26 July 2013

!!! हनुमत्सहस्त्र नामावली !!!

विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीहनुमत्सहस्त्रनामस्तोत्रमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः हनुमान देवता, अनुष्टुप छन्द, ह्रां बीजं श्रीं शक्ति, श्रीहनुमत्प्रीत्यर्थं-तद्सहस्त्रनामभिरमुकसंख्यार्थ पुष्पादिद्रव्य समर्पणे विनियोगः।

ध्यानः-

ध्यायेद् बालदिवाकर-द्युतिनिभ देवारिदर्पापहं
देवेन्द्रमुख-प्रशा्तयकसं देदीप्यमान रुचा।
सुग्रीवादिसमतवानरयुतं सुव्यक्ततत्त्वप्रियं
संरक्तारुणलोचनं पवनजं पीताम्बरालंकृतम्।।
उद्यदादित्यसंकाशमुदारभुजविक्रमम्।
कन्दर्पकोटिलावण्य सर्वविद्याविशारदम्।।
श्रीरामहृदयानन्दं भक्तकल्पमहीरुहम्।
अभयं वरदं दोर्म्मा चिन्तयेन्मारुतात्मजम्।।

ॐ हनुमते नमः
ॐ श्री प्रदाय नमः
ॐ वायु पुत्राय नमः
ॐ रुद्राय नमः
ॐ अनघाय नमः
ॐ अजराय नमः
ॐ अमृत्यवे नमः
ॐ वीरवीराय नमः
ॐ ग्रामावासाय नमः
ॐ जनाश्रयाय नमः
ॐ धनदाय नमः
ॐ निर्गुणाय नमः
ॐ अकायाय नमः
ॐ वीराय नमः
ॐ निधिपतये नमः
ॐ मुनये नमः
ॐ पिंगाक्षाय नमः
ॐ वरदाय नमः
ॐ वाग्मीने नमः ।
ॐ सीता-शोक-विनाशाय नमः
ॐ शिवाय नमः
ॐ शर्वाय नमः
ॐ पराय नमः
ॐ अव्यक्ताय नमः
ॐ व्यक्ताव्यक्ताय नमः
ॐ रसा-धराय नमः
ॐ पिंग-केशाय नमः
ॐ पिंग-रोमम्णे नमः ।
ॐ श्रुति-गम्याय नमः
ॐ सनातनाय नमः
ॐ अनादये नमः
ॐ भगवते नमः
ॐ देवाय नमः
ॐ विश्व-हेतवे नमः
ॐ निरामयाय नमः
ॐ आरोग्यकर्त्रे नमः ।
ॐ विश्वेशाय नमः
ॐ विश्वनाथाय नमः
ॐ हरीश्वराय नमः
ॐ भर्गाय नमः
ॐ रामाय नमः
ॐ राम-भक्ताय नमः
ॐ कल्याणाय नमः
ॐ प्रकृति-स्थिराय नमः
ॐ विश्वम्भराय नमः
ॐ विश्वमूर्तये नमः
ॐ विश्वाकाराय नमः
ॐ विश्वदाय नमः
ॐ विश्वात्मने नमः
ॐ विश्वसेव्याय नमः
ॐ विश्वाय नमः
ॐ विश्वराय नमः
ॐ रवये नमः
ॐ विश्व-चेष्टाय नमः
ॐ विश्व-गम्याय नमः
ॐ विश्व-ध्येयाय नमः
ॐ कला-धराय नमः
ॐ प्लवंगमाय नमः
ॐ कपि-श्रेष्टाय नमः
ॐ ज्येष्ठाय नमः ।
ॐ विद्यावते नमः
ॐ वनेचराय नमः
ॐ बालाय नमः
ॐ वृद्धाय नमः
ॐ यूने नमः ।
ॐ तत्त्वाय नमः
ॐ तत्त्व-गम्याय नमः
ॐ सख्ये नमः
ॐ अजाय नमः
ॐ अन्जना-सूनवे नमः
ॐ अव्यग्राय नमः
ॐ ग्राम-ख्याताय नमः
ॐ धरा-धराय नमः
ॐ भूर्लोकाय नमः
ॐ भुवर्लोकाय नमः ।
ॐ स्वर्लोकाय नमः
ॐ महर्लोकाय नमः
ॐ जनलोकय नमः
ॐ तपसे नमः
ॐ अव्ययाय नमः
ॐ सत्ययाय नमः
ॐ ओंकार-गम्याय नमः
ॐ प्रणवाय नमः
ॐ व्यापकाय नमः
ॐ अमलाय नमः
ॐ शिवाय नमः
ॐ धर्म-प्रतिष्ठात्रे नमः ।
ॐ रामेष्टाय नमः
ॐ फाल्गुण-प्रियाय नमः
ॐ गोष्पदिने नमः
ॐ कृत-वारीशाय नमः
ॐ पूर्ण-कामाय नमः
ॐ धराधिपाय नमः
ॐ रक्षोघ्नाय नमः
ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः
ॐ शरणागत-वत्सलाय नमः
ॐ जानकी-प्राण-दात्रे नमः
ॐ रक्षः-प्राणहारकाय नमः
ॐ पूर्णाय नमः ।
ॐ सत्याय नमः १००
ॐ पीतवाससे नमः ।
ॐ दिवाकर-समप्रभाय नमः
ॐ देवोद्यान-विहारीणे नमः ।
ॐ देवता-भय-भञ्जनाय नमः ।
ॐ भक्तोदयाय नमः ।
ॐ भक्त-लब्धाय नमः ।
ॐ भक्त-पालन-तत्पराय नमः ।
ॐ द्रोणहर्षाय नमः ।
ॐ शक्तिनेत्राय नमः ।
ॐ शक्तये नमः
ॐ राक्षस-मारकाय नमः
ॐ अक्षघ्नाय नमः
ॐ राम-दूताय नमः
ॐ शाकिनी-जीव-हारकाय नमः
ॐ बुबुकार-हतारातये नमः
ॐ गर्वाय नमः
ॐ पर्वत-मर्दनाय नमः
ॐ हेतवे नमः
ॐ अहेतवे नमः
ॐ प्रांशवे नमः
ॐ विश्वभर्ताय नमः ।
ॐ जगद्गुरवे नमः
ॐ जगन्नेत्रे नमः ।
ॐ जगन्नथाय नमः
ॐ जगदीशाय नमः
ॐ जनेश्वराय नमः
ॐ जगद्धिताय नमः ।
ॐ हरये नमः
ॐ श्रीशाय नमः
ॐ गरुडस्मयभंजनाय नमः
ॐ पार्थ-ध्वजाय नमः
ॐ वायु-पुत्राय नमः
ॐ अमित-पुच्छाय नमः
ॐ अमित-विक्रमाय नमः
ॐ ब्रह्म-पुच्छाय नमः
