01 December 2012

******* देववाणी संस्कृत भाषा *******



संस्कृत विश्व की सब से प्राचीन भाषा है तथा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। संस्कृत का शाब्दिक अर्थ है परिपूर्ण भाषा। संस्कृत पू्र्णतया वैज्ञायानिक तथा सक्षम भाषा है। संस्कृत भाषा के व्याकरण नें विश्व भर के भाषा विशेषज्ञ्यों का ध्यानाकर्षण किया है तथा उन के मतानुसार भी यह भाषा कम्पयूटर के उपयोग के लिये सर्वोत्तम भाषा है।

मूल ग्रंथ


संस्कृत भाषा की लिपि देवनागरी लिपि है। इस भाषा को ऋषि मुनियों ने मन्त्रों की रचना कि लिये चुना क्योंकि इस भाषा के शब्दों का उच्चारण मस्तिष्क में उचित स्पन्दन उत्पन्न करने के लिये अति प्रभावशाली था। इसी भाषा में वेद प्रगट हुये, तथा उपनिष्दों, रामायण, महाभारत और पुराणों की रचना की गयी। मानव इतिहास में संस्कृत का साहित्य सब से अधिक समृद्ध और सम्पन्न है। 



संस्कृत भाषा में दर्शनशास्त्र, धर्मशास्त्र, विज्ञान, ललित कलायें, कामशास्त्र, संगीतशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, हस्त रेखा ज्ञान, खगोलशास्त्र, रसायनशास्त्र, गणित, युद्ध कला, कूटनिति तथा महाकाव्य, नाट्य शास्त्र आदि सभी विषयों पर मौलिक तथा विस्तरित गृन्थ रचे गये हैं। कोई भी विषय अनछुआ नहीं बचा। पाणनि रचित अष्याध्यायी किसी भी भाषा के शब्दों का शुद्ध ज्ञान व्याकरण शास्त्र कराता है। पाणनि कृत अष्याध्यायी संस्कृत की व्याकरण ईसा से 300 वर्ष पूर्व रची गयी थी। 


स्वयं पाणनि के कथनानुसार अष्टाध्यायी से पूर्व लग भग साठ व्याकरण और भी उपलब्द्ध थे।अष्याध्यायी विश्व की सब से संक्षिप्त किन्तु पूर्ण व्याकरण है। इस में भाषा का विशलेषण कर के शब्द निर्माण के मूल सिद्धान्त दर्शाये गये हैं। अंक गणित की पद्धति का प्रयोग कर के सभी शब्दों की रचना के सिद्धान्त संक्षिप्त में ही सीखे जा सकते हैं। संस्कृत में शब्द निर्माण पूर्णत्या वैज्ञानिक और तर्क संगत है। उदाहरण के लिये सिंहः शब्द हिंसा का प्रतीक है इस लिये हिंसक पशु को सिहं की संज्ञा दी गयी है। इसी प्रकार सम्पूर्ण विवरण स्पष्ट, संक्षिप्त तथा सरल हैं।


भाषा विज्ञान के क्षेत्र में पाणनि रचित अष्याध्यायी निस्संदेह ऐक अमूल्य देन है। अष्टाध्यायी के आठ अध्याय और चार हजार सूत्र हैं जिन में विस्तरित ज्ञान किसी कम्प्रेस्सड कमप्यूटर फाईल की तरह भरा गया है। उन में स्वरों (एलफाबेट्स) का विस्तृत विशलेषण किया गया है। इस का ऐक अन्य आश्चर्यजनक पक्ष यह भी है कि अष्टाध्यायी का मूल रूप लिखित नही था अपितु मौखिक था। उसे समर्ण रखना होता था तथा श्रुति के तौर पर पीढी दर पीढी हस्तांत्रित करना होता था। अभी अष्टाध्यायी के लिखित संस्करण उपलब्द्ध हैं, और व्याख्यायें भी उपलब्द्ध हैं। किन्तु फिर भी शब्दों की मूल उत्पत्ति को स्मर्ण रखना आवश्यक है। संस्कृत व्याकरण के ज्ञान के लिये अष्टाध्याय़ी मुख्य है।


पाणनि के पश्चात कात्यायन तथा पतंजलि जैसे व्याकरण शास्त्रियों ने भी इस ज्ञान को आगे विकसित किया था। उन के अतिरिक्त योगदान से संस्कृत और सुदृढ तथा विकसित हुयी और प्राकाष्ठा तक पहुँच कर बुद्धिजीवियों की सशक्त भाषा रही है


संस्कृत भाषा की वैज्ञ्यानिक्ता प्राचीन काल से ही भारत का भाषा ज्ञान ग्रीक तथा इटली से कहीं अधिक श्रेष्ठ तथा वैज्ञिानिक था। भारत के व्याकरण शास्त्रियों ने योरूपियन भाषा विशेषज्ञ्यों को शब्द ज्ञान का विशलेषण करने की कला सिखायी। यह तब की बात है जब अपने आप को आज के युग में सभी से सभ्य कहने वाले अंग्रेज़ों को तो बोलना भी नहीं आता था। आज से ऐक हजार वर्ष पूर्व वह उधार में पायी स्थानीय अपभ्रंश भाषाओं में ‘योडलिंग’ कर के ऐक दूसरे से सम्पर्क स्थापित किया करते थे। अंग्रेजी साहित्य का इतिहास 1350 से चासर रचित ‘केन्टरबरी टेल्स’ के साथ आरम्भ होता है जिसे ‘फादर आफ इंग्लिश पोयट्री’ कहा जाता है। विश्व की अन्तर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेज़ी के साथ संस्कृत की सीमित तुलना ही कुछ इस प्रकार करें तो संस्कृत की वैज्ञ्यानिक प्रमाणिक्ता के लिये हमें विदेशियों के आगे गिडगिडाने की कोई आवश्क्ता नहीं हैः-


वर्ण-माला - व्याकरण में किसी भी छोटी से छोटी ध्वनि को वर्ण या अक्षर कहते हैं और वर्णों के समूह वर्णमाला। अंग्रेजी में कुल 26 वर्ण (एलफाबेट्स) हैं जिस का अर्थ है कि 26 शुद्ध ध्वनियों को ही लिपिबद्ध किया जा सकता है। यह 26 ध्वनियां भी प्राकृतिक नहीं है जैसे कि ऐफ़, क्यू, डब्लयू, ऐक्सआदि एलफाबेट्स को छोटे बच्चे आसानी से नहीं बोल सकते हैं। इस की तुलना में संस्कृत वर्णमाला में 46 अक्षर हैं जो संख्या में अंग्रेज़ी से लगभग दुगने हैं और प्राकृतिक ध्वनियों पर आधारित हैं।

