12 October 2012

गोरखनाथ.....


महायोगी गोरखनाथ मध्ययुग (11वीं शताब्दी अनुमानित) के एक विशिष्ट महापुरुष थे। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे। इन दोनों ने नाथ सम्प्रदाय को सुव्यवस्थित कर इसका विस्तार किया। इस सम्प्रदाय के साधक लोगों को योगी, अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है।

गुरु गोरखनाथ हठयोग के आचार्य थे। कहा जाता है कि एक बार गोरखनाथ समाधि में लीन थे। इन्हें गहन समाधि में देखकर माँ पार्वती ने भगवान शिव से उनके बारे में पूछा। शिवजी बोले, लोगों को योग शिक्षा देने के लिए ही उन्होंने गोरखनाथ के रूप में अवतार लिया है। इसलिए गोरखनाथ को शिव का अवतार भी माना जाता है। इन्हें चौरासी सिद्धों में प्रमुख माना जाता है। इनके उपदेशों में योग और शैव तंत्रों का सामंजस्य है। ये नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखनाथ की लिखी गद्य-पद्य की चालीस रचनाओं का परिचय प्राप्त है। इनकी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात् तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को अधिक महत्व दिया है। गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात् समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ पर परम शक्ति का अनुभव होता है। हठयोगी कुदरत को चुनौती देकर कुदरत के सारे नियमों से मुक्त हो जाता है और जो अदृश्य कुदरत है, उसे भी लाँघकर परम शुद्ध प्रकाश हो जाता है।

गोरखनाथ के जीवन से सम्बंधित एक रोचक कथा इस प्रकार है- एक राजा की प्रिय रानी का स्वर्गवास हो गया। शोक के मारे राजा का बुरा हाल था। जीने की उसकी इच्छा ही समाप्त हो गई। वह भी रानी की चिता में जलने की तैयारी करने लगा। लोग समझा-बुझाकर थक गए पर वह किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था। इतने में वहां गुरु गोरखनाथ आए। आते ही उन्होंने अपनी हांडी नीचे पटक दी और जोर-जोर से रोने लग गए। राजा को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने सोचा कि वह तो अपनी रानी के लिए रो रहा है, पर गोरखनाथ जी क्यों रो रहे हैं। उसने गोरखनाथ के पास आकर पूछा, 'महाराज, आप क्यों रो रहे हैं?' गोरखनाथ ने उसी तरह रोते हुए कहा, 'क्या करूं? मेरा सर्वनाश हो गया। मेरी हांडी टूट गई है। मैं इसी में भिक्षा मांगकर खाता था। हांडी रे हांडी।' इस पर राजा ने कहा, 'हांडी टूट गई तो इसमें रोने की क्या बात है? ये तो मिट्टी के बर्तन हैं। साधु होकर आप इसकी इतनी चिंता करते हैं।' गोरखनाथ बोले, 'तुम मुझे समझा रहे हो। मैं तो रोकर काम चला रहा हूं तुम तो मरने के लिए तैयार बैठे हो।' गोरखनाथ की बात का आशय समझकर राजा ने जान देने का विचार त्याग दिया।

कहा जाता है कि राजकुमार बप्पा रावल जब किशोर अवस्था में अपने साथियों के साथ राजस्थान के जंगलों में शिकार करने के लिए गए थे, तब उन्होंने जंगल में संत गुरू गोरखनाथ को ध्यान में बैठे हुए पाया। बप्पा रावल ने संत के नजदीक ही रहना शुरू कर दिया और उनकी सेवा करते रहे। गोरखनाथ जी जब ध्यान से जागे तो बप्पा की सेवा से खुश होकर उन्हें एक तलवार दी जिसके बल पर ही चित्तौड़ राज्य की स्थापना हुई।
गोरखनाथ जी ने नेपाल और पाकिस्तान में भी योग साधना की। पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में स्थित गोरख पर्वत का विकास एक पर्यटन स्थल के रूप में किया जा रहा है। इसके निकट ही झेलम नदी के किनारे राँझा ने गोरखनाथ से योग दीक्षा ली थी। नेपाल में भी गोरखनाथ से सम्बंधित कई तीर्थ स्थल हैं। उत्तरप्रदेश के गोरखपुर शहर का नाम गोरखनाथ जी के नाम पर ही पड़ा है। यहाँ पर स्थित गोरखनाथ जी का मंदिर दर्शनीय है।
गोरखनाथ जी से सम्बंधित एक कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। राजस्थान के महापुरूष गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ 'गोगामेडी' के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा। गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा बने। गोगामेडी में गोगाजी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिदनुमा बना हुआ है, इसकी मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती हैं। कहा जाता है कि फिरोजशाह तुगलक सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरे थे। रात के समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रही है। तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया। तुगलक की सेना के साथ आए धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई महान सिद्ध है जो प्रकट होना चाहता है। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद आते समय गोगामेडी में मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया। यहाँ सभी धर्मो के भक्तगण गोगा मजार के दर्शनों हेतु भादौं (भाद्रपद) मास में उमड़ पडते हैं।

“ईश्वर अल्लाह तेरे नाम" ?????