ॐ परब्रह्म-पुच्छाय नमः
ॐ रामेष्ट-कारकाय नमः
ॐ सुग्रीवादि-युताय नमः
ॐ ज्ञानिने नमः ।
ॐ वानराय नमः
ॐ वानरेश्वराय नमः
ॐ कल्पस्थायिने नमः ।
ॐ चिरंजीविने नमः ।
ॐ तपनाय नमः
ॐ सदा-शिवाय नमः
ॐ सन्नताय नमः
ॐ सद्गते नमः
ॐ भुक्ति-मुक्तिदाय नमः
ॐ कीर्ति-दायकाय नमः
ॐ कीर्तये नमः
ॐ कीर्ति-प्रदाय नमः
ॐ समुद्राय नमः
ॐ श्रीप्रदाय नमः
ॐ शिवाय नमः
ॐ भक्तोदयाय नमः ।
ॐ भक्तगम्याय नमः ।
ॐ भक्त-भाग्य-प्रदायकाय नमः ।
ॐ उदधिक्रमणाय नमः
ॐ देवाय नमः
ॐ संसार-भय-नाशनाय नमः
ॐ वार्धि-बंधनकृदाय नमः ।
ॐ विश्व-जेताय नमः ।
ॐ विश्व-प्रतिष्ठिताय नमः
ॐ लंकारये नमः
ॐ कालपुरुषाय नमः
ॐ लंकेश-गृह- भंजनाय नमः
ॐ भूतावासाय नमः
ॐ वासुदेवाय नमः
ॐ वसवे नमः
ॐ त्रिभुवनेश्वराय नमः
ॐ श्रीराम-रुपाय नमः
ॐ कृष्णस्तवे नमः
ॐ लंका-प्रासाद-भंजकाय नमः
ॐ कृष्णाय नमः
ॐ कृष्ण-स्तुताय नमः
ॐ शान्ताय नमः
ॐ शान्तिदाय नमः
ॐ विश्वपावनाय नमः
ॐ विश्व-भोक्त्रे नमः ।
ॐ मारिघ्नाय नमः
ॐ ब्रह्मचारिणे नमः ।
ॐ जितेन्द्रियाय नमः
ॐ ऊर्ध्वगाय नमः
ॐ लान्गुलिने नमः ।
ॐ मालिने नमः।
ॐ लान्गूला-हत-राक्षसाय नमः
ॐ समीर-तनुजाय नमः
ॐ वीराय नमः
ॐ वीर-ताराय नमः
ॐ जय-प्रदाय नमः
ॐ जगन्मन्गलदाय नमः
ॐ पुण्याय नमः
ॐ पुण्य-श्रवण-कीर्तनाय नमः
ॐ पुण्यकीर्तये नमः
ॐ पुण्य-गीतये नमः
ॐ जगत्पावन-पावनाय नमः
ॐ देवेशाय नमः
ॐ जितमाराय नमः
ॐ राम-भक्ति-विधायकाय नमः
ॐ ध्यात्रे नमः।
ॐ ध्येयाय नमः
ॐ लयाय नमः
ॐ साक्षिणे नमः ।
ॐ चेत्रे नमः।
ॐ चैतन्य-विग्रहाय नमः
ॐ ज्ञानदाय नमः
ॐ प्राणदाय नमः
ॐ प्राणाय नमः
ॐ जगत्प्राणाय नमः
ॐ समीरणाय नमः
ॐ विभीषण-प्रियाय नमः
ॐ शूराय नमः
ॐ पिप्पलाश्रयाय नमः
ॐ सिद्धिदाय नमः
ॐ सिद्धाय नमः
ॐ सिद्धाश्रयाय नमः
ॐ कालाय नमः
ॐ महोक्षाय नमः ।
ॐ काल-जान्तकाय नमः
ॐ लंकेश-निधन-स्थायिने नमः
ॐ लंका-दाहकाय नमः ।
ॐ ईश्वराय नमः
ॐ चन्द्र-सूर्य-अग्नि-नेत्राय नमः
ॐ कालाग्ने नमः
ॐ प्रलयान्तकाय नमः
ॐ कपिलाय नमः
ॐ कपीशाय नमः
ॐ पुण्यराशये नमः
ॐ द्वादश राशिगाय नमः
ॐ सर्वाश्रयाय नमः
ॐ अप्रमेयत्माय नमः ।
ॐ रेवत्यादि-निवारकाय नमः
ॐ लक्ष्मण-प्राणदात्रे नमः ।
ॐ सीता-जीवन-हेतुकाय नमः
ॐ राम-ध्येयाय नमः
ॐ हृषीकेशाय नमः
ॐ विष्णु-भक्ताय नमः
ॐ जटिने नमः
ॐ बलिने नमः
ॐ देवारिदर्पघ्ने नमः
ॐ होत्रे नमः
ॐ कर्त्रे नमः
ॐ धार्त्रे नमः
ॐ जगत्प्रभवे नमः
ॐ नगर-ग्राम-पालाय नमः
ॐ शुद्धाय नमः
ॐ बुद्धाय नमः
ॐ निरन्तराय नमः
ॐ निरंजनाय नमः
ॐ निर्विकल्पाय नमः
ॐ गुणातीताय नमः
ॐ भयंकराय नमः
ॐ हनुमते नमः ।
ॐ दुराराध्याय नमः
ॐ तपस्साध्याय नमः
ॐ महेश्वराय नमः
ॐ जानकी-घन-शोकोत्थतापहर्त्रे नमः ।
ॐ परात्पराय नमः
ॐ वाङ्मयाय नमः
ॐ सद-सद्रूपाय नमः
ॐ कारणाय नमः
ॐ प्रकृतेः-पराय नमः
ॐ भाग्यदाय नमः
ॐ निर्मलाय नमः
ॐ नेत्रे नमः
ॐ पुच्छ-लंका-विदाहकाय नमः
ॐ पुच्छ-बद्धाय नमः
ॐ यातुधानाय नमः
ॐ यातुधान-रिपुप्रियाय नमः
ॐ छायापहारिणे नमः
ॐ भूतेशाय नमः
ॐ लोकेशाय नमः
ॐ सद्गति-प्रदाय नमः
ॐ प्लवंगमेश्वराय नमः
ॐ क्रोधाय नमः
ॐ क्रोध-संरक्तलोचनाय नमः
ॐ क्रोध-हर्त्रे नमः
ॐ ताप-हर्त्रे नमः
ॐ भक्ताऽभय-वरप्रदाय नमः
ॐ वर-प्रदाय नमः
ॐ भक्तानुकंपिने नमः
ॐ विश्वेशाय नमः
ॐ पुरु-हूताय नमः
ॐ पुरंदराय नमः
ॐ अग्निने नमः
ॐ विभावसवे नमः
ॐ भास्वते नमः
ॐ यमाय नमः
ॐ निष्कृतिरेवचाय नमः
ॐ वरुणाय नमः
ॐ वायु-गति-मानाय नमः
ॐ वायवे नमः
ॐ कौबेराय नमः
ॐ ईश्वराय नमः
ॐ रवये नमः
ॐ चन्द्राय नमः
ॐ कुजाय नमः
ॐ सौम्याय नमः
ॐ गुरवे नमः
ॐ काव्याय नमः
ॐ शनैश्वराय नमः
ॐ राहवे नमः
ॐ केतवे नमः

