24 October 2015

!!! कलौंजी लगाएं, सर पर लहलहाते बाल वापस पाएं !!!




महिलाएं ही क्या पुरुष भी आम तौर पर अपने बालों को लेकर काफी चिंतित रहते हैं, आज की आधुनिक शैली और आधुनिक प्रोडक्ट्स ने हमारे शरीर को फायदा पहुंचाने के बजाय नुक्सान ही पहुंचाया है. बहुत कम लोग जानते हैं कि हमारे आसपास ऐसी बहुत सारी चीजें हैं, जिन्हें सही तरीके से खाकर सुन्दर त्वचा, बालों से लेकर अच्छी सेहत का फायदा उठाया जा सकता है.

इन्हीं में शामिल है कलौंजी जिसमें बहुत सारे मिनरल्स और न्यूट्रिएंट्स होते हैं. आयरन, सोडियम, कैल्शियम, पोटैशियम और फाइबर से भरपूर कलौंजी कई प्रकार के रोगों का घर बैठे इलाज है. लगभग 15 एमीनो एसिड वाला कलौंजी शरीर के लिए जरूरी प्रोटीन की कमी भी पूरी करता है.
बालों को लाभ
कलौंजी के लाभ में से सबसे बड़ा लाभ बालों को होता है. अनहेल्दी लाइफस्टाइल, स्ट्रेस जैसी कई समस्याओं से महिला हो या पुरुष, दोनों के ही साथ बालों के गिरने की समस्या आम हो चुकी है. इसके लिए तमाम तरह के ट्रीटमेंट कराने पर भी फायदा नहीं होता. लेकिन घर में मौजूद कलौंजी इस समस्या के निपटारे में बहुत ही कारगर उपाय है. सिर पर 20 मिनट तक नींबू के रस से मसाज करें और फिर अच्छे से धो लें. इसके बाद कलौंजी का तेल बालों में लगाकर उसे अच्छे से सूखने दें. लगातार 15 दिनों तक इसका इस्तेमाल बालों के गिरने की समस्या को दूर करता है.
कलौंजी ऑयल, ऑलिव ऑयल और मेहंदी पाउडर को मिलाकर हल्का गर्म करें. ठंडा होने दें और हफ्ते में एक बार इसका इस्तेमाल करें. इससे गंजेपन की समस्या भी दूर होती है.
कलौंजी की राख को तेल में मिलाकर गंजे अपने सर पर मालिश करें कुछ दिनों में नए बाल पैदा होने लगेंगे. इस प्रयोग में धैर्य महत्वपूर्ण है.
कलौंजी के अन्य लाभ
डायबिटीज से बचाता है, पिंपल की समस्या दूर, मेमोरी पावर बढ़ाता है, सिरदर्द करे दूर, अस्थमा का इलाज, जोड़ों के दर्द में आराम, आंखों की रोशनी, कैंसर से बचाव, ब्लड प्रेशर करे कंट्रोल.
कलौंजी एक बेहद उपयोगी मसाला है. इसका प्रयोग विभिन्न व्यंजनों जैसे दालों, सब्जियों, नान, ब्रेड, केक और आचार आदि में किया जाता है.
कलौंजी की सब्जी भी बनाई जाती है.
कलौंजी में एंटी-आक्सीडेंट भी मौजूद होता है जो कैंसर जैसी बीमारी से बचाता है.
कलौंजी का तेल कफ को नष्ट करने वाला और रक्तवाहिनी नाड़ियों को साफ़ करने वाला होता है. इसके अलावा यह खून में मौजूद दूषित व
अनावश्यक द्रव्य को भी दूर रखता है. कलौंजी का तेल सुबह ख़ाली पेट और रात को सोते समय लेने से बहुत से रोग समाप्त होते हैं. गर्भावस्था के समय स्त्री को कलौंजी के तेल का उपयोग नहीं कराना चाहिए इससे गर्भपात होने की सम्भावना रहती है.
कलौंजी का तेल बनाने के लिए 50 ग्राम कलौंजी पीसकर ढाई किलो पानी में उबालें. उबलते-उबलते जब यह केवल एक किलो पानी रह जाए तो इसे
ठंडा होने दें. कलौंजी को पानी में गर्म करने पर इसका तेल निकलकर पानी के ऊपर तैरने लगता है. इस तेल पर हाथ फेरकर तब तक कटोरी में पोछें जब तक पानी के ऊपर तैरता हुआ तेल खत्म न हो जाए. फिर इस तेल को छानकर शीशी में भर लें और इसका प्रयोग औषधि के रूप में करें.
आयुर्वेद कहता है कि इसके बीजों की ताकत सात साल तक नष्ट नहीं होती. दमा, खांसी, एलर्जीः एक कप गर्म पानी में एक चम्मच शहद तथा आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह निराहार (भोजन से पूर्व) पी लेना चाहिए, फिर रात में भोजन के बाद उसी प्रकार आधा चम्मच कलौंजी और एक चम्मच शहद गर्म पानी में मिलाकर इस मिश्रण का सेवन कर लेना चाहिए. इस प्रकार 40 दिनों तक प्रतिदिन दो बार पिया जाए. सर्दी के ठंडे पदार्थ वर्जित हैं.
मधुमेहः एक कप काली चाय में आधा चाय का चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह नाश्ते से पहले पी लेना चाहिए. फिर रात को भोजन के पश्चात सोने से पहले एक कप चाय में एक चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर पी लेना चाहिए. चिकनाई वाले पदार्थों के उपयोग से बचें. इस इलाज के साथ अंगे्रजी दवा का उपयोग होता है तो उसे जारी रखें और बीस दिनों के पश्चात शर्करा की जांच करा लें. यदि शक्कर नार्मल हो गई हो तो अंग्रेजी दवा बंद कर दें, किंतु कलौंजी का सेवन करते रहें.
हृदय रोगः एक कप दूध में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर प्रतिदिन दो बार प्रयोग करें. इस तरह दस दिनों तक उपचार चलता रहे. चिकनाई वाले पदार्थों का सेवन न करें.
नेत्र रोगों की चिकित्साः नेत्रों की लाली, मोतियाबिंद, आंखों से पानी का जाना, आंखों की तकलीफ और आंखों की नसों का कमजोर होना आदि में एक कप गाजर के जूस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल दो चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार सुबह (निराहार) और रात में सोते समय लेना चाहिए. इस प्रकार 40 दिनों तक इलाज जारी रखें. नेत्रों को धूप की गर्मी से बचाएं.
अपच या पेट दर्द में आप कलौंजी का काढा बनाइये फिर उसमे काला नमक मिलाकर सुबह शाम पीजिये. दो दिन में ही आराम देखिये.
कैंसर के उपचार में कलौजी के तेल की आधी बड़ी चम्मच को एक ग्लास अंगूर के रस में मिलाकर दिन में तीन बार लें.
हृदय रोग, ब्लड प्रेशर और हृदय की धमनियों का अवरोध के लिए जब भी कोई गर्म पेय लें, उसमें एक छोटी चम्मच तेल मिला कर लें.
सफेद दाग और लेप्रोसीः 15 दिन तक रोज पहले सेब का सिरका मलें, फिर कलौंजी का तेल मलें.
एक चाय की प्याली में एक बड़ी चम्मच कलौंजी का तेल डाल कर लेने से मन शांत हो जाता है और तनाव के सारे लक्षण ठीक हो जाते हैं.
कलौंजी के तेल को हल्का गर्म करके जहां दर्द हो वहां मालिश करें और एक बड़ी चम्मच तेल दिन में तीन बार लें. 15 दिन में बहुत आराम मिलेगा.
एक बड़ी चम्मच कलौंजी के तेल को एक बड़ी चम्मच शहद के साथ रोज सुबह लें, आप तंदुरूस्त रहेंगे और कभी बीमार नहीं होंगे; स्वस्थ और निरोग रहेंगे .
याददाश्त बढाने के लिए और मानसिक चेतना के लिए एक छोटी चम्मच कलौंजी का तेल 100 ग्राम उबले हुए पुदीने के साथ सेवन करें.
पथरी हो तो कलौंजी को पीस कर पानी में मिलाइए फिर उसमे शहद मिलाकर पीजिये, १०-११ दिन प्रयोग करके टेस्ट करा लीजिये.कम न हुई हो तो फिर १०-११ दिन पीजिये.
अगर गर्भवती के पेट में बच्चा मर गया है तो उसे कलौंजी उबाल कर पिला दीजिये, बच्चा निकल जायेगा.और गर्भाशय भी साफ़ हो जाएगा.
किसी को बार-बार हिचकी आ रही हो तो कलौंजी के चुटकी भर पावडर को ज़रा से शहद में मिलकर चटा दीजिये.
अगर किसी को पागल कुत्ते ने काट लिया हो तो आधा चम्मच से थोडा कम करीब तीन ग्राम कलौंजी को पानी में पीस कर पिला दीजिये, एक दिन
में एक ही बार ३-४ दिन करे.
जुकाम परेशान कर रहा हो तो इसके बीजों को गरम कीजिए ,मलमल के कपडे में बांधिए और सूंघते रहिये.
दो दिन में ही जुकाम और सर दर्द दोनों गायब . कलौंजी की राख को पानी से निगलने से बवासीर में बहुत लाभ होता है.
कलौंजी का उपयोग चर्म रोग की दवा बनाने में भी होता है. कलौंजी को पीस कर सिरके में मिलकर पेस्ट बनाए और मस्सों पर लगा लीजिये. मस्से कट जायेंगे. मुंहासे दूर करने के लिए कलौंजी और सिरके का पेस्ट रात में मुंह पर लगा कर सो जाएँ.
जब सर्दी के मौसम में सर दर्द सताए तो कलौंजी और जीरे की चटनी पीसिये और मस्तक पर लेप कर लीजिये.
घर में कुछ ज्यादा ही कीड़े-मकोड़े निकल रहे हों तो कलौंजी के बीजों का धुँआ कर दीजिये.
गैस/पेट फूलने की समस्या --50 ग्राम जीरा, 25 ग्राम अजवायन, 15 ग्राम कलौंजी अलग-अलग भून कर पीस लें और उन्हें एक साथ मिला दें. अब 1 से 2 चम्मच मीठा सोडा, 1 चम्मच सेंधा नमक तथा 2 ग्राम हींग शुद्ध घी में पका कर पीस लें. सबका मिश्रण तैयार कर लें. गुनगुने पानी की सहायता से 1 या आधा चम्मच खाएं.
महिलाओं को अपने यूट्रस (बच्चेदानी) को सेहतमंद बनाने के लिए डिलीवरी के बाद कलौंजी का काढा ४ दिनों तक जरूर पी लेना चाहिए. काढ़ा बनाने के लिए दस ग्राम कलौंजी के दाने एक गिलास पानी में भिगायें, फिर २४ घंटे बाद उसे धीमी आंच पर उबाल कर आधा कर लीजिये. फिर उसको ठंडा करके पी जाइये, साथ ही नाश्ते में पचीस ग्राम मक्खन जरूर खा लीजियेगा. जितने दिन ये काढ़ा पीना है उतने दिन मक्खन जरूर खाना है.
आपको अगर बार बार बुखार आ रहा है अर्थात दवा खाने से उतर जा रहा है फिर चढ़ जा रहा है तो कलौंजी को पीस कर चूर्ण बना लीजिये फिर उसमे गुड मिला कर सामान्य लड्डू के आकार के लड्डू बना लीजिये. रोज एक लड्डू खाना है ५ दिनों तक , बुखार तो पहले दिन के बाद
दुबारा चढ़ने का नाम नहीं लेगा पर आप ५ दिन तक लड्डू खाते रहिएगा, यही काम मलेरिया बुखार में भी कर सकते हैं.
ऊनी कपड़ों को रखते समय उसमें कुछ दाने कलौंजी के डाल दीजिये,कीड़े नहीं लगेंगे.
भैषज्य रत्नावली कहती है कि अगर कलौंजी को जैतून के तेल के साथ सुबह सवेरे खाएं तो रंग एकदम लाल सुर्ख हो जाता है. चेहरे को सुन्दर व आकर्षक बनाने के लिए कलौंजी के तेल में थोड़ा सा जैतून का तेल मिलाकर चेहरे पर लगाएं और थोड़ी देर बाद चेहरा धो लें. इससे चेहरे के दाग़-धब्बे दूर होते हैं.
नोट : यूं तो ये सारे उपाय आयुर्वेद की किताब से लिए गए हैं और नुक्सान होने की आशंका नगण्य है फिर भी कोई भी उपचार अपनाने से पहले घर के बुजुर्गों की सलाह अवश्य लें, क्योंकि हर शरीर की तासीर अलग होती है, जिससे शरीर कोई विपरीत प्रतिक्रया भी दे सकता है.

