10 December 2012

!!! ‎'गुरु बिनु ज्ञान कहाँ जग माही' !!!


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'अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींचकर शक्ति में निर्मित करते हैं।' महर्षि अरविंद का उक्त कथन शिक्षक की गरिमा
के सर्वथा अनुकूल ही है। शिक्षक राष्ट्र निर्माता है और राष्ट्र के निर्माण की प्रत्येक प्रक्रिया में शिक्षकीय महत्व को नकारा नहीं जा सकता ।

र्वरायुक्त पारिवारिक धरातल पर शिक्षक संस्कारित ज्ञान की फसल बोता है और स्वच्छ एवं स्वस्थ क्षेत्रीय वातावरणीय जलवायु में श्रेष्ठता रूपी नागरिक की उन्नत उपज देता है। इस दृष्टि में शिक्षक संस्कारों का पोषक है। सही अर्थों में राष्ट्र की संस्कृति का कुशल शिल्पी है, जो संगठित, धैर्यवान, संस्कारवान, विवेकवान युवा शक्ति का निर्माण करता है।

शिक्षक संस्कृति से तादात्म्य स्थापित कर शिक्षार्थी में ज्ञान के गरिमामय पक्ष का बीजारोपण करता है। फलस्वरूप शिक्षार्थी में शिक्षा के प्रति गहन अभिरुचि जाग्रत होती है। शिक्षक वह सेतु है, जो शिक्षार्थी को शिक्षा के उज्ज्वल पक्षों से जोड़ता है। संस्कारित शिक्षार्थी शिक्षा के उपवन को अपने ज्ञान-पुष्प की सुरभि से महकाते हैं तथा परिवार, समाज एवं राष्ट्र को गौरवान्वित करते हैं।

उत्तम शिक्षा, योग्य शिक्षक और अनुशासित शिक्षार्थी ही संस्कारित, सुसभ्य और स्वच्छ-स्वस्थ समाज का निर्माण करने का सामर्थ्य रखते हैं। संस्कृति का उद्गम ही श्रेष्ठ संस्कारोंके गर्भ से होता है, जिससे सामाजिक गतिविधियों को सांस्कृतिक शक्ति का संबल प्राप्त होता है।

राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका का कोई सानी नहीं है। विद्यार्थियों में स्नेह, सद्भाव, भ्रातृत्व भाव, नैतिकता, उदारता, अनुशासन जैसे चारित्रिक सद्गुणों की समष्टि गुरु के माध्यम से ही संभव होती है। समाज-जीवन में स्नेह एवं सद्भाव तथा सामंजस्य की सद्प्रेरणा गुरु से ही प्राप्त होती है क्योंकि शिक्षा का मूल उद्देश्य ही चरित्र निर्माण करना है। शिक्षक शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास का हरसंभव प्रयास करता है। शिक्षक को एक ऐसा दीपक माना गया है जो सेवापर्यंत दीप्तमान रहते हुए विद्यार्थियों के प्रगतिपथ को अपने ज्ञान का आलोक प्रदान करता रहता है।



!!! सरस्वती नदी की कहानी !!!


विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी प्राचीन भारत की जीवनधारा थी। वैदिक काल में वह सदानीरा महानदी थी, जो हिमालय से अवतरित होकर सागर में समाहित होती थी। प्राचीन ऋषि-महर्षियों को वेदों जैसे अनमोल ग्रंथों की रचना करने के लिए प्रेरित करने वाली सरस्वती, महाभारत की भी साक्षी रही थी। उत्तर महाभारत काल में उसके जल स्तर में कमी होने लगी। पौराणिक काल में वह पवित्र सरोवरों का रूप धारण कर लघुरूपधारिणी वंदनीय नदी बनकर रह गयी। कालांतर में सरस्वती जलशून्य होकर विस्मृत हो गयी।

कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि सरस्वती एक काल्पनिक नदी है, इस नाम की न कोई नदी है और न थी। यह सत्य है कि सरस्वती नदी अब अपने मूल रूप में नहीं है। लेकिन प्रमाणों के अभाव में सरस्वती नदी के अस्तित्व को नकार देना मूर्खता है। 

