28 June 2013

शिव पूजा,कौन सा चमत्कारी रुद्राक्ष क्यों और कैसे धारण करना



जानिए, सोमवार को किस वक्त, किस तरफ मुंह रख करें शिव पूजा?




- सुबह के समय शिव उपासना पूर्व दिशा की ओर मुंह रख करना चाहिए।
- वहीं शाम के समय शिव साधना पश्चिम दिशा की ओर मुंह रख करें। 
- इसी तरह भगवान शिव की पूजा या आराधना रात में उत्तर दिशा की ओर मुंह रख करना कामना सिद्धि के लिए शुभ मानी जाती है।


शिव भक्ति के संयम व मर्यादा मन को पवित्र कर वैचारिक और व्यावहारिक रूप से बुरे कर्मों से दूर रख दु:ख-दरिद्रता से बचाते है। असल में शिव शब्द का मूल भाव भी होता है - कल्याण, सुख व आनंद। यही कारण है कि धार्मिक मान्यता व आस्था है कि शिव की भक्ति के बिना इंसान शव के समान हो जाता है।

सुख की कामना से भगवान शिव की साधना के लिए तरह-तरह के मंत्र, स्त्रोत और स्तुतियां शास्त्रों में बताई गई है। किंतु इन सभी उपासना के तरीकों का फल तभी बताया गया है, जब उनको शिव भक्ति के लिए बताई मर्यादाओं के साथ किया जाए।


इसी कड़ी में शास्त्रों यह भी बताया गया है कि सोमवार या किसी भी शिव भक्ति के विशेष दिन कामनासिद्धि के लिए शिव की आराधना किस वक्त किस दिशा में बैठकर करना बहुत ही शुभ और प्रभावशाली होती है। जानते हैं -


सोमवार को इस मंत्र से शिव पूजा कर दूर करें पैसों की परेशानी


मानवीय जीवन में धन का अभाव तन और मन को भी कमजोर करने वाला होता है। यह दरिद्रता के रूप मे इंसान के मान-सम्मान और आत्मविश्वास कम करती है। दरअसल, धन के अभाव से भी ज्यादा बुरी स्थिति विचारों की द्ररिदता से पैदा हो सकती है। जिससे व्यक्ति दूसरों की उपेक्षा और अपमान का सामना करता है। इससे बचाव के लिए व्यवहार और विचारों में बदलाव व गौर करना जरूरी है।


धार्मिक उपायों में इसके लिए शिव उपासना की अहमियत शास्त्रों में बताई गई है। क्योंकि शिव जगतगुरु कहलाते हैं, जो ज्ञान, विवेक, तप के रूप में शक्ति, संकल्प और पुरुषार्थ की प्रेरणा देते हैं। शिव भक्ति से दरिद्रता और अभाव को दूर रखने के लिए शिव के यहां बताए विशेष मंत्र से शिव पूजा बहुत ही प्रभावी मानी गई है।

जिसमें सोमवार को शिव उपासना के विशेष दिन बहुत ही शुभ फल मिलता है -

- सुबह स्नान के बाद भगवान शंकर के साथ माता पार्वती और नंदी को गंगाजल या पवित्र जल चढ़ावें।

- इसके बाद शिवजी को खासतौर पर चंदन, अक्षत, बिल्वपत्र, धतूरा या आंकड़े के फूल चढ़ाएं। नीचे लिखा शिव मंत्र धन व पैसों की परेशानियों को दूर करने की कामना से बोलें -

मन्दारमालाङ्कुलितालकायै कपालमालांकितशेखराय।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।
श्री अखण्डानन्दबोधाय शोकसन्तापहा​रिणे।
सच्चिदानन्दस्वरूपाय शंकराय नमो नम:॥

- भगवान शिव को घी, शक्कर, गेंहू के आटे से बने प्रसाद का भोग लगाएं। इसके बाद धूप, दीप से आरती करें।


धनवान बना दे इतने दानों की रुद्राक्ष माला से शिव मंत्र जप


शिव की प्रसन्नता से जीवन में सुखों की चाहत के लिए अनेक शिव भक्त तरह-तरह से शिव को मनाते हैं। चूंकि शिव भक्ति सरल और जल्दी ही फल देने वाली मानी जाती है। इसलिए शिव उपासना के विशेष दिनों में शिव पूजा और जागरण के दौरान शिव मंत्र जप का बहुत महत्व है।

धार्मिक दृष्टि से शिव मंत्र जप रुद्राक्ष की माला से करना बहुत प्रभावी माना जाता है। किंतु अनेक भक्त इस बात से अनजान होते हैं कि अलग-अलग रुद्राक्ष के दानों की रुद्राक्ष माला से शिव मंत्र जप अलग-अलग कामनाओं को पूरी करने वाले होते हैं।



यहां जानते हैं मंत्र जप के दौरान कितने रुद्राक्ष की माला में कितने दाने हों और उसका क्या फल मिलता है?


  • - 30 रुद्राक्ष के दानों वाली माला से मंत्र जप धन-संपत्ति देने वाली होती है।
  • - 27 दानों की रुद्राक्ष माला से मंत्र जप अच्छी सेहत और ऊर्जा देने वाली होती है।
  • - 25 दानों की रुद्राक्ष माला से मंत्र जप मोक्ष देने वाली होती है।
  • - 15 रुद्राक्ष की माला से मंत्र जप तंत्र सिद्धि, अभिचार कर्म के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है।
  • - 54 दानों की रुद्राक्ष माला से मंत्र जप मानसिक अशांति दूर करती है।
  • - 108 दानों की रुद्राक्ष की माला सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। क्योंकि इस माला से मंत्र जप सांसारिक जीवन की हर कामना सिद्ध करने वाली मानी जाती है।


शास्त्रों में देवाधिदेव भगवान शिव को शर्व नाम से पुकारा गया है। जिसका अर्थ है कि शिव सारे कष्टों का नाश करने वाले हैं। भगवान शिव की उपासना भौतिक जीवन की कामनाओं को पूरा करने वाली मानी गई है। इसलिए जीवन में आने वाली हर तरह की परेशानियों को दूर करने व कामनापूर्ति के लिए शिव उपासना की विशेष तिथि, वार या घडिय़ों में विशेष मंत्र से शिव पूजा बहुत ही शुभ मानी गई है।

शिव आराधना के ऐसे ही दिनों में सोमवार व अष्टमी का बहुत महत्व है।  जानिए इस दिन इंसानी जीवन में कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को पूरा करने में अहम धन कामना को पूरा करने व आर्थिक परेशानियों से छुटकारे के लिए शिव के विशेष मंत्र और पूजा की सरल विधि -

- सुबह स्नान के बाद भगवान शिव की पूजा के लिए पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठें।

- किसी शिवालय में जाकर गंगा या पवित्र जल से जलधारा अर्पित करें। किसी विद्वान ब्राह्मण से दूध, जल, शहद, घी और शक्कर से शिव अभिषेक कराया जाना भी श्रेष्ठ है।

- शिव के साथ शिव परिवार की चंदन, फूल, गुड, जनेऊ, चंदन, रोली, कपूर से यथोपचार पूजा और अभिषेक पूजन करना चाहिए।

- भगवान शिव को सफेद फूल, बिल्वपत्र, धतूरा या आंकडे के फूल भी चढ़ाएं। सोमवार को शिव को कच्चे चावल पूजा में चढ़ाकर नीचे लिखा विशेष मंत्र बोलें व शिव की आरती धूप, दीप व कर्पूर से करें -