13 July 2015

भारत में गाय की 37 प्रकार की शुद्ध नस्ल पायी जाती है|



भारत में गाय की 37 प्रकार की शुद्ध नस्ल पायी जाती है| जिसमें सबसे ज्यादा दूध देने वाली नस्ल निम्न हैं -

1)गिर गाय (सालाना-2000-6000 लीटर दूध ,स्थान -सौराष्ट्र ,गुजरात)

2)साहिवाल गाय (सालाना-2000-4000 लीटर दूध ,स्थान -UP,हरियाणा,पंजाब)

3)लाल सिंधी ( सालाना-2000-4000 लीटर दूध ,स्थान -उत्पत्ति सिंध में लेकिन अभी पूरे भारत में)

4)राठी (सालाना-1800-3500 लीटर दूध, स्थान-राजस्थान,हरियाणा,पंजाब)

5)थरपार्कर(सालाना-1800-3500 लीटर दूध,स्थान-सिंध,कच्छ,जैसलमेर,जोधपुर)

6)कांक्रेज (सालाना-1500-4000 लीटर दूध,स्थान-उत्तरी गुजरात व राजस्थान)

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### एक शोधपूर्ण सच्चाई ###

ब्राजील देश ने हमारी देसी गायों का आयात कर अब तक 65 लाख गायों की संख्या कर ली है । और इससे भी दोगुनी उन लोंगो ने दूसरे देशों में निर्यात की है।
google पर indian cow in brazil सर्च कर सकते है !
उन लोगों ने दिल से इन गौवंश ( हाँ , सांडो सहित ) की सेवा कर आज औसत में एक गाय से दिनभर में करीब 40 लीटर दूध पाने की शानदार स्थिति बना ली ।

अब सुनिए दूसरी बात :

ब्राजील इस दूध से पाउडर बना कर ऑस्ट्रेलिया ,डैनमार्क को निर्यात करता है ।
जबकि डैनमार्क जैसे देश मे आदमी से अधिक गाय है लेकिन वो अपनी गाय का दूध नहीं पीते ! वहाँ 'milk is white poison' वाली बात प्रचलित है !
और तो और ऑस्ट्रेलिया ,डैनमार्क आदि देश अपनी जर्सी -होलस्टीन युवान ( जिन्हें हम गाय कहते नहीं थकते ! ) के दूध से पाउडर निकाल कर हमारे देश भारत को भेजता है । इस पाउडर को ऑस्ट्रेलिया में उपयोग में लाने पर कड़ा प्रतिबन्ध है । वे सिर्फ ब्राजील के दूध पाउडर को ही उपयोग में लाते हैं ।