जो लोग अज्ञानवश “ईश्वर अल्लाह तेरे नाम “का भजन करते रहते हैं 

शायद उनको ईश्वर की महानता शक्तियों और गुणों के बारे में, और अल्लाह की तुच्छता और अवगुणों के बारे में ठीक से पता नहीं है .ईश्वर असंख्य अल्लाह पैदा कर सकता है .क्योंकि असल शब्द अल्लाह नहीं “अल -इलाह “है देखिये कुरआन की पारिभाषिक शब्दावली पेज 1223 और 1224 पर शब्द “इलाह ” इलाह का अर्थ देवता या “GOD “है
मुहमद के समय अरब में मूर्तिपूजा प्रचलित थी. अकेले काबा में 360 देवता थे हरेक कबीले का अलग अलग देवता था .लोग अपने लड़कों का नाम अपने देवता के नाम से जोड़ देते थे .तत्कालीन अरब इतिहासकार 


“हिश्शाम बिन कलबी “ने अपनी किताब “किताब अल असनाम “जिसे अंगरेजी में “Book of Idols “भी कहा जाता है अरबों के देवताओं के बारे में विस्तार से लिखा है ,उस से कुछ देवताओं के बारे में दिया जा रहा है .

1 -अरबों के देवता और उनका स्वरूप

अरबों के देवता कई रूप के थे जैसे मनुष्य ,स्त्री ,पशु ,या पक्षी आदि ,कोई आकाश वासी था ,कोई यहीं रहता था .कुछ नाम देखिये -
वद्द - मनुष्य ,सु आ अ - स्त्री, यगूस-शेर ,याऊक -घोड़ा, नस्र-बाज ,इसी तरह और देवता थे जिनका नाम कुरआन में है ,जैसे लात ,मनात ,उज्जा और मनाफ .कुरआन में लिखा है - “क्या तुमने लात ,मनात ,एक और उज्जा को देखा .सूरा - अन नज्म 53 :19 -20 इसी तरह एक और देवता था जिसका नाम “इलाह “था जो चाँद पर रहता था वह “Moon god “था उसका स्वरूप “अर्ध चंद्राकार crescent जैसा था चाँद में रहने के कारण उसकी मूर्ति काबे में नहीं राखी जाती थी ,इलाह विनाश का देवता था .और बड़ा देवता था .

2 -मुहम्मद के पूर्वजों के देवता -

मुहम्मद के पूर्वजों के नाम भी उनके देवता के नाम पर थे जैसे मुहम्मद के परदादा का नाम “अब्द मनाफ़ “था यानी मनाफ़ का सेवक मुहम्मद की पत्नी खदीजा की देवी का नाम “उज्जा ‘था इसलिए खदीजा के चचेरे भाई के नाम में नौफल बिन अब्द उज्जा लगा था ,जब मुहम्मद के पिताका जन्म हुआ तो उसका नाम “अब्द इलाह “रखा गया था यानी इलाह देवता का सेवक .यह नाम बिगड़ कर अबदल्ला हो गया था

3 -कुरआन में इलाह का वर्णन -

“अल -इलाह एक बड़े सिंहासन का स्वामी है -सूरा अत तौबा 9 :129
“वह महाशाली एक सिंहासन पर बैठता है -सूरा अल मोमनीन 33 :116
“इलाह एक ऊंचे सिंहासन पर बैठता है “सूरा -अल मोमिन 40 :१५

4 -इलाह से अल्लाह कैसे बना ?

अरबी भाषा में किसी भी संज्ञा (Noun )के आगे Definite Article अल लगा दिया जाता है .इसका अर्थ “the “होता है मुहम्मद ने “इलाह “शब्द के आगे “अल “और जोड़ दिया .और “अल्लाह “शब्द गढ़ लिया .वास्तव में इलाह शब्द हिब्रू भाषा का है ,इसका वही अर्थ है जो अंगरेजी में “god “का है .इलाह को बाइबिल में “अजाजील “भी कहा गया है ,यानी विनाश का देवता -बाइबिल -लेवी अध्याय 16 :8 -10 -26

5 -मुहम्मद की कपट नीति

पाहिले मुहम्मद सभी देवताओं को समान बताता था और लोगों से यह कहता था ,कि- “हमारा इलाह (देवता )और तुम्हारा इलाह एक ही हैं .सूरा -अनकबूत 29 :46

