04 October 2012

14 अगस्त 1947 कि रात को आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था !


आदरणीय दोस्तों

आपने देखा होगा कि राजीव भाई बराबर सत्ता के हस्तांतरण के संधि के बारे में बाट करते थे और आप बार बार सोचते होंगे कि आखिर ये क्या है ? मैंने उनके अलग अलग व्याख्यानों में से इन सब को जोड़ के आप लोगों के लिए लाया हूँ उम्मीद है कि आपको पसंद आएगी |

पढ़िए सत्ता के हस्तांतरण की संधि ( Transfer of Power Agreement ) यानि भारत के आज़ादी की संधि |

ये इतनी खतरनाक संधि है की अगर आप अंग्रेजो द्वारा सन 1615 से लेकर 1857 तक किये गए सभी 565 संधियों या कहें साजिस को जोड़ देंगे तो उस से भी ज्यादा खतरनाक संधि है ये |

14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में | Transfer of Power और Independence ये दो अलग चीजे है | स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग चीजे है |

और सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ? आप देखते होंगे क़ि एक पार्टी की सरकार है, वो चुनाव में हार जाये, दूसरी पार्टी की सरकार आती है तो दूसरी पार्टी का प्रधानमन्त्री जब शपथ ग्रहण करता है, तो वो शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है, आप लोगों में से बहुतों ने देखा होगा, तो जिस रजिस्टर पर आने वाला प्रधानमन्त्री हस्ताक्षर करता है, उसी रजिस्टर को ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर की बुक कहते है और उस पर हस्ताक्षर के बाद पुराना प्रधानमन्त्री नए प्रधानमन्त्री को सत्ता सौंप देता है | और पुराना प्रधानमंत्री निकल कर बाहर चला जाता है |

यही नाटक हुआ था 14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे | लार्ड माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरु के हाथ में सौंपी थी, और हमने कह दिया कि स्वराज्य आ गया | कैसा स्वराज्य और काहे का स्वराज्य ? अंग्रेजो के लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? और हमारे लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? ये भी समझ लीजिये | अंग्रेज कहते थे क़ि हमने स्वराज्य दिया, माने अंग्रेजों ने अपना राज तुमको सौंपा है ताकि तुम लोग कुछ दिन इसे चला लो जब जरुरत पड़ेगी तो हम दुबारा आ जायेंगे |

ये अंग्रेजो का interpretation (व्याख्या) था | और हिन्दुस्तानी लोगों की व्याख्या क्या थी कि हमने स्वराज्य ले लिया | और इस संधि के अनुसार ही भारत के दो टुकड़े किये गए और भारत और पाकिस्तान नामक दो Dominion States बनाये गए हैं |

ये Dominion State का अर्थ हिंदी में होता है एक बड़े राज्य के अधीन एक छोटा राज्य, ये शाब्दिक अर्थ है और भारत के सन्दर्भ में इसका असल अर्थ भी यही है | अंग्रेजी में इसका एक अर्थ है "One of the self-governing nations in the British Commonwealth" और दूसरा "Dominance or power through legal authority "| Dominion State और Independent Nation में जमीन आसमान का अंतर होता है |

मतलब सीधा है क़ि हम (भारत और पाकिस्तान) आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं |

दुःख तो ये होता है की उस समय के सत्ता के लालची लोगों ने बिना सोचे समझे या आप कह सकते हैं क़ि पुरे होशो हवास में इस संधि को मान लिया या कहें जानबूझ कर ये सब स्वीकार कर लिया |

और ये जो तथाकथित आज़ादी आयी, इसका कानून अंग्रेजों के संसद में बनाया गया और इसका नाम रखा गया Indian Independence Act यानि भारत के स्वतंत्रता का कानून |

और ऐसे धोखाधड़ी से अगर इस देश की आजादी आई हो तो वो आजादी, आजादी है कहाँ ? और इसीलिए गाँधी जी (महात्मा गाँधी) 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में नहीं आये थे | वो नोआखाली में थे | और कोंग्रेस के बड़े नेता गाँधी जी को बुलाने के लिए गए थे कि बापू चलिए आप | गाँधी जी ने मना कर दिया था | क्यों ? गाँधी जी कहते थे कि मै मानता नहीं कि कोई आजादी आ रही है |

और गाँधी जी ने स्पस्ट कह दिया था कि ये आजादी नहीं आ रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है |

और गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी | उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये कहा कि मै हिन्दुस्तान के उन करोडो लोगों को ये सन्देश देना चाहता हु कि ये जोतथाकथित आजादी (So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया |

ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस कर लाये है | मै मानता नहीं कि इस देश में कोई आजादी आई है |

और 14 अगस्त 1947 की रात को गाँधी जी दिल्ली में नहीं थे नोआखाली में थे | माने भारत की राजनीति का सबसे बड़ा पुरोधा जिसने हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई की नीव रखी हो वो आदमी 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में मौजूद नहीं था |

क्यों ? इसका अर्थ है कि गाँधी जी इससे सहमत नहीं थे | (नोआखाली के दंगे तो एक बहाना था असल बात तो ये सत्ता का हस्तांतरण ही था) और 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई .... ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट लागू हुआ था पंडित नेहरु और अंग्रेजी सरकार के बीच में | अब शर्तों की बात करता हूँ , सब का जिक्र करना तो संभव नहीं है लेकिन कुछ महत्वपूर्ण शर्तों की जिक्र जरूर करूंगा जिसे एक आम भारतीय जानता है और उनसे परिचित है ...............

• इस संधि की शर्तों के मुताबिक हम आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं | वो एक शब्द आप सब सुनते हैं न Commonwealth Nations | अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में Commonwealth Game हुए थे आप सब को याद होगा ही और उसी में बहुत बड़ा घोटाला भी हुआ है | ये Commonwealth का मतलब होता है समान सम्पति | किसकी समान सम्पति ? ब्रिटेन की रानी की समान सम्पति | आप जानते हैं ब्रिटेन की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी भारत की नागरिक है और हमारे जैसे 71 देशों की महारानी है वो | Commonwealth में 71 देश है और इन सभी 71 देशों में जाने के लिए ब्रिटेन की महारानी को वीजा की जरूरत नहीं होती है क्योंकि वो अपने ही देश में जा रही है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ब्रिटेन में जाने के लिए वीजा की जरूरत होती है क्योंकि वो दुसरे देश में जा रहे हैं | मतलब इसका निकाले तो ये हुआ कि या तो ब्रिटेन की महारानी भारत की नागरिक है या फिर भारत आज भी ब्रिटेन का उपनिवेश है इसलिए ब्रिटेन की रानी को पासपोर्ट और वीजा की जरूरत नहीं होती है अगर दोनों बाते सही है तो 15 अगस्त 1947 को हमारी आज़ादी की बात कही जाती है वो झूठ है | और Commonwealth Nations में हमारी एंट्री जो है वो एक Dominion State के रूप में है न क़ि Independent Nation के रूप में| इस देश में प्रोटोकोल है क़ि जब भी नए राष्ट्रपति बनेंगे तो 21 तोपों की सलामी दी जाएगी उसके अलावा किसी को भी नहीं | लेकिन ब्रिटेन की महारानी आती है तो उनको भी 21 तोपों की सलामी दी जाती है, इसका क्या मतलब है? और पिछली बार ब्रिटेन की महारानी यहाँ आयी थी तो एक निमंत्रण पत्र छपा था और उस निमंत्रण पत्र में ऊपर जो नाम था वो ब्रिटेन की महारानी का था और उसके नीचे भारत के राष्ट्रपति का नाम था मतलब हमारे देश का राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक नहीं है | ये है राजनितिक गुलामी, हम कैसे माने क़ि हम एक स्वतंत्र देश में रह रहे हैं | एक शब्द आप सुनते होंगे High Commission ये अंग्रेजों का एक गुलाम देश दुसरे गुलाम देश के यहाँ खोलता है लेकिन इसे Embassy नहीं कहा जाता | एक मानसिक गुलामी का उदहारण भी देखिये ....... हमारे यहाँ के अख़बारों में आप देखते होंगे क़ि कैसे शब्द प्रयोग होते हैं - (ब्रिटेन की महारानी नहीं) महारानी एलिज़ाबेथ, (ब्रिटेन के प्रिन्स चार्ल्स नहीं) प्रिन्स चार्ल्स , (ब्रिटेन की प्रिंसेस नहीं) प्रिंसेस डैना (अब तो वो हैं नहीं), अब तो एक और प्रिन्स विलियम भी आ गए है |

• भारत का नाम INDIA रहेगा और सारी दुनिया में भारत का नाम इंडिया प्रचारित किया जायेगा और सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के ही नाम से संबोधित किया जायेगा | हमारे और आपके लिए ये भारत है लेकिन दस्तावेजों में ये इंडिया है | संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है "India that is Bharat " जब क़ि होना ये चाहिए था "Bharat that was India " लेकिन दुर्भाग्य इस देश का क़ि ये भारत के जगह इंडिया हो गया | ये इसी संधि के शर्तों में से एक है | अब हम भारत के लोग जो इंडिया कहते हैं वो कहीं से भी भारत नहीं है | कुछ दिन पहले मैं एक लेख पढ़ रहा था अब किसका था याद नहीं आ रहा है उसमे उस व्यक्ति ने बताया था कि इंडिया का नाम बदल के भारत कर दिया जाये तो इस देश में आश्चर्यजनक बदलाव आ जायेगा और ये विश्व की बड़ी शक्ति बन जायेगा अब उस शख्स के बात में कितनी सच्चाई है मैं नहीं जानता, लेकिन भारत जब तक भारत था तब तक तो दुनिया में सबसे आगे था और ये जब से इंडिया हुआ है तब से पीछे, पीछे और पीछे ही होता जा रहा है |

• भारत के संसद में वन्दे मातरम नहीं गया जायेगा अगले 50 वर्षों तक यानि 1997 तक | 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस मुद्दे को संसद में उठाया तब जाकर पहली बार इस तथाकथित आजाद देश की संसद में वन्देमातरम गाया गया | 50 वर्षों तक नहीं गाया गया क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है | और वन्देमातरम को ले के मुसलमानों में जो भ्रम फैलाया गया वो अंग्रेजों के दिशानिर्देश पर ही हुआ था | इस गीत में कुछ भी ऐसा आपत्तिजनक नहीं है जो मुसलमानों के दिल को ठेस पहुचाये | आपत्तिजनक तो जन,गन,मन में है जिसमे एक शख्स को भारत भाग्यविधाता यानि भारत के हर व्यक्ति का भगवान बताया गया है या कहें भगवान से भी बढ़कर |
• इस संधि की शर्तों के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस को जिन्दा या मुर्दा अंग्रेजों के हवाले करना था | यही वजह रही क़ि सुभाष चन्द्र बोस अपने देश के लिए लापता रहे और कहाँ मर खप गए ये आज तक किसी को मालूम नहीं है | समय समय पर कई अफवाहें फैली लेकिन सुभाष चन्द्र बोस का पता नहीं लगा और न ही किसी ने उनको ढूँढने में रूचि दिखाई | मतलब भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी अपने ही देश के लिए बेगाना हो गया | सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई थी ये तो आप सब लोगों को मालूम होगा ही लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है क़ि ये 1942 में बनाया गया था और उसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और सुभाष चन्द्र बोस ने इस काम में जर्मन और जापानी लोगों से मदद ली थी जो कि अंग्रेजो के दुश्मन थे और इस आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया था | और जर्मनी के हिटलर और इंग्लैंड के एटली और चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों की वजह से ये द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था और दोनों देश एक दुसरे के कट्टर दुश्मन थे | एक दुश्मन देश की मदद से सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के नाकों चने चबवा दिए थे | एक तो अंग्रेज उधर विश्वयुद्ध में लगे थे दूसरी तरफ उन्हें भारत में भी सुभाष चन्द्र बोस की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था | इसलिए वे सुभाष चन्द्र बोस के दुश्मन थे |

• इस संधि की शर्तों के अनुसार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे syllabus में पढाया जाता था बहुत दिनों तक | और अभी एक महीने पहले तक ICSE बोर्ड के किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था, वो तो भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने अदालत में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने का आदेश दिया है (ये समाचार मैंने इन्टरनेट पर ही अभी कुछ दिन पहले देखा था) |

• आप भारत के सभी बड़े रेलवे स्टेशन पर एक किताब की दुकान देखते होंगे "व्हीलर बुक स्टोर" वो इसी संधि की शर्तों के अनुसार है | ये व्हीलर कौन था ? ये व्हीलर सबसे बड़ा अत्याचारी था | इसने इस देश क़ि हजारों माँ, बहन और बेटियों के साथ बलात्कार किया था | इसने किसानों पर सबसे ज्यादा गोलियां चलवाई थी | 1857 की क्रांति के बाद कानपुर के नजदीक बिठुर में व्हीलर और नील नामक दो अंग्रजों ने यहाँ के सभी 24 हजार लोगों को जान से मरवा दिया था चाहे वो गोदी का बच्चा हो या मरणासन्न हालत में पड़ा कोई बुड्ढा | इस व्हीलर के नाम से इंग्लैंड में एक एजेंसी शुरू हुई थी और वही भारत में आ गयी | भारत आजाद हुआ तो ये ख़त्म होना चाहिए था, नहीं तो कम से कम नाम भी बदल देते | लेकिन वो नहीं बदला गया क्योंकि ये इस संधि में है |

• इस संधि की शर्तों के अनुसार अंग्रेज देश छोड़ के चले जायेगे लेकिन इस देश में कोई भी कानून चाहे वो किसी क्षेत्र में हो नहीं बदला जायेगा | इसलिए आज भी इस देश में 34735 कानून वैसे के वैसे चल रहे हैं जैसे अंग्रेजों के समय चलता था | Indian Police Act, Indian Civil Services Act (अब इसका नाम है Indian Civil Administrative Act), Indian Penal Code (Ireland में भी IPC चलता है और Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वही भारत के IPC में "I" का मतलब Indian है बाकि सब के सब कंटेंट एक ही है, कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है) Indian Citizenship Act, Indian Advocates Act, Indian Education Act, Land Acquisition Act, Criminal Procedure Act, Indian Evidence Act, Indian Income Tax Act, Indian Forest Act, Indian Agricultural Price Commission Act सब के सब आज भी वैसे ही चल रहे हैं बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले हुए |

• इस संधि के अनुसार अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन जैसे के तैसे रखे जायेंगे | शहर का नाम, सड़क का नाम सब के सब वैसे ही रखे जायेंगे | आज देश का संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, राष्ट्रपति भवन कितने नाम गिनाऊँ सब के सब वैसे ही खड़े हैं और हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं | लार्ड डलहौजी के नाम पर डलहौजी शहर है , वास्को डी गामा नामक शहर है (हाला क़ि वो पुर्तगाली था ) रिपन रोड, कर्जन रोड, मेयो रोड, बेंटिक रोड, (पटना में) फ्रेजर रोड, बेली रोड, ऐसे हजारों भवन और रोड हैं, सब के सब वैसे के वैसे ही हैं | आप भी अपने शहर में देखिएगा वहां भी कोई न कोई भवन, सड़क उन लोगों के नाम से होंगे | हमारे गुजरात में एक शहर है सूरत, इस सूरत शहर में एक बिल्डिंग है उसका नाम है कूपर विला | अंग्रेजों को जब जहाँगीर ने व्यापार का लाइसेंस दिया था तो सबसे पहले वो सूरत में आये थे और सूरत में उन्होंने इस बिल्डिंग का निर्माण किया था | ये गुलामी का पहला अध्याय आज तक सूरत शहर में खड़ा है |

• हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है क्योंकि ये इस संधि में लिखा है और मजे क़ि बात ये है क़ि अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक शिक्षा व्यवस्था दी और अपने यहाँ अलग किस्म क़ि शिक्षा व्यवस्था रखी है | हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री का महत्व है और उनके यहाँ ठीक उल्टा है | मेरे पास ज्ञान है और मैं कोई अविष्कार करता हूँ तो भारत में पूछा जायेगा क़ि तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है ? अगर नहीं है तो मेरे अविष्कार और ज्ञान का कोई मतलब नहीं है | जबकि उनके यहाँ ऐसा बिलकुल नहीं है आप अगर कोई अविष्कार करते हैं और आपके पास ज्ञान है लेकिन कोई डिग्री नहीं हैं तो कोई बात नहीं आपको प्रोत्साहित किया जायेगा | नोबेल पुरस्कार पाने के लिए आपको डिग्री की जरूरत नहीं होती है | हमारे शिक्षा तंत्र को अंग्रेजों ने डिग्री में बांध दिया था जो आज भी वैसे के वैसा ही चल रहा है | ये जो 30 नंबर का पास मार्क्स आप देखते हैं वो उसी शिक्षा व्यवस्था क़ि देन है, मतलब ये है क़ि आप भले ही 70 नंबर में फेल है लेकिन 30 नंबर लाये है तो पास हैं, ऐसा शिक्षा तंत्र से सिर्फ गदहे ही पैदा हो सकते हैं और यही अंग्रेज चाहते थे | आप देखते होंगे क़ि हमारे देश में एक विषय चलता है जिसका नाम है Anthropology | जानते है इसमें क्या पढाया जाता है ? इसमें गुलाम लोगों क़ि मानसिक अवस्था के बारे में पढाया जाता है | और ये अंग्रेजों ने ही इस देश में शुरू किया था और आज आज़ादी के 64 साल बाद भी ये इस देश के विश्वविद्यालयों में पढाया जाता है और यहाँ तक क़ि सिविल सर्विस की परीक्षा में भी ये चलता है |

• इस संधि की शर्तों के हिसाब से हमारे देश में आयुर्वेद को कोई सहयोग नहीं दिया जायेगा मतलब हमारे देश की विद्या हमारे ही देश में ख़त्म हो जाये ये साजिस की गयी | आयुर्वेद को अंग्रेजों ने नष्ट करने का भरसक प्रयास किया था लेकिन ऐसा कर नहीं पाए | दुनिया में जितने भी पैथी हैं उनमे ये होता है क़ि पहले आप बीमार हों तो आपका इलाज होगा लेकिन आयुर्वेद एक ऐसी विद्या है जिसमे कहा जाता है क़ि आप बीमार ही मत पड़िए | आपको मैं एक सच्ची घटना बताता हूँ -जोर्ज वाशिंगटन जो क़ि अमेरिका का पहला राष्ट्रपति था वो दिसम्बर 1799 में बीमार पड़ा और जब उसका बुखार ठीक नहीं हो रहा था तो उसके डाक्टरों ने कहा क़ि इनके शरीर का खून गन्दा हो गया है जब इसको निकाला जायेगा तो ये बुखार ठीक होगा और उसके दोनों हाथों क़ि नसें डाक्टरों ने काट दी और खून निकल जाने की वजह से जोर्ज वाशिंगटन मर गया | ये घटना 1799 की है और 1780 में एक अंग्रेज भारत आया था और यहाँ से प्लास्टिक सर्जरी सीख के गया था | मतलब कहने का ये है क़ि हमारे देश का चिकित्सा विज्ञान कितना विकसित था उस समय | और ये सब आयुर्वेद की वजह से था और उसी आयुर्वेद को आज हमारे सरकार ने हाशिये पर पंहुचा दिया है |

• इस संधि के हिसाब से हमारे देश में गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जायेगा | हमारे देश के समृद्धि और यहाँ मौजूद उच्च तकनीक की वजह ये गुरुकुल ही थे | और अंग्रेजों ने सबसे पहले इस देश की गुरुकुल परंपरा को ही तोडा था, मैं यहाँ लार्ड मेकॉले की एक उक्ति को यहाँ बताना चाहूँगा जो उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में दिया था, उसने कहा था "“I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation” | गुरुकुल का मतलब हम लोग केवल वेद, पुराण,उपनिषद ही समझते हैं जो की हमारी मुर्खता है अगर आज की भाषा में कहूं तो ये गुरुकुल जो होते थे वो सब के सब Higher Learning Institute हुआ करते थे |

• इस संधि में एक और खास बात है | इसमें कहा गया है क़ि अगर हमारे देश के (भारत के) अदालत में कोई ऐसा मुक़दमा आ जाये जिसके फैसले के लिए कोई कानून न हो इस देश में या उसके फैसले को लेकर संबिधान में भी कोई जानकारी न हो तो साफ़ साफ़ संधि में लिखा गया है क़ि वो सारे मुकदमों का फैसला अंग्रेजों के न्याय पद्धति के आदर्शों के आधार पर ही होगा, भारतीय न्याय पद्धति का आदर्श उसमे लागू नहीं होगा | कितनी शर्मनाक स्थिति है ये क़ि हमें अभी भी अंग्रेजों का ही अनुसरण करना होगा |
• भारत में आज़ादी की लड़ाई हुई तो वो ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ था और संधि के हिसाब से ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत छोड़ के जाना था और वो चली भी गयी लेकिन इस संधि में ये भी है क़ि ईस्ट इंडिया कम्पनी तो जाएगी भारत से लेकिन बाकि 126 विदेशी कंपनियां भारत में रहेंगी और भारत सरकार उनको पूरा संरक्षण देगी | और उसी का नतीजा है क़ि ब्रुक बोंड, लिप्टन, बाटा, हिंदुस्तान लीवर (अब हिंदुस्तान यूनिलीवर) जैसी 126 कंपनियां आज़ादी के बाद इस देश में बची रह गयी और लुटती रही और आज भी वो सिलसिला जारी है |

• अंग्रेजी का स्थान अंग्रेजों के जाने के बाद वैसे ही रहेगा भारत में
जैसा क़ि अभी (1946 में) है और ये भी इसी संधि का हिस्सा है | आप देखिये क़ि हमारे देश में, संसद में, न्यायपालिका में, कार्यालयों में हर कहीं अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है जब क़ि इस देश में 99% लोगों को अंग्रेजी नहीं आती है | और उन 1% लोगों क़ि हालत देखिये क़ि उन्हें मालूम ही नहीं रहता है क़ि उनको पढना क्या है और UNO में जा के भारत के जगह पुर्तगाल का भाषण पढ़ जाते हैं |

• आप में से बहुत लोगों को याद होगा क़ि हमारे देश में आजादी के 50 साल बाद तक संसद में वार्षिक बजट शाम को 5:00 बजे पेश किया जाता था | जानते है क्यों ? क्योंकि जब हमारे देश में शाम के 5:00 बजते हैं तो लन्दन में सुबह के 11:30 बजते हैं और अंग्रेज अपनी सुविधा से उनको सुन सके और उस बजट की समीक्षा कर सके | इतनी गुलामी में रहा है ये देश | ये भी इसी संधि का हिस्सा है |

• 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो अंग्रेजों ने भारत में राशन कार्ड का सिस्टम शुरू किया क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों को अनाज क़ि जरूरत थी और वे ये अनाज भारत से चाहते थे | इसीलिए उन्होंने यहाँ जनवितरण प्रणाली और राशन कार्ड क़ि शुरुआत क़ि | वो प्रणाली आज भी लागू है इस देश में क्योंकि वो इस संधि में है | और इस राशन कार्ड को पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल उसी समय शुरू किया गया और वो आज भी जारी है | जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार होता था | आज भी देखिये राशन कार्ड ही मुख्य पहचान पत्र है इस देश में |

• अंग्रेजों के आने के पहले इस देश में गायों को काटने का कोई कत्लखाना नहीं था | मुगलों के समय तो ये कानून था क़ि कोई अगर गाय को काट दे तो उसका हाथ काट दिया जाता था | अंग्रेज यहाँ आये तो उन्होंने पहली बार कलकत्ता में गाय काटने का कत्लखाना शुरू किया, पहला शराबखाना शुरू किया, पहला वेश्यालय शुरू किया और इस देश में जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी वहां वहां वेश्याघर बनाये गए, वहां वहां शराबखाना खुला, वहां वहां गाय के काटने के लिए कत्लखाना खुला | ऐसे पुरे देश में 355 छावनियां थी उन अंग्रेजों के | अब ये सब क्यों बनाये गए थे ये आप सब आसानी से समझ सकते हैं | अंग्रेजों के जाने के बाद ये सब ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन नहीं हुआ क्योंक़ि ये भी इसी संधि में है |

• हमारे देश में जो संसदीय लोकतंत्र है वो दरअसल अंग्रेजों का वेस्टमिन्स्टर सिस्टम है | ये अंग्रेजो के इंग्लैंड क़ि संसदीय प्रणाली है | ये कहीं से भी न संसदीय है और न ही लोकतान्त्रिक है| लेकिन इस देश में वही सिस्टम है क्योंकि वो इस संधि में कहा गया है | और इसी वेस्टमिन्स्टर सिस्टम को महात्मा गाँधी बाँझ और वेश्या कहते थे (मतलब आप समझ गए होंगे) |
ऐसी हजारों शर्तें हैं | मैंने अभी जितना जरूरी समझा उतना लिखा है | मतलब यही है क़ि इस देश में जो कुछ भी अभी चल रहा है वो सब अंग्रेजों का है हमारा कुछ नहीं है | अब आप के मन में ये सवाल हो रहा होगा क़ि पहले के राजाओं को तो अंग्रेजी नहीं आती थी तो वो खतरनाक संधियों (साजिस) के जाल में फँस कर अपना राज्य गवां बैठे लेकिन आज़ादी के समय वाले नेताओं को तो अच्छी अंग्रेजी आती थी फिर वो कैसे इन संधियों के जाल में फँस गए | इसका कारण थोडा भिन्न है क्योंकि आज़ादी के समय वाले नेता अंग्रेजों को अपना आदर्श मानते थे इसलिए उन्होंने जानबूझ कर ये संधि क़ि थी | वो मानते थे क़ि अंग्रेजों से बढियां कोई नहीं है इस दुनिया में | भारत की आज़ादी के समय के नेताओं के भाषण आप पढेंगे तो आप पाएंगे क़ि वो केवल देखने में ही भारतीय थे लेकिन मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे | वे कहते थे क़ि सारा आदर्श है तो अंग्रेजों में, आदर्श शिक्षा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श अर्थव्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श चिकित्सा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कृषि व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श न्याय व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कानून व्यवस्था है तो अंग्रेजों की | हमारे आज़ादी के समय के नेताओं को अंग्रेजों से बड़ा आदर्श कोई दिखता नहीं था और वे ताल ठोक ठोक कर कहते थे क़ि हमें भारत अंग्रेजों जैसा बनाना है | अंग्रेज हमें जिस रस्ते पर चलाएंगे उसी रास्ते पर हम चलेंगे | इसीलिए वे ऐसी मूर्खतापूर्ण संधियों में फंसे | अगर आप अभी तक उन्हें देशभक्त मान रहे थे तो ये भ्रम दिल से निकाल दीजिये | और आप अगर समझ रहे हैं क़ि वो ABC पार्टी के नेता ख़राब थे या हैं तो XYZ पार्टी के नेता भी दूध के धुले नहीं हैं | आप किसी को भी अच्छा मत समझिएगा क्योंक़ि आज़ादी के बाद के इन 64 सालों में सब ने चाहे वो राष्ट्रीय पार्टी हो या प्रादेशिक पार्टी, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता का स्वाद तो सबो ने चखा ही है | खैर ...............

तो भारत क़ि गुलामी जो अंग्रेजों के ज़माने में थी, अंग्रेजों के जाने के 64 साल बाद आज 2012 में जस क़ि तस है क्योंकि हमने संधि कर रखी है और देश को इन खतरनाक संधियों के मकडजाल में फंसा रखा है | बहुत दुःख होता है अपने देश के बारे जानकार और सोच कर | मैं ये सब कोई ख़ुशी से नहीं लिखता हूँ ये मेरे दिल का दर्द होता है जो मैं आप लोगों से शेयर करता हूँ |

ये सब बदलना जरूरी है लेकिन हमें सरकार नहीं व्यवस्था बदलनी होगी और आप अगर सोच रहे हैं क़ि कोई मसीहा आएगा और सब बदल देगा तो आप ग़लतफ़हमी में जी रहे हैं | कोई हनुमान जी, कोई राम जी, या कोई कृष्ण जी नहीं आने वाले | आपको और हमको ही ये सारे अवतार में आना होगा, हमें ही सड़कों पर उतरना होगा और और इस व्यवस्था को जड मूल से समाप्त करना होगा | भगवान भी उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करता है |

!!! काशी विश्वनाथ महिमा !!!

Photo: विश्वनाथ -



सातवाँ ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ है ,यह मंदिर वाराणसी{ उत्तर प्रदेश } में स्थित है, भगवान् को यहाँ विश्वनाथ , विश्वेश्वर आदि नामों से पुकारा जाता है ,अर्थात पूरे विश्व का स्वामी . वाराणसी पुरी मोक्षदायिनी है , प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता।इस मंदिर को कई बार मुसलमानों ने तोडा पर हिन्दुओं ने बार बार फिरसे बनवाया उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बतलायी जाती
है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने का कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये।

सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राण्ाी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है। विश्वेश्वर के आनंद-कानन में पांच मुख्य तीर्थ हैं:-

दशाश्वेमघ,

लोलार्ककुण्ड,

बिन्दुमाधव,

केशव और

मणिकर्णिका

और इनहीं से युक्त यह अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है

ॐ ॐ
—

सातवाँ ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ है ,यह मंदिर वाराणसी{ उत्तर प्रदेश } में स्थित है, भगवान् को यहाँ विश्वनाथ , विश्वेश्वर आदि नामों से पुकारा जाता है ,अर्थात पूरे विश्व का स्वामी . वाराणसी पुरी मोक्षदायिनी है , प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता।इस मंदिर को कई बार मुसलमानों ने तोडा पर हिन्दुओं ने बार बार फिरसे बनवाया उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बतलायी जाती 
है। 

इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने का कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये।

सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राण्ाी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है। विश्वेश्वर के आनंद-कानन में पांच मुख्य तीर्थ हैं:-
  • दशाश्वेमघ,
  • लोलार्ककुण्ड,
  • बिन्दुमाधव,
  • केशव और
  • मणिकर्णिका

और इनहीं से युक्त यह अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है


ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ 

मै दुर्गा की जयेष्ट-पुत्री,क्षात्र-धर्म की शान रखाने आई हूँ !

Photo: मै दुर्गा की जयेष्ट-पुत्री,क्षात्र-धर्म की शान रखाने आई हूँ !

मै सीता का प्रतिरूप ,सूर्य वंश की लाज रखाने आई हूँ!1!



मै कुंती की अंश लिए ,चन्द्र-वंश को धर्म सिखाने आई हूँ !

मै सावित्री का सतीत्त्व लिए, यमराज को भटकाने आई हूँ !२!



मै विदुला का मात्रत्व लिए, तुम्हे रण-क्षेत्र में भिजवाने आई हूँ !

मै पदमनी बन आज,फिर से ,जौहर की आग भड़काने आई हूँ !३!



मै द्रौपदी का तेज़ लिए , अधर्म का नाश कराने आई हूँ !

मै गांधारी बन कर ,तुम्हे सच्चाई का ज्ञान कराने आई हूँ !४!



मै कैकयी का सर्थीत्त्व लिए ,तुम्हे असुर-विजय कराने आई हूँ !

मै उर्मिला बन ,तुम्हे तम्हारे क्षत्रित्त्व का संचय कराने आई !५!



मै शतरूपा बन ,तुम्हे सामने खडी , प्रलय से लड़वाने आई हूँ!

मै सीता बन कर ,फिर से कलयुगी रावणों को मरवाने आई हूँ!६!



मै कौशल्या बन आज ,राम को धरती पर पैदा करने आई हूँ !

मै देवकी बन आज ,कृष्ण को धरती पर पैदा करने आई हूँ !७!



मै वह क्षत्राणी हूँ जो, महा काळ को नाच नचाने आई हूँ !

मै वह क्षत्राणी हूँ जो ,तुम्हे तुम्हारे कर्तव्य बताने आई हूँ !८!



मै मदालसा का मात्रत्त्व लिए, माता की माहिमा,दिखलाने आई हूँ !

मै वह क्षत्राणी हूँ जो ,तुम्हे फिर से स्वधर्म बतलाने आई हूँ !९!



हाँ तुम जिस पीड़ा को भूल चुके, मै उसे फिर उकसाने आई हूँ !

मै वह क्षत्राणी हूँ ,जो तुम्हे फिर से क्षात्र-धर्म सिखलाने आई हूँ !१०!