प्रमाणों को खोज पाने में मिली असफलता से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि सरस्वती काल्पनिक नदी है। दुर्भाग्यवश हम इन बुद्धिजीवियों की बातों को सत्य मानकर सत्य की खोज करना ही छोड़ देते हैं। सन 2002 तक सरस्वती नदी की खोज के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए। पिछले कुछ वर्षों में हुए अनुसंधानों से पता चला है कि सरस्वती नदी हिमालय के रुपिन-सुपिन ग्लेशियरों से निकल कर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा गुजरात से होती हुई अरब सागर तक बहती थी। आज से लगभग चार हज़ार वर्ष पहले यह जलशून्य हो गई। सरस्वती की खोज एक कठिन कार्य है क्योंकि लम्बा समय होने के कारण अधिकतर प्रमाण नष्ट हो गए हैं। लेकिन इससे हताश होकर हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर की खोज करना नहीं छोड सकते। अगर हम इन बुद्धिजीवियों की बात मानकर सत्य की खोज करना छोड़ देते तो महाभारत में वर्णित द्वारका नगरी को भी कभी न खोज पाते। काश विलुप्त सरस्वती की जीवनगाथा में अंतर्निहित भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के उदय की गाथा को ये बुद्धिजीवी समझ पाते।

भारत के अधिकांश प्राचीन ग्रंथों में सरस्वती नदी का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, मनुस्मृति और महाभारत में सरस्वती का वर्णन किया गया है।

ऋग्वेद में सरस्वती की सर्वाधिक जानकारी है। सरस्वती की स्तुति में 75 मन्त्र हैं, जो ऋग्वेद के नौ मण्डलों में समाहित हैं। इन मन्त्रों की रचना विभिन्न ऋषियों ने काल एवं परिस्थितियों के अनुरूप की। ऋग्वेद ७:९५:२ में कहा गया है, " एकमेव चैतन्यमयी पवित्र सरस्वती नदी पर्वतों से अवतरित होकर सागर में समाहित होती है। वह इस भूलोक में राजा नहुष की प्रजा को पौष्टिक तत्त्व, दूध एवं घी प्रदान करती है"। ऋग्वेद २:४१:१६ में स्तुति की गयी है, " हे सरस्वती! आप माताओं में श्रेष्ठ माता, नदियों में उत्तम महानदी और देवियों में अग्रगण्य देवी हो। हे माता ! हम सब अज्ञानी हैं। आप हमें ज्ञान प्रदान करें।" ऋग्वेद के मन्त्र २:४१:१७, १८ में वर्णन मिलता है कि सरस्वती माता से सुखमय जीवन का आश्रय प्राप्त होता है। साथ ही वे अन्न तथा बल प्रदान कर सत्य के मार्ग पर चलने वाली हैं। ऋग्वेद मन्त्र ६:६१:१०,१२; ७:३६:६ में सरस्वती को सात बहनों वाली और सिन्धु नदी की माता कहा गया है। इन मंत्रो से प्रकट होता है कि ऋग्वेदिक काल में सरस्वती सदानीरा महानदी थी, जो हिमालय की हिमाच्छादित शिखाओं से अवतरित होकर आज के पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, सिंध प्रदेश व गुजरात क्षेत्र को सिंचित कर शस्य-श्यामला बनती थी। इस सन्दर्भ में ऋग्वेद मन्त्र १०:७५:५ एवं ३:२३:४ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शतुद्री (सतलज), परुशणी (रावी), असिक्नी (चेनाब), वितस्ता, आर्जीकीया (व्यास) एवं सिन्धु, पंजाब की ये सभी नदियाँ सरस्वती की सहायक नदियाँ थीं।

मनुस्मृति ३:१७ के अनुसार "देवनदी सरस्वती व दृषद्वती के मध्य देवताओं द्वारा निर्मित जो भूप्रदेश है उसे ब्रह्मावर्त कहते हैं"। स्पष्टः ब्रह्मावर्त का निर्माण सरस्वती और दृषद्वती द्वारा संचित मृदा से हुआ होगा। यही स्थल महाभारत काल में कुरुक्षेत्र कहलाया।

ब्राह्मण ग्रंथों में सरस्वती नदी के शिथिल होकर सर्पाकार मार्ग से पश्चिम दिशा में बहने का वर्णन मिलता है। ताण्डय ब्राह्मण २५:१०:११,१२ मन्त्र सरस्वती नदी के वृद्धावस्था में प्रवेश होने का संकेत करते हैं। इन ग्रंथों में पहली बार सरस्वती के उद्गम स्थल प्लक्षप्रसवण एवं विनशन, राजस्थान के मरुस्थल का वह स्थान जहाँ सरस्वती विलुप्त हुई, का उल्लेख मिलता है। इन मन्त्रों से ज्ञात होता है कि सरस्वती का उदय हिमालय से होता था। ब्राह्मण काल में सरस्वती राजस्थान के मरुस्थल में विनशन में आकर सूख चुकी थी।