ॐ मरुते नमः
ॐ धात्रे नमः
ॐ धर्त्रे नमः
ॐ हर्त्रे नमः
ॐ समीरजाय नमः
ॐ मशकीकृत-देवारये नमः
ॐ दैत्यारये नमः
ॐ मधुसूदनाय नमः
ॐ कामाय नमः
ॐ कपये नमः
ॐ कामपालाय नमः
ॐ कपिलाय नमः
ॐ विश्व जीवनाय नमः
ॐ भागीरथी-पदांभोजाय नमः
ॐ सेतुबंध-विशारदाय नमः
ॐ स्वाहा-काराय नमः
ॐ स्वधा-काराय नमः
ॐ हविषे नमः
ॐ कव्याय नमः
ॐ हव्यवाहकाय नमः
ॐ प्रकाशाय नमः
ॐ स्वप्रकाशाय नमः
ॐ महावीराय नमः
ॐ लघवे नमः
ॐ अमित-विक्रमाय नमः
ॐ प्रडीनोड्डीनगतिमानाय नमः
ॐ सद्गतये नमः
ॐ पुरुषोत्तमाय नमः
ॐ जगदात्मने नमः
ॐ जगद्योनये नमः
ॐ जगदंताय नमः
ॐ अनंतकाय नमः
ॐ विपात्मने नमः
ॐ निष्कलंकाय नमः
ॐ महते नमः
ॐ महदहंकृतये नमः
ॐ खाय नमः
ॐ वायवे नमः
ॐ पृथिव्यै नमः
ॐ आपोभ्य नमः
ॐ वह्नये नमः
ॐ दिक्पालाय नमः
ॐ एकस्थाय नमः
ॐ क्षेत्रज्ञाय नमः
ॐ क्षेत्र-पालाय नमः
ॐ पल्वली-कृत-सागराय नमः
ॐ हिरण्मयाय नमः
ॐ पुराणाय नमः
ॐ खेचराय नमः
ॐ भुचराय नमः
ॐ मनसे नमः
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः
ॐ सूत्राम्णे नमः
ॐ राज-राजाय नमः
ॐ विशांपतये नमः
ॐ वेदांत-वेद्याय नमः
ॐ उद्गीथाय नमः
ॐ वेदवेदांग- पारगाय नमः
ॐ प्रति-ग्राम-स्थिताय नमः
ॐ साध्याय नमः
ॐ स्फूर्ति दात्रे नमः
ॐ गुणाकराय नमः
ॐ नक्षत्र-मालिने नमः
ॐ भूतात्मने नमः
ॐ सुरभये नमः
ॐ कल्प-पादपाय नमः
ॐ चिन्ता-मणये नमः
ॐ गुणनिधये नमः
ॐ प्रजापतये नमः
ॐ अनुत्तमाय नमः
ॐ पुण्यश्लोकाय नमः
ॐ पुरारातये नमः
ॐ ज्योतिष्मते नमः
ॐ शर्वरीपतये नमः
ॐ किलिकिल्यारवत्रस्त-प्रेत-भूत-पिशाचकाय नमः
ॐ ऋणत्रय-हराय नमः
ॐ सूक्ष्माय नमः
ॐ स्थूलाय नमः
ॐ सर्वगतये नमः
ॐ पुंसे नमः
ॐ अपस्मार-हराय नमः
ॐ स्मर्त्रे नमः
ॐ श्रुतये नमः
ॐ गाथायै नमः
ॐ स्मृतये नमः
ॐ मनवे नमः
ॐ स्वर्ग-द्वाराय नमः
ॐ प्रजा-द्वाराय नमः
ॐ मोक्ष-द्वाराय नमः
ॐ यतीश्वराय नमः
ॐ नाद-रूपाय नमः
ॐ पर-ब्रह्मणे नमः
ॐ ब्रह्मणे नमः
ॐ ब्रह्म-पुरातनाय नमः
ॐ एकाय नमः
ॐ अनेकाय नमः
ॐ जनाय नमः
ॐ शुक्लाय नमः
ॐ स्वयज्योतिषे नमः
ॐ अनाकुलाय नमः
ॐ ज्योति-ज्योतिषे नमः
ॐ अनादये नमः
ॐ सात्त्विकाय नमः
ॐ राजसत्तमाय नमः
ॐ तमसे नमः
ॐ तमो-हर्त्रे नमः
ॐ निरालंबाय नमः
ॐ निराकाराय नमः
ॐ गुणाकराय नमः
ॐ गुणाश्रयाय नमः
ॐ गुणमयाय नमः
ॐ बृहत्कायाय नमः
ॐ बृहद्यशसे नमः
ॐ बृहद्धनुषे नमः
ॐ बृहत्पादाय नमः
ॐ बृहन्नमूर्ध्ने नमः
ॐ बृहत्स्वनाय नमः
ॐ बृहत्कर्णाय नमः
ॐ बृहन्नासाय नमः
ॐ बृहन्नेत्राय नमः
ॐ बृहत्गलाय नमः
ॐ बृहध्यन्त्राय नमः
ॐ बृहत्चेष्टाय नमः
ॐ बृहत्पुच्छाय नमः
ॐ बृहत्कराय नमः
ॐ बृहत्गतये नमः
ॐ बृहत्सेव्याय नमः
ॐ बृहल्लोक-फलप्रदाय नमः
ॐ बृहच्छक्तये नमः
ॐ बृहद्वांछा-फलदाय नमः
ॐ बृहदीश्वराय नमः
ॐ बृहल्लोकनुताय नमः
ॐ द्रंष्टे नमः
ॐ विद्या-दात्रे नमः
ॐ जगद्गुरवे नमः
ॐ देवाचार्याय नमः
ॐ सत्य-वादिने नमः
ॐ ब्रह्म-वादिने नमः
ॐ कलाधराय नमः
ॐ सप्त-पातालगामिने नमः
ॐ मलयाचल-संश्रयाय नमः
ॐ उत्तराशास्थिताय नमः
ॐ श्रीदाय नमः
ॐ दिव्य-औषधि-वशाय नमः
ॐ खगाय नमः
ॐ शाखामृगाय नमः
ॐ कपीन्द्राय नमः
ॐ पुराणाय नमः
ॐ श्रुति-संचराय नमः
ॐ चतुराय नमः
ॐ ब्राह्मणाय नमः
ॐ योगिने नमः
ॐ योगगम्याय नमः
ॐ परात्पराय नमः
ॐ अनादये नमः
ॐ निधनाय नमः
ॐ व्यासाय नमः
ॐ वैकुण्ठाय नमः
ॐ पृथ्वी-पतये नमः
ॐ अपराजितये नमः
ॐ जितारातये नमः
ॐ सदानन्दाय नमः
ॐ ईशित्रे नमः
ॐ गोपालाय नमः
ॐ गोपतये नमः
ॐ गोप्त्रे नमः
ॐ कलये नमः
ॐ कालाय नमः
ॐ परात्पराय नमः
ॐ मनोवेगिने नमः
ॐ सदा-योगिने नमः
ॐ संसार-भय-नाशनाय नमः
ॐ तत्त्व-दात्रे नमः
ॐ तत्त्वज्ञाय नमः
ॐ तत्त्वाय नमः
ॐ तत्त्व-प्रकाशाय नमः
ॐ शुद्धाय नमः
ॐ बुद्धाय नमः
ॐ नित्यमुक्ताय नमः
ॐ भक्त-राजाय नमः
ॐ जयप्रदाय नमः
ॐ प्रलयाय नमः
ॐ अमित-मायाय नमः
ॐ मायातीताय नमः
ॐ विमत्सराय नमः
ॐ माया-निर्जित-रक्षसे नमः
ॐ माया-निर्मित-विष्टपाय नमः
ॐ मायाश्रयाय नमः
ॐ निर्लेपाय नमः
ॐ माया-निर्वंचकाय नमः
ॐ सुखाय नमः
ॐ सुखिने नमः
ॐ सुखप्रदाय नमः
ॐ नागाय नमः
ॐ महेशकृत-संस्तवाय नमः
ॐ महेश्वराय नमः
ॐ सत्यसंधाय नमः
ॐ शरभाय नमः
ॐ कलि-पावनाय नमः
ॐ रसाय नमः
ॐ रसज्ञाय नमः
ॐ सम्मानाय नमः
ॐ तपस्चक्षवे नमः
ॐ भैरवाय नमः
ॐ घ्राणाय नमः
ॐ गन्धाय नमः
ॐ स्पर्शनाय नमः
ॐ स्पर्शाय नमः
ॐ अहंकारमानदाय नमः
ॐ नेति-नेति-गम्याय नमः
ॐ वैकुण्ठ-भजन-प्रियाय नमः
ॐ गिरीशाय नमः
ॐ गिरिजा-कान्ताय नमः
ॐ दूर्वाससे नमः
ॐ कवये नमः
ॐ अंगिरसे नमः
ॐ भृगुवे नमः
ॐ वसिष्ठाय नमः
ॐ च्यवनाय नमः
ॐ तुम्बुरुवे नमः
ॐ नारदाय नमः
ॐ अमलाय नमः
ॐ विश्व-क्षेत्राय नमः
ॐ विश्व-बीजाय नमः
ॐ विश्व-नेत्राय नमः
ॐ विश्वगाय नमः
ॐ याजकाय नमः
ॐ यजमानाय नमः
ॐ पावकाय नमः
ॐ पित्रे नमः
ॐ श्रद्धायै नमः
ॐ बुद्धये नमः
ॐ क्षमायै नमः
ॐ तन्त्राय नमः
ॐ मन्त्राय नमः
ॐ मन्त्रयुताय नमः
ॐ स्वराय नमः
ॐ राजेन्द्राय नमः
ॐ भूपतये नमः
ॐ रुण्ड-मालिने नमः
ॐ संसार-सारथये नमः
ॐ नित्याय नमः
ॐ संपूर्ण-कामाय नमः
ॐ भक्त कामदुधे नमः
