16 September 2012

इंसान सुखी रहने के लिए ?


इंसान सुखी रहने के लिए घर बदलता है,
गाड़ी बदलता है ,
कपडे बदलता है ,
मोबाइल बदलता है ,
नंबर बदलता है और
पता नहीं क्या क्या बदलता है
फिर भी सुखी नहीं हो पाता..........
क्योकि वो अपना स्वभाव नहीं बदलता..
दुनिया को बदलने से पहले खुद में परिवर्तन लाना अत्यंत आवश्यक है ...

" पैसा कमाने के लिए कलेजा चाहिए |
मगर दान करने के लिए उससे भी बड़ा कलेजा चाहिए |
दुनिया कहती है की पैसा तो हाथ का मेल है |
मैं पैसे को ऐसी गाली कभी नहीं दूंगा |
जीवन और जगत मे पैसे का अपना मूल्य है ,
जिसे जुट्लाया नहीं जा सकता |
यह भी सही है की जीवन मे पैसा कुछ हो सकता है ,
कुछ -कुछ भी हो सकता है , और बहुत -कुछ भी हो सकता है मगर
'सब-कुछ'कभी नहीं हो सकता |
और जो लोग पैसे को ही सब कुछ मन लेते है
वे पैसे के खातिर अपनी आत्मा को बेचेने के लिए भी तेयार हो जाते है | "

" संसार में अड़चन और परेशानी न आये -यह कैसे हो सकता हैं | सफ्ताह मे एक दिन रविवार का भी तो आएगा ना | प्रक्रति का नियम ही ऐसा है की जिन्दगी मे जितना सुख -दुःख मिलना है ,वह मिलता ही है | मिलेगा भी क्यों नहीं , टेंडर मे जो भरोगे वाही तो खुलेगा | मीठे के साथ नमकीन जरुरी है तो सुख के साथ दुःख का होना भी लाजमी है | दुःख बड़े कम की चीज है | जिन्दगी मे अगर दुःख न हो तो कोई प्रभु को याद ही न करे |

" मरने वाला मर कर स्वर्ग गया है या नर्क ?
अगर कोई यह जानना चाहता है तो इसके लिए किसी संत या 
ज्योतिषी से मिलने की जरुरत नहीं है , बल्कि उसकी सवयात्रा मे होने वाली बातो 
को गौर से सुनने की जरुरत है | यदि लोग कह रहे हो कि बहुत अच्छा आदमी था |
अभी तो उसकी देस व समाज को बड़ी जरुरत थी , जल्दी चल बसा तो समजना कि व स्वर्ग 
गया है | और यदि लोग कह रहे हो कि अच्छा हुआ धरती का एक पाप तो कम हुआ 
तो समजना कि मरने वाला नर्क गया है | "




Rajesh Agrawal

=========पाप के अठारह भेद ==========




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18 पाप इस प्रकार है :-
1 :- प्रानिपात - जिव हिंसा
2 :- मृषावाद - झूठ बोलना .

3 :- अदत्तादान - चोरी करना .
4 :- मैथुन - अभ्रमचार .
5 :- परिग्रह - संग्रह
6 :- क्रोध – गुस्सा (Anger)
7 :- मान – घमंड (Pride & Ego)
8 :- माया - छल कपट
9 :- लोभ - लालच
10 :- राग - किसे के प्रति आकर्षण .
11 :- द्वेष - किसी के प्रति वैर भाव .
12 :- कलह - क्लेश करना .
13 :- अभ्याख्यान - कलंक लगाना .
14 :- पैशुन्य - चुगली करना , दुसरो के दोष प्रकट करना .
15 :- पर परिवाद - दुसरो की निंदा करना .
16 :- रात्रि -अरात्रि - बुरे कार्यो में लगे रहना , धर्म में मन नहीं लगाना .
17 :- माया मिर्शवाद - कपट रख कर झूठ बोलना .
18 :- मिथ्यात्व दर्शन शल्य - गलत श्रद्धा रखना .
इन पापो से बचने के लिए , 18 पाप को हम चाहे तो रोक सकते है बस हम में इच्छा शक्ति होनी चाहिए . हमें इन 18 पापो को समजना चाहिए और मन में इनको कम करने का प्रयत्न करना चाहिए , हर चीज का ज्ञान जरुरी है क्योकि वही हमें सही रास्ता दिखता है . पाप कम से कम करने के लिए हमें हर कम विवेक पूर्वक करना चाहिए आधे पाप तो इससे बंद हो जाते है और आधे पाप के लिए हमें मन को सरल बनाना चाहिए ये मुश्किल है पर नामुनकिन नहीं .
जय जिनेन्द्र _/\_







Rajesh Agrawal