15 October 2012

क्यों 'ॐ' से शुरू होते हैं मंत्र ?



देव उपासना में तरह-तरह के मंत्र बोलें जाते हैं। लेकिन सभी मंत्रों में एक शुभ अक्षर समान रूप से बोला जाता है। वह है ॐ यानी प्रणव। वैदिक, पौराणिक या बीज मंत्रों की शुरुआत ऊँकार से होती है। असल में मंत्रों के आगे ॐ लगाने के पीछे का रहस्य धर्मशास्त्रों में मिलता है। 

डालते हैं इस पर एक नजर-

शास्त्रों के मुताबिक पूरी प्रकृति तीन गुणों से बनी है। ये तीन गुण है - रज, सत और तम। वहीं ॐ को एकाक्षर ब्रह्म माना गया है, जो पूरी प्रकृति की रचना, स्थिति और संहार का कारण है। इस तरह इन तीनों गुणों का ईश्वर ॐ है। चूंकि भगवान गणेश भी परब्रह्म का ही स्वरूप हैं। उनके नाम का एक अर्थ गणों के ईश ही नहीं गुणों का ईश भी है।

इस कारण ॐ को प्रणवाकार गणेश की मूर्ति भी माना गया है। श्री गणेश मंगलमूर्ति होकर प्रथम पूजनीय देवता भी हैं। इसलिए ॐ यानी प्रणव को श्री गणेश का प्रत्यक्ष रूप मानकर वेदमंत्रों के आगे विशेष रूप से लगाकर उच्चारण किया जाता है। जिसमें मंत्रों के आगे श्री गणेश की प्रतिष्ठा, ध्यान और नाम जप का भाव होता है, जो पूरे संसार के लिये बहुत ही मंगलकारी, शुभ और शांति देने वाला होता है।

क्या स्त्रियों को वेदाधिकार नहीं है... ?



इस विषय पर मैं पाठकों का ध्यान कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों की ओर दिलाना चाहता हूँ :

०१. जब ऋग्वेद के मन्त्र द्रष्टा ऋषि स्त्रियां हो सकतीं हैं तो उनको अध्ययन के अधिकार का निषेध करना मेरी दृष्टि से कभी समयविशेष की आवश्यकता रही होगी, आज इस बात की आवश्यकता नहीं।

०२. ऋग्वेद के मन्त्रों का दर्शन करने वाले ४०२ ऋषियों में से ३७७ पुरुष तथा २५ महिलायें हैं, जब देवता हिरण्यगर्भ प्राण इन २५ ऋषिकाओं के पवित्र हृदय में वेदमन्त्रों का प्राकट्य कर सकते हैं, तो फिर माताओं को वेदाध्ययन का अधिकार न देने का कोई औचित्य नहीं।

०३. बृहदारण्यकोपनिषद् में गार्गी एवं मैत्रेयी के याज्ञवल्क्यमुनि के साथ संवाद को देख कर कहीं से भी नहीं लगता कि वे अपने वैदिक ज्ञान में यजुर्वेद के इस श्रेष्ठतम मुनि से कहीं भी कम होंगी।

०४. इसके अतिरिक्त स्मृतिवाक्यों ने स्वीकार किया कि प्राचीन काल में स्त्रियों को गायत्री मन्त्र भी दिया जाता था ओर मौञ्जी बन्धन भी किया जाता था। पुरा कल्पे तु नारीणां मौज्ञ्जी बन्धनमिष्यते इत्यादि।

०५. पत्नी शब्द का संस्कृत में अर्थ ही होता है पति के साथ यज्ञ में संयुक्त होने वाली... हम जानते हैं कि वैदिक काल में कोई भी यज्ञ यजमानी के बिना नहीं हो सकता था... अब अगर उसको वेद का ज्ञान नहीं होगा, तो वह वैदिक यज्ञ कैसे सम्पन्न करेगी ?