क्यों ? क्योंकि ऑस्ट्रेलिया,डैनमार्क आदि देशो की गायों का दूध से डायबिटीज़, कैंसर जैसी भयंकर बीमारी फैलती है । आज हमारा भारत डायबिटीज़ व कैंसर की बीमारी की विश्व राजधानी बनता जा रहा है । भारत की प्रत्येक डेयरी में हुए सम्पूर्ण दूध में से फेट ( क्रीम-मक्खन ) निकालकर उसमे इस आयातित दूषित ऑस्ट्रेलियन , डैनमार्क दूध पाउडर को मिलाकर प्रोसेस किया जाकर थैलियों के माध्यम से हमारी रसोई तक पहुंचाया जाता है ।

ये कैसा दुष्चक्र है !!!! भारत की देसी गाय ब्राजील, वहां से दूध पाउडर ? ऑस्ट्रेलिया का दूषित दूध पाउडर भारत ? और फिर होता है दवाइयों का आयात ।

साथियों, थैली के दूध का प्रयोग तुरन्त बन्द करो । देसी गाय के दूध को किसी भी कीमत पर प्राप्त कर स्वास्थ्य को बचाओ । वैज्ञानिक भाषा मे देसी गाय के दूध तो A2 कहते है और विदेशी (जर्सी हालेस्टियन) गायों के दूध को A1 कहते है ! दोनों के दूध मे क्या अंतर है सैंकड़ों रिसर्च विदेशो मे हो चुकी है !

मित्रो जब आप विदेशी गाय जैसे जर्सी,हाले स्टियन आदि पर ज्यादा रिसर्च करेंगे आपको पता चलेगा की इन्हे सूअर से artificial insemination कर के विकसित किया गया है ।

मित्रो आप देसी गाय के दूध का महत्व समझे अन्य लोगो को समझाएँ ,विदेशी गाय (पूतना भगवान कृष्ण को मरने आई थी ) का दूध ना पीये !

हमारे मूर्ख नीति निर्धारकों ने दूध की मात्रा को गौमाता की उपयोगिता का मापदंड बना दिया। भारतीय संस्कृति का इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता था। मित्रो हमने अपनी कमियों को सुधारने की बजाय अपनी गौमाता पर ही कम दूध देने का लांछन लगा दिया। इतिहास गवाह है कि भारत वर्ष में जब तक गौ वास्तव में माता जैसा व्यवहार पाती थी – उसके रख-रखाव, आवास, आहार की उचित व्यवस्था थी, देश में कभी भी दूध का अभाव नहीं रहा।

मित्रो दूध को एक तरफ छोड़ भी दे तो भी गौ माता जीवन के पहले दिन से अंतिम दिन तक गोबर और गौ मूत्र देती है जिससे रसोई गैस का सिलंडर चलता है और गाड़ी भी चलती है विश्वास ना हो तो नीचे दिये गए link पर देखें

LINK https://www.youtube.com/watch?v=Y1kq_mm9az8



04 July 2015

!! विवाहित स्त्री को सिन्दूर क्यों लगाना चाहिए : विज्ञानिक कारण !!

नोट:-कुछ लोग अपने ज्ञान से कुतर्क भी देंगे उनके लिय बता दू की केवल स्त्री को ही गर्भ के समय तनाव होता है और स्त्रियों में ही मासिक तनाव होता है पुरुषो में नहीं इसलिए पुरुषो को नहीं विवाहित स्त्रियों को सिंदूर लगाना होता है,पुरुष और महिला की संरचना एकदम अलग है इसलिए पुरुष को न मासिक तनाव का सामना करना है न ही गर्भ।
विधवा महिला को सिंदूर की परंपरा नहीं क्योंकि विधवा को बिन पति गर्भ धारण नहीं करना होता ,और गर्भ धारण करना है तो शादी के बाद करे फिर वो सिंदूर भी लगाये।
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स्त्रियाँ माँग मेँ सिन्दूर क्योँ लगाती हैँ और इसकी वैज्ञानिकता क्या हैँ ?


(1)भारतीय वैदिक परंपरा खासतौर पर हिंदू समाज में शादी के बाद महिलाओं को मांग में सिंदूर भरना आवश्यक हो जाता है। आधुनिक दौर में अब सिंदूर की जगह कुंकु और अन्य चीजों ने ले ली है। सवाल यह उठता है कि आखिर सिंदूर ही क्यों लगाया जाता है। दरअसल इसके पीछे एक बड़ा वैज्ञानिक कारण है। यह मामला पूरी तरह स्वास्थ्य से जुड़ा है। सिर के उस स्थान पर जहां मांग भरी जाने की परंपरा है, मस्तिष्क की एक महत्वपूर्ण ग्रंथी होती है,
जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। यह अत्यंत संवेदनशील भी होती है।
यह मांग के स्थान यानी कपाल के अंत से लेकर सिर के मध्य तक होती है। सिंदूर इसलिए लगाया जाता है क्योंकि इसमें पारा नाम की धातु होती है। पारा ब्रह्मरंध्र के लिए औषधि का काम करता है। महिलाओं को तनाव से दूर रखता है और मस्तिष्क हमेशा चैतन्य अवस्था में रखता है। विवाह के बाद ही मांग इसलिए भरी जाती है क्योंकि विवाह के बाद जब गृहस्थी का दबाव महिला पर आता है (गर्भ) तो उसे तनाव, चिंता और अनिद्रा जैसी बीमारिया आमतौर पर घेर लेती हैं।पारा एकमात्र ऐसी धातु है जो तरल रूप में रहती है। यह मष्तिष्क के लिए लाभकारी है, इस कारण सिंदूर मांग में भरा जाता है।

(2)मांग में सिंन्दूर भरना औरतों के लिए सुहागिन होने की निशानी माना जाता है। विवाह के समय वर द्वारा वधू की मांग मे सिंदूर भरने के संस्कार को सुमंगली क्रिया कहते हैं।
इसके बाद विवाहिता पति के जीवित रहने तक आजीवन अपनी मांग में सिन्दूर भरती है। हिंदू धर्म के अनुसार मांग में सिंदूर भरना सुहागिन होने का प्रतीक है। सिंदूर नारी श्रंगार का भी एक महत्तवपूर्ण अंग है। सिंदूर मंगल-सूचक भी होता है। शरीर विज्ञान में भी सिंदूर का महत्त्व बताया गया है।
सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक होने के कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पडती। साथ ही इससे स्त्री के शरीर में स्थित विद्युतीय उत्तेजना नियंत्रित होती है। मांग में जहां सिंदूर भरा जाता है, वह स्थान ब्रारंध्र और अध्मि नामक मर्म के ठीक ऊपर होता है।
सिंदूर मर्म स्थान को बाहरी बुरे प्रभावों से भी बचाता है। सामुद्रिक शास्त्र में अभागिनी स्त्री के दोष निवारण के लिए मांग में सिंदूर भरने की सलाह दी गई है।
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महिलाओं से निवेदन है की वो अंधी होकर पाश्चात्य संस्कृति के पीछे न भागें भारतीय संस्कृति दिखावे के आधार पर नहीं
बल्कि वैज्ञानिक आधार पर बनी हुई है जिसका आप फायदा उठाएं
कृपया जनहित में शेयर अवश्य करें
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सिंदूर का हिन्दू महिला ही इस्तेमाल करे ये जरुरी नहीं है,आप अपनी खुद की सेहत के लिय सिंदूर इस्तेमाल करे