नमो निष्कलरूपाय नमो निष्कलतेजसे।
नम: सकलनाथाय नमस्ते सकलात्मने।।
नम: प्रणववाच्याय नम: प्रणवलिङ्गिने।
नम: सृष्टयादिकर्त्रे च नम: पञ्चमुखाय ते।।
- शिव स्त्रोतों और स्तुति का पाठ करें



      महाशिवरात्रि पर रुद्राक्ष का यह छोटा-सा प्रयोग देगा बड़े-बड़े सुख



हर इंसान की चाहत और कोशिश होती है जीवन सुखों से सराबोर हो। जिनको पाने के लिए तन, मन और धन से संपन्नता यानी तन निरोगी रखने, मन शांत और संतुलित होने और सुख-साधनों को पाने के लिए भरपूर आमदनी को तरजीह दी जाती है। धर्म का नजरिया इन सभी सुखों को पाने के लिए सत्य और पावनता को हर रूप में अपनाने पर ही जोर देता है।

हिन्दू धर्म में सत्य और पवित्रता से सुखद जीवन के लिए रुदा्रक्ष धारण करना और गंगा स्नान बहुत ही पुण्यदायी और पापनाशक माने गए हैं। क्योंकि रुद्राक्ष शिव का ही साक्षात् स्वरूप माना गया है। यही नहीं सत्य ही शिव का रूप और भक्ति कही गई है।

वहीं गंगा देव नदी ही नहीं बल्कि मां के रूप में पूजनीय है। क्योंकि पौराणिक मान्यताओं में गंगा स्वर्ग से भूमि पर राजा भगीरथी के घोर तप से आई। इस दौरान गंगा के वेग को भगवान शंकर ने अपनी जटाओं से काबू किया। यही कारण है रुद्राक्ष व गंगा जल स्पर्श मात्र ही सारे सुख और समृद्धि देने वाला माना गया है।

ऐसे ही आस्थावान लोगों के लिए महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां बताया जा रहा है शास्त्रों में बताया रुद्राक्ष का एक छोटा-सा प्रयोग, जो गंगा स्नान का पुण्य और फल देता है। यह उपाय शिव भक्ति के खास मौकों व शुभ घड़ी में न चूकें। 



चाहें खूब पैसा व सुख-शांति, तो इस मंत्र से चढाएं 


शिव को गन्ने का रस


संताप पीड़ा का ऐसा रूप है, जो तमाम सुख-सुविधाओं के बीच रहते हुए भी व्यक्ति को सुख और शांति से नहीं रहने देता। जिस तरह ताप शरीर तप जाता है, ठीक वैसे ही संताप भी अंदर ही अंदर इंसान को जलाते हैं। खासतौर पर धन का अभाव व अशांति।

ऐसे ही दु:ख और संताप को दूर रखने के लिए शास्त्र सुख हो या दु:ख हर हालात में ईश्वर को स्मरण करने का महत्व बताते हैं। क्योंकि देव उपासना मन में आत्मविश्वास और आशा बनाए रखती है। 




हिन्दू धर्म में रुत् यानी दु:ख या संताप दूर करने वाले देवता के रूप में भगवान रूद्र यानी शिव पूजनीय है। खासतौर पर शिव नवरात्रि  में मात्र जल धारा से ही प्रसन्न होने वाले देवता आशुतोष शिव का विशेष फल के रसों की धारा को अर्पित करना तो बहुत ही शुभ माना गया है।

अगर आप भी दु:ख या अभावों से बचना चाहते हैं ते तो इस शुभ घड़ी में शिव का यहां बताए जा रहें मंत्र के साथ गन्ने के रस की धारा अर्पित करें। शिव का गन्ने के रस से अभिषेक जीवन में धन, सुख व शांति की मिठास घोल हर कामनासिद्धि करने वाला माना गया है। 



जानिए यह आसान उपाय- 

- सुबह स्नान कर यथासंभव सफेद वस्त्र पहन घर या शिवालय में शिवलिंग को पवित्र जल से स्नान कराएं।

- स्नान के बाद यथाशक्ति गन्ने के रस की धारा शिवलिंग पर नीचे लिखें मंत्र या पंचाक्षरी मंत्र नम: शिवाय बोलकर अर्पित करें -

रूपं देहि जयं देहि भाग्यं देहि महेश्वर:।

पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान्कामांश्च देहि मे।।

- गन्ने के रस से अभिषेक के बाद पवित्र जल से स्नान कराकर गंध, अक्षत, आंकड़े के फूल, बिल्वपत्र शिव को अर्पित करें। सफेद व्यंजनों का भोग लगाएं। किसी शिव मंत्र का जप करें।

- धूप, दीप व कर्पूर आरती करें।

- अंत में क्षमा मांगकर दु:खों से मुक्ति व रक्षा की कामना करें।


शिवरात्रि: शिवलिंग पर चढ़ाएं कच्चा दूध, 
हो जाओगे मालामाल...

शिव महापुराण के अनुसार सृष्टि निर्माण से पहले केवल शिवजी का ही अस्तित्व बताया गया है। भगवान शंकर ही वह शक्ति है जिसका न आदि है न अंत। इसका मतलब यही है कि शिवजी सृष्टि के निर्माण से पहले से हैं और प्रलय के बाद भी केवल महादेव का ही अस्तित्व रहेगा। अत: इनकी भक्ति मात्र से ही मनुष्य को सभी सुख, धन, मान-सम्मान आदि प्राप्त हो जाता है।

शास्त्रों के अनुसार भगवान शंकर को भोलेनाथ कहा गया है अर्थात् शिवजी अपने भक्तों की आस्था और श्रद्धा से बहुत ही जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। शिवजी के प्रसन्न होने के अर्थ यही है कि भक्त को सभी मनोवांछित फलों की प्राप्ति हो जाती है। भोलेनाथ को प्रसन्न करने के कई उपाय बताए गए हैं। इनकी पूजा, अर्चना, आरती करना श्रेष्ठ मार्ग हैं। प्रतिदिन विधिविधान से शिवलिंग का पूजन करने वाले श्रद्धालुओं को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

शिवजी को जल्द ही प्रसन्न के लिए शिवलिंग पर प्रतिदिन कच्चा गाय का दूध अर्पित करें। गाय को माता माना गया है अत: गौमाता का दूध पवित्र और पूजनीय है। इसे शिवलिंग पर चढ़ाने से महादेव श्रद्धालु की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।




दूध की प्रकृति शीतलता प्रदान करने वाली होती है और शिवजी को ऐसी वस्तुएं अतिप्रिय हैं जो उन्हें शीतलता प्रदान करती हैं। इसके अलावा ज्योतिष में दूध चंद्र ग्रह से संबंधित माना गया है। चंद्र से संबंधित सभी दोषों को दूर करने के लिए प्रति सोमवार को शिवजी को दूध अर्पित करना चाहिए। मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए यह भी जरूरी है कि आपका आचरण पूरी तरह धार्मिक हो। ऐसा होने पर आपकी सभी मनोकामनाएं बहुत ही जल्द पूर्ण हो जाएंगी।यह सरल उपाय है - रुद्राक्ष को सिर पर रखकर नीचे बताए मंत्र बोलकर स्नान करना। जिसके लिए एक रुद्राक्ष सिर पर धारण करें। इसके बाद स्नान के लिए जल सबसे पहले सिर पर डालें और यह मंत्र बोलें -


रुद्राक्ष मस्तकै धृत्वा शिर: स्नानं करोति य:।
गंगा स्नान फलं तस्य जायते नात्र संशय:।। 


इसके अलावा ॐ नम: शिवाय यह मंत्र भी मन ही मन स्मरण करें। इस मंत्र में रुद्राक्ष को सिर पर रखकर स्नान का फल गंगा स्नान के समान बताया गया है। स्नान का यह तरीका तन के साथ मन को भी पवित्र और सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।

कौन सा चमत्कारी रुद्राक्ष क्यों और कैसे धारण करना चाहिए?


