शिव पुराण के अनुसार शिवजी ने ही इस सृष्टि का निर्माण ब्रह्माजी द्वारा करवाया है। इसी वजह से हर युग में सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए शिवजी का पूजन सर्वश्रेष्ठ और सबसे सरल उपाय है।इसके साथ शिवजी के प्रतीक रुद्राक्ष को मात्र धारण करने से ही भक्त के सभी दुख दूर हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
भारत वर्ष में तो रुद्राक्ष से सभी परिचित हैं. यह आस्था के केंद्र के साथ अनेकों प्रकार से उपयोगी हैं. आजकल तो यूरोप और अमेरिका के लोग भी रुद्राक्ष से परिचित हो चले है.,सनातन धर्म में रुद्राक्ष का आध्यात्मिक महत्व है ,इससे वातावरण में शुद्धता आती है। प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान और शुभ कार्यो में रुद्राक्ष का प्रयोग किया जाता है। वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में जांच के बाद सिद्ध किया है इसे धारण करने से शरीर स्वस्थ और मन शांत रहता है।
रुद्राक्ष के पीछे कई कथाएं प्रचलित है त्रिपुरासुर वध के समय रुद्रावतार धारण किए महादेव की आंखों से बहने वाला जल रुद्राक्ष के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुआ। सती के देह त्याग के उपरांत महादेव ने रौद्र रूप धारण किया और सती के शव को कंधे पर लेकर तीनों लोकों में विचरण करने लगे, जिससे तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। इस विनाश को रोकने के लिए कमल नयन ने अपना सुदर्शन चक्र चलाया, जिससे सती के शरीर के कई टुकड़े हो गए । जब केवल भस्म ही शेष रह गयी तो वह फूट-फूट कर रो पड़े। इस तरह भगवान शिव के आंसुओं से रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई।
रुद्राक्ष विभिन्न प्रकार के होते है 1 से लेकर 35 मुंह तक के सभी का अपना-अपना महत्व है। गौरी-शंकर नामक संयुक्त रुद्राक्ष, पैंतीस मुखी एवं एकमुखी रुद्राक्ष प्राप्त होना र्दुलभ है। जितना पुराना रुद्राक्ष होगा उतना ही अधिक प्रभावशाली होगा।यह दिमागी शांति, धैर्य और सामाजिक दबदबे में वृद्धि करता है। रुद्राक्ष कई प्रकार के रहते हैं। सभी का अलग-अलग महत्व होता है।
इन्हें धारण करने के लिए कई प्रकार के नियम बताए गए हैं, नियमों का पालन करते हुए रुद्राक्ष धारण करने पर बहुत जल्द सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगते हैं। वैसे तो रुद्राक्ष अपने आप में ही बहुत महत्वपूर्ण है मगर इसे विधि-विधान से धारण करने पर अत्यधिक फल देता है।युवा वर्ग के जीवन को सही दिशा देता है, धन और मान-सम्मान दिलाता है, हाई ब्लड प्रैशर को भी कंट्रोल करता है। विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग रुद्राक्ष को उपयोग में लाया जाता है। माला के रूप में 108 या 32 रुद्राक्षों की माला पहनने का विधान है, कलाई में 27, 54 या 108 रुद्राक्षों की माला पहनी जा सकती है।
आप अपने कार्य-क्षेत्र के अनुसार भी रुद्राक्ष धारण का सकते हैं कार्य की प्रकृति के अनुरूप रुद्राक्ष-धारण करना कैरियर के सर्वांगीण विकास हेतु शुभ एवं फलदायी होता है। किस कार्य क्षेत्र के लिए कौन सा रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, इसका विवरण यहां प्रस्तुत है।
फिजीशियन (डॉक्टर) के लिए - १० और ११ मुखी।
सर्जन (डॉक्टर) के लिए - १०, १२ और १४ मुखी।
जज एवं न्यायाधीशों के लिए - २ और १४ मुखी।
वकील के लिए - ४, ६ और १३ मुखी।
बैंक मैनेजर के लिए - ११ और १३ मुखी।
कंप्यूटर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के लिए - १४ मुखी और गौरी-शंकर।
कंप्यूटर हार्डवेयर इंजीनियर के लिए - ९ और १२ मुखी।
पायलट और वायुसेना अधिकारी के लिए - १० और ११ मुखी।
जलयान चालक के लिए - ८ और १२ मुखी।
रेस्टोरेंट मालिक के लिए - २, ४, ६ और ११ मुखी।
सिनेमाघर-थियेटर के मालिक या फिल्म-डिस्ट्रीब्यूटर के लिए - १, ४, ६ और ११ मुखी।
सोडा वाटर व्यवसाय के लिए - २, ४ और १२ मुखी।
फैंसी स्टोर, सौन्दर्य-प्रसाधन सामग्री के विक्रेताओं के लिए - ४, ६ और ११ मुखी रुद्राक्ष।
कपड़ा व्यापारी के लिए - २ और ४ मुखी।
बिजली की दुकान-विक्रेता के लिए - १, ३, ९ और ११ मुखी।
ठेकेदार के लिए - ११, १३ और १४ मुखी।
प्रॉपर्टी डीलर के लिए - ३, ४, १० और १४ मुखी।
दुकानदार के लिए - १०, १३ और १४ मुखी।
मार्केटिंग एवं फायनान्स व्यवसायिओं के लिए - ९, १२ और १४ मुखी।
उद्योगपति के लिए - १२ और १४ मुखी।
संगीतकारों-कवियों के लिए - ९ और १३ मुखी।
नेता-मंत्री-विधायक सांसदों के लिए - 1 और १४ मुखी।
प्रशासनिक अधिकारियों के लिए - 1 और १४ मुखी।
बैंक में कार्यरत कर्मचारियों के लिए - ४ और ११ मुखी।
चार्टर्ड एकाउन्टेंट एवं कंपनी सेक्रेटरी के लिए - ४, ६, ८ और १२ मुखी।
एकाउन्टेंट एवं खाता-बही का कार्य करने वाले कर्मचारियों के लिए - ४ और १२ मुखी।
पुलिस अधिकारी के लिए - ९ और १३ मुखी।
पुलिस/मिलिट्री सेवा में काम करने वालों के लिए - ४ और ९ मुखी।
डॉक्टर एवं वैद्य के लिए - १, ७, ८ और ११ मुखी।
नर्स-केमिस्ट-कंपाउण्डर के लिए - ३ और ४ मुखी।
दवा-विक्रेता या मेडिकल एजेंट के लिए - १, ७ और १० मुखी।
मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के लिए - ३ और १० मुखी।
मेकैनिकल इंजीनियर के लिए - १० और ११ मुखी।
सिविल इंजीनियर के लिए - ८ और १४ मुखी।
इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के लिए - ७ और ११ मुखी।
रेल-बस-कार चालक के लिए - ७ और १० मुखी।
प्रोफेसर एवं अध्यापक के लिए - ४, ६ और १४ मुखी।
गणित के प्रोफेसर के लिए - ३, ४, ७ और ११ मुखी।
इतिहास के प्रोफेसर के लिए - ४, ११ और ७ या १४ मुखी।
भूगोल के प्रोफेसर के लिए - ३, ४ और ११ मुखी।
क्लर्क, टाइपिस्ट, स्टेनोग्रॉफर के लिए - १, ४, ८ और ११ मुखी।
लेखक या प्रकाशक के लिए - १, ४, ८ और ११ मुखी।
पुस्तक व्यवसाय से संबंधित एजेंट के लिए - १, ४ और ९ मुखी।
दार्शनिक और विचारक के लिए - ७, ११ और १४ मुखी।
होटल मालिक के लिए - १, १३ और १४ मुखी।
रेडियो दुकान-विक्रेता के लिए - १, ९ और ११ मुखी।
लकडी+ या फर्नीचर विक्रेता के लिए - १, ४, ६ और ११ मुखी।
ज्योतिषी के लिए - १, ४, ११ और १४ मुखी रुद्राक्ष ।
पुरोहित के लिए - १, ९ और ११ मुखी।
र्धामिक कृत्यों से संबंधित व्यवसाय के लिए - १, ४ और ११ मुखी।
जासूस या डिटेक्टिव एंजेसी के लिए - ३, ४, ९, ११ और १४ मुखी।
जीवन में सफलता के लिए - १, ११ और १४ मुखी।
शास्त्रों के मुताबिक अलग-अलग रूप, आकार व रंग के रुद्राक्ष कामना विशेष को पूरा करने वाले होते हैं। इनको पहनने या उपयोग करने के धार्मिक उपाय, कर्मकांड व मंत्र नियत हैं। किंतु हर इंसान इन शास्त्रोक्त नियमों को नहीं जानता या वक्त की कमी से इनको अपना नहीं पाता।
धर्म आस्था और सुविधा के नजरिए से यहां बताए जा रहे हैं, रुद्राक्ष धारण करने के 3 सरल और असरदार उपाय। इसे कोई भी इंसान साल में किसी भी सोमवार को अपना कर मनचाहा रुद्राक्ष पहन मनोरथ सिद्धि कर सकता है। जानिए ये उपाय -
- धर्म के जानकार या विद्वान ब्राह्मण से सलाह के बाद अपनी कामनाओं के मुताबिक सही मुख के रुद्राक्ष को चुनें।
- खासतौर पर सोमवार के दिन सुबह स्नान कर शिवलिंग पर जल और बिल्वपत्र अर्पित करें। शिवलिंग के सामने रुद्राक्ष या माला को पहले कच्चे दूध और उसके बाद किसी भी तीर्थ के जल से पवित्र करें। इसके लिए गंगाजल हो तो फल प्राप्ति के नजरिए से श्रेष्ठ माना गया है।
- इसके बाद शिव को समर्पित केसर, चंदन या गंध को रुद्राक्ष पर लगाकर शिव पंचाक्षरी 'नम: शिवाय' या षडाक्षरी मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का यथाशक्ति जप करते हुए पहन लें। कम से कम 108 बार बोलें यानी 1 माला करें तो श्रेष्ठ होगा।
एकमुखी रुद्राक्ष :देवता शिव l मन्त्र-"ॐ हीं नम: "
दोमुखी रुद्राक्ष : देवता- अदरह-नारीस्वरl मन्त्र-"ॐ नम:"
तीन मुखी रुद्राक्ष : देवता- अग्रि l मन्त्र " ॐ क्क़लीं नम:"
चारमुखी रुद्राक्ष : देवता- ब्रह्मा l मन्त्र - "ॐ हीं नम :"
पांच मुखी रुद्राक्ष : देवता - कालाग्री रूद्र l मन्त्र - " ॐ हीं नम :"
छह मुखी रुद्राक्ष : देवता-कात्रिकेय l मन्त्र - "ॐ हीं हूँ नम :"
सातमुखी रुद्राक्ष : देवता-सप्त मातृकाएं, सप्तष l मन्त्र "ॐ हूँ नम :"
आठ मुखी रुद्राक्ष : देवता-बटुक भेरव l मन्त्र : "ॐ हूँ नम:"
नोमुखी रुद्राक्ष : देवता-दुर्गा जी l मन्त्र-"ॐ हीं हूँ नम:"
दसमुखी रुद्राक्ष : देवता-विष्णु l मन्त्र- "ॐ हीं नम:"
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष : देवता-रूद्र, इन्द्र l मन्त्र- "ॐ हीं हूँ नम:"
बारह मुखी रुद्राक्ष : देवता-बारह आदित्त्ये l मन्त्र :- "ॐ क्रों चों
तेहर मुखी रुद्राक्ष: देवता - कार्तिकेय, इन्दर l मन्त्र :- "ॐ हीं नम : "
एक बार देवर्षि नारद ने भगवान नारायण से पूछा-“दयानिधान! रुद्राक्ष को श्रेष्ठ क्यों माना जाता है? इसकी क्या महिमा है? सभी के लिए यह पूजनीय क्यों है? रुद्राक्ष की महिमा को आप विस्तार से बताकर मेरी जिज्ञासा शांत करें।” देवर्षि नारद की बात सुनकर भगवान् नारायण बोले-“हे देवर्षि! प्राचीन समय में यही प्रश्न कार्तिकेय ने भगवान् महादेव से पूछा था। तब उन्होंने जो कुछ बताया था, वही मैं तुम्हें बताता हूँ:
“एक बार पृथ्वी पर त्रिपुर नामक एक भयंकर दैत्य उत्पन्न हो गया। वह बहुत बलशाली और पराक्रमी था। कोई भी देवता उसे पराजित नहीं कर सका। तब ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्र आदि देवता भगवान शिव की शरण में गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना लगने लगे।
भगवान शिव के पास ‘अघोर’ नाम का एक दिव्य अस्त्र है। वह अस्त्र बहुत विशाल और तेजयुक्त है। उसे सम्पूर्ण देवताओं की आकृति माना जाता है। त्रिपुर का वध करने के उद्देश्य से शिव ने नेत्र बंद करके अघोर अस्त्र का चिंतन किया। अधिक समय तक नेत्र बंद रहने के कारण उनके नेत्रों से जल की कुछ बूंदें निकलकर भूमि पर गिर गईं। उन्हीं बूंदों से महान रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए। फिर भगवान शिव की आज्ञा से उन वृक्षों पर रुद्राक्ष फलों के रूप में प्रकट हो गए।
ये रुद्राक्ष अड़तीस प्रकार के थे। इनमें कत्थई वाले बारह प्रकार के रुद्राक्षों की सूर्य के नेत्रों से, श्वेतवर्ण के सोलह प्रकार के रुद्राक्षों की चन्द्रमा के नेत्रों से तथा कृष्ण वर्ण वाले दस प्रकार के रुद्राक्षों की उत्पत्ति अग्नि के नेत्रों से मानी जाती है। ये ही इनके अड़तीस भेद हैं।
ब्राह्मण को श्वेतवर्ण वाले रुद्राक्ष, क्षत्रिय को रक्तवर्ण वाले रुद्राक्ष, वैश्य को मिश्रित रंग वाले रुद्राक्ष और शूद्र को कृष्णवर्ण वाले रुद्राक्ष धारण करने चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने पर बड़ा पुण्य प्राप्त होता है। जो मनुष्य अपने कण्ठ में बत्तीस, मस्तक पर चालीस, दोनों कानों में छः-छः, दोनों हाथों में बारह-बारह, दोनों भुजाओं में सोलह-सोलह, शिखा में एक और वक्ष पर एक सौ आठ रुद्राक्षों को धारण करता है, वह साक्षात भगवान नीलकण्ठ समझा जाता है।
उसके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। रुद्राक्ष धारण करना भगवान शिव के दिव्य-ज्ञान को प्राप्त करने का साधन है। सभी वर्ण के मनुष्य रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं। रुद्राक्ष धारण करने वाला मनुष्य समाज में मान-सम्मान पाता है।
रुद्राक्ष के पचास या सत्ताईस मनकों की माला बनाकर धारण करके जप करने से अनन्त फल की प्राप्ति होती है। ग्रहण, संक्रांति, अमावस्या और पूर्णमासी आदि पर्वों और पुण्य दिवसों पर रुद्राक्ष अवश्य धारण किया करें। रुद्राक्ष धारण करने वाले के लिए मांस-मदिरा आदि पदार्थों का सेवन वर्जित होता है।”
हिंदू धर्म में सदियों से पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन जैसे शुभ कार्यो में रुद्राक्ष का प्रयोग किया जाता है। रुद्राक्ष के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता। अब तो वैज्ञानिक अनुसंधानों के माध्यम से पूरी दुनिया में रुद्राक्ष की गुणवत्ता साबित हो चुकी है। इसके अद्भुत औषधीय गुण प्रयोगशाला में जांच के बाद सही साबित हुए है। इसे धारण करने से शरीर स्वस्थ और मन शांत रहता है।
शिव की रूद्र की भावनाओं का अखंड भंडार, रूद्र- नेत्र-जल भी यही रुद्राक्ष है.
यहाँ तकनिकी रूप या व्याकरण के अनुसार शिव, रुद्र, अक्ष, वृक्ष एवं जल ये पांच तत्व विराजमान हैं रुद्राक्ष नाम में शिव को वायु, रूद्र को आकाश, अक्ष को अग्नि, वृक्ष को भूमि एवं जल को जल तत्व से समझा जा सकता है. हमारे सनातन संज्ञान में शिव एवं रूद्र को स्पष्ट समझाने वाली सरल पुस्तके उपलब्ध नहीं होने से पूरी जानकारी सबके सामने नहीं है.