“जय क्षात्र-धर्म ”

जो ललकारे उसे ना छोड़े



ओ सीमा के प्रहरी वीरों !सावधान हो जाना

इधर जो देखे आँख उठाकर ,उसको मार गिराना ||

बडे भाग्य से समय मिला है,उसको व्यर्थ ना खोना

भारत-हित बलि-भेंट चढ़ा कर,बीज सुयश के बोना ||



भाई और पड़ोसी होकर,छुरा भौंकते अपने

हथियारों के बल पर निशिदिन,देख रहे है सुख सपने |

अत्याचारी चीन,पाक को,बढ़ बढ़ हाथ दिखाना

घर बैठे गंगा आई है,न्हाना पुन्य कमाना ||



सीखा है धरती पर तुमने,करना वरण मरण का

साक्षी है इतिहास धारा पर,रावण सिया हरण का |

दे दो आज चुनौती,कह दो,हम है भारत वाले

हमें ना छेडो,हम उद्जन बम,हम रॉकेट निराले ||



चंद्रगुप्त,पोरस,सांगा -सा ,करना है रखवाली

भारत माँ के वीर सपूतो!तुम हो गौरवशाली |

पीछे रहे,न रहे कभी भी,माँ की रक्षा करने

जो ललकारे उसे ना छोड़े,डटे मारने मरने ||

जयजयकार किया करती है,जनता नर-हीरो की ,

जर जमीन,जोरू यह तीनो होती है वीरो की ||

मै दुर्गा की जयेष्ट-पुत्री,क्षात्र-धर्म की शान रखाने आई हूँ !
मै सीता का प्रतिरूप ,सूर्य वंश की लाज रखाने आई हूँ!1!

मै कुंती की अंश लिए ,चन्द्र-वंश को धर्म सिखाने आई हूँ !
मै सावित्री का सतीत्त्व लिए, यमराज को भटकाने आई हूँ !२!

मै विदुला का मात्रत्व लिए, तुम्हे रण-क्षेत्र में भिजवाने आई हूँ !
मै पदमनी बन आज,फिर से ,जौहर की आग भड़काने आई हूँ !३!

मै द्रौपदी का तेज़ लिए , अधर्म का नाश कराने आई हूँ !
मै गांधारी बन कर ,तुम्हे सच्चाई का ज्ञान कराने आई हूँ !४!

मै कैकयी का सर्थीत्त्व लिए ,तुम्हे असुर-विजय कराने आई हूँ !
मै उर्मिला बन ,तुम्हे तम्हारे क्षत्रित्त्व का संचय कराने आई !५!

मै शतरूपा बन ,तुम्हे सामने खडी , प्रलय से लड़वाने आई हूँ!
मै सीता बन कर ,फिर से कलयुगी रावणों को मरवाने आई हूँ!६!

मै कौशल्या बन आज ,राम को धरती पर पैदा करने आई हूँ !
मै देवकी बन आज ,कृष्ण को धरती पर पैदा करने आई हूँ !७!

मै वह क्षत्राणी हूँ जो, महा काळ को नाच नचाने आई हूँ !
मै वह क्षत्राणी हूँ जो ,तुम्हे तुम्हारे कर्तव्य बताने आई हूँ !८!

मै मदालसा का मात्रत्त्व लिए, माता की माहिमा,दिखलाने आई हूँ !
मै वह क्षत्राणी हूँ जो ,तुम्हे फिर से स्वधर्म बतलाने आई हूँ !९!

हाँ तुम जिस पीड़ा को भूल चुके, मै उसे फिर उकसाने आई हूँ !
मै वह क्षत्राणी हूँ ,जो तुम्हे फिर से क्षात्र-धर्म सिखलाने आई हूँ !१०!

“जय क्षात्र-धर्म ”

जो ललकारे उसे ना छोड़े

ओ सीमा के प्रहरी वीरों !सावधान हो जाना
इधर जो देखे आँख उठाकर ,उसको मार गिराना ||
बडे भाग्य से समय मिला है,उसको व्यर्थ ना खोना

भारत-हित बलि-भेंट चढ़ा कर,बीज सुयश के बोना ||

भाई और पड़ोसी होकर,छुरा भौंकते अपने
हथियारों के बल पर निशिदिन,देख रहे है सुख सपने |
अत्याचारी चीन,पाक को,बढ़ बढ़ हाथ दिखाना
घर बैठे गंगा आई है,न्हाना पुन्य कमाना ||

सीखा है धरती पर तुमने,करना वरण मरण का
साक्षी है इतिहास धारा पर,रावण सिया हरण का |
दे दो आज चुनौती,कह दो,हम है भारत वाले
हमें ना छेडो,हम उद्जन बम,हम रॉकेट निराले ||

चंद्रगुप्त,पोरस,सांगा -सा ,करना है रखवाली
भारत माँ के वीर सपूतो!तुम हो गौरवशाली |
पीछे रहे,न रहे कभी भी,माँ की रक्षा करने
जो ललकारे उसे ना छोड़े,डटे मारने मरने ||
जयजयकार किया करती है,जनता नर-हीरो की ,
जर जमीन,जोरू यह तीनो होती है वीरो की ||

टीका कुमकुम का महत्व

Photo: टीका
- भारतीय संस्कृति में स्त्री हो या पुरुष आज्ञा चक्र पर तिलक लगाने का रिवाज रहा है .
- इस सत्य घटना से हम टीके का महत्व जान सकते है . काशी के प्रसिद्ध वैद्य त्रयम्बक शास्त्री एक बार छत पर किसी के साथ बैठे हुए थे. नीचे सड़क पर एक आदमी जा रहा था. त्रयम्बक शास्त्री ने कहा-
" घर जाकर वह मर जाएगा."
कौतूहल के कारण उनके साथ के व्यक्ति ने उस आदमी का पीछा किया. कुछ दूर एक झोपड़े में वह रहता था. वह अन्दर गया. थोड़ी देर बाद ही अन्दर से रोने की आवाजें आने लगीं. वह आदमी मृत्यु को प्रा
प्त हो गया था.
व्यक्ति ने लौटकर त्रयम्बक शास्त्रीसे पूछा: " आपने कैसे समझ लिया था ?"
त्रयम्बक शास्त्री बोले: " उस आदमी को देखने से स्पष्ट था कि उसकी प्राण शक्ति ख़त्म हो चुकी है. पर वह नंगे पैर चल रहा था एवं चन्दन का तिलक लगाए हुए था जिसे उसे पृथ्वी से ऊर्जा मिल रही थी. उसे ऊर्जा के सहारे उसकी ज़िंदगी खिची चल रही थी. मुझे पता था कि घर जाकर वह चारपाई ( लकड़ी की होती है) पर बैठेगा और पैर उठाकर ऊपर रखेगा.. उसी क्षण वह ऊर्जा मिलनी बंद हो जायेगी और उसका देहांत हो जाएगा."
- टीका कुमकुम , केसर , चन्दन, हल्दी या भभूत का हो सकता है .
- आजकल महिलाएं हल्दी कुमकुम के स्थान पर नकली टीका यानी प्लास्टिक वाली बिंदी लगाती है और सिन्दूर की जगह लिपस्टिक से काम चलाती है . इससे कोई आध्यात्मिक या शारीरिक लाभ नहीं मिलेगा . इसलिए एक गीली तीली से रोजाना कुमकुम लगाएं .
- चन्दन का टीका लगाने से ठंडक मिलती है .
- तिलक में अंगूठे के प्रयोग से शक्ति , मध्यमा के प्रयोग से दीर्घायु ,अनामिका से समृद्धि और तर्जनी से मुक्ति प्राप्त होती है .
- केसर तिलक भी बहुत शुभ और एकाग्रता बढाने वाला होता है .केसर व गोरोचन ज्ञान-वैराग्य का प्रतीक माना जाता है अतः ज्ञानी तत्वचिन्तक इसका प्रयोग करते है।
- परम अवस्था प्राप्त योगी लोग कस्तुरी का प्रयोग करते हैं यह ज्ञान, वैराग्य, भक्ति, प्रेम, सौन्दर्य, ऐश्वर्य सभी का प्रतीक है ।
- असली कंकू हल्दी पावडर में चूना और जड़ी बूटियाँ मिला कर बनाया जाता है . इसे धोने पर इसका रंग नहीं रह जाता .
- नकली कंकू को अगर धोया जाए तो भी उसका रंग रह जाता है .
- हल्दी से बेहतर दूसरा एंटी-औक्सिडेंट है ही नहीं; यह कई बीमारियाँ रोकता है। किसी वैज्ञानिक ने कहा था कि हमारे भौहों के नीचे, आँखों के बीच और माथे में ऊपर की ओर इन तीन स्थानों पर तीन अलग-अलग तरह के जीवाणु रहते हैं। जब पुरुष भस्म का और महिलायें सिन्दूर का प्रयोग करते हैं तो इन जीवाणुओं के कुप्रभाव से पीनियल ग्रंथि बची रहती है।
- सिन्दूर सुपारी की राख और हल्दी या फिर हल्दी में फिटकरी मिलाकर बनाया जाता है . सिर के उस स्थान पर जहां मांग भरी जाने की परंपरा है, मस्तिष्क की एक महत्वपूर्ण ग्रंथी होती है, जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। यह अत्यंत संवेदनशील भी होती है। यह मांग के स्थान यानी कपाल के अंत से लेकर सिर के मध्य तक होती है। सिंदूर इसलिए लगाया जाता है क्योंकि इसमें पारा नाम की धातु होती है। पारा ब्रह्मरंध्र के लिए औषधि का काम करता है। महिलाओं को तनाव से दूर रखता है और मस्तिष्क हमेशा चैतन्य अवस्था में रखता है। विवाह के बाद ही मांग इसलिए भरी जाती है क्योंकि विवाहके बाद जब गृहस्थी का दबाव महिला पर आता है तो उसे तनाव, चिंता और अनिद्रा जैसी बीमारिया आमतौर पर घेर लेती हैं।पारा एकमात्र ऐसी धातु है जो तरल रूप में रहती है। यह मष्तिष्क के लिए लाभकारी है, इस कारण सिंदूर मांग में भरा जाता है।
- सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक होनेके कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पडती। साथ ही इससे स्त्री के शरीर में स्थित विद्युतीय उत्तेजना नियंत्रित होती है।
- पूर्वी उत्तर प्रदेश व बिहार में सिन्दूर का रंग चटक केसरिया होता है, इसे कच्चा सिन्दूर कहते हैं।

- भारतीय संस्कृति में स्त्री हो या पुरुष आज्ञा चक्र पर तिलक लगाने का   
  रिवाज रहा है .



- इस सत्य घटना से हम टीके का महत्व जान सकते है . काशी के प्रसिद्ध  वैद्य त्रयम्बक शास्त्री एक बार छत पर किसी के साथ बैठे हुए थे. नीचे सड़क पर एक आदमी जा रहा था. त्रयम्बक शास्त्री ने कहा-
" घर जाकर वह मर जाएगा."


कौतूहल के कारण उनके साथ के व्यक्ति ने उस आदमी का पीछा किया. कुछ दूर एक झोपड़े में वह रहता था. वह अन्दर गया. थोड़ी देर बाद ही अन्दर से रोने की आवाजें आने लगीं. वह आदमी मृत्यु को प्राप्त हो गया था. व्यक्ति ने लौटकर त्रयम्बक शास्त्रीसे पूछा: " आपने कैसे समझ लिया था ?"

त्रयम्बक शास्त्री बोले: " उस आदमी को देखने से स्पष्ट था कि उसकी प्राण शक्ति ख़त्म हो चुकी है. पर वह नंगे पैर चल रहा था एवं चन्दन का तिलक लगाए हुए था जिसे उसे पृथ्वी से ऊर्जा मिल रही थी. उसे ऊर्जा के सहारे उसकी ज़िंदगी खिची चल रही थी. मुझे पता था कि घर जाकर वह चारपाई ( लकड़ी की होती है) पर बैठेगा और पैर उठाकर ऊपर रखेगा.. उसी क्षण वह ऊर्जा मिलनी बंद हो जायेगी और उसका देहांत हो जाएगा."

- टीका कुमकुम , केसर , चन्दन, हल्दी या भभूत का हो सकता है .
- आजकल महिलाएं हल्दी कुमकुम के स्थान पर नकली टीका यानी प्लास्टिक वाली बिंदी लगाती है और सिन्दूर की जगह लिपस्टिक से काम चलाती है . इससे कोई आध्यात्मिक या शारीरिक लाभ नहीं मिलेगा . इसलिए एक गीली तीली से रोजाना कुमकुम लगाएं .
- चन्दन का टीका लगाने से ठंडक मिलती है .
- तिलक में अंगूठे के प्रयोग से शक्ति , मध्यमा के प्रयोग से दीर्घायु ,अनामिका से समृद्धि और तर्जनी से मुक्ति प्राप्त होती है .
- केसर तिलक भी बहुत शुभ और एकाग्रता बढाने वाला होता है .केसर व गोरोचन ज्ञान-वैराग्य का प्रतीक माना जाता है अतः ज्ञानी तत्वचिन्तक इसका प्रयोग करते है।
- परम अवस्था प्राप्त योगी लोग कस्तुरी का प्रयोग करते हैं यह ज्ञान, वैराग्य, भक्ति, प्रेम, सौन्दर्य, ऐश्वर्य सभी का प्रतीक है ।
- असली कंकू हल्दी पावडर में चूना और जड़ी बूटियाँ मिला कर बनाया जाता है . इसे धोने पर इसका रंग नहीं रह जाता .


- नकली कंकू को अगर धोया जाए तो भी उसका रंग रह जाता है .
- हल्दी से बेहतर दूसरा एंटी-औक्सिडेंट है ही नहीं; यह कई बीमारियाँ रोकता है। किसी वैज्ञानिक ने कहा था कि 

हमारे भौहों के नीचे, आँखों के बीच और माथे में ऊपर की ओर इन तीन स्थानों पर तीन अलग-अलग तरह के जीवाणु रहते हैं। जब पुरुष भस्म का और महिलायें सिन्दूर का प्रयोग करते हैं तो इन जीवाणुओं के कुप्रभाव से पीनियल ग्रंथि बची रहती है।

- सिन्दूर सुपारी की राख और हल्दी या फिर हल्दी में फिटकरी मिलाकर बनाया जाता है . सिर के उस स्थान पर जहां मांग भरी जाने की परंपरा है, मस्तिष्क की एक महत्वपूर्ण ग्रंथी होती है, जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। यह अत्यंत संवेदनशील भी होती है। यह मांग के स्थान यानी कपाल के अंत से लेकर सिर के मध्य तक होती है। सिंदूर इसलिए लगाया जाता है क्योंकि इसमें पारा नाम की धातु होती है। पारा ब्रह्मरंध्र के लिए औषधि का काम करता है। महिलाओं को तनाव से दूर रखता है और मस्तिष्क हमेशा चैतन्य अवस्था में रखता है। विवाह के बाद ही मांग इसलिए भरी जाती है क्योंकि विवाहके बाद जब गृहस्थी का दबाव महिला पर आता है तो उसे तनाव, चिंता और अनिद्रा जैसी बीमारिया आमतौर पर घेर लेती हैं।पारा एकमात्र ऐसी धातु है जो तरल रूप में रहती है। यह मष्तिष्क के लिए लाभकारी है, इस कारण सिंदूर मांग में भरा जाता है।
- सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक होनेके कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पडती। साथ ही इससे स्त्री के शरीर में स्थित विद्युतीय उत्तेजना नियंत्रित होती है।
- पूर्वी उत्तर प्रदेश व बिहार में सिन्दूर का रंग चटक केसरिया होता है, इसे कच्चा सिन्दूर कहते हैं।

पहली रोटी गाय को खिलाएं, क्योंकि........

Photo: पहली रोटी गाय को खिलाएं, क्योंकि........

