* मधूमेह (डायबिटीज)- 25 ग्राम काले चने रात में भिगोकर प्रातः निहारकर (खाली पेट) सेवन करने से मधूमेह-व्याधि दूर हो जाती है। यदि समान मात्रा में जौ चने की राटी भी दोनों समय खायी जाये तो लाभ शीघ्र होगा।
* पित्ती निकलना- काली मिर्च को चने के बेसन के लड्डू में मिलाकर खाने से पित्ती में लाभ होता है।
* पीलिया- चने की दाल लगभग 100 ग्राम को दो गिलास जल में भिगोकर तत्पश्चात दाल पानी में से निकलाकर 100 ग्राम गुड़ मिलाकर 4-5 दिन तक खायें।
* बिच्छू का विष- चने के क्षार का लेप दंश स्थान पर करने से बिच्छू का बिष का कोप शांत हो जाता है।
* चर्म रोग- चने के आटे की की नमक रहित रोटी 40 से 60 दिनों तक खाने से चर्म सम्बन्धी विकार -दाद, खाज, खूजली आदि नही होते और हो रहे हो तो ठीक हो जाते है। किन्तु इस कल्प से पुर्व विरेचनादि करके शरीर शुद्व कर लेना चाहिये।
* बिच्छू का विष- चने के क्षार का लेप दंश स्थान पर करने से बिच्छू का बिष का कोप शांत हो जाता है।
* चर्म रोग- चने के आटे की की नमक रहित रोटी 40 से 60 दिनों तक खाने से चर्म सम्बन्धी विकार -दाद, खाज, खूजली आदि नही होते और हो रहे हो तो ठीक हो जाते है। किन्तु इस कल्प से पुर्व विरेचनादि करके शरीर शुद्व कर लेना चाहिये।
* सफेद दाग पड़ना- देसी काले चने 25-30 ग्राम लेकर उनमें 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण मिला लें और जल में डुबोकर बारह घंटे तक रख दे। तत्पश्चात 12 घटें को उन्हे किसी साफ कपड़ें में बांधकर रख दें, जिससे वे अंकुरित हो जायें। प्रातः के नाश्ते के रूप में इन्हे खूब चबा चबाकर विभिन्न अंगो पर चकते समाप्त हो जाते है।
* दंत शोध, पित्त ज्वर- चने के कोमल ताजा पत्तों का शाक या भुजिया खाने से ज्वर, पित्त तथा दांतों के शूल में लाभ होता है।
* सिर दर्द- 25 ग्राम पिसी हुई राई में 150 ग्राम चने के आटे तथा चने के क्षार में मिलाकर लेप करने से वात जन्य सिर की पीड़ा शान्त हो जाती है। पीड़ा दूर होते ही लेप हटाकर सिर को धो लेना चाहिये।
* चने में पाये जाने वाले सभी तत्व खून को साफ रखने में मदद करते हैं साथ ही शरीर का गठन(ठोस बनाते हैं) भी करते हैं।
* छिलका निकाला हुआ चना कब्जकारक होता है।