शिव हिमालय में शारीर पर मृग चरम, मस्तक पर चन्द्रमा गले में सर्प एवं माला के रूप में रुद्राक्ष ही धारण करते हैं मनुष्य जीवन में ज्ञान, कर्म एवं उपासना से सम्बंधित, धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष से सम्बंधित तथा रज, सत एवं तम से सम्बंधित जो भी कुछ है रुद्राक्ष में समाया हुआ है.
रुद्राक्ष के विषय में गूढ़ ज्ञान हिमालय में तप करने वाले ऋषि-मुनियों के पास ही है, जिसके द्वारा वे अपनी साधना आराधना में लगे है प्राचीन काल से ही रुद्राक्ष सभी को अपनी और आकर्षित करता रहा है. और सभी ये समझते भी रहें हैं कि रुद्राक्ष का सम्बन्ध सिर्फ इसको धारण करने से है, रुद्राक्ष के धारण करने से सब्भी प्रकार की सुख -संपत्ति की प्राप्ति होगी, जिसके चलते भिन्न-भिन्न प्रकार के रुद्राक्ष धारण किये गए.
वस्तुत: रुद्राक्ष शब्द का संधि विच्छेद है- रुद्र+अक्षि। अर्थात भगवान शिव का नेत्र। इसकी उत्पत्ति और नामकरण के पीछे यह कथा प्रचलित है कि त्रिपुरासुर का वध करते समय रुद्रावतार धारण किए भगवान शंकर की आंखों से बहने वाला जल रुद्राक्ष के रूप में पृथ्वी पर साकार हुआ। इसकी उत्पत्ति के संबंध में यह भी कहा जाता है कि जब हिमालय की पुत्री सती ने स्वयं को हवन कुंड में समाहित कर दिया था तो भगवान शिव ने रौद्र रूप धारण कर लिया था और सती का शव कंधे पर उठा कर ब्रह्मांड का विनाश करने के लिए तांडव नृत्य करने लगे। शिव जी को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाया, जिससे सती के शरीर के कई टुकड़े हो गए। टुकड़े जहां-जहां हिस्सों में गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई। अंत में भगवान शिव के शरीर पर सिर्फ सती के शरीर का भस्म रह गया। जिसे देखकर वह रो पड़े। इस तरह भगवान शिव के आंसुओं से रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई।
स्वास्थ्यवर्धक औषधि
रुद्राक्ष एक वनस्पति है। इसके पेड़ पर बेर जैसे फल लगते है। ये पेड़ हिमालय की तराई में पाए जाते है। रुद्राक्ष के प्रभाव से आसपास का संपूर्ण वातावरण शुद्ध हो जाता है। इसे रातभर भिगोकर रखने के बाद और प्रात:काल नियमित रूप से खाली पेट इसका पानी पीना हृदय रोगियों के लिए बहुतलाभदायक साबित होता है।
मान्यता के अनुसार, 1 से लेकर 35 मुंह तक के रुद्राक्ष उपलब्ध है। विविध कार्यसिद्धि के लिए विभिन्न रुद्राक्ष उपयोग में लाए जाते है। लेकिन गौरी-शंकर नामक संयुक्त रुद्राक्ष, पैंतीस मुखी एवं एकमुखी रुद्राक्ष बहुत कम प्राप्त होते है। पुराना रुद्राक्ष अधिक प्रभावशाली होता है।
रुद्राक्ष के विभिन्न प्रकार
रुद्राक्ष की अलग-अलग किस्मों के लाभ भी अलग होते है। यहां प्रस्तुत है रुद्राक्ष के प्रमुख प्रकार और उनके फायदे:
एकमुखी रुद्राक्ष: यह आंख, नाक, कान और गले की बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है।
द्विमुखी रुद्राक्ष: यह मस्तिष्क की शांति, धैर्य और सामाजिक प्रतिष्ठा की वृद्धि में सहायक होता है। साथ ही इसे धारण करने से पाचन तंत्र संबंधी समस्याएं भी काफी हद तक दूर हो जाती है।
पंचमुखी रुद्राक्ष: यह पंच ब्रह्म तत्व का प्रतीक है। यह युवाओं के जीवन को सही दिशा देता है। इससे धन और मान-सम्मान में वृद्धि होती है और यह उच्च रक्तचाप को भी नियंत्रित करता है।
सप्तमुखी रुद्राक्ष: यह भगवान कार्तिकेय का प्रतीक माना जाता है तथा इसे धारण करने से आंखों की दृष्टि में वृद्धि होती है।
आमतौर पर चतुर्मुखी रुद्राक्ष शिक्षा के क्षेत्र में सफलता के लिए, पंचमुखी रुद्राक्ष नित्य जप के लिए, षड्मुखी रुद्राक्ष पुत्र प्राप्ति के लिए, चतुर्दश एवं पंचदशमुखी रुद्राक्ष लक्ष्मी प्राप्ति के लिए तथा इक्कीस मुखी रुद्राक्ष ज्ञान प्राप्ति के लिए धारण करने की प्रथा है।
कैसे धारण करे रुद्राक्ष
रुद्राक्ष स्वभाव से ही प्रभावी होता है, लेकिन यदि उसे विशेष पद्धति से सिद्ध किया जाए तो उसका प्रभाव कई गुना अधिक हो जाता है। अगर जप के लिए रुद्राक्ष की माला सिद्ध करनी हो तो सबसे पहले उसे पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का पानी को सामूहिक रूप से पंचगव्य कहा जाता है। ) में डुबोएं, फिर साफ पानी से धो लें। हर मनके पर 'ईशान: सर्वभूतानां' मंत्र का 10 बार जप करे।
यदि रुद्राक्ष के सिर्फ एक मनके को सिद्ध करना हो तो पहले उसे पंचगव्य ((गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का पानी को सामूहिक रूप से पंचगव्य कहा जाता है। ) से स्नान कराएं और उस पर गंगाजल का छिड़काव करें। उसके बाद षोडशोपचार से पूजा करके उसे चांदी के डिब्बे में रखें। हाथों में कुश लेकर उसका स्पर्श रुद्राक्ष से करके इच्छित इष्टमंत्र का जप करे।
विविध रुद्राक्ष विभिन्न कार्यो के लिए काम में लाए जाते है। इसलिए उनके मंत्र एवं सूक्त भी अलग-अलग है। श्रीसूक्त, विष्णुसूक्त, पवमान रुद्र, मन्युसूक्त, चतुर्दश प्रणवात्मक महामृत्युंजय, शांतिसूक्त, रुद्रसूक्त तथा सौरसूक्त आदि का उपयोग कार्यानुसार रुद्राक्ष सिद्धि के लिए किया जाता है। रुद्राक्ष सिद्ध करना सहज है, लेकिन उसकी सिद्धि बनाए रखना मुश्किल है। असत्य वचन और बुरे व्यवहार आदि कारणों से रुद्राक्ष की सिद्धि कम हो जाती है। अत: इसे धारण करने वाले व्यक्ति को सदाचार का पालन करना चाहिए। गले में 108 या 32 रुद्राक्षों की माला पहनने की प्रथा है। हाथों में भी 27, 54 या 108 रुद्राक्षों की माला पहननी चाहिए। भगवान शिव का पूजन करते समय रुद्राक्ष अवश्य धारण करे। शरीर से रुद्राक्ष का स्पर्श होना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। देवाधिदेव भगवान भोलेनाथ की उपासना में रुद्राक्ष का अत्यन्त महत्व है...रुद्राक्ष शब्द की विवेचना से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसकी उत्पत्ति महादेव जी के अश्रुओं से हुई है- रुद्रस्य अक्षि रुद्राक्ष:,अक्ष्युपलक्षितम् अश्रु, तज्जन्य: वृक्ष:...शिव महापुराण की विद्येश्वरसंहिता तथा श्रीमद्देवीभागवत में इस संदर्भ में कथाएं मिलती हैं... उनका सारांश यह है कि अनेक वर्षो की समाधि के बाद जब सदाशिव ने अपने नेत्र खोले, तब उनके नेत्रों से कुछ आँसू पृथ्वी पर गिरे...और उनके उन्हीं अश्रुबिन्दुओं से रुद्राक्ष के महान वृक्ष उत्पन्न हुए...रुद्राक्ष धारण करने से तन-मन में पवित्रता का संचार होता है...
अर्थात विश्व में रुद्राक्ष की माला की तरह अन्य कोई दूसरी माला फलदायक और शुभ नहीं है। श्रीमद्- देवीभागवत में लिखा है :
अर्थात विश्व में रुद्राक्ष धारण से बढ़कर श्रेष्ठ कोई दूसरी वस्तु नहीं है।
रुद्राक्ष दो जाति के होते हैं- रुद्राक्ष एवं भद्राक्ष...
रुद्राक्ष के मध्य में भद्राक्ष धारण करना महान फलदायक होता है-
रुद्राक्षाणांतुभद्राक्ष:स्यान्महाफलम्...रुद्राक्ष-धारण करने से पहले उसके असली होने की जांच अवद्गय करवा लें। असली रुद्राक्ष ही धारण करें। खंडित, कांटों से रहित या कीड़े लगे हुए रुद्राक्ष धारण नहीं करें। जपादि कार्यों में छोटे और धारण करने में बड़े रुद्राक्षों का ही उपयोग करें।
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----- रुद्राक्ष के 50 दानों की माला कंठ में धारण करना शुभ होता है.
----- रुद्राक्ष के पंद्रह मनकों की माला मंत्र जप तंत्र सिद्धि जैसे
------ रुद्राक्ष के बारह दानों को मणिबंध में धारण करना शुभदायक होता है.
------ रुद्राक्ष के 108, 50 और 27 दानों की माला धारण करने या जाप करने
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अधिकतर रुद्राक्ष यद्यपि लाल धागे में धारण किए जाते हैं, किंतु एक मुखी रुद्राक्ष सफेद धागे, सात मुखी काले धागे और ग्यारह, बारह, तेरह मुखी तथा गौरी-शंकर रुद्राक्ष पीले धागे में भी धारण करने का विधान है। विधान है।
अतः यह विधान किसी योग्य पंडित से संपन्न कराकर रुद्राक्ष धारण करना
चाहिए। ऐसा संभव नहीं होने की स्थिति में नीचे प्रस्तुत संक्षिप्त विधि
से भी रुद्राक्ष की प्राण प्रतिष्ठा कर सकते हैं। रुद्राक्ष धारण करने के
लिए शुभ मुहूर्त या दिन का चयन कर लेना चाहिए। इस हेतु सोमवार उत्तम है।
धारण के एक दिन पूर्व संबंधित रुद्राक्ष को किसी सुगंधित अथवा सरसों के
तेल में डुबाकर रखें। धारण करने के दिन उसे कुछ समय के लिए गाय के कच्चे दूध में रख कर पवित्र कर लें। फिर प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर क्क नमः शिवाय मंत्र का मन ही मन जप करते हुए रुद्राक्ष को पूजास्थल पर सामने रखें। फिर उसे पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, मधु एवं शक्कर) अथवा पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, मूत्र एवं गोबर) से अभिषिक्त कर गंगाजल से पवित्र करके अष्टगंध एवं केसर मिश्रित चंदन का लेप लगाकर धूप, दीप और पुष्प अर्पित कर विभिन्न शिव मंत्रों का जप करते हुए उसका संस्कार करें।
तत्पश्चात संबद्ध रुद्राक्ष के शिव पुराण अथवा पद्म पुराण वर्णित या
शास्त्रोक्त बीज मंत्र का 21, 11, 5 अथवा कम से कम 1 माला जप करें। फिर शिव पंचाक्षरी मंत्र क्क नमः शिवाय अथवा शिव गायत्री मंत्र क्क
तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् का 1 माला जप
करके रुद्राक्ष-धारण करें।
अंत में क्षमा प्रार्थना करें। रुद्राक्ष धारण के दिन उपवास करें अथवा
सात्विक अल्पाहार लें। विद्गोष : उक्त क्रिया संभव नहीं हो, तो शुभ मुहूर्त या दिन में (विशेषकर सोमवार को) संबंधित रुद्राक्ष को कच्चे दूध, पंचगव्य, पंचामृत अथवा गंगाजल से पवित्र करके, अष्टगंध, केसर, चंदन, धूप, दीप, पुष्प आदि से उसकी पूजा कर शिव पंचाक्षरी अथवा शिव गायत्री मंत्र का जप करके पूर्ण श्रद्धा भाव से धारण करें।
एक से चौदहमुखी रुद्राक्षों को धारण करने के मंत्र क्रमश:इस प्रकार हैं-
रुद्राक्ष-जाबालोपनिषद् में सर्वथा निषेध किया गया है.
रुद्राक्ष वस्तुत:महारुद्र का अंश होने से परम पवित्र एवं पापों का नाशक है... इसके दिव्य प्रभाव से जीव शिवत्व प्राप्त करता है..