6 -अरब में तीन काबा थे

एक काबा मक्का में था .जो मुहम्मद के कबीले ‘कुरेश ‘के कब्जे में था दूसरा काबा नजरान में जो बहरीन के पास था ,तीसरा काबा सिन्दाद का था जो कूफा और बसरा के बीच स्थित था इनसे चढ़ौती में काफी धन आता था कुरेश मक्का के काबे से जो मिलता था उस से रोजी चलाते थे .जैसा कुरआन में लिखा है - “क्या हमने तुम्हें यह जगह (काबा ) नहीं बनाने दी ,जिससे लोगों की कमाई खीचकर तुम्हारे पास चली आती है ,और तुम्हारी रोजी रोटी आराम से चलती है “सूरा -अल कसस 28 :57

7 -अल इलाह की इबादत क्यों

जब दूसरे काबे बन गए तो कुरेश की कमाई कम होने लगी .और मुहमद भी गिरगिट की तरह रंग बदलने लगा .उसने लोगोंपर दवाब डाला की वे केवल “अल -इलाह “की इबादत करें उसने कुरआन में यह कहा - “तुम्हारा पूज्य केवल इलाह ही है सूरा -अल बकरा 2 :163 ऎसी कई आयतें है -

8 -मुहम्मद ने काबा की मूर्तियाँ क्यों तोडी ?

मुहम्मद को अपने कबीले कुरेश से लगाव था ,जब कुरेश की कमाई कम होने लगी और कमाई में कई कबीले हिस्सेदार बन गए तो मुहमद ने सारी मूर्तियाँ तुड़वा दीं.ताकी पूरी कमाई कुरेश के पास आने लगे ,कुरआन में उसने यह लिख दिया -

“मैंने कुरेश के साथ सम्बन्ध (Attachment )रखा ताकि वे मेरे कारवां को यात्रा के समय सर्दी और गरमी से बचाएं ,इसीलिए मैंने कुरेश को इस घर (काबा )की पूजा के लिए नियुक्त कर दिया .और उनको भूखों मरने से बचाया ,और भय से मुक्त कर दिया .सूरा कुरेश 106 :1 से 4

9 – मुसलमानों ने काबा को लूटा

अरब के लोग जनम से लुटेरे हैं .वह लालच के लिए कुछ भी कर सकते हैं .जब उन्हें पता चला कि काबा में बड़ी संपदा है .तो वे मुसलमान होने के बावजूद काबा पर हमला कर बैठे .सन 930 में इस्माइली मुसलमानों के एक योद्धा “अबू ताहिर अल जन्नवी”ने काबा को लूट लिया और बीस हजार हाजियों को क़त्ल करके उनकी लाशों से “आबे जमजम “का कुआ भर दिया .यही नहीं काबा में जो कला पत्थर “संगे असवद”लगा हुआ था उसे उखाड़ कर “अल हिसा “नामकी जगह पर ले गया .और उस काले पत्थर को नापाक कर दिया .यह जगह बहरैन के पास है .सन 952 तक वह पत्थर अल हिसा में रहा और 22 साल तक मक्का में हज नहीं हो सका .क्योकि हज में काले पत्थर को चूमना जरूरी होता है .बाद में जब “फातिमी “हुकूमत आयी तो उसने भारी धन देकर वह काला पत्थर वापस लेकर काबे में लगवा दिया . इस तरह मुहम्मद ने एक छोटे से देवता को ईश्वर बना दिया .और मुर्ख लोग अल्लाह को ईश्वर के बराबर मानने लगे .एक कवि ने कहा है- “शुक्र कर खुदाया ,मैंने तुझे बनाया .तुझे कौन पूछता था मेरी बंदगी से पहले ” इसलिए ईश्वर अल्लाह तेरा नाम कहना बंद करें


गौ सेवा का महत्व


भारतीय परंपरा के मत से गाय के शरीर में ३३ करोड़ देवता वास होता हैं, एवं गौ-सेवा से एक ही साथ 33 करोड देवता प्रसन्न होते हैं !!
हिन्दू संस्कृति जिस घर में गाय माता का निवास करती हैं एवं जहां गौ सेवा होती है, उस घर से समस्त परेशानीयां कोसों दूर रहती हैं !! भारतीय संस्कृति में गाय को माता का संम्मान दिय जाता हैं इस लिये उसे गौ-माता केहते है !!

गाय प्राप्त गाय का दूध, दूध ही नहीं अमृत तुल्य हैं !! गाय से प्राप्त दूध, घी, मक्खन से मानव शरीर पुष्ट बनता हैं !! एवं गाय का गोबर चुल्हें, हवन इत्यादि मे उप्युक्त होता हैं और यहां तक की उसका मूत्र भी विभिन्न दवाइयां बनाने के काम आता हैं !!

गाय ही ऐसा पशुजीव हैं जो अन्य पशुओं में सर्वश्रेष्ठ और बुद्धिमान माना हैं !!