ॐ उत्तमाय नमः
ॐ गणपाय नमः
ॐ केशवाय नमः
ॐ भ्रात्रे नमः
ॐ पित्रे नमः
ॐ मात्रे नमः
ॐ मारुतये नमः
ॐ सहस्र-शीर्षा-पुरुषाय नमः
ॐ सहस्राक्षाय नमः
ॐ सहस्रपाताय नमः
ॐ कामजिते नमः
ॐ काम-दहनाय नमः
ॐ कामाय नमः
ॐ काम्य-फल-प्रदाय नमः
ॐ मुद्रापहारिणे नमः
ॐ रक्षोघ्नाय नमः
ॐ क्षिति-भार-हराय नमः
ॐ बलाय नमः
ॐ नख-दंष्ट्रा-युधाय नमः
ॐ विष्णु-भक्ताय नमः
ॐ अभय-वर-प्रदाय नमः
ॐ दर्पघ्ने नमः
ॐ दर्पदाय नमः
ॐ इष्टाय नमः
ॐ शत-मूर्त्तये नमः
ॐ अमूर्त्तिमते नमः
ॐ महा-निधये नमः
ॐ महा-भागाय नमः
ॐ महा-भर्गाय नमः
ॐ महार्थदाय नमः
ॐ महाकाराय नमः
ॐ महा-योगिने नमः
ॐ महा-तेजसे नमः
ॐ महा-द्युतये नमः
ॐ महा-कर्मणे नमः
ॐ महा-नादाय नमः
ॐ महा-मन्त्राय नमः
ॐ महा-मतये नमः
ॐ महाशयाय नमः
ॐ महोदराय नमः
ॐ महादेवात्मकाय नमः
ॐ विभवे नमः
ॐ रुद्र-कर्मणे नमः
ॐ अकृत-कर्मणे नमः
ॐ रत्न-नाभाय नमः
ॐ कृतागमाय नमः
ॐ अम्भोधि-लंघनाय नमः
ॐ सिंहाय नमः
ॐ नित्याय नमः
ॐ धर्माय नमः
ॐ प्रमोदनाय नमः
ॐ जितामित्राय नमः
ॐ जयाय नमः
ॐ सम-विजयाय नमः
ॐ वायु-वाहनाय नमः
ॐ जीव-दात्रे नमः
ॐ सहस्रांशवे नमः
ॐ मुकुन्दाय नमः
ॐ भूरि-दक्षिणाय नमः
ॐ सिद्धर्थाय नमः
ॐ सिद्धिदाय नमः
ॐ सिद्ध-संकल्पाय नमः
ॐ सिद्धि-हेतुकाय नमः
ॐ सप्त-पातालचरणाय नमः
ॐ सप्तर्षि-गण-वन्दिताय नमः
ॐ सप्ताब्धि-लंघनाय नमः
ॐ वीराय नमः
ॐ सप्त-द्वीपोरुमण्डलाय नमः
ॐ सप्तांग-राज्य-सुखदाय नमः
ॐ सप्त-मातृ-निशेविताय नमः
ॐ सप्त-लोकैक-मुकुटाय नमः
ॐ सप्त-होता-स्वराश्रयाय नमः
ॐ सप्तच्छन्द-निधये नमः
ॐ सप्तच्छन्दसे नमः
ॐ सप्त-जनाश्रयाय नमः
ॐ सप्त-सामोपगीताय नमः
ॐ सप्त-पातल-संश्रयाय नमः
ॐ मेधावी-कीर्तिदाय नमः
ॐ शोक-हारिणे नमः
ॐ दौर्भाग्य-नाशनाय नमः
ॐ सर्व-वश्यकराय नमः
ॐ गर्भ-दोषघ्नाय नमः
ॐ पुत्र-पौत्र-दाय नमः
ॐ प्रतिवादि-मुखस्तंभिने नमः
ॐ तुष्टचित्ताय नमः
ॐ प्रसादनाय नमः
ॐ पराभिचारशमनाय नमः
ॐ दवे नमः
ॐ खघ्नाय नमः
ॐ बंध-मोक्षदाय नमः
ॐ नव-द्वार-पुराधाराय नमः
ॐ नव-द्वार-निकेतनाय नमः
ॐ नर-नारायण-स्तुत्याय नमः
ॐ नरनाथाय नमः
ॐ महेश्वराय नमः
ॐ मेखलिने नमः
ॐ कवचिने नमः
ॐ खद्गिने नमः
ॐ भ्राजिष्णवे नमः
ॐ जिष्णुसारथये नमः
ॐ बहु-योजन-विस्तीर्ण-पुच्छाय नमः
ॐ पुच्छ-हतासुराय नमः
ॐ दुष्टग्रह-निहंत्रे नमः
ॐ पिशाच-ग्रह-घातकाय नमः
ॐ बाल-ग्रह-विनाशिने नमः
ॐ धर्माय नमः
ॐ नेता-कृपाकराय नमः
ॐ उग्रकृत्याय नमः
ॐ उग्रवेगिने नमः
ॐ उग्र-नेत्राय नमः
ॐ शत-क्रतवे नमः
ॐ शत-मन्युस्तुताय नमः
ॐ स्तुत्याय नमः
ॐ स्तुतये नमः
ॐ स्तोत्रे नमः
ॐ महा-बलाय नमः
ॐ समग्र-गुणशालिने नमः
ॐ अव्यग्राय नमः
ॐ रक्षाय नमः
ॐ विनाशकाय नमः
ॐ रक्षोघ्न-हस्ताय नमः
ॐ ब्रह्मेशाय नमः
ॐ श्रीधराय नमः
ॐ भक्त-वत्सलाय नमः
ॐ मेघ-नादाय नमः
ॐ मेघ-रूपाय नमः
ॐ मेघ-वृष्टि-निवारकाय नमः
ॐ मेघ-जीवन-हेतवे नमः
ॐ मेघ-श्यामाय नमः
ॐ परात्मकाय नमः
ॐ समीर-तनयाय नमः
ॐ बोध्-तत्त्व-विद्या-विशारदाय नमः
ॐ अमोघाय नमः
ॐ अमोघहृष्टये नमः
ॐ इष्टदाय नमः
ॐ अनिष्ट-नाशनाय नमः
ॐ अर्थाय नमः
ॐ अनर्थापहारिणे नमः
ॐ समर्थाय नमः
ॐ राम-सेवकाय नमः
ॐ अर्थिने नमः
ॐ धन्याय नमः
ॐ असुरारातये नमः
ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः
ॐ आत्मभूवे नमः
ॐ संकर्षणाय नमः
ॐ विशुद्धात्मने नमः
ॐ विद्या-राशये नमः
ॐ सुरेश्वराय नमः
ॐ अचलोद्धारकाय नमः
ॐ नित्याय नमः
ॐ सेतुकृते नमः
ॐ राम-सारथये नमः
ॐ आनन्दाय नमः
ॐ परमानन्दाय नमः
ॐ मत्स्याय नमः
ॐ कूर्माय नमः
ॐ निधये नमः
ॐ शूराय नमः
ॐ वाराहाय नमः
ॐ नारसिंहाय नमः
ॐ वामनाय नमः
ॐ जमदग्निजाय नमः
ॐ रामाय नमः
ॐ कृष्णाय नमः
ॐ शिवाय नमः
ॐ बुद्धाय नमः
ॐ कल्किने नमः
ॐ रामाश्रयाय नमः
ॐ हराय नमः
ॐ नन्दिने नमः
ॐ भृन्गिने नमः
ॐ चण्डिने नमः
ॐ गणेशाय नमः
ॐ गण-सेविताय नमः
ॐ कर्माध्यक्ष्याय नमः
ॐ सुराध्यक्षाय नमः
ॐ विश्रामाय नमः
ॐ जगतांपतये नमः
ॐ जगन्नथाय नमः
ॐ कपि-श्रेष्टाय नमः
ॐ सर्ववासाय नमः
ॐ सदाश्रयाय नमः
ॐ सुग्रीवादिस्तुताय नमः
ॐ शान्ताय नमः
ॐ सर्व-कर्मणे नमः
ॐ प्लवंगमाय नमः
ॐ नखदारितरक्षसे नमः
ॐ नख-युद्ध-विशारदाय नमः
ॐ कुशलाय नमः
ॐ सुघनाय नमः
ॐ शेषाय नमः
ॐ वासुकये नमः
ॐ तक्षकाय नमः
ॐ स्वराय नमः
ॐ स्वर्ण-वर्णाय नमः
ॐ बलाढ्याय नमः
ॐ राम-पूज्याय नमः
ॐ अघनाशनाय नमः
ॐ कैवल्य-दीपाय नमः
ॐ कैवल्याय नमः
ॐ गरुडाय नमः
ॐ पन्नगाय नमः
ॐ गुरवे नमः
ॐ क्लिक्लिरावणहतारातये नमः
ॐ गर्वाय नमः
ॐ पर्वत-भेदनाय नमः
ॐ वज्रांगाय नमः
ॐ वज्र-वेगाय नमः
ॐ भक्ताय नमः
ॐ वज्र-निवारकाय नमः
ॐ नखायुधाय नमः
ॐ मणिग्रीवाय नमः
ॐ ज्वालामालिने नमः
ॐ भास्कराय नमः
ॐ प्रौढ-प्रतापाय नमः
ॐ तपनाय नमः
ॐ भक्त-ताप-निवारकाय नमः
ॐ शरणाय नमः
ॐ जीवनाय नमः
ॐ भोक्त्रे नमः
ॐ नानाचेष्टा नमः
ॐ चंचलाय नमः
ॐ सुस्वस्थाय नमः
ॐ अस्वास्थ्यघ्ने नमः
ॐ दवे नमः
ॐ खशमनाय नमः
ॐ पवनात्मजाय नमः
ॐ पावनाय नमः
ॐ पवनाय नमः
ॐ कान्ताय नमः
ॐ भक्तागाय नमः
ॐ सहनाय नमः
ॐ बलाय नमः
ॐ मेघनाद-रिपवे नमः