गाय हिंदु धर्म में पवित्र और पूजनीय मानी गई है। शास्त्रों के अनुसार गौसेवा के पुण्य का प्रभाव कई जन्मों तक बना रहता है। इसीलिए गाय की सेवा करने की बात कही जाती है। पुराने समय से ही गौसेवा को धर्म के साथ ...ही जोड़ा गया है। गौसेवा भी धर्म का ही अंग है। गाय को हमारी माता बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि गाय में हमारे सभी देवी-देवता निवास करते हैं। इसी वजह से मात्र गाय की सेवा से ही भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान श्रीकृष्
ण के साथ ही गौमाता की भी पूजा की जाती है।

भागवत में श्रीकृष्ण ने भी इंद्र पूजा बंद करवाकर गौमाता की पूजा प्रारंभ करवाई है। इसी बात से स्पष्ट होता है कि गाय की सेवा कितना पुण्य का अर्जित करवाती है। गाय के धार्मिक महत्व को ध्यान में रखते हुए कई घरों में यह परंपरा होती है कि जब भी खाना बनता है पहली रोटी गाय को खिलाई जाती है। यह पुण्य कर्म बिल्कुल वैसा ही जैसे भगवान को भोग लगाना। गाय को पहली रोटी खिला देने से सभी देवी-देवताओं को भोग लग जाता है।



गाय हिंदु धर्म में पवित्र और पूजनीय मानी गई है। शास्त्रों के अनुसार गौसेवा के पुण्य का प्रभाव कई जन्मों तक बना रहता है। इसीलिए गाय की सेवा करने की बात कही जाती है। पुराने समय से ही गौसेवा को धर्म के साथ ...ही जोड़ा गया है। गौसेवा भी धर्म का ही अंग है। गाय को हमारी माता बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि गाय में हमारे सभी देवी-देवता निवास करते हैं। इसी वजह से मात्र गाय की सेवा से ही भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के साथ ही गौमाता की भी पूजा की जाती है।

भागवत में श्रीकृष्ण ने भी इंद्र पूजा बंद करवाकर गौमाता की पूजा प्रारंभ करवाई है। इसी बात से स्पष्ट होता है कि गाय की सेवा कितना पुण्य का अर्जित करवाती है। गाय के धार्मिक महत्व को ध्यान में रखते हुए कई घरों में यह परंपरा होती है कि जब भी खाना बनता है पहली रोटी गाय को खिलाई जाती है। यह पुण्य कर्म बिल्कुल वैसा ही जैसे भगवान को भोग लगाना। गाय को पहली रोटी खिला देने से सभी देवी-देवताओं को भोग लग जाता है।

थाईलैंड में भी है एक अयोध्या

Photo: थाईलैंड में भी है एक अयोध्या

थाईलैंड में सदियों पुराना भारतीय प्रभाव है। एक अजीब विशेषता है। धर्म तो बौद्ध स्वीकार किया परन्तु संस्कृति हिन्दू अपनाई है। प्रत्येक राजा को ‘राम’ कहा जाता है। आधुनिक राजा ‘राम-8’ कहा जाता है। लगभग 450 वर्ष पूर
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्व इस वंश का प्रथम राजा ‘राम-1’ के नाम से विख्यात हुआ। सन् 1448 तक त्रैलोक नाम के राजा ने राज किया। उसने प्रशासन में उल्लेखनीय सुधार किए।

चौदहवीं सदी में थाईलैंड में अयोध्या की स्थापना हुई थी। वहीं थाईलैंड की राजधानी रही। इस वंश के 36 राजाओं ने 416 वर्षों तक राज किया। आधुनिक राजा के आठवें पूर्व वंशज ने राम नाम जोडऩा शुरू किया जो आज तक चल रहा है। अयोध्या को देवताओं की भूमि कहा जाता है। अद्वितीय इन्द्र देवता की नगरी। इन्द्र ने यह नगर स्थापित किया और विष्णुकरन ने इसका निर्माण किया था। इस राज्य की स्थापना राजा यूथोंग ने चायो फराया नदी के पास की थी। इसे स्याम नाम से भी जाना जाता था।

1782 में बर्मा के आक्रमण के बाद थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में बनाई गई। अयोध्या आज भी इस देश की पुरानी सांस्कृतिक धरोहर की गवाह है। राजा मागेंकुट राजा बनने से पूर्व 27 वर्ष तक बौद्ध भिक्षु रहा। उसने पाली व संस्कृति का पूरा ज्ञान प्राप्त किया। राजा बनने पर उसे राम-4 कहा गया। यहां की भाषा का मूल संस्कृत है।

लोकतंत्र में भी राजशाही का इतना सम्मान यहां की विशेषता है। राजा को आज भी दैवीय शक्ति सम्पन्न माना जाता है। चार सदियों तक रहे यहां की अयोध्या के राजा तो स्वयं को विष्णु का अवतार मानते थे। वर्तमान राजा भूमिवोन अदुलमादेज पिछले 62 वर्षों से राज ङ्क्षसहासन पर हैं। यह विश्व में किसी भी राजा के लिए सर्वाधिक अवधि है। राजमहल में प्रतिदिन की पूजा विशेष भारतीय ब्राह्मण रीति से होती है। भारतीय वंश के ब्राह्मण पुजारी भारतीय वेश में पूजा करवाते हैं। यह पूजा थाई राष्ट्रवाद के लिए की जाती है जिसके तीन स्तम्भ माने गए हैं-थाई सार्वभौमिकता, धर्म और राजशाही। मैं सोच रहा हूँ अगर भारत में यदि भारत के राष्ट्रपति भवन में इस प्रकार की पूजा होने लगे तो भारतीय सैकुलरवादी कितना हो-हल्ला मचाएंगे, उल्टी दस्त हो जायेंगे इन्हें ।

यहां के टी.वी. चैनल का नाम ‘राम चैनल’, और हवाई पत्तन का नाम ‘स्वर्णभूमि हवाई पत्तन’ है। कई सड़कों का नाम ‘राम’ पर है। सैंकड़ों साल पहले जब जहाज, सड़कें नहीं थीं, तब ‘राम’ का नाम ऐसा यहां आया कि आज भी सड़क से लेकर राजा तक राम छाए हुए हैं और भारत में राम के जन्मस्थान पर राम का मंदिर नहीं बन पा रहा।

थाईलैंड में सदियों पुराना भारतीय प्रभाव है। एक अजीब विशेषता है। धर्म तो बौद्ध स्वीकार किया परन्तु संस्कृति हिन्दू अपनाई है। प्रत्येक राजा को ‘राम’ कहा जाता है। आधुनिक राजा ‘राम-8’ कहा जाता है। लगभग 450 वर्ष पूर्व इस वंश का प्रथम राजा ‘राम-1’ के नाम से विख्यात हुआ। सन् 1448 तक त्रैलोक नाम के राजा ने राज किया। उसने प्रशासन में उल्लेखनीय सुधार किए।

चौदहवीं सदी में थाईलैंड में अयोध्या की स्थापना हुई थी। वहीं थाईलैंड की राजधानी रही। इस वंश के 36 राजाओं ने 416 वर्षों तक राज किया। आधुनिक राजा के आठवें पूर्व वंशज ने राम नाम जोडऩा शुरू किया जो आज तक चल रहा है। अयोध्या को देवताओं की भूमि कहा जाता है। अद्वितीय इन्द्र देवता की नगरी। इन्द्र ने यह नगर स्थापित किया और विष्णुकरन ने इसका निर्माण किया था। इस राज्य की स्थापना राजा यूथोंग ने चायो फराया नदी के पास की थी। इसे स्याम नाम से भी जाना जाता था।

1782 में बर्मा के आक्रमण के बाद थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में बनाई गई। अयोध्या आज भी इस देश की पुरानी सांस्कृतिक धरोहर की गवाह है। राजा मागेंकुट राजा बनने से पूर्व 27 वर्ष तक बौद्ध भिक्षु रहा। उसने पाली व संस्कृति का पूरा ज्ञान प्राप्त किया। राजा बनने पर उसे राम-4 कहा गया। यहां की भाषा का मूल संस्कृत है।

लोकतंत्र में भी राजशाही का इतना सम्मान यहां की विशेषता है। राजा को आज भी दैवीय शक्ति सम्पन्न माना जाता है। चार सदियों तक रहे यहां की अयोध्या के राजा तो स्वयं को विष्णु का अवतार मानते थे। वर्तमान राजा भूमिवोन अदुलमादेज पिछले 62 वर्षों से राज ङ्क्षसहासन पर हैं। यह विश्व में किसी भी राजा के लिए सर्वाधिक अवधि है। राजमहल में प्रतिदिन की पूजा विशेष भारतीय ब्राह्मण रीति से होती है। भारतीय वंश के ब्राह्मण पुजारी भारतीय वेश में पूजा करवाते हैं। यह पूजा थाई राष्ट्रवाद के लिए की जाती है जिसके तीन स्तम्भ माने गए हैं-थाई सार्वभौमिकता, धर्म और राजशाही। मैं सोच रहा हूँ अगर भारत में यदि भारत के राष्ट्रपति भवन में इस प्रकार की पूजा होने लगे तो भारतीय सैकुलरवादी कितना हो-हल्ला मचाएंगे, उल्टी दस्त हो जायेंगे इन्हें ।

यहां के टी.वी. चैनल का नाम ‘राम चैनल’, और हवाई पत्तन का नाम ‘स्वर्णभूमि हवाई पत्तन’ है। कई सड़कों का नाम ‘राम’ पर है। सैंकड़ों साल पहले जब जहाज, सड़कें नहीं थीं, तब ‘राम’ का नाम ऐसा यहां आया कि आज भी सड़क से लेकर राजा तक राम छाए हुए हैं और भारत में राम के जन्मस्थान पर राम का मंदिर नहीं बन पा रहा।

क्या आप जानते हैं कि...... मुस्लिमों द्वारा प्रयुक्त किया जाने वाला अंक 786 क्या है...???

Photo: क्या आप जानते हैं कि...... मुस्लिमों द्वारा प्रयुक्त किया जाने वाला अंक 786 क्या है...???

मुस्लिम तथा इस्लाम के पुरोधा 786 अंक को विस्मिल्लाह का रूप बताते हैं.... और, सीधे सीधे इस अंक को अपने अल्लाह से जोड़ते हैं...!

परन्तु आप यह जान कर हैरान हो जायेंगे कि .... इस्लाम का 786 और कुछ नहीं .... बल्कि.... हम हिन्दुओं तथा विश्व का पहला एवं पवित्रम अक्षर ॐ है...!

दरअसल ऐसा इसीलिए है कि....... मुस्लिमों द्वारा अपने अराध्य के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द ""अल्लाह"" भी..... हिन्दुओं के वेद से ही चुराया गया है.... और, जो ""अल्ला"" का अपभ्रंश रूप है..... जिसका अर्थ ""अम्बा, अक्का, अथवा शक्ति होता है"...!

तो.... उन्होंने एक काल्पनिक अल्लाह बना लिया ..... और, वैदिक रीति के अनुसार ही दिन में 5 बार उनकी पूजा(आराधना) सुनिश्चित कर ली........ परन्तु , ""ओंकार"" के उच्चारण के बिना उन्हें अपने हर किये धरे पर पानी फिरता नजर आया..... क्योंकि उन्हें भी यह मालूम था कि.... ॐ ही साश्वत है..... और, अंतिम सत्य है...!


अपनी इस्लाम की इस विसंगति को दूर करने लिए..... उन्हें भी ॐ सरीखा ही कोई ""अदभुत और सर्वशक्तिमान"" अक्षर चाहिए था.... जो कि उन्हें नहीं मिला.... क्योंकि, पूरे ब्रह्माण्ड में ॐ एक ही है...!

इसीलिए उन्होंने..... लाचार होकर हमारे ""अदभुत और सर्वशक्तिमान"" अक्षर ॐ को ही अपना लिया...... परन्तु, उन्होंने ॐ के तीनों भागों को थोडा दूर दूर लिखा (उल्टा कर लिखा .... क्योंकि, अरबी और इस्लाम में सब चीज उल्टा कर ही लिखा जाता है).... जिससे कि..... यह एक अंक ७८६ सरीखा दिखने लगा , जिसे उन्होंने जस के तस अपना लिया......!

इस तरह ...... हम निर्विवाद रूप से यह साबित कर सकते हैं कि........ इस्लाम की पूजा (नमाज) पद्धति, उनका अल्लाह ..... यहाँ तक कि उनका पवित्रतम अंक 786 हमारे वेदों से ही चुरा कर बनाया गया है...... और, इस्लाम कोई नया धर्म अथवा संप्रदाय नहीं है...!


इन सब बातों से..... एक महत्वपूर्ण बात यह भी साबित होती है कि..... इस पूरे ब्रह्माण्ड में हिन्दू सनातन धर्म के अलावा और किसी दूसरे धर्म अथवा संप्रदाय का कोई अस्तित्व नहीं है..... और, सारे के सारे धर्म तथा संप्रदाय ........ हमारे हिन्दू सनातन धर्म से चोरी कर..... अथवा, प्रेरणा लेकर तैयार किये गए हैं....!

यही कारण है कि..... सारे दुनिया के विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा ... लाख प्रयास करने के बावजूद भी..... आज तक कोई हमारे हिन्दू सनातन धर्म का बाल भी बांका नहीं कर पाया है..... और, हम आज भी दुनिया में ....... सबसे सम्मानित तथा आदरणीय धर्म की संज्ञा पाते हैं....!

हमारा हिन्दू सनातन धर्म ही ..... ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के साथ बना है..... और, यही.... अंत तक.... तथा , इसी गौरव के साथ विद्यमान रहेगा...!


बाकी के सारे धर्म धर्म और संप्रदाय.... पानी के बुलबुले की तरह आए हैं..... और, उसी प्रकार विलुप्त भी हो जायेंगे...!


इसीलिए..... गर्व करें कि हम सनातनी हैं ... और , सर्वश्रेष्ठ हिन्दू धर्म का हिस्सा हैं....!


जय महाकाल...!!!


मुस्लिम तथा इस्लाम के पुरोधा 786 अंक को विस्मिल्लाह का रूप बताते हैं.... और, सीधे सीधे इस अंक को अपने अल्लाह से जोड़ते हैं...!

परन्तु आप यह जान कर हैरान हो जायेंगे कि .... इस्लाम का 786 और कुछ नहीं .... बल्कि.... हम हिन्दुओं तथा विश्व का पहला एवं पवित्रम अक्षर ॐ है...!



दरअसल ऐसा इसीलिए है कि....... मुस्लिमों द्वारा अपने अराध्य के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द ""अल्लाह"" भी...हिन्दुओं  के वेद से ही चुराया गया है.... और, जो ""अल्ला"" का अपभ्रंश रूप है..... जिसका अर्थ ""अम्बा, अक्का, अथवा शक्ति होता है"...!

तो.... उन्होंने एक काल्पनिक अल्लाह बना लिया ..... और, वैदिक रीति के अनुसार ही दिन में 5 बार उनकी पूजा(आराधना) सुनिश्चित कर ली........ परन्तु , ""ओंकार"" के उच्चारण के बिना उन्हें अपने हर किये धरे पर पानी फिरता नजर आया..... क्योंकि उन्हें भी यह मालूम था कि.... ॐ ही साश्वत है..... और, अंतिम सत्य है...!


अपनी इस्लाम की इस विसंगति को दूर करने लिए..... उन्हें भी ॐ सरीखा ही कोई ""अदभुत और सर्वशक्तिमान"" अक्षर चाहिए था.... जो कि उन्हें नहीं मिला.... क्योंकि, पूरे ब्रह्माण्ड में ॐ एक ही है...!

इसीलिए उन्होंने..... लाचार होकर हमारे ""अदभुत और सर्वशक्तिमान"" अक्षर ॐ को ही अपना लिया...... परन्तु, उन्होंने ॐ के तीनों भागों को थोडा दूर दूर लिखा (उल्टा कर लिखा .... क्योंकि, अरबी और इस्लाम में सब चीज उल्टा कर ही लिखा जाता है).... जिससे कि..... यह एक अंक ७८६ सरीखा दिखने लगा , जिसे उन्होंने जस के तस अपना लिया......!


इस तरह ...... हम निर्विवाद रूप से यह साबित कर सकते हैं कि........ इस्लाम की पूजा (नमाज) पद्धति, उनका अल्लाह ..... यहाँ तक कि उनका पवित्रतम अंक 786 हमारे वेदों से ही चुरा कर बनाया गया है...... और, इस्लाम कोई नया धर्म अथवा संप्रदाय नहीं है...!
इन सब बातों से..... एक महत्वपूर्ण बात यह भी साबित होती है कि..... इस पूरे ब्रह्माण्ड में हिन्दू सनातन धर्म के अलावा और किसी दूसरे धर्म अथवा संप्रदाय का कोई अस्तित्व नहीं है..... और, सारे के सारे धर्म तथा संप्रदाय ........ हमारे हिन्दू सनातन धर्म से चोरी कर..... अथवा, प्रेरणा लेकर तैयार किये गए हैं....!

यही कारण है कि..... सारे दुनिया के विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा ... लाख प्रयास करने के बावजूद भी..... आज तक कोई हमारे हिन्दू सनातन धर्म का बाल भी बांका नहीं कर पाया है..... और, हम आज भी दुनिया में ....... सबसे सम्मानित तथा आदरणीय धर्म की संज्ञा पाते हैं....!