कहा जाता हैं भगवान श्री कृष्ण छह वर्ष के गोपाल बने क्योंकि उन्होंने गौ सेवा का संकल्प लिया था !! भगवान श्री कृष्ण ने गौ सेवा करके गौ का महत्व बढाया हैं !!
गाय के मूत्र में कैंसर, टीवी जैसे गंभीर रोगों से लड़ने की क्षमता होती हैं, जिसे वैज्ञानिक भी मान चुके हैं !!
गौ-मूत्र के सेवन करने से पेट के सभी विकार दूर होते हैं !!
ज्योतिष शास्त्र मे भी नव ग्रहो के अशुभ प्रभाव से मुक्ति के लिये गाय को विभिन्न प्रकार के अन्न का वर्णन किया गया हैं !!
यदि बच्चे को बचपन से गाय के दूध पिलाया जाए तो बच्चे की बुद्धि कुशाग्र होती हैं !!
गाय के गोबर को आंगन लिपने एवं मंगल कार्यो मे लिया जाता हैं !!
गोबर, गौ मूत्र, गौ-दही, गौ-दूध, गौधृत ये पंचगव्य हैं !!
गाय की सेवा से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं !!

इस संसार मे आज हर व्यक्ति किसी न किसी कारण दुखी हैं !! 

कोई अपने कर्मों या अपने पर आई विपदाओं से दुखी हैं अर्थात वह अपने दुखों के कारण दुखी हैं मगर कोई दूसरे के सुख से दुखी हैं अर्थात ईर्षा के कारण भी दुखी हैं !! यानी यहां दुखी हर कोई हैं कारण भले ही भिन्न-भिन्न हो सकते हैं !! इन समस्त परेशानीयों का निदान है गौ सेवा !!


भोजन करने से पहले और बाद में पलने योग्य आवश्यक नियम


जब हम भोजन करते हैं तो हमें भोजन से पूर्व और भोजन के बाद बहुत-सी बातों का ध्यान रखना चाहिए। इससे हम अपने स्वास्थ्य को ठीक रख सकते हैं। भोजन करने से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें निम्नानुसार हैं-

* प्रातः बिना स्नान किए भोजन नहीं करना चाहिए।
* भोजन करने से पहले हाथ, मुँह और पैरों को ठंडे पानी से धोना चाहिए। ऐसा करने से अनेक लाभ होते हैं।

* भोजन करने से पूर्व ईश्वर का स्मरण करना चाहिए और यह प्रार्थना करना चाहिए कि हम जो भो
जन करने जा रहे हैं, वह हमारे स्वास्थ्य के लिए हितकर हो।

* भोजन को धीरे-धीरे चबाकर खाना चाहिए।

* भोजन को कभी भी ठूँस-ठूँसकर नहीं खाना चाहिए। इससे कई रोग हो सकते हैं। भोजन भरपेट से तीन चौथाई ही करना चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि स्वस्थ्य रहने का सर्वोत्तम उपाय यह है कि भूख से कम भोजन किया जाए।

* भूख लगने पर पानी पीना और प्यास लगने पर भोजन नहीं करना चाहिए, अन्यथा स्वास्थ्य को हानि पहुँचती है।

* भोजन के बीच में प्यास लगने पर थोड़ा-थोड़ा पानी पीना चाहिए। भोजन के अंत में तुरंत पानी नहीं पीना चाहिए। भोजन के एक घंटे बाद खूब पानी पीना चाहिए।

* बासी, ठंडा, कच्चा अथवा जला हुआ और दोबारा गर्म किया हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।

* भोजन पच जाने पर ही दूसरी बार भोजन करना चाहिए। प्रातः भोजन के बाद यदि शाम को अजीर्ण मालूम हो, तो उस समय कुछ नर्म भोजन लिया जा सकता है। परंतु रात्रि के भोजन के बाद प्रातः अजीर्ण हो तो बिल्कुल भी भोजन नहीं करना चाहिए।

* दोपहर को भोजन करने के बाद थोड़ा विश्राम करना लाभदायक होता है और रात्रि के भोजन के बाद थोड़ा टहलना हितकर होता है।

* भोजन करने के तुरंत बाद सोना नहीं चाहिए। चाहे वह दोपहर का भोजन हो या रात्रि का। भोजन व रात्रि के सोने में कम से कम दो घंटे का अंतर होना चाहिए।

* सर्दी के दिनों में भोजन से पूर्व थोड़ा-सा अदरक व सेंधा नमक खाना चाहिए। इससे पाचन शक्ति बढ़ जाती है।

* भोजन सामग्री में कड़े पदार्थ सबसे पहले, नर्म पदार्थ बीच में और पतले पदार्थ अंत में खाने चाहिए।

* भोजन में दूध, दही एवं छाछ का प्रयोग लाभप्रद होता है। इस सबका सेवन दीर्घजीवी एवं स्वस्थ बनाता है।

* इस बात को हमेशा याद रखें कि भोजन करने के बाद क्रोध नहीं करना चाहिए और न ही भोजन के तुरंत बाद व्यायाम करना चाहिए, इससे स्वास्थ्य को नुकसान होता है।

* रात्रि के भोजन के बाद दूध पीना हितकर है। रात्रि में दूध का सेवन अमृततुल्य माना गया

