06 July 2013

!!! शिव पूजन में बिल्वपत्र का महत्व क्यों? !!!


भगवान शिव को हमारे धर्म शास्त्रों में बहुत ही भोला-भाला कहा गया है इसीलिए उनका नाम भोलेनाथ भी है। भगवान शिव जितने भोले हैं उनके पूजन की विधि भी उतनी ही सरल है। शिव मात्र एक लोटे जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं तथा अपने भक्तों का उद्धार करते हैं। शिव महापुराण में भगवान शिव के पूजन की विधि विस्तारपूर्वक दी गई है।

पूजन विधि में बिल्व पत्र का विशेष महत्व तथा उससे प्राप्त होने वाले फलों के बारे में भी बताया गया है।शिव महापुराण के विद्येश्वरसंहिता के अनुसार बिल्ववृक्ष महादेव का ही रूप है। तीनों लोकों में जितने पुण्य-तीर्थ प्रसिद्ध हैं, वे संपूर्ण तीर्थ बिल्व के मूलभाग में निवास करते हैं। जो मनुष्य बिल्व के मूल में लिंगस्वरूप अविनाशी महादेवजी का पूजन करता है वह निश्चय ही शिवपद को प्राप्त होता है।

जो गंध, पुष्प आदि से बिल्व के मूल भाग का पूजन करता है है वह शिवलोक को प्राप्त होता है। जो बिल्व की जड़ के समीप दीपक जलाता है वह तत्वज्ञान से सम्पन्न हो जाता है और भगवान महेश्वर में मिल जाता है। जो बिल्ब की जड़ के समीप भगवान शिव के उपासक को भक्तिपूर्वक भोजन कराता है उसे कोटिगुना पुण्य प्राप्त होता है।

जो बिल्व की जड़ के समीप शिवभक्त को खीर और घृत युक्त अन्न दान करता है वह कभी दरिद्र नहीं होता। जो बिल्व की शाखा थामकर हाथ से उसके नए-नए पल्लव उतारता है तथा उनसे उस बिल्व की पूजा करता है वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।

!!! नवग्रह स्तोत्र !!!



नवग्रह देवा नमःॐ जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् ।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।१ ।।

ॐ दधि-शंख-तुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम् ।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।२ ।।

ॐ धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कांतिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ।।३ ।।

ॐ प्रियङ्गुलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम् ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् ।।४ ।।

ॐ देवानां चा ऋषीणां च गुरूं काञ्चनसंन्निभम् ।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ।।५ ।।

ॐ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूम् ।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ।।६ ।।

ॐ नीलाञ्जनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।७ ।।

ॐ अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् ।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ।।८ ।।

ॐ पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् ।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ।।९ ।।

इति व्यासमुखोद्गीतं य: पठेत्सुसमाहित: ।।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशान्तिभविश्यति ।।१० ।।


नरनारीनृपाणां च भवेत् दु:स्वप्ननाशनम् ।।
ऐश्वर्यमतुलं तेषामारोग्यं पुष्टिवर्धनम् ।।११ ।।


ग्रहनक्षत्रजा: पीडातस्कराग्निसमुद्भवा: ।।
ता: सर्वाः प्रशमं यान्ति व्यासो ब्रूते न संशय: ।।१२ ।।

इति श्रीव्यासविरचितं नवग्रहस्तोत्रं संपूर्णम् ।







!!! शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम्. !!!



आशुतोष शशांक शेखर चंद्रमौली चिदंबरा 
कोटि कोटि प्रणाम शंभो कोटि नमन दिगम्बरा 
निर्विकार ओंकार अविनाशी तुम्ही देवाधिदेव 
जगत सर्जक प्रलयकर्ता शिवम सत्यम सुंदरा 
निरंकार स्वरुप कालेश्वर महाजोगिश्वरा 
दयानिधि दानिश्वरा जय जटाधारी अभ्यंकरा 
शूलपाणी त्रिशूल धारी औघडी बाघम्बरी 
जय महेश त्रिलोचनाय विश्वनाथ विश्वम्भरा 
नाथ नागेश्वर हरो हर पाप शाप अभिशाप तम 
महादेव महान भोले सदाशिव शिव शंकरा 
जगतपति अनुरक्ति भक्ति सदैव तेरे चरण हो 
छमा हो अपराध सब जय जयति जय जगदिश्वरा
जन्म जीवन जगत का संताप सब मिटे सभी 
ओम नम: शिवाय मन जपता रहे पंचाकछरा ..................................
अथ शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम्.......

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम:शिवाय ॥ 1 ॥
मंदाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथ महेश्वराय ।
मण्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम:शिवाय ॥ 2 ॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय बृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम:शिवाय ॥ 3 ॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम:शिवाय ॥ 4 ॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम:शिवाय ॥ 5 ॥
पञ्चाक्षरिमदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥ 6 ॥................................
ॐ नमः पार्वती पतये.....हर....हर....महादेव.............