हमारा हिन्दू सनातन धर्म ही ..... ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के साथ बना है..... और, यही.... अंत तक.... तथा , इसी गौरव के साथ विद्यमान रहेगा...!
बाकी के सारे धर्म धर्म और संप्रदाय.... पानी के बुलबुले की तरह आए हैं..... और, उसी प्रकार विलुप्त भी हो जायेंगे...!

इसीलिए..... गर्व करें कि हम सनातनी हैं ... और , सर्वश्रेष्ठ हिन्दू धर्म का हिस्सा हैं....!


जय महाकाल...!!!

हिन्दुओ अपने सत्य इतिहास को पहचानो, उससे सबक लो..........

जिस हिन्दू ने नभ में जाकर, नक्षत्रो को दी है संज्ञा.
जिसने हिमगिरी का वक्ष चीर, भू को दी है पावन गंगा.
जिसने सागर की छाती पर, पाषानो को तैराया है.
हर वर्तमान की पीड़ा को, जिसने इतिहास बनाया है.
जिसके आर्यों ने घोष किया, "कृण्वन्तो विश्वमार्यम" का.
जिसका गौरव कम कर न सकी, रावण की स्वर्णमयी लंका.
जिसके यज्ञो का एक हव्य, सौ- सौ पुत्रोँ का जनक रहा.
जिसके आँगन में भयाक्रांत, धनपति बरसाता कनक रहा.
जिसके पावन बलिष्ठ तन की, रचना तन दे दाधीच ने की.
राघव ने वन-वन भटक-भटक, जिस तन में प्राण प्रतिष्ठा की.
जौहर कुंडो में कूद-कूद , सतियो ने जिसमे दिया सत्व.
गुरुवो-गुरु पुत्रो ने जिसमे, चिर बलिदानी भर दिया तत्व.
वो शाश्वत हिन्दू जीवन क्या, स्मरणीय मात्र रह जाएगा?
इसका पावन गंगा का जल, क्या नालो में बह जाएगा?
इसके गंगाधर शिवशंकर, क्या ले समाधि सो जायेंगे?
इसके पुष्कर, इसके प्रयाग, क्या गर्त मात्र रह जायेंगे?
यदि तुम ऐसा नहीं चाहते, तो तुमको जगना होगा.
हिन्द राष्ट्र का बिगुल बजाकर, दानव दल को दलना होगा.



धर्म की वेदी पर प्राण न्योछावर करने वाले पिता-पुत्र शाहबेग सिंह और शाहबाज सिंह

अठारहवी शताब्दी का उत्तराद्ध चल रहा था. देश पर मुगलों का राज्य था. भाई शाहबेग सिंह लाहौर के कोतवाल थे. आप अरबी और फारसी के बड़े विद्वान थे और अपनी योग्यता और कार्य कुशलता के कारण हिन्दू होते हुए भी सूबे के परम विश्वासपात्र थे. मुसलमानों के खादिम होते हुए भी 
हिन्दू और सिख उनका बड़ा सामान करते थे. उन्हें भी अपने वैदिक धर्म से अत्यंत प्रेम था और यही कारण था की कुछ कट्टर मुस्लमान उनसे मन ही मन द्वेष करते थे. शाहबेग सिंह का एकमात्र पुत्र था शाहबाज सिंह. आप १५-१६ वर्ष के करीब होगे और मौलवी से फारसी पढने जाया करते थे. वह मौलवी प्रतिदिन आदत के मुताबिक इस्लाम की प्रशंसा करता और हिन्दू धर्म को इस्लाम से नीचा बताता. आखिर धर्म प्रेमी शाहबाज सिंह कब तक उसकी सुनता और एक दिन मौलवी से भिड़ पड़ा. पर उसने यह न सोचा था की इस्लामी शासन में ऐसा करने का क्या परिणाम होगा.

मौलवी शहर के काजियों के पास पहुंचा और उनके कान भर के शाहबाज सिंह पर इस्लाम की निंदा का आरोप घोषित करवा दिया.पिता के साथ साथ पुत्र को भी बंदी बना कर काजी के सामने पेश किया गया. काजियों ने धर्मान्धता में आकर घोषणा कर दी की या तो इस्लाम काबुल कर ले अथवा मरने के लिए तैयार हो जाये.जिसने भी सुना दंग रह गया. शाहबेग जैसे सर्वप्रिय कोतवाल के लिए यह दंड और वह भी उसके पुत्र के अपराध के नाम पर. सभी के नेत्रों से अश्रुधारा का प्रवाह होने लगा पर शाहबेग सिंह हँस रहे थे. अपने पुत्र शाहबाज सिंह को बोले “कितने सोभाग्यशाली हैं हम, इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे की मुसलमानों की नौकरी में रहते हुए हमें धर्म की बलिवेदी पर बलिदान होने का अवसर मिल सकेगा किन्तु प्रभु की महिमा अपार हैं, वह जिसे गौरव देना चाहे उसे कौन रोक सकता हैं. डर तो नहीं जाओगे बेटा?” नहीं नहीं पिता जी! पुत्र ने उत्तर दिया- “आपका पुत्र होकर में मौत से डर सकता हूँ? कभी नहीं. देखना तो सही मैं किस प्रकार हँसते हुए मौत को गले लगता हूँ.”

पिता की आँखे चमक उठी. “मुझे तुमसे ऐसी ही आशा थी बेटा!” पिता ने पुत्र को अपनी छाती से लगा लिया.

दोनों को इस्लाम काबुल न करते देख अलग अलग कोठरियों में भेज दिया गया.

मुस्लमान शासक कभी पिता के पास जाते , कभी पुत्र के पास जाते और उन्हें मुसलमान बनने का प्रोत्साहन देते. परन्तु दोनों को उत्तर होता की मुसलमान बनने के बजाय मर जाना कहीं ज्यादा बेहतर हैं.


एक मौलवी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए पुत्र से बोला “बच्चे तेरा बाप तो सठिया गया हैं, न जाने उसकी अक्ल को क्या हो गया हैं. मानता ही नहीं? लेकिन तू तो समझदार दीखता हैं. अपना यह सोने जैसा जिस्म क्यों बर्बाद करने पर तुला हुआ हैं. यह मेरी समझ में नहीं आता.”

शाहबाज सिंह ने कहाँ “वह जिस्म कितने दिन का साथी हैं मौलवी साहिब! आखिर एक दिन तो जाना ही हैं इसे, फिर इससे प्रेम क्यूँ ही किया जाये. जाने दीजिये इसे, धर्म के लिए जाने का अवसर फिर शायद जीवन में इसे न मिल सके.”


मौलवी अपना सा मुँह लेकर चला गया पर उसके सारे प्रयास विफल हुएँ.

दोनों पिता और पुत्र को को चरखे से बाँध कर चरखा चला दिया गया. दोनों की हड्डियां एक एक कर टूटने लगी , शरीर की खाल कई स्थानों से फट गई पर दोनों ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया और हँसते हँसते मौत को गले से लगा लिया.अपने धर्म की रक्षा के लिए न जाने ऐसे कितने वीरों ने अपने प्राण इतिहास के रक्त रंजित पन्नों में दर्ज करवाएँ हैं. आज उनका हम स्मरण करके ,उनकी महानता से कुछ सिखकर ही उनके ऋण से आर्य जाति मुक्त हो सकती हैं

.हिंदू-मुस् लिम भाई-भाई,पर हिंदू-हिंदू कभी ना भाई.....!!
''जब याद गोधरा आता है आँखों में आँसू आते हैं,
कश्मीरी पंडितों की पीड़ा कुछ हिंदू भूल क्यों जाते हैं।
हर बार विधर्मी शैतानों ने धर्म पर हैं प्रहार कीये,
हर बार सहिष्णू बन कर हमने जाने कितनेकष्ट सहे।
अब और नहीं चुप रहना है अब और नहीं कुछसहना है,
जैसा आचरण करेगा जो, वो सूद समेत दे देना है।

क्या भूल गये राजा प्रथ्वी ने गौरी कोक्षमा-दान दिया,
और बदले में उसने राजा की आँखों को निकाल लिया।
ये वंश वही है बाबर का जो राम का मंदिरगिरा गया,
और पावन सरयू धरती पर बाबरी के पाप को सजा गया।
अकबर को जो कहते महान क्या उन्हें सत्य का ज्ञान नहीं,
या उनके हृदय में जौहर हुई माताओं के लिए सम्मान नहीं।
औरंगज़ेब की क्रूरता भी क्या याद पुन:दिलवाऊँ मैं,
टूटे जनेऊ और मिटे तिलक के दर्शन पुन: कराऊँ मैं।
तुम भाई कहो उनको लेकिन तुमको वो काफ़िर मानेंगे,
और जन्नत जाने की खातिर वो शीश तुम्हारा उतारेंगे।
धर्मो रक्षति रक्षित: के अर्थ को अब पहचानो तुम,
धर्म बस एक 'सनातन' है, कोई मिथ्या-भ्रम मत पालो तुम। '

श्लोक :

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यः मानो धर्मो हतोवाधीत् ॥

The Ancient Science - Spinal Column




SPINAL COLUMN:

Before proceeding to the study of Nadis and Chakras we have to know something about the Spinal Column, as all the Chakras are connected with it.


Spinal Column is known as Meru Danda. This is the axis of the body just as Mount Meru is the axis of the earth. Hence the spine is called ‘Meru’. Spinal column is otherwise known as spine, axis-staff or vertebral column. Man is microcosm. (Pinda - Kshudra-Brahmanda). All things seen in the universe,—mountains, rivers, Bhutas, etc., exist in the body also. All the Tattvas and Lokas (worlds) are within the body.

The body may be divided into three main parts:—head, trunk and the limbs, and the centre of the body is between the head and the legs. The spinal column extends from the first vertebra, Atlas bone, to the end of the trunk.

The spine is formed of a series of 33 bones called vertebrae; according to the position these occupy, it is divided into five regions:—

1. Cervical region (neck) 7 vertebrae
2. Dorsal region (back) 12 vertebrae
3. Lumbar region (waist or loins) 5 vertebrae.
4. Sacral region (buttocks, Sacrum or gluteal) 5 vertebrae.
5. Coccygeal region (imperfect vertebrae Coccyx) 4 vertebrae.


The vertebral bones are piled one upon the other thus forming a pillar for the support of the cranium and trunk. They are connected together by spinous, transverse and articular processes and by pads of fibro-cartilage between the bones. The arches of the vertebrae form a hollow cylinder or a bony covering or a passage for the spinal cord. The size of the vertebrae differs from each other.

For example, the size of the vertebrae in cervical region is smaller than in dorsal but the arches are bigger. The body of the lumbar vertebrae is the largest and biggest. The whole spine is not like a stiff rod, but has curvatures that give a spring action. All the other bones of the body are connected with this spine.

Between each pair of vertebrae there are apertures through which the spinal nerves pass from the spinal cord to the different portions and organs of the body. The five regions of the spine correspond with the regions of the five Chakras: Muladhara, Svadhishthana, Manipura, Anahata and Vishuddha.

Sushumna Nadi passes through the hollow cylindrical cavity of the vertebral column and Ida is on the left side and Pingala on the right side of the spine

धर्मो रक्षति रक्षितः



जो धर्म की रक्षा करता है वह स्वयं रक्षित होता है।

इस उद्घोष का कोई तो कारण होगा। आखिर क्यों हमारी संस्कृति में धर्म को इतना महत्व दिया गया है। धर्म का क्या अर्थ है? क्या सच्चरित्रता धर्म है? क्या नैतिकता धर्म है? क्या पूजा धर्म है? ऐसे ना जाने कितने प्रश्न हमें घेरे रहते हैं।


असल में धर्म वह धरती है जिस पर चरित्र, विवेक, शील, नैतिकता और कर्तव्यपरायणता आदि जैसे गुण विकसित होते हैं। यदि धर्म का आधार न हो तो इन गुणों का भी कोई अस्तित्व न हो। धर्म एक संस्कृत शब्द है जिसका आज तक किसी अन्य भाषा में अनुवाद नहीं हो पाया। यह केवल और केवल भारतीय संस्कृति का ही अंग रहा है। आमतौर पर लोग इसका अंग्रेज़ी अनुवाद रिलीजन के रूप में करते हैं, किन्तु यह उससे कहीं अधिक व्यापक है। धरती जितना विस्तारित, या शायद उससे भी अधिक। इसकी कोई सीमा नहीं और यदि है तो उस सीमा के बाहर कुछ भी नहीं।

धर्म के बिना जीवन का कोई अस्तित्व नहीं। धरा का प्रत्येक जीव धर्म से बंधा है। नदी का धर्म है उपर से नीचे की ओर बहना। यदि वह अपने इस धर्म का पालन न करे तो उसका अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। वह झील या सरोवर होकर रह जायेगी। प्रकृति, मनुष्य, पालन, पोषण, जन्म-मृत्यु, जीव, वनस्पति आदि सभी धर्म से संचालित हैं।

सरल शब्दों में कहें तो जीवन का विधान ही धर्म है। देश को चलाने के लिए कानून की आवश्यकता होती है। यहाँ तक कि छोटी से छोटी इकाई को चलने के लिए भी नियम होते हैं। इन नियमों के बिना उनका कोई अस्तित्व नहीं। ठीक इसी प्रकार जीवन को चलाने के लिए भी नियम की आवश्यकता होती है। जीवन के यह नियम ही धर्म है। आप जिस भी रूप में जीवन को पायें, आपके लिए कुछ नियम होंगे। आप उन नियमों का पालन करते हैं तो धर्मी हैं, नहीं करते तो अधर्मी।

अगला प्रश्न जो मन में आता है, वह है कि कैसे जानें धर्म क्या है? तो उसका उत्तर है कि समय-समय पर महापुरुषों का आचरण ही धर्म को प्रकट करता है। स्वामी विवेकानंद एक महात्मा ना रहकर आज एक विचार बन चुके हैं। आचार्य शंकर एक व्यक्ति ना रहकर परम्परा बन चुके हैं। धर्मराज युधिष्ठिर से पूछे गये यक्ष प्रश्नों में एक यह भी था – कः पन्थः? रास्ता क्या है? तब धर्मराज उसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि धर्म तत्व गहन है। इसे महापुरुषों के आचरण से ही समझा जा सकता है। महापुरुष जिस मार्ग पर चले कालांतर में वही धर्म हो गया। रामः विग्रह्धर्मः। राम स्वयं धर्मविग्रह हैं।

धर्म शाश्वत है। व्यक्ति विशेष के विचार और देश काल से यह प्रभावित नहीं होता। यह परिवर्तनशील नहीं है। धर्म का आधार श्रद्धा एवं विश्वास है। तर्क-वितर्क से परे हटकर हमें मनीषियों और महापुरुषों के आचरण से प्रेरणा प्राप्त कर धर्मपूर्वक आचरण करना चाहिये क्योंकि – ‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनं’

ऋषि दधीचि द्वारा समझाया गया पंच-कोष-

Photo: ऋषि दधीचि द्वारा समझाया गया पंच-कोष-

“मूर्ति में नज़र आने वाला पत्थर तो केवल बाहरी प्राचीर है; शेष प्राचीर तो हम मनुष्यों के अंदर ही है। हमारे शरीर के अंदर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड विद्यमान है। जिसमें तीनों काल छुपे हैं; भूत, वर्तमान और भविष्य- सब हममें ही निहित हैं।

मनुष्य के भीतर स्थित पाँच-कोषों को खोलकर ही आत्मा का परमात्मा से मिलन संभव है। इन पाँचों कोशों में सबसे निम्न स्तर पर है, अविद्या। इस अन्न-जल रुपी ‘अन्नमय-कोष’ से मनुष्य कभी बाहर निकल ही नहीं पाता। इसकी प्रत्येक परत मानो किसी पुष्प की कोंपल के समान होती है। जैसे-जैसे इसकी पंखुड़ियाँ खुलती हैं, आत्म-ज्ञान की सुगंध उतनी ही अधिक मिलती है। ‘मूलाधार चक्र’ को योग द्वारा सक्रिय करके इस अन्नमय कोष से बाहर निकला जा सकता है।

अन्नमय कोष से मुक्ति पाकर मनुष्य ‘प्राणमय कोष’ के स्तर पर पहुँचता है। इस कोष को प्राण-वायु फलीभूत करता है और अधिकांश मनुष्य प्राण-वायु के विकार के कारण ही ‘अज्ञान और अहंकार’ से ग्रस्त होते हैं। नाभि में स्थित ‘स्वाधिष्ठान चक्र’ को जागृत करके ‘प्राणमय कोष’ से मानुष को मुक्ति मिल सकती है।

इससे ऊपर ‘मनोमय कोष’ है। जिसके द्वारा मनुष्य द्वेष के अंकुश में उलझ जाता है; और स्वार्थ उसकी जीवन-शैली का अभिन्न अंग बन जाता है। ‘ह्रदय चक्र’ के समीप पहुँचते ही मनुष्य अपने विचारों और चिंतन को एक गंतव्य तक निर्धारित कर सकता है। ऐसा करके मनोमय कोष को नियंत्रित किया जा सकता है।

इससे ऊपर स्थित ‘विज्ञानमय कोष’ मनुष्य के ‘अहं-भाव’ के कारक होते हैं, जिससे ‘अहंकार’ भाव उत्पन्न होते हैं। कंठ में स्थित ‘आनंदमय चक्र’ को जागृत करके मनुष्य अपनी अधीरता और व्याकुलता को नियंत्रित कर सकता है। ऐसे व्यक्ति सुख-दुःख, प्रत्येक परिस्थिति में भाव-विभोर और तन्मय रहते हैं।

ललाट के मध्य में स्थित है सबसे शक्तिशाली चक्र, ‘आज्ञा-चक्र’। इस चक्र को जागृत करके मनुष्य अपनी छठीं इन्द्रिय को गतिशील करते हुए, आत्मा को परमात्मा के समीप ले आता है। जब मनुष्य सुख्कारका भाव अथवा दुःख-कारक भाव को तटस्थ करने के योग्य हो जाता है, तब वह आनंद-कोष को प्राप्त कर जाता है!