ॐ मेघनाद-संहृतराक्षसाय नमः
ॐ क्षराय नमः
ॐ अक्षराय नमः
ॐ विनीतात्मा वानरेशाय नमः
ॐ सतांगतये नमः
ॐ शिति-कण्ठाय नमः
ॐ श्री-कण्ठाय नमः
ॐ सहायाय नमः
ॐ सहनायकाय नमः
ॐ अस्थलाय नमः
ॐ अनणवे नमः
ॐ भर्गाय नमः
ॐ देवाय नमः
ॐ संसृतिनाशनाय नमः
ॐ अध्यात्म-विद्याय नमः
ॐ साराय नमः
ॐ अध्यात्म-कुशलाय नमः
ॐ सुधिये नमः
ॐ अकल्मषाय नमः
ॐ सत्य-हेतवे नमः
ॐ सत्यगाय नमः
ॐ सत्य-गोचराय नमः
ॐ सत्य-गर्भाय नमः
ॐ सत्य-रूपाय नमः
ॐ सत्याय नमः
ॐ सत्य-पराक्रमाय नमः
ॐ अन्जना-प्राणलिंगाय नमः
ॐ वायु-वंशोद्भवाय नमः
ॐ शुभाय नमः
ॐ भद्र-रूपाय नमः
ॐ रुद्र-रूपाय नमः
ॐ सुरूपस्चित्र-रूपधृताय नमः
ॐ मैनाक-वंदिताय नमः
ॐ सूक्ष्म-दर्शनाय नमः
ॐ विजयाय नमः
ॐ जयाय नमः
ॐ क्रान्त-दिग्मण्डलाय नमः
ॐ रुद्राय नमः
ॐ प्रकटीकृत-विक्रमाय नमः
ॐ कम्बु-कण्ठाय नमः
ॐ प्रसन्नात्मने नमः
ॐ ह्रस्व-नासाय नमः
ॐ वृकोदराय नमः
ॐ लंबोष्टाय नमः
ॐ कुण्डलिने नमः
ॐ चित्र-मालिने नमः
ॐ योग-विदावराय नमः
ॐ वराय नमः
ॐ विपश्चिताय नमः
ॐ कविरानन्द-विग्रहाय नमः
ॐ अनन्य-शासनाय नमः
ॐ फल्गुणीसूनुरव्यग्राय नमः
ॐ योगात्मने नमः
ॐ योगतत्पराय नमः
ॐ योग-वेद्याय नमः
ॐ योग-कर्त्रे नमः
ॐ योग-योनये नमः
ॐ दिगंबराय नमः
ॐ अकारादि-क्षकारान्ताय नमः
ॐ वर्ण-निर्मिताय नमः
ॐ विग्रहाय नमः
ॐ उलूखल-मुखाय नमः
ॐ सिंहाय नमः
ॐ संस्तुताय नमः
ॐ परमेश्वराय नमः
ॐ श्लिष्ट-जंघाय नमः
ॐ श्लिष्ट-जानवे नमः
ॐ श्लिष्ट-पाणये नमः
ॐ शिखा-धराय नमः
ॐ सुशर्मणे नमः
ॐ अमित-शर्मणे नमः
ॐ नारायण-परायणाय नमः
ॐ जिष्णवे नमः
ॐ भविष्णवे नमः
ॐ रोचिष्णवे नमः
ॐ ग्रसिष्णवे नमः
ॐ स्थाणुरेवाय नमः
ॐ हरये नमः
ॐ रुद्रानुकृते नमः
ॐ वृक्ष-कंपनाय नमः
ॐ भूमि-कंपनाय नमः
ॐ गुण-प्रवाहाय नमः
ॐ सूत्रात्मने नमः
ॐ वीत-रागाय नमः
ॐ स्तुति-प्रियाय नमः
ॐ नाग-कन्या-भय-ध्वंसिने नमः
ॐ ऋतु-पर्णाय नमः
ॐ कपाल-भृताय नमः
ॐ अनाकुलाय नमः
ॐ भवोपायाय नमः
ॐ अनपायाय नमः
ॐ वेद-पारगाय नमः
ॐ अक्षराय नमः
ॐ पुरुषाय नमः
ॐ लोक-नाथाय नमः
ॐ रक्ष-प्रभवे नमः
ॐ दृडाय नमः
ॐ अष्टांग-योगाय नमः
ॐ फलभुवे नमः
ॐ सत्य-संधाय नमः
ॐ पुरुष्टुताय नमः
ॐ श्मशान-स्थान-निलयाय नमः
ॐ प्रेत-विद्रावणाय नमः
ॐ क्षमाय नमः
ॐ पंचाक्षर-पराय नमः
ॐ पञ्च-मातृकाय नमः
ॐ रंजनाय नमः
ॐ ध्वजाय नमः
ॐ योगिने नमः
ॐ वृन्द-वंद्याय नमः
ॐ शत्रुघ्नाय नमः
ॐ अनन्त-विक्रमाय नमः
ॐ ब्रह्मचारिणे नमः
ॐ इन्द्रिय-रिपवे नमः
ॐ धृतदण्डाय नमः
ॐ दशात्मकाय नमः
ॐ अप्रपंचाय नमः
ॐ सदाचाराय नमः
ॐ शूर-सेना-विदारकाय नमः
ॐ वृद्धाय नमः
ॐ प्रमोदाय नमः
ॐ आनंदाय नमः
ॐ सप्त-जिह्व-पतिर्धराय नमः
ॐ नव-द्वार-पुराधाराय नमः
ॐ प्रत्यग्राय नमः
ॐ सामगायकाय नमः
ॐ षट्चक्रधाम्ने नमः
ॐ स्वर्लोकाय नमः
ॐ भयहृते नमः
ॐ मानदाय नमः
ॐ अमदाय नमः
ॐ सर्व-वश्यकराय नमः
ॐ शक्तिरनन्ताय नमः
ॐ अनन्त-मंगलाय नमः
ॐ अष्ट-मूर्तिर्धराय नमः
ॐ नेत्रे नमः
ॐ विरूपाय नमः
ॐ स्वर-सुन्दराय नमः
ॐ धूम-केतवे नमः
ॐ महा-केतवे नमः
ॐ सत्य-केतवे नमः
ॐ महारथाय नमः
ॐ नन्दि-प्रियाय नमः
ॐ स्वतन्त्राय नमः
ॐ मेखलिने नमः
ॐ समर-प्रियाय नमः
ॐ लोहांगाय नमः
ॐ सर्वविदे नमः
ॐ धन्विने नमः
ॐ षट्कलाय नमः
ॐ शर्वाय नमः
ॐ ईश्वराय नमः
ॐ फल-भुजे नमः
ॐ फल-हस्ताय नमः
ॐ सर्व-कर्म-फलप्रदाय नमः
ॐ धर्माध्यक्षाय नमः
ॐ धर्म-फलाय नमः
ॐ धर्माय नमः
ॐ धर्म-प्रदाय नमः
ॐ अर्थदाय नमः
ॐ पं-विंशति-तत्त्वज्ञाय नमः
ॐ तारक-ब्रह्म-तत्पराय नमः
ॐ त्रि-मार्गवसतये नमः
ॐ भीमाये नमः
ॐ सर्व-दुष्ट-निबर्हणाय नमः
ॐ ऊर्जस्वानाय नमः
ॐ निष्कलाय नमः
ॐ मौलिने नमः
ॐ गर्जाय नमः
ॐ निशाचराय नमः
ॐ रक्तांबर-धराय नमः
ॐ रक्ताय नमः
ॐ रक्त-माला-विभूषणाय नमः
ॐ वन-मालिने नमः
ॐ शुभांगांय नमः
ॐ श्वेताय नमः
ॐ श्वेतांबराय नमः
ॐ जयाय नमः
ॐ जय-परीवाराय नमः
ॐ सहस्र-वदनाय नमः
ॐ कपये नमः
ॐ शाकिनी-डाकिनी-यक्ष-रक्षाय नमः
ॐ भूतौघ-भंजनाय नमः
ॐ सद्योजाताय नमः
ॐ कामगतये नमः
ॐ ज्ञान-मूर्तये नमः
ॐ यशस्कराय नमः
ॐ शंभु-तेजसे नमः
ॐ सार्वभौमाय नमः
ॐ विष्णु-भक्ताय नमः
ॐ चतुर्नवति-मन्त्रज्ञाय नमः
ॐ पौलस्त्य-बल-दर्पहाय नमः
ॐ सर्व-लक्ष्मी-प्रदाय नमः
ॐ श्रीमानाय नमः
ॐ अन्गदप्रियाय नमः
ॐ स्मृतये नमः
ॐ सुरेशानाय नमः
ॐ संसार-भय-नाशनाय नमः
ॐ उत्तमाय नमः
ॐ श्रीपरिवाराय नमः
ॐ सदागतिर्मातरये नमः
ॐ राम-पादाब्ज-षट्पदाय नमः
ॐ नील-प्रियाय नमः
ॐ नील-वर्णाय नमः
ॐ नील-वर्ण-प्रियाय नमः
ॐ सुहृताय नमः
ॐ राम दूताय नमः
ॐ लोक-बन्धवे नमः
ॐ अन्तरात्मा-मनोरमाय नमः
ॐ श्री राम ध्यानकृद् वीराय नमः
ॐ सदा किंपुरुषस्स्तुताय नमः
ॐ राम कार्यांतरंगाय नमः
ॐ शुद्धिर्गतिरानमयाय नमः
ॐ पुण्य श्लोकाय नमः
ॐ परानन्दाय नमः
ॐ परेशाय नमः
ॐ प्रिय सारथये नमः
ॐ लोक-स्वामिने नमः
ॐ मुक्ति-दात्रे नमः
ॐ सर्व-कारण-कारणाय नमः
ॐ महा-बलाय नमः
ॐ महा-वीराय नमः
ॐ पारावारगतये नमः
ॐ समस्त-लोक-साक्षिणे नमः
ॐ समस्त-सुर-वंदिताय नमः
ॐ सीता-समेत-श्रीराम-पाद-सेवा-धुरंधराय नमः