०६. हां, कुछ अपेक्षाकृत आधुनिक धर्मशास्त्रों में और पुराणों में स्पष्ट निषेध है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि जब विदेशियों के आक्रमण के परिणाम स्वरूप स्त्रियों का जीवन भारत में असुरक्षित होता चला गया है, तभी घूंघट से ले कर सारे सीमित करने वाले नियम उनकी सुरक्षा के लिये वैसे ही बनाये गये हैं। जैसे आज से कुछ वर्ष पहले तक फिलिस्तीन की मुसलमान लड़कियां कभी अपने बाल और सिर नहीं ढकती थी, पर अब इतने अधिक अत्याचार के उपरान्त अधिकतर अपनी सुरक्षा के लिये उन्हें ढकने लगी हैं।

०७. ऋग्वेद १०:८५ के सम्पूर्ण मन्त्रों की ऋषिकाएँ " सूर्या सावित्री" हैं।

०८. ऋग्वेद की ऋषिकाओं की सूची ब्रह्म देवता के २४ अध्याय में इस प्रकार है -

घोषा गोधा विश्ववारा अपालोपनिषन्नित ।
ब्रह्म जाया जहुर्नाम अगस्तस्य स्वसादिती !!८४!!
इन्द्राणी चेन्द्र माता चा सरमा रोमशोर्वशी ।
लोपामुद्रा च नद्यस्य यमी नारी च शाश्वती !!८५!!
श्री लक्ष्मिः सार्पराज्ञी वाक्श्रद्धा मेधाच दक्षिण ।
रात्रि सूर्या च सावित्री ब्रह्मवादिन्य ईरितः !!८६!!


०९. ऋग्वेद के १०:१३४, १०:३९, १९:४०, ८:९१, १०:५, १०:१०७, १०:१०९, १०:१५४, १०:१५९, १०:१८९, ५:२८, ८:९१ अदि सूक्तों की मंत्रद्रष्टा यह ऋषिकाएँ हैं।

१०. आचार्य श्री मध्वाचार्य जी ने महाभारत निर्णय में द्रौपदी की विद्वता का वर्णन करते हुए लिखा है :

वेदाश्चप्युत्तम स्त्रीभिः कृष्णात्ताभिरिहाखिलाः !

इससे यह प्रमाणित होता है कि महाभारत काल में भी स्त्रियाँ वेदाध्ययन करती थीं।

११. तैत्तिरीय ब्रह्मण में सोम द्वारा 'सीता सावित्री' ऋषिका को तीन वेद देने का वर्णन विस्तारपूर्वक आता है। (तैत्तिरीय ब्राह्मण १:३:१० )

१२. वभूव श्रीमती राजन शांडिलस्य महात्मनः !
सुता धृतव्रता साध्वी, नियता ब्रह्मचारिणी !!
साधू तप्त्वा तपो घोरे दुश्चरम स्त्री जनेन ह !
गता स्वर्ग महाभागा देव ब्रह्मण पूजिता!! 
महाभारत , शल्य पर्व ५४:९ !!

अर्थात:- महात्मा शांडिल्य की पुत्री 'श्रीमती' थी, जिसने व्रतों को धारण किया। वेदाध्ययन में निरंतर प्रवृत्त थी! अत्यंत कठिन तप करके वह देवी ब्राह्मणों से पूजित हुई और स्वर्ग सिधारीं।

१३. अत्र सिद्धा शिवा नाम ब्राह्मणी वेद पारगा!
अधीत्य सकलान वेदान लेभेSसंदेहमक्षयम !! महाभारत, उद्योग पर्व १९०:१८ !!

अर्थात:- शिवा नामक ब्राह्मणी वेदों में पारंगत थीं, उसने सब वेदों को पढ़कर मोक्ष प्राप्त किया !