स्वर और व्यञ्जनों की संख्या - अंग्रेजी और संस्कृत दोनों भाषाओं में अक्षरों को स्वर (कान्सोनेन्ट्स) और व्यञ्जन (वोवल्स) की श्रेणी में बाँटा गया है। स्वर प्राकृतिक ध्वनियाँ होती हैं। व्यञ्जनों का प्रयोग प्राकृतिक ध्वनियों को लम्बा या किसी वाँछित दिशा में घुमाने के लिये किया जाता है जैसे का, की कू चा ची चू आदि। अंग्रेजी भाषा में केवल पाँच वोवल्स हैं जबकि संस्कृत में उन की संख्या 13 है। विश्व की अन्य भाषाओं की तुलना में संस्कृत के स्वर और व्यंजनो की संख्या इतनी है कि सभी प्रकार की आवाजों को वैज्ञानिक तरीके से बोला तथा लिपिबद्ध किया जा सकता है।


सरलता - अंग्रेज़ी भाषा में बहुत सी ध्वनियों को जैसे कि ख, ठ. ढ, क्ष, त्र, ण आदि को वैज्ञ्यानिक तरीके से लिखा ही नहीं जा सकता। अंग्रेज़ी में के ऐ टी – ‘कैट’ लिखना कुछ हद तक तो माना जा सकता है क्यों कि वोवल ‘ऐ’ का उच्चारण भी स्थाई नहीं है और रिवाज के आधार पर ही बदलता रहता है। लेकिन सी ऐ टी – ‘केट’ लिखने का तो कोई वैज्ञ्यानिक औचित्य ही नहीं है। इस के विपरीत देवनागरी लिपि का प्रत्येक अक्षर जिस प्रकार बोला जाता है उसी प्रकार ही लिखा जाता है। अंग्रेज़ी का ‘डब्लयू’ किसी प्राकृतिक आवाज को नहीं दर्शाता, ना ही अन्य अक्षर ‘व्ही’ से कोई प्रयोगात्मिक अन्तर को दर्शाता है। दोनो अक्षरों के प्रयोग और उच्चारण का आधार केवल परम्परायें हैं, वैज्ञ्यानिक नहीं। अतः सीखने में संस्कृत अंग्रेज़ी से कहीं अधिक सरल भाषा है।


उच्चारण – कहा जाता है अरबी भाषा को कंठ से और अंग्रेजी को केवल होंठों से ही बोला जाता है किन्तु संस्कृत में वर्णमाला को स्वरों की आवाज के आधार पर कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अन्तःस्थ और ऊष्म वर्गों में बाँटा गया है। फिर शरीर के उच्चारण अंगों के हिसाब से भी दन्तर (ऊपर नीचे के दाँतों से बोला जाने वाला), तलबर (जिव्हा से), मुखोपोत्दर (ओष्ट गोल कर के), कंठर ( गले से) बोले जाने वाले वर्गों में वर्गीकृत किया गया है। अंग्रेजी में इस प्रकार का कोई विशलेशण नहीं है सब कुछ रिवाजानुसार है।

यह संस्कृत भाषा की अंग्रेज़ी भाषा की तुलना में सक्ष्मता का केवल संक्षिप्त उदाहरण है। 1100 ईसवी तक संस्कृत समस्त भारत की राजभाषा के रूप सें जोडने की प्रमुख कडी थी।



गोंद के औषधीय गुण -------



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किसी पेड़ के तने को चीरा लगाने पर उसमे से जो स्त्राव निकलता है वह सूखने पर भूरा और कडा हो जाता है उसे गोंद कहते है .यह शीतल और पौष्टिक होता है . उसमे उस पेड़ के ही औषधीय गुण भी होते है . 


आयुर्वेदिक दवाइयों में गोली या वटी बनाने के लिए भी पावडर की बाइंडिंग के लिए गोंद का इस्तेमाल होता है .

- कीकर या बबूल का गोंद पौष्टिक होता है .

- नीम का गोंद रक्त की गति बढ़ाने वाला, स्फूर्तिदायक पदार्थ है।इसे ईस्ट इंडिया गम भी कहते है . इसमें भी नीम के औषधीय गुण होते है 

- पलाश के गोंद से हड्डियां मज़बूत होती है .पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं और शरीर पुष्ट होता है।यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है।

- आम की गोंद स्तंभक एवं रक्त प्रसादक है। इस गोंद को गरम करके फोड़ों पर लगाने से पीब पककर बह जाती है और आसानी से भर जाता है। आम की गोंद को नीबू के रस में मिलाकर चर्म रोग पर लेप किया जाता है।

- सेमल का गोंद मोचरस कहलाता है, यह पित्त का शमन करता है।अतिसार में मोचरस चूर्ण एक से तीन ग्राम को दही के साथ प्रयोग करते हैं। श्वेतप्रदर में इसका चूर्ण समान भाग चीनी मिलाकर प्रयोग करना लाभकारी होता है। दंत मंजन में मोचरस का प्रयोग किया जाता है।

- बारिश के मौसम के बाद कबीट के पेड़ से गोंद निकलती है जो गुणवत्ता में बबूल की गोंद के समकक्ष होती है।

- हिंग भी एक गोंद है जो फेरूला कुल (अम्बेलीफेरी, दूसरा नाम एपिएसी) के तीन पौधों की जड़ों से निकलने वाला यह सुगंधित गोंद रेज़िननुमा होता है । फेरूला कुल में ही गाजर भी आती है । हींग दो किस्म की होती है 

- एक पानी में घुलनशील होती है जबकि दूसरी तेल में । किसान पौधे के आसपास की मिट्टी हटाकर उसकी मोटी गाजरनुमा जड़ के ऊपरी हिस्से में एक चीरा लगा देते हैं । इस चीरे लगे स्थान से अगले करीब तीन महीनों तक एक दूधिया रेज़िन निकलता रहता है । इस अवधि में लगभग एक किलोग्राम रेज़िन निकलता है । हवा के संपर्क में आकर यह सख्त हो जाता है कत्थई पड़ने लगता है ।यदि सिंचाई की नाली में हींग की एक थैली रख दें, तो खेतों में सब्ज़ियों की वृद्धि अच्छी होती है और वे संक्रमण मुक्त रहती है । पानी में हींग मिलाने से इल्लियों का सफाया हो जाता है और इससे पौधों की वृद्धि बढ़िया होती है

- गुग्गुल एक बहुवर्षी झाड़ीनुमा वृक्ष है जिसके तने व शाखाओं से गोंद निकलता है, जो सगंध, गाढ़ा तथा अनेक वर्ण वाला होता है. यह जोड़ों के दर्द के निवारण और धुप अगरबत्ती आदि में इस्तेमाल होता है .