... और फिर मनुष्य अपने गंतव्य, शिव को प्राप्त करता है! शिवोsहं! शिवोsहं!

“मूर्ति में नज़र आने वाला पत्थर तो केवल बाहरी प्राचीर है; शेष प्राचीर तो हम मनुष्यों के अंदर ही है। हमारे शरीर के अंदर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड विद्यमान है। जिसमें तीनों काल छुपे हैं; भूत, वर्तमान और भविष्य- सब हममें ही निहित हैं।

मनुष्य के भीतर स्थित पाँच-कोषों को खोलकर ही आत्मा का परमात्मा से मिलन संभव है। इन पाँचों कोशों में सबसे निम्न स्तर पर है, अविद्या। इस अन्न-जल रुपी ‘अन्नमय-कोष’ से मनुष्य कभी बाहर निकल ही नहीं पाता। इसकी प्रत्येक परत मानो किसी पुष्प की कोंपल के समान होती है। जैसे-जैसे इसकी पंखुड़ियाँ खुलती हैं, आत्म-ज्ञान की सुगंध उतनी ही अधिक मिलती है। ‘मूलाधार चक्र’ को योग द्वारा सक्रिय करके इस अन्नमय कोष से बाहर निकला जा सकता है।

अन्नमय कोष से मुक्ति पाकर मनुष्य ‘प्राणमय कोष’ के स्तर पर पहुँचता है। इस कोष को प्राण-वायु फलीभूत करता है और अधिकांश मनुष्य प्राण-वायु के विकार के कारण ही ‘अज्ञान और अहंकार’ से ग्रस्त होते हैं। नाभि में स्थित ‘स्वाधिष्ठान चक्र’ को जागृत करके ‘प्राणमय कोष’ से मानुष को मुक्ति मिल सकती है।

इससे ऊपर ‘मनोमय कोष’ है। जिसके द्वारा मनुष्य द्वेष के अंकुश में उलझ जाता है; और स्वार्थ उसकी जीवन-शैली का अभिन्न अंग बन जाता है। ‘ह्रदय चक्र’ के समीप पहुँचते ही मनुष्य अपने विचारों और चिंतन को एक गंतव्य तक निर्धारित कर सकता है। ऐसा करके मनोमय कोष को नियंत्रित किया जा सकता है।

इससे ऊपर स्थित ‘विज्ञानमय कोष’ मनुष्य के ‘अहं-भाव’ के कारक होते हैं, जिससे ‘अहंकार’ भाव उत्पन्न होते हैं। कंठ में स्थित ‘आनंदमय चक्र’ को जागृत करके मनुष्य अपनी अधीरता और व्याकुलता को नियंत्रित कर सकता है। ऐसे व्यक्ति सुख-दुःख, प्रत्येक परिस्थिति में भाव-विभोर और तन्मय रहते हैं।

ललाट के मध्य में स्थित है सबसे शक्तिशाली चक्र, ‘आज्ञा-चक्र’। इस चक्र को जागृत करके मनुष्य अपनी छठीं इन्द्रिय को गतिशील करते हुए, आत्मा को परमात्मा के समीप ले आता है। जब मनुष्य सुख्कारका भाव अथवा दुःख-कारक भाव को तटस्थ करने के योग्य हो जाता है, तब वह आनंद-कोष को प्राप्त कर जाता है!
... और फिर मनुष्य अपने गंतव्य, शिव को प्राप्त करता है! शिवोsहं! शिवोsहं!

हिन्दू पलायनवादी क्यों है?

Photo: हिन्दुओं का पलायनवाद : आखिर कब तक
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हिन्दू पलायनवादी क्यों है?

हिन्दू कब तक सहेंगे और कब तक समझौतावादी बने रहेंगे। समझौतावाद ही हमारी कमजोरी बन गया है। और जब तक ये समझोतावाद बना रहेगा तब तक दुसरे लोग हमे ऐसे ही झुकाते रहेंगे। और ऐसे ही हम अपनी इस मात्रभूमि, जन्मभूमि, कर्मभूमि, पुण्यभूमि भारत वर्ष का बटवारा होते देखते रहेंगे।

सर्वपर्थम अरबों ने सिंध पर हमला किया, राजा दाहिर अकेले लड़े बाकि पूरा भारत देखता रहा। परिणाम, अरबों की जीत हुई,

मुहम्मद बिन कासिम ने सिन्धी हिन्दुओ और बौद्धों का कत्लेआम किया, औरतों को गुलाम बनाकर फारस, बगदाद और दमिश्क के बाजारों में बेचा। जबरन धर्मांतरण करा कर मुस्लमान बनाया।

सिंध भारत वर्ष से अलग हो गया। बाकि हिन्दुओं ने सोचा कि इस्लाम की आंधी उन तक नहीं आयेगी, वे चुप रहे।

और सिंध से पलायन कर गए।

फिर बारी आई मुल्तान और गंधार की। मुल्तान जिसका वर्णन ऋग्वेद समेत लगभग सभी वैदिक ग्रंथो में है। मुल्तान का सूर्य मंदिर पुरे भारत वर्ष में काशी विश्वलनाथ की तरह पूजनीय था।

अरबों ने हमला किया सब तहस नहस कर दिया। सूर्य मंदिर तोड़ा, हिन्दुओं का कत्लेआम किया, तलवार की नोंक पर मुसलमान बनाया। पूरा भारत वर्ष चुप रहा। सोचा चलो मुल्तान गया बाकि भारत तो बचा।

अब इस्लाम की आंधी और आगे नहीं बढ़ेगी। प्रतिकार नहीं किया।

मामा शकुनी का गंधार गया। राजा विजयपाल का साथ किसी ने नहीं दिया। हम फिर पलायन कर गए।

सोचा बस इस्लाम की आंधी और आगे नहीं बढ़ेगी, बाकी भारत तो हमारे पास है।

अगर सिंध, मुल्तान, गंधार के समय ही हिन्दुओं ने प्रतिकार किया होता तो इस्लाम की आंधी वही रुक जाती।

परन्तु हमारा समझौतावादी और पलायनवादी रवैया जारी रहा।

आज हम गांधीवाद का रोना रो रहे है, अरे तब तो गाँधी नहीं था ।

गजनी ने सोमनाथ तोड़ा। गुजरात को छोड़ कर सारा भारत चुप रहा।

क्या सोमनाथ केवल गुजरात का था।

सोमनाथ बारह ज्योतिर्लिंगों में से सर्वप्रथम है जिसका वर्णन ऋग्वेद में भी है। उस सोमनाथ के टूटने पर सारा भारत चुप रहा। गजनी यहीं नहीं रुका उसने मथुरा का श्रीकृषण जन्मभूमि मंदिर तोड़ा, मोहम्मद गोरी ने काशी विशाव्नाथ तोड़ा, बाबर ने श्रीराम जन्मभूमि का मंदिर तोड़ा और उस पर बाबरी मस्जिद बनवाई, औरंगजेब ने सोमनाथ, काशी विश्वनाथ और श्रीकृष्णा जन्मभूमि को पुनः तोड़कर पवित्र जगहों पर मस्जिदे बनवाई।

मगर हम चुप रहे, सब कुछ सह गए।

हमारे समझोतावादी और पलायनवादी रुख ने हमे फिर ठगा।

जब जब सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा और काशी पर किसी भी मुस्लिम शासक का राज हुआ उसने मंदिरों को तोड़ने के नए कीर्तिमान बनाये।

इतिहासकार सीताराम गोयल, अरुण शौरी, रामस्वरुप के अनुसार मुस्लिमों ने इस देश में दो हजार मंदिरों को तोड़ कर उनके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण कराया।

क्या इतिहास में कभी किसी हिन्दू शासक ने कोई मस्जिद तुड़वाकर उसके स्थान पर मंदिर बनाया।

क्या कोई हमें बताएगा।

और तो और मुगलों के शासन के बाद जब अयोध्या, मथुरा, काशी पर हिन्दू मराठों का शासन आया तो भी उन्होंने पवित्र मंदिरों को तोड़ कर गर्भगृह की जगह पर बनाई गई मस्जिदों को नहीं हटाया।

अयोध्या, मथुरा, काशी कोई गली नुक्कड़ पर बने हुए मंदिर नहीं थे।

काशी विश्वनाथ, ऋग्वेद में वर्णित बारह ज्योतिर्लिंगों में से सर्वोच्च।

अयोध्या का मंदिर जहा राम जी का जन्म हुआ।

मथुरा का मंदिर जहाँ कृष्णि का जन्म हुआ ये पलायनवाद और समझौतावाद आज तक जारी है।

नेहरु, गाँधी और कांग्रेस ने देश का बंटवारा कराया हम चुप रहे।

जिन्नाह और मुस्लिम लीग से ज्यादा देश के बटवारे के लिए यही लोग जिम्मेदार थे।

ऋग्वेद की जन्मस्थली सिंध चला गया।

वो सिंध जहाँ हमारी सभ्यता का जन्म हुआ।

गुरुओं की धरती पंजाब चला गया।

वो पंजाब जहाँ भगत सिंह का जन्म हुआ।

पूर्वी बंगाल चला गया, जहाँ इक्यावन आदि शक्ति पीठों में से छ: शक्ति पीठ मौजूद है।

जिनकी दुर्दशा आज वहां की सरकार और जनता ने बना दी है।

मगर इस देश में मस्जिदें आज भी सीना ताने खड़ी है।

हम फिर पलायन कर गए, नेहरु और गाँधी की बातों में आकर बंटवारा स्वीकार कर लिया।

किसका बंटवारा भारत माँ का बंटवारा।

भाग कर ”सेकुलर इंडिया” में आ गए।

आ गए या मारकर भगाए गए ये हम सब जानते है।


आधा कश्मीर गया हम तब भी चुप रहे।

कश्मीर में मस्जिदों से नारे लगाये गए। ”हिन्दू मर्दों के बिना, हिन्दू औरतों के साथ, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान”।

हम क्यों चुप रहे। क्या कश्मीर केवल कश्मीरी हिन्दुओं की समस्या है

हमारी नहीं।

जरा याद करो कैसे फिलिस्तीन के मुसलमानों के लिए सारी दुनिया के मुसलमान एक हो जाते है।

तो फिर कश्मीर के हिन्दुओं के लिए हम क्यों एक नहीं हुए।

वो कहते है ”हंस के लिया पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिंदुस्तान” और हम अब भी कह रहे है कि पाकिस्तान के साथ बात करेंगे।

हम क्यों नहीं सोचते सिंध, पश्चिम पंजाब और पूर्वी बंगाल को वापस लेने की।

आखिर वो भी तो हमारी भारत माँ के अंग है।

जिस दिन हम ऐसा सोचने लगेंगे उस दिन से भारत वर्ष फिर बढ़ने लगेगा और अखंड भारत फिर साकार रूप लेगा।...........जय महाकाल !!!

हिन्दू कब तक सहेंगे और कब तक समझौतावादी बने रहेंगे। समझौतावाद ही हमारी कमजोरी बन गया है। और जब तक ये समझोतावाद बना रहेगा तब तक दुसरे लोग हमे ऐसे ही झुकाते रहेंगे। और ऐसे ही हम अपनी इस मात्रभूमि, जन्मभूमि, कर्मभूमि, पुण्यभूमि भारत वर्ष का बटवारा होते देखते रहेंगे।

सर्वपर्थम अरबों ने सिंध पर हमला किया, राजा दाहिर अकेले लड़े बाकि पूरा भारत देखता रहा। परिणाम, अरबों की जीत हुई,


मुहम्मद बिन कासिम ने सिन्धी हिन्दुओ और बौद्धों का कत्लेआम किया, औरतों को गुलाम बनाकर फारस, बगदाद और दमिश्क के बाजारों में बेचा। जबरन धर्मांतरण करा कर मुस्लमान बनाया।

सिंध भारत वर्ष से अलग हो गया। बाकि हिन्दुओं ने सोचा कि इस्लाम की आंधी उन तक नहीं आयेगी, वे चुप रहे।

और सिंध से पलायन कर गए।

फिर बारी आई मुल्तान और गंधार की। मुल्तान जिसका वर्णन ऋग्वेद समेत लगभग सभी वैदिक ग्रंथो में है। मुल्तान का सूर्य मंदिर पुरे भारत वर्ष में काशी विश्वलनाथ की तरह पूजनीय था।

अरबों ने हमला किया सब तहस नहस कर दिया। सूर्य मंदिर तोड़ा, हिन्दुओं का कत्लेआम किया, तलवार की नोंक पर मुसलमान बनाया। पूरा भारत वर्ष चुप रहा। सोचा चलो मुल्तान गया बाकि भारत तो बचा।

अब इस्लाम की आंधी और आगे नहीं बढ़ेगी। प्रतिकार नहीं किया।

मामा शकुनी का गंधार गया। राजा विजयपाल का साथ किसी ने नहीं दिया। हम फिर पलायन कर गए।

सोचा बस इस्लाम की आंधी और आगे नहीं बढ़ेगी, बाकी भारत तो हमारे पास है।

अगर सिंध, मुल्तान, गंधार के समय ही हिन्दुओं ने प्रतिकार किया होता तो इस्लाम की आंधी वही रुक जाती।

परन्तु हमारा समझौतावादी और पलायनवादी रवैया जारी रहा।

आज हम गांधीवाद का रोना रो रहे है, अरे तब तो गाँधी नहीं था ।

गजनी ने सोमनाथ तोड़ा। गुजरात को छोड़ कर सारा भारत चुप रहा।

क्या सोमनाथ केवल गुजरात का था।

सोमनाथ बारह ज्योतिर्लिंगों में से सर्वप्रथम है जिसका वर्णन ऋग्वेद में भी है। उस सोमनाथ के टूटने पर सारा भारत चुप रहा। गजनी यहीं नहीं रुका उसने मथुरा का श्रीकृषण जन्मभूमि मंदिर तोड़ा, मोहम्मद गोरी ने काशी विशाव्नाथ तोड़ा, बाबर ने श्रीराम जन्मभूमि का मंदिर तोड़ा और उस पर बाबरी मस्जिद बनवाई, औरंगजेब ने सोमनाथ, काशी विश्वनाथ और श्रीकृष्णा जन्मभूमि को पुनः तोड़कर पवित्र जगहों पर मस्जिदे बनवाई।

मगर हम चुप रहे, सब कुछ सह गए।

हमारे समझोतावादी और पलायनवादी रुख ने हमे फिर ठगा।

जब जब सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा और काशी पर किसी भी मुस्लिम शासक का राज हुआ उसने मंदिरों को तोड़ने के नए कीर्तिमान बनाये।

इतिहासकार सीताराम गोयल, अरुण शौरी, रामस्वरुप के अनुसार मुस्लिमों ने इस देश में दो हजार मंदिरों को तोड़ कर उनके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण कराया।