१४. विष्णु पुराण १:१० और १८:१९ में तथा मार्कंडेय पुराण अध्याय २२ में भी इस प्रकार ब्रह्मवादिनी (वेद और ब्रह्म का उपदेश करने वाली) महिलाओं का वर्णन है।

१५. आचार्य शंकर को भारती देवी के साथ शास्त्रार्थ करना पड़ा था। उसने ऐसा अद्भुत शास्त्रार्थ किया था कि बड़े-बड़े विद्वान भी अचंभित रह गए थे।

शंकर-दिग्विजय में भारती देवी के सम्बन्ध लिखा है-


सर्वाणि शास्त्राणि षडंग वेदान,
कव्यादिकान वेत्ति, परंच सर्वम !
तन्नास्ति नो वेत्ति यदत्र वाला,
तस्मादभुच्चित्र पदम् जनानाम !! 
शंकर दिग्विजय ३:१६ !!

अर्थात:- भारती देवी सर्वशास्त्र तथा अंगों सहित सब वेदों और काव्यों को जानती थीं। उससे बढ़कर श्रेष्ठ और विद्वान् स्त्री और न थी।

आज जिस प्रकार स्त्रियों के शास्त्राध्ययन पर रोक लगी जाती है, यदि उस समय ऐसे प्रतिबन्ध होते तो याज्ञवल्क्य और शंकराचार्य से शास्त्रार्थ करने वाली स्त्रिया किस प्रकार हो सकती थीं?

ऐसे अनेकों प्रमाण मिलते हैं, जिनसे यह स्पष्ट होता है कि स्त्रियाँ भी पुरुषों की तरह यज्ञ करती और कराती थीं! वे यज्ञ-विद्या, ब्रह्म-विद्या आदि में पारंगत थीं। वेद, उपनिषद् आदि धर्मशास्त्रों पर स्त्रियों का सामान अधिकार सर्वदा रहा है।



सोमवार व्रत कथा


एक समय श्री भूतनाथ महादेव जी मृत्युलोक में विवाह की इच्छा करके माता पार्वती के साथ पधारे। विदर्भ देश की अमरावती नगरी जो कि सभी सुखों से परिपूर्ण थी वहां पधारे. वहां के राजा द्वारा एक अत्यंत सुन्दर शिव मंदिर था, जहां वे रहने लगे. एक बार पार्वती जी ने चौसर खलने की इच्छा की. तभी मंदिर में पुजारी के प्रवेश करन्बे पर माताजी ने पूछा कि इस बाज़ी में किसकी जीत होगी? तो ब्राह्मण ने कहा कि महादेव जी की. लेकिन पार्वती जी जीत गयीं. तब ब्राह्मण को उन्होंने झूठ बोलने के अपराध में कोढ़ी होने का श्राप दिया. कई दिनों के पश्चात देवलोक की अपसराएं, उस मंदिर में पधारीं, और उसे देखकर कारण पूछा. पुजारी ने निःसंकोच सब बताया. तब अप्सराओं ने ढाढस बंधाया, और सोलह सोमवार के व्रत्र रखने को बताया. विधि पूछने पर उन्होंने विधि भी उपरोक्तानुसार बतायी. इससे शिवजी की कृपा से सारे मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं.फ़िर अप्सराएं स्वर्ग को चलीं गयीं. ब्राह्मण ने सोमवारों का व्रत कर के रोगमुक्त होकर जीवन व्यतीत किया. 