!!! वेदसार शिवस्तोत्रम् !!!

श्रीः.. .. अथ वेदसारशिवस्तोत्रम्.. 

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम् . जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् .. १.. 

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम् . विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् .. २.. 

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम् . भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् .. ३.. 

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन् . त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप .. ४.. 

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम् . यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् .. ५.. 

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायु- र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा . न चोष्णं न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे .. ६.. 

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम् . तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम् .. ७.. 

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते . नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य .. ८.. 

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्र . शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः .. ९.. 

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन् . काशीपते करुणया जगदेतदेक- स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि .. १०.. 

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ . त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन् .. ११.. 

इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ वेदसारशिवस्तोत्रं संपूर्णम् .


!!! लक्ष्मी को स्थिर करने के उपाय !!!



घर में समृद्धि लाने हेतु घर के उत्तरपश्चिम के कोण (वायव्य कोण) में सुन्दर से मिट्टी के बर्तन में कुछ सोने-चांदी के सिक्के, लाल कपड़े में बांध कर रखें। फिर बर्तन को गेहूं या चावल से भर दें। ऐसा करने से घर में धन का अभाव नहीं रहेगा।

घर में स्थायी सुख-समृद्धि हेतु पीपल के वृक्ष की छाया में खड़े रह कर लोहे के बर्तन में जल, चीनी, घी तथा दूध मिला कर पीपल के वृक्ष की जड़ में डालने से घर में लम्बे समय तक सुख-समृद्धि रहती है और लक्ष्मी का वास होता है।

घर में बार-बार धन हानि हो रही हो तों वीरवार को घर के मुख्य द्वार पर गुलाल छिड़क कर गुलाल पर शुद्ध घी का दोमुखी (दो मुख वाला) दीपक जलाना चाहिए। दीपक जलाते समय मन ही मन यह कामना करनी चाहिए की भविष्य में घर में धन हानि का सामना न करना पड़े´। जब दीपक शांत हो जाए तो उसे बहते हुए पानी में बहा देना चाहिए।

काले तिल परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर सात बार उसार कर घर के उत्तर दिशा में फेंक दें, धनहानि बंद होगी।

घर की आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए घर में सोने का चौरस सिक्का रखें। कुत्ते को दूध दें। अपने कमरे में मोर का पंख रखें।

अगर आप सुख-समृद्धि चाहते हैं, तो आपको पके हुए मिट्टी के घड़े को लाल रंग से रंगकर, उसके मुख पर मोली बांधकर तथा उसमें जटायुक्त नारियल रखकर बहते हुए जल में प्रवाहित कर देना चाहिए।

अखंडित भोज पत्र पर 15 का यंत्र लाल चन्दन की स्याही से मोर के पंख की कलम से बनाएं और उसे सदा अपने पास रखें।

व्यक्ति जब उन्नति की ओर अग्रसर होता है, तो उसकी उन्नति से ईर्ष्याग्रस्त होकर कुछ उसके अपने ही उसके शत्रु बन जाते हैं और उसे सहयोग देने के स्थान पर वे ही उसकी उन्नति के मार्ग को अवरूद्ध करने लग जाते हैं, ऐसे शत्रुओं से निपटना अत्यधिक कठिन होता है। ऐसी ही परिस्थितियों से निपटने के लिए प्रात:काल सात बार हनुमान बाण का पाठ करें तथा हनुमान जी को लड्डू का भोग लगाए¡ और पाँच लौंग पूजा स्थान में देशी कर्पूर के साथ जलाएँ। फिर भस्म से तिलक करके बाहर जाए¡। यह प्रयोग आपके जीवन में समस्त शत्रुओं को परास्त करने में सक्षम होगा, वहीं इस यंत्र के माध्यम से आप अपनी मनोकामनाओं की भी पूर्ति करने में सक्षम होंगे।

कच्ची धानी के तेल के दीपक में लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें। अनिष्ट दूर होगा और धन भी प्राप्त होगा।

अगर अचानक धन लाभ की स्थितियाँ बन रही हो, किन्तु लाभ नहीं मिल रहा हो, तो गोपी चन्दन की नौ डलियाँ लेकर केले के वृक्ष पर टाँग देनी चाहिए। स्मरण रहे यह चन्दन पीले धागे से ही बाँधना है।

अकस्मात् धन लाभ के लिये शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार को सफेद कपड़े के झंडे को पीपल के वृक्ष पर लगाना चाहिए। यदि व्यवसाय में आकिस्मक व्यवधान एवं पतन की सम्भावना प्रबल हो रही हो, तो यह प्रयोग बहुत लाभदायक है।

अगर आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हों, तो मन्दिर में केले के दो पौधे (नर-मादा) लगा दें।

