25 November 2012

!!! पान के औषधीय गुण !!!



भारतीय संस्कृति में पान को हर तरह से शुभ माना जाता है। धर्म, संस्कार, आध्यात्मिक एवं तांत्रिक क्रियाओं में भी पान का इस्तेमाल सदियों से किया जाता रहा है।

*****************इसके अलावा पान का रोगों को दूर भगाने में भी बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जाता है। खाना खाने के बाद और मुंह का जायका बनाए रखने के लिए पान बहुत ही कारगर है। कई बीमारियों के उपचार में पान का इस्तेमाल लाभप्रद माना जाता है
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* पान में दस ग्राम कपूर को लेकर दिन में तीन-चार बार चबाने से पायरिया की शिकायत दूर हो जाती है। इसके इस्तेमाल में एक सावधानी रखना जरूरी होती है कि पान की पीक पेट में न जाने पाए।

* चोट लगने पर पान को गर्म करके परत-परत करके चोट वाली जगह पर बांध लेना चाहिए। इससे कुछ ही घंटों में दर्द दूर हो जाता है। खांसी आती हो तो गर्म हल्दी को पान में लपेटकर चबाएं।

* यदि खांसी रात में बढ़ जाती हो तो हल्दी की जगह इसमें अजवाइन डालकर चबाना चाहिए। यदि किडनी खराब हो तो पान का इस्तेमाल बगैर कुछ मिलाए करना चाहिए। इस दौरान मसाले, मिर्च एवं शराब (मांस एवं अंडा भी) से पूरा परहेज रखना जरूरी है।

* जलने या छाले पड़ने पर पान के रस को गर्म करके लगाने से छाले ठीक हो जाते हैं। पीलिया ज्वर और कब्ज में भी पान का इस्तेमाल बहुत फायदेमंद होता है। जुकाम होने पर पान में लौंग डालकर खाने से जुकाम जल्दी पक जाता है। श्वास नली की बीमारियों में भी पान का इस्तेमाल अत्यंत कारगर है। इसमें पान का तेल गर्म करके सीने पर लगातार एक हफ्ते तक लगाना चाहिए।

* पान में मुलेठी डालकर खाने से मन पर अच्छा असर पड़ता है। यूं तो हमारे देश में कई तरह के पान मिलते हैं। इनमें मगही, बनारसी, गंगातीरी और देशी पान दवाइयों के रूप में ज्यादा कारगर सिद्ध होते हैं। भूख बढ़ाने, प्यास बुझाने और मसूड़ों की समस्या से निजात पाने में बनारसी एवं देशी पान फायदेमंद साबित होता है।


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चेतावनी :कत्थे का प्रयोग मुंह के कैंसर का कारण भी हो सकता है। यहां सिर्फ पान के औषधीय महत्व की जानकारी दी गई है।
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सोने की चिड़िया है कैसे मेरा हिन्दुस्तान लिखूँ


अभिशापों से भरी धरा को मैं कैसे वरदान लिखूँ
सोने की चिड़िया है कैसे मेरा हिन्दुस्तान लिखूँ


सोनचिरैया भी जब केवल विस्फ़ोटों की धुन गाती हो
बुलबुल के पंखों से भी जब बारूदों की बू आती हो
जब हत्यारे जमा हुए हों, घर-खेतों से बाज़ारों तक
जब विषधर फुफकार रहे हों झोंपड़ियों से मीनारों तक
जब अधनंगे लाखों बच्चे रोटी को भी तरस रहे हों
मुस्कानों की जगह आँख से खारे आँसू बरस रहे हों
जब निर्धनता गली-गली और चौराहों पर नाच रही हो
जब कंगाली फुटपाथों पर रोटी-रोटी बाँच रही हो
आहों और कराहों को मैं कैसे मंगलगान लिखूँ
सोने की चिड़िया है कैसे मेरा हिन्दुस्तान लिखूँ

जब शिक्षा के बाद हाथ में आती हो केवल बेकारी
जब आँसू में घुली हुई हो भूखे पेटों की लाचारी
जहाँ रूप के बाज़ारों में टके-टके काया बिकती हो
जहाँ आसमां के चंदा में भी केवल रोटी दिखती हो
जब खादी के पहन मुखौटे झूठ पड़ा हो सिंहासन पर
जब बेबस-लाचार नयन ले साँच खड़ा हो निर्वासन पर
पतझर का ही शासन हो तो फागुन कैसे भा सकता है
सारे जग की पीड़ा लेकर कैसे कोई गा सकता है
कैसे चिथड़ों से कपड़ों को मोती का परिधान लिखूँ
सोने की चिड़िया है कैसे मेरा हिन्दुस्तान लिखूँ