शुक्रवार व्रतकथा


शुक्रवार के दिन मां संतोषी का व्रत-पूजन किया जाता है, जिसकी कथा इस प्रकार से है- एक बुढिय़ा थी, उसके सात बेटे थे. 6 कमाने वाले थे जबकि एक निक्कमा था. बुढिय़ा छहो बेटों की रसोई बनाती, भोजन कराती और उनसे जो कुछ झूठन बचती वह सातवें को दे देती. एक दिन वह पत्नी से बोला- देखो मेरी मां को मुझ पर कितना प्रेम है. वह बोली- क्यों नहीं, सबका झूठा जो तुमको खिलाती है. वह बोला- ऐसा नहीं हो सकता है. मैं जब तक आंखों से न देख लूं मान नहीं सकता. बहू हंस कर बोली- देख लोगे तब तो मानोगे.

कुछ दिन बाद त्यौहार आया. घर में सात प्रकार के भोजन और चूरमे के लड्डू बने. वह जांचने को सिर दुखने का बहाना कर पतला वस्त्र सिर पर ओढ़े रसोई घर में सो गया. वह कपड़े में से सब देखता रहा. छहों भाई भोजन करने आए. उसने देखा, मां ने उनके लिए सुन्दर आसन बिछा नाना प्रकार की रसोई परोसी और आग्रह करके उन्हें जिमाया. वह देखता रहा. छहों भोजन करके उठे तब मां ने उनकी झूठी थालियों में से लड्डुओं के टुकड़े उठाकर एक लड्डू बनाया. जूठन साफ कर बुढिय़ा मां ने उसे पुकारा- बेटा, छहों भाई भोजन कर गए अब तू ही बाकी है, उठ तू कब खाएगा. वह कहने लगा- मां मुझे भोजन नहीं करना, मै अब परदेस जा रहा हूं. मां ने कहा- कल जाता हो तो आज चला जा. वह बोला- हां आज ही जा रहा हूं. यह कह कर वह घर से निकल गया. चलते समय पत्नी की याद आ गई. वह गौशाला में कण्डे थाप रही थी. वहां जाकर बोला- हम जावे परदेस आवेंगे कुछ काल, तुम रहियो संन्तोष से धर्म आपनो पाल. वह बोली- जाओ पिया आनन्द से हमारो सोच हटाय, राम भरोसे हम रहें ईश्वर तुम्हें सहाय. दो निशानी आपनी देख धरूं में धीर, सुधि मति हमारी बिसारियो रखियो मन गम्भीर.

वह बोला- मेरे पास तो कुछ नहीं, यह अंगूठी है सो ले और अपनी कुछ निशानी मुझे दे. वह बोली- मेरे पास क्या है, यह गोबर भरा हाथ है. यह कह कर उसकी पीठ पर गोबर के हाथ की थाप मार दी. वह चल दिया, चलते-चलते दूर देश पहुंचा. वहां एक साहूकार की दुकान थी. वहां जाकर कहने लगा- भाई मुझे नौकरी पर रख लो. साहूकार को जरूरत थी, बोला- रह जा. लड़के ने पूछा- तनखा क्या दोगे. साहूकार ने कहा- काम देख कर दाम मिलेंगे. साहूकार की नौकरी मिली, वह सुबह 7 बजे से 10 बजे तक नौकरी बजाने लगा. कुछ दिनों में दुकान का सारा लेन-देन, हिसाब-किताब, ग्राहकों को माल बेचना सारा काम करने लगा. साहूकार के सात-आठ नौकर थे, वे सब चक्कर खाने लगे, यह तो बहुत होशियार बन गया. सेठ ने भी काम देखा और तीन महीने में ही उसे आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना लिया. वह कुछ वर्ष में ही नामी सेठ बन गया और मालिक सारा कारोबार उसपर छोड़कर चला गया.

इधर उसकी पत्नी को सास ससुर दु:ख देने लगे, सारी गृहस्थी का काम कराके उसे लकड़ी लेने जंगल में भेजते. इस बीच घर के आटे से जो भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नारेली मे पानी.

एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी, रास्ते मे बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का व्रत करती दिखाई दी. वह वहां खड़ी होकर कथा सुनने लगी और पूछा- बहिनों तुम किस देवता का व्रत करती हो और उसके करने से क्या फल मिलता है. यदि तुम इस व्रत का विधान मुझे समझा कर कहोगी तो मै तुम्हारा बड़ा अहसान मानूंगी. तब उनमें से एक स्त्री बोली- सुनों, यह संतोषी माता का व्रत है. इसके करने से निर्धनता, दरिद्रता का नाश होता है और जो कुछ मन में कामना हो, सब संतोषी माता की कृपा से पूरी होती है.