13 May 2015

अमरूद की पत्तियों में छुपा है हर बीमारी का इलाज

1. अमरूद की पत्तियां के फायदे

अमरूद एक पसंदीदा फल है। यह स्‍वादिष्‍ट होने के साथ-साथ कई तरह के स्‍वास्‍थ्‍य गुणों से भी भरपूर है। हालांकि, हममें से ज्‍यादातर लोग इस तथ्‍य से पूरी तरह से अनजान हैं कि अमरूद के पत्‍ते भी बहुत फायदेमंद होते है। आपको यह जानकर आश्‍चर्य होगा कि अमरूद के पत्‍तों में मौजूद अद्भुत एंटीऑक्‍सीडेंट, एंटीबैक्‍टीरियल और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण कई प्रकार की स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को दूर करने में मदद करते है। त्‍वचा, बाल और स्‍वास्‍थ्‍य की देखभाल के लिये अमरूद की ताजी पत्‍तियों का रस या फिर इसकी बनी हुई चाय बहुत ही फायदेमंद होती है। आइए जानें अमरूद की पत्तियां स्‍वास्‍थ्‍य के लिए किस प्रकार से फायदेमंद होती है।




2. वजन में लाये कमी

अमरूद की पत्तियां जटिल स्टार्च को शुगर में बदलने की प्रक्रिया को रोकता है जिसके द्वारा शरीर के वजन को घटाने में सहायता मिलती है। अमरूद के पत्‍ते कार्बोहाइड्रेट की गति को रोकता है, जो उपलब्ध यौगिक के रूप में लीवर में टूटता है और वजन घटाने का समर्थन करता है।




3. मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद

जापान में यकुल्ट सेंट्रल इंस्टीट्यूट में अमरूद के पत्तों से बनी चाय पर एक शोध किया गया। शोध के निष्‍कर्ष के अनुसार, अमरूद पत्ती से बनी चाय में एल्फा-ग्लूकोसाइडिस एंजाइम गतिविधि को कम कर मधुमेह रोगियों में प्रभावी रूप से रक्त शर्करा को कम करती है। इसके अलावा यह सुक्रोज और माल्‍टोज को सोखने से शरीर को रोकती है जिससे शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है। अमरूद की पत्ती से बनी चाय 12 सप्ताह पीने से इंसुलिन के उत्पादन में वृद्धि के बिना रक्त में शर्करा के स्तर को कम कर सकते हैं।




4. कार्डियोवस्कुलर प्रभाव


अमरूद के पत्‍तों से बनी चाय दिल और संचार प्रणाली के लिए उपयोगी होती है। 2005 में प्रकाशित एक प्रयोगशाला अध्ययन के मुताबिक, अमरूद के पत्तों में मौजूद यौगिक रक्तचाप और हृदय की दर को कम करने में मदद करते हैं। अमरूद के पत्‍तों से बनी चाय के सेवन से ब्‍लड लिपिड, ब्‍लड में कोलेस्ट्रॉल का निम्‍न स्‍तर और अस्वस्थ ट्राइग्लिसराइड्स में सुधार करने में मदद मिलती है।



5. डायरिया का उपचार

अमरूद की पत्तियां डायरिया और पेचिश के लिए अद्भुत उपचार भी है। समस्‍या होने पर 30 ग्राम अमरूद की पत्तियां और एक मुट्ठी चावल के आटे को दो गिलास पानी में मिलाकर उबाल लें। डायरिया के इलाज के लिए इस मिश्रण को दिन में दो बार पीयें। पेचिश के इलाज के लिए, अमरूद की पत्तियों और जड़ों को लेकर 90 डिग्री सेल्सियस पर 20 मिनट के लिए उबालें। इस पानी को छानकर दिन में दो बार पेचिश से राहत पाने तक लें।





6. पाचन तंत्र को दुरुस्‍त रखें

अमरूद की पत्तियां पाचन एंजाइम के उत्‍पादन को बढ़ाकर पाचन तंत्र को दुरुस्‍त रखने में मदद करता है। शक्तिशाली एंटी-बैक्‍टीरियल एजेंट प्रभावी ढंग से पेट के अस्‍तर से हानिकारक बैक्‍टीरिया को नष्‍ट करने और बैक्‍टीरिया से विषाक्‍त एंजाइमों के प्रसार को रोकने में मदद करता है। अमरूद के पत्तों फूड प्‍वाइजनिंग, उल्टी और मतली से भी राहत प्रदान करते हैं।



7. एलर्जी दूर करें

अमरूद की पत्‍तियों का रस किसी भी प्रकार की एलर्जी को दूर कर सकता है। अमरूद की पत्तियों में एलर्जी अवरोधक गुण पाया जाते है यह उस वायरस को खत्‍म करता है जिससे एलर्जी पैदा होती है। साथ ही यह एलर्जी से होने वाली खुजलाहट को दूर करने में भी मददगार होता है। एलर्जी में खुजलाहट बहुत ही आम होता है। अत: एलर्जी को कम करने से खुजलाहट अपने आप कम हो जाती है।

8. मुंहासे की समस्‍या से निजात दिलाये


अमरूद की पत्तियों एंटीसेप्‍टिक होने के कारण बैक्‍टीरिया को दूर करने में मदद करती है। मुंहासे की समस्‍या में ताजी पत्‍तियों को पीस कर दाग धब्‍बों के साथ मुंहासो पर लगाएं। नियमित रूप से ऐसा करने से धीरे-धीरे मुंहासों की समस्‍या दूर हो जाती है।




बुखार में उपयोग लाए जा सकते हैं ये रामबाण आदिवासी नुुस्खे

बुखार में हमारा ध्यान हमेशा शरीर के बढ़े हुए तापमान पर जाता है, लेकिन इसके बारे में सही जानकारी बहुत कम लोगों को है। दरअसल, बुखार कोई रोग नहीं, बल्कि शरीर में हो रही कई प्रकार की गड़बड़ियों का सूचक है। ध्यान देने की बात ये है कि बुखार को मजाक में लेना घातक भी हो सकता है। यूं तो बाजार में शरीर के तापमान को कम करने के लिए दवाइयों की भरमार है, लेकिन इन दवाइयों के साइड इफेक्ट्स को भी ध्यान में रखना जरूरी है।

यदि हम हर्बल नुस्खों को अपनाएंगे तो किसी भी प्रकार साइड इफेक्ट्स की संभावनाएं काफी कम हो जाती है। यहां जानिए कुछ हर्बल नुस्खे जो बुखार को दूर करने में कारगर हैं। आदिवासी इलाकों में इन्हीं नुस्खों से बुखार का इलाज किया जाता है।


1.आदिवासियों के अनुसार रत्ती पौधे की पत्तियों की सब्जी बेहद शक्तिवर्धक होती है। इस सब्जी का सेवन बुखार से ग्रस्त व्यक्ति को कराया जाए तो बुखार उतर जाता है। आदिवासियों का ये भी मानना है कि इन पत्तियों की चाय बनाकर पीने से बुखार उतर जाता है, साथ ही सर्दी और खांसी में भी राहत मिलती है।

2. सप्तपर्णी की छाल का काढ़ा पिलाने से बदन दर्द और बुखार में आराम मिलता है। डांग-गुजरात के आदिवासियों के अनुसार, जुकाम और बुखार होने पर सप्तपर्णी की छाल, गिलोय का तना और नीम की आंतरिक छाल की समान मात्रा को कुचलकर काढ़ा बनाया जाए और रोगी को दिया जाए तो अतिशीघ्र आराम मिलता है। आधुनिक विज्ञान भी इसकी छाल से प्राप्त डीटेइन और डीटेमिन जैसे रसायनों को क्विनाइन से बेहतर मानता है।