- प्रपोलीश- यह पौधों द्धारा श्रावित गोंद है जो मधुमक्खियॉं पौधों से इकट्ठा करती है इसका उपयोग डेन्डानसैम्बू बनाने में तथा पराबैंगनी किरणों से बचने के रूप में किया जाता है।

- ग्वार फली के बीज में ग्लैक्टोमेनन नामक गोंद होता है .ग्वार से प्राप्त गम का उपयोग दूध से बने पदार्थों जैसे आइसक्रीम , पनीर आदि में किया जाता है। इसके साथ ही अन्य कई व्यंजनों में भी इसका प्रयोग किया जाता है.ग्वार के बीजों से बनाया जाने वाला पेस्ट भोजन, औषधीय उपयोग के साथ ही अनेक उद्योगों में भी काम आता है।

- इसके अलावा सहजन , बेर , पीपल , अर्जुन आदि पेड़ों के गोंद में उसके औषधीय गुण मौजूद होते है .

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11 दिसंबर से होंगे 5 ग्रह एक राशि में, जानिए इसका असर



‎11 दिसंबर से होंगे 5 ग्रह एक राशि में, जानिए इसका असर

2012 में दिसंबर माह ज्योतिष की नजर से बहुत ही खास है। इस माह को लेकर कई प्रकार की भविष्यवाणियां काफी समय से की जा रही हैं। इस माह में 11 दिसंबर से 14 दिसंबर तक पांच-पांच ग्रह एक साथ एक राशि में स्थित होंगे। यहां जानिए योग के क्या-क्या प्रभाव होंगे-

इस दिसंबर में पांच शनिवार, पांच रविवार एवं पांच सोमवार का योग भी बन रहा है। इस योग के साथ ही दिसंबर में पंचग्रही योग भी बनेगा। यह पंचग्रही योग 11 दिसंबर की रात से 14 दिसंबर की सुबह तक ही रहेगा। इस योग में सूर्य, बुध, शुक्र, राहु एवं चंद्रमा एक साथ वृश्चिक राशि में रहेंगे।
वृश्चिक राशि मंगल के स्वामित्व वाली राशि है। मंगल ग्रह शुक्र एवं राहु से शत्रुता रखता है एवं बुध से सम भाव रखता है। सूर्य ग्रह और मंगल मित्र हैं। सूर्य के साथ होने से अन्य ग्रहों को प्रभाव कम रहेगा एवं गुरु की पूर्ण दृष्टि वृश्चिक पर रहेगी। शनि उच्च का होने से यह समय उन लोगों के लिए कष्ट का कारण बनेगा जो उग्र एवं दुष्ट स्वभाव के हैं।

राजनीति के स्तर में गिरावट आएगी एवं गुजरात चुनाव में पुन: सत्तासीनों की वापसी होगी, ऐसे योग बन रहे हैं। किसी बड़े नेता की हानि भी हो सकती है। देश में सरकार के प्रति विरोध का भाव रहेगा। आंदोलन भी हो सकते हैं। पांच शनिवार के साथ पांच रविवार एवं सोमवार सभी को चिंतित रखेंगे।

काफी समय से ऐसी भविष्यवाणियां की जा रही हैं कि दिसंबर माह में पृथ्वी का विनाश हो जाएगा। पृथ्वी के विनाश के किसी भी प्रकार के कोई योग नहीं बन रहे हैं। 21 दिसंबर 2012 को मंगल उच्च का रहेगा एवं सूर्य मित्र राशि धनु में एवं शनि उच्च का तुला में रहेगा। अत: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विश्व का नाश हो जाए ऐसे कोई योग नही बन रहे हैं।

यह समय शिक्षक वर्ग, बुद्धिजीवी, कलाकार वर्ग हेतु उत्साह को बढ़ाने वाला होगा। गुरु की आज्ञा का पालन करने वाले एवं माता दुर्गा का पूजन या माता-पिता की सेवा करने वाले, शिव, विष्णु, हनुमान, गणेश के उपासकों को किसी भी प्रकार का कोई भय नहीं रहेगा।

मौसम पर भी इस ग्रह योग का असर बना रहेगा दक्षिण के देशों में भूकंपन के आसार हैं एवं अन्य प्राकृतिक आपदाएं भी आ सकती हैं। हालांकि पंचग्रही योग ज्यादा समय नहीं रहेगा। इसके पश्चात चर्तुग्रही योग भी दो दिनों में समाप्त हो जाएगा।

माह की शुरुआत शनिवार से होगी एवं अंत सोमवार से होगा यह दोनो ही पूरे माह पांच-पांच बार आएंगे। ठंड का प्रकोप अधिक रहेगा। फसलों को नुकसान होने की भी संभावनाएं है किंतु यह छोटे पैमाने पर होगा। भौतिक सुखों को प्राप्त करने हेतु ज्यादा व्यय करना होगा। व्यापारियों को लाभ होगा।

इस माह में गुरु-शुक्र का सम सप्तक योग भी बनेगा। जो शासन करने वालों के लिए चिंता जनक होगा। किसी भी प्रकार का गलत कदम उनके लिए ठीक नहीं होगा। यह माह दुराचारियों, अत्याचारियों, दूसरों को परेशान करने वाले, दूसरों का हक मारने वाले एवं आतंकवादियों के लिए उनके कर्मों का फल प्रदान करने वाला होगा।



!!! गो सेवा के चमत्कार !!!



अनादिकाल से मानवजाति गोमाता की सेवा कर अपने जीवन को सुखी, सम्रद्ध, निरोग, ऐश्वर्यवान एवं सौभाग्यशाली बनाती चली आ रही है. गोमाता की सेवा के माहात्म्य से शास्त्र भरे पड़े है. आईये शास्त्रों की गो महिमा की कुछ झलकिय देखे -

गौ को घास खिलाना कितना पुण्यदायी
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तीर्थ स्थानों में जाकर स्नान दान से जो पुन्य प्राप्त होता है, ब्राह्मणों को भोजन कराने से जिस पुन्य की प्राप्ति होती है, सम्पूर्ण व्रत-उपवास, तपस्या, महादान तथा हरी की आराधना करने पर जो पुन्य प्राप्त होता है, सम्पूर्ण प्रथ्वी की परिक्रमा, सम्पूर्ण वेदों के पढने तथा समस्त यज्ञो के करने से मनुष्य जिस पुन्य को पाता है, वही पुन्य बुद्धिमान पुरुष गौओ को खिलाकर पा लेता है.