शिव पुराण के अनुसार शिवजी ने ही इस सृष्टि का निर्माण ब्रह्माजी द्वारा करवाया है। इसी वजह से हर युग में सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए शिवजी का पूजन सर्वश्रेष्ठ और सबसे सरल उपाय है। इसके साथ शिवजी के प्रतीक रुद्राक्ष को मात्र धारण करने से ही भक्त के सभी दुख दूर हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

रुद्राक्ष कई प्रकार के रहते हैं। सभी का अलग-अलग महत्व होता है। अधिकांश भक्त रुद्राक्ष धारण करते हैं। इन्हें धारण करने के लिए कई प्रकार के नियम बताए गए हैं, नियमों का पालन करते हुए रुद्राक्ष धारण करने पर बहुत जल्द सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगते हैं। रुद्राक्ष धारण करने से पूर्व इनका विधिवत पूजन किया जाना चाहिए इसके बाद मंत्र जप करते हुए इन्हें धारण किया जा सकता है।


एक मुखी रुद्राक्ष, दोमुखी रुद्राक्ष, तीन मुखी रुद्राक्ष, चार मुखी रुद्राक्ष या पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। सामान्यतया पंचमुखी रुद्राक्ष आसानी से उपलब्ध हो जाता है। जानिए कौन सा रुद्राक्ष क्यों और किस मंत्र के साथ धारण करें-



एक मुखी रुद्राक्ष- जिन लोगों को लक्ष्मी कृपा चाहिए और सभी सुख-सुविधाएं चालिए उन्हें ये रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। इस रुद्राक्ष का मंत्र -ऊँ ह्रीं नम:।।शिव मंदिर के बाहर बैठे नंदी की मूर्ति क्यों होती है?


शिव परिवार के बारे में सबसे अद्भुत बात यह है कि शिवजी के परिवार के हर एक सदस्य का वाहन दुसरे के वाहन का भोजन है शिव को महाकाल माना जाता है लेकिन उनका वाहन बैल है। जिसे नंदी कहते हैं। इसीलिए हर शिव मंदिर में शिवजी के सामने नंदी बैठा होता है। दरअसल शिवजी का वाहन नंदी पुरुषार्थ यानी मेहनत का प्रतीक है। अब सवाल यह बनता है कि नंदी शिवलिंग की ओर ही मुख करके क्यों बैठा होता है? जानते हैं दरअसल नंदी का संदेश है कि जिस तरह वह भगवान शिव का वाहन है। ठीक उसी तरह हमारा शरीर आत्मा का वाहन है।


जैसे नंदी की नजर शिव की ओर होती है, उसी तरह हमारी नजर भी आत्मा की ओर हो। हर व्यक्ति को अपने दोषों को देखना चाहिए। हमेशा दूसरों के लिए अच्छी भावना रखना चाहिए। नंदी का इशारा यही होता है कि शरीर का ध्यान आत्मा की ओर होने पर ही हर व्यक्ति चरित्र, आचरण और व्यवहार से पवित्र हो सकता है। इसे ही आम भाषा में मन का साफ होना कहते हैं। जिससे शरीर भी स्वस्थ होता है और शरीर के निरोग रहने पर ही मन भी शांत, स्थिर और दृढ़ संकल्प से भरा होता है। इस प्रकार संतुलित शरीर और मन ही हर कार्य और लक्ष्य में सफलता के करीब ले जाता है।

करें शिव के इन 11 चमत्कारी मंत्रों का स्मरण
शिव का एक नाम है - मनकामनेश्वर यानी शिव ऐसे देवता हैं, जिनकी भक्ति और उपासना मन की सारी इच्छाओं को पूरा करती है। यही नहीं यह कामनाओं को वश में रख दोष और विकारों से मुक्त रखने वाली भी मानी गई है।

शास्त्रों के मुताबिक शिव अनेक स्वरूपों सृष्टि, रचना और पालन को नियंत्रित करते हैं। शिव के इन स्वरूपों में पूजनीय है - एकादश रूद्र। जिनका स्मरण सभी सांसारिक व आध्यात्मिक कामनाओं को पूरा करने वाला माना गया है।

शिव भक्ति के विशेष दिनों या तिथियों में शिव के इन स्वरूपों का विशेष और सरल मंत्रों से स्मरण मात्र चमत्कारी माना गया है। क्योंकि यह मुश्किल और अशुभ घड़ी से छुटकारा देने वाले होते हैं। जानते हैं शिव के एकादश रूद्र के ये सरल नाम मंत्र -

- सोमवार या शिव तिथि पर शिवलिंग की पंचोपचार पूजा के बाद मन ही मन या रुद्राक्ष माला से कुश आसन पर बैठ इन मंत्रों का जप करना मंगलकारी व मनोरथ सिद्धि करने वाला होता है -


ऊँ अघोराय नम:
ऊँ पशुपतये नम:
ऊँ शर्वाय नम:
ऊँ विरूपाक्षाय नम:
ऊँ विश्वरूपिणे नम:
ऊँ त्र्यम्बकाय नम:
ऊँ कपर्दिने नम:
ऊँ भैरवाय नम:
ऊँ शूलपाणये नम:
ऊँ ईशानाय नम:
ऊँ महेश्वराय नम:

महामृत्युंजय मंत्र जप में जरूरी है सावधानियां


महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है, लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियां रखना चाहिए जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहे। 

ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात्

अतः जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  • 1. जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें।
  • 2. एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
  • 3. मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
  • 4. जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।
  • 5. रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
  • 6. माला को गौमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गौमुखी से बाहर न निकालें।
  • 7. जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।
  • 8. महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।
  • 9. जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।
  • 10. महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
  • 11. जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।
  • 12. जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधर न भटकाएं।
  • 13. जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
  • 14. मिथ्या बातें न करें।
  • 15. जपकाल में स्त्री सेवन न करें।
  • 16. जपकाल में मांसाहार त्याग दें।
दो मुखी- सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति के इसे धारण करना चाहिए। इसका मंत्र है। -ऊँ नम:।।

तीन मुखी- जिन लोगों को विद्या प्राप्ति की अभिलाषा है उन्हें मंत्र (ऊँ क्लीं नम:) के साथ तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

चार मुखी- इस रुद्राक्ष को धारण करने वाले भक्त को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसका मंत्र-ऊँ ह्रीं नम:।।

पांच मुखी- जिन भक्तों को सभी परेशानियों से मुक्ति चाहिए और मनोवांछित फल प्राप्त करने की इच्छा है उन्हें पंच मुखी धारण करना चाहिए। इसका मंत्र है - ऊँ ह्रीं नम:।
बड़े पद व तरक्की की बाधा दूर करेगी शिव की यह छोटी-सी मंत्र स्तुति

