जाता था, ताकि वे जल्दी मर जायें।

बड़े दुख की बात है आजादी के 64 साल बाद भी बाक़ी क़ानूनों की तरह ये कानून भी नहीं बदला नहीं गया हैं। आज भी देश की जेलो मे कैदियो को ऐलुमिनियम के पात्रो मे खाना दिया जाता है।

लेकिन आज हमने अपनी इच्छा से अपने शौक से इस प्रैशर कुकर को घर लाकर अपने मरने का इंतजाम खुद कर लिया हैं।


http://www.youtube.com/watch?v=scXtgAQa9IA