कुछ दिन उपरांत शिव पार्वती जी के पधारने पर, पार्वती जी ने उसके रोगमुक्त होने का करण पूछा. तब ब्राह्मण ने सारी कथा बतायी. तब पार्वती जी ने भी यही व्रत किया, और उनकी मनोकामना पूर्ण हुई. उनके रूठे पुत्र कार्तिकेय जी माता के आज्ञाकारी हुए. परन्तु कार्तिकेय जी ने अपने विचार परिवर्तन का कारण पूछा. तब पार्वती जी ने वही कथा उन्हें भी बतायी. तब स्वामी कार्तिकेय जी ने भी यही व्रत किया. उनकी भी इच्छा पूर्ण हुई. उनसे उनके मित्र ब्राह्मण ने पूछ कर यही व्रत किया. फ़िर वह ब्राह्मण विदेश गया और एक राज के यहां स्वयंवर में गया. वहां राजा ने प्रण किया था, कि एक हथिनी एक माला, जिस के गले में डालेगी , वह अपनी पुत्री उसी से विवाह करेगा. वहां शिव कृपा से हथिनी ने माला उस ब्राह्मण के गले में डाल दी. राजा ने उससे अपनी पुत्री का विवाह कर दिया. उस कन्या के पूछने पर ब्राह्मण ने उसे कथा बतायी. तब उस कन्या ने भी वही व्रत कर एक सुंदर पुत्र पाया. 

बाद में उस पुत्र ने भी यही व्रत किया और एक वृद्ध राजा का राज्य पाया. जब वह नया राजा सोमवार की पूजा करने गया, तो उसकी पत्नी अश्रद्धा होने से नहीं गयी. पूजा पूर्ण होने पर आकाश वाणी हुई, कि राजन इस कन्या को छोड़ दे, अन्यथा तेरा सर्वनाश हो जाये गा.अंत में उसने रानी को राज्य से निकाल दिया. वह रानी भूखी प्यासी रोती हुई दूसरे नगर में पहुंची. वहां एक बुढ़िया उसे मिली, जिसके साथ वह कथा का बाकि अंश उसे एक बुढि औरत मिलि जो धागे बनाती थी। उसिके साथ काम करने लगि पर दुसरे दिन जब वो धागा बेचने निकली तो अचानक तेज हवा चलि और सारे धागे उडगए तो मालिकिन ने गुस्से मे आकर उसे कामसे निकाल दिया। फिर रोते फिरते वह एक तेलिके घर पहुँची तेलिने उसे रखलिया पर भन्डार घरमे जाते हि तेलके बर्तन गिरगए और तेल बहगया तो उस तेलीने उसे घरसे नीकाल दिया। इसप्रकार सभि जगहसे निकाले जानेके बाद वह एक सुन्दर वनमे पहुँची वहाँके तलावसे पानी पिने के लिए जब बढि तो तालाब सुखगया थोडा पानी बचा जो कि किटोसे युक्त था। उसि पानीको पिकर वो एक ब्रक्षके निचे बैठ गई पर तुरंत उस ब्रक्षके पत्ते झड गए। इसतरह वो जिस ब्रक्षके निचेसे गुजरति वह ब्र्क्ष पत्तोसे बिहिन होजाता ऐसे ही सारा वन हि सुखनेको आया। यह देखकर कुछ चरवाहोने उस रानीको लेकर एक शिवमंदिरके पुजारीके पास लेगए। वहा रानीने पुजारीके आग्रहसे सारी बात बतायी और सुनकर पुजारीने कहाकी तुम्हे शिवका श्राप लगा है। रानीने बिन्ती करके पुछातो पुजारीने इसके निदानका उपाय बताया और सोमवार ब्रतकि बिधि बताई। रानीने तनमन से ब्रत पुरा किया और शिवकी क्रिपासे सत्रहवे सोमवारको राजाका मन परिवर्तन हुवा। 

राजाने रानी को ढुढने दूत भेजे। पता लगने के बाद राजाने बुलावा भेजा पर पुजारीने कहा राजाको स्वयं भेजो। इसपर राजाने विचार कीया और स्वयं पहुचे। रानीको लेकर दरवार पहुचे और उनका स्थान दिया। सम्पुर्ण सहरमे खुसिया मनायी गयि राजाने गरिबोको काफि दानतक्षिणा किया और शिवके परमभक्त होकर नियम पुर्वक 16 सोमवार का ब्रत करने लगे और संसारके सारे सुखको भोगकर अंतमे सिवधाम गए। इसप्रकार जो भि मनुश्य श्रद्धा पुर्वक नियमसे 16 सोमवार का ब्रत करेगा वह इस लोकमे परम सुखोको प्राप्तकर अंतमे परलोकमे मुक्ती प्राप्त होगा