क्या इतिहास में कभी किसी हिन्दू शासक ने कोई मस्जिद तुड़वाकर उसके स्थान पर मंदिर बनाया।

क्या कोई हमें बताएगा।

और तो और मुगलों के शासन के बाद जब अयोध्या, मथुरा, काशी पर हिन्दू मराठों का शासन आया तो भी उन्होंने पवित्र मंदिरों को तोड़ कर गर्भगृह की जगह पर बनाई गई मस्जिदों को नहीं हटाया।

अयोध्या, मथुरा, काशी कोई गली नुक्कड़ पर बने हुए मंदिर नहीं थे।

काशी विश्वनाथ, ऋग्वेद में वर्णित बारह ज्योतिर्लिंगों में से सर्वोच्च।

अयोध्या का मंदिर जहा राम जी का जन्म हुआ।

मथुरा का मंदिर जहाँ कृष्णि का जन्म हुआ ये पलायनवाद और समझौतावाद आज तक जारी है।

नेहरु, गाँधी और कांग्रेस ने देश का बंटवारा कराया हम चुप रहे।

जिन्नाह और मुस्लिम लीग से ज्यादा देश के बटवारे के लिए यही लोग जिम्मेदार थे।

ऋग्वेद की जन्मस्थली सिंध चला गया।

वो सिंध जहाँ हमारी सभ्यता का जन्म हुआ।

गुरुओं की धरती पंजाब चला गया।

वो पंजाब जहाँ भगत सिंह का जन्म हुआ।

पूर्वी बंगाल चला गया, जहाँ इक्यावन आदि शक्ति पीठों में से छ: शक्ति पीठ मौजूद है।

जिनकी दुर्दशा आज वहां की सरकार और जनता ने बना दी है।

मगर इस देश में मस्जिदें आज भी सीना ताने खड़ी है।

हम फिर पलायन कर गए, नेहरु और गाँधी की बातों में आकर बंटवारा स्वीकार कर लिया।

किसका बंटवारा भारत माँ का बंटवारा।

भाग कर ”सेकुलर इंडिया” में आ गए।

आ गए या मारकर भगाए गए ये हम सब जानते है।


आधा कश्मीर गया हम तब भी चुप रहे।

कश्मीर में मस्जिदों से नारे लगाये गए। ”हिन्दू मर्दों के बिना, हिन्दू औरतों के साथ, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान”।

हम क्यों चुप रहे। क्या कश्मीर केवल कश्मीरी हिन्दुओं की समस्या है

हमारी नहीं।

जरा याद करो कैसे फिलिस्तीन के मुसलमानों के लिए सारी दुनिया के मुसलमान एक हो जाते है।

तो फिर कश्मीर के हिन्दुओं के लिए हम क्यों एक नहीं हुए।

वो कहते है ”हंस के लिया पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिंदुस्तान” और हम अब भी कह रहे है कि पाकिस्तान के साथ बात करेंगे।

हम क्यों नहीं सोचते सिंध, पश्चिम पंजाब और पूर्वी बंगाल को वापस लेने की।

आखिर वो भी तो हमारी भारत माँ के अंग है।

जिस दिन हम ऐसा सोचने लगेंगे उस दिन से भारत वर्ष फिर बढ़ने लगेगा और अखंड भारत फिर साकार रूप लेगा।...........जय महाकाल !!!

!!! सच जानो और सोचो !!!

Photo: ज़ाकिर नायक इन गवारो को समझा समझा कर थक गया की मुर्दों की इबादत मत करो , मूर्तियों और कब्रों की इबादत मत करो . पर मुल्ले है की मानते ही नहीं | मोहम्मद चाहे लूटेरा था .. बच्चियों की इज्जत लूटने वाला वहशी था पर इन मुल्लो का तो पैगम्बर था , वो बिचारा भी सारी जिंदगी रोता रहा की कब्रों की पूजा मत करो और यह मुल्ले फातिमा की कब्र पर इबादत पढ़ रहे है | :p

जो लोग नहीं जानते उन्हें हम बता देते है की मुल्लो का चरित्र स्थिर नहीं है , एक बार इधर डोलता है तो एक बार उधर... और यह लोग समाज के सामने कुछ ओर बोलते है और करते कुछ ओर है | कहते है मुसलमान बन जाओ सच को अपनाओ . जन्नत मिलेगी ..हाहः .. मोहम्मद खुद बचपन में जब वो मुसलमान नहीं बना था तब वो काबा के मंदिर में पूजा करता था तो अभी तक तो वो भी जन्नत के बाहर बैठा है :D ....कहते है मुसलमान में सिर्फ एक भगवान है ..अल्लाह जिसकी इबादत करते है ..तो वो खुनी ख्वाजा कौन है , वो हजरत बल क्या है ?? हाजी अली क्या है और ऐसी कितनी ही जगह जहा यह सब मुल्ले नाक रगड़ने जाते है ?? पीर फकीर पैगम्बर ख्वाजा रसूल फ़रिश्ते और जिहादी किताब कुरआन की भी पूजा करते है .. फिर कहते है सिर्फ अल्लाह को मानते है हम .. दोहरा चरित्र ||
यह कहते है हमारे यहाँ भेदभाव नहीं होता दलित और स्वर्ण में| तो मुहाजीर क्या होते है ?? भारत के मुल्लो को तो इस्लामिक देशो में मुसलमान का दर्ज़ा भी नहीं मिलता है .. ऊँचे रसूख वाले शैख़ निचले दर्जे के मुसलमान के हाथ का पानी नहीं पीते, सिया सुन्नी आदि बाते तो आप जानते ही होंगे |
मक्काह मदीना में गैर मुस्लिम को जाने की आगया नहीं है .. और भारत के दलितो को सामान हक की बात कह कर बहकाते है |
पूरी दुनिया तबाह हो रही है इन मुल्लो के दोहरे चरित्र की वजह से ..कहते है इस्लाम शान्ति फैलाने के लिए है .. मान लिया .. पर क्या मुसलमान शान्ति फैलाने के लिए बने है?? ..यहाँ मूर्ति पूजा कर रहे है और भारत में आकार शिवालय तोडते है |
खुद एक इंसान की बनायी हुई जिहादी किताब कुरान का अनुसरण करते है और गीता रामायण को कहानी बताते है | खुद हिंदू-मुस्लिम, जात पात का भेदभाव रखते है, और भारत के दलितो को इस्लाम काबुल करने के लिए भडकाते है |
कहते है साडी में औरत की इज्जत नहीं और बुरखे में इज्जत है और खुद की बहिन के साथ निकाह कर लेते है ..

ज़ाकिर नायक इन गवारो को समझा समझा कर थक गया की मुर्दों की इबादत मत करो , मूर्तियों और कब्रों की इबादत मत करो . पर मुल्ले है की मानते ही नहीं | मोहम्मद चाहे लूटेरा था .. बच्चियों की इज्जत लूटने वाला वहशी था पर इन मुल्लो का तो पैगम्बर था , वो बिचारा भी सारी जिंदगी रोता रहा की कब्रों की पूजा मत करो और यह मुल्ले फातिमा की कब्र पर इबादत पढ़ रहे है | :p

जो लोग नहीं जानते उन्हें हम बता देते है की मुल्लो का चरित्र स्थिर नहीं है , एक बार इधर डोलता है तो एक बार उधर... और यह लोग समाज के सामने कुछ ओर बोलते है और करते कुछ ओर है | कहते है मुसलमान बन जाओ सच को अपनाओ . जन्नत मिलेगी ..हाहः .. मोहम्मद खुद बचपन में जब वो मुसलमान नहीं बना था तब वो काबा के मंदिर में पूजा करता था तो अभी तक तो वो भी जन्नत के बाहर बैठा है :D ....कहते है मुसलमान में सिर्फ एक भगवान है ..अल्लाह जिसकी इबादत करते है ..तो वो खुनी ख्वाजा कौन है , वो हजरत बल क्या है ?? हाजी अली क्या है और ऐसी कितनी ही जगह जहा यह सब मुल्ले नाक रगड़ने जाते है ?? पीर फकीर पैगम्बर ख्वाजा रसूल फ़रिश्ते और जिहादी किताब कुरआन की भी पूजा करते है .. फिर कहते है सिर्फ अल्लाह को मानते है हम .. दोहरा चरित्र ||
यह कहते है हमारे यहाँ भेदभाव नहीं होता दलित और स्वर्ण में| तो मुहाजीर क्या होते है ?? भारत के मुल्लो को तो इस्लामिक देशो में मुसलमान का दर्ज़ा भी नहीं मिलता है .. ऊँचे रसूख वाले शैख़ निचले दर्जे के मुसलमान के हाथ का पानी नहीं पीते, सिया सुन्नी आदि बाते तो आप जानते ही होंगे |

मक्काह मदीना में गैर मुस्लिम को जाने की आगया नहीं है .. और भारत के दलितो को सामान हक की बात कह कर बहकाते है |
पूरी दुनिया तबाह हो रही है इन मुल्लो के दोहरे चरित्र की वजह से ..कहते है इस्लाम शान्ति फैलाने के लिए है .. मान लिया .. पर क्या मुसलमान शान्ति फैलाने के लिए बने है?? ..यहाँ मूर्ति पूजा कर रहे है और भारत में आकार शिवालय तोडते है |

खुद एक इंसान की बनायी हुई जिहादी किताब कुरान का अनुसरण करते है और गीता रामायण को कहानी बताते है | खुद हिंदू-मुस्लिम, जात पात का भेदभाव रखते है, और भारत के दलितो को इस्लाम काबुल करने के लिए भडकाते है |

कहते है साडी में औरत की इज्जत नहीं और बुरखे में इज्जत है और खुद की बहिन के साथ निकाह कर लेते है ..

!!! गौ मूत्र का सच !!!



अमेरिका ने गौ मूत्र का पेन्टेट किया है उसका नं. 6410059 है। इसका शीर्षक है- फार्मास्युटिकल कम्पोजीशन कन्टेनिंग काऊ यूरिन, डिस्टीलेट एंड एन एन्टीबायोटिक। इससे कैंसर के उपचार में मदद ली जा रही है।

रुसी वैज्ञानिक शिरोविच ने अपने शोध के परिणाम उजागर किये हैं, जिनमें कहा गया है कि गाय का दूध एटामिक रेडीएशन से रक्षा करने में सर्वाधिक शक्ति रखता है।पर हमारे यहाँ अगर इसी तरह ज्ञानियों को
सरकार जेल में डालती रही तो हर कोई विदेश ही जाना पसंद करेगा हमारे देश का सेंकडो नहि बल्की हजारो साल पुराने ज्ञान को आज हमारे ही देश में पूछ नहीं मिल रही हैं और दुसरे देश उस ज्ञान को समझ कर परख कर अपने यहाँ अपने नाम से पेटेंट कर रहें है


साथ ही अपने देश वासियों की भलाई में उसका इस्तेमाल भी कर रहें हैं .. देश तो मेरा वाकई में कमाल है पर यह सरकार उस से भी ज़यादा गड- बड -झोलझाल है आने वाले समय में भी यदि भारतीय नहीं जगे तो आर्य व्रत में इससे भी बुरे दिन देखने को मिलेंगे जिसके लिए हम खुद ही ज़िम्मेदार होंगे और हमारी आने वाली पीढ़िय हमेशा हमे कोसती रहेंगी

जिस तरह आज भारत के बटवारे के लिए ,कश्मीर की समस्या के लिए ,तिब्बत की समस्या ,आसाम की समस्या के लिए पुराने नेताओं को कोसते है उनकी नीतियों को गली देते हैं यही सब हमे भी सुनने को मिलेगा इसलिए अभी भी समय है जाग जाओं .. माँ भारती आप सभी का मार्ग प्रशस्त करे जय माँ भारती ..

क्या आप को पता है सिमेन्ट की अधिकतम आयु मात्र 100 साल है ?

Photo: निचे लिंक पे जाके सुने नही तो लेख पड़े -----
http://www.youtube.com/watch?v=f0jRLlQvCBk

क्या आप को पता है सिमेन्ट की अधिकतम आयु मात्र 100 साल है ? कुछ वैज्ञानिकों का कहना है अगर 'cracks' को आधार बनाया जाये तो सिमेन्ट की आयु 5 साल भी नही है | भारत के सारे पुराने किले चूना पत्थर से बने हैं एवं चूने की नुन्यतम आयु 500 साल है और अधिकतम 2000 से 2500 साल । चूना एवं सिमेन्ट का 'raw material ' एक ही है।

आज से 150 साल पहले तक भारत के जादातर घर चूने से बनते थे नही तो मिटटी से। परन्तु पिछले हजारो साल में चूना बनाने की जो तकनीक विकसित हुई अंग्रेजो ने उसे ban किया और एक कानून बना दिया गया के चूने का काम करना अवैध है एवं सिमेन्ट से घर बनाना वैध |इसका कारण यह था की अंग्रेजो को अंपने देश का सिमेन्ट बिकवाना था और चूने के उद्योग को नष्ट करना था ।

भारत मे पहले चूना बनाने के छोटे-छोटे केंद्र होते थे , लगभग हर गाँव में एक । सिमेन्ट बनाने की जो तकनीक है वो इतना जटिल है के कोइ गाँव में नही बन सकता, इसके लिए बहुत ऊर्जा चाहिए किन्तु वहीं चूना बनाने के लिए कुछ नही चाहिए।
सिमेन्ट बनाने के लिए बिजली चाहिए , बिजली के लिए कोयला निकलना है , कोयले के साथ जल भी चाहिए , जल हमको खेती और पीने के लिए चाहिए लेकिन वो कहते है पहले बिजली के लिए चाहिए, पानी एकत्र करने के लिए नदी में बांध देना चाहिए, और यदि कहीं बांध टूट जाये तो बाढ़ ही बाढ़ ।

इससे अच्छा तो भारत की तकनीक है जिसमे चूना पत्थर, दूध और एक बैल चाहिए मात्र ।

क्या आप को पता है सिमेन्ट की अधिकतम आयु मात्र 100 साल है ? कुछ वैज्ञानिकों का कहना है अगर 'cracks' को आधार बनाया जाये तो सिमेन्ट की आयु 5 साल भी नही है | भारत के सारे पुराने किले चूना पत्थर से बने हैं एवं चूने की नुन्यतम आयु 500 साल है और अधिकतम 2000 से 2500 साल । चूना एवं सिमेन्ट का 'raw material ' एक ही है।

आज से 150 साल पहले तक भारत के जादातर घर चूने से बनते थे नही तो मिटटी से। परन्तु पिछले हजारो साल में चूना बनाने की जो तकनीक विकसित हुई अंग्रेजो ने उसे ban किया और एक कानून बना दिया गया के चूने का काम करना अवैध है एवं सिमेन्ट से घर बनाना वैध |इसका कारण यह था की अंग्रेजो को अंपने देश का सिमेन्ट बिकवाना था और चूने के उद्योग को नष्ट करना था ।

भारत मे पहले चूना बनाने के छोटे-छोटे केंद्र होते थे , लगभग हर गाँव में एक । सिमेन्ट बनाने की जो तकनीक है वो इतना जटिल है के कोइ गाँव में नही बन सकता, इसके लिए बहुत ऊर्जा चाहिए किन्तु वहीं चूना बनाने के लिए कुछ नही चाहिए।



सिमेन्ट बनाने के लिए बिजली चाहिए , बिजली के लिए कोयला निकलना है , कोयले के साथ जल भी चाहिए , जल हमको खेती और पीने के लिए चाहिए लेकिन वो कहते है पहले बिजली के लिए चाहिए, पानी एकत्र करने के लिए नदी में बांध देना चाहिए, और यदि कहीं बांध टूट जाये तो बाढ़ ही बाढ़ ।

इससे अच्छा तो भारत की तकनीक है जिसमे चूना पत्थर, दूध और एक बैल चाहिए मात्र ।

"शिवतत्त्व" / ऋग्वेद में क्या है"


"हिग्स बोसोन\गॉड पार्टिकल"
इस सदी की सबसे बड़ी खोज .............