गौ सेवा से वरदान की प्राप्ति
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जो पुरुष गौओ की सेवा और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है, उस पर संतुष्ट होकर गौए उसे अत्यंत दुर्लभ वर प्रदान करती है.

गौ सेवा से मनोकामनाओ की पूर्ती
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गौ की सेवा याने गाय को चारा डालना, पानी पिलाना, गाय की पीठ सहलाना, रोगी गाय का ईलाज करवाना आदि करनेवाले मनुष्य पुत्र, धन, विद्या, सुख आदि जिस-जिस वस्तु की ईच्छा करता है, वे सब उसे प्राप्त हो जाती है, उसके लिए कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं होती.

भगवान् शिव कहते है-हे पार्वती! सम्पूर्ण गौए जगत में श्रेष्ठ है. वे लोगो को जीविका देने के कार्य में प्रवृत हुई है. वे मेरे अधीन है और चन्द्रमा के अमृतमय द्रव से प्रकट हुई है. वे सौम्य, पुन्मयी, कामनाओं की पूर्ती करने वाली तथा प्राणदायिनी है. इसलिए पुन्य प्राप्ति की इच्छा वालो को सदैव गायो की पूजा, सेवा (घास आदि खिलाना , पानी पिलाना, रोगी गाय का ईलाज कराना आदि-आदि) करनी चाहिए.

भूमि दोष समाप्त होते है
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गौओ का समुदाय जहा बैठकर निर्भयतापूर्वक साँस लेता है, उस स्थान की शोभा को बाधा देता है और वह के सारे पापो को खीच लेता है.

सबसे बड़ा तीर्थ गौ सेवा
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देवराज इंद्र कहते है- गौओ में सभी तीर्थ निवास करते है. जो मनुष्य गाय की पीठ छोटा है और उसकी पूछ को नमस्कार करता है वह मानो तीर्थो में तीन दिनों तक उपवास पूर्वक रहकर स्नान कर देता है.

असार संसार छेह सार पदार्थ
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भवान विष्णु, एकादशी व्रत, गंगानदी, तुलसी, ब्रह्मण और गौए - ये ६ इस दुर्गम असार संसार से मुक्ति दिलाने वाले है.

मंगल होगा
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जिसके घर बछड़े सहित एक भी गाय होती है, उसके समस्त पाप्नाष्ट हो जाते है और उसका मंगल होता है. जिसके घर में एक भी गौ दूध देने वाले न हो उसका मंगल कैसे हो सकता है और उसके अमंगल का नाश कैसे हो सकता है.

ऐसा न करे
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गौओ, ब्राह्मणों तथा रोगियों को जब कुछ दिया जाता है उस समय जो न देने की सलाह देते है. वे मरकर प्रेत बनते है.

गोपूजा - विष्णुपूजा
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भगवान् विष्णु देवराज इन्द्र से कहते है के हे देवराज! जो मनुष्य अश्वत्थ वृक्ष, गोरोचन और गौ की सदा पूजा सेवा करता है, उसके द्वारा देवताओं, असुरो और मनुष्यों सहित सम्पूर्ण जगत की भी पूजा हो जाते है. उस रूप में उसके द्वारा की हुई पूजा को मई यथार्थ रूप से अपनी पूजा मानकर ग्रहण करता हूँ.

गोधूली महान पापो की नाशक है.
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गायो के खुरो से उठी हुई धूलि, धान्यो की धूलि तथा पुट के शरीर में लगी धूलि अत्यंत पवित्र एवं महापापो का नाश करने वाले है.

चारो सामान है
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नित्य भागवत का पाठ करना, भगवान् का चिंतन, तुलसी को सीचना और गौ की सेवा करना ये चारो सामान है

गो सेवा के चमत्कार
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गौओ के दर्शन, पूजन, नमस्कार, परिक्रमा, गाय को सहलाने, गोग्रास देने तथा जल पिलाने आदि सेवा के द्वारा मनुष्य दुर्लभ सिधिया प्राप्त होती है.
गो सेवा से मनुष्य की मनोकामनाए जल्द ही पूरी हो जाती है.
गाय के शरीर में सभी देवी-देवता, ऋषि मुनि, गंगा आदि सभी नदिया तथा तीर्थ निवास करते है. इसीलिये गोसेवा से सभी की सेवा का फल मिल जाता है.
गे को प्रणाम करने से - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारो की प्राप्ति होती है. अतः सुख की इच्छा रखने वाले बुद्धिमान पुरुष को गायो को निरंतर प्रणाम करना चाहिए.
ऋषियों ने सर्वश्रेष्ठ और सर्वप्रथम किया जाने वाला धर्म गोसेवा को ही बताया है.
प्रातःकाल सर्वप्रथम गाय का दर्शन करने से जेवण उन्नत होता है.
यात्रा पर जाने से पहले गाय का दर्शन करके जाने से यात्रा मंगलमय होती है.
जिस स्थान पर गाये रहती है, उससे काफी दूरतक का वातावरण शुद्ध एवं पवित्र हो है, अतः गोपालन करना चाहिए.
भगवान् विष्णु भी गोसेवा से सर्वाधिक प्रसन्न होते है, गोसेवा करनेवाले कोअनायास ही गोलोक की प्राप्ति हो जाती है.
प्रातःकाल स्नान के पश्चात अर्व्प्रथम गाय का स्पर्श करने से पाप नष्ट होते है.

गोदुग्ध - धरती का अमृत
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गाय का दूश धरती का अमृत है. विश्व में गोद्म्ग्ध के सामान पौष्टिक आहार दूसरा कोई नहीं है. गाय के दूध को पूर्ण आहार माना गया है. यह रोगनिवारक भी है. गाय के दूध का कोई विकल्प नहीं है. यह एक दिव्य पदार्थ है.
वैसे भी गाय के दूध का सेवन करना गोमाता की महान सेवा करना ही है. क्योकि इससे गोपालन को बढ़ावा मिलता है और अप्रत्यक्ष रूप से गाय की रक्षा ही होती है. गाय के दूध का सेवन कर गोमाता की रक्षा में योगदान तो सभी दे ही सकते है.
पंचगव्य
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गाय के दूध, दही, घी, गोबर रस, गो-मूत्र का एक निश्चित अनुपात में मिश्रण पंचगव्य कहलाता है. पंचगव्य का सेवन करने से मनुष्य के समस्त पाप उसी प्रकार भस्म हो जाते है, जैसे जलती आग से लकड़ी भस्म हो जाते है.
मानव शरीर ऐसा कोई रोग नहीं है, जिसका पंचगव्य से उपचार नहीं हो सकता. पंचगव्य से पापजनित रोग भी नष्ट हो जाते है.