रुद्राक्ष की माला श्रद्धापूर्वक विधि-विधानानुसार धारण करने से व्यक्ति
की आध्यात्मिक उन्नति होती है। सांसारिक बाधाओं और दुखों से छुटकारा होता है। मस्तिष्क और हृदय को बल मिलता है। रक्तचाप संतुलित होता है।
भूत-प्रेत की बाधा दूर होती है। मानसिक शांति मिलती है। शीत-पित्त रोग का शमन होता है। इसीलिए इतनी लाभकारी, पवित्र रुद्राक्ष की माला में भारतीय जन मानस की अनन्य श्रद्धा है। जो मनुष्य रुद्राक्ष की माला से मंत्रजाप करता है उसे दस गुणा फल प्राप्त होता है। अकाल मृत्यु का भय भी नहीं रहता है
इस पृथ्वी पर अनेक ऐसी दुर्लभ वस्तुएँ हैं, जो न सिर्फ प्राणी मात्र को शरीरिक सुख हीं प्रदान करता हैं बल्की उनमे भौतीक और अघ्यात्मिक गुण भी मौजुद होता है । जिस प्रकार एक हिरे की परख सिर्फ एक जौहरी ही जानता हैं ।उसी प्रकार प्राकृति एंव ईश्वर द्वारा प्रदत् दुर्लभ वस्तुओं की परख वहीं कर सकता हैं , जिन्हे उनके सम्बन्ध मे सम्यक जानकारी हो । जानकारीयों के आभाव मे हीरा भि एक कॉच का टुकडा हीं होता है जबकी वह सभी धातुओं से कीमति एंव अनेक गुणों से सम्पन्न होता है ।
शिव अक्षु 'रुद्राक्ष अर्थात भगवान शिव के नेत्रो से अश्रु (ऑसु) के रुप मे निकलकर इस धारा पर कल्याणकारी भावनाओं के लिए प्रगट होने वाला रुद्राक्ष न सिर्फ एक वनफल कि गुठली हैं, वरन अन्दर असिम , साधारण अनेक दिव्य शक्तियां भी समाहीत हैं जिनके प्रभाव से मानव हर प्रकार की बाधाओं से मुक्त होकर शिवधाम को पराप्त होता है ।
रुद्राक्ष का धार्मिक महत्व तो हैं हीं परन्तु रुदराक्ष पर हुए अनेक शोधकार्यो क परीणाम स्वरुप इसकी उपयोगीता भौतिकवादी देशो अमेरीका, युरोप, इण्डोनेशीया, जावा ईत्यादी देशो मे इसकी मँग बढ गई है । अनेक बिमारीयों को दुर करने के गुणों के कारण हीं सभी स्तर के लोग इसे धारण करने लगे हैं ।
आगे हम एक मुखीँ रुद्राक्ष से लेकर ईक्कीस मुखीँ रुद्राक्ष तक के बारे मे जानेगें । आइए सबसे पहले ये जाने की रुद्राक्ष को साक्षात् शिव क्यों कहा गया हैं ।
रुद्राक्ष दो शब्दो से मिलकर बना है 'रुद्र और अक्ष' ।रुद्र अर्थात नेत्र और अक्ष को भगवान शिव का आँसु कहा गया हैं । रुद्राक्ष के पिछे छुपे गुढता को जानने की कोशीश करे तो रुद्र का अर्थ 'रुत् 'अर्थात दुखो को नाश करने वाला , वहीं अक्ष का अर्थ है आँखें यानी की रुद्राक्ष शिव के आँखओं से निकला पिडा हरण करने वाला हैं ।
इस संबध मे महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित शिव पुराण मे भी इसका उल्लेख है ।और भी कई वेदो और पुराणो मे इसके बारे मे लिखा गया हैं ।
"शिव पुराण का अनुसार सति से वियोग होने के कारण शिव कि आँसुओ की बुँदे जमीन पर जगह-जगह गिरने से रुद्राक्ष के वृक्ष का जन्म हुआ"।
"श्रीमद् देवी भागवत मे उल्लेख है की राक्षस त्रिपुर के नाश के लिए जब लंबे वक्त तक भगवान के नेत्र खुले रहे जिसमे थकावट के कारण आँसु निकल पडे और वहीं आँसु जमीन पर गिरने के बाद रुद्राक्ष के रुप मे निकले "।
"इसी तरह पधपुराण मे लिखा है की सतयुग मे जब ब्रम्हदेव के वरदान से शक्ती सम्पन्न बना दानव राज त्रिपुर जब पुरे जगत् को पिडित करने लगा था तो देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शंकर ने अपनी तेजस्वी दृष्टी से त्रिपुर का अंत किया । त्रिपुर से युद्ध के दौरान महादेव की शरीर से से निकली पसीनो की बूदों से रुद्राक्ष के वृक्ष की उत्तपती हुई "।
एकमुखी रुद्राक्ष भगवान शिव, द्विमुखी श्री गौरी-शंकर, त्रिमुखी तेजोमय अग्नि, चतुर्थमुखी श्री पंचदेव, पन्चमुखी सर्वदेव्मयी ,षष्ठमुखी भगवान कार्तिकेय, सप्तमुखी प्रभु अनंत, अष्टमुखी भगवान श्री गेणश, नवममुखी भगवती देवी दुर्गा, दसमुखी श्री हरि विष्णु, तेरहमुखी श्री इंद्र तथा चौदहमुखी स्वयं हनुमानजी का रूप माना जाता है। इसके अलावा श्री गणेश व गौरी-शंकर नाम के रुद्राक्ष भी होते हैं।
1). एकमुखी रुद्राक्ष :- ऐसा रुद्राक्ष जिसमें एक ही आँख अथवा बिंदी हो। स्वयं शिव का स्वरूप है जो सभी प्रकार के सुख, मोक्ष और उन्नति प्रदान करता है।
2). द्विमुखी रुद्राक्ष :- सभी प्रकार की कामनाओं को पूरा करने वाला तथा दांपत्य जीवन में सुख, शांति व तेज प्रदान करता है।
3). त्रिमुखी रुद्राक्ष :- समस्त भोग-ऐश्वर्य प्रदान करने वाला होता है।
4). चतुर्थमुखी रुद्राक्ष :- धर्म, अर्थ काम एवं मोक्ष प्रदान करने वाला होता है।
5). पंचमुखी रुद्राक्ष :- सदैव अनिश्चितता महसूस करना मन का बरबस उचाट हो जाना मानसिक दबाव (डिप्रेशन) का शिकार रहना एकाग्रता की कमी होना – बच्चे या बडे दोनों इन समस्याओं में किसी से आपका कोई भी जानकार ग्रसित हो तो, इच्छा ईश्वर की, 5 मुखी रुद्राक्ष पहनने से लाभ होता है।
6). षष्ठमुखी रुद्राक्ष :- पापों से मुक्ति एवं संतान देने वाला होता है।
7). सप्तमुखी रुद्राक्ष :- दरिद्रता को दूर करने वाला होता है।
8). अष्टमुखी रुद्राक्ष :- आयु एवं सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला होता है।
9). नवममुखी रुद्राक्ष :- मृत्यु के डर से मुक्त करने वाला होता है।
10). दसमुखी रुद्राक्ष :- शांति एवं सौंदर्य प्रदान करने वाला होता है।
11). ग्यारह मुखी रुद्राक्ष :- विजय दिलाने वाला, ज्ञान एवं भक्ति प्रदान करने वाला होता है।
12). बारह मुखी रुद्राक्ष :- धन प्राप्ति कराता है।
13). तेरह मुखी रुद्राक्ष :- शुभ व लाभ प्रदान कराने वाला होता है।
14). चौदह मुखी रुद्राक्ष :- संपूर्ण पापों को नष्ट करने वाला होता है।
धारण करने की विधी-धारण करने हेतु रुद्राक्ष को काले धागे मे पिरो लें या चाँदी की तार पिरो कर लॉकेट बनवा लें। सोने की तार में पिरोए जाने की सिफारिश नहीं है। इसे गले में अपने दिल के सामने लटकता हुआ पहनें। ध्यान रहे कि वह पहने वाले की त्वचा को जरूर छुए।
दोमुखी रुद्राक्ष को साक्षात् अर्द्धनारीश्वर ही मानें... इसे धारण करने
वाला भगवान भोलेनाथके साथ माता पार्वती की अनुकम्पा का भागी होता है...इसे पहिनने से दाम्पत्य जीवन में मधुरता आती है तथा पति-पत्नी का विवाद शांत हो जाता है... दोमुखी रुद्राक्ष घर-गृहस्थी का सम्पूर्ण सुख प्रदान करता है...
तीन-मुखी रुद्राक्ष अग्नि का स्वरूप होने से ज्ञान का प्रकाश देता है...
इसे धारण करने से बुद्धि का विकास होता है, एकाग्रता और स्मरण-शक्ति बढती है... विद्यार्थियों के लिये यह अत्यन्त उपयोगी है...
चार-मुखी रुद्राक्ष चतुर्मुख ब्रह्माजीका प्रतिरूप होने से धर्म, अर्थ,
काम और मोक्ष- इन चारों पुरुषार्थो को देने वाला है... नि:संतान व्यक्ति
यदि इसे धारण करेंगे तो संतति-प्रतिबन्धक दुर्योग का शमन होगा... कुछ
विद्वान चतुर्मुखी रुद्राक्ष को गणेश जी का प्रतिरूप मानते हैं...
पाँचमुखी रुद्राक्ष पंचदेवों-शिव, शक्ति, गणेश, सूर्य और विष्णु की
शक्तियों से सम्पन्न माना गया है... कुछ ग्रन्थों में पंचमुखी रुद्राक्ष
के स्वामी कालाग्नि रुद्र बताए गए हैं... सामान्यत:पाँच मुख वाला
रुद्राक्ष ही उपलब्ध होता है... संसार में ज्यादातर लोगों के पास
पाँचमुखी रुद्राक्ष ही हैं...इसकी माला पर पंचाक्षर मंत्र (नम:शिवाय)
जपने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है...
छह मुखी रुद्राक्ष षण्मुखी कार्तिकेय का स्वरूप होने से शत्रुनाशक सिद्ध
हुआ है...इसे धारण करने से आरोग्यता,श्री एवं शक्ति प्राप्त होती है...
जिस बालक को जन्मकुण्डली के अनुसार बाल्यकाल में किसी अरिष्ट का खतरा हो, उसे छह मुखी रुद्राक्ष सविधि पहिनाने से उसकी रक्षा अवश्य होगी...
सातमुखी रुद्राक्ष कामदेव का स्वरूप होने से सौंदर्यवर्धक है... इसे धारण
करने से व्यक्तित्व आकर्षक और सम्मोहक बनता है... कुछ विद्वान
सप्तमातृकाओं की सातमुखी रुद्राक्ष की स्वामिनी मानते हैं... इसको पहिनने से दरिद्रता नष्ट होती है और घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है...
आठमुखी रुद्राक्ष अष्टभैरव-स्वरूप होने से जीवन का रक्षक माना गया है...
इसे विधिपूर्वक धारण करने से अभिचार कर्मो अर्थात् तान्त्रिक प्रयोगों
(जादू-टोने) का प्रभाव समाप्त हो जाता है... धारक पूर्णायु भोगकर सद्गति प्राप्त करता है...
नौमुखी रुद्राक्ष नवदुर्गा का प्रतीक होने से असीम शक्तिसम्पन्न है...
इसे अपनी भुजा में धारण करने से जगदम्बा का अनुग्रह अवश्य प्राप्त होता है... शाक्तों(देवी के आराधकों) के लिये नौमुखी रुद्राक्ष भगवती का वरदान ही है... इसे पहिनने वाला नवग्रहों की पीडा से सुरक्षित रहता है...
दसमुखी रुद्राक्ष साक्षात् जनार्दन श्रीहरि का स्वरूप होने से समस्त
इच्छाओं को पूरा करता है... इसे धारण करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है तथा कष्टों से मुक्ति मिलती है...
ग्यारहमुखी रुद्राक्ष एकादश रुद्र- स्वरूप होने से तेजस्विता प्रदान करता
है... इसे धारण करने वाला कभी कहीं पराजित नहीं होता है...
बारहमुखी रुद्राक्ष द्वादश आदित्य- स्वरूप होने से धारक व्यक्ति को
प्रभावशाली बना देता है... इसे धारण करने से सात जन्मों से चला आ रहा
दुर्भाग्य भी दूर हो जाता है और धारक का निश्चय ही भाग्योदय होता है...
तेरहमुखी रुद्राक्ष विश्वेदेवों का स्वरूप होने से अभीष्ट को पूर्ण करने
वाला, सुख-सौभाग्यदायक तथा सब प्रकार से कल्याणकारी है... कुछ साधक तेरहमुखी रुद्राक्ष का अधिष्ठाता कामदेव को मानते हैं...
चौदहमुखी रुद्राक्ष मृत्युंजय का स्वरूप होने से सर्वरोगनिवारक सिद्ध हुआ
है... इसको धारण करने से असाध्य रोग भी शान्त हो जाता है...
जन्म-जन्मान्तर के पापों का शमन होता है...
रुद्राक्ष: पहचान एवं उपयोग रुद्राक्ष आम के पेड़ जैसे एक पेड़ का फल है। ये पेड़ दक्षिण एशिया में मुख्यतः जावा, मलयेशिया, ताइवान, भारत एवं नेपाल में पाए जाते हैं। भारत में ये मुख्यतः असम, अरुणांचल प्रदेश एवं देहरादून में पाए जाते है। रुद्राक्ष के फल से छिलका उतारकर उसके बीज को पानी में गलाकर साफ किया जाता है। इसके बीज ही रुद्राक्ष रूप में माला आदि बनाने में उपयोग में लाए जाते है इसके अंदर प्राकृतिक छिद्र होते है एवं संतरे की तरह फांकें बनी होती है जो मुख कहलाती हैं। कहा जाता है कि सती की मृत्यु पर शिवजी को बहुत दुख हुआ और उनके आंसू अनेक स्थानों पर गिरे जिससे रुद्राक्ष (रुद्राक्ष अर्थात शिव के आंसू) की उत्पत्ति हुई। इसीलिए जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करता है उसे सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। चंद्रमा शिवजी के भाल पर सदा विराजमान रहता है अतः चंद्र ग्रह जनित कोई भी कष्ट हो तो रुद्राक्ष धारण से बिल्कुल दूर हो जाता है। किसी भी प्रकार की मानसिक उद्विग्नता, रोग एवं शनि के द्वारा पीड़ित चंद्र अर्थात साढ़े साती से मुक्ति में रुद्राक्ष अत्यंत उपयोगी है। शिव सर्पों को गले में माला बनाकर धारण करते हैं। अतः काल सर्प जनित कष्टों के निवारण में भी रुद्राक्ष विशेष उपयोगी होता है। रुद्राक्ष सामान्यतया पांचमुखी पाए जाते हैं, लेकिन एक से चैदहमुखी रुद्राक्ष का उल्लेख शिव पुराण, पद्म पुराण आदि में मिलता है। रुद्राक्ष के मुख की पहचान उसे बीच से दो टुकड़ों में काट कर की जा सकती है। जितने मुख होते हैं उतनी ही फाके नजर आती हैं। हर रुद्राक्ष किसी न किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। इनका विभिन्न रोगों के उपचार में भी विशेष उपयोग होता है। रुद्राक्षों में एकमुखी अति दुर्लभ है। शुद्ध एकमुखी रुद्राक्ष तो देखने में मिलता ही नहीं है। नेपाल का गोल एकमुखी रुद्राक्ष अत्यंत ही दुर्लभ है। इसके स्थान पर दक्षिण भारत में पाया जाने वाला एकमुखी काजूदाना अत्यंत ही प्रचलित है। असम में पाया जाने वाला गोल दाने का एकमुखी रुद्राक्ष भी बहुत प्रचलित है। इक्कीस मुखी से ऊपर के रुद्राक्ष अति दुर्लभ हैं। इसके अतिरिक्त अट्ठाइस मुखी तक के रुद्राक्ष भी पाए जाते हैं। मालाएं अधिकांशतः इंडोनेशिया से उपलब्ध रुद्राक्षों की बनाई जाती हैं। बड़े दानों की मालाएं छोटे दानों की मालाओं की अपेक्षा सस्ती होती हैं। साफ, स्वच्छ, सख्त, चिकने व साफ मुख दिखाई देने वाले दानों की माला काफी महंगी होती है। रुद्राक्ष के अन्य रूपों में गौरी शंकर, गौरी गणेश, गणेश एवं त्रिजुटी आदि हैं। गौरी शंकर रुद्राक्ष में दो रुद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं। ये दोनों रुद्राक्ष गौरी एवं शंकर के प्रतीक हैं। इसे धारण करने से दाम्पत्य जीवन में मधुरता बनी रहती है। इसी प्रकार गौरी गणेश में भी दो रुद्राक्ष जुड़े होते हैं एक बड़ा एक छोटा, मानो पार्वती की गोद में गणेश विराजमान हों। रुद्राक्ष के बारे में कुछ भ्रम भी प्रचलित हैं। जैसे कि पहचान के लिए कहा जाता है कि तांबे के दो सिक्कों के बीच में यदि रुद्राक्ष को रखा जाए और वह असली हो तो धीमी गति से