30 September 2012

Cosmic Energy - विश्व शक्ति




The Cosmic Energy exists everywhere in the Cosmos.
It is the Bond between the galaxies, the planets, humans and molecules.

It is the 'space' between each and everything.
It is the bond, which keeps the whole cosmos in order.

Cosmic Energy is the 'Life Force'.

This Cosmic Energy is essential to maintain the order of our life and to expand our
Consciousness.

Cosmic Energy is the base for all our actions and functions. We receive some amount of Cosmic Energy in deep Sleep and in total Silence. We are using this energy for our day-to-day activities of our Mind like seeing, speaking, hearing, thinking and all actions of our Body.

This limited energy gained through sleep is not sufficient for these activities. That is why we feel exhausted, tired and tensed. This leads to mental and physical stress and all kinds of illnesses. The only way to overcome this is to get more and more Cosmic Energy.

Cosmic Energy is essential to:

Maintain the order of our life.

To lead a healthy and happy life.

To totally involve in all situations

We are in To obtain Knowledge

And finally For expansion of our Consciousness.
Abundant Cosmic Energy is obtained, only through Meditation.

Meditation

Meditation is the journey of our consciousness towards the Self. Sleep is unconscious Meditation
Meditation is conscious sleep. We receive some amount of Cosmic Energy in sleep and in deep silence.
We receive abundant Cosmic Energy in Meditation.
Meditation is the journey of our consciousness from:
Body to Mind, Mind to Intellect, Intellect to Self And beyond. To do Meditation, the first thing is Posture. We may sit in any posture. Posture must be comfortable and stable. We may sit either on the floor or on a chair. Cross your legs clasp the fingers Close your eyes gently Relax relax Then, Observe your normal Breath Do not chant any Mantra do not think of any God Just witness the Breath If any thoughts come, Do not go behind the thoughts do not negate the thoughts Just come back observe the Breath Witness the Breath Be the Breath Just Be. This is the WAY. This is the Meditation Technique. Then one reaches No Thought and No Breath state. This is the Meditative State. By more and more Meditation, we receive abundant Cosmic Energy. With this Meditation Technique, Our Energy body gets cleansed Third Eye get activated, and further perfected Astral Travel happens We understand Life After Life And many more Cosmic Energy Cosmic Energy is the universal life energy existing throughout the Cosmos, essential for sustenance of all lives. Yogis and sages in ancient India discovered that this cosmic energy could be invoked and used for various purposes for overall good and prosperity. They found that the cosmic energy could be tapped and directed out of the body after invocation and used to achieve a desired result physically or psychically according to the thought pattern of the person invoking it.

Cosmic energy, invoked in cosmic healing is a totality of three types of energies used in various proportions according to the need of the person and situation.
The three types are:

• KUNDALINI energy from core of the EARTH acting through BASE chakra.

• PRANA from the SUN, which enters the body through SEX or SACRAL chakra
below the umbilicus.

• Energy from the COSMOS entering the body through CROWN chakra.

In Cosmic Healing, these three types of energies are invoked and used in different percentages programmed automatically, to heal the aura of a person based on the problem to be healed. 
This is made possible by the UNIQUE INITIATION

It is the Integral sum energy of all moving particles in space. The energy of these particle is the summation of all the Energy exhausted from all the Galaxies and Stars systems, and Our sun included, in the Universe.

It is What thermodynamics calls entropy?

It is the result of Nuclear fusion reactions of the celestial furnaces (stars & suns), and follows the 2nd law of thermodynamics.

Every particle in this universe emits some energy. The energy from extra-terrestrial bodies (which lie outside of earth's field) is known as cosmic energy. Solar energy (energy that comes from Sun) is also a form of 

cosmic energy.

It is the primary energy, essential, multiform completely impersonal and scattered. Universally diffuse it is found in all objects of the universe.

It has many names and among of them we find: aor (hebrews); arqueo (Paracelso);
unified field (Albert Einstein); cause formative (Aristotle); chi; cosmic energy; holly spirit (Christians); facultas formatrix (Galen); Astral light (Blavatisk), and so on...

It was identified long ago in the past of the humanity by the ancient civilizations and hidden traditions in its esoteric way.

It is the most pure energy that exists once it does not have any information and is characterized by its unmistakable standard of serenity.

When it passes through the objects of the universe, it loses the standard acquiring the information of the object.

The cosmic energy with its own highly serene and organized standard passes through the object, in the picture a human body, acquiring all the information of that being. 

It is transformed and emitted with another standard.
As it is a very subtle energy must be absorbed every time you feel the lost of strength
caused by the daily stress.

अयोध्या की बात आते ही.....


