11 June 2013

!!! माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने का एक अचूक उपाय !!!


माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने का एक अचूक उपाय

माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने का एक अचूक उपाय


प्रातः काल, स्नानादि व तुलसी सेवन करके

 'हरिजागरणं प्रातः स्नानं तुलसीसेवनम्। उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके॥'

इस मंत्र के साथ दीपदान करें| आपको बता दें कि इसी मंत्र के द्वारा सत्यभामा ने अक्षय सुख, सौभाग्य और संपदा के साथ सर्वेश्वर को सुलभ किया था।

वास्तु ग्रंथों में लक्ष्मी, यश-कीर्ति की प्राप्ति उपाय के रूप में कई उपाय मिलते हैं। लक्ष्मी, गायत्री मंत्र का निरंतर जाप भी इष्टप्रद है।


'महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।'

आपको हमेशा कमलासन पर विराजित लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। देवीभागवत में कहा गया है कि कमलासना लक्ष्मी की आराधना से इंद्र ने देवताओं के राजा होने का गौरव प्राप्त किया था। इंद्र ने लक्ष्मी की आराधना 'कमलवासिन्यै नमः' मंत्र से की थी। यह मंत्र आज भी अचूक है।


!!! सुन्दर काण्ड का अद्भुत अनुष्ठान !!!




सुन्दर काण्ड का अद्भुत अनुष्ठान

इस अनुष्ठान से सभी प्रकार की मनोकामनाएँ निश्चय ही पूर्ण होती है । अनेक व्यक्तियों द्वारा यह अनुभूत है ।

सर्वप्रथम अपने पूजा स्थान में श्रीहनुमान जी का एक सुन्दर चित्र विधि-वत् प्रतिष्ठित कर लें । उस चित्र के सम्मुख दीपक एवं धूपबत्ती जलाकर रखें । चित्र का यथा-शक्ति भक्ति-भाव के साथ पूजन करें ।



पूजन कर चुकने पर ‘श्रीराम-चरित-मानस‘ के ‘किष्किन्धा-काण्ड‘ की निम्न-लिखित पंक्तियों का पाठ हाथ जोड़ कर 11 बार करें -


“कहइ रीछ-पति-’सुनु हनुमाना ! का चुप साधि रहेहु बलवाना ?
पवन-तनय बल पवन समाना , बुधि विवेक विग्यान निधाना ।।

कौन-सी काजु कठिन जग माँहीं, जो नहीं होत तात तुम पाहीं ।”

11 पाठ कर चुकने पर ‘सुन्दर-काण्ड‘ का आद्योपान्त पाठ करें । तदनन्तर पुनः उक्त पंक्तियों का पाठ 11 बार करें । इस प्रकार यह ‘एक पाठ‘ हुआ । उक्त पाठ को 45 बार करना है । इस अनुष्ठान को किसी भी मंगलवार के दिन श्रीहनुमान जी के दर्शन करने के बाद प्रारम्भ करना चाहिए । प्रतिदिन तीन पाठ करें, तो 15 दिनों में अनुष्ठान पूरा हो जाएगा । यदि तीन पाठ न कर सकें, तो प्रतिदिन एक ही पाठ कर 45 दिनों में अनुष्ठान पूर्ण कर सकते हैं ।



अनुष्ठान काल में अपनी दिन-चर्या इस प्रकार बितानी चाहिए, जिससे श्रीहनुमान जी प्रसन्न हों अर्थात् ब्रह्मचर्य, सत्य-वादिता, भगवान् श्रीराम का गुणानुवाद, सत्संग आदि में तत्पर रहे ।