तब उसने उससे व्रत की विधि पूछी. वह बोली- सवा आने का गुड़ चना लेना, इच्छा हो तो सवा पांच आने का लेना या सवा रुपए का भी सहूलियत के अनुसार लाना. बिना परेशानी और श्रद्धा व प्रेम से जितना भी बन पड़े सवाया लेना. प्रत्येक शुक्रवार को निराहार रह कर कथा सुनना, इसके बीच क्रम टूटे नहीं, लगातार नियम पालन करना, सुनने वाला कोई न मिले तो धी का दीपक जला उसके आगे या जल के पात्र को सामने रख कर कथा कहना. जब कार्य सिद्ध न हो नियम का पालन करना और कार्य सिद्ध हो जाने पर व्रत का उद्यापन करना. तीन मास में माता फल पूरा करती है. यदि किसी के ग्रह खोटे भी हों, तो भी माता वर्ष भर में कार्य सिद्ध करती है, फल सिद्ध होने पर उद्यापन करना चाहिए बीच में नहीं. उद्यापन में अढ़ाई सेर आटे का खाजा तथा इसी परिमाण से खीर तथा चने का साग करना. आठ लड़कों को भोजन कराना, जहां तक मिलें देवर, जेठ, भाई-बंधु के हों, न मिले तो रिश्तेदारों और पास-पड़ोसियों को बुलाना. उन्हें भोजन करा यथा शक्ति दक्षिणा दे माता का नियम पूरा करना. उस दिन घर में खटाई न खाना.

यह सुन बुढ़िया के लड़के की बहू चल दी. रास्ते में लकड़ी के बोझ को बेच दिया और उन पैसों से गुड़-चना ले माता के व्रत की तैयारी कर आगे चली और सामने मंदिर देखकर पूछने लगी- यह मंदिर किसका है. सब कहने लगे संतोषी माता का मंदिर है, यह सुनकर माता के मंदिर में जाकर चरणों में लोटने लगी. दीन हो विनती करने लगी- मां मैं निपट अज्ञानी हूं, व्रत के कुछ भी नियम नहीं जानती, मैं दु:खी हूं. हे माता जगत जननी मेरा दु:ख दूर कर मैं तेरी शरण में हूं. माता को दया आई – एक शुक्रवार बीता कि दूसरे को उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ पैसा आ पहुंचा. यह देख जेठ-जिठानी मुंह सिकोडऩे लगे. लड़के ताने देने लगे- काकी के पास पत्र आने लगे, रुपया आने लगा, अब तो काकी की खातिर बढ़ेगी. बेचारी सरलता से कहती- भैया कागज आवे रुपया आवे हम सब के लिए अच्छा है. ऐसा कह कर आंखों में आंसू भरकर संतोषी माता के मंदिर में आ मातेश्वरी के चरणों में गिरकर रोने लगी. मां मैने तुमसे पैसा कब मांगा है. मुझे पैसे से क्या काम है. मुझे तो अपने सुहाग से काम है. मै तो अपने स्वामी के दर्शन मांगती हूं. तब माता ने प्रसन्न होकर कहा-जा बेटी, तेरा स्वामी आवेगा. यह सुनकर खुशी से बावली होकर घर में जा काम करने लगी.

अब संतोषी मां विचार करने लगी, इस भोली पुत्री को मैने कह तो दिया कि तेरा पति आवेगा लेकिन कैसे? वह तो इसे स्वप्न में भी याद नहीं करता. उसे याद दिलाने को मुझे ही जाना पड़ेगा. इस तरह माता जी उस बुढिय़ा के बेटे के पास जा स्वप्न में प्रकट हो कहने लगी- साहूकार के बेटे, सो रहा है या जागता है. वह कहने लगा- माता सोता भी नहीं, जागता भी नहीं हूं कहो क्या आज्ञा है? मां कहने लगी- तेरे घर-बार कुछ है कि नहीं. वह बोला- मेरे पास सब कुछ है मां-बाप है बहू है क्या कमी है. मां बोली- भोले पुत्र तेरी बहू घोर कष्ट उठा रही है, तेरे मां-बाप उसे त्रास दे रहे हैं. वह तेरे लिए तरस रही है, तू उसकी सुध ले. वह बोला- हां माता जी यह तो मालूम है, परंतु जाऊं तो कैसे? परदेश की बात है, लेन-देन का कोई हिसाब नहीं, कोई जाने का रास्ता नहीं आता, कैसे चला जाऊं? मां कहने लगी- मेरी बात मान, सवेरे नहा धोकर संतोषी माता का नाम ले, घी का दीपक जला दण्डवत कर दुकान पर जा बैठ. देखते-देखते सारा लेन-देन चुक जाएगा, जमा का माल बिक जाएगा, सांझ होते-होते धन का भारी ठेर लग जाएगा.

अब बूढ़े की बात मानकर वह नहा धोकर संतोषी माता को दण्डवत धी का दीपक जला दुकान पर जा बैठा. थोड़ी देर में देने वाले रुपया लाने लगे, लेने वाले हिसाब लेने लगे. कोठे में भरे सामान के खरीददार नकद दाम दे सौदा करने लगे. शाम तक धन का भारी ठेर लग गया. मन में माता का नाम ले चमत्कार देख प्रसन्न हो घर ले जाने के वास्ते गहना, कपड़ा सामान खरीदने लगा. यहां काम से निपट तुरंत घर को रवाना हुआ.