शहद गुणों की खान





शहद को आयुर्वेद में औषधीय गुणों का खजाना माना गया है। शहद का अलग-अलग तरह से उपयोग कर हम हमारे शरीर की कई सारी समस्याओं को दूर भगा सकते हैं। शहद में यह गुण होता भी है कि इसका अलग-अलग वस्तुओं के साथ उ
पयोग करने पर इसके गुण भी भिन्न हो जाते हैं ।

१. शहद को मसूड़ों पर मलने से पायरिया नहीं होता।

२. छोटे बच्चों को दूध पिलाने से पहले शहद चटा दें। फिर दूध पिलाएं ये रोग निरोधक क्षमता बढ़ाता है।

३. बेसन, मलाई में शहद मिलाकर त्वचा पर लगाएं। थोड़ी देर बाद धो लें, चेहरा चमक उठेगा ।

४. प्रतिदिन 25 ग्राम शहद दूध के साथ जरूर लें । इससे शरीर को ताकत मिलती है।

५. त्वचा सम्बन्धी रोग हो या कहीं जल-कट गया हो तो शहद लगाएं। जादू सा असर दिखाई देगा।

६. रात को सोने से पहले दूध के साथ शहद लेने पर बहुत अच्छी नींद आती है।

७. दूध में शक्कर की जगह शहद लेने से गैस नहीं बनती और पेट के कीड़े भी निकल जाते हैं।

८. जुकाम होने पर शहद की भाप लें व उसी पानी से कुल्ला करें।

९. शहद, गाजर के जूस के साथ लेने से आंखों की रोशनी को बढ़ाने में मदद करता है। इसे खाना खाने से एक घंटा पहले लेना चाहिये।

१०. खांसी में यह एक अचूक औषधि का काम करती है। बराबर की मात्र में अदरक के रस के साथ लेने से, सर्दी, गले की खराश, जुकाम तथा छाती में कन्जैशन से आराम मिलता है।

११. अदरक जूस, काली मिर्च के पाउडर के साथ शहर मिला कर (बराबर मात्र) में लेने से अस्थमा के रोगियों को दिन में तीन बार लेने से आराम मिलता है।

१२. प्रात: काल शौच जाने से पहले गर्म पानी के गिलास में 1-2 चम्मच शहद तथा एक चम्मच ‘निंबू जूस’ मिलाकर पीने से रक्त शुद्धि का कार्य करता है तथा मोटापे को बढ़ने से भी रोकता है।

१३. ह्रदय के लिए भी शहद गुणकारी है, मीठी सौंफ के साथ 1-2 चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से दिल को मजबूत तो करता ही है। हृदय को सुचारू रूप से कार्य करने में भी मदद करता है।

हल्दी है इन दो जानलेवा बीमारियों की गजब की दवा --------


हल्दी के गुणों से तो हम और आप तो वर्षों से परिचित रहे हैं और दुनिया के वैज्ञानिक भी इसके नए- नए गुणों के पन्ने जोड़ते चले जा रहे हैं। अब हाल के ही एक शोध को ले लीजिये ,हल्दी मैं पाए जानेवाले तत्व कुर्कुमिन को कैंसर को फैलानेवाली अवस्था जिसे मेटास्टेसिस के नाम से जाना जाता है ,इसे रोकने में मददगार पाया गया है। पश्चिमी देशों में प्रोस्टेट कैंसर सबसे खतरनाक माना जाता रहा है और अधिकांश में इसका पता तब चलता है ,जब इसका ट्यूमर शरीर के कई अंगों में फैल चुका होता है। तीन प्रतिशत रोगियों में यह फैलाव घातक होता है। म्यूनिक स्थित एल.एम् .यू.के डॉ बेट्रिक बेक्मिरर की मानें तो हल्दी के सकिय तत्व करक्यूमिन को मेटास्टेसिसरोधी गुणों से युक्त पाया गया है। 