घूमता हुआ नजर आएगा। वास्तव में रुद्राक्ष जैसी किसी भी गोल कांटेदार वस्तु को यदि इस तरह पकड़ा जाएगा तो वह असंतुलन के कारण घूमेगी। दूसरा भ्रम यह है कि असली रुद्राक्ष पानी में डूबता है, नकली नहीं। यह बात इस तथ्य तक तो सही है कि लकड़ी का बना कृत्रिम रुद्राक्ष नहीं डूबेगा। रुद्राक्ष का बीज भारी होने के कारण डूब जाता है लेकिन यदि असली रुद्राक्ष पूरा पका नहीं हो या छिद्र में हवा भरी रह गई हो तो वह भी पानी से हल्का ही रहता है, डूबता नहीं। अधिक मुख वाले रुद्राक्ष एवं एकमुखी रुद्राक्ष महंगे होने के कारण नकली भी बना लिए जाते हैं। प्रायः कम मुखी रुद्राक्ष में अतिरिक्त मुख की धारियां बना दी जाती हैं जिससे कम मूल्य का रुद्राक्ष अधिक मूल्य का हो जाता है। इस तथ्य की जांच करने के लिए रुद्राक्ष को बीच से काटकर फांकों की गिनती की जा सकती है। दूसरे, अनुभव द्वारा इन कृत्रिम धारियों और प्राकृतिक धारियों में अंतर किया जा सकता है। कभी-कभी दो रुद्राक्षों को जोड़कर भी एक महंगा रुद्राक्ष बना लिया जाता है। गौरी शंकर, गौरी गणेश या त्रिजुटी रुद्राक्ष अक्सर इस प्रकार बना लिए जाते हैं। इसकी जांच के लिए यदि रुद्राक्ष को पानी में उबाल दिया जाए तो नकली रुद्राक्ष के टुकड़े हो जाएंगे जबकि असली रुद्राक्ष ज्यों का त्यों रह जाएगा। कई बार नकली रुद्राक्ष को भारी करने के लिए छिद्रों में पारा या सीसा भर दिया जाता है। उबालने से यह पारा या सीसा बाहर आ जाता है और रुद्राक्ष तैरने लगता है। कई बार देखने में आता है कि रुद्राक्ष पर सर्प, गणेश, त्रिशूल आदि बने होते हैं। ये सभी आकृतियां प्राकृतिक नहीं होती हैं, इस प्रकार के रुद्राक्ष केवल नकली ही होते हैं। अतः महंगे रुद्राक्ष किसी विश्वसनीय प्रतिष्ठान से ही खरीदना उचित है। रुद्राक्ष पहनने में किसी विशेष सावधानी की आवश्यकता नहीं है, लेकिन जिस प्रकार दैवी शक्तियों को हम पवित्र वातावरण में रखने का प्रयास करते हैं, उसी प्रकार रुद्राक्ष पहनकर शुचिता बरती जाए, तो उत्तम है। अतः साधारणतया रुद्राक्ष को रात को उतार कर रख देना चाहिए और प्रातः स्नानादि के पश्चात मंत्र जप कर धारण करना चाहिए। इससे यह रात्रि व प्रातः की अशुचिता से बचकर जप की ऊर्जा से परिपूर्ण होकर हमें ऊर्जा प्रदान करता है। शिव सदैव शक्ति के साथ ही पूर्ण हैं। दैवी शक्तियों में लिंग भेद नहीं होता है। स्त्री-पुरुष का भेद केवल पृथ्वी लोक में ही होता है। रुद्राक्ष, जिसमें दैवी शक्तियां विद्यमान हैं, स्त्रियां अवश्य धारण कर सकती हैं। गौरी शंकर रुद्राक्ष व गौरी गणेश रुद्राक्ष खासकर स्त्रियों के लिए ही हैं। पहला सफल वैवाहिक जीवन के लिए एवं दूसरा संतान सुख के लिए। हां शुचिता की दृष्टि से राजो दर्शन के तीन दिनों तक रुद्राक्ष न धारण किया जाए, तो अच्छा है। रुद्राक्ष धारण करने के लिए सोमवार को प्रातः काल पहले कच्चे दूध से और फिर गंगाजल से धोकर व अष्टगंध लगाकर ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जप कर धारण करना चाहिए।
रुद्राक्ष स्वभाव से ही प्रभावी होता है, लेकिन यदि उसे विशेष पद्धति से सिद्ध किया जाए तो उसका प्रभाव कई गुना अधिक हो जाता है। अगर जप के लिए रुद्राक्ष की माला सिद्ध करनी हो तो सबसे पहले उसे पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का पानी को सामूहिक रूप से पंचगव्य कहा जाता है। ) में डुबोएं, फिर साफ पानी से धो लें। हर मनके पर 'ईशान: सर्वभूतानां' मंत्र का 10 बार जप करे।
यदि रुद्राक्ष के सिर्फ एक मनके को सिद्ध करना हो तो पहले उसे पंचगव्य ((गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का पानी को सामूहिक रूप से पंचगव्य कहा जाता है। ) से स्नान कराएं और उस पर गंगाजल का छिड़काव करें। उसके बाद षोडशोपचार से पूजा करके उसे चांदी के डिब्बे में रखें। हाथों में कुश लेकर उसका स्पर्श रुद्राक्ष से करके इच्छित इष्टमंत्र का जप करे।
विविध रुद्राक्ष विभिन्न कार्यो के लिए काम में लाए जाते है। इसलिए उनके मंत्र एवं सूक्त भी अलग-अलग है। श्रीसूक्त, विष्णुसूक्त, पवमान रुद्र, मन्युसूक्त, चतुर्दश प्रणवात्मक महामृत्युंजय, शांतिसूक्त, रुद्रसूक्त तथा सौरसूक्त आदि का उपयोग कार्यानुसार रुद्राक्ष सिद्धि के लिए किया जाता है। रुद्राक्ष सिद्ध करना सहज है, लेकिन उसकी सिद्धि बनाए रखना मुश्किल है। असत्य वचन और बुरे व्यवहार आदि कारणों से रुद्राक्ष की सिद्धि कम हो जाती है। अत: इसे धारण करने वाले व्यक्ति को सदाचार का पालन करना चाहिए। गले में 108 या 32 रुद्राक्षों की माला पहनने की प्रथा है। हाथों में भी 27, 54 या 108 रुद्राक्षों की माला पहननी चाहिए। भगवान शिव का पूजन करते समय रुद्राक्ष अवश्य धारण करे। शरीर से रुद्राक्ष का स्पर्श होना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। देवाधिदेव भगवान भोलेनाथ की उपासना में रुद्राक्ष का अत्यन्त महत्व है...रुद्राक्ष शब्द की विवेचना से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसकी उत्पत्ति महादेव जी के अश्रुओं से हुई है- रुद्रस्य अक्षि रुद्राक्ष:,अक्ष्युपलक्षितम् अश्रु, तज्जन्य: वृक्ष:...शिव महापुराण की विद्येश्वरसंहिता तथा श्रीमद्देवीभागवत में इस संदर्भ में कथाएं मिलती हैं... उनका सारांश यह है कि अनेक वर्षो की समाधि के बाद जब सदाशिव ने अपने नेत्र खोले, तब उनके नेत्रों से कुछ आँसू पृथ्वी पर गिरे...और उनके उन्हीं अश्रुबिन्दुओं से रुद्राक्ष के महान वृक्ष उत्पन्न हुए...रुद्राक्ष धारण करने से तन-मन में पवित्रता का संचार होता है...
रुद्राक्ष पापों के बडे से बडे समूह को भी भेद देते हैं... चार वर्णो के
अनुरूप ये भी श्वेत, रक्त, पीत और कृष्ण वर्ण के होते हैं...ऋषियों का
निर्देश है कि मनुष्य को अपने वर्ण के अनुसार रुद्राक्ष धारण करना
चाहिए... भोग और मोक्ष, दोनों की कामना रखने वाले लोगों को रुद्राक्ष की
माला अथवा मनका जरूर पहनना चाहिए... विशेषकर शैव मताबलाम्बियो के लिये तो रुद्राक्ष को धारण करना अनिवार्य ही है.... जो रुद्राक्ष आँवले के फल के बराबर होता है, वह समस्त अरिष्टों का नाश करने में समर्थ होता है... जो रुद्राक्ष बेर के फल के बराबर होता है, वह छोटा होने पर भी उत्तम फल देने वाला व सुख-सौभाग्य की वृद्धि करने वाला होता है... गुंजाफल के समान बहुत छोटा रुद्राक्ष सभी मनोरथों को पूर्ण करता है... रुद्राक्ष का आकार जैसे-जैसे छोटा होता जाता है, वैसे-वैसे उसकी शक्ति उत्तरोत्तर बढती जाती है... विद्वानों ने भी बडे रुद्राक्ष से छोटा रुद्राक्ष कई गुना अधिक फलदायी बताया है किन्तु सभी रुद्राक्ष नि:संदेह सर्वपापनाशक तथा शिव-शक्ति को प्रसन्न करने वाले होते हैं... सुंदर, सुडौल, चिकने, मजबूत, अखण्डित रुद्राक्ष ही धारण करने हेतु उपयुक्त माने गए हैं... जिसे कीडों ने दूषित कर दिया हो, जो टूटा-फूटा हो, जिसमें उभरे हुए दाने न हों, जो व्रणयुक्त हो तथा जो पूरा गोल न हो, इन पाँच प्रकार के रुद्राक्षों को
दोषयुक्त जानकर त्याग देना ही उचित है... जिस रुद्राक्ष में अपने-आप ही
डोरा पिरोने के योग्य छिद्र हो गया हो, वही उत्तम होता है... जिसमें
प्रयत्न से छेद किया गया हो, वह रुद्राक्ष कम गुणवान माना जाता है...
रुद्राक्ष, तुलसी आदि दिव्य औषधियों की माला धारण करने के पीछे वैज्ञानिक मान्यता यह है कि होंठ व जीभ का प्रयोग कर उपांशु जप करने से साधक की कंठ-धमनियों को सामान्य से अधिक कार्य करना पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप कंठमाला, गलगंड आदि रोगों के होने की आशंका होती है। उसके बचाव के लिए गले में उपरोक्त माला पहनी जाती है।
रुद्राक्ष अपने विभिन्न गुणों के कारण व्यक्ति को दिया गया ‘प्रकृति का
अमूल्य उपहार है’ मान्यता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के
नेत्रों से निकले जलबिंदुओं से हुई है. अनेक धर्म ग्रंथों में रुद्राक्ष के महत्व को प्रकट किया गया है जिसके फलस्वरूप रुद्राक्ष का महत्व जग
प्रकाशित है. रुद्राक्ष को धारण करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं इसे
धारण करके की गई पूजा हरिद्वार, काशी, गंगा जैसे तीर्थस्थलों के समान फल प्रदान करती है. रुद्राक्ष की माल द्वारा मंत्र उच्चारण करने से फल प्राप्ति की संभावना कई गुना बढ़ जाती है.इसे धारण करने से व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है. रुद्राक्ष की माला अष्टोत्तर शत अर्थात 108 रुद्राक्षों की या 52 रुद्राक्षों की होनी चाहिए अथवा सत्ताईस दाने की तो अवश्य हो इस संख्या में इन रुद्राक्ष मनकों को पहना विशेष फलदायी माना गया है. शिव भगवान का पूजन एवं मंत्र जाप रुद्राक्ष की माला से करना बहुत प्रभावी माना गया है तथा साथ ही साथ अलग-अलग रुद्राक्ष के दानों की माला से जाप या पूजन करने से विभिन्न इच्छाओं की पूर्ति होती है.धारक को शिवलोक की प्राप्ति होती है, पुण्य मिलता है, ऐसी पद्मपुराण, शिव महापुराण आदि शास्त्रों में मान्यता है।
शिवपुराण में कहा गया है :
यथा च दृश्यते लोके रुद्राक्ष: फलद: शुभ:।
न तथा दृश्यते अन्या च मालिका परमेश्वरि:।।
अर्थात विश्व में रुद्राक्ष की माला की तरह अन्य कोई दूसरी माला फलदायक और शुभ नहीं है। श्रीमद्- देवीभागवत में लिखा है :
रुद्राक्षधारणाद्य श्रेष्ठं न किञ्चिदपि विद्यते।
अर्थात विश्व में रुद्राक्ष धारण से बढ़कर श्रेष्ठ कोई दूसरी वस्तु नहीं है।
रुद्राक्ष दो जाति के होते हैं- रुद्राक्ष एवं भद्राक्ष...
रुद्राक्ष के मध्य में भद्राक्ष धारण करना महान फलदायक होता है-
रुद्राक्षाणांतुभद्राक्ष:स्यान्महाफलम्...रुद्राक्ष-धारण करने से पहले उसके असली होने की जांच अवद्गय करवा लें। असली रुद्राक्ष ही धारण करें। खंडित, कांटों से रहित या कीड़े लगे हुए रुद्राक्ष धारण नहीं करें। जपादि कार्यों में छोटे और धारण करने में बड़े रुद्राक्षों का ही उपयोग करें।
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कितनी हो माला में रुद्राक्ष की संख्या ????
माला में रुद्राक्ष के मनकों की संख्या उसके महत्व का परिचय देती है.
भिन्न-भिन्न संख्या मे पहनी जाने वाली रुद्राक्ष की माला निम्न प्रकार से
फल प्रदान करने में सहायक होती है जो इस प्रकार है
-----रुद्राक्ष के सौ मनकों की माला धारण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
------रुद्राक्ष के एक सौ आठ मनकों को धारण करने से समस्त कार्यों में
सफलता प्राप्त होती है. इस माला को धारण करने वाला अपनी पीढ़ियों का
उद्घार करता है
------रुद्राक्ष के एक सौ चालीस मनकों की माला धारण करने से साहस,
पराक्रम और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है.
------ रुद्राक्ष के बत्तीस दानों की माला धारण करने से धन, संपत्ति एवं
आय में वृद्धि होती है.
------ रुद्राक्ष के 26 मनकों की माला को सर पर धारण करना चाहिए
----- रुद्राक्ष के 50 दानों की माला कंठ में धारण करना शुभ होता है.
----- रुद्राक्ष के पंद्रह मनकों की माला मंत्र जप तंत्र सिद्धि जैसे
कार्यों के लिए उपयोगी होती है.
----- रुद्राक्ष के सोलह मनकों की माला को हाथों में धारण करना चाहिए.
------ रुद्राक्ष के बारह दानों को मणिबंध में धारण करना शुभदायक होता है.
------ रुद्राक्ष के 108, 50 और 27 दानों की माला धारण करने या जाप करने
से पुण्य की प्राप्ति होती है.
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किस कार्य हेतु केसी माला धारण करें..???
तनाव से मुक्ति हेतु 100 दानों की, अच्छी सेहत एवं आरोग्य के लिए 140 दानों की, अर्थ प्राप्ति के लिए 62 दानों की तथा सभी कामनाओं की पूर्ति हेतु 108 दानों की माला धारण करें। जप आदि कार्यों में 108 दानों की माला ही उपयोगी मानी गई है। अभीष्ट की प्राप्ति के लिए 50 दानों की माला धारण करें। 26 दानों की माला मस्तक पर, 50 दानों की माला हृदय पर, 16 दानों की माला भुजा पर तथा 12 दानों की माला मणिबंध पर धारण करनी चाहिए।
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क्या महत्त्व हें रुद्राक्ष की माला का..???
रुद्राक्ष की माला को धारण करने पर इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक होता
है कि कितने रुद्राक्ष की माला धारण कि जाए. क्योंकि रुद्राक्ष माला में
रुद्राक्षों की संख्या उसके प्रभाव को परिलक्षित करती है. रुद्राक्ष धारण
करने से पापों का शमन होता है. आंवले के सामान वाले रुद्राक्ष को उत्तम
माना गया है. सफेद रंग का रुद्राक्ष ब्राह्मण को, रक्त के रंग का
रुद्राक्ष क्षत्रिय को, पीत वर्ण का वैश्य को और कृष्ण रंग का रुद्राक्ष
शुद्र को धारण करना चाहिए.
क्या नियम पालन करें जब करें रुद्राक्ष माला धारण..???
क्या सावधानियां रखनी चाहिए रुद्राक्ष माला पहनते समय..???