इसी प्रकार महाभारत और पुराणों में सरस्वती का वर्णन किया गया है।

पिछले कुछ वर्षों में उपग्रह से लिए गए चित्रों के माध्यम से वैज्ञानिकों ने एक ऐसी विशाल नदी के प्रवाह-मार्ग का पता लगा लिया है जो किसी समय पर भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में बहती थी। उपग्रह से लिए गए चित्र दर्शाते हैं कि कुछ स्थानों पर यह नदी आठ किलोमीटर चौड़ी थी और कि यह चार हज़ार वर्ष पूर्व सूख गई थी। किसी प्रमुख नदी के किनारे पर रहने वाली एक विशाल प्रागैतिहासिक सभ्यता की खोज ने इस प्रबल होते आधुनिक विश्वास को और पुख़्ता कर दिया है कि सरस्वती नदी अन्ततः मिल गई है। इस नदी के प्रवाह-मार्ग पर एक हज़ार से भी अधिक पुरातात्त्विक महत्व के स्थल मिले हैं और वे ईसा पूर्व तीन हज़ार वर्ष पुराने हैं। इनमें से एक स्थल उत्तरी राजस्थान में प्रागैतिहासिक शहर कालीबंगन है। इस स्थल से कांस्य-युग के उन लोगों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी का ख़ज़ाना मिला है जो वास्तव में सरस्वती नदी के किनारों पर रहते थे। पुरातत्त्वविदों ने पाया है कि इस इलाक़े में पुरोहित, किसान, व्यापारी तथा कुशल कारीगर रहा करते थे। इस क्षेत्र में पुरातत्त्वविदों को बेहतरीन क़िस्म की मोहरें भी मिली हैं जिन पर लिखाई के प्रमाण से यह संकेत मिलता है कि ये लोग साक्षर थे। लेकिन दुर्भाग्यवश इन मोहरों की गूढ़-लिपि का अर्थ नहीं निकाला जा सका है। आज सिंधु घाटी की सभ्यता प्राचीनतम सभ्यता जानी जाती है। वास्तव में यह सभ्यता एक बहुत बड़ी सभ्यता का अंश है, जिसके अवशिष्ट चिन्ह उत्तर में हिमालय की तलहटी (मांडा) से लेकर नर्मदा और ताप्ती नदियों तक और उत्तर प्रदेश में कौशाम्बी से गांधार (बलूचिस्तान) तक मिले हैं। अनुमानत: यह पूरे उत्तरी भारत में थी। यदि इसे किसी नदी की सभ्यता ही कहना हो तो यह उत्तरी भारत की नदियों की सभ्यता है। इसे कुछ विद्वान प्राचीन सरस्वती नदी की सभ्यता या फिर सरस्वती-सिन्धु सभ्यता कहते हैं। कालांतर में बदलती जलवायु और राजस्थान की ऊपर उठती भूमि के कारण सरस्वती नदी सूख गयी।


!!!! ठंड में रोजाना मूली खाने से ये 8 प्रॉब्लम्स जड़ से खत्म हो जाएंगी !!!


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मूली बहुत गुणकारी और सरलता से मिलने वाली सब्जी है। ठंड में रोजाना थोड़ी मूली को सलाद के रूप में लेना चाहिए 


क्योंकि इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, गन्धक, आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी होता है। मूली में विटामिन ए भी होता है। इसके अलावा भी ठंड के मौसम में सलाद के रूप में मूली खाने के अनेक फायदे आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ फायदों के बारे में

- मूली के रस में थोड़ा नमक और नीबू का रस मिलाकर नियमित रूप में पीने से मोटापा कम होता है और शरीर सुडौल बन जाता है।


- मूली के पत्ते काटकर नींबू निचोड़ के खाने से पेट साफ होता है व स्फूर्ति रहती है

- सुबह-सुबह मूली के नरम पत्तों पर सेंधा नमक लगाकर खाने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है।

- थकान मिटाने और अच्छी नींद लाने में भी मूली काफी फायदेमंद होती है।

- ब्लडप्रेशर के रोगियों के लिए मूली का सलाद के रूप में नियमित रूप से सेवन अच्छा माना गया है क्योंकि हाई ब्लड प्रेशर को शांत करने में मूली मदद करती है।

- पेट संबंधी रोगों में यदि मूली के रस में अदरक का रस और नीबू मिलाकर नियम से पियें तो भूख बढ़ती है। पेट के कीड़ों को नष्ट करने में भी कच्ची मूली फायदेमंद साबित होती है।

- मूली शरीर से कार्बन डाई ऑक्साइड निकालकर ऑक्सीजन प्रदान करती है। मूली हमारे दाँतों और हड्डियों को मजबूत करती है।

- मूली हमारे दांतों को मजबूत करती है तथा हड्डियों को शक्ति प्रदान करती है। मूली का ताजा रस पीने से मूत्र संबंधी रोगों में राहत मिलती है। पीलिया रोग में भी मूली लाभ पहुंचाती है।

___________________________@भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है|