3. बुखार में जब सिर दर्द हो और सारे बदन में भी दर्द हो तो सिवान की पत्तियों को पीसकर सिर पर और शरीर के दर्द वाले हिस्सों पर लेप करने से दर्द और जलन समाप्त हो जाती हैं। डांगी आदिवासियों के अनुसार सिवान की पत्तियों और छाल के रस में तिल के तेल को मिलाकर मालिश करने से बुखार के दौरान होने वाले शारीरिक दर्द में राहत मिलती है।

4. सूरजमुखी की पत्तियों का रस निकाल कर मलेरिया आदि बुखार आने पर शरीर पर लेपित किया जाता है। पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि यह रस शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है।

5. डांग-गुजरात के आदिवासी सोनापाठा की लकड़ी का छोटा-सा प्याला बनाते हैं और रात को इसमें पानी भरकर रख लेते हैं। इस पानी को अगली सुबह उस रोगी को देते हैं, जो लगातार बुखार से ग्रस्त है। आदिवासी इसकी जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर कुल्ले करने की भी सलाह देते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये शरीर में बुखार के दौरान तापमान को नियंत्रित तो करता ही है, इसके अलावा मुंह के स्वाद को बेहतर बनाने में भी मदद करता है।

6. आदिवासी लोग हंसपदी के संपूर्ण अंगों यानी तना, पत्ती, जड़, फल और फूल लेकर सुखा लेते हैं और फ़िर एक साथ चूर्ण तैयार करते हैं। इस चूर्ण का चुटकी भर भाग शहद के साथ सुबह और शाम लेने से बुखार में आराम मिलता है।

7. पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि हुरहुर की जड़ों के रस की कुछ मात्रा (लगभग 5 से 10 मिली) सुबह और शाम मरीज को पिलाने से बुखार के बाद आई कमजोरी या सुस्ती में लाभ होता है।



12 May 2015

!!! भूकंप से जुड़े गाय के संकेत !!!


भूकंप से जुड़े गाय के संकेत
1. यदि गाय लगातार एक हफ्ते तक अकारण ही अपनी निर्धारित क्षमता से कम दूध देती है तो इसे भूकंप का संकेत समझना चाहिए। ऐसी स्थिति में कहीं भूकंप आने की संभावनाएं होती हैं।
2. यदि बैल रात को बिना वजह ही चिल्लाता है तो ये भी भूकंप आने का संकेत है। ऐसा होने पर निकट भविष्य में भूकंप आ सकता है।
3. यदि कोई गाय दुखी दिखाई देती है तो ये उस देश के राजा के लिए अशुभ संकेत है। आज के समय में राजा का अर्थ शासन-प्रशासन से समझना चाहिए।
4. यदि कोई गाय जमीन कुरेदती हुई दिखाई दे तो इससे क्षेत्र में रोग बढ़ने की संभावनाएं बढ़ती हैं। ये अशुभ संकेत है और इसका असर यह होता है कि जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
5. यदि कोई गाय डर कर जोर-जोर से चिल्लाती है तो इसे चोरी होने का संकेत समझना चाहिए।6. यदि कोई गाय बिना कारण जोर-जोर से चिल्लाती है तो ये किसी अनर्थ का संकेत है। गाय का चिल्लाना किसी बड़ी परेशानी की ओर इशारा करता है।

प्रकृति देती है भूकंप के संकेत

1. भूकंप आने से सात दिन पूर्व ही प्रकृति भी संदेश देती है। दिन की शुरुआत में तेज वायु, दोपहर में अग्रि यानी अधिक तापमान, शाम को वर्षा एवं रात्रि में जल से भूमि कंपित होती है।
2. उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, पुनर्वसु, मृगशिरा, अश्विनी ये सात नक्षत्र वायु से संबंधित हैं। यदि इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप के योग बनते हैं तो सात दिन पूर्व से चारों ओर धूल उड़ने लगती हैं। वृक्षों को तोड़ने वाली हवा चलती है। सूर्य मंद होता है। जनता में ज्वर एवं खांसी की पीड़ा रहती है।
3. पुष्य, कृत्तिका, विशाखा, भरणी, मघा, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वा फाल्गुनी, ये सात नक्षत्र अग्रि यानी तपन से संबंधित हैं। इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप आने के योग होते हैं तो सात दिन पूर्व आकाश लाल होता है। जंगलों में आग लगती है। ज्वर एवं पीलिया के रोगी बढ़ जाते हैं।
4. अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तराषाढ़ा, अनुराधा, ये सात नक्षत्र वर्षा से संबंधित हैं। इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप आने की संभावना हो तो सात दिन पूर्व से ही भारी वर्षा होती है। बिजली चमकती है।


5. रेवती, पूर्वाषाढ़ा, आद्रा, अश्लेषा, मूल, उत्तराभाद्रपद, शतभिषा, ये सात नक्षत्र जल से संबंधित है। यदि इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप आने के योग बनते हैं तो सात दिन पूर्व से समुद्र एवं नदी के तट पर रहने वाले लोगों को रोग होते हैं। भारी वर्षा होती है।
6. ये सभी संकेत भूकंप आने से पहले ही सूचित कर देते हैं। जहां पर पक्षी व्याकुल दिखाई दें एवं चींटियां और जमीन के अंदर रहने वाले अन्य जीव बाहर निकलने लगे, जानवर एक दिशा में लगातार देखते रहते हैं तो भूकंप आने के योग बनते हैं।

भूकंप से संबंधित ग्रह योग


1. जब-जब भी भारत या भारत के आसपास के देशों में भूकंप आया है, उस समय में मंगल और शनि की एक-दूसरे पर परस्पर दृष्टि रहती है। शनि-मंगल के कारण ही भूकंप के योग बनते हैं।
2. जिस दिन सूर्य, मंगल, शनि या गुरु का नक्षत्र रहता है एवं इस दिन यदि मंगल की शनि या शनि की मंगल पर दृष्टि हो, सूर्य की मंगल पर या गुरु एवं मंगल की सूर्य पर परस्पर दृष्टि हो तो भूकंप आ सकता है। 25 अप्रैल 2015 को ऐसे ही योग बने थे और आज 12 मई को भी ये योग बन रहे हैं।
3. भूकंप आने का एक बड़ा कारण सूर्य और चंद्र ग्रहण भी है। कुछ दिन पहले 20 मार्च एवं 4 अप्रैल 2015 को सूर्य और चंद्र ग्रहण हुआ था। जब भी इस प्रकार दो ग्रहण एक साथ होते है, भूकंप की स्थिति निर्मित होती है। ऐसा पूर्व में भी हो चुका है।
4. जब-जब भूकंप आए हैं, उनकी तारीखों पर बनने वाले योगों का विश्लेषण करने ये बात सामने आई है कि भूकंप के समय मंगल, शनि, सूर्य एवं गुरु के नक्षत्र के साथ इन ग्रहों की परस्पर एक-दूसरे पर दृष्टि रहती है या नवांश में इन ग्रहों की एक-दूसरे पर दृष्टि रहती है। पूर्णिमा एवं अमावस्या तिथि के आसपास की तिथियों पर भूकंप आने की संभावनाएं अधिक होती हैं। इसके साथ ही सूर्य और चंद्र ग्रहण भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

08 April 2015

कलियुग और गौमाता



भारत में वैदिक काल से ही गाय का महत्व माना जाता है। आरम्भ में आदान-प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम के रूप में गाय का उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी गौसंख्या से की जाती थी। हिन्दू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती है तथा उसकी हत्या महापातक पापों में मानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जो चौदह रत्न प्रकट हुए थे उनमे से गौ “कामधेनु”भी एक रत्न है। पूज्य गौमाता अहिंसा, करुणा, ममत्व वात्सल्यादि दिव्य गुणों को पुष्ट करती है।