जिस रुद्राक्ष माला से जप करते हों, उसे धारण नहीं करें। इसी प्रकार जो
माला धारण करें, उससे जप न करें। दूसरों के द्वारा उपयोग में लाए गए
रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला को प्रयोग में न लाएं।
रुद्राक्ष की प्राण-प्रतिष्ठा कर शुभ मुहूर्त में ही धारण करना चाहिए -
ग्रहणे विषुवे चैवमयने संक्रमेऽपि वा। दर्द्गोषु पूर्णमसे च पूर्णेषु
दिवसेषु च। रुद्राक्षधारणात् सद्यः सर्वपापैर्विमुच्यते॥
ग्रहण में, विषुव संक्रांति (मेषार्क तथा तुलार्क) के दिनों, कर्क और मकर
संक्रांतियों के दिन, अमावस्या, पूर्णिमा एवं पूर्णा तिथि को रुद्राक्ष
धारण करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
मद्यं मांस च लसुनं पलाण्डुं द्गिाग्रमेव च। श्लेष्मातकं विड्वराहमभक्ष्यं वर्जयेन्नरः॥ (रुद्राक्षजाबाल-17)
मद्यं मांस च लसुनं पलाण्डुं द्गिाग्रमेव च। श्लेष्मातकं विड्वराहमभक्ष्यं वर्जयेन्नरः॥ (रुद्राक्षजाबाल-17)
रुद्राक्ष धारण करने वाले को यथासंभव मद्य, मांस,
लहसुन, प्याज, सहजन (मुनगा), निसोडा और विड्वराह (ग्राम्यशूकर) का परित्याग करना चाहिए।
सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी प्रकृति के मनुष्य वर्ण, भेदादि के अनुसार विभिन्न प्रकर के रुद्राक्ष धारण करें। रुद्राक्ष को द्गिावलिंग अथवा
द्गिाव-मूर्ति के चरणों से स्पर्द्गा कराकर धारण करें। रुद्राक्ष हमेशा नाभि के ऊपर शरीर के विभिन्न अंगों (यथा कंठ, गले, मस्तक, बांह, भुजा) में धारण करें, यद्यपि शास्त्रों में विशेष परिस्थिति में विद्गोष
सिद्धि हेतु कमर में भी रुद्राक्ष धारण करने का विधान है।
रुद्राक्ष अंगूठी में कदापि धारण नहीं करें, अन्यथा भोजन-द्गाचादि क्रिया
में इसकी पवित्रता खंडित हो जाएगी। रुद्राक्ष पहन कर किसी
अंत्येष्टि-कर्म में अथवा प्रसूति-गृह में न जाएं।
स्त्रियां मासिक धर्म के समय रुद्राक्ष धारण न करें। रुद्राक्ष धारण कर
रात्रि शयन न करें। रुद्राक्ष में अंतर्गर्भित विद्युत तरंगें होती हैं जो शरीर में विद्गोष सकारात्मक और प्राणवान ऊर्जा का संचार करने में सक्षम होती हैं। इसी कारण रुद्राक्ष को प्रकृति की दिव्य औषधि कहा गया है। अतः रुद्राक्ष का वांछित लाभ लेने हेतु समय-समय पर इसकी साफ-सफाई का विद्गोष खयाल रखें। शुष्क होने पर इसे तेल में कुछ समय तक डुबाकर रखें।
रुद्राक्ष स्वर्ण या रजत धातु में धारण करें। इन धातुओं के अभाव में इसे
ऊनी या रेशमी धागे में भी धारण कर सकते हैं। रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को लहसुन, प्याज तथा नशीले भोज्य पदार्थों तथा मांसाहार का त्याग करना चाहिए. सक्रांति, अमावस, पूर्णिमा और शिवरात्रि के दिन रुद्राक्ष धारण करना शुभ माना जाता है. सभी वर्ण के मनुष्य रुद्राक्ष को पहन सकते हैं. रुद्राक्ष का उपयोग करने से व्यक्ति भगवान शिव के आशीर्वाद को पाता है. व्यक्ति को दिव्य-ज्ञान की अनुभूति होती है. व्यक्ति को अपने गले में बत्तीस रुद्राक्ष, मस्तक पर चालीस रुद्राक्ष, दोनों कानों में 6,6 रुद्राक्ष, दोनों हाथों में बारह-बारह, दोनों भुजाओं में सोलह-सोलह, शिखा में एक और वक्ष पर एक सौ आठ रुद्राक्षों को धारण करता है, वह साक्षात भगवान शिव को पाता है.
किस तरह धारण करें रुद्राक्ष माला को..???
अधिकतर रुद्राक्ष यद्यपि लाल धागे में धारण किए जाते हैं, किंतु एक मुखी रुद्राक्ष सफेद धागे, सात मुखी काले धागे और ग्यारह, बारह, तेरह मुखी तथा गौरी-शंकर रुद्राक्ष पीले धागे में भी धारण करने का विधान है। विधान है।
अतः यह विधान किसी योग्य पंडित से संपन्न कराकर रुद्राक्ष धारण करना
चाहिए। ऐसा संभव नहीं होने की स्थिति में नीचे प्रस्तुत संक्षिप्त विधि
से भी रुद्राक्ष की प्राण प्रतिष्ठा कर सकते हैं। रुद्राक्ष धारण करने के
लिए शुभ मुहूर्त या दिन का चयन कर लेना चाहिए। इस हेतु सोमवार उत्तम है।
धारण के एक दिन पूर्व संबंधित रुद्राक्ष को किसी सुगंधित अथवा सरसों के
तेल में डुबाकर रखें। धारण करने के दिन उसे कुछ समय के लिए गाय के कच्चे दूध में रख कर पवित्र कर लें। फिर प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर क्क नमः शिवाय मंत्र का मन ही मन जप करते हुए रुद्राक्ष को पूजास्थल पर सामने रखें। फिर उसे पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, मधु एवं शक्कर) अथवा पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, मूत्र एवं गोबर) से अभिषिक्त कर गंगाजल से पवित्र करके अष्टगंध एवं केसर मिश्रित चंदन का लेप लगाकर धूप, दीप और पुष्प अर्पित कर विभिन्न शिव मंत्रों का जप करते हुए उसका संस्कार करें।
तत्पश्चात संबद्ध रुद्राक्ष के शिव पुराण अथवा पद्म पुराण वर्णित या
शास्त्रोक्त बीज मंत्र का 21, 11, 5 अथवा कम से कम 1 माला जप करें। फिर शिव पंचाक्षरी मंत्र क्क नमः शिवाय अथवा शिव गायत्री मंत्र क्क
तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् का 1 माला जप
करके रुद्राक्ष-धारण करें।
अंत में क्षमा प्रार्थना करें। रुद्राक्ष धारण के दिन उपवास करें अथवा
सात्विक अल्पाहार लें। विद्गोष : उक्त क्रिया संभव नहीं हो, तो शुभ मुहूर्त या दिन में (विशेषकर सोमवार को) संबंधित रुद्राक्ष को कच्चे दूध, पंचगव्य, पंचामृत अथवा गंगाजल से पवित्र करके, अष्टगंध, केसर, चंदन, धूप, दीप, पुष्प आदि से उसकी पूजा कर शिव पंचाक्षरी अथवा शिव गायत्री मंत्र का जप करके पूर्ण श्रद्धा भाव से धारण करें।
एक से चौदहमुखी रुद्राक्षों को धारण करने के मंत्र क्रमश:इस प्रकार हैं-
1.ॐह्रींनम:, 2.ॐनम:, 3.ॐक्लींनम:, 4.ॐह्रींनम:, 5.ॐह्रींनम:, 6.ॐ
ह्रींहुं नम:, 7.ॐहुं नम:, 8.ॐहुं नम:, 9.ॐह्रींहुं नम:, 10.ॐह्रींनम:,
11.ॐह्रींहुं नम:, 12.ॐक्रौंक्षौंरौंनम:, 13.ॐह्रींनम:, 14.ॐनम:।
निर्दिष्ट मंत्र से अभिमंत्रित किए बिना रुद्राक्ष धारण करने पर उसका
शास्त्रोक्त फल प्राप्त नहीं होता है और दोष भी लगता है...
पदार्थो का परित्याग कर देना चाहिए... इन निषिद्ध वस्तुओं के सेवन का
मार्केटिंग का युग जिसमे रुद्राक्ष ने आज से कुछ वर्षों पहले, टेली-शोपी के नए -नए ज़माने में प्रवेश किया.
एक-मुखी रुद्राक्ष, सात-मुखी, गोरीशंकर, रुद्राक्ष- माला, चमत्कारी रुद्राक्ष के नाम पर कितना व्यापार किया गया, बिना प्रयोग विधि एवं नित्य क्रिया के बताये. और यदि बताया बभी गया तो सभी ने उसे समझा नहीं. कितने लोगो ने सुख -संपत्ति की कामना से एक-मुखी से 11 मुखी रुद्राक्ष लिए.
रुद्राक्ष के साथ जब तक "रूद्र-मंत्र" नहीं हैं तब तक ऐसा है जैसे बिना सिम के मोबाइल होना. या बिना डॉक्टर की शिक्षा प्राप्त किये स्टेथोस्कोप का गले में होना
रुद्राक्ष 1 से 21 मुखी तक मिलते हैं, इनको प्रतिदिन उर्जावान बनाने के लिए "रूद्र-मंत्र" आवश्यक हैं.
16 मन्त्रों को सभी शास्त्रों ने सर्व सम्मति से शत-रुद्री कहा है. पांच मंत्र में पञ्च तत्व के 5 मन्त्र अतः कुल =२१ मंत्र होते है.
16 मंत्र शत-रुद्री के एक -एक मंत्र के पहले के ऋषि/छंद /देवता के विनियोग एवं आगे इनके 5 मंत्र अतः कुल =21 मंत्र होते है.
16 मंत्रो में 10 मंत्र रूद्र को समर्पित 1 मन को अर्थात 1 मन - 10 इन्द्रिय के मंत्र, शरीर शुद्धिकरण के न्यास के 6 मंत्र तथा 5 देवताओं के मंत्र अतः कुल=२१ मंत्र होते है.
इसके आगे विषय और भी गूढ़ होता जाता है. संपूर्ण रूद्र के 10 अध्याय, ऋषि/छंद एवं देवताओ के विनियोग, आगे सकृत पाठ के अंतर्गत विभिन्न संकल्प जिसमे भोगोलिक स्तिथि के साथ तारा मंडल का स्तिथि जन्य वर्णन ,शुद्ध मंत्र स्वर संचरण ,मंत्रो के नियम ,उसके पहले शुद्धिकरण आदि- आदि.
तब जाकर रुद्राक्ष का उर्जावान होकर धारण करने वाले से सम्बन्ध स्थापित होता है.
मुख्य बात है रुद्राक्ष धारण करने के पहले ही संकल्प होता है .
मन्त्र के सही एवं शुद्ध उच्चारण से रुद्राक्ष उर्जावान होकर मनः कामना पूर्ति होती है .
सही रुद्राक्ष 1 से 21 का अपनी विषयक जरुरत के अनुसार चयन किया जाता है.
अपनी राशी के अनुसार, लग्न के अनुसार भी रुस्राक्ष धारण किया जाता है.
5 एवं 6 मुखी रुद्राक्ष बहुलता से प्राप्त होते हैं सरलता से ये सिद्ध किये जा सकते हैं
रुद्राक्ष धारण करने पर मद्य, मांस, लहसुन, प्याज, सहजन,लिसोडा आदि
रुद्राक्ष-जाबालोपनिषद् में सर्वथा निषेध किया गया है.
रुद्राक्ष वस्तुत:महारुद्र का अंश होने से परम पवित्र एवं पापों का नाशक है... इसके दिव्य प्रभाव से जीव शिवत्व प्राप्त करता है..
रुद्राक्ष की माला श्रद्धापूर्वक विधि-विधानानुसार धारण करने से व्यक्ति
की आध्यात्मिक उन्नति होती है। सांसारिक बाधाओं और दुखों से छुटकारा होता है। मस्तिष्क और हृदय को बल मिलता है। रक्तचाप संतुलित होता है।
भूत-प्रेत की बाधा दूर होती है। मानसिक शांति मिलती है। शीत-पित्त रोग का शमन होता है। इसीलिए इतनी लाभकारी, पवित्र रुद्राक्ष की माला में भारतीय जन मानस की अनन्य श्रद्धा है। जो मनुष्य रुद्राक्ष की माला से मंत्रजाप करता है उसे दस गुणा फल प्राप्त होता है। अकाल मृत्यु का भय भी नहीं रहता है
शास्त्रों में एक से चौदह मुखी तक रुद्राक्षों का वर्णन मिलता है...
इनमें एकमुखी रुद्राक्ष सर्वाधिक दुर्लभ एवं सर्वश्रेष्ठ है... एकमुखी
रुद्राक्ष साक्षात् शिव का स्वरूप होने से परब्रह्म का प्रतीक माना गया
है... इसका प्राय: अर्द्धचन्द्राकार रूप ही दिखाई देता है... एकदम गोल
एकमुखीरुद्राक्ष लगभग अप्राप्य ही है... एकमुखीरुद्राक्ष धारण करने से
ब्रह्महत्या के समान महा पाप तक भी नष्ट हो जाते हैं... समस्त कामनाएं
पूर्ण होती हैं तथा जीवन में कभी किसी वस्तु का अभाव नहीं होता है... भोग
के साथ मोक्ष प्रदान करने में समर्थ एकमुखी रुद्राक्ष भगवान शंकर की परम कृपा से ही मिलता है...
इस पृथ्वी पर अनेक ऐसी दुर्लभ वस्तुएँ हैं, जो न सिर्फ प्राणी मात्र को शरीरिक सुख हीं प्रदान करता हैं बल्की उनमे भौतीक और अघ्यात्मिक गुण भी मौजुद होता है । जिस प्रकार एक हिरे की परख सिर्फ एक जौहरी ही जानता हैं ।उसी प्रकार प्राकृति एंव ईश्वर द्वारा प्रदत् दुर्लभ वस्तुओं की परख वहीं कर सकता हैं , जिन्हे उनके सम्बन्ध मे सम्यक जानकारी हो । जानकारीयों के आभाव मे हीरा भि एक कॉच का टुकडा हीं होता है जबकी वह सभी धातुओं से कीमति एंव अनेक गुणों से सम्पन्न होता है ।
शिव अक्षु 'रुद्राक्ष अर्थात भगवान शिव के नेत्रो से अश्रु (ऑसु) के रुप मे निकलकर इस धारा पर कल्याणकारी भावनाओं के लिए प्रगट होने वाला रुद्राक्ष न सिर्फ एक वनफल कि गुठली हैं, वरन अन्दर असिम , साधारण अनेक दिव्य शक्तियां भी समाहीत हैं जिनके प्रभाव से मानव हर प्रकार की बाधाओं से मुक्त होकर शिवधाम को पराप्त होता है ।
रुद्राक्ष का धार्मिक महत्व तो हैं हीं परन्तु रुदराक्ष पर हुए अनेक शोधकार्यो क परीणाम स्वरुप इसकी उपयोगीता भौतिकवादी देशो अमेरीका, युरोप, इण्डोनेशीया, जावा ईत्यादी देशो मे इसकी मँग बढ गई है । अनेक बिमारीयों को दुर करने के गुणों के कारण हीं सभी स्तर के लोग इसे धारण करने लगे हैं ।
आगे हम एक मुखीँ रुद्राक्ष से लेकर ईक्कीस मुखीँ रुद्राक्ष तक के बारे मे जानेगें । आइए सबसे पहले ये जाने की रुद्राक्ष को साक्षात् शिव क्यों कहा गया हैं ।
रुद्राक्ष दो शब्दो से मिलकर बना है 'रुद्र और अक्ष' ।रुद्र अर्थात नेत्र और अक्ष को भगवान शिव का आँसु कहा गया हैं । रुद्राक्ष के पिछे छुपे गुढता को जानने की कोशीश करे तो रुद्र का अर्थ 'रुत् 'अर्थात दुखो को नाश करने वाला , वहीं अक्ष का अर्थ है आँखें यानी की रुद्राक्ष शिव के आँखओं से निकला पिडा हरण करने वाला हैं ।
इस संबध मे महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित शिव पुराण मे भी इसका उल्लेख है ।और भी कई वेदो और पुराणो मे इसके बारे मे लिखा गया हैं ।
"शिव पुराण का अनुसार सति से वियोग होने के कारण शिव कि आँसुओ की बुँदे जमीन पर जगह-जगह गिरने से रुद्राक्ष के वृक्ष का जन्म हुआ"।
"श्रीमद् देवी भागवत मे उल्लेख है की राक्षस त्रिपुर के नाश के लिए जब लंबे वक्त तक भगवान के नेत्र खुले रहे जिसमे थकावट के कारण आँसु निकल पडे और वहीं आँसु जमीन पर गिरने के बाद रुद्राक्ष के रुप मे निकले "।
"इसी तरह पधपुराण मे लिखा है की सतयुग मे जब ब्रम्हदेव के वरदान से शक्ती सम्पन्न बना दानव राज त्रिपुर जब पुरे जगत् को पिडित करने लगा था तो देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शंकर ने अपनी तेजस्वी दृष्टी से त्रिपुर का अंत किया । त्रिपुर से युद्ध के दौरान महादेव की शरीर से से निकली पसीनो की बूदों से रुद्राक्ष के वृक्ष की उत्तपती हुई "।
§ रुद्राक्ष के नाम और उनका स्वरूप =
एकमुखी रुद्राक्ष भगवान शिव, द्विमुखी श्री गौरी-शंकर, त्रिमुखी तेजोमय अग्नि, चतुर्थमुखी श्री पंचदेव, पन्चमुखी सर्वदेव्मयी ,षष्ठमुखी भगवान कार्तिकेय, सप्तमुखी प्रभु अनंत, अष्टमुखी भगवान श्री गेणश, नवममुखी भगवती देवी दुर्गा, दसमुखी श्री हरि विष्णु, तेरहमुखी श्री इंद्र तथा चौदहमुखी स्वयं हनुमानजी का रूप माना जाता है। इसके अलावा श्री गणेश व गौरी-शंकर नाम के रुद्राक्ष भी होते हैं।
1). एकमुखी रुद्राक्ष :- ऐसा रुद्राक्ष जिसमें एक ही आँख अथवा बिंदी हो। स्वयं शिव का स्वरूप है जो सभी प्रकार के सुख, मोक्ष और उन्नति प्रदान करता है।
2). द्विमुखी रुद्राक्ष :- सभी प्रकार की कामनाओं को पूरा करने वाला तथा दांपत्य जीवन में सुख, शांति व तेज प्रदान करता है।
3). त्रिमुखी रुद्राक्ष :- समस्त भोग-ऐश्वर्य प्रदान करने वाला होता है।
4). चतुर्थमुखी रुद्राक्ष :- धर्म, अर्थ काम एवं मोक्ष प्रदान करने वाला होता है।
5). पंचमुखी रुद्राक्ष :- सदैव अनिश्चितता महसूस करना मन का बरबस उचाट हो जाना मानसिक दबाव (डिप्रेशन) का शिकार रहना एकाग्रता की कमी होना – बच्चे या बडे दोनों इन समस्याओं में किसी से आपका कोई भी जानकार ग्रसित हो तो, इच्छा ईश्वर की, 5 मुखी रुद्राक्ष पहनने से लाभ होता है।
6). षष्ठमुखी रुद्राक्ष :- पापों से मुक्ति एवं संतान देने वाला होता है।
7). सप्तमुखी रुद्राक्ष :- दरिद्रता को दूर करने वाला होता है।
8). अष्टमुखी रुद्राक्ष :- आयु एवं सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला होता है।
9). नवममुखी रुद्राक्ष :- मृत्यु के डर से मुक्त करने वाला होता है।
10). दसमुखी रुद्राक्ष :- शांति एवं सौंदर्य प्रदान करने वाला होता है।
11). ग्यारह मुखी रुद्राक्ष :- विजय दिलाने वाला, ज्ञान एवं भक्ति प्रदान करने वाला होता है।
12). बारह मुखी रुद्राक्ष :- धन प्राप्ति कराता है।
13). तेरह मुखी रुद्राक्ष :- शुभ व लाभ प्रदान कराने वाला होता है।
14). चौदह मुखी रुद्राक्ष :- संपूर्ण पापों को नष्ट करने वाला होता है।
धारण करने की विधी-धारण करने हेतु रुद्राक्ष को काले धागे मे पिरो लें या चाँदी की तार पिरो कर लॉकेट बनवा लें। सोने की तार में पिरोए जाने की सिफारिश नहीं है। इसे गले में अपने दिल के सामने लटकता हुआ पहनें। ध्यान रहे कि वह पहने वाले की त्वचा को जरूर छुए।
दोमुखी रुद्राक्ष को साक्षात् अर्द्धनारीश्वर ही मानें... इसे धारण करने
वाला भगवान भोलेनाथके साथ माता पार्वती की अनुकम्पा का भागी होता है...इसे पहिनने से दाम्पत्य जीवन में मधुरता आती है तथा पति-पत्नी का विवाद शांत हो जाता है... दोमुखी रुद्राक्ष घर-गृहस्थी का सम्पूर्ण सुख प्रदान करता है...