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.......ब्रह्मांड में पाई जानेवाली हर चीज के द्रव्य की वजह हिग्स बोसोन ही है। वरना ब्रह्मांड बनने के समय बने कण यू हीं अंतरिक्ष में प्रकाश की गति से चलते हुए खो जाते। न आकाशगंगा बनती न तारे बनते न हम होते।जब हमारा ब्रह्मांड अस्तित्व में आया था, तो उससे पहले सब कुछ हवा में तैर रहा था, किसी चीज का तय आकार या वजन नहीं था, जब हिग्स बोसोन भार ऊर्जा लेकर आया तो सभी तत्व उसकी वजह से आपस में जुड़ने लगे और उनमें मास या आयतन पैदा हो गया।हिग्स बोसोन की वजह से ही आकाशगंगाएं, ग्रह, तारे और उपग्रह बने। पिछले कई प्रयोगों से इसके प्रमाण मिल रहे थे।ब्रह्मांड के वजूद के पीछे हिग्गस बोसोन कण है, लेकिन कभी भी इसके वजूद के प्रमाण नहीं मिल सके थे। हिग्स बोसोन बनने के कुछ पल में ही नष्ट हो जाता है। लेकिन इस दौरान वह लंबे समय तक टिकने वाले दूसरे कण में बदल जाता है ।

"लार्ज हेड्रोन कोलाइडर" (एलएचसी) मशीन के जरिये हिग्स बोसॉन का पता लगाने का प्रयास।"

.............दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला स्विट्जरलैंड के "सर्न" में चल रहे बरसों के प्रयोग के बाद मंगलवार को वैज्ञानिकों ने दावा किया कि हिग्स बोसोन कण के वजूद के प्रमाण मिल गए हैं।२७ किमी लंबी सुरंग में अति सूक्ष्म कणों को आपस में टकराकर विज्ञानी इस पार्टिकल की खोज कर रहे हैं। सर्न के अंदर दो प्रयोग किए जा रहे हैं। इनका नाम एटलर और सीएमस है। दोनों का लक्ष्य हिग्स कण का पता लगाना था । जिसमें तीन साल से भी ज्यादा समय से प्रयोग चल रहा था। यहां बिग बैंग विस्फोट जैसा माहौल तैयार किया गया था, ताकि इसके रहस्यों को समझा जा सके। वैज्ञानिकों ने कहा है कि वे साल के अंत तक ब्रह्मांड की उत्पत्ति की पहेली सुलझा लेंगे।


........."यदि हिग्स बोसोन का पता चल जाता है तो सृष्टि का निर्माण कैसे हुआ, का पता चल जाएगा। यह खोज पहली शताब्दी की प्रमुख उपलब्धियों में से एक होगी और आइंस्टीन के पहले क्वांटम फिजिक्स के पहले जाने जैसा होगा।यह ब्रह्मांड के सभी मूलभूत तत्वों के रहस्यों को सामने लाने की शुरुआत होगी। भविष्य में ब्रह्मांड को लेकर होने वाले शोध आसान हो जाएंगे। अभी तक वैज्ञानिकों को केवल५ % ही ब्रह्मांड की जानकारी है। बाकी का हिस्सा डार्क एनर्जी या डार्क मैटर के नाम से जाना जाता है।"
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हमारे वेद और शास्त्रों में कण-कण में भगवान की थ्योरी पहल से ही मौजूद है। ऋग्वेद में तो पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति का लेखा-जोखा ही मौजूद है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सबसे मान्यता प्राप्त महाविस्फोट का सिद्धांत है। यह सिद्धांत ऋग्वेद की ऋचाओं से कितना मेल खाता है, यह देखते हैं।

द बिग बैंग थ्योरी

महाविस्फोट सिद्धांत में कहा गया है कि 10 से 20 खरब साल पहले ब्रह्मांड के सभी कण एक-दूसरे से पास थे। इतने पास कि सभी एक ही जगह थे, एक ही बिंदु पर। सारा ब्रह्मांड एक बिंदु की शक्ल में था। यह बिंदु महासूक्ष्म था। इस स्थिति में भौतिकी, गणित या विज्ञान का कोई भी नियम काम नहीं करता है। यह वह स्थिति है, जब मनुष्य किसी भी प्रकार अनुमान या विश्लेषण करने में असमर्थ है। काल या समय भी इस स्थिति में रुक जाता है।
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ऋग्वेद में क्या है
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ऋग्वेद में सृष्टि सृजन की श्रुति में कहा गया है- सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था। छिपा था कहां क्या, किसने देखा था। उस पल तो अगम, अटल जल भी कहां था। बस एक बिंदु था। ऋग्वेद ।

ऋग्वेद इससे आगे भी रहस्य खोलता है। उसमें लिखा है कि ब्रह्म स्वयं प्रकाश है। उसी से ब्रह्मांड प्रकाशित है। उस एक परम तत्व ब्रह्म में से ही आत्मा और ब्रह्मांड का प्रस्फुटन हुआ है। ब्रह्म और आत्मा में सिर्फ इतना फर्क है कि ब्रह्म महाआकाश है तो आत्मा घटाकाश। घट का आकाश।


संस्कृत के विद्धान और गोविंद देव पंचांग के संपादक आचार्य कामेश्वर नाथ चतुर्वेदी कहते हैं कि उपनिषद में एक जगह उल्लेख है कि ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा, यह तीन तत्व ही हैं। ब्रह्म शब्द 'ब्रह्' धातु से बना है, जिसका अर्थ बढ़ना या फूट पड़ना होता है। ब्रह्म वह है, जिसमें से संपूर्ण सृष्टि और आत्माओं की उत्पत्तिहुई है या जिसमें से ये फूट पड़े हैं। विश्व की उत्पत्तिा, स्थिति और विनाश का कारण ब्रह्म है।

पदार्थ का विघटित रूप ही परम अणु

पदार्थ का विघटित रूप ही परम अणु है। जेनेवा प्रयोग में वैज्ञानिकों ने द्रव्य और द्रव्यमान के लिए इसी 'गॉड पार्टिकल' को जिम्मेदार माना। तैत्तिरीय उपनिषद में इसी द्रव्य के बारे में समझाया गया है। कृष्णमूर्ति ज्योतिष की जानकार शालिनी द्विवेदी कहती हैं कि तैत्तिरीय उपनिषद में साफ कहा गया है कि परमेश्वर से आकाश अर्थात जो कारण रूप द्रव्य सर्वत्र फैल रहा था, उसको इकट्ठा करने से अवकाश उत्पन्न होता है। वास्तव में आकाश की उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि बिना अवकाश के प्रकृति और परमाणु कहां ठहर सके और बिना अवकाश के आकाश कहां हो। अवकाश अर्थात जहां कुछ भी नहीं है और आकाश जहां सब कुछ है।

उनके अनुसार उपनिषद कहता है कि पदार्थ का संगठित रूप जड़ है और विघटित रूप परम अणु है। इस अणु को ही वेद परम तत्व कहते हैं और श्रमण पुद्गल। इसी उपनिषद में आगे कहा गया है कि आकाश के पश्चात वायु, वायु के पश्चात अग्नि, अग्नि के पश्चात जल, जल के पश्चात पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि, औषधियों से अन्न, अन्न से वीर्य, वीर्य से पुरुष अर्थात शरीर उत्पन्न होता है

.............................................. जय महाकाल !!! —

जो ये समझते हैं कि "राम या रामायण" एक काल्पनिक कथा या पात्र थे वो इसे अवश्य पढ़ें !!



"हम भारतीय विश्व की प्राचीनतम सभ्यता के वारिस है तथा हमें अपने गौरवशाली इतिहास तथा उत्कृष्ट प्राचीन संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। किंतु दीर्घकाल की परतंत्रता ने हमारे गौरव को इतना गहरा आघात पहुंचाया कि हम अपनी प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति के बारे में खोज करने की तथा उसको समझने की इच्छा ही छोड़ बैठे। परंतु स्वतंत्र भारत में पले तथा पढ़े-लिखे युवक-युवतियां सत्य की खोज करने में समर्थ है तथा छानबीन के आधार पर निर्धारित तथ्यों तथा जीवन मूल्यों को विश्व के आगे गर्वपूर्वक रखने का साहस भी रखते है। श्रीराम द्वारा स्थापित आदर्श हमारी प्राचीन परंपराओं तथा जीवन मूल्यों के अभिन्न अंग है। वास्तव में श्रीराम भारतीयों के रोम-रोम में बसे है। रामसेतु पर उठ रहे तरह-तरह के सवालों से श्रद्धालु जनों की जहां भावना आहत हो रही है,वहीं लोगों में इन प्रश्नों के समाधान की जिज्ञासा भी है। हम इन प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयत्**न करे:- श्रीराम की कहानी प्रथम बार महर्षि वाल्मीकि ने लिखी थी। वाल्मीकि रामायण श्रीराम के अयोध्या में सिंहासनारूढ़ होने के बाद लिखी गई। महर्षि वाल्मीकि एक महान खगोलविद् थे। उन्होंने राम के जीवन में घटित घटनाओं से संबंधित तत्कालीन ग्रह, नक्षत्र और राशियों की स्थिति का वर्णन किया है। इन खगोलीय स्थितियों की वास्तविक तिथियां 'प्लैनेटेरियम साफ्टवेयर' के माध्यम से जानी जा सकती है। भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत पुष्कर भटनागर ने अमेरिका से 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' नामक साफ्टवेयर प्राप्त किया, जिससे सूर्य/ चंद्रमा के ग्रहण की तिथियां तथा अन्य ग्रहों की स्थिति तथा पृथ्वी से उनकी दूरी वैज्ञानिक तथा खगोलीय पद्धति से जानी जा सकती है। इसके द्वारा उन्होंने महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित खगोलीय स्थितियों के आधार पर आधुनिक अंग्रेजी कैलेण्डर की तारीखें निकाली है। इस प्रकार उन्होंने श्रीराम के जन्म से लेकर 14 वर्ष के वनवास के बाद वापस अयोध्या पहुंचने तक की घटनाओं की तिथियों का पता लगाया है।

"श्रीराम की जन्म तिथि :

महर्षि वाल्मीकि ने बालकाण्ड के सर्ग 18 के श्लोक 8 और 9 में वर्णन किया है कि श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ। उस समय सूर्य,मंगल,गुरु,शनि व शुक्र ये पांच ग्रह उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे। ग्रहों,नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति इस प्रकार थी-सूर्य मेष में,मंगल मकर में,बृहस्पति कर्क में, शनि तुला में और शुक्र मीन में थे। चैत्र माह में शुक्ल पक्ष नवमी की दोपहर 12 बजे का समय था।

जब उपर्युक्त खगोलीय स्थिति को कंप्यूटर में डाला गया तो 'प्लैनेटेरियम गोल्ड साफ्टवेयर' के माध्यम से यह निर्धारित किया गया कि 10 जनवरी, 5114 ई.पू. दोपहर के समय अयोध्या के लेटीच्यूड तथा लांगीच्यूड से ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति बिल्कुल वही थी, जो महर्षि वाल्मीकि ने वर्णित की है। इस प्रकार श्रीराम का जन्म 10 जनवरी सन् 5114 ई. पू.(7117 वर्ष पूर्व)को हुआ जो भारतीय कैलेण्डर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है और समय 12 बजे से 1 बजे के बीच का है।

श्रीराम के वनवास की तिथि :

वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड (2/4/18) के अनुसार महाराजा दशरथ श्रीराम का राज्याभिषेक करना चाहते थे क्योंकि उस समय उनका(दशरथ जी) जन्म नक्षत्र सूर्य, मंगल और राहु से घिरा हुआ था। ऐसी खगोलीय स्थिति में या तो राजा मारा जाता है या वह किसी षड्यंत्र का शिकार हो जाता है। राजा दशरथ मीन राशि के थे और उनका नक्षत्र रेवती था ये सभी तथ्य कंप्यूटर में डाले तो पाया कि 5 जनवरी वर्ष 5089 ई.पू.के दिन सूर्य,मंगल और राहु तीनों मीन राशि के रेवती नक्षत्र पर स्थित थे। यह सर्वविदित है कि राज्य तिलक वाले दिन ही राम को वनवास जाना पड़ा था। इस प्रकार यह वही दिन था जब श्रीराम को अयोध्या छोड़ कर 14 वर्ष के लिए वन में जाना पड़ा। उस समय श्रीराम की आयु 25 वर्ष (5114- 5089) की निकलती है तथा वाल्मीकि रामायण में अनेक श्लोक यह इंगित करते है कि जब श्रीराम ने 14 वर्ष के लिए अयोध्या से वनवास को प्रस्थान किया तब वे 25 वर्ष के थे।

खर-दूषण के साथ युद्ध के समय सूर्यग्रहण :

वाल्मीकि रामायण के अनुसार वनवास के 13 वें साल के मध्य में श्रीराम का खर-दूषण से युद्ध हुआ तथा उस समय सूर्यग्रहण लगा था और मंगल ग्रहों के मध्य में था। जब इस तारीख के बारे में कंप्यूटर साफ्टवेयर के माध्यम से जांच की गई तो पता चला कि यह तिथि 5 अक्टूबर 5077 ई.पू. ; अमावस्या थी। इस दिन सूर्य ग्रहण हुआ जो पंचवटी (20 डिग्री सेल्शियस एन 73 डिग्री सेल्शियस इ) से देखा जा सकता था। उस दिन ग्रहों की स्थिति बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी वाल्मीकि जी ने वर्णित की- मंगल ग्रह बीच में था-एक दिशा में शुक्र और बुध तथा दूसरी दिशा में सूर्य तथा शनि थे।

"अन्य महत्वपूर्ण तिथियां :

किसी एक समय पर बारह में से छह राशियों को ही आकाश में देखा जा सकता है। वाल्मीकि रामायण में हनुमान के लंका से वापस समुद्र पार आने के समय आठ राशियों, ग्रहों तथा नक्षत्रों के दृश्य को अत्यंत रोचक ढंग से वर्णित किया गया है। ये खगोलीय स्थिति श्री भटनागर द्वारा प्लैनेटेरियम के माध्यम से प्रिन्ट किए हुए 14 सितंबर 5076 ई.पू. की सुबह 6:30 बजे से सुबह 11 बजे तक के आकाश से बिल्कुल मिलती है। इसी प्रकार अन्य अध्यायों में वाल्मीकि द्वारा वर्णित ग्रहों की स्थिति के अनुसार कई बार दूसरी घटनाओं की तिथियां भी साफ्टवेयर के माध्यम से निकाली गई जैसे श्रीराम ने अपने 14 वर्ष के वनवास की यात्रा 2 जनवरी 5076 ई.पू.को पूर्ण की और ये दिन चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी ही था। इस प्रकार जब श्रीराम अयोध्या लौटे तो वे 39 वर्ष के थे (5114-5075)।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम से श्रीलंका तक समुद्र के ऊपर पुल बनाया। इसी पुल को पार कर श्रीराम ने रावण पर विजय पाई। हाल ही में नासा ने इंटरनेट पर एक सेतु के वो अवशेष दिखाए है, जो पॉक स्ट्रेट में समुद्र के भीतर रामेश्वरम(धनुषकोटि) से लंका में तलाई मन्नार तक 30 किलोमीटर लंबे रास्ते में पड़े है। वास्तव में वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि विश्वकर्मा की तरह नल एक महान शिल्पकार थे जिनके मार्गदर्शन में पुल का निर्माण करवाया गया। यह निर्माण वानर सेना द्वारा यंत्रों के उपयोग से समुद्र तट पर लाई गई शिलाओं, चट्टानों, पेड़ों तथा लकड़ियों के उपयोग से किया गया। महान शिल्पकार नल के निर्देशानुसार महाबलि वानर बड़ी-बड़ी शिलाओं तथा चट्टानों को उखाड़कर यंत्रों द्वारा समुद्र तट पर ले आते थे। साथ ही वो बहुत से बड़े-बड़े वृक्षों को, जिनमें ताड़, नारियल,बकुल,आम,अशोक आदि शामिल थे, समुद्र तट पर पहुंचाते थे। नल ने कई वानरों को बहुत लम्बी रस्सियां दे दोनों तरफ खड़ा कर दिया था। इन रस्सियों के बीचोबीच पत्थर,चट्टानें, वृक्ष तथा लताएं डालकर वानर सेतु बांध रहे थे। इसे बांधने में 5 दिन का समय लगा। यह पुल श्रीराम द्वारा तीन दिन की खोजबीन के बाद चुने हुए समुद्र के उस भाग पर बनवाया गया जहां पानी बहुत कम गहरा था तथा जलमग्न भूमार्ग पहले से ही उपलब्ध था। इसलिए यह विवाद व्यर्थ है कि रामसेतु मानव निर्मित है या नहीं, क्योंकि यह पुल जलमग्न, द्वीपों, पर्वतों तथा बरेतीयों वाले प्राकृतिक मार्गो को जोड़कर उनके ऊपर ही बनवाया गया था।"