जीवन में सृजन या रचना का भाव, नई सोच या नयापन ही किसी भी रूप या क्षेत्र में इंसान को जल्द से जल्द ऊंचा मुकाम व पहचान देता है। व्यावहारिक रूप से ऐसी विचार शक्ति को पाना लगन, अध्ययन और मेहनत से संभव है। धार्मिक नजरिए से इसके लिए देवकृपा भी अहम होती है।




यही कारण है कि धार्मिक उपायों में ब्रह्मदेव व शिव की उपासना विचार, गुण व श्क्ति देने वाली मानी गई है। क्योंकि ब्रह्मदेव सृष्टि के रचनाकार तो शिव का निर्गुण व निराकार रूप शिवलिंग भी सृजन का प्रतीक माना गया है। इसलिए शास्त्रों में शिव भक्ति के विशेष दिन व तिथियों जैसे अष्टमी, चतुर्दशी व सोमवार पर ब्रह्मदेव द्वारा शिव भक्ति में रची गई एक छोटी सी शिव मंत्र स्तुति व तरक्की व पद की कामना के लिए बड़ा ही महत्व है।

इस स्तुति में स्तुति शिव की शक्तियों व स्वरूप की अद्भुत महिमा प्रकट की गई है। शिव की स्वामित्व वाली अष्टमी तिथि पर इसका स्मरण मनोरथ सिद्धि करता है।

- अष्टमी, चतुर्दशी, प्रदोष या सोमवार की शाम तिल मिले दूध या जल से भरे कलश में तिल मिलाकर इस ब्रह्मदेव द्वारा रची इस शिव स्तुति को बोलते हुए शिवलिंग का जल या दुग्ध धारा से अभिषेक करें -


नमस्ते भगवान रुद्र भास्करामित तेजसे।

नमो भवाय देवाय रसायाम्बुमयात्मन।1।
शर्वाय क्षितिरूपाय नंदीसुरभये नमः।
ईशाय वसवे सुभ्यं नमः स्पर्शमयात्मने।2।
पशूनां पतये चैव पावकायातितेजसे।
भीमाय व्योम रूपाय शब्द मात्राय ते नमः।3।
उग्रायोग्रास्वरूपाय यजमानात्मने नमः।
महाशिवाय सोमाय नमस्त्वमृत मूर्तये।4।


- मंत्र स्तुति बोलने के बाद शिव का गंध, अक्षत, बिल्वपत्र, धतुरा, आंकड़ा अर्पित कर दूध से बनी मिठाईयों का भोग लगाए व शिव की धूप, दीप व कपूर्र आरती, क्षमाप्रार्थना कर सफल जीवन की कामना करें।सोमवार को शिव पूजा में ये उपाय फटाफट पूरी करे हर ख़्वाहिश



शिव का नाम मात्र ही जीवन को संवारने का महामंत्र है। क्योंकि वह कल्याणकर्ता ही नहीं बल्कि परोपकार और कल्याण के भाव की प्रेरणा व ऊर्जा से भर देता है। शास्त्रों में बताया शिव चरित्र अद्भुत गुण, शक्तियों और महिमा से भरपूर होने पर भी वैराग्य संपन्न हैं।

शिव के इस चरित्र में शिव परिवार भी शामिल है। क्योंकि गृहस्थ जीवन के लिए शिव व उनका परिवार विपरीत हालात से तालमेल व संतुलन बैठाकर हर मुश्किलों से पार पाने का संदेश देता है। शिव परिवार के प्राणी वाहनों का स्वाभाविक शत्रुता होने पर भी साथ रहना इसका प्रमाण भी है। इस तरह शिव परिवार के हर सदस्य यानी मां पार्वती, गणेश व कार्तिक की भक्ति संकटमोचक व शक्ति संपन्नता देने वाली ही है।



यही कारण है कि शिव उपासना का विशेष दिन सोमवार, व्यर्थ परेशानियों से छुटकारे व कामनासिद्धि के लिए भक्तों के बीच विशेष महत्व रखता है। इस दिन व्रत व पूजा शुभ मानी जाती है। सोमवार व्रत संभव न होने पर शास्त्रों में बताए पूजा के कुछ सरल उपाय शिव पूजा में अपनाना भी कष्टों का अंत करने वाले माने गए हैं।

जानें ये आसान उपाय - 


  • - पारिवारिक अशांति व तनाव दूर करने के लिए गाय के दूध से शिव अभिषेक बहुत ही मंगलकारी है।
  • - काम, आजीविका, नौकरी में तरक्की या अच्छे रोजगार की कामना है तो शिवलिंग का शहद की धारा से अभिषेक करें।
  • - लंबी या लाइलाज बीमारी से तंग हैं तो पंचमुखी शिवलिंग पर तीर्थ का जल अर्पित करने से रोगमुक्त होंगे। 
  • - सोमवार को शिवलिंग में आंकड़े का फूल या धतूरा चढ़ाने से पारिवारिक, कार्यक्षेत्र या अदालती विवादों से छुटकारा या मनचाहे नतीजे मिलते हैं।
  • - मान्यताओं में शिव को भांग प्रेमी भी माना जाता है। दूध में भांग मिलाकर मानसिक परेशानियों से मुक्ति पाएं।
  • - सोमवार कालसर्प दोष शांति के लिए बहुत शुभ है। इसलिए इसके लिए जिम्मेदार राहु ग्रह के 18000 मंत्र जप किसी विद्वान ब्राह्मण से जानकर अवश्य करें।
  • - इन सब उपायों में से कोई भी न कर सके तो कम से कम सोमवार शिव को पावन जल और बिल्वपत्र ही अर्पित कर दें। इससे जीवन में हो रही हर उथल-पुथल थम जाएगी।
इस 1 शिव मंत्र से ही बंध जाएगा परेशानियों का पुलिंदा भगवान शिव 'हर' नाम से भी पूजनीय है। जिसके पीछे धार्मिक आस्था से यही भाव है कि शिव भक्त की पुकार पर उसकी सभी कष्ट व पीड़ाओं को हर यानी हरण कर लेते हैं। पौराणिक प्रसंग भी उजागर करते हैं कि चाहे वह समुद्र मंथन से निकले हलाहल यानी विष को पीने की बात हो या स्वर्ग से उतरी देव नदी गंगा के वेग को थामने के लिए उसे अपनी जटाओं में स्थान देने की बात, शिव ने संसार के संकटों को कल्याण भाव से हर लिया।


यही कारण है कि सांसारिक जीवन में हर परेशानियों से मुक्ति या कामनासिद्धि के लिए हर यानी शिव का ध्यान बहुत ही मंगलकारी माना जाता है। शिव उपासना की विशेष घडिय़ों में सोमवार का दिन बहुत शुभ है।


सोमवार की मंगल घड़ी में अगर नीचे लिखे सरल मंत्र से शिवलिंग की सामान्य पूजा भी करें तो यह पीड़ा व कष्टों से जल्द निजात दिलाने वाला उपाय माना गया है। जानते हैं विशेष शिव मंत्र, जिसमें शिव की अद्भुत महिमा व स्वरूप की वंदना है -