तीन-मुखी रुद्राक्ष अग्नि का स्वरूप होने से ज्ञान का प्रकाश देता है...
इसे धारण करने से बुद्धि का विकास होता है, एकाग्रता और स्मरण-शक्ति बढती है... विद्यार्थियों के लिये यह अत्यन्त उपयोगी है...
चार-मुखी रुद्राक्ष चतुर्मुख ब्रह्माजीका प्रतिरूप होने से धर्म, अर्थ,
काम और मोक्ष- इन चारों पुरुषार्थो को देने वाला है... नि:संतान व्यक्ति
यदि इसे धारण करेंगे तो संतति-प्रतिबन्धक दुर्योग का शमन होगा... कुछ
विद्वान चतुर्मुखी रुद्राक्ष को गणेश जी का प्रतिरूप मानते हैं...
पाँचमुखी रुद्राक्ष पंचदेवों-शिव, शक्ति, गणेश, सूर्य और विष्णु की
शक्तियों से सम्पन्न माना गया है... कुछ ग्रन्थों में पंचमुखी रुद्राक्ष
के स्वामी कालाग्नि रुद्र बताए गए हैं... सामान्यत:पाँच मुख वाला
रुद्राक्ष ही उपलब्ध होता है... संसार में ज्यादातर लोगों के पास
पाँचमुखी रुद्राक्ष ही हैं...इसकी माला पर पंचाक्षर मंत्र (नम:शिवाय)
जपने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है...
छह मुखी रुद्राक्ष षण्मुखी कार्तिकेय का स्वरूप होने से शत्रुनाशक सिद्ध
हुआ है...इसे धारण करने से आरोग्यता,श्री एवं शक्ति प्राप्त होती है...
जिस बालक को जन्मकुण्डली के अनुसार बाल्यकाल में किसी अरिष्ट का खतरा हो, उसे छह मुखी रुद्राक्ष सविधि पहिनाने से उसकी रक्षा अवश्य होगी...
सातमुखी रुद्राक्ष कामदेव का स्वरूप होने से सौंदर्यवर्धक है... इसे धारण
करने से व्यक्तित्व आकर्षक और सम्मोहक बनता है... कुछ विद्वान
सप्तमातृकाओं की सातमुखी रुद्राक्ष की स्वामिनी मानते हैं... इसको पहिनने से दरिद्रता नष्ट होती है और घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है...
आठमुखी रुद्राक्ष अष्टभैरव-स्वरूप होने से जीवन का रक्षक माना गया है...
इसे विधिपूर्वक धारण करने से अभिचार कर्मो अर्थात् तान्त्रिक प्रयोगों
(जादू-टोने) का प्रभाव समाप्त हो जाता है... धारक पूर्णायु भोगकर सद्गति प्राप्त करता है...
नौमुखी रुद्राक्ष नवदुर्गा का प्रतीक होने से असीम शक्तिसम्पन्न है...
इसे अपनी भुजा में धारण करने से जगदम्बा का अनुग्रह अवश्य प्राप्त होता है... शाक्तों(देवी के आराधकों) के लिये नौमुखी रुद्राक्ष भगवती का वरदान ही है... इसे पहिनने वाला नवग्रहों की पीडा से सुरक्षित रहता है...
दसमुखी रुद्राक्ष साक्षात् जनार्दन श्रीहरि का स्वरूप होने से समस्त
इच्छाओं को पूरा करता है... इसे धारण करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है तथा कष्टों से मुक्ति मिलती है...
ग्यारहमुखी रुद्राक्ष एकादश रुद्र- स्वरूप होने से तेजस्विता प्रदान करता
है... इसे धारण करने वाला कभी कहीं पराजित नहीं होता है...
बारहमुखी रुद्राक्ष द्वादश आदित्य- स्वरूप होने से धारक व्यक्ति को
प्रभावशाली बना देता है... इसे धारण करने से सात जन्मों से चला आ रहा
दुर्भाग्य भी दूर हो जाता है और धारक का निश्चय ही भाग्योदय होता है...
तेरहमुखी रुद्राक्ष विश्वेदेवों का स्वरूप होने से अभीष्ट को पूर्ण करने
वाला, सुख-सौभाग्यदायक तथा सब प्रकार से कल्याणकारी है... कुछ साधक तेरहमुखी रुद्राक्ष का अधिष्ठाता कामदेव को मानते हैं...
चौदहमुखी रुद्राक्ष मृत्युंजय का स्वरूप होने से सर्वरोगनिवारक सिद्ध हुआ
है... इसको धारण करने से असाध्य रोग भी शान्त हो जाता है...
जन्म-जन्मान्तर के पापों का शमन होता है...
रुद्राक्ष: पहचान एवं उपयोग
रुद्राक्ष: पहचान एवं उपयोग रुद्राक्ष आम के पेड़ जैसे एक पेड़ का फल है। ये पेड़ दक्षिण एशिया में मुख्यतः जावा, मलयेशिया, ताइवान, भारत एवं नेपाल में पाए जाते हैं। भारत में ये मुख्यतः असम, अरुणांचल प्रदेश एवं देहरादून में पाए जाते है। रुद्राक्ष के फल से छिलका उतारकर उसके बीज को पानी में गलाकर साफ किया जाता है। इसके बीज ही रुद्राक्ष रूप में माला आदि बनाने में उपयोग में लाए जाते है इसके अंदर प्राकृतिक छिद्र होते है एवं संतरे की तरह फांकें बनी होती है जो मुख कहलाती हैं। कहा जाता है कि सती की मृत्यु पर शिवजी को बहुत दुख हुआ और उनके आंसू अनेक स्थानों पर गिरे जिससे रुद्राक्ष (रुद्राक्ष अर्थात शिव के आंसू) की उत्पत्ति हुई। इसीलिए जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करता है उसे सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। चंद्रमा शिवजी के भाल पर सदा विराजमान रहता है अतः चंद्र ग्रह जनित कोई भी कष्ट हो तो रुद्राक्ष धारण से बिल्कुल दूर हो जाता है। किसी भी प्रकार की मानसिक उद्विग्नता, रोग एवं शनि के द्वारा पीड़ित चंद्र अर्थात साढ़े साती से मुक्ति में रुद्राक्ष अत्यंत उपयोगी है। शिव सर्पों को गले में माला बनाकर धारण करते हैं। अतः काल सर्प जनित कष्टों के निवारण में भी रुद्राक्ष विशेष उपयोगी होता है। रुद्राक्ष सामान्यतया पांचमुखी पाए जाते हैं, लेकिन एक से चैदहमुखी रुद्राक्ष का उल्लेख शिव पुराण, पद्म पुराण आदि में मिलता है। रुद्राक्ष के मुख की पहचान उसे बीच से दो टुकड़ों में काट कर की जा सकती है। जितने मुख होते हैं उतनी ही फाके नजर आती हैं। हर रुद्राक्ष किसी न किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। इनका विभिन्न रोगों के उपचार में भी विशेष उपयोग होता है। रुद्राक्षों में एकमुखी अति दुर्लभ है। शुद्ध एकमुखी रुद्राक्ष तो देखने में मिलता ही नहीं है। नेपाल का गोल एकमुखी रुद्राक्ष अत्यंत ही दुर्लभ है। इसके स्थान पर दक्षिण भारत में पाया जाने वाला एकमुखी काजूदाना अत्यंत ही प्रचलित है। असम में पाया जाने वाला गोल दाने का एकमुखी रुद्राक्ष भी बहुत प्रचलित है। इक्कीस मुखी से ऊपर के रुद्राक्ष अति दुर्लभ हैं। इसके अतिरिक्त अट्ठाइस मुखी तक के रुद्राक्ष भी पाए जाते हैं। मालाएं अधिकांशतः इंडोनेशिया से उपलब्ध रुद्राक्षों की बनाई जाती हैं। बड़े दानों की मालाएं छोटे दानों की मालाओं की अपेक्षा सस्ती होती हैं। साफ, स्वच्छ, सख्त, चिकने व साफ मुख दिखाई देने वाले दानों की माला काफी महंगी होती है। रुद्राक्ष के अन्य रूपों में गौरी शंकर, गौरी गणेश, गणेश एवं त्रिजुटी आदि हैं। गौरी शंकर रुद्राक्ष में दो रुद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं। ये दोनों रुद्राक्ष गौरी एवं शंकर के प्रतीक हैं। इसे धारण करने से दाम्पत्य जीवन में मधुरता बनी रहती है। इसी प्रकार गौरी गणेश में भी दो रुद्राक्ष जुड़े होते हैं एक बड़ा एक छोटा, मानो पार्वती की गोद में गणेश विराजमान हों। रुद्राक्ष के बारे में कुछ भ्रम भी प्रचलित हैं। जैसे कि पहचान के लिए कहा जाता है कि तांबे के दो सिक्कों के बीच में यदि रुद्राक्ष को रखा जाए और वह असली हो तो धीमी गति से घूमता हुआ नजर आएगा। वास्तव में रुद्राक्ष जैसी किसी भी गोल कांटेदार वस्तु को यदि इस तरह पकड़ा जाएगा तो वह असंतुलन के कारण घूमेगी। दूसरा भ्रम यह है कि असली रुद्राक्ष पानी में डूबता है, नकली नहीं। यह बात इस तथ्य तक तो सही है कि लकड़ी का बना कृत्रिम रुद्राक्ष नहीं डूबेगा। रुद्राक्ष का बीज भारी होने के कारण डूब जाता है लेकिन यदि असली रुद्राक्ष पूरा पका नहीं हो या छिद्र में हवा भरी रह गई हो तो वह भी पानी से हल्का ही रहता है, डूबता नहीं। अधिक मुख वाले रुद्राक्ष एवं एकमुखी रुद्राक्ष महंगे होने के कारण नकली भी बना लिए जाते हैं। प्रायः कम मुखी रुद्राक्ष में अतिरिक्त मुख की धारियां बना दी जाती हैं जिससे कम मूल्य का रुद्राक्ष अधिक मूल्य का हो जाता है। इस तथ्य की जांच करने के लिए रुद्राक्ष को बीच से काटकर फांकों की गिनती की जा सकती है। दूसरे, अनुभव द्वारा इन कृत्रिम धारियों और प्राकृतिक धारियों में अंतर किया जा सकता है। कभी-कभी दो रुद्राक्षों को जोड़कर भी एक महंगा रुद्राक्ष बना लिया जाता है। गौरी शंकर, गौरी गणेश या त्रिजुटी रुद्राक्ष अक्सर इस प्रकार बना लिए जाते हैं। इसकी जांच के लिए यदि रुद्राक्ष को पानी में उबाल दिया जाए तो नकली रुद्राक्ष के टुकड़े हो जाएंगे जबकि असली रुद्राक्ष ज्यों का त्यों रह जाएगा। कई बार नकली रुद्राक्ष को भारी करने के लिए छिद्रों में पारा या सीसा भर दिया जाता है। उबालने से यह पारा या सीसा बाहर आ जाता है और रुद्राक्ष तैरने लगता है। कई बार देखने में आता है कि रुद्राक्ष पर सर्प, गणेश, त्रिशूल आदि बने होते हैं। ये सभी आकृतियां प्राकृतिक नहीं होती हैं, इस प्रकार के रुद्राक्ष केवल नकली ही होते हैं। अतः महंगे रुद्राक्ष किसी विश्वसनीय प्रतिष्ठान से ही खरीदना उचित है। रुद्राक्ष पहनने में किसी विशेष सावधानी की आवश्यकता नहीं है, लेकिन जिस प्रकार दैवी शक्तियों को हम पवित्र वातावरण में रखने का प्रयास करते हैं, उसी प्रकार रुद्राक्ष पहनकर शुचिता बरती जाए, तो उत्तम है। अतः साधारणतया रुद्राक्ष को रात को उतार कर रख देना चाहिए और प्रातः स्नानादि के पश्चात मंत्र जप कर धारण करना चाहिए। इससे यह रात्रि व प्रातः की अशुचिता से बचकर जप की ऊर्जा से परिपूर्ण होकर हमें ऊर्जा प्रदान करता है। शिव सदैव शक्ति के साथ ही पूर्ण हैं। दैवी शक्तियों में लिंग भेद नहीं होता है। स्त्री-पुरुष का भेद केवल पृथ्वी लोक में ही होता है। रुद्राक्ष, जिसमें दैवी शक्तियां विद्यमान हैं, स्त्रियां अवश्य धारण कर सकती हैं। गौरी शंकर रुद्राक्ष व गौरी गणेश रुद्राक्ष खासकर स्त्रियों के लिए ही हैं। पहला सफल वैवाहिक जीवन के लिए एवं दूसरा संतान सुख के लिए। हां शुचिता की दृष्टि से राजो दर्शन के तीन दिनों तक रुद्राक्ष न धारण किया जाए, तो अच्छा है। रुद्राक्ष धारण करने के लिए सोमवार को प्रातः काल पहले कच्चे दूध से और फिर गंगाजल से धोकर व अष्टगंध लगाकर ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जप कर धारण करना चाहिए।
जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया , वर्मा, आसाम, नेपाल, और हिमालय के कई शेत्रो मे उत्तपन होने वाला रुद्राक्ष एक सुपरिचित बीज है , जिसे पिरोकर मालांये बनायी जाती है l किन्तु उसके गुण- प्रभाव की जानकारी सबको नहीं है l जन- सामान्य की धारणा है कि रुद्राक्ष पवित्र होता है l इसलिए इसे पहनना चाहिएl बस, इससे अधिक जानने कि चेस्था कोई करता ही नहीं l
वस्त्तु : रुद्राक्ष मे अलोकिक गुण है l इसके चुब्किये प्रभाव को, इसकी सपर्श-शक्ति को आधुनिक विज्ञानदेता भी स्वीकार करते हैl यह रोग-शमन और अद्रिस्ये बाधाओ के निवारण मे अद्भुत रूप से सफल होता है l स्वास्थ्य, शांति, और श्री-समृधि देने मे भी यह प्रमुख है l रुद्राक्ष के खुरदरे और कुरूप बीज (गुठली) पर धारिया होती है lइनकी संख्या एक से ग्यारह तक पाई जाती है l इन धारियों को "मुख" कहते है l मुख-संख्या के आधार पर रुद्राक्ष के गुण, प्रभाव और मूल्य मे अंतर रहता है l