यदि गो-दुग्ध सेवन के प्रचार को अधिक महत्त्व दिया जाय तो गोवध तो अपने आप ही धीरे-धीरे बंद हो जायगा.

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महत्वपूर्ण जानकारी


हिन्दू धर्मं के पवित्र ग्रन्थ जैसे रामायण
और महाभारत में विमानों का वर्णन
मिलता है ! कई हिन्दू विरोधी इस तथ्य भले
ही हास्यात्मक बनाये पर सत्य ये है

क़ि विमान शास्त्र में बहुत ही गूढ़ रहष्य छिपा है ये तो NASA वैज्ञानिक ही जानते है जिन्होंने MYSORE , कर्नाटक से विमान शास्त्र का वर्णन लिया है और उस
पर अनुसंधान कर रहे है ! महर्षि भरद्वाज द्वारा लिखा गया विमनाशास्त्र में "शकुन विमान " का वर्णन मिलता है !

जिसको श्री G.R.JOSYER ने 1979 में विस्तृत रूप से बताया और वर्णन भी किया जिसका फोटो निचे है !
श्री G. R JOSYER जो की Director of the International Academy of Sanskrit Investigation , Mysore थे !

उनका एक संग्राहलय है ! निचे लिंक पर देखें

इनके और कई भारतीय वैज्ञानिकों के
अनुसंधान को D. Hatcher Childress
द्वारा प्रकाशित किये गए ! ये एक अमेरिकन
प्रकाशक और लेखक है जिन्होंने विमान
शास्त्र के ऊपर लिखे गए लेख और
अनुशंधान को प्रकाशित किया है !
इन्टरनेट पर उनकी links भी मौजूद है जिसमे
भारतीय बैज्ञानिकों द्वारा किये गए
अनुसंधान का वर्णन दिया है !
जिसका स्त्रोत source: Technology of
the Gods - The Incredible
Sciences of the Ancients नामक
किताब से लिया है !


मित्रों , एक बात गौर करने की है कि हमारे
शास्त्र, रामायण और महाभारत अभी भी कई
ऐसे रहष्य छिपे हुए है जिनको हम पहचान
नहीं पा रहे है ! और दुसरे लोग इसे पहचान
कर इसका उपयोग भी कर रहे है ये बात
किसी से छिपी नहीं और facebook के
माध्यम से भी हमने कई मित्रों प्रयासों से
अपने धर्मं कि वैज्ञानिकता को जाना है !

मै आगे इसकी और जानकारी देता रहूँगा !
उम्मीद है आप इसे अपने लोगों तक जरूर
पहुंचाएंगे !

जयतु संस्कृतं ! जयतु भारतं
चाणक्य का अखंड भारत 

Viman shashtra……… 

Sabut Mahabharat ka


""श्री श्री 108 "" क्यों ???


हमारे हिन्दू धर्म के किसी भी शुभ कार्य, पूजा , अथवा अध्यात्मिक व्यक्ति के नाम के पूर्व ""श्री श्री 108 "" लगाया जाता है...!

लेकिन क्या सच में आप जानते हैं कि.... हमारे हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड में 108 अंक का क्या महत्व है....?????
दरअसल.... वेदान्त में एक ""मात्रकविहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 "" का
उल्लेख मिलता है.... जिसका अविष्कार हजारों वर्षों पूर्व हमारे
ऋषि-मुनियों (वैज्ञानिकों) ने किया था l

आपको समझाने में सुविधा के लिए मैं मान लेता हूँ कि............ 108 = ॐ (जो पूर्णता का द्योतक है).

अब आप देखें .........प्रकृति में 108 की विविध अभिव्यंजना किस प्रकार की है :

1. सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी/सूर्य का व्यास = 108 = 1 ॐ

150,000,000 km/1,391,000 km = 108 (पृथ्वी और सूर्य के बीच 108 सूर्य सजाये जा सकते हैं)

2. सूर्य का व्यास/ पृथ्वी का व्यास = 108 = 1 ॐ

1,391,000 km/12,742 km = 108 = 1 ॐ
सूर्य के व्यास पर 108 पृथ्वियां सजाई सा सकती हैं .

3. पृथ्वी और चन्द्र के बीच की दूरी/चन्द्र का व्यास = 108 = 1 ॐ
384403 km/3474.20 km = 108 = 1 ॐ
पृथ्वी और चन्द्र के बीच 108 चन्द्रमा आ सकते हैं .

4. मनुष्य की उम्र 108 वर्षों (1ॐ वर्ष) में पूर्णता प्राप्त करती है .

क्योंकि... वैदिक ज्योतिष के अनुसार.... मनुष्य को अपने जीवन काल में
विभिन्न ग्रहों की 108 वर्षों की अष्टोत्तरी महादशा से गुजरना पड़ता है .

5. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति 200 ॐ श्वास लेकर एक दिन पूरा करता है .

1 मिनट में 15 श्वास >> 12 घंटों में 10800 श्वास >> दिनभर में 100 ॐ श्वास, वैसे ही रातभर में 100 ॐ श्वास

6. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति एक मुहुर्त में 4 ॐ ह्रदय की धड़कन पूरी करता है .