इन वैज्ञानिकों की टीम ने करक्यूमिन को कैंसर से बचाव सहित दूसरे अंगों में फैलने से रोकने वाले गुणों से युक्त पाया गया है। इससे पूर्व भी इन्हें वैज्ञानिकों ने करक्यूमिन को फेफेड़ों और स्तन के मेटास्टेसिस को रोकने वाले गुणों से युक्त पाया था,वैज्ञानिकों ने करक्यूमिन में कैंसर के फैलने के लिए जिम्मेदार दो प्रोटीन के निर्माण को कम कर देने वाले गुणों से युक्त पाया है।

करक्यूमिन के इस प्रभाव के कारण ट्यूमर कोशिकाएं कम मात्रा में साइटोकाईनिन को पैदा कर पाती हैं,जो मूलत: कैंसर के फैलाव यानी मेटास्टेसिस के लिए जिम्मेदार होता है। डॉ.बेक्मिरर का तो यहाँ तक कहना है की हल्दी में पाया जानेवाला तत्व करक्यूमिन केवल कैंसर के फैलाव को ही कम नहीं करता है ,अपितु इसके नियमित सेवन से स्तन और प्रोस्टेट के कैंसर से भी बचा जा सकता है। वैज्ञानिकों ने प्रतिदिन आठ ग्राम तक करक्यूमिन की मात्रा को मानव शरीर के लिए सुरक्षित माना है। 


हल्दी के गुणों का आयुर्वेद के जानकार सदियों से चिकित्सा में प्रयोग कराते आ रहे हैं । भारतीय व्यंजन हल्दी के श्रृंगार के बगैर अधूरी ही मानी गई है। वैज्ञानिकों का यह मानना है की बी.एच .पी .(बीनाइन प्रोस्टेटिक हायपरप्लेसीया ) एवं महिलाएं जिनका पारिवारिक स्तन कैंसर का इतिहास रहा हो उनमें करक्यूमिन का सेवन कैंसर से बचाव की महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकता है।
.
@भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है|


"वेद हिन्दू सनातन धर्म का आधार स्तम्भ"" है...!



जैसा कि आप सभी जानते हैं कि.... ""वेद हिन्दू सनातन धर्म का आधार स्तम्भ"" है...!

परन्तु दुर्भाग्य से.... आधुनिक एवं कलुषित शिक्षा प्रणाली के कारण... आज अत्यधिक पढ़े लिखे लोग भी हमारे अपने धार्मिक एवं परम पवित्र वेद के बारे में बहुत ही कम जानते हैं...!

वेद..... 'विद' शब्द से बना है.... जिसका अर्थ होता है...... ज्ञान या जानना... अथवा , ज्ञाता या जानने वाला..!

सिर्फ जानने वाला... और, जानकर जाना-परखा ज्ञान.... अनुभूत सत्य.... जाँचा-परखा मार्ग....ही वेद है..!

और, हमारे इसी वेद
में संकलित है...... 'ब्रह्म वाक्य'।
आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि....वेद..... मानव सभ्यता के सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं.......।

इनमे से ....वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के 'भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' में रखी हुई हैं......जिनमे ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं...... जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है।

ज्ञातव्य है कि....यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है.... और, यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है।

वेद को 'श्रुति' भी कहा जाता है..... और ... 'श्रुति' शब्द 'श्रु' धातु से शब्द बना है......... 'श्रु' यानी सुनना।

कहते हैं कि...... इसके मन्त्रों को ईश्वर (ब्रह्म) ने प्राचीन तपस्वियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था..... जब वे गहरी तपस्या में लीन थे।

सर्वप्रथम ईश्वर ने चार ऋषियों को इसका ज्ञान दिया:- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य।

वेद ......वैदिककाल की वाचिक परम्परा की अनुपम कृति हैं...... जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिछले छह-सात हजार ईस्वी पूर्व से चली आ रही है।