वस्त्तु : रुद्राक्ष मे अलोकिक गुण है l इसके चुब्किये प्रभाव को, इसकी सपर्श-शक्ति को आधुनिक विज्ञानदेता भी स्वीकार करते हैl यह रोग-शमन और अद्रिस्ये बाधाओ के निवारण मे अद्भुत रूप से सफल होता है l स्वास्थ्य, शांति, और श्री-समृधि देने मे भी यह प्रमुख है l रुद्राक्ष के खुरदरे और कुरूप बीज (गुठली) पर धारिया होती है lइनकी संख्या एक से ग्यारह तक पाई जाती है l इन धारियों को "मुख" कहते है l मुख-संख्या के आधार पर रुद्राक्ष के गुण, प्रभाव और मूल्य मे अंतर रहता है l
एकमुखी रुद्राक्ष सर्वथा दुर्लभ होता है l दो से लेकर सात मुखी तक मिल जाते है l पर आठ से चोह्ह तक मुख वाले कदाचित ही मिल पाते है l फिर 15 से 21 धारी वाले तो निरांत दुर्लभ है l सर्व सुर्लभ दाना पंचमुखी हैl समंत्ये प्रयास करने पर एक से 13 तक मुखी तक दाने मिल जाते है l इन सभी के अलग - अलग देवता है l प्रतेक दाने मे (धारियों के कोटि-क्रम से ) उसके देवता कि शक्ति समाहित रहती है l और उसके धारक को उस देवता कि कृपा सुलभ ही जाती है l यो तो सभी रुद्राक्ष शिवाजी को प्रिये है और उनमे किसी को भी धारण करने से धारण करने से साधक शिव-कृपा का पात्र हो जाता है l
रुद्राक्ष का दाना अथवा माला, जो भी सुलभ हो , गंगाजल या अन्य पवित्र जल से स्नान कराकर , शिव जी भाति चन्दन, धुप दीप से पूजन चाहिएl पूजनाप्रान्त "ॐ नम: शिवाय " मन्त्र का 1100 जप करके 108 आहुतियो से हवन करना चाहिए l तत्प्स्यात रुद्राक्ष को शिवलिंग से स्पर्श कराकर पुन: 5 बार "ॐ नम: शिवाय" मन्त्र जपते हुए पूर्व या उतर कि और मुह करके धारण कर लेना चाहिए l धारण करने के बाद हवन- कुंड कि भस्म का टीका लगाकर शिव-प्रतिमा को परयाम प्रभावी होता है l
यह रुद्राक्ष -धारण कि सरलतम पद्धति है l वेसे समयर्थ साधको को चाहिए कि वे (यदि संभव हो तो ) अपने रुद्राक्ष को पचामृत से स्नान कराकर, अष्टघंध अथवा पंच्घंध से भी नहलाये (उसमे डुबोये) फिर पूर्ववत्त पूजा करके उस रुद्राक्ष से सम्भित मन्त्र- विशेष का (धारियों के आधार पर ) 1100 जप करें l औए 108 बार आहुति देकर हवन करें l तदुपरांत उसी मन्त्र को 5 बार जपते हुए रुद्राक्ष धारण करें l और भस्म-लेपन के पश्यात शिव- प्रतिमा को प्ररान्म करें l एक- मुखी से लेकर चोदह - मुखी रुद्राक्ष तप के जप और धारण के संबध मे मह्रिशियो ने निंलिखित देवता को मन्त्र निर्धारित किये है l
क्या आपका बच्चा पढ़कर भूल जाता है?, अधिक परिश्रम करने के बाद भी रिजल्ट ठीक नहीं आता? या बच्चा पढऩे में होशियार तो है लेकिन उसका ध्यान पढ़ाई में नहीं लगता? यदि आपके बच्चे के साथ भी यह समस्याएं हैं कि घबराने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि गणेश रुद्राक्ष इन सभी समस्याओं का एकमात्र आसान उपाय है।
ज्योतिष के अनुसार पढ़ाई में सफलता के लिए बुध ग्रह का अनुकूल होना आवश्यक होता है। बुध ग्रह यदि अनुकूल हो तो व्यक्ति तीव्र बुद्धि से युक्त होता है तथा सामान्य प्रयास करने पर भी बेहतर परिणाम पा सकता है। गणेश रुद्राक्ष धारण करने से बुध ग्रह अनुकूल फल देने लगता है। गणेश रुद्राक्ष अध्ययन के प्रति एकाग्रता में वृद्धि करता है, स्मरण शक्ति बढ़ाता है तथा लेखन की शक्ति में भी वृद्धि करता है। इसके प्रभाव से सामान्य क्षमता वाला विद्यार्थी भी बेहतर परीक्षा परिणाम प्राप्त कर सकता है।
ज्योतिष के अनुसार पढ़ाई में सफलता के लिए बुध ग्रह का अनुकूल होना आवश्यक होता है। बुध ग्रह यदि अनुकूल हो तो व्यक्ति तीव्र बुद्धि से युक्त होता है तथा सामान्य प्रयास करने पर भी बेहतर परिणाम पा सकता है। गणेश रुद्राक्ष धारण करने से बुध ग्रह अनुकूल फल देने लगता है। गणेश रुद्राक्ष अध्ययन के प्रति एकाग्रता में वृद्धि करता है, स्मरण शक्ति बढ़ाता है तथा लेखन की शक्ति में भी वृद्धि करता है। इसके प्रभाव से सामान्य क्षमता वाला विद्यार्थी भी बेहतर परीक्षा परिणाम प्राप्त कर सकता है।
कैसे व कब धारण करें?
गणेश रुद्राक्ष धारण करने से पहले उसे गाय के कच्चे दूध तथा गंगाजल से धो लें तथा उसका पूजन करें। इसके पश्चात गणपतिअर्थवशीर्ष का पाठ करें। गणेश रुद्राक्ष को हरे रंग के धागे में धारण करें।
किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष मेंजिस बुधवार को सर्वाथसिद्धि योग बन रहा हो, उस दिन गणेश रुद्राक्ष पहनना शुभ होता है।
एक मुखी रूद्राक्ष
गणेश रुद्राक्ष धारण करने से पहले उसे गाय के कच्चे दूध तथा गंगाजल से धो लें तथा उसका पूजन करें। इसके पश्चात गणपतिअर्थवशीर्ष का पाठ करें। गणेश रुद्राक्ष को हरे रंग के धागे में धारण करें।
किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष मेंजिस बुधवार को सर्वाथसिद्धि योग बन रहा हो, उस दिन गणेश रुद्राक्ष पहनना शुभ होता है।
एक मुखी रूद्राक्ष
लाभ:
1. एक मुखी रुद्राक्ष तो भगवान् शंकर का ही स्वरुप माना जाता है | यह रुद्राक्ष सूर्य से ही सम्बंधित है और सूर्य के अशुभ प्रभाव जैसे आत्म विश्वास की कमी , निस्तेज चेहरा डरे डरे रहना , अज्ञात भय आदि को ठीक करता है | सूर्य द्वारा होने वाले अलग रोगों को ठीक कर सकते है | जैसे दाई आँख के रोग ,सिर दर्द , कान के रोग ,हड्डियों की कमजोरी आदि , साथ ही यह समृद्ध शक्ति तथा नेतृत्व क्षमता भी देता है | यह धारक को उच्चपद आदर व सम्मान दिलाता है | जिस घर में एक मुखी रुद्राक्ष होता है उसमे सदा लक्ष्मी का बॉस होता है | शत्रु स्वय ही परास्त हो जाते है |
2.एक मुखी रूद्राक्ष पहनने पर सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है.
3.एक मुखी रूद्राक्ष सभी प्रकार के पापों का नाश करता है.
4.एक मुखी रूद्राक्ष कुंडली में सूर्य के हानिकारक प्रभाव को नियंत्रित करता है.
5.एक मुखी रूद्राक्ष प्रशासक, नेताओं, दवा की दुकानों, बिल्डर्स, संपत्ति डीलरों, होटल व्यवसायियों आदि के लिए यह रूद्राक्ष लाभकारी है.
मन्त्र: ॐ नमः शिवाय ,ॐ ह्रीं नमः ||
दो मुखी रूद्राक्ष
लाभ:
1.यह रुद्राक्ष शिव शक्ति का स्वरुप है | यह चंद्रमा से सम्बंधित है और चंद्रमा के अशुभ प्रभावों को कम करता है | चंद्रमा द्वारा दिया जाने वाले रोग - जैसे बाई आँख के रोग, किडनी का रोग , आंत के रोग को ठीक करता है | साथ ही आपसी सम्बन्धो में आई कड़वाहट को दूर करता है , मानसिक शक्ति को बढाता है | जो व्यक्ति गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण नहीं कर सकते उन्हें गौरी व शंकर दोनों को प्रसन्न करने के लिए दो मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए | वक्तावों , न्यायधीशो , वकीलों , वैज्ञानिकों , अनुसंधान कर्ताओ व विधार्थियों के लिए उत्तम है |
2.यह रूद्राक्ष कुंडली में चंद्रमा के हानिकारक प्रभाव को नियंत्रित करता है |
3.यह रूद्राक्ष न्यायाधीशों, लेखक, कलाकार, अभिनेता आदि के लिए यह रूद्राक्ष लाभकारी है |
मन्त्र: ॐ श्री गौरी शंकराय नमः ,ॐ नमः||
तीन मुखी रूद्राक्ष
लाभ:
1. तीन मुखी रुद्राक्ष ब्रम्हा , विष्णु व महेश तीनों का स्वरुप है इससे त्रिदेवों की प्रसन्नता मिलती है यह मंगल से सम्बन्धित है मंगल के अशुभ प्रभावों जैसे कि रक्त के रोग, उच्च रक्त चाप शारीरिक कमजोरी , माहवारी के रोग , किडनी के रोग , तनाव व नकारात्मक सोच ,पाप बोध आदि को ठीक करता है | दया , धर्म , परोपकार ,जनकल्याण ,के विचारों को विशेष रूप से बढाता है वात ,पित व कफ का शरीर में उचित संतुलन रखता है | कमजोर विधार्थियों के लिये विशेष लाभदायक है बार बार बिमारियों से परेशान रहने वाले लोगो को तुरंत लाभ देता है |
2.यह रूद्राक्ष कुंडली में मंगल ग्रह के हानिकारक प्रभावों को नियंत्रित करता है |
3.यह रूद्राक्ष पुलिस अधिकारियों, सेना के अधिकारी, एथलीट, खिलाड़ी, इंजीनियर, सर्जन, नर्स, चिकित्सा प्रतिनिधि, केमिस्ट्स बिल्डर्स, संपत्ति डीलरों, विद्युत और घरेलू उपकरण व्यवसायियों, ऑटोमोबाइल व्यापारी, घर के अधिकारियों, रक्षा, खेल , कृषि, विज्ञान, सड़क, परिवहन, रेलवे, आदि विभागों के लिए यह रूद्राक्ष लाभकारी है |
मन्त्र: ॐ क्लिंग नमः ,ॐ नमः शिवाय ||
चार मुखी रूद्राक्ष
लाभ:
1. यह देवी सरस्वती और ब्रह्मा का स्वरुप है यह बुध से सम्बन्धित है बुध ग्रह के अशुभ प्रभावों दिमागी कमजोरी कुछ भी समझने की कमी , बोल चाल की दिक्कत , दिमाग की नसों की कमजोरी ,आदि से बचाता है यह धर्म ,अर्थ ,कम तथा मोक्ष देने वाला है ब्राह्मण ,क्षत्रिय इत्यादी चारों वर्गों से पुजित है ब्रह्मचारी ,गृहस्त , बाण प्रस्थ व सव्यासी सभी इसे धारण कर सकते है | वेद , पुराण ,संस्कृत पढने वाले विध्यार्थी व धर्माचारियों को अवश्य धारण करना चाहिए |
3.यह रूद्राक्ष कुंडली में बुध ग्रह के हानिकारक प्रभावों को नियंत्रित करता है |
4.यह रूद्राक्ष बैंक अधिकारियों, प्रबंधकों, व्यापारियों, राइटर्स, अधिवक्ता, पत्रकार, चार्टर्ड एकाउंटेंट, प्रकाशक, प्रिंटिंग प्रेस संबंधित व्यवसायियों, वित्त, वाणिज्य के अधिकारियों, लेखा, लेखा परीक्षा, आर्थिक, सांख्यिकी, योजना और कराधान आदि विभागों के लिए लाभकारी है |
मन्त्र: ॐ ह्रीं नमः ||
पांच मुखी रूद्राक्ष
लाभ:
1. यह रुद्राक्ष भगवान परमेश्वर का स्वरुप है यह गुरु से सम्बन्धित है | ज्ञान ,विचारों का सौन्दर्य ,शांति ,संपत्ति , संतान आदि देता है | गुरु के अशुभ प्रभावों जैसे वैवाहिक जीवन में तनाव , विवाह का विलम्ब होना ,मोटापा ,शुगर, जांघ ,किडनी के रोगों को ठीक करता है | विशेष आयु व उत्तम स्वास्थ प्रदान करता है , टूटे हुए दिल को जोड़ता है किसी अचानक हमले से रक्षा करता है
3. यह रूद्राक्ष कुंडली में बृहस्पति के हानिकारक प्रभावों को नियंत्रित करता है |
4. यह रूद्राक्ष प्रोफेसर, व्याख्याता के लिए फायदेमंद है, शिक्षक, आध्यात्मिक शिक्षक (गुरु), न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं, ज्योतिषी, रिसर्च स्कॉलर्स, शिक्षा संबंधित व्यवसायियों, शिक्षा, मानव संसाधन विभाग, विश्वविद्यालयों, कॉलेजों के अधिकारियों आदि विभागों के लिए लाभकारी है |
मन्त्र: ॐ नमः शिवाय , ॐ ह्रीं नमः ||
छह मुखी रूद्राक्ष
लाभ:
1. यह रुद्राक्ष स्वामी कार्तिकेय का स्वरुप है यह शुक्र से सम्बन्धित है और शुक्र ग्रहों के अशुभ प्रभावों व रोग जैसे कि प्रजनन अंगो में रोग ,गुप्त रोग ,उच्च रक्त चाप ,मूर्छा कम या अधिक कामुकता को नियंत्रित करना ,प्रेम व संगीत आदि में रूचि , विध्या अध्यन में भी उपयोगी है दरिद्रता का नाश कर ,संपत्ति को बढ़ाता है अति कम ,क्रोध ,लोभ ,मोह ,मद ,मतसर नामक छहों दुर्गुणों को दूर करने में सहायक है सौन्दर्य व फिल्म जगत में सफलता दिलाने में विशेष कामगर है |
2.यह रूद्राक्ष कुंडली में शुक्र की विघातक प्रभाव को नियंत्रित करता है.
3.यह रूद्राक्ष कलाकार, अभिनेता, संगीतकार, चित्रकारों, हस्तशिल्प श्रमिक, ब्यूटीशियन, सौंदर्य उत्पाद, रेडीमेड गारमेंट्स और कपड़े के व्यापारी, महिला कल्याण आदि विभाग के अधिकारियों के लिए यह रूद्राक्ष लाभकारी है.