1 मिनट में 72 धड़कन >> 6 मिनट में 432 धडकनें >> 1 मुहूर्त में 4 ॐ धडकनें ( 6 मिनट = 1 मुहूर्त)

7. सभी 9 ग्रह (वैदिक ज्योतिष में परिभाषित) भचक्र एक चक्र पूरा करते समय 12 राशियों से होकर गुजरते हैं और 12 x 9 = 108 = 1 ॐ


8. सभी 9 ग्रह भचक्र का एक चक्कर पूरा करते समय 27 नक्षत्रों को पार करते
हैं... और, प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 27 x 4 = 108 = 1 ॐ

9. एक सौर दिन 200 ॐ विपल समय में पूरा होता है. (1 विपल = 2.5 सेकेण्ड)

1 सौर दिन (24 घंटे) = 1 अहोरात्र = 60 घटी = 3600 पल = 21600 विपल = 200 x 108 = 200 ॐ विपल

@@@@ उसी तरह ..... 108 का आध्यात्मिक अर्थ भी काफी गूढ़ है..... और,

1 ..... सूचित करता है ब्रह्म की अद्वितीयता/एकत्व/पूर्णता को

0 ......... सूचित करता है वह शून्य की अवस्था को जो विश्व की अनुपस्थिति में उत्पन्न हुई होती

8 ......... सूचित करता है उस विश्व की अनंतता को जिसका अविर्भाव उस शून्य में ब्रह्म की अनंत अभिव्यक्तियों से हुआ है .
अतः ब्रह्म, शून्यता और अनंत विश्व के संयोग को ही 108 द्वारा सूचित किया गया है .


इस तरह हम कह सकते हैं कि.....जिस प्रकार ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यंजना
प्रणव ( अ + उ + म् ) है...... और, नादीय अभिव्यंजना ॐ की ध्वनि है.....
ठीक उसी उसी प्रकार ब्रह्म की ""गाणितिक अभिव्यंजना 108 "" है.


जय महाकाल...!!!


अंग्रेजी शासनकाल मेँ चलते थे ये सिक्के और आज ??



सन् 1818 ई. मेँ प्रचलित श्री हनुमान जी के अंकित चित्र वाला सिक्का, पुरातत्व विभाग के मुताबिक ऐसे आज तीन सिक्के ही उपलब्ध हैँ, जिनकी अंतराष्ट्रीय कीमत लाखोँ मेँ है,



These coins and English reign men go today??
.
In 1818 ad men marry a coin face pictures uncovered Mr., according to archaeology are available only three coins, such as today that international price lakhon men, share.



******* हर हिंदू के पांच नित्य कर्तव्य *******










पंच नित्य कर्म..........
हिन्दू धर्म में 'पंच नित्य कर्म' का उल्लेख मिलता है जिन्हें 'हर हिंदू के पांच नित्य कर्तव्य' कहा जाता है। उक्त पंच कर्म की उपयोगिता वैदिक काल से बनी हुई है। इस पंच नित्य कर्म का सभी धर्म पालन करते हैं। कर्तव्यों का विशद विवेचन धर्मसूत्रों तथा स्मृतिग्रंथों में मिलता है। ये पांच कर्म है-1.संध्योपासन, 2.उत्सव, 3.तीर्थ, 4.संस्कार और 5.धर्म।

(1) संध्योपासन- संध्योपासन अर्थात संध्या वंदन। मुख्य संधि पांच वक्त की होती है जिसमें से प्रात: और संध्या की संधि का महत्व ज्यादा है। संध्या वंदन को छोड़कर जो मनमानी पूजा-आरती आदि करते हैं उनका कोई धार्मिक महत्व नहीं। संध्या वंदन प्रतिदिन करना जरूरी है। संध्या वंदन के दो तरीके- प्रार्थना और ध्यान।

संध्या वंदन के लाभ : प्रतिदिन संध्या वंदन करने से जहां हमारे भीतर की नकारात्मकता का निकास होता है वहीं हमारे जीवन में सदा शुभ और लाभ होता रहता है। इससे जीवन में किसी प्रकार का भी दुख और दर्द नहीं रहता।

(2) उत्सव- उन त्योहार, पर्व या उत्सव को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख धर्मग्रंथों में मिलता है। मनमाने त्योहारों को मनाने से धर्म की हानी होती है। संक्रांतियों को मनाने का महत्व ही ज्यादा है। एकादशी पर उपवास करना और साथ ही त्योहारों के दौरान मंदिर जाना भी उत्सव के अंतर्गत ही है।

उत्सव का लाभ : उत्सव से संस्कार, एकता और उत्साह का विकास होता है। पारिवारिक और सामाजिक एकता के लिए उत्सव जरूरी है। पवित्र दिन और उत्सवों में बच्चों के शामिल होने से उनमें संस्कार का निर्माण होता है वहीं उनके जीवन में उत्साह बढ़ता है। जीवन के महत्वपूर्ण अवसरों, एकादशी व्रतों की पूर्ति तथा सूर्य संक्रांतियों के दिनों में उत्सव मनाया जाना चाहिए।

(3) तीर्थ- तीर्थ और तीर्थयात्रा का बहुत पुण्य है। कौन-सा है एक मात्र तीर्थ? तीर्थाटन का समय क्या है? ‍जो मनमाने तीर्थ और तीर्थ पर जाने के समय हैं उनकी यात्रा का सनातन धर्म से कोई संबंध नहीं। अयोध्‍या, काशी, मथुरा, चार धाम और कैलाश में कैलाश की महिमा ही अधिक है।

लाभ : तीर्थ से ही वैराग्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। तीर्थ से विचार और अनुभवों को विस्तार मिलता है। तीर्थ यात्रा से जीवन को समझने में लाभ मिलता है। बच्चों को पवित्र स्थलों एवं मंदिरों की तीर्थ यात्रा का महत्व बताना चाहिए।

(4) संस्कार- संस्कारों के प्रमुख प्रकार सोलह बताए गए हैं जिनका पालन करना हर हिंदू का कर्तव्य है। इन संस्कारों के नाम है-गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, मुंडन, कर्णवेधन, विद्यारंभ, उपनयन, वेदारंभ, केशांत, सम्वर्तन, विवाह और अंत्येष्टि। प्रत्येक हिन्दू को उक्त संस्कार को अच्छे से नियमपूर्वक करना चाहिए। यह हमारे सभ्य और हिन्दू होने की निशानी है।

लाभ : संस्कार हमें सभ्य बनाते हैं। संस्कारों से ही हमारी पहचान है। संस्कार से जीवन में पवित्रता, सुख, शांति और समृद्धि का विकास होता है। संस्कार विरूद्ध कर्म करना जंगली मानव की निशानी है।

(5) धर्म- धर्म का अर्थ यह कि हम ऐसा कार्य करें जिससे हमारे मन और मस्तिष्क को शांति मिले और हम मोक्ष का द्वार खोल पाएं। ऐसा कार्य जिससे परिवार, समाज, राष्ट्र और स्वयं को लाभ मिले। धर्म को पांच तरीके से साधा जा सकता है- 1.व्रत, 2.सेवा, 3.दान, 4.यज्ञ और 5.धर्म प्रचार।