  • - सोमवार को स्नान के बाद स्वच्छ व सफेद वस्त्र पहन शांत मन से शिवालय या घर पर स्फटिक या धातु से बनी शिवलिंग को खासतौर पर शांति की कामना से दूध व शुद्ध जल से स्नान कराएं।
  • - शिव को सफेद चंदन, वस्त्र, अक्षत, बिल्वपत्र, सफेद आंकड़े के फूल व श्रीफल यानी नारियल पंचाक्षरी मंत्र ऊँ नम: शिवाय बोलते हुए चढाएं व पूजा के बाद नीचे लिखे शिव का श्रद्धा से स्मरण या जप करें -
  • शिवो गुरु: शिवो देव: शिवो बन्धु: शरीरिणाम्। शिव आत्मा शिवो जीव: शिवादन्यन्न किञ्चन।।
  • इसमें शिव की महिमा है कि शिव से अलग कुछ भी नहीं है, यानी शिव ही गुरु है, शिव देव हैं, शिव सभी प्राणियों के बन्धु हैं, शिव ही आत्मा है और शिव ही जीव हैं।
  • - इस मंत्र स्मरण व पूजा के बाद दूध की मिठाई का भोग लगा शिव की आरती धूप, दीप व कर्पूर से करें। प्रसाद ग्रहण कर सुकूनभरे जीवन की कामना से सिर पर शिव को अर्पित सफेद चंदन लगाएं।


शिव पूजा में इस आसान उपाय से कमाएंगे भरपूर पैसा


भौतिक सुखों को पाने के लिए धन की कामना भी अहम होती है। जिसे पूरा करने के लिए व्यावहारिक कर्मों के साथ धार्मिक कर्मों से ईश्वर की शरणागति भी सुखदायी मानी गई है। शास्त्रों के मुताबिक सुखों के ही देवता माने गए हैं - शिव।

धार्मिक आस्था है कि खुशहाली की कामना से जो शिव की शरण लेकर शुभ कर्म करता है। उसे शिव कृपा से सभी सुख प्राप्त होते हैं। शिव पुराण के मुताबिक सोमवार के दिन शिव पूजा में विशेष पूजा सामग्रियों के साथ-साथ तरह-तरह के अनाज चढ़ाने से भी कामनासिद्धी होती है। जिनमें धन कामना भी एक है।


जानते हैं शिव पूजा में किस तरह के अनाज चढ़ाकर धन कामना के अलावा कौन-से सुखों की इच्छा पूरी होती है?

  • - देव पूजा में अक्षत यानी चावल का चढ़ावा बहुत ही शुभ माना जाता है। शिव पूजा में भी महादेव या शिवलिंग के ऊपर चावल, जो टूटे न हो चढ़ाने से लक्ष्मी की कृपा यानी धन लाभ होता है।
  • - शिव की गेंहू चढ़ाकर की गई पूजा से संतान सुख मिलता है।
  • - शिव की तिल से पूजा करने पर मन, शरीर और विचारों के दोष का अंत हो जाता है।
  • - जौ चढ़ाकर शिव की पूजा अंतहीन सुख देती है।
  • - शिव को मूंग चढ़ाने से विशेष मनोरथ पूरे होते हैं।
  • - अरहर के पत्तों से शिव पूजा अनेक तरह के दु:ख दूर करती है।


ऊंऊंऊं भगवान शिव की पूजा और पूजा विधि ऊंऊंऊं





भगवान शिव की पूजा और पूजा विधि:
भगवान शिव ने भगवती के आग्रह पर अपने लिए सोने की लंका का निर्माण किया था । गृहप्रवेश से पूर्वपूजन के लिए उन्होने अपने असुर शिष्य व प्रकाण्ड विद्वान रावण कोआमंत्रित किया था । दक्षिणा के समय रावण ने वह लंका ही दक्षिणा में मांग ली और भगवान शिव ने सहजता से लंका रावण को दान में दे दी तथा वापस कैलाश लौट आए । ऐसी सहजता के कारण ही वे ÷भोलेनाथ' कहलाते हैं । ऐसे भोले भंडारी की कृपा प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होने केलिए शिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण पर्व है।




ॐ ओं जों सः ओं भूर्भुवः स्वाहा |
ॐ त्रियम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात्.|
हों ओं जू सः ओं भूर्भुवः स्वाहा | 

भगवान शिव का स्वरुप अन्यदेवी देवताओं से बिल्कुल अलग है। जहां अन्य देवी-देवताओं को वस्त्रालंकारों से सुसज्जित और सिंहासन पर विराजमान माना जाता है,वहां ठीक इसके विपरीत शिव पूर्ण दिगंबर हैं, अलंकारों के रुप में सर्प धारण करते हैं और श्मशान भूमि पर सहज भाव से अवस्थित हैं। उनकी मुद्रा में चिंतन है, तो निर्विकार भाव भी है! आनंद भी है और लास्य भी। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक भी माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। यही नही वे संगीत केआदि सृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वास्तव में भगवान शिव देवताओं में सबसे अद्भुत देवता हैं । वे देवों के भी देव होने के कारण÷महादेव' हैं तो, काल अर्थात समय से परे होने के कारण ÷महाकाल' भी हैं । वे देवताओं के गुरू हैं तो, दानवों के भी गुरू हैं । देवताओं में प्रथमाराध्य, विनों के कारक वनिवारण कर्ता, भगवान गणपति के पिता हैं तो, जगद्जननी मां जगदम्बा के पति भी हैं ।वे कामदेव को भस्म करने वाले हैं तो, ÷कामेश्वर' भी हैं । तंत्र साधनाओं के जनक हैं तो संगीत के आदिगुरू भी हैं । उनका स्वरुप इतना विस्तृत है कि उसके वर्णन का सामर्थ्य शब्दों में भी नही है।सिर्फ इतना कहकर ऋषि भी मौन हो जाते हैं किः- 


असित गिरिसमम स्याद कज्जलम सिंधु पात्रे, सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी ।

लिखति यदि गृहीत्वा शारदासर्वकालम, तदपि तव गुणानाम ईश पारम न याति॥


अर्थात यदि समस्त पर्वतों को, समस्त समुद्रों के जल में पीस कर उसकी स्याही बनाइ जाये, और संपूर्ण वनों के वृक्षों को काटकर उसको कलम या पेन बनाया जाये और स्वयं साक्षात, विद्या की अधिष्ठात्री, देवी सरस्वती उनके गुणों को लिखने के लिये अनंत काल तक बैठी रहें तो भी उनके गुणों का वर्णन कर पाना संभव नही होगा। वह समस्त लेखनी घिस जायेगी! पूरी स्याही सूख जायेगी मगर उनका गुण वर्णन समाप्त नही होगा। 




ऐसे भगवान शिव का पूजन अर्चन करना मानव जीवन का सौभाग्य है ।
भगवान शिव के पूजन की अनेकानेक विधियां हैं। इनमें से प्रत्येक अपने आप में पूर्ण है और आप अपनी इच्छानुसार किसी भी विधि से पूजन या साधना कर सकते हैं। भगवान शिव क्षिप्र प्रसादी देवता हैं,अर्थात सहजता से वे प्रसन्न हो जाते हैं और अभीप्सितकामना की पूर्ति कर देते हैं। 

भगवान शिव के पूजन की कुछ सहज विधियां प्रस्तुत कररहा हूं। इन विधियों से प्रत्येक आयु, लिंग, धर्म या जाति का व्यक्ति पूजन कर सकता हैऔर भगवान शिव की यथा सामर्थ्य कृपा भी प्राप्त कर सकता है।