अगर आप अमावस्या के दिन पीला त्रिकोण आकृति की पताका विष्णु मन्दिर में ऊँचाई वाले स्थान पर इस प्रकार लगाएँ कि वह लहराता हुआ रहे, तो आपका भाग्य शीघ्र ही चमक उठेगा। झंडा लगातार वहाँ लगा रहना चाहिए। यह अनिवार्य शर्त है।

देवी लक्ष्मी के चित्र के समक्ष नौ बत्तियों का घी का दीपक जलाए¡। उसी दिन धन लाभ होगा।

एक नारियल पर कामिया सिन्दूर, मोली, अक्षत अर्पित कर पूजन करें। फिर हनुमान जी के मन्दिर में चढ़ा आएँ। धन लाभ होगा।

पीपल के वृक्ष की जड़ में तेल का दीपक जला दें। फिर वापस घर आ जाएँ एवं पीछे मुड़कर न देखें। धन लाभ होगा।

प्रात:काल पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाएँ तथा अपनी सफलता की मनोकामना करें और घर से बाहर शुद्ध केसर से स्वस्तिक बनाकर उस पर पीले पुष्प और अक्षत चढ़ाए¡। घर से बाहर निकलते समय दाहिना पाँव पहले बाहर निकालें।

एक हंडिया में सवा किलो हरी साबुत मूंग की दाल, दूसरी में सवा किलो डलिया वाला नमक भर दें। यह दोनों हंडिया घर में कहीं रख दें। यह क्रिया बुधवार को करें। घर में धन आना शुरू हो जाएगा।

प्रत्येक मंगलवार को 11 पीपल के पत्ते लें। उनको गंगाजल से अच्छी तरह धोकर लाल चन्दन से हर पत्ते पर 7 बार राम लिखें। इसके बाद हनुमान जी के मन्दिर में चढ़ा आएं तथा वहां प्रसाद बाटें और इस मंत्र का जाप जितना कर सकते हो करें। `जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करो गुरू देव की नांई´ 7 मंगलवार लगातार जप करें। प्रयोग गोपनीय रखें। अवश्य लाभ होगा।

अगर नौकरी में तरक्की चाहते हैं, तो 7 तरह का अनाज चिड़ियों को डालें।

ऋग्वेद (4/32/20-21) का प्रसिद्ध मन्त्र इस प्रकार है -

`ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।।´ 

(हे लक्ष्मीपते ! आप दानी हैं, साधारण दानदाता ही नहीं बहुत बड़े दानी हैं। आप्तजनों से सुना है कि संसारभर से निराश होकर जो याचक आपसे प्रार्थना करता है उसकी पुकार सुनकर उसे आप आर्थिक कष्टों से मुक्त कर देते हैं – उसकी झोली भर देते हैं। हे भगवान मुझे इस अर्थ संकट से मुक्त कर दो।


निम्न मन्त्र को शुभमुहूर्त्त में प्रारम्भ करें। प्रतिदिन नियमपूर्वक 5 माला श्रद्धा से भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करके, जप करता रहे -


"ॐ क्लीं नन्दादि गोकुलत्राता दाता दारिद्र्यभंजन।सर्वमंगलदाता च सर्वकाम प्रदायक:। श्रीकृष्णाय नम:" 

भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष भरणी नक्षत्र के दिन चार
घड़ों में पानी भरकर किसी एकान्त कमरे में रख दें। अगले दिन जिस घड़े का पानी कुछ कम हो उसे अन्न से भरकर प्रतिदिन विधिवत पूजन करते रहें। शेष घड़ों के पानी को घर, आँगन, खेत आदि में छिड़क दें। अन्नपूर्णा देवी सदैव प्रसन्न रहेगीं।

किसी शुभ कार्य के जाने से पहले

-रविवार को पान का पत्ता साथ रखकर जायें।सोमवार को दर्पण में अपना चेहरा देखकर जायें।मंगलवार को मिष्ठान खाकर जायें।बुधवार को हरे धनिये के पत्ते खाकर जायें।गुरूवार को सरसों के कुछ दाने मुख में डालकर जायें।शुक्रवार को दही खाकर जायें।शनिवार को अदरक और घी खाकर जाना चाहिये।

किसी भी शनिवार की शाम को माह की दाल के दाने लें। उसपर थोड़ी सी दही और सिन्दूर लगाकर पीपल के वृक्ष के नीचे रख दें और बिना मुड़कर देखे वापिस आ जायें। सात शनिवार लगातार करने से आर्थिक समृद्धि तथा खुशहाली बनी रहेगी।

गृह बाधा की शांति के लिए पश्चिमाभिमुख होकर 

क्क नमः शिवाय 

मंत्र का २१ बार या २१ माला श्रद्धापूर्वक जप करें।

आर्थिक परेशानियों से मुक्ति के लिए गणपति की नियमित आराधना करें। इसके अलावा श्वेत गुजा (चिरमी) को एक शीशी में गंगाजल में डाल कर प्रतिदिन श्री सूक्त का पाठ करें। बुधवार को विशेष रूप से प्रसाद चढ़ाकर पूजा करें।


आर्थिक समस्या के छुटकारे के लिए :

यदि आप हमेशा आर्थिक समस्या से परेशान हैं तो इसके लिए आप 21 शुक्रवार 9 वर्ष से कम आयु की 5 कन्यायों को खीर व मिश्री का प्रसाद बांटें !

घर और कार्यस्थल में धन वर्षा के लिए :
इसके लिए आप अपने घर, दुकान या शोरूम में एक अलंकारिक फव्वारा रखें !
या एक मछलीघर जिसमें 8 सुनहरी व एक काली मछ्ली हो रखें ! इसको उत्तर या उत्तरपूर्व की ओर रखें ! यदि कोई मछ्ली मर जाय तो उसको निकाल कर नई मछ्ली लाकर उसमें डाल दें !


परेशानी से मुक्ति के लिए :

आज कल हर आदमी किसी न किसी कारण से परेशान है ! कारण कोई भी हो आप एक तांबे के पात्र में जल भर कर उसमें थोडा सा लाल चंदन मिला दें ! उस पात्र को सिरहाने रख कर रात को सो जांय ! प्रातः उस जल को तुलसी के पौधे पर चढा दें ! धीरे-धीरे परेशानी दूर होगी !
घर में स्थिर लक्ष्मी के वास के लिए : चक्की पर गेहूं पिसवाने जाते समय तुलसी के ग्यारह पत्ते गेहूं में डाल दें। एक लाल थैली में केसर के २ पत्ते और थोड़े से गेहूं डालकर मंदिर में रखकर फिर इन्हें भी पिसवाने वाले गेंहू में मिला दें, धन में बरकत होगी और घर में स्थ्रि लक्ष्मी का वास होगा। आटा केवल सोमवार या शनिवार को पिसवाएं।

पैतृक संपत्ति की प्राप्ति के लिए :
घर में पूर्वजों के गड़े हुए धन की प्राप्ति हेतु किसी सोमवार को २१ श्वेत चितकवरी कौड़ियों को अच्छी तरह पीस लें और चूर्ण को उस स्थान पर रखें, जहां धन गड़े होने का अनुमान हो। धन गड़ा हुआ होगा, तो मिल जाएगा।


!!! माला में प्राण प्रतिष्ठा !!!


क्या सामान्य से सामान्य से प्रयोग में संस्कारित माला की जरुरत होती हैं ?? 

तो उत्तर यह हैं की हाँ बिना संस्कार की माला का प्रयोग करने से सम्बंधित देवता क्रुद्ध हो जाते हैं तो हर प्रयोग के लिए यह माला कहां से लाये तो आप सभी के लाभार्थ यह माला को संस्कारित करने की विधिया इस लेख में आप सभी के लिए

आप जानते हैं की विभिन्न प्रयोग के लिए विभिन्न मनको की माला का उपयोग होता हैं , कभी 51 तो कभी 31 पर अधिकांश प्रयोग और साधना में 108 मनको से युक्त माला का प्रयोग होता हैं.