यज्ञ के अंतर्गत वेदाध्ययन आता है जिसके अंतर्गत छह शिक्षा (वेदांग, सांख्य, योग, निरुक्त, व्याकरण और छंद), और छह दर्शन (न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, सांख्य, वेदांत और योग) को जानने से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

लाभ - व्रत से मन और मस्तिष्क जहां सुदृढ़ बनता है वहीं शरीर स्वस्थ और बनवान बना रहता है। दान से पुण्य मिलता है और व्यर्थ की आसक्ति हटती है जिससे मृत्युकाल में लाभ मिलता है। सेवा से मन को जहां शांति मिलती है वहीं धर्म की सेवा भी होती है। सेवा का कार्य ही धर्म है। यज्ञ है हमारे कर्तव्य जिससे ऋषि ऋण, ‍‍देव ऋण, पितृ ऋण, धर्म ऋण, प्रकृति ऋण और मातृ ऋण समाप्त होता है।



ग्रहों के अनुसार तेल मालिश----------


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- वाग्भट के अनुसार तेल मालिश से नसों में अवरुद्ध वायु हट जाती है और सभी दर्द और विकार दूर होते है .
- आयुर्वेद के अनुसार सरसों की तेल मालिश करने से अनेक प्रकार की बीमारियां शांत हो जाती है.महाऋषि चरक ने तो तेल में घृत से 8 गुणा ज्यादा शक्ति को माना है. यदि प्रतिदिन नियम से तेल मालिश की जाए तो सिरदर्द, बालों का झड़ना, खुजली दाद, फोड़े फुंसी एवं एग्ज़िमा आदि बीमारियां कभी नहीं होती है.

- तेल मालिश त्वचा को कोमल, नसों को स्फूर्ति युक्त और रक्त को
गतिशील बनाती है. प्रात: काल नियमपूर्वक यदि मालिश की जाए तो व्यक्ति रोगमुक्त एवं दीर्घजीवी बनता है.

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए वायु की प्रमुख आवश्यकता है. वायु का ग्रहण त्वचा पर निर्भर है और त्वचा का मालिश पर.

- सूर्योदय के समय वायु में प्राण शक्ति और चन्द्रमा द्वारा अमृत का अंश भी सम्मिश्रित होता है. परन्तु रवि, मंगल, गुरु शुक्र को मालिश नहीं करनी चाहिए. हमारे शास्त्रों के अनुसार रविवार को मालिश करने से ताप (गर्मी सम्बन्धी रोग), मंगल को मृत्यु, गुरु को हानि, शुक्र को दुःख होता है

- सोमवार को तेल मालिश करने से शारीरिक सौंदर्य बढ़ता है. बुध को धन में वृद्धि होती है. शनिवार को धन प्राप्ति एवं सुखों की वृद्धि होती है.

- कई बार जब बीमारियाँ ठीक ना हो रही हो या जब कर्म के हिसाब से फल कम या नहीं मिलता तो इंसान सोचने को बाध्य हो जाता है . तब उसका जिज्ञासु मन ज्योतिषी के पास पहुंचता है और कुंडली बनवाने से पता चलता है की कौनसा गृह कमज़ोर है या अशुभ है . ये एक संकेत है हमारे संचित संस्कारों का . इसके लिए एक उपाय यह भी कर सकते है की उस गृह को सशक्त करने वाले तेल से मालिश की जाए .

- ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सरसों का तेल शनि का कारक है. शनि के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए सोमवार, बुधवार एवं शनिवार को सरसों के तेल की मालिश कर स्नान करने से शनि के अशुभ प्रभाव से हमारी रक्षा होती है. हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है

- सूर्य की अनिष्टता दूर करने के लिए तेल - सूरज मुखी और तिल का तेल आधा आधा लीटर ले कर उसमे ५ ग्राम लौंग का तेल और १० ग्राम केसर मिलाये .इसे सात दिन सूर्य प्रकाश में रखे .

- चन्द्रमा के लिए तेल - एक लीटर सफ़ेद तिल का तेल , 100 ग्राम चन्दन का तेल और ५० ग्राम कपूर डाले . इसे सात दिन चन्द्रमा के प्रकाश में रखे . इसे लगाने से पेट के रोग , सर के रोग और चन्द्रमा की अनिष्टता दूर होती है .

- मंगल का तेल बनाना थोड़ा मुश्किल है . इसलिए इसे किसी कुशल जानकार से बनवाये . इसे लगाने से रक्त विकार ,मिर्गी के दौरे और मंगल दोष दूर होते है .

- बुध का तेल - एक लीटर तिल के तेल में ब्राम्ही और खस डालकर उबाल ले . छान कर ठंडा होने पर उसमे ५ ग्राम लौंग का तेल डाले . इसे हरे रंग की कांच की बोतल में अँधेरी जगह में सात दिन रखे .यह त्वचा विकारों में लाभकारी है .

- बृहस्पति का तेल - एक लीटर नारियल तेल में ५ ग्राम हल्दी और ५ ग्राम खस डाल कर उबाल कर छान ले . ठंडा होने पर दस ग्राम चन्दन का तेल डाले और हरी बोतल में भर कर रखे . नहाने से पहले १० ग्राम चन्दन का तेल और दो बूँद निम्बू का रस मिला कर लगाए . इससे दमा दूर होता है और चेहरे पर रौनक आती है .

शुक्र का तेल - आधा आधा लीटर नारियल और तिल का तेल ले . ५ ग्राम चन्दन और 2 ग्राम चमेली का तेल मिला कर कांच की बोतल में 3 दिन धुप में रखे .

शनि के लिए तेल - एक लीटर तिल के तेल में भृंगराज , जायफल , केसर या कस्तूरी ५ -५ ग्राम पानी में भिगोकर पिस ले .इसे तिल के तेल में उबाल ले . छान कर ठंडा होने पर ५ ग्राम लौंग का तेल मिलाये .इसे सात दिन कांच की बोतल में अँधेरे में रखे . इसे लगाने से वात के रोग , हड्डियों के रोग दूर होते है . बाल भी काले रहते है .

राहू का तेल - इसे बनाने की विधि शनि के तेल की तरह ही है . सिर्फ इसे उंचाई पर सात दिन के लिए पश्चिम दिशा में रखे .

- केतु का तेल -एक लीटर तिल या सरसों के तेल में लोध मिला कर उबाले . ठंडा होने पर ५ ग्राम लौंग का तेल मिलाये . फिर काले रंग की बोतल में मकान के पश्चिम दिशा में उंचाई पर रखे . इसे लगाने से केतु के दुष्प्रभाव दूर होते है .