जब संसद में जमा हुए हों, सारे भारत के अपराधी
जब सुरसा के मुँह के जैसी बढ़ती जाती हो आबादी
जब जनता की चुनी मूरतें पड़ी हुई हों मदिरालय में
जब खादी और खाकी दोनों टंगी हुई हों वेश्यालय में
जब सारे जग की संपत्ति नेताजी के घर संचित हो
और देश की आधी जनता दो रोटी से भी वंचित हो
आँसू ही लिखते-लिखते जब आँखें भी हों खारी-खारी
कैसे क़लम निभा सकती है तब ख़ुशियों की ज़िम्मेदारी
रोते और सिसकते अधरों को कैसे मुस्कान लिखूँ
सोने की चिड़िया है कैसे मेरा हिन्दुस्तान लिखूँ

पाँच दिनों से भूखे बचपन की अंतड़ियाँ जब खाली हों
और बाढ़ की चर्चा में छप्पन भोगों की थाली हों
जब खाली पेटों वाले शव जला दिए हों गुमनामों में
और नाज के लाखों बोरे जमा हुए हों गोदामों में
जब माँओं ने बच्चों के शव गंदले पानी में ढोए हों
और देश के सत्ताधारी एसी कमरों में सोए हों
जिस भारत का स्वर्ण बुढ़ापा सर तक पानी में ज़िन्दा है
उस भारत की आज़ादी पर भारत माँ भी शर्मिंदा है
आँसू से कड़वे हाथों से कैसे मीठा गान लिखूँ
सोने की चिड़िया है कैसे मेरा हिन्दुस्तान लिखूँ


मैं पाप बेचती हूँ



एक बार घूमते-घूमते कालिदास बाजार गये|

वहाँ एक महिला बैठी मिली | उसके पास एक मटका था और कुछ प्यालियाँ पड़ी थी |


कालिदास ने उस महिला से पूछा :

” क्या बेच रही हो ? “

महिला ने जवाब दिया :

” महाराज ! मैं पाप बेचती हूँ | “

कालिदास ने
आश्चर्यचकित होकर पूछा :

” पाप और मटके में ?

“ महिला बोली :

” हाँ, महाराज ! मटके में पाप है | “

कालिदास :
” कौन-सा पाप है ? “
महिला :
” आठ पाप इस मटके में है |

मैं चिल्लाकर कहती हूँ की मैं पाप बेचती हूँ पाप …
और लोग पैसे देकर पाप ले जाते है |”

अब महाकवि कालिदास को और आश्चर्य हुआ :

” पैसे देकर लोग पाप ले जातेहै ? “

महिला :
” हाँ, महाराज ! पैसे से खरीदकर लोग पाप ले जाते है | “

कालिदास :
” इस मटके में आठ पाप कौन-कौन से है ? “

महिला :
” क्रोध ,
बुद्धिनाश ,
यश का नाश ,
स्त्री एवं बच्चों के साथ अत्याचार
और अन्याय ,
चोरी ,
असत्य आदि दुराचार ,
पुण्य का नाश ,
और स्वास्थ्य का नाश …
ऐसे आठ प्रकार के
पाप इस घड़े में है | “

कालिदास को कौतुहल हुआ की यह तो बड़ी विचित्र बात है | किसी भी शास्त्र में नहीं आया है की मटके
में आठ प्रकार के
पाप होते है |

वे बोले : ”
आखिरकार इसमें क्या है ? ”

महिला : ” महाराज ! इसमें शराब है

शराब !
“ कालिदास महिला की कुशलता पर प्रसन्न होकर बोले:
” तुझे धन्यवाद है !

शराब में आठ प्रकार के पाप है यह तू जानती है और
‘ मैं पाप बेचती हूँ ‘
ऐसा कहकर बेचती है फिर भी लोग ले
जाते है |

धिक्कार है ऐसे लोगों को !


!!! जरूर पढ़ें... !!!


कुछ समय पहले ऑस्ट्रेलिया में आये भूकंप में एक दिल को छु लेने वाली घटना हुई..

भूकंप के बाद बचाव कार्य का एक दल एक महिला के पूर्ण रूप से ध्वस्त हुए घर की जांच कर रहा था,बारीक दरारों में से महिला का मृत शारीर दिखा लेकिन वो एक अजीब अवस्था में था,महिला अपने घुटनों के बल बैठी थी ठीक वैसे ही जैसे मंदिर में लोग भगवान् के सामने नमन करते है,उसके दोनों हाथ किसी चीज़ को पकडे हुए थे,भूकंप से उस महिला की पीठ व् सर को काफी क्षति पहुंची थी,

काफी मेंहनत के बाद दल के सदस्य ने बारीक दरारों में से जगह बना कर अपना हाथ महिला की तरफ बढाया इस उम्मीद में की शायद वो जिंदा हो,लेकिन महिला का शारीर ठंडा प़ड‍ चूका था,जिसे बचाव दल समझ गया की महिला मर चुकी है,