भगवान शिव पंचाक्षरी मंत्रः-

॥ ऊं नमः शिवाय ॥

यह भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र है। इसमंत्र का जाप आप चलते फिरते भी कर सकते हैं। अनुष्ठान के रूप में इसका जाप ग्यारहलाख मंत्रों का किया जाता है । विविधकामनाओं के लिये इस मंत्र का जाप किया जाता है।


बीजमंत्र संपुटित महामृत्युंजयशिव मंत्रः-



॥ ॐ हौं ॐ जूं ॐ सः ॐ भूर्भुवः ॐ स्वः ॐ त्रयंबकंयजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम, उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌ ॐ स्वः ॐ भूर्भुवः ॐ सः ॐ जूं ॐ हौं ॐ ॥

इस मंत्र का अर्थ है : 

हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं… उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए… जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं…

भगवान शिव का एक अन्य नाम महामृत्युंजय भी है।जिसका अर्थ है, ऐसा देवता जो मृत्यु पर विजय प्राप्त कर चुका हो। यह मंत्र रोग और अकाल मृत्यु के निवारण के लिये सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसका जाप यदि रोगी स्वयं करे तो सर्वश्रेष्ठ होता है। यदि रोगी जप करने की सामर्थ्य से हीन हो तो, परिवार का कोई सदस्य या फिर कोई ब्राह्‌मण रोगी के नाम से मंत्र जाप कर सकता है। इसके लिये संकल्प इस प्रकार लें, ÷÷मैं (अपनानाम) महामृत्युंजय मंत्र का जाप, (रोगी का नाम) के रोग निवारण के निमित्त कर रहा हॅूं,भगवान महामृत्युंजय उसे पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें''। इस मंत्र के जाप के लिये सफेद वस्त्र तथा आसन का प्रयोग ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है।रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करें।


शिवलिंग की महिमा

भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है। इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है, इसके बारे में कहा गया है कि,

मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः, मणेः कोटि गुणं बाणो,

बाणात्कोटि गुणं रसः रसात्परतरं लिंगं न भूतो न भविष्यति ॥




अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिव लिंगके पूजन से, स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से, मणि से करोड गुणा ज्यादाफल बाण लिंग से तथा बाण लिंग से करोड गुणा ज्यादा फल रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है। आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग न तो बना है और न ही बन सकता है।

शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होनेवाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी अत्यंतलाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करनेवाले माने गये हैं। यदि आपके पासशिवलिंग न हो तो अपने बांये हाथ केअंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजनकर सकते हैं । शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होतातब तक शिवकृपा नही मिल सकती।

शिवलिंग पर अभिषेक या धारा

भगवान शिव अत्यंत ही सहजता से अपने भक्तों की मनोकामना की पूर्ति करने के लिए तत्पर रहते है। भक्तों के कष्टों का निवारण करने में वे अद्वितीय हैं। समुद्र मंथन के समय सारे के सारे देवता अमृत के आकांक्षी थे लेकिन भगवान शिव के हिस्से मेंभयंकर हलाहल विष आया। उन्होने बडी सहजता से सारे संसार को समाप्त करने में सक्षम उस विष को अपने कण्ठ में धारण किया तथा ÷नीलकण्ठ' कहलाए। भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्रिय मानी जाने वाली क्रिया है ÷अभिषेक'। अभिषेक का शाब्दिक तात्पर्य होता है श्रृंगार करना तथा शिव पूजन के संदर्भ में इसका तात्पर्य होता है किसी पदार्थ से शिवलिंग को पूर्णतः आच्ठादित कर देना। समुद्र मंथन के समय निकला विष ग्रहण करने के कारण भगवान शिव के शरीर का दाह बढ गया। उस दाह के शमन के लिए शिवलिंगपर जल चढाने की परंपरा प्रारंभ हुयी। जो आज भी चली आ रही है । इससे प्रसन्न हो कर वे अपने भक्तों का हित करते हैं इसलिए शिवलिंग पर विविध पदार्थों का अभिषेक किया जाता है।

शिव पूजन में सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति शिवलिंग पर जल या दूध चढाता है । शिवलिंग पर इस प्रकार द्रवों का अभिषेक ÷धारा' कहलाता है । जल तथा दूध की धारा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है ।

पंचामृतेन वा गंगोदकेन वा अभावे गोक्षीर युक्त कूपोदकेन च कारयेत
अर्थात पंचामृत से या फिर गंगा जल से भगवान शिव को धारा का अर्पण किया जाना चाहिये इन दोनों के अभाव में गाय के दूध को कूंए के जल के साथ मिश्रित कर के लिंगका अभिषेक करना चाहिये ।

हमारे शास्त्रों तथा पौराणिक ग्रंथों में प्रत्येक पूजन क्रिया को एक विशिष्ठ मंत्र के साथ करने की व्यवस्था है, इससे पूजन का महत्व कई गुना बढ जाता है । शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के लिए जिस मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है वह हैः-


1 । ऊं हृौं हृीं जूं सः पशुपतये नमः ।


२ । ऊं नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय, च मयस्कराय च नमः शिवाय चशिवतराय च।

इन मंत्रों का सौ बार जाप करके जल चढाना शतधारा तथा एक हजार बार जलचढाना सहस्रधारा कहलाता है । जलधारा चढाने के लिए विविध मंत्रों का प्रयोग किया जासकता है । इसके अलावा आप चाहें तो भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का प्रयोग भी करसकते हैं। पंचाक्षरी मंत्र का तात्पर्य है ÷ 


ऊं नमः शिवाय ' मंत्र ।


विविध कार्यों के लिए विविध सामग्रियों या द्रव्यों की धाराओं का शिवलिंग परअर्पण किया जाता है । तंत्र में सकाम अर्थात किसी कामना की पूर्ति की इच्ठा के साथपूजन के लिए विशेष सामग्रियों का उपयोग करने का प्रावधान रखा गया है । इनमें सेकुछ का वर्णन आगे प्रस्तुत हैः-

सहस्रधाराः-

जल की सहस्रधारा सर्वसुख प्रदायक होती है ।
घी की सहस्रधारा से वंश का विस्तार होता है ।
दूध की सहस्रधारा गृहकलह की शांति के लिए देना चाहिए ।
दूध में शक्कर मिलाकर सहस्रधारा देने से बुद्धि का विकास होता है ।
गंगाजल की सहस्रधारा को पुत्रप्रदायक माना गया है ।
सरसों के तेल की सहस्रधारा से शत्रु का विनाश होता है ।
सुगंधित द्रव्यों यथा इत्र, सुगंधित तेल की सहस्रधारा से विविध भोगों की प्राप्ति होती है ।
इसके अलावा कइ अन्य पदार्थ भी शिवलिंग पर चढाये जाते हैं, जिनमें से 
कुछ के विषयमें निम्नानुसार मान्यतायें हैं:-