___________________@भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है|



आक , आकडा , मदार का चमत्कार

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 इसे हम शिवजी को चढाते है ; अर्थात ये ज़हरीला होता है . इसलिए इसे निश्चित मात्रा में वैद्य की देख रेख में लेना चाहिए .पर कुछ आसान प्रयोग आप कर सकते है -

_ अगर किसी को चलती गाडी में उलटी आती हो ( motion sickness ) तो यात्रा पर निकलते समय जो स्वर चल रहा हो अर्थात जिस तरफ की श्वास ज़्यादा चल रही हो उस पैर के नीचे आक के पत्ते रखे . यात्रा के दौरान कोई तकलीफ नहीं होगी .
_ आक के पीले पड़े पत्तों को घी में गर्म कर उसका रस कान में डालने से कान का दर्
द ठीक होता है .

_ आक का दूध कभी भी सीधे आँखों पर नहीं लगाना चाहिए . अगर दाई आँख दुःख रही हो तो बाए पैर के नाख़ून और बाई आँख दुःख रही हो तो दाए पैर के नाखूनों को आक के दूध से तर कर दे .
_ रुई को आक के दूध और थोड़े से घी में भिगोकर दांत में रखने से दांतों का दर्द ठीक हो जाता है .
 हिलते हुए दांत पर आक का दूध लगाकर आसानी से निकाला जा सकता है .
 पीले पड़े आक के पत्तों के रस का नस्य लेने से आधा शीशी में लाभ होता है .
_ आक की कोपल को सुबह खाली पेट पान के पत्ते में रख चबा कर खाने से ३ से 5 दिनों में पीलिया ठीक हो जाता है .
_ सफ़ेद आक की छाया में सुखी जड़ को पीस कर १-२ ग्राम की मात्रा गाय के दूध के साथ लेने से बाँझपन ठीक होता है . बंद ट्यूब और नाड़ियाँ खुल जाती है ; मासिक धर्म गर्भाशय की गांठों में लाभ होता है .
_ पैरों के छाले इसका दूध लगाने से ठीक हो जाते है .
_ गठिया में आक के पत्तों को घी लगा कर तवे पर गर्म कर सेकें .
_ आक की रुई को वस्त्रों में भर , रजाई तकिये में इस्तेमाल करने से वात रोगों में लाभ मिलता है .
_ कोई घाव अगर भर ना रहा हो तो आक की रुई उसमे भर दे और रोज़ बदल दे .
_ आक के दूध में सामान मात्रा में शहद मिला कर लगाने से दाद में लाभ होता है .आक की जड़ के चूर्ण को दही में मिलाकर लगाना भी दाद में लाभकारी होता है .
_ आक के पुष्प तोड़ने पर जो दूध निकलता है उसे नारियल तेल में मिलाकर लगाने से खाज दूर होती है .इसके दूध को कडवे तेल में मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है .
_ इसके पत्तों को सुखाकर उसकी पावडर जख्मों पर बुरकने से दूषित मांस दूर हो कर स्वस्थ मांस पैदा होता है .
_ आक की मिटटी की टिकिया कीड़े पड़े हुए जख्मों पर बाँधने से कीड़े टिकिया पर आ कर मर जाते है और जख्म धीरे धीरे ठीक हो जाता है .
_ आक के दूध के शहद के साथ सेवन करने से कुष्ठ रोग थी होता है .आक के पुष्पों का चूर्ण भी इसमें लाभकारी है .
_ पेट में दर्द होने पर आक के पत्तों पर घी लगा कर गर्म कर सेके .
_ स्थावर विष पर २-३ ग्राम आक की जड़ को घिस कर दिन में ३-४ बार पिलाए .आक की लकड़ी का 6 ग्राम कोयला मिश्री के साथ लेने से शारीर में जमा पारा भी पेशाब के रास्ते निकल जाता है .
_ आक और भी कई रोगों का इलाज करता है पर ये योग वैद्य की सलाह से ही लेने चाहिए .
_ इसके अर्क प्रयोग से होने वाले हानिकारक प्रभाव को कम करने के लिए दूध और घी का प्रयोग करें .

लाभकारी है पुदीना


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एक गिलास पानी में 8-10 पुदीने की पत्तियां, थोड़ी-सी काली मिर्च और जरा सा काला नमक डालकर उबालें। 5-7 मिनट उबालने के बाद पानी को छानकर पीएं, खांसी, जुकाम और बुखार से राहत मिलेगी। अगर हाजमा खराब हो तो एक गिलास पानी में आधा नींबू निचोड़ें, उसमें थोड़ा-सा काला नमक डालें और पुदीने की 8-10 पत्तियां पीसकर मिलाएं। अब पीड़ित व्यक्ति को इसे पिलाएं, तुरंत लाभ मिलेगा।

जब हिचकियां न रुकें तो पुदीने की कुछ पत्तियां लेकर उन्हें पीसें और उनका रस निकालकर पिलाएं, हिचकी आनी बंद हो जाएगी।


मुंह की दुर्गध दूर करने के लिए पुदीने की सूखी पत्तियों को पीसकर उसका चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण को मंजन की तरह दांतों पर रगड़ें। मुंह की 

दरुगध तो दूर हो ही जाएगी, मसूड़े भी मजबूत होंगी।

गर्मी के मौसम में लू लगने से बचने के लिए पुदीने की चटनी को प्याज डालकर बनाएं। अगर इसका सेवन नियमित रूप से किया जाए तो लू लगने की आशंका खत्म हो जाती है।

मुंहासे दूर करने के लिए पुदीने की कुछ पत्तियां लेकर पीस लें। अब उसमें 2-3 बूंदे नींबू का रस डालकर इसे चेहरे पर कुछ देर के लिए लगाएं। फिर चेहरा ठंडे पानी से धो लें। कुछ दिन ऐसा करने से मुंहासे तो ठीक हो ही जाएंगे, चेहरे पर चमक भी आ जाएगी।

पुदीने को सूखाकर पीस लें। अब इसे कपड़े से छानकर बारीक पाउडर बनाकर एक शीशे में रख लें। सुबह-शाम एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ लें। यह फेफड़ों में जमे हुए कफ के कारण होने वाली खांसी और दमा की समस्या को दूर करता है।

अगर नमक के पानी के साथ पुदीने के रस को मिलाकर कुल्ला करें तो गले की खराश और आवाज में भारीपन दूर हो जाते हैं। आवाज साफ हो जाती है।