गाय, गोपाल, गीता, गायत्री तथा गंगा धर्मप्राण भारत के प्राण हैं, आधार हैं। इनमें गौमाता का महत्व सर्वोपरि है। गौमाता पूजनीय है जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ । गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता। स्पर्श कर लेने मात्र से ही गौमाता मनुष्य के सारे पापों को नष्ट कर देती है |

जिस गौमाता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पाँव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया। शास्त्रों में कहा है सब योनियों में मनुष्य योनी श्रेष्ठ है। यह इसलिए कहा है कि वह गौमाता की निर्मल छाया में अपने जीवन को धन्य कर सकते हैं । गौमाता के रोम-रोम में देवी-देवताओं का एवं समस्त तीर्थों का वास है।

औरंगजेब के एक नायक तैबर से गायों को बचाने के लिए पुष्कर में युद्ध हुआ, जिसमे 1700 मुग़ल सैनिक मारे गये तथा 700 मेड्लिया राजपूत बलिदान हुए पर एक भी गाय काटने नही दी । आज भी इनकी स्मृति में पुष्कर में गौ-घाट बना हुआ है।

गौमाता को एक ग्रास खिला दीजिए तो वह सभी देवी-देवताओं को पहुँच जाएगा । इसीलिए धर्मग्रंथ बताते हैं समस्त देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो गौभक्ति-गोसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है । भविष्य पुराण में लिखा है गौमाता के पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूँछ में अन्नत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियाँ, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र हैं ।


भगवान भी जब अवतार लेते हैं तो कहते हैं-
‘विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।‘

सारे भारत में कहीं भी चले जाइए और सारे तीर्थ स्थानों के देवस्थान देख आइए। आपको किसी मंदिर में केवल श्री विष्णु भगवान मिलेंगे, किसी मंदिर में श्री लक्ष्मी नारायण दो मिलेंगे। किसी में सीता राम लक्ष्मण तीन मिलेंगे तो किसी मंदिर में श्री शंकर पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, भैरव, हनुमान जी इस प्रकार छः देवी-देवता मिलेंगे। अधिक से अधिक किसी में दस-बीस देवी-देवता मिल जाएँगे, पर सारे भूमंडल में ढूँढ़ने पर भी ऐसा कोई देवस्थान या तीर्थ नहीं मिलेगा जिसमें हजारों देवता एक साथ हों। गाय में सभी 36 करोड़ देवी-देवताओं का निवास है, तभी हमारे हिन्दू समाज में सुबह सबसे पहले गौ-ग्रास निकलने की प्रथा है। देसी गाय की रीढ़ की हड्डी में सूर्य-केतु नामक नाड़ी होती है, जिसके द्वारा सूर्य की किरणों से अपने रक्त में स्वर्णाक्षार केरोटीन बनाती है। यह स्वर्णाक्षार गौरस में विद्यमान है जिससे गाय का दूध-दही-घृत स्वर्णआभा वाला होता है।

ऐसा दिव्य स्थान, ऐसा दिव्य मंदिर, दिव्य तीर्थ देखना हो तो बस, वह आपको गौमाता से बढ़कर सनातनधर्मी हिंदुओं के लिए न कोई देव स्थान है, न कोई जप-तप है, न ही कोई सुगम कल्याणकारी मार्ग है । न कोई योग-यज्ञ है और न कोई मोक्ष का साधन ही।

गाय की हर एक चीज़ गुणकारी एवम सर्वोत्तम है । गाय के गोबर को अतिशुद्ध माना जाता है। प्राचीन समय में घर को शुद्ध करने के लिए गाय के गोबर से घर लिपे जाते थे। आज भी दूर-दराज़ के गावों में यह कार्य जस का तस चल रहा है। गौमूत्र (गाय के मूत्र) को भी घर में शुद्धी के लिए छिड़का जाता है तथा शुद्ध गौमूत्र के सेवन से पेट के विभिन्न रोगों से निजात मिलती है। छोटे शिशु को गाय का दूध पिलाने से उसका बौद्धिक विकास तीव्र गति से होता है | लेकिन हैरानी की बात यह है की भारत जैसे धार्मिक एवं हिन्दू देश की राजधानी दिल्ली में वर्षों पहले गाय-भैंसों के खिलाफ ही कानून बना दिया गया की हम गौमाता को अपने घर में नही रख सकते उसे पालतू जानवर नही बना सकते जबकि कुत्तों को घर में रखने पर कोई प्रतिबन्ध नही है और न ही उनके खिलाफ कोई कानून बनाया गया है | जबकि मनुष्य को शारीरिक क्षति भी पहुंचाते है। कुत्ते से “रेबीज़” नामक भयंकर बीमारी हो जाती है । गौग्रास के लिए अब गाय ढूंढे से भी नही मिलती।


अभी तक कानून अंधा तो सुना ही था अब लगता है बहरा भी हो गया जो अपने प्राचीन शास्त्रों में लिखी मान्यताओं और कर्मकांडों को ताक़ पर रखकर कुछ भी कर गुजरने को तैयार है। यह कानून हिंदुवादियों पर प्रत्यक्ष कुठाराघात है। दिल्ली में आवासीय क्षेत्रों में गाय-भेंसों को रखने एवम पालने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। जिसके चलते दिल्ली से सभी डेरियों को दिल्ली से बाहर दिल्ली एनसीआर में स्थानांतरित कर दिया गया है । जो थोडा बहुत लोगों ने रखी भी हुई है वो गैरकानूनी करार 
दी गई है । 


हमारे स्थानीय क्षेत्र शास्त्री नगर में श्रीमती सीमा खुराना जो करीब पिछले 30 वर्षों से दूध बेचने का कारोबार कर रही है , इनका आवास शास्त्री नगर में है एवं डेयरी को नंगली( दिल्ली बॉर्डर) स्थानांतरित कर दिया गया है जो उनके आवास से करीब 50-60 किलोमीटर की दूरी पर है । सरकार द्वारा हर डेयरी वालो को जगह उपलब्ध कराई गई थी जिसके एवज़ में सरकार उनसे किराया वसूलती है । इसका सीधा सीधा असर आम आदमी पर पढ़ रहा है । कुछ लोग तो डेयरी के आसपास ही दूध बेच देते है। और कुछ लोग अपने आवास स्थान पर लाकर ही बेच रहे है, जिससे डेयरी से दूध लाने-लेजाने के भाड़े की भरपाई करने के लिए दूध की कीमत बढ़ा दी जाती है। पेट्रोल, डीज़ल का रेट बढ़ते ही दूध के दामों में भी वृद्धि कर दी जाती है। यहाँ दो मुद्दे उभरकर सामने आते है जो प्रभावित हुए है पहला आर्थिक और दूसरा धार्मिक। दोनों तरह से ही क्षति पहुंची है।

प्राचीन काल में चौपाल में पीपल, आँगन में तुलसी और घर में गाय को रखने का महत्व होता था। परन्तु अब घरों में गाय का स्थान कुत्तों ने ले लिया है। इस परिवर्तनशील और आधुनिक युग में महफ़िल में शराब और घर में कुत्ते का महत्त्व बढ़ गया है जो इस आडम्बरिक आधुनिक युग में स्टेटस सिंबल बन गया है, ये हमारे देश का कैसा कानून है जो हिंदुत्व को ही खो रहा है और पाश्चात्य संस्कृति की नक़ल करता हुआ घर में कुत्तों को गौमता का स्थान दे रहा है।