सहस्राभिषेक

एक हजार कनेर के पुष्प चढाने से रोगमुक्ति होती है ।
एक हजार धतूरे के पुष्प चढाने से पुत्रप्रदायक माना गया है ।
एक हजार आक या मदार के पुष्प चढाने से प्रताप या प्रसिद्धि बढती है ।
एक हजार चमेली के पुष्प चढाने से वाहन सुख प्राप्त होता है ।
एक हजार अलसी के पुष्प चढाने से विष्णुभक्ति व विष्णुकृपा प्राप्त होती है ।
एक हजार जूही के पुष्प चढाने से समृद्धि प्राप्त होती है ।
एक हजार सरसों के फूल चढाने से शत्रु की पराजय होती है ।

लक्षाभिषेक

एक लाख बेलपत्र चढाने से कुबेरवत संपत्ति मिलती है ।
एक लाख कमलपुष्प चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है ।
एक लाख आक या मदार के पत्ते चढाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है ।

एक लाख अक्षत या बिना टूटे चावल चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है ।

एक लाख उडद के दाने चढाने से स्वास्थ्य लाभ होता है ।
एक लाख दूब चढाने से आयुवृद्धि होती है ।
एक लाख तुलसीदल चढाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है ।
एक लाख पीले सरसों के दाने चढाने से शत्रु का विनाश होता है ।

बेलपत्र

शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के साथ साथ बेलपत्र चढाने का भी विशेष महत्व है।बेलपत्र तीन-तीन के समूह में लगते हैं। इन्हे एक साथ ही चढाया जाता है।अच्छे पत्तों केअभाव में टूटे फूटे पत्र भी ग्रहण योग्य माने गये हैं।इन्हे उलटकर अर्थात चिकने भाग कोलिंग की ओर रखकर चढाया जाता है। इसके लिये जिस श्लोक का प्रयोग किया जाता है वह है,

त्रिदलं त्रिगुणाकारम त्रिनेत्रम च त्रिधायुधम।
त्रिजन्म पाप संहारकम एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम॥



उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर बेलपत्र को समर्पित करना चाहिए ।

शिवपूजन में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहियेः-


  • पूजन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर करें।
  • माता पार्वती का पूजन अनिवार्य रुप से करना चाहिये अन्यथा पूजन अधूरा रह जायेगा।
  • रुद्राक्ष की माला हो तो धारण करें।
  • भस्म से तीन आडी लकीरों वाला तिलक लगाकर बैठें।
  • शिवलिंग पर चढाया हुआ प्रसाद ग्रहण नही किया जाता, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य लेसकते हैं।
  • शिवमंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है।
  • केवडा तथा चम्पा के फूल न चढायें।
  • पूजन काल में सात्विक आहार विचार तथा व्यवहार रखें।




!!! नवग्रह स्तोत्र !!!




ॐ जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् ।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।१ ।।

ॐ दधि-शंख-तुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम् ।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।२ ।।

ॐ धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कांतिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ।।३ ।।

ॐ प्रियङ्गुलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम् ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् ।।४ ।।

ॐ देवानां चा ऋषीणां च गुरूं काञ्चनसंन्निभम् ।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ।।५ ।।

ॐ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूम् ।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ।।६ ।।

ॐ नीलाञ्जनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।७ ।।

ॐ अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् ।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ।।८ ।।

ॐ पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् ।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ।।९ ।।

इति व्यासमुखोद्गीतं य: पठेत्सुसमाहित: ।।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशान्तिभविश्यति ।।१० ।।

नरनारीनृपाणां च भवेत् दु:स्वप्ननाशनम् ।।
ऐश्वर्यमतुलं तेषामारोग्यं पुष्टिवर्धनम् ।।११ ।।

ग्रहनक्षत्रजा: पीडातस्कराग्निसमुद्भवा: ।।
ता: सर्वाः प्रशमं यान्ति व्यासो ब्रूते न संशय: ।।१२ ।।

इति श्रीव्यासविरचितं नवग्रहस्तोत्रं संपूर्णम् ।

ॐॐॐ परम कल्याणकारी महामृत्युंजय जप ॐॐॐ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ



महामृत्युंजय जप का घोर विपदा की अवस्था में विशेष महत्व है। विशेष रूप से मृत्युतुल्य कष्ट में इसका पारंपरिक अनुष्ठान किया जाता है। बारह ज्योतिर्लिंगों में खास जिनका तिल भर महत्व ज्यादा है 

ऐसे श्री महाकालेश्वर भगवान का इस मंत्र से अभिषेक-अर्चन आदि किया जाता है। प्रस्तुत है इस परम पवित्र मंत्र का संस्कृत पाठ :

कृतनित्यक्रियो जपकर्ता स्वासने पांगमुख उदहमुखो वा उपविश्य धृतरुद्राक्षभस्मत्रिपुण्ड्रः । आचम्य । प्राणानायाम्य। देशकालौ संकीर्त्य मम वा यज्ञमानस्य अमुक कामनासिद्धयर्थ श्रीमहामृत्युंजय मंत्रस्य अमुक संख्यापरिमितं जपमहंकरिष्ये वा कारयिष्ये। 
॥ इति प्रात्यहिकसंकल्पः ॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ गुरवे नमः।

ॐ गणपतये नमः। ॐ इष्टदेवतायै नमः।

इति नत्वा यथोक्तविधिना भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च कुर्यात्‌। 
भूतशुद्धिः विनियोगः

ॐ तत्सदद्येत्यादि मम अमुक प्रयोगसिद्धयर्थ भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च करिष्ये। ॐ आधारशक्ति कमलासनायनमः। इत्यासनं सम्पूज्य। पृथ्वीति मंत्रस्य। मेरुपृष्ठ ऋषि;, सुतलं छंदः कूर्मो देवता, आसने विनियोगः।

आसनः 

ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय माँ देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌।
गन्धपुष्पादिना पृथ्वीं सम्पूज्य कमलासने भूतशुद्धिं कुर्यात्‌।
अन्यत्र कामनाभेदेन। अन्यासनेऽपि कुर्यात्‌।

तत्र क्रमः

पादादिजानुपर्यंतं पृथ्वीस्थानं तच्चतुरस्त्रं पीतवर्ण ब्रह्मदैवतं वमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। जान्वादिना भिपर्यन्तमसत्स्थानं तच्चार्द्धचंद्राकारं शुक्लवर्ण पद्मलांछितं विष्णुदैवतं लमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌।

नाभ्यादिकंठपर्यन्तमग्निस्थानं त्रिकोणाकारं रक्तवर्ण स्वस्तिकलान्छितं रुद्रदैवतं रमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। कण्ठादि भूपर्यन्तं वायुस्थानं षट्कोणाकारं षड्बिंदुलान्छितं कृष्णवर्णमीश्वर दैवतं यमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। भूमध्यादिब्रह्मरन्ध्रपर्यन्त माकाशस्थानं वृत्ताकारं ध्वजलांछितं सदाशिवदैवतं हमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। एवं स्वशरीरे पंचमहाभूतानि ध्यात्वा प्रविलापनं कुर्यात्‌। यद्यथा-पृथ्वीमप्सु। अपोऽग्नौअग्निवायौ वायुमाकाशे। आकाशं तन्मात्राऽहंकारमहदात्मिकायाँ मातृकासंज्ञक शब्द ब्रह्मस्वरूपायो हृल्लेखार्द्धभूतायाँ प्रकृत्ति मायायाँ प्रविलापयामि, तथा त्रिवियाँ मायाँ च नित्यशुद्ध बुद्धमुक्तस्वभावे स्वात्मप्रकाश रूपसत्यज्ञानाँनन्तानन्दलक्षणे परकारणे परमार्थभूते परब्रह्मणि प्रविलापयामि।