मन्त्र: ॐ स्वामी कर्तिकेयाय नमः , ॐ ह्रीं नमः||
सात मुखी रूद्राक्ष
लाभ:
1. यह रुद्राक्ष लक्ष्मी का स्वरुप है यह शनि ग्रह से सम्बन्धित है और शनि के अशुभ प्रभावों जैसे रोग ,मृत्यु ,नपुंसकता ,सर्दी ,निराशा, अंधकार ,किसी भी प्रकार का दुःख दूर करता है यह सप्तकोटि,मन्त्रों के समतुल्य है और सभी के प्रकार के अतिमोह में कमी लता है | दुनिया में इसको पहनने से भ्रमण करने कि इच्छा सुगमता से पूर्ण होती है व्यापार व नौकरी में उन्नति होती है तथा धन धान्य कि कमी नहीं रहती है |
2. यह रूद्राक्ष इंजीनियर्स, कृषक, किसान, खनन व्यवसायियों, पेट्रोलियम उत्पाद व्यवसायियों, प्लास्टिक उत्पाद व्यवसायियों, न्यायाधीशों, वकीलों, सैनिक, ठेकेदार, ऑटोमोबाइल व्यापारी, ट्रांसपोर्टर, ट्रेड यूनियन के नेताओं, श्रमिकों, मानव संसाधन प्रबंधक, मानव संसाधन, बीमा, चिकित्सा अधिकारियों के लिए लाभकारी , कृषि, कोल, खनिज और खान, श्रम कल्याण, पेट्रोलियम, सामान्य प्रशासन, सड़क और परिवहन, रेलवे विभागों आदि के लिए यह रूद्राक्ष लाभकारी है.
मन्त्र: ॐ महालक्ष्मी नमः ,ॐ ह्रीं नमः||
आठ मुखी रूद्राक्ष
लाभ:
1. यह रुद्राक्ष गणेश जी व रूद्र का स्वरुप है यह राहु ग्रह से सम्बन्धित है राहु के अशुभ प्रभावों जैसे फेफड़े के रोग ,अकस्मात् होने वाली घटनाये ,चोरी की घटना ,अचानक विवाद ,मोतियाबिंद ,पेट ,त्वचा के रोग आदि को ठीक करता है लेखन तुला में निपुणता तथा व्यक्ति को अंतर्मुखी होने की शक्ति देता है राजनीति में भी अच्छी सफलता दिलाता है तत्व ज्ञान की प्राप्ति में सहायक है.
2.यह रूद्राक्ष कंप्यूटर इंजीनियर, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, कंप्यूटर ऑपरेटर, संचार इंजीनियर्स, शेयर बाजार दलाल, पायलट, वायु सेना के अधिकारियों, मोबाइल कंपनियों, टेलीविजन कंपनियों, दूरसंचार विभागों, एयरलाइंस आदि के अधिकारियों के लिए लाभकारी है.
मन्त्र: ॐ गणेशाय नमः ||
नौ मुखी रूद्राक्ष
लाभ:
1.यह रुद्राक्ष दुर्गा का स्वरुप है अतः नौरात्रि व्रतों का फलदाता है नव ग्रहों में से अनिस्टकारक ग्रहों के प्रभाव का नाश करता है यह केतु ग्रह से सम्बन्धित है केतु के अशुभ प्रभावों जैसे फेफड़े के रोग ,ज्वर , आँख का दर्द ,त्वचा रोग ,शरीर दर्द आदि को ठीक करता है आत्मबल को बढाता है दिल की धड़कन चलने से घबड़ाहट साँस फूलना ,हफना आदि रोगों में लाभ करी होता है गृहस्तों की किसी भी समस्या को दूर करता है देवी के उपासकों को इसे जरूर धारण करना चाहिए देवी मन्त्रों का ज्ञान शीघ्र ही लाभ देने लगता है
2. नौ मुखी रूद्राक्ष कालसर्प (कालसर्प दोष) योग, ग्रहण योग आदि के प्रतिकूल प्रभाव को दूर करने के लिए फायदेमंद है.
2. यह रूद्राक्ष कंप्यूटर इंजीनियर, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, कंप्यूटर ऑपरेटर, संचार इंजीनियर्स, शेयर बाजार दलाल, पायलट, वायु सेना के अधिकारियों, मोबाइल कंपनियों, टेलीविजन कंपनियों, दूरसंचार विभागों, एयरलाइंस आदि के अधिकारियों के लिए लाभकारी है.
मन्त्र: ॐ नौदुर्गाय नमः , ॐ ह्रीं नमः ||
दस मुखी रूद्राक्ष
लाभ:
1.यह रुद्राक्ष भगवन विष्णु का स्वरुप है यह सभी ग्रहों के प्रभावों को दूर करने में सक्षम है व्यक्ति को सम्पूर्ण सुरक्षा का अहसास कराता है इसे प्रमुख दस अवतारों का आशीर्वाद प्राप्त है दस इंद्रियों द्वारा किये गये पापकर्म का नाश करता है राजसी कार्यों में सफलता मिलती है दासों दिशाओं में यश की वृद्धि करता है हृदय और दिमाग को मजबूत करता है अजनबी भी मित्र बन जाते है मौत से भय नहीं लगता है
2. यह रूद्राक्ष धारण करने पर मौत से डर नहीं लगता है.
3.यह रूद्राक्ष कुंडली में बृहस्पति के हानिकारक प्रभावों को नियंत्रित करता है.
4.यह रूद्राक्ष गुरु चंडाल योग, पितृ दोष आदि योग के प्रतिकूल प्रभावों को दूर करने के लिए फायदेमंद है.
5. यह रूद्राक्ष डॉक्टर, केमिस्ट, चिकित्सा प्रतिनिधि, मैकेनिकल इंजीनियर्स, बिल्डर्स, संपत्ति डीलरों, पायलट, वायुसेना अधिकारियों, प्रोफेसरों, शिक्षकों, आध्यात्मिक शिक्षक (गुरु) आदि के लिए लाभकारी है.
मन्त्र: ॐ श्री नारायणाय नमः , ॐ ह्रीं नमः ||ग्यारह मुखी रूद्राक्ष
लाभ:
1.यह रुद्राक्ष रूद्र का स्वरुप है अर्थात महावीर बजरंग बली का रूप है यह व्यक्ति को साहस व आत्मविश्वाश देता है और व्यक्ति हिम्मत व बहादुरी से जीवन जीता है विद्वान ,गुणवान व चतुर भी बनाता है किसी व्यक्ति में दूसरे के मन की बात जान लेने का गुण भी आने लगता है झुंझलाहट अधीरता व कायरता से मुक्ति दिलाता है दुःख स्वाभाव में रहने वाले लोगों को हंसने की कला के साथ जीवन आनंदित कर देता है.
2. यह रूद्राक्ष कुंडली में मंगल ग्रह के हानिकारक प्रभावों को नियंत्रित करता है.
3. यह रूद्राक्ष मांगलिक योग के प्रतिकूल प्रभाव को दूर करने के लिए फायदेमंद है.
4. यह रूद्राक्ष बैंक अधिकारियों, प्रबंधकों, चार्टर्ड एकाउंटेंट, डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट, वायुसेना अधिकारियों, क्लर्कों, आशुलिपिक, टंकक, राइटर्स आदि के लिए यह रूद्राक्ष लाभकारी है.
मन्त्र: ॐ श्री रुद्राय नमः , ॐ ह्रीं नमः ||बारह मुखी रूद्राक्ष
लाभ:
1.यह रुद्राक्ष सूर्य देव का स्वरुप है यह सूर्य ग्रह से सम्बंधित है इसको धारण करने से राजकीय कार्यों में सफलता महत्वकक्षाये ऊँची होने लगती है यह आपसी कलह भी शांत करता है हड्डी से सम्बंधित रोग तो दूर करता ही है सभी प्रकार के रोगों में लाभ करी है
2. यह रूद्राक्ष कुंडली में सूर्य के हानिकारक प्रभाव को नियंत्रित करता है.
3. यह रूद्राक्ष प्रशासक, राजनेता, लेखाकार, चार्टर्ड एकाउंटेंट, पुलिस अधिकारियों, डॉक्टरों, कंप्यूटर इंजीनियर, व्यापारी आदि के लिए लाभकारी है.
मन्त्र: ॐ श्री सूर्याय नमः ||
तेरह मुखी रूद्राक्ष
लाभ:
1. यह इंद्र का स्वरुप है यह व्यक्ति को जैसा सुन्दर बनाता है इंद्र जैसा भोग विलास का अवसर मिलता है यह छह मुखी रुद्राक्ष की तरह भी कम करता है और शारीरिक सुखी की पूर्ति कराता है राज्य में पद प्राप्त कराता है उदार व सात्विक विचार उत्पन्न करता है नवीन योजनाओं को सफल कराने में भी विशेष लाभदायक है भाग्य वृद्धि करता है स्त्रियाँ विशेष प्रसन्न रहती है.
2. यह रूद्राक्ष कुंडली में चंद्रमा और शुक्र के हानिकारक प्रभावों को नियंत्रित करता है.
3. यह रूद्राक्ष प्रशासक, राजनेता, अधिवक्ता, ठेकेदार, संगीतकार, कवि, लेखाकार, होटल व्यवसायियों, जनरल व्यापारी, आदि व्यापारी के लिए लाभकारी है.
मन्त्र: ॐ ह्रीं नमः ||
चौदह मुखी रूद्राक्ष
लाभ:
1.यह रुद्राक्ष भगवान शिव त्रिपुरारी का स्वरूप है यह शनि ग्रह से सम्बंधित है यह सभी अभिलाष्यों को पूर्ण करता है इश्वर के प्रति आस्था बढाता है भगवान में मन लगाता है ,मस्तिस्क को शांति देता ,हृदय को मजबूत करना ,उच्च रक्त चाप को ठीक करना ,दम कैंसर जैसे रोगों में लाभदायक है इसे पानी में घीस कर पीने से अनेक रोगों का निवारण होता है अध्यात्मक में सफलता वालों को अपने इष्ट का दर्शन चाहने वालों को अध्यात्मिक रहस्यों की जानने की इच्छा रखने वाले को यह जरूर धारण करना चाहिये
2. यह रूद्राक्ष प्रशासक, राजनेता, व्यापारी, डॉक्टर, सिविल इंजीनियर्स, न्यायाधीशों, ठेकेदार, बिल्डर्स, संपत्ति डीलरों आदि के लिए यह रूद्राक्ष लाभकारी है.
मन्त्र: ॐ नमः शिवाय ||
गौरी शंकर रूद्राक्ष
लाभ:
1.यह रुद्राक्ष सर्वश्रेष्ठ रुद्राक्ष है प्राकृतिक रूप से आपस में दो रुद्राक्ष जुड़ कर यह बनते है यह शक्ति प्रदान करता है यह शिव के अर्धनारेश्वर रूप का प्रतीक है यह एक मुखी व चौदह मुखी दोनों रुद्राक्षों का भी फल देने वाला होता है इसे धारण करने से दुःख दरिद्रता पास नहीं आती मान सम्मान में वृद्धि होती है और व्यक्ति हमेशा सुख मिजाज़ रहता है दाम्पत्य जीवन की सभी बाधाओं को दूर करता है विवाद व आपसी तनाव के कारण पति पत्नी यदि अलग -अलग रहते है तो इसे जरूर धारण करना चाहिये.
2. यह रूद्राक्ष बैंक प्रबंधक, सॉफ्टवेयर इंजीनियर आदि के लिए लाभकारी है.
मन्त्र: ॐ उमा महेश्वराभ्याम नमः ||
गणेश रूद्राक्ष
लाभ:
1.यह रुद्राक्ष गणेश जी का स्वरुप है कहा जाता है इससे धारण करने से व्यक्ति को ऋद्धि सिद्धि कार्य कुशलता मन प्रतिष्ठा .व्यापर में लाभ ,विद्दयार्थी वर्ग के लिए विशेष लाभदायक है इससे स्मरण शक्ति ,ज्ञान में वृद्धि व बौधिक विकास होता है. प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता दिलाने में विशेष कारगर है. किसी भी कार्य में विध्न बाधाये नहीं आती है.
2. यह रूद्राक्ष छात्रों के लिए, प्रतियोगी परीक्षा उम्मीदवारों आदि के लिए लाभकारी है.
मन्त्र: ॐ गणेशाय नमः ||
गर्भ गौरी रूद्राक्ष
विवरण:
गर्भ गौरी रूद्राक्ष गौरी शंकर के छोटे रूप है. गौरी शंकर में शामिल हो गए दोनों मोती बराबर आकार लेकिन गर्भ गौरी में एक मनका अन्य की तुलना में छोटी है|
लाभ:
1. विवाह के बाद ही इस रुद्राक्ष को धारण करना चाहिये गर्भ धारण में यह विशेष लाभकारी है जिन महिलाओं में गर्भ धारण नहीं होता है या एक ,दो माह होके गर्भपात हो जाता है उन्हें यह रुद्राक्ष जरूर धारण करना चाहिये इससे गर्भ रक्षा होती है और बच्चे मजबूत होते है यह सब कुछ ठीक रहने के बाद भी उत्तम पुत्र की कामना के लिये लाभप्रद है.
मन्त्र: ॐ नमः शिवाय नमः , ॐ ह्रीं नमः ||
रूद्राक्ष माला
रूद्राक्ष को एक अकेले दाने के रूप में या माला के रूप में धारण किया जा सकता है एक ही माला से सभी दाने एक ही प्रकार के हो सकते है और विभिन्न प्रकार के भी हो सकते है रुद्राक्ष की माला अनेक प्रकार से फलदायी होती है सभी अलग -अलग मन्त्रों के लिये अलग -अलग माला बताया गया है लेकिन रुद्राक्ष के माला से सभी मन्त्र जपे जा सकते है जप करने के बाद क्षुद्रता के लिये माला को पूजा स्थान पर रखना चाहिये वैज्ञानिक मत के अनुसार मंत्रो की जप की बाद माला में उर्जा उत्पन्न हो जाती है यह माला यह माला अगर शरीर में धारण में किया जाये तो वो उर्जा शरीर को प्राप्त होने लगती है ऐसा करना ज्यादा अच्छा है लेकिन आवश्यक है कि माला धारण के साथ पवित्रता रखी जाये शौचादिक जैसे क्रिया या शमशान घाट जहा दूषित उर्जा हो वहा जाने के पूर्व माला को उतार देना चाहिये वृक्ष से लाया हुआ पुर्णतः सुद्ध रुद्राक्ष दिल के साथ अर्थात पूरा फल ही हमें यहाँ प्राप्त है जिसका छिलका हटाने से रुद्राक्ष बाहर आ जाता है.
किस व्यवसाय में कौन सा रुद्राक्ष धारण करे |
1. वकील , जज ,न्यायलय में कार्य करने वाले सभी लोगों को एक मुखी, चार मुखी, व तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिये |
2. वित्तीय क्षेत्र के कर्मचारी ,चार्टेड एकाउंट, रूपये के लेन देन का कार्य करने वाले सभी लोगों को आठ मुखी, ग्यारह मुखी, बारह मुखी,तेरह मुखी धारण करना
3. प्रशासनिक अधिकारी व पुरुष कर्मचारी को नौ व तेरह मुखी |
4. चिकित्सा जगत , डाक्टर ,वैधों ,सर्जन , तथा चिकित्सा जगत से जुड़े सभी लोगो को तीन मुखी, चार मुखी, नौ मुखी, दस मुखी, ग्यारह मुखी, बारह मुखी, चौदह मुखी |
5. तकनीकी क्षेत्र से जुड़े सभी लोगों इंजिनियर आठ मुखी,दस मुखी,ग्यारह मुखी, चौदह मुखी |
6. वायु सेना से जुड़े कर्मचारियों ,पायलट को दस मुखी व ग्यारह मुखी |
7. शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगो व अध्यापको को छह व चौदह मुखी |
8. ठेकेदारी से सम्बंधित ग्यारह मुखी, तेरह मुखी, व चौदह मुखी|
9. जमीन जायदाद के क्रय विक्रय से जुड़े लोगो को एक मुखी,दस मुखी व चौदह मुखी|
10. व्यवसायी व जनरल मर्चेंट को दस मुखी,तेरह मुखी, चौदह मुखी|
11. उद्दोगपति को बारह मुखी व चौदह मुखी |
12. होटल व्यवसाय से सम्बंधित कर्मचारियों को एक मुखी, तेरह मुखी, व चौदह मुखी|