गौ माता का इतिहास





लगभग 5100 वर्ष पूर्व महाराजाधिराज श्रीकृष्णचन्द्रजी ने वैर भाव से भजने वाले जरासन्ध की कामना पूरी करने के उद्देश्य से मथुरा का त्याग किया था। अपने सहचर व परिकर सभी राजपुरूषों का निवास राजधानी में ही रखा गया था। परन्तु भगवान श्रीकृष्ण की प्राण स्वरूपा गायें व गोपालकों के लिए तो समुद्र के मध्य कोई स्थान नहीं था। ऐसी स्थिति में गायें तथा गोपालकों से भगवान दूर हो गये। अपने को निराश्रित मानकर भगवान श्रीकृष्ण जिस दिशा से पधारे थे उसी दिशा में गायें तथा गोपालक भी बड़ी दयनीय तथा दुःखी अवस्था में चल पड़े। कई दिन निराश्रित तथा वियोग की पीड़ा सहने के बाद भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन गायों तथा गोपालकों के लिए एक महान केर तथा जाल के जंगलों में सामने आते हुए हुआ।

भगवान श्रीकृश्ण के दर्शन कर गाय व गोपालक इतने आनन्द विभोर हो गए कि उनकों रात दिन का भी ध्यान नहीं रहा। इसी प्रकार तीन दिन बीत गये, तब उद्धव जी ने उनको याद दिलाया कि गोवंश तथा गोपालकों की देख-रेख तथा सेवा कार्य अनिरूद्ध को ही सौंपा जावे। आपके अन्य धर्म कार्य अधूरे पड़े है, उनको गति प्रदान करने के लिए कृपया आप इस भावावस्था से उतरिये। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि भैया इस पवित्र भूमि पर जब मैंने गायों व गोपालको को देखा तो ऐसे महान आनंद की अनुभूति हुई कि मुझे दिन रात का ध्यान ही नहीं रहा। ऐसा आनंद वृदांवन में भी प्राप्त नहीं हुआ था। वास्तव में यहाँ तो आनन्द ही आनन्द है। यह वन ही आनंद का है। यहाँ आनंद के अतिरिक्त दूसरा कुछ नही यह आनंदवन है। इस प्रकार इस भूमि का नाम आनंदवन पड़ा था। अब पुनः इस भूमि को आनंदवन नाम का सम्बोधन प्राप्त हुआ है। भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा अनुसार प्रधुम्न के पुत्र अनिरूद्ध ने आनंदवन को केन्द्र बनाकर, मारवाड़, काठीयाबाड़, थारपारकर अर्थात मेवाड़ से लेकर गिरनार तक सिन्धु नदी, सरस्वती नदी तथा बनास नदी के किनारे गोपालकों तथा गोवंश को लेकर विकेन्द्रित कर दिया, जहाँ विस्तृत चारागाह थे। हजारों कोसों में गोचर ही गोचर पड़ा था। गोपालकों ने इन नदियों के किनारे गोसंरक्षण,गोपालन एवं गोसंवर्धन का महान कार्य प्रारम्भ किया। सुरभि, नन्दिनी व कामधेनु की संतान पुनःभगवान श्रीकृष्ण का सानिध्य पाकर निर्भय व सन्तुष्ट हो गई। दोनों तरफ सिन्धु तथा बनास नदियों का प्रवाह, भूगर्भ में सरस्वती तथा पश्चिम में अथाह समुद्र, इसके बीच में सहस्रों योजन गोचर भूमि जहाँ सेवण, भुरट, कुरी, झेरण, भरकड़ी गाठीया आदि विपुल मात्रा में प्राकृतिक घास तथा गेहूँ, बाजरा, ज्वार, मक्का, जौ, मोठ, मूंग, मतीरा आदि की मौसमी पैदावार से गायों व गोपालक किसानों की सम्पूर्ण आवश्यकता सहज ही पूरी हो जाती थी। इन गायों में से भगवान श्रीकृष्ण एक लाख गायों का दान अन्य गोपालक राजा व ब्राह्मणों को दिया करते थे।

भगवान श्रीकृष्ण के इस धरा धरती से तिरोहित होने पर नाना प्रकार के प्राकृतिक उपद्रव हुए। वायु तथा अग्नि ने अपनी मर्यादा का त्याग कर दिया। परिणाम स्वरूप समुद्र के मध्य स्थापित द्वारकापुरी तथा सिन्धु व बनास के मध्य समुद्र के किनारे पर सम्पूर्ण गोचर जलमग्न हो गया। इसके बाद लगभग दो हजार वर्ष बाद पुनः इसी भूमि पर गोसंरक्षण, गोसंवर्धन का पुनीत कार्य श्रीकृष्ण के वंशज तथा ब्राह्मणों द्वारा प्रारम्भ हुआ। थार में भाटी व सोढ़ा राजपूतों ने मारवाड़ में राजपुरोहितों तथा चैधरियों ने और काठीयावाड़ में अहीर, भरवाड़, कच्छी तथा पटेलों सहित विभिन्न गोपालक किसानों ने प्रति परिवार हजारों लाखों की संख्या में गोसंरक्षण गोपालन व गोसंवर्धन के महत्वशाली कार्य को विराट रूप प्रदान किया।
गावो विश्वस्य मातरः

आज भारत वर्ष मे ही नहीं पूरे विश्व मे सभी मानव सुखी है पर जीव मात्र की माता कहलाने का अधिकार रखने वाली वेदों द्वारा पूज्यनीय, देवताओं को भी भोग और मोक्ष प्रदान करने की शक्ति रखने वाली गौ माता आज सड़कों पर मल, गन्दगी, प्लास्टिक खाने को मजबूर है |

भगवान श्री कृष्ण की कृपा से आज भी भारत वर्ष मे ही नहीं पूरे विश्व मे कुछ ऐसे पुण्यवान, भामाशाह और अपनी माँ के कोख को धन्य करने वाले गौ भक्त भी है, जिनके सहयोग से आज भी लाखो गौवंश गौशालाओं मे, किसानों के यहाँ, अपने घर पर ही सुरक्षित है | क्या ये गौभक्त, जिनकी वजह से पूरी सृष्टी का संतुलन बना हुआ है, आगे भी इसी प्रकार गौ – सेवा में संलग्न रह सकेंगे ?

शेष मानव जाति को जिनको परमात्मा ने सोचने के लिए बुद्धि दे रखी है का भी कर्तव्य बनता है कि इस गो संवर्धन को उठाने मे, इस राम सेतु को बनाने मे ग्वाल -बालो एवं गिलहरी की तरह थोडा – थोडा यथा योग्य योगदान दे | जब हम थोडा-थोडा योगदान देंगे तो हम सभी गौभक्तों के लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं रहेगा |

शास्त्र कहता है — गौ भक्त जिस-जिस वस्तु की इच्छा करता है वह सब उसे प्राप्त होती है | स्त्रियों मे भी जो गौओं की भक्त है, वे मनोवांछित कामनाएं प्राप्त कर लेती है | पुत्रार्थी पुत्र पाता है, कन्यार्थी कन्या, धनार्थी धन, धर्मार्थी धर्म, विद्यार्थी विद्या और सुखार्थी सुख पा जाता है | विश्व भर मे कही भी गौभक्त को कुछ भी दुर्लभ नहीं है | यहाँ तक की मोक्ष भी बिना गाय के पूंछ पकडे संभव नहीं | वैतरणी पर यमराज एवं उसके गण भयभीत होकर गाय के पूंछ पकडे जीव को प्रणाम करते है |

देवताओं और दानवो के द्वारा समुद्र मंथन के वक्त ५ गायें उत्पन्न हुई, इनका नाम था- नंदा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला और बहुला | ये सभी गायें भगवान की आज्ञा से देवताओं और दानवों ने महर्षि जमदग्नि, भारद्वाज, वशिष्ट, असित और गौतम मुनि को समर्पित कर दीं | आज जितने भी देशी गौवंश भारत एवं इतर देशो मे है, वह सब इन्ही ५ गौओं की संताने है और हमारे पूर्वजो एवं ऋषियों का यह महाधन है | क्या हम सिर्फ गोत्र बताने के लिए ही अपने ऋषियों की संताने हैं? उनकी सम्पति गौ धन को बचाना हमारा कर्तव्य नहीं |