पर १०८ ही क्यों यूं तो सभी का एक विशेष अर्थ हैं हैं पर सदगुरुदेव भगवान् ने कहा हैं की मानव शरीर में 7 चक्र नहीं बल्कि108 चक्र होते हैं , और उन्होंने इस संदर्भ में विभिन्न उदाहरण भी दिए हैं साथ ही साथ इस हेतु एक बार एक विशिष्ठ दीक्षा १०८ चक्र जागरण दीक्षा भी उन्होंने प्रदान की थी, तो जब भी हम 108 मनको की माला से मंत्र जप करते हैं तब हर मनके के माध्यम से एक विशेष चक्र पर स्पंदन होता ही हैं फिर उसे हम महसूस चाहे या न चाहे करे .यही एक गोपनीय तथ्य हैं इन मनको का 108 होने का तभी तो 108 मनको वाली माला सर्वार्थ सिद्धि प्रदायक कही जाती हैं

और यह माला ही तो इस साधना की एक विशेष उपकरण हैं ,सदगुरुदेव भगवान् कहते हैं की की क्यों एक छोटी छोटी से बात पर अपने सदगुरुदेव पर भी निर्भर रहना , उन्होंने ही तो अनेक बार माला और यंत्रो को प्राण प्रतिष्ठित करने की विधिया बताई , उ ससमय के अनेक साधक इस बात के प्रमाण हैं ,

और जब हम आगे बढ़ कर सिद्धाश्रम तक जाने की बात करते हैं और हम खुद एक सामान्य सी माला प्राण प्रतिष्ठित न कर पाए तो आप ही सोच सकते हैं हम हैं कहाँ , अतः इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए इस प्रक्रिया को आपके सामने रहा जा रहा हैं .
यह लेख आरिफ खान जी के द्वारा अनेको वर्ष पहले भी एक पत्रिका में प्रकाशित हो चूका हैं उसी का संक्षिप्त रूप आपके सामने हैं .

ध्यान रहे यहाँ हम माला निर्माण की प्रक्रिया नहीं बता रहे हैं वह एक और ही अलग विषय हैं .


प्रथम तरीका :सर्वाधिक सरल तरीका तो यह हैं की आप किसी भी माला /मालाओं को किसी भी ज्योतिर्लिंग या शक्ति पीठ में मुख्य विग्रह से स्पर्श करा ले, उनकी प्राण उर्जा से माला स्वतः हो प्राण प्रतिष्ठित हो जाती हैं .
द्वितीय तरीका : यह हैं की यदि आप से रुद्राभिषेक करते बनता हैं या आप के घर में किसी से या कोई पंडित द्वारा आपके घर में रुद्राभिषेक किया जा रहा हो उस समय काल में किसी भी पात्र में यह माला जिसे प्राण प्रतिष्ठित किया जाना हैं उसे रख दे ,यह स्वत ही परं प्रतिष्ठित हो जाती हैं , रुद्राभिषेक की विधि आप गीता प्रेस की किताबों में पा सकते हैं .

तृतीय तरीका :आप के जो भी गुरु हो उनके हाथो के स्पर्श मात्र से भी यह प्रक्रिया सुगमता पूर्वक संपन्न हो जाती हैं .

 चतुर्थ तरीका :माला को गंगा जल से स्नान कराये और निम्न मन्त्र उसी माला से १०८ बार जप कर ले , यह भी एक सुगम तरीका हैं .

माले माले महामाले सर्व तत्त्व स्वरूपिणी |
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्त स्तस्मंमे सिद्धिदा भव ||
पंचम तरीका : शास्त्रीय प्रक्रिया :


पीपल के नौ पत्ते को इस तरह से रखे की एक पत्ता बीच में और और अन्य पत्ते उसे केंद्र मानते हुए इस प्रकार रखे मानो एक अष्ट दल कमल सा बन जाये , बीच के पत्ते पर आप अपनी माला रख दे और हिंदी वर्ण माला से वर्ण ॐ अं से लेकर क्षं तक सभी का उच्चारण करते हुए उस माला को पंचगव्य से स्नान कराये. फिर सद्योजात मंत्र का उच्चारण करते हुए

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः |
भवे भवे नाति भवे भवस्य माँ भवो द्वावाय नमः ||
निम्न वामदेव मन्त्र से चन्दन माला पर लगा यें
बलाय नमो बल प्रमथ नाय नमः सर्व भूतदहनाय नमो मनो न्मथाय नमः ||

धुप बत्ती अघोरमंत्र से दिखाए

ॐ अघोरेभ्योSथ घोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य: सर्वेभ्य : सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्य :

फिर तत्पुरुष मंत्र से लेपन करे

ॐ तत्पुरुषाय विद्म्ह्ये महादेवी धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात |

फिर इसके एक एक दाने पर एक बार या सौ सौ बार इशान मंत्र का जप करे

ॐ ईशान: सर्व विद्यानामिश्वर : सर्व भूतानां ब्रह्मा धिपति र ब्रह्मणो s धिपतिर्ब्रह्मा शिवो में अस्तु सदाशिवोsम |

अब बात आती हैं कि कैसे देवता की स्थापना की जाए तो यदि आप इस माला को शक्ति कार्यों में उपयोग करना चाहते हैं तो "ह्रीं " इस मंत्र के पहले लगा कर और लाल रंग के पुष्पों से इसका पूजन करें. और वैष्णवों को निम्न मन्त्र का उपयोग करें

ॐ ऐं श्रीं अक्षमाला यै नमः ||

फिर हर वर्ण मतलब अं से लेकर क्षं तक लेकर इनसे संपुटित करके १०८ /१०८ बार अपने इष्ट मन्त्र का उच्चारण करे .

फिर यह प्रार्थना करे

ॐ त्वं माले सर्वदेवानां सर्व सिद्धिप्र्दा मता |

तें सत्येन में सिद्धिं देहि मातर्नामो s स्तू ते ||

अब इस माला को हर के सामने दिखाए नहीं , आपको जो भी विधि उचित लगे उसका उपयोग करके एक प्राण प्रतिष्ठित माला का निर्माण आप कर सकते हैं उसे साधना में प्रयोग करसकते हैं .
पर यह तो प्रकिया मणि माला को संस्कारित करने की हैं पर विशेष शक्ति युक्त तांत्रिक माला का निर्माण कैसे किया जाए , यह विधान पहली बार ही सामने आ रहा हैं , तो इसमें आपको

ॐ सर्व माला मणि माला सिद्धि प्रदात्रयि शक्ति रुपिंयै नमः

१०८ बार उच्चारण करना हैं इस दौरान माला हाथ में घुमती यां उसे घुमाते रहे गी /रहे




!!! माला को शुद्ध करने का संस्कार !!!


पीपल के 9 पत्ते ज़मीन मे रखकर एक पत्ता बीच मे तथा शेष 8 कमल की तरह बनाकर बीच वाले मे माला रखे और अं आं इत्यादि सं हं पर्यंत समस्त स्वर व्यंजन का आनुनासिक उच्चारण का पंचगव्य से माला प्रक्षालन करे तथा सघोजात मंत्र पढ़कर उसे जल से धो ले |

ॐ सघो जातं प्रपघामी सघो जाताय वै नमो नमः
भवे भवे नाती भवे भवस्य मां भवोदभवाय नमः ||

फिर वामदेव मंत्र से चन्दन लेप करे | 

ॐ वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राक्ष नमः कल विकरनाय नमो बल विकरनाय नमः |

बलाय नमो बल प्रमथनाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोनमनाय नमः |

फिर अघोर मंत्र से धूप दान दे |

ॐ अघोरेभ्योsथेरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य:म सर्वेभ्य: सर्व शर्वेभ्या नमस्ते अस्तु रुद्ररुपेभ्य: ||

फिर एक एक दाने पर सौ सौ ईशान मंत्र का जाप करे |

ॐ ईशान: सर्व विद्यानामीश्वर: सर्वभूतानां ब्रहमाधिपति ब्राह्मणोsधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदा शिवोम ||

फिर माला मे अपने इष्ट देवता की प्राण प्रतिष्ठा कर प्रार्थना करे |

माले माले महामालेसर्व तत्व स्वरूपिणी 

चतर्वस्त्वयी- न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्दी दाभव: ||