विद्वानों ने...... संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद इन चारों के संयोग को समग्र वेद कहा है..... और, ये चारों भाग सम्मिलित रूप से श्रुति कहे जाते हैं।

बाकी ग्रन्थ स्मृति के अंतर्गत आते हैं।

संहिता इसका मन्त्र भाग है.... और, वेद के मन्त्रों में सुंदरता भरी पड़ी है।

वैदिक ऋषि जब स्वर के साथ वेद मंत्रों का पाठ करते हैं, तो चित्त प्रसन्न हो उठता है.... और, जो भी सस्वर वेदपाठ सुनता है... वो मुग्ध हो उठता है।

ब्राह्मण : ब्राह्मण ग्रंथों में मुख्य रूप से यज्ञों की चर्चा है... और, वेदों के मंत्रों की व्याख्या है.... तथा, यज्ञों के विधान और विज्ञान का विस्तार से वर्णन है।

मुख्य ब्राह्मण 3 हैं : (1) ऐतरेय, ( 2) तैत्तिरीय और (3) शतपथ।

आरण्यक : वन को संस्कृत में कहते हैं 'अरण्य'.... इसीलिए, अरण्य में उत्पन्न हुए ग्रंथों का नाम पड़ गया 'आरण्यक'।

मुख्य आरण्यक पाँच हैं :
(1) ऐतरेय, (2) शांखायन, (3) बृहदारण्यक, (4) तैत्तिरीय और (5) तवलकार।

उपनिषद : उपनिषद को वेद का शीर्ष भाग कहा गया है और यही वेदों का अंतिम सर्वश्रेष्ठ भाग होने के कारण "वेदांत" कहलाए।

उपनिषद में ईश्वर, सृष्टि और आत्मा के संबंध में गहन दार्शनिक और वैज्ञानिक वर्णन मिलता है..।

उपनिषदों की संख्या 1180 मानी गई है, लेकिन वर्तमान में 108 उपनिषद ही उपलब्ध हैं।

जिनमे से मुख्य उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वर।

असंख्य वेद-शाखाएँ, ब्राह्मण-ग्रन्थ, आरण्यक और उपनिषद विलुप्त हो चुके हैं.... और, वर्तमान में ऋग्वेद के दस, कृष्ण यजुर्वेद के बत्तीस, सामवेद के सोलह, अथर्ववेद के इकतीस उपनिषद उपलब्ध माने गए हैं।

वैदिक काल :
प्रोफेसर विंटरनिट्ज मानते हैं कि वैदिक साहित्य का रचनाकाल 2000-2500 ईसा पूर्व हुआ था।

दरअसल... वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई.... अर्थात, यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: माना यह जाता है कि पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया- ऋग्‍वेद, यजुर्वेद व सामवेद जि‍से वेदत्रयी भी कहा जाता था।

ऐसी मान्यता है कि.... वेद का वि‍भाजन भगवान् राम के जन्‍म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ था... और, बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि‍ अथर्वा द्वारा कि‍या गया।

दूसरी ओर कुछ लोगों का यह भी मानना है कि...... भगवान कृष्ण के समय द्वापरयुग की समाप्ति के बाद महर्षि वेद व्यास ने वेद को चार प्रभागों संपादित करके व्यवस्थित किया।
इन चारों प्रभागों की शिक्षा चार शिष्यों पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु को दी... और, उस क्रम में ऋग्वेद- पैल को, यजुर्वेद- वैशम्पायन को, सामवेद- जैमिनि को तथा अथर्ववेद- सुमन्तु को सौंपा गया।

अगर इस गणना को ही मान लिया जाये तो भी.... लिखित रूप में आज से 6508 वर्ष पूर्व पुराने हैं... वेद।

और.....इस तथ्य को भी नाकारा नहीं जा सकता है कि .....कृष्ण के आज से 5112 वर