उधर उसकी पत्नी जंगल में लकड़ी लेने जाती है, लौटते वक्त माताजी के मंदिर में विश्राम करती. वह तो उसके प्रतिदिन रुकने का जो स्थान ठहरा, धूल उड़ती देख वह माता से पूछती है- हे माता, यह धूल कैसे उड़ रही है? माता कहती है- हे पुत्री तेरा पति आ रहा है. अब तू ऐसा कर लकडिय़ों के तीन बोझ बना ले, एक नदी के किनारे रख और दूसरा मेरे मंदिर पर व तीसरा अपने सिर पर. तेरे पति को लकडिय़ों का गट्ठर देख मोह पैदा होगा, वह यहां रुकेगा, नाश्ता-पानी खाकर मां से मिलने जाएगा, तब तू लकडिय़ों का बोझ उठाकर जाना और चौक मे गट्ठर डालकर जोर से आवाज लगाना- लो सासूजी, लकडिय़ों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो, नारियल के खेपड़े में पानी दो, आज मेहमान कौन आया है? माताजी से बहुत अच्छा कहकर वह प्रसन्न मन से लकडिय़ों के तीन गठ्ठर बनाई. एक नदी के किनारे पर और एक माताजी के मंदिर पर रखा. इतने में मुसाफिर आ पहुंचा. सूखी लकड़ी देख उसकी इच्छा उत्पन्न हुई कि हम यही पर विश्राम करें और भोजन बनाकर खा-पीकर गांव जाएं. इसी तरह रुक कर भोजन बना, विश्राम करके गांव को गया. सबसे प्रेम से मिला. उसी समय सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए वह उतावली सी आती है. लकडिय़ों का भारी बाझ आंगन में डालकर जोर से तीन आवाज देती है- लो सासूजी, लकडिय़ों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो. आज मेहमान कौन आया है.

यह सुनकर उसकी सास बाहर आकर अपने दिए हुए कष्टों को भुलाने हेतु कहती है- बहु ऐसा क्यों कहती है? तेरा मालिक ही तो आया है. आ बैठ, मीठा भात खा, भोजन कर, कपड़े-गहने पहिन. उसकी आवाज सुन उसका पति बाहर आता है. अंगूठी देख व्याकुल हो जाता है. मां से पूछता है- मां यह कौन है? मां बोली- बेटा यह तेरी बहु है. जब से तू गया है तब से सारे गांव में भटकती फिरती है. घर का काम-काज कुछ करती नहीं, चार पहर आकर खा जाती है. वह बोला- ठीक है मां मैने इसे भी देखा और तुम्हें भी, अब दूसरे घर की ताली दो, उसमें रहूंगा. मां बोली- ठीक है, जैसी तेरी मरजी. तब वह दूसरे मकान की तीसरी मंजिल का कमरा खोल सारा सामान जमाया. एक दिन में राजा के महल जैसा ठाट-बाट बन गया. अब क्या था? बहु सुख भोगने लगी.

इतने में शुक्रवार आया. उसने पति से कहा- मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है. पति बोला- खुशी से कर लो. वह उद्यापन की तैयारी करने लगी. जिठानी के लड़कों को भोजन के लिए कहने गई. उन्होंने मंजूर किया परन्तु पीछे से जिठानी ने अपने बच्चों को सिखाया, देखो, भोजन के समय खटाई मांगना, जिससे उसका उद्यापन पूरा न हो. लड़के जीमने आए खीर खाना पेट भर खाया, परंतु बाद में खाते ही कहने लगे- हमें खटाई दो, खीर खाना हमको नहीं भाता, देखकर अरूचि होती है. वह कहने लगी- भाई खटाई किसी को नहीं दी जाएगी. यह तो संतोषी माता का प्रसाद है. लड़के उठ खड़े हुए, बोले- पैसा लाओ, भोली बहु कुछ जानती नहीं थी, उन्हें पेसे दे दिए. लड़के उसी समय हठ करके इमली खटाई ले खाने लगे. यह देखकर बहु पर माताजी ने कोप किया. राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए. जेठ जेठानी मन-माने वचन कहने लगे. लूट-लूट कर धन इकठ्ठा कर लाया है, अब सब मालूम पड़ जाएगा जब जेल की मार खाएगा.