अयोध्या की बात आते ही..... मुस्लिमों और उनके सरपरस्त सेकुलरों द्वारा .... हमेशा ही हम हिन्दुओं से अयोध्या में ""राम जन्म भूमि होने का प्रमाण"" माँगा जाता है..!

लेकिन... ऐसा प्रमाण मांगते समय वे यह भूल जाते हैं कि........ उनके अल्लाह और और उसके पोपट मुहम्मद के अस्तित्व से सम्बंधित प्रमाण मुस्लिमों के पास "" कुरान"" के अलावा और क्या है...????

हमलोग तो.... समय समय पर अपनी प्रमाणिकता सिद्ध करते ही र

हते हैं..... परन्तु.... मुस्लिमों के पास ... कुल मिला कर एक ही रटा रटाया जबाब होता है कि..... हमारे कुरान में लिखा है.... इसीलिए ..... वो मुहम्मद हमारा पिगम्बर है.... और, दुनिया में अल्लाह का अस्तित्व है...!

और... जब हम उनसे कुरान के बारे में पूछते हैं तो....... उनका बोलना होता है कि..... यह अल्लाह की किताब है...!

मतलब कि..... पहले अल्लाह पैदा हुआ और.... उसने कुरान लिखा ..... अथवा... पहले मुहम्मद ने कुरान पैदा कर.... अल्लाह को अस्तित्व में लाया .... समझ से बाहर की बात है...!

खैर...... जब बात अयोध्या की करते हैं तो..... मुस्लिमों कहना है कि..... यहाँ पहले बाबरी मस्जिद थी...... मतलब कि... वहां मंदिर से पहले ""बाबर द्वारा बनाया गया मस्जिद"" था...!

शायद मुस्लिमों का कहना है कि.... सन 1526 ईस्वी में भारत पर आक्रमण करते समय ..... वो बाबर नामक मंगोल लुटेरा (जो लंगड़े तैमुरलंग का परपोता ... और चंगेज खान नामक लुटेरे का नाती था)..... अपने कंधे पर अयोध्या को ढो कर लाया था....... और, भारत आकर उसने यहाँ स्थापित कर दिया था...!

शायद मुस्लिमों और मनहूस सेकुलरों को यह जानकारी नहीं है.... कि.... अयोध्या में राम मंदिर 9वीं-11वीं सदी से ही विराजमान है..... जिस समय बाबर की तो छोडो.... उनके दादा-परदादों का भी जन्म नहीं हुआ था....!

@@@ उस तथाकथित रूप से विवादित स्थल की छान-बीन से पता चला है कि... वहां पर ९-११ वीं सदी का एक भव्य मंदिर था... जिसके 14 स्तम्भ थे.. और वे... कसौटी पत्थर (जिसके सोने को परखा जाता है) ... के बने हुए थे.....!
ये कसौटी पत्थर सिर्फ हिमालय की तराई में पाए जाते हैं.... और.. ११ वीं सदी के आस-पास सारे मंदिरों में यही पत्थर प्रयोग किये जाते थे...!

@@@ मंदिर के दक्षिण की ओर बाड़ लगाने से पहले रामजन्मभूमि मंदिर के पास जमीन के स्तर से लगभग 12 फीट की गहराई में, खूबसूरती से खुदी शौकीन बलुआ पत्थर के टुकड़े का एक बड़ा ढेर एक बड़े गड्ढे में स्थित था. आठ प्रख्यात इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के एक समूह द्वारा एक सावधान अध्ययन से पता चलता है कि ये सभी वस्तुएं 11 वीं सदी के एक हिंदू मंदिर परिसर के वास्तु साक्ष्य हैं..!

@@@ इसके अलावा सबसे उल्लेखनीय पत्थर के sculptured टुकड़े ... उच्च stylized कमल की पंखुड़ियों संकीर्ण समानांतर राजधानी के आसपास कम जगह में खुदी हुई स्ट्रिप्स के रूप में व्यवस्था के रूप में सुंदर moldings के साथ एक Piller में बीचोबीच आयताकार रूप में बनी थी ...!

@@@ निरंतर पत्ती मोल्डिंग की एक फ्रीज़ भी पाई गयी .....जो मंदिर के चबूतरे के शीर्ष लाइनों को सजाता है.

@@@ वहाँ के दरवाजे चौखट तथा मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार इस बात का प्रमाण है.. कि यहाँ एक भव्य मंदिर था.. जहाँ meandering पुष्प डिजाइन, 'स्टैंसिल' शैली में खुदी थी..!