बचाव दल ने उस घर को छोड़ दिया और दुसरे मकानों की तरफ चलने लगे,बचाव दल के प्रमुख का कहना था की "पता नहीं क्यूँ मुझे उस महिला का घर अपनी तरफ खींच रहा था,कुछ था जो मुझसे कह रहा था के मैं इस घर को ऐसे छोड़ कर न जाऊं और मैंने अपने दिल की बात मानने का फैसला किया"
उसके बाद बचाव दल एक बार फिर उस महिला के घर की तरफ पहुंचे,दल प्रमुख ने मलबे को सावधानी से हटा कर बारीक दरारों में से अपना हाथ महिला की तरफ बढ़ाया और उसके शारीर के निचे स्थित जगह को हाथों से टटोलने लगे,तभी उनके मुह से निकला "बच्चा... यहाँ एक बच्चा है"पूरा दल काम में जुट गया,सावधानी से मलबा हटाया जाने लगा,तब उन्हें महिला के मृत शारीर के निचे एक टोकरी में रेशमी कम्बल में लिपटा हुआ ३ माह का एक बच्चा मिला,दल को अब समझ में आ चूका था की महिला ने अपने बच्चे को बचाने के लिए अपने जीवन का त्याग किया है,भूकंप के दौरान जब घर गिरने वाला था तब उस महिला ने अपने शारीर से सुरक्षा देकर अपने बच्चे की रक्षा की थी.डोक्टर भी जल्द ही वहां आ पहुंचे.
दल ने जब बच्चे को उठाया तब बच्चा बेहोश था,जब बचाव दल ने बच्चे का कम्बल हटाया तब उन्हें वहां एक मोबाइल मिला जिसके स्क्रीन पर सन्देश लिखा था,"मेरे बच्चे अगर तुम बच गए तो बस इतना याद रखना की तुम्हारी माँ तुमसे बहुत प्यार करती है" मोबाइल बचाव दल में एक हाथ से दुसरे हाथ जाने लगा, सभीने वो सन्देश पढ़ा,सबकी आँखें नम हो गयी...
माँ के प्रेम से बढ़ कर दुनिया में और कोई प्रेम नहीं हो सकता

!!! धन्य है " मातृत्व-प्रेम " !!!



बात दुर्ग के रेलवे स्टेशन की है.., कल रात .,मैं ट्रेन के इंतज़ार में रेल्वे - प्लेटफार्म पर टहल रहा था .,

एक वृद्ध महिला , जिनकी उम्र लगभग 60 - 65 वर्ष के लगभग रही होगी ., वो मेरे पास आयी और मुझसे खाने के लिए पैसे माँगने लगी ....
उनके कपडे फटे ., पूरे तार - तार थे., उनकी दयनीय हालत देख कर ऐसा लग रहा था की पिछले कई दिनों से भोजन भी ना किया हो ..
मुझे उनकी दशा पर बहुत तरस आया तो मैंने अपना पर्स टटोला ., कुछ तीस रुपये के आसपास छुट्टे पैसे और एकहरा " गांधी " मेरे पर्स में था .,
मैंने वो पूरे छुट्टे उन्हें दे दिए...

मैंने पैसे उन्हें दिए ही थे ., कि इतने में एक महिला ., एक छोटे से रोते - बिलखते., दूधमुहे बच्चे के साथ टपक पड़ी ., और छोटे दूधमुहे बच्चे का वास्ता देकर वो भी मुझसेपैसे माँगने लगी ... मैं उस दूसरी महिला को कोई ज़वाब दे पाता की उन वृद्ध माताजी ने वो सारे पैसे उस दूसरी महिला को दे दिए ., जो मैंने उन्हें दिए थे .... पैसे लेकर वो महिला तो चलती बनी... लेकिन मैं सोचमें पड़ गया ... मैंने उनसे पूछा की-" आपने वो पैसे उस महिला को दे दिए ..??? "


उनका ज़वाब आया -" उस महिला के साथउसका छोटा सा दूधमुहा बच्चा भी तोथा ., मैं भूखे रह लूंगी लेकिन वो छोटा बच्चा बगैर दूध के कैसे रह पायेगा ... ??? भूख के मारे रो भी रहा था ..."

उनका ज़वाब सुनकर मैं स्तब्ध रह गया .... सच ... भूखे पेट भी कितनी बड़ी मानवता की बात उनके ज़ेहन में बसी थी ....

उनकी सोच से मैं प्रभावित हुआ ., तो उनसे यूं ही पूछ लिया की यूं दर -बदर की ठोकरे खाने के पीछे आखिर कारण क्या है ...???

उनका ज़वाब आया की उनके दोनों बेटो ने शादी के बाद उन्हें साथ रखने से इनकार कर दिया ., पति भी चल बसे .., आखिर में कोई चारा न बसा ...
बेटो ने तो दुत्कार दिया ., लेकिन वो भी हर बच्चे में अपने दोनों बेटो को ही देखती है ., इतना कहकर उनकी आँखों में आंसू आ गए ...

मैं भी भावुक हो गया .,मैंने पास की एक कैंटीन से उन्हें खाने का सामान ला दिया ... मैं भी वहा से फिर साईड हट गया ...

लेकिन बार-बार ज़ेहन में यही बात आ रही थी ., की आज की पीढी कैसी निर्लज्ज है ., जो अपनी जन्म देने वाली माँ तक को सहारा नहीं दे सकती ...??? लानत है ऐसी संतान पर .... और दूसरी तरफ वो " माँ " ., जिसे हर 
बच्चे में अपने " बेटे " दिखाई देते है ....