आज भारत वर्ष मे ही करोड़ों लोग सुबह – शाम देवालयों मे माथा टेक कर भगवान से मनोकामनाएँ मांगते है, पर इन मे से लाखों लोगो को यह तक भी मालूम नहीं है की जिस देवता से वे याचना कर रहे है उन्हें कुछ भी दे देने की शक्ति तभी आएगी जब हवन द्वारा अग्नि के मुख से देवताओं तक शुद्ध गौ घृत पहुंचेगा | जब हम हवन में गाय के घी से मिश्रित चरू देवताओं को अर्पण करते है | उस उत्तम हविष्य से देवता बलिष्ट एवं पुष्ट होते है | जब देवता शक्तिशाली होगा तभी अपनी शक्ती के बल पर आपकी-हमारी मनोकामनाएं पूरी करने मे समर्थ होंगे | पर जब गौवंश ही नहीं रहेगा तो शुद्ध गौ घृत कहा से आएगा? और शुद्ध गौ घृत नहीं होगा तो हवन कहा से होगा? और हवन नहीं होंगे तो देवता पुष्ट कैसे होंगे? और देवता पुष्ट नहीं होंगे तो शक्तिहीन देवता मनोकामनाएं पूर्ण कैसे करेँगे ? आज हम लोग पेड़ लगा देते है पानी खाद नहीं डालेंगे तो फल कहा से लगेंगे? यह प्रकृति के नियम के विरुद्ध है |

आज जितने भी कथाएं होती है, यज्ञ, अनुष्टान होते हैं, जप-तप होते है उनमें नाम-जप का कुछ प्रभाव पड़ता हो पर अंत मे जो यज्ञ होता है वह सफल कितने होते है यह राम को ही मालूम | क्योंकि इन यज्ञों मे शुद्ध गौ घृत का उपयोग नहीं के बराबर होता है | आज भारत वर्ष मे पूर्व की अपेक्षा यज्ञ, धर्म, कर्म अधिक हो रहे है पर फल नहीं मिलता, यज्ञ सफल नहीं होते, क्या कारण है? इसके मूल मे यही है की जिस धरती पर गौ, ब्राहमण, साधू-संत, स्त्री दुखी होते है वहां पर पुण्य कर्म फल नहीं देते |

24 October 2014

!!! हनुमानजी के ये 12 नाम लेने से टल जाते हैं संकट, जानिए इनका महत्व !!!



वर्तमान समय में हनुमानजी सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवता हैं। इसलिए इन्हें कलयुग का जीवंत देवता भी कहा जाता है। धर्म ग्रंथों में हनुमानजी के प्रमुख 12 नाम बताए गए हैं, जिनके द्वारा उनकी स्तुति की जाती है। गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीहनुमान अंक के अनुसार हनुमानजी के इन 12 नामों का जो रात में सोने से पहले व सुबह उठने पर अथवा यात्रा प्रारंभ करने से पहले पाठ करता है, उसके सभी भय दूर हो जाते हैं और उसे अपने जीवन में सभी सुख प्राप्त होते हैं। वह अपने जीवन में अनेक उपलब्धियां प्राप्त करता है। हनुमानजी की 12 नामों वाली स्तुति तथा उन नामों के अर्थ इस प्रकार हैं-


स्तुति



हनुमानअंजनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।

रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिंगाक्षोअमितविक्रम:।।

उदधिक्रमणश्चेव सीताशोकविनाशन:।

लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।

एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।

स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।

तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।

राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।।



(आन्नद रामायण 8/13/8-11)


1- हनुमान- उपरोक्त श्लोक के अनुसार हनुमानजी का पहला नाम हनुमान ही है। यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि एक बार किसी बात पर क्रोधित होकर देवराज इंद्र ने इनके ऊपर अपने वज्र का प्रहार किया था, वह वज्र सीधे इनकी ठोड़ी (हनु) पर लगा। हनु पर वज्र का प्रहार होने के कारण ही इनका नाम हनुमान पड़ा।



2- अंजनीसूनु- माता अंजनी के पुत्र होने के कारण ही हनुमान का एक नाम अंजनीसूनु भी प्रसिद्ध है।


3- वायुपुत्र


हनुमानजी का एक नाम वायुपुत्र भी है। पवनदेव के पुत्र होने के कारण ही इन्हें वायुपुत्र भी कहा जाता है।


4- महाबल


हनुमानजी के बल की कोई सीमा नहीं है। वे बलवानों में भी बलवान हैं। इसलिए इनका एक नाम महाबल भी है।



5- रामेष्ट




हनुमान भगवान श्रीराम के परम भक्त हैं। धर्म ग्रंथों में अनेक स्थानों पर वर्णन मिलता है कि श्रीराम ने हनुमान को अपना प्रिय माना है। भगवान श्रीराम को प्रिय होने के कारण ही इनका एक नाम रामेष्ट भी है।


6- फाल्गुनसुख




महाभारत के अनुसार पांडु पुत्र अर्जुन का एक नाम फाल्गुन भी है। युद्ध के समय हनुमानजी अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजित थे। इस प्रकार उन्होंने अर्जुन की सहायता की। सहायता करने के कारण ही उन्हें अर्जुन का मित्र कहा गया है। फाल्गुन सुख का अर्थ है अर्जुन का मित्र।




7- पिंगाक्ष




पिंगाक्ष का अर्थ है भूरी आंखों वाला। अनेक धर्म ग्रंथों में हनुमान का वर्णन किया गया है। उसमें हनुमानजी को भूरी आंखों वाला बताया है। इसलिए इनका एक नाम पिंगाक्ष भी है।


8- अमितविक्रम




विक्रम का अर्थ है पराक्रमी और अमित का अर्थ है बहुत अधिक। हनुमानजी ने अपने पराक्रम के बल पर ऐसे बहुत से कार्य किए, जिन्हें करना देवताओं के लिए भी कठिन था। इसलिए इन्हें अमितविक्रम भी कहा जाता है।




9- उदधिक्रमण




उदधिक्रमण का अर्थ है समुद्र का अतिक्रमण करने वाले यानी लांघने वाला। सीता माता की खोज करते समय हनुमानजी ने समुद्र को लांघा था। इसलिए इनका एक नाम ये भी है।






10- सीताशोकविनाशन




माता सीता के शोक का निवारण करने के कारण हनुमानजी का ये नाम पड़ा।




11- लक्ष्मणप्राणदाता




जब रावण के पुत्र इंद्रजीत ने शक्ति का उपयोग कर लक्ष्मण को बेहोश कर दिया था, तब हनुमानजी संजीवनी बूटी लेकर आए थे। उसी बूटी के प्रभाव से लक्ष्मण को होश आया था। इन्हें हनुमानजी को लक्ष्मणप्राणदाता भी कहा जाता है।



12- दशग्रीवदर्पहा


दशग्रीव यानी रावण और दर्पहा यानी घमंड तोडऩे वाला। दशग्रीवदर्पहा का अर्थ है रावण का घमंड तोडऩे वाला। हनुमानजी ने लंका जाकर सीता माता का पता लगाया, रावण के पुत्र अक्षयकुमार का वध किया साथ ही लंका में आग भी लगा दी। इस प्रकार हनुमानजी ने कई बार रावण का घमंड तोड़ा था। इसलिए इनका एक नाम ये भी प्रसिद्ध है।