बहु से यह सहन नहीं हुए. रोती हुई माताजी के मंदिर गई, कहने लगी- हे माता, तुमने क्या किया, हंसा कर अब भक्तों को रुलाने लगी. माता बोली- बेटी तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया है. वह कहने लगी- माता मैंने कुछ अपराध किया है, मैने तो भूल से लड़कों को पैसे दे दिए थे, मुझे क्षमा करो. मै फिर तुम्हारा उद्यापन करूंगी. मां बोली- अब भूल मत करना. वह कहती है- अब भूल नहीं होगी, अब बतलाओ वे कैसे आवेंगे? मां बोली- जा पुत्री तेरा पति तुझे रास्ते में आता मिलेगा. वह निकली, राह में पति आता मिला. वह पूछी- कहां गए थे? वह कहने लगा- इतना धन जो कमाया है उसका टैक्स राजा ने मांगा था, वह भरने गया था. वह प्रसन्न हो बोली- भला हुआ, अब घर को चलो.

कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया. वह बोली- मुझे फिर माता का उद्यापन करना है. पति ने कहा- करो. बहु फिर जेठ के लड़कों को भोजन को कहने गई. जेठानी ने एक दो बातें सुनाई और सब लड़कों को सिखाने लगी. तुम सब लोग पहले ही खटाई मांगना. लड़के भोजन से पहले कहने लगे- हमे खीर नहीं खानी, हमारा जी बिगड़ता है, कुछ खटाई खाने को दो. वह बोली- खटाई किसी को नहीं मिलेगी, आना हो तो आओ, वह ब्राह्मण के लड़के लाकर भोजन कराने लगी, यथा शक्ति दक्षिणा की जगह एक-एक फल उन्हें दिया. संतोषी माता प्रसन्न हुई.

माता की कृपा होते ही नवमें मास में उसके चन्द्रमा के समान सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ. पुत्र को पाकर प्रतिदिन माता जी के मंदिर को जाने लगी. मां ने सोचा- यह रोज आती है, आज क्यों न इसके घर चलूं. यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया, गुड़-चने से सना मुख, ऊपर सूंड के समान होठ, उस पर मक्खियां भिन-भिन कर रही थी. देहली पर पैर रखते ही उसकी सास चिल्लाई- देखो रे, कोई चुड़ैल डाकिन चली आ रही है, लड़कों इसे भगाओ, नहीं तो किसी को खा जाएगी. लड़के भगाने लगे, चिल्लाकर खिड़की बंद करने लगे. बहु रौशनदान में से देख रही थी, प्रसन्नता से पगली बन चिल्लाने लगी- आज मेरी माता जी मेरे घर आई है. वह बच्चे को दूध पीने से हटाती है. इतने में सास का क्रोध फट पड़ा. वह बोली- क्या उतावली हुई है? बच्चे को पटक दिया. इतने में मां के प्रताप से लड़के ही लड़के नजर आने लगे. वह बोली- मां मै जिसका व्रत करती हूं यह संतोषी माता है. सबने माता जी के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे- हे माता, हम मूर्ख हैं, अज्ञानी हैं, तुम्हारे व्रत की विधि हम नहीं जानते, व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है, जग माता आप हमारा अपराध क्षमा करो. इस प्रकार माता प्रसन्न हुई. बहू को प्रसन्न हो जैसा फल दिया, वैसा माता सबको दे, जो पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो. बोलो संतोषी माता की जय.


आपत्तिनिवारण के लिए ‘शिवसूत्र’ मंत्र


जिस समय आपत्तियाँ आ धमकें, उस समय भगवन शिव के डमरू से प्राप्त १४ सूत्रों को अर्थात् ‘शिवसूत्र’ मंत्र को एक श्वास मे बोलने का अभ्यास करके इसका एक माला (१०८ बार) जप प्रतिदिन करें| कैसा भी कठिन कार्य हो, इस से शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है| ‘शिवसूत्र’ मंत्र इस प्रकार है-

‘अइउण, ॠलृक्, एओड़्, ऐऔच्, हयवरट्, लण्, ञमड़णनम्, झभञ्, घढधश्, जबगडदश्, खफछठथ, चटतव्, कपय्, शषसर्, हल्|’
इसी मंत्र के अन्य प्रयोग निम्नानुसार है-

१. बिच्छू के काटने पर इन सूत्रों से झाड़ने पर विष उतर जाता है|

२. जिस व्यक्ति में प्रेत का आवेश आया हो, उस पर उपरोक्त सूत्रों से अभिमंत्रित जल के छीटें मरने से आवेश छूट जाता है तथा इन्हीं सूत्रों को भोजपत्र पर लिख कर गले मे बाँधने से अथवा बाजू पर बाँधने से प्रेतबाधा दूर हो जाती है|

३. ज्वर, तिजारी (ठंड लगकर तीसरे दिन आनेवाला ज्वर), चौथिया (हर चौथे दिन आनेवाला ज्वर) आदि मे इन सूत्रों द्वारा झाड़ने-फूँकने से ज्वर उतर जाता है| अथवा इन्हें पीपल के एक बड़े पते पर लिखकर गले या हाथ पर बाँधने से भी ज्वर उतर जाते हैं|

४. मिर्गी(अपस्मार) होने पर भी इन सूत्रों से झाड़ना चाहिए तथा अभिमंत्रित जल प्रतिदिन पिलाना चाहिए|