@@@ उपरोक्त के प्रमाणों के अलावा भी वहाँ कई अन्य छवियाँ हैं.... जिसमे से एक शिव - पार्वती की है..!
यह उमा महेश्वर कि मूर्ति है .. जो कि ""उथले नाला नामक टीला"" पर पाई गयी हैं...!
कला और वास्तु टुकड़े के ये ढेर ..... साइट से कुछ 200 मीटर की दूरी पर स्थित से मिला था.
हालांकि भगवान शिव का सिर मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा तोड़ दिया गया है , उनके हाथ में त्रिशूल अभी तक बरक़रार है...!
उसी तरह, हालांकि माँ पार्वती का चेहरा वर्तमान नहीं है.. परन्तु फिर भी भगवान शिव की गर्दन के पीछे से उसके हाथ एक को गले लगाते स्थिति में मौजूद है..!
और..... Stylistically..... यह भी साबित हो चुका है कि... यह भी 11 वीं सदी के datable है.


#### सिर्फ इतना ही नहीं .... ऐसे अनगिनत सबूत मौजूद हैं .....जो अयोध्या को भगवान् राम की जन्मभूमि साबित करने के लिए पर्याप्त हैं..!

और... ऐसा भी नहीं है कि.... बाबर और उसका सेनापति मीर बाकी..... अपनी सेना लेकर आया और..... हमारे ""अयोध्या को हलवे की तरह हजम कर गया""..!

इतिहास गवाह है कि... हम हिन्दुओं ने अपने अराध्य श्री राम की जन्म भूमि को बचाने के काफी लड़ाइयाँ लड़ी है.... और लाखों कुर्बानियां दी है...!

उन लड़ाइयाँ में से कुछ प्रमुख लड़ाइयाँ इस प्रकार हैं.....

1. बाबर के शासनकाल (1528-1530) में अयोध्या में हिंदुओं पर 4 हमले किए गए.... जिसमें 100,000 लोग मारे गए थे..!

2. हुमायूं के शासनकाल (1530-1556) - हिंदुओं ने अलग होने के लिए 10 बार लड़ाइयाँ लड़ी

3. अकबर के शासनकाल (1556-1605)में हम हिन्दुओं ने 20 लड़ाइयाँ लड़ी.

4. औरंगजेब के शासनकाल (1658-1707) में हिंदुओं ने 30 लड़ाइयाँ लड़ी...... जिसमे से एक ऐसी लड़ाई का नेतृत्व गुरु गोबिंद सिंह ने किया था ... और मुगलों को परास्त किया था..!

5. चार साल बाद..... औरंगजेब है ने ... फिर अयोध्या पर हमला किया और 10000 हिंदुओं की हत्या के बाद ही वो हमारे मंदिर को नियंत्रण में ले पाया ..!

6. सहदात अली (1798-1814).. के समय हम हिंदुओं ने 5 लड़ाइयाँ लड़ी.

7. नासिरउद्दीन (1814-1837) हैदर .... के समय में हम हिंदुओं ने 3 लड़ाइयां लड़ी.

8. वाजिद अली शाह (1847-1857) के समय हिंदुओं ने 2 लड़ाइयाँ लड़ी.

9. ब्रिटिश (1912-1934) नियम के खिलाफ भी हम हिंदुओं ने 2 सशस्त्र संघर्ष लड़ी...!

अगर.... इतने सारे साक्ष्यों के प्रस्तुत करने के बाद भी.... मुस्लिम बाबरी मस्जिद नामक अतिक्रमण के टूटने का शोक मनाते हैं... तो इसका मतलब ये क्यों समझा जाये कि.. उन्हें भारतीय सभ्यता संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है.... तथा, वे बाबर जैसे दुर्दांत लुटेरे (जो कि उस लंगड़े तैमुरलंग का परपोता और उस जीवित प्रेत चंगेज खान का नाती था)... पर गर्व करते हैं और उन्हें ही अपना आइडल मानते हैं..!

अगर ऐसा ही है तो.... इसका मतलब साफ है कि.... मुल्लों को बात की नहीं बल्कि लात की भाषा समझ आती है....!

जय महाकाल...!!!

Disclaimer : ये लेख माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को प्रभावित करने अथवा अवमानना करने के उद्देश्य से नहीं ... बल्कि.... उपलब्ध साक्ष्यों की जानकारी के उद्देश्य से लिखी गई है..!

References :

1. Ram Janmabhoomi Vs Babri Masjid -by K. Elst, Voice of India Publ, 1990, 173pp

2. Ayodhya & After -by K. Elst, Voice of India Publ, 1991, 419 pp

3. VHP's evidence on Ram Janmabhoomi, 6 th January 1991

4. Vivek, Special Ayodhya issue 1993

5. Ram Janma Bhoomi - New Archeological Evidence, by Y.D. Sharma et al published by Historians' Forum, New Delhi, 1992

6. Ayodhya - Dec.6, 1992, Destruction of Babri structure - Who? What? Why? A Video (report) by Jain Studios, New Delhi.

7. Legal Aspects of RJB/ BM issue - by Justice Deoki Nandan.

ज्यादा मत कुरेदो राख को, अंगार पलते हैं


ज्यादा मत कुरेदो राख को, अंगार पलते हैं.
इसी की पर्त में दबकर कहीं, शोले दहकते हैं
देखकर करनी वतन के रहनुमाओं की
वतन के वक्ष में गहरे कहीं,शीशे उतरते हैं

.............................................................................