तच्च नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभावं सच्चिदानन्दस्वरूपं परिपूर्ण ब्रह्मैवाहमस्मीति भावयेत्‌। एवं ध्यात्वा यथोक्तस्वरूपात्‌ ॐ कारात्मककात्‌ परब्रह्मणः सकाशात्‌ हृल्लेखार्द्धभूता सर्वमंत्रमयी मातृकासंज्ञिका शब्द ब्रह्मात्मिका महद्हंकारादिप-न्चतन्मात्रादिसमस्त प्रपंचकारणभूता प्रकृतिरूपा माया रज्जुसर्पवत्‌ विवर्त्तरूपेण प्रादुर्भूता इति ध्यात्वा। तस्या मायायाः सकाशात्‌ आकाशमुत्पन्नम्‌, आकाशाद्वासु;, वायोरग्निः, अग्नेरापः, अदभ्यः पृथ्वी समजायत इति ध्यात्वा।तेभ्यः पंचमहाभूतेभ्यः सकाशात्‌ स्वशरीरं तेजः पुँजात्मकं पुरुषार्थसाधनदेवयोग्य मुत्पन्नमिति ध्यात्वा। तस्मिन्‌ देहे सर्वात्मकं सर्वज्ञं सर्वशक्तिसंयुक्त समस्तदेवतामयं सच्चिदानंदस्वरूपं ब्रह्मात्मरूपेणानुप्रविष्टमिति भावयेत्‌ ॥

॥ इति भूतशुद्धिः ॥

अथ प्राण-प्रतिष्ठा विनियोगः


अस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्माविष्णुरुद्रा ऋषयः ऋग्यजुः सामानि छन्दाँसि, परा प्राणशक्तिर्देवता, ॐ बीजम्‌, ह्रीं शक्तिः, क्रौं कीलकं प्राण-प्रतिष्ठापने विनियोगः।

डं. कं खं गं घं नमो वाय्वग्निजलभूम्यात्मने हृदयाय नमः।
ञँ चं छं जं झं शब्द स्पर्श रूपरसगन्धात्मने शिरसे स्वाहा।
णं टं ठं डं ढं श्रीत्रत्वड़ नयनजिह्वाघ्राणात्मने शिखायै वषट्।
नं तं थं धं दं वाक्पाणिपादपायूपस्थात्मने कवचाय हुम्‌।
मं पं फं भं बं वक्तव्यादानगमनविसर्गानन्दात्मने नेत्रत्रयाय वौषट्।
शं यं रं लं हं षं क्षं सं बुद्धिमानाऽहंकार-चित्तात्मने अस्राय फट्।
एवं करन्यासं कृत्वा ततो नाभितः पादपर्यन्तम्‌ आँ नमः।
हृदयतो नाभिपर्यन्तं ह्रीं नमः।
मूर्द्धा द्विहृदयपर्यन्तं क्रौं नमः।
ततो हृदयकमले न्यसेत्‌।
यं त्वगात्मने नमः वायुकोणे।
रं रक्तात्मने नमः अग्निकोणे।
लं मांसात्मने नमः पूर्वे ।
वं मेदसात्मने नमः पश्चिमे ।
शं अस्थ्यात्मने नमः नैऋत्ये।
ओंषं शुक्रात्मने नमः उत्तरे।
सं प्राणात्मने नमः दक्षिणे।
हे जीवात्मने नमः मध्ये। एवं हदयकमले।


अथ ध्यानम्‌ 

रक्ताम्भास्थिपोतोल्लसदरुणसरोजाङ घ्रिरूढा कराब्जैः

पाशं कोदण्डमिक्षूदभवमथगुणमप्यड़ कुशं पंचबाणान्‌।

विभ्राणसृक्कपालं त्रिनयनलसिता पीनवक्षोरुहाढया

देवी बालार्कवणां भवतुशु भकरो प्राणशक्तिः परा नः ॥

॥ इति प्राण-प्रतिष्ठा ॥

अथ महामृत्युंजय जप विधि

संकल्प

तत्र संध्योपासनादिनित्यकर्मानन्तरं भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च कृत्वा प्रतिज्ञासंकल्प कुर्यात ॐ तत्सदद्येत्यादि सर्वमुच्चार्य मासोत्तमे मासे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रो अमुकशर्मा/वर्मा/गुप्ता मम शरीरे ज्वरादि-रोगनिवृत्तिपूर्वकमायुरारोग्यलाभार्थं वा धनपुत्रयश सौख्यादिकिकामनासिद्धयर्थ श्रीमहामृत्युंजयदेव प्रीमिकामनया यथासंख्यापरिमितं महामृत्युंजयजपमहं करिष्ये।

विनियोग

अस्य श्री महामृत्युंजयमंत्रस्य वशिष्ठ ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः श्री त्र्यम्बकरुद्रो देवता, श्री बीजम्‌, ह्रीं शक्तिः, मम अनीष्ठसहूयर्थे जपे विनियोगः।

अथ यष्यादिन्यासः
ॐ वसिष्ठऋषये नमः शिरसि।
अनुष्ठुछन्दसे नमो मुखे।
श्री त्र्यम्बकरुद्र देवतायै नमो हृदि।
श्री बीजाय नमोगुह्ये।
ह्रीं शक्तये नमोः पादयोः।
॥ इति यष्यादिन्यासः ॥

अथ करन्यासः


ॐ ह्रीं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं ॐ नमो भगवते रुद्रायं शूलपाणये स्वाहा अंगुष्ठाभ्यं नमः।

ॐ ह्रीं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः यजामहे ॐ नमो भगवते रुद्राय अमृतमूर्तये माँ जीवय तर्जनीभ्यां नमः।

ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्‌ ओं नमो भगवते रुद्राय चन्द्रशिरसे जटिने स्वाहा मध्यामाभ्यां वषट्।

ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः उर्वारुकमिव बन्धनात्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरान्तकाय हां ह्रीं अनामिकाभ्यां हुम्‌।
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मृत्योर्मुक्षीय ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजुः साममन्त्राय कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्।
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मामृताम्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय अग्निवयाय ज्वल ज्वल माँ रक्ष रक्ष अघारास्त्राय करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् ।


महामृत्युंजय मंत्र जाप में सावधानियाँ

महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियाँ रखना चाहिए जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहे।

अतः जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-

1. जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें।

2. एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।

3. मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।

4. जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।

5. रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।

6. माला को गोमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गोमुखी से बाहर न निकालें।

7. जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।

8. महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।

9. जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।

10. महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।

11. जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।

12. जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधरन भटकाएँ।

13. जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।

14. मिथ्या बातें न करें।

15. जपकाल में स्त्री सेवन न करें।

16. जपकाल में मांसाहार त्याग दें।

कब करें महामृत्युंजय मंत्र जाप?

महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है।

दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएँ दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए। निम्नलिखित स्थितियों में इस मंत्र का जाप कराया जाता है-

(1) ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।

(2) किसी महारोग से कोई पीड़ित होने पर।

(3) जमीन-जायदाद के बँटबारे की संभावना हो।

(4) हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों।

(5) राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो।

(6) धन-हानि हो रही हो।

(7) मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।

(8) राजभय हो।

(9) मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।

(10) राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।

(11) मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।

(12) त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।