इतिहास की परछाइयाँ तिरती हवाओं में
वही फिर दर्द की चीखें ,उभरती हैं फिजाओं में.
नालंदा -तक्षशिला में तुम ,जरा सा झाँक तो आओ
लगी है आग फिर घिरने, अरे वैदिक ऋचाओं में
अब देखना है जिस्म में, कब तक शिवाओं के
है ठन्डे पड़े ज्वालामुखी ,फिर से पिघलते हैं .
देखकर करनी............................


हम देखते हैं ,जब कभी बारूद फटते हैं
नर- नारियों के चीथड़े ,बच्चे उधड़ते हैं
भद्दे ,घिनोने और कुत्सित ,उस समय आकर
कितने नकाबों में ढके चेहरे उभरते हैं
तुम क्या समझोगे ,तब सियासती शतरंज को लखकर
वतन के आशिकों के ,किस तरह ह्रदय दरकते हैं
देखकर करनी............................

जिन किश्तियों के ख्वाब में,आकंठ डूबे हो
सागर उतरने में तुम्हारे काम आएँगी
वे बीच में तुमको समुन्दर में डुबोकर के
खुद के बचाकर सागरों के पार जाएँगी
तुम्हारी बेबसी,लचर सी यह मूढ़ता लखकर
तन से वतन के श्वास में विषधर निकलते हैं
देखकर करनी.................................................


दुश्मनों के जाल से अनजान हो या तुम
खुद जानकर के बैरियों के पाँव पड़ते हो
जिनके शरीरों में तुम्हे है आग थी भरनी
उन्ही के सामने जाकर के तुम एड़ी रगड़ते हो
तुम्हारी कायराना ,बुजदिली की ,दास्ताँ सुनकर
वतन की आँख से अब रक्त के बादल बरसते है
देखकर करनी............................................

पहचानो समय को अन्यथा बरबादियाँ होंगी
तुम्हारे नष्ट ये सारे महल और खेतियाँ होंगी
यूँ बैरियों की खिदमतें जारी रहीं तो फिर
दरिंदों की गुफाओं में वतन की बेटियाँ होंगी
वतन पे मरने वाले हम तुम्हे लो वक्त देते हैं
नहीं फिर देखना ,ज्वालामुखी कैसे दहकते है...
देखकर करनी................................

ॐ जय गौ माता , मईया जय गौ माता



ॐ जय गौ माता , मईया जय गौ माता

निसिदिन तुमको ध्याता , हरी शिवजी धाता

ॐ जय गौ माता , मईया जय गौ माता


मंथन समुद्र को कीन्हो , तब प्रकटे मईया

त्रिषि मंडल को लीन्हो , कामधेनु गैया

ॐ जय गौ माता , मईया जय गौ माता

कोटि तेतीश देवता , रोम रोम बसे

पन्च गव्य जो लेता , जन्मो के पाप कटे

ॐ जय गौ माता , मईया जय गौ माता

सर्वोषधि भंडारी , तू ही हे मेया

घर भी कहे उसी को , जिस आगन मईया

ॐ जय गौ माता , मईया जय गौ माता

संकट उनके हरती , पार बेत्ररी करे

तेरी पूछ करे जो , भव से सागर तारे

ॐ जय गौ माता , मईया जय गौ माता

तेरे खुर की धूलि माथे पे जो लगे

तीर्थ स्थान को फल हो , पद - पद विजय मिले

ॐ जय गौ माता , मईया जय गौ माता

कृष्ण बसे माँ तुझमे , तुमको जो धियावे

मन इख्छा हो पूरी , मानव तन पावे

ॐ जय गौ माता , मईया जय गौ माता

गौ माता की आरती , प्रीत से जो गावे

कह गोपाल में सर्रण हू , महिमा नित पावे

ॐ जय गौ माता , मईया जय गौ माता

SOCHO SOCHO AUR SOCHO


रोज तो तुम नए जन्मते बच्चो को देखते हो | रोज तो तुम बूढों कि अर्थिया उठते देखते हो | कब तुम्हे समझ में आएगा कि जो जन्मा है वो मरेगा जो बना है वो मिटेगा ये बात दो घडी कि है | ये ताश के पत्तो का घर है | अभी आया हवा का झोखा और अभी बिखर जायेगा |  

आज मैं देश के करोड़ो हिन्दुओ से एक सवाल करना चाहता हूँ |


भारत एक धर्मनिपेक्ष देश बना दिया गया 
(कागजी तौर पर) और जमीनी हकीक़त पर एक मुस्लिम राष्ट्र बन ने की राह पर है | मुस्लिम राष्ट्र बने या ना बने वो फिलहाल बहस का मुद्दा है लेकिन भारत में हिन्दू को क्या मिला??
आज़ादी के २० साल पहले से हिन्दू की एक मांग रही है की गो हत्या बंद होनी चाहिए, उस समय गाँधी ने आश्वासन दिया था की गो हत्या बंद करवाई जाएगी, देश आजाद हो गया गाँधी ने गो हत्या बंद करने पर चुप्पी साध ली और जब लोगो ने सवाल पुछा तोह कहा की गो हत्या बंद नहीं हो सकती , नेहरु तोह था ही ऐयाश आदमी उससे उम्मीद लगाना बेकार था , 

उसके बाद इंदिरा ने हिन्दू को मुर्ख बनाया की अगर वो सत्ता में आती है तोह गो हत्या बंद करवा देगी .. लेकिन सत्ता में आते ही गो हत्या बंद नहीं हुई उल्टा गो हत्या बंद की मांग उठाने वाले लोगो पर ही गोलियां चलवा दी गयी |


सवाल छोटा सा , हिन्दू के देश में हिन्दू की माँ (गो माता) को बचने के लिए एक कानून तक पारित नहीं हुआ पिछले ८५ सालो में? हिन्दू का इस देश पर कोई अधिकार रह भी गया है या नहीं ?

सेकुलर लोगो तुम लोगो से एक सवाल : Cow हिन्दू धर्म के अनुसार माता है .. ना ही इस्लाम में लिखा है की गो हत्या करो , और ना ही इसायो की Bible में .. तोह को गो हत्या पर पाबन्दी क्यूँ नहीं होनी चाहिए? गो हत्या हिन्दू का धार्मिक मामला है , हिन्दू की आस्था का क्या होगा? ..

श्री कृष्ण द्वारा परीक्षित को जीवनदान


उत्तरा के गर्भ में जब वह बालक ब्रह्मास्त्र के तेज से दग्ध होने लगा तब भगवान श्री कृष्णचन्द्र ने सूक्ष्म रूप से उत्तरा के गर्भ में प्रवेश किया। उनका वह ज्योतिर्मय सूक्षम शरीर अँगूठे के आकार का था। अत्तयंत सन्दर श्याम शरीर तेजोमय, पीताम्बर धारण किये हुये, सवर्णमुकुट से प्रकाशमान हो रहा था। वे चारों भुजाओं में शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किये हुये थे। कानों में कुण्ड्ल तथा आँखें रक्तवर्ण थीं। हाथ में जलती हुई गदा लेकर उस गर्भ स्थित बालक के चारों ओर घुमाते थे। 

जिस प्रकार सूर्यदेव अन्धकार को हटा देते हैं उसी प्रकार वह गदा अश्वत्थामा के छोड़े हुये ब्रह्मास्त्र की अग्नि को शांत करती थी। गर्भ स्थित वह बालक उस ज्योतिर्मय शक्ति को अपने चारों ओर घूमते हुये देखता था। वह सोचने लगता कि यह कौन है और कहाँ से आया है? उस समय पाण्डव लोग एक महान यज्ञ की दीक्षा के निमित्त राजा मरुत का धन लेने के लिये उत्तर दिशा में गये हुये थे। उसी बीच उनकी अनुपस्थिति में तथा भगवान श्री कृष्णचन्द्र की उपस्थिति में दस मास पश्चात उस बालक का जन्म हुआ। परन्तु बालक गर्भ से बाहर निकलते ही मृतवत् हो गया। बालक को मरा हुआ देख कर रनिवास में रुदन आरन्भ हो गया। शोक का समुद्र उमड़ पड़ा। कुरुवंश को पिण्डदान करने वाला केवल एक मात्र यही बालक उत्तपन्न हुआ था सो वह भी न रहा। कुन्ती, द्रौपदी, सुभद्रा आदि सभी महान शोक सागर में डूब कर आँसू बहाने लगीं। 

उत्तरा के गर्भ से मृत बालक के जन्म का समाचार सुन कर भगवान श्रीकृष्णचन्द्र तुरन्त सात्यकि को साथ लेकर अन्तःपुर पहुँचे। वहाँ रनिवास में करुण क्रन्दन को सुन कर उनका हृदय भर आया। इतना करुण क्रन्दन युद्ध में मरे हुये पुत्रो के लिये कभी सुभद्रा और द्रौपदी ने नहीं किया था जितना उस नवजात शिशु की मृत्यु पर कर रही थीं। भगवान श्रीकृष्णचन्द्र को देखते ही वे उनके चरणो पर गिर पड़ीं और विलाप करते हुये बोलीं -'हे जनार्दन! तुमने यह प्रतिज्ञा की थी कि यह बालक इस ब्रह्मास्त्र से मृत्यु को प्राप्त न होगा तथा साठ वर्ष तक जीवित रह कर धर्म का राज्य करेगा। किन्तु यह बालक तो मृतावस्था में पड़ा हुआ है। यह तुम्हारे पौत्र अभिमन्यु का बालक है। हे अरिसूदन! इस बालक को अपनी अमृत भरी दृष्टि से जीवन दान दो।'
श्रीकृष्ण द्वारा जीवनदान भगवान श्रीकृष्णचन्द्र सबको सान्त्वना देकर तत्काल प्रसूतिगृह में गये और वहाँ के प्रबन्ध का अवलोकन किया। चारों ओर जल के घट रखे थे, अग्नि भी जल रही थी, घी की आहुति दी जा रही थी, श्वेत पुष्प एवं सरसों बिखरे थे और चमकते हुये अस्त्र भी रखे हुये थे। इस विधि से यज्ञ, राक्षस एवं अन्य व्याधियों से प्रसूतिगृह को सुरक्षित रखा गया था। उत्तरा पुत्रशोक के कारण मूर्छित हो गई थी। उसी समय द्रौपदी आदि रानियाँ वहाँ आकर कहने लगीं -'हे कल्याणी!तुम्हारे सामने जगत के जीवन दाता साक्षात् भगवान श्रीकृष्णचन्द्र, तुम्हारे श्वसुर खड़े हैं। 

चेतन हो जाओ।' भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने कहा - 'बेटी! शोक न करो। तुम्हारा यह पुत्र अभी जीवित होता है। मैंने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला है। सबके सामने मेँने प्रतिज्ञा की है वह अवश्य पूर्ण होगी। मैंने तुम्हारे इस बालक की रक्षा गर्भ में की है तो भला अब कैसे मरने दूँगा।' इतना कहकर भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने उस बालक पर अपनी अमृतमयी दृष्टि डालि और बोले - 'यदि मैंने कभी झूठ नहीं बोला है, सदा ब्रह्मचर्य व्रत का नियम से पालन किया है, युद्ध में कभी पीठ नहीं दिखाई है, मैंने कभी भूल से भी अधर्म नहीं किया है तो अभिमन्यु का यह मृत बालक जीवित हो जाये।' उनके इतना कहते ही वह बालक हाथ पैर हिलाते हुये रुदन करने लगा। भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने अपने सत्य और धर्म के बल से ब्रह्मास्त्र को पीछे लौटा कर ब्रह्मलोक में भेज दिया। उनके इस अद्भुत कर्म बालक को जीवित देख कर अन्तःपुर की सारी स्त्रियाँ आश्चर्यचकित रह गईं और उनकी वन्दना करने लगीं। भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने उस बालक का नाम परीक्षित रखा क्योंकि वह कुरुकुल के परिक्षीण (नाश) होने पर उत्पन्न हुआ था।

युधिष्ठिर द्वारा दानपुण्य जब धर्मराज युधिष्ठिर लौट कर आये और पुत्र जन्म का समाचार सुना तो वे अति प्रसन्न हुये और उन्होंने असंख्य गौ, गाँव, हाथी, घोड़े, अन्न आदि ब्राह्मणों को दान दिये। उत्तम ज्योतिषियों को बुला कर बालक के भविष्य के विषय में प्रश्न पूछे। ज्योतिषियों ने बताया कि वह बालक अति प्रतापी, यशस्वी तथा इक्ष्वाकु समान प्रजापालक, दानी, धर्मी, पराक्रमी और भगवान श्रीकृष्णचन्द्र का भक्त होगा। एक ऋषि के शाप से तक्षक द्वारा मृत्यु से पहले संसार के माया मोह को त्याग कर गंगा के तट पर श्री शुकदेव जी से आत्मज्ञान प्राप्त करेगा।

जरूर पढ़ें और विचार करें ***

भारत की जनसंख्या 122 करोड़ है तो ब्रिटेन की जनसंख्या 6.22 करोड़, भारत का जमीनी क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग किलोमीटर है जबकी ब्रिटेन का 2.45 लाख वर्ग किमी. यानि भारत ब्रिटेन से 14 गुना बड़ा देश है और 20 गुनी आबादी है। भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है फिर भी हम उनके सामने झुकते है क्यों....... क्योकि हमारे नेता चरित्रहीन और राष्ट्रद्रोही हैं।

अंगेजो ने 250 सालों में भारत से 350 लाख करोड़ की लूट सहित विश्व के अन्य 70 देशो से 1500 लाख करोड़ से अधिक सम्पति लुटी और भारत के 20वें हिस्से की आबादी वाले छोटे से देश में खर्चा किया और आज 2012 में ब्रिटेन पर 456 लाख करोड़ का कर्जा भी हो चला है।

जबकी भारत को पिछले 1000 सालों से मुगलों, जर्मनों, फ्रांसीसी, डच, पुर्तगालियों और अंग्रेजो के साथ हमारे हरामखोर नेताओं और उनके चमचों ने लूटा जो की कम से कम 1000 लाख करोड़ से कम नहीं होता है, इसके बावजूद 65 साल के लुटेरी कांग्रेस के राज में सिर्फ हमारे ऊपर 34 लाख करोड़ का ही कर्जा है यानी हर परिवार के पीछे 1,47,826/- रुँपये का कर्ज है, जिसे हम बड़ी आसानी से बाहर विदेश में जमा कालाधन को वापस लाकर एक दिन में अदा कर सकते हैं। यह काम प्रणव मुखर्जी और सोनिया के चलते नहीं हो पाया, लेकिन कोई राष्ट्रवादी सरकार इसे मात्र 100 दिन में कर सकती है लेकिन विदेशी इशारों पर चलने वाली कांग्रेस के लुटेरे इस देश को दक्षिण कोरिया की तरह अमेरिकियों को बेच देंगे।

कोरिया की सारी की सारी सरकारी कंपनियों पर अमेरिका का कब्ज़ा हो गया है जिसमें अब अमेरिका के ही लोग काम कर रहे है क्योकि सुधार के नाम पर कोरिया के ऊपर इतना कर्जा हो गया था की उसे चुकाने के बजाय सरकार ने उन्हें अमेरिकी कंपनियों को बेच डाला। आज हमारी बिकाऊ मिडिया कोरिया के सुधारों की बात कभी नहीं करती। 34 लाख करोड़ बहुत बड़ी रकम नही है इसे तो भूसंपदा बेचकर भी हम चुका सकते हैं लेकिन ऐसा न हो को यहाँ कर्जा एक दिन इतना हो जाये की भारत सरकार की सभी सम्पतियो पर अमेरिकी हावी हो कर हमें गुलाम न बना ले।

ब्रिटेन और अमेरिका विश्व की लुटी हुई संपत्ति पर निर्मित किये गए है, अमेरिकियों ने 10 करोड़ रेड इंडियंस की हत्या करके अमेरिका पर कब्ज़ा करके नए अमेरिका का निर्माण किया। भारत को ब्रिटेन जैसा बनाने के लिए पूरे विश्वा को 3 बार लुटना होगा......ब्रिटेन प्रति व्यक्ति 241,15,75,562/- रूपये विदेशी लूट के पैसे से विश्व शक्ति बना था, 122 करोड़ की आबादी वाले भारत को ब्रिटेन जैसा बनाने के लिए 30,000 लाख करोड़ की पूँजी चाहिए और यह पूंजी आज के दिन भी भारत में है भू संपदा के रूप में।

अभी भी मौका है हम इस महान देश को बचा सकते है कांग्रेस को खत्म करके
॥ हमें खुदरा बाजार में एफ़डीआई का पुरजोर विरोध करना चाहिए ॥

विमान के आविष्कारक- पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे......



राइट्स बंधु को हवाई जहाज के आविष्कार के लिए श्रेय दिया जाता है क्योंकि उन्होंने 17 दिसम्बर 1903 हवाई जहाज उड़ाने का प्रदर्शन किया था। किन्तु बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि उससे
लगभग 8 वर्ष पहले सन् 1895 में संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे ने “मारुतसखा” या “मारुतशक्ति” नामक विमान का सफलतापूर्वक निर्माण कर लिया था 

जो कि पूर्णतः वैदिक तकनीकी पर आधारित था। पुणे केसरी नामक समाचारपत्र के अनुसार श्री तलपदे ने सन् 1895 में एक दिन (दुर्भाग्य से से सही दिनांक की जानकारी नहीं है) बंबई वर्तमान (मुंबई) के चौपाटी समुद्रतट में उपस्थित कई जिज्ञासु व्यक्तियों , जिनमें भारतीय अनेक न्यायविद्/ राष्ट्रवादी सर्वसाधारण जन के साथ ही महादेव गोविंद रानाडे और बड़ौदा के महाराज सायाजी राव गायकवाड़ जैसे विशिष्टजन सम्मिलित थे, के समक्ष अपने द्वारा निर्मित “चालकविहीन” विमान “मारुतशक्ति” के उड़ान का प्रदर्शन किया था। 

वहाँ उपस्थित समस्त जन यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि टेक ऑफ करने के बाद “मारुतशक्ति” आकाश में लगभग 1500 फुट की ऊँचाई पर चक्कर लगाने लगा था। कुछ देर आकाश में चक्कर लगाने के के पश्चात् वह विमान धरती पर गिर पड़ा था।


यहाँ पर यह बताना अनुचित नहीं होगा कि राइट बंधु ने जब पहली बार अपने हवाई जहाज को उड़ाया था तो वह आकाश में मात्र 120 फुट ऊँचाई तक ही जा पाया था जबकि श्री तलपदे का विमान 1500 फुट की ऊँचाई तक पहुँचा था। दुःख की बात तो यह है कि इस घटना के विषय में विश्व की समस्त प्रमुख वैज्ञानिको और वैज्ञानिक संस्थाओं/संगठनों पूरी पूरी जानकारी होने के बावजूद भी आधुनिक हवाई जहाज के प्रथम निर्माण का श्रेय राईट बंधुओं को दिया जाना बदस्तूर जारी है और हमारे देश की सरकार ने कभी भी इस विषय में आवश्यक संशोधन करने/ करवाने के लिए कहीं आवाज नहीं उठाई (हम सदा सन्तोषी और आत्ममुग्ध लोग जो है!)।


कहा तो यह भी जाता है कि संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित एवं वैज्ञानिक तलपदे जी की यह सफलता भारत के तत्कालीन ब्रिटिश शासकों को फूटी आँख भी नहीं सुहाई थी और उन्होंने बड़ोदा के महाराज श्री गायकवाड़, जो कि श्री तलपदे के प्रयोगों के लिए आर्थिक सहायता किया करते थे, पर दबाव डालकर श्री तलपदे के प्रयोगों को अवरोधित कर दिया था। 

महाराज गायकवाड़ की सहायता बन्द हो जाने पर अपने प्रयोगों को जारी रखने के लिए श्री तलपदे एक प्रकार से कर्ज में डूब गए। इसी बीच दुर्भाग्य से उनकी विदुषी पत्नी, जो कि उनके प्रयोगों में उनकी सहायक होने के साथ ही साथ उनकी प्रेरणा भी थीं, का देहावसान हो गया और अन्ततः सन् 1916 या 1917 में श्री तलपदे का भी स्वर्गवास हो गया। बताया जाता है कि श्री तलपदे के स्वर्गवास हो जाने के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने कर्ज से मुक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से “मारुतशक्ति” के अवशेष को उसकी तकनीक सहित किसी विदेशी संस्थान को बेच दिया था।


श्री तलपदे का जन्म सन् 1864 में हुआ था। बाल्यकाल से ही उन्हें संस्कृत ग्रंथों, विशेषतः महर्षि भरद्वाज रचित “वैमानिक शास्त्र” (Aeronauti cal Science) में अत्यन्त रुचि रही थी। वे संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। पश्चिम के एक प्रख्यात भारतविद् स्टीफन नैप (Stephen-K napp) श्री तलपदे के प्रयोगों को अत्यन्त महत्वपूर्ण मानते हैं। एक अन्य विद्वान श्री रत्नाकर महाजन ने श्री तलपदे के प्रयोगों पर आधारित एक पुस्तिका भी लिखी हैं।श्री तलपदे का संस्कृत अध्ययन अत्यन्त ही विस्तृत था और उनके विमान सम्बन्धित प्रयोगों के आधार निम्न ग्रंथ थेः
महर्षि भरद्वाज रचित् वृहत् वैमानिक शास्त्र
आचार्य नारायण मुन रचित विमानचन्द् रिका
महर्षि शौनिक रचित विमान यन्त्र
महर्षि गर्ग मुनि रचित यन्त्र कल्प
आचार्य वाचस्पति रचित विमान बिन्दु
महर्षि ढुण्डिराज रचित विमान ज्ञानार्क प्रकाशिका
हमारे प्राचीन ग्रंथ ज्ञान के अथाह सागर हैं किन्तु वे ग्रंथ अब लुप्तप्राय -से हो गए हैं। यदि कुछ ग रंथ कहीं उपलब्ध भी हैं तो उनका किसी प्रकार का उपयोग ही नहीं रह गया है क्योंकि हमारी दूषित शिक्षानीति हमें अपने स्वयं की भाषा एवं संस्कृति को हेय तथा पाश्चात्य भाषा एवं संस्कृति को श्रेष्ठ समझना ही सिखाती है।

वन्दे मातरम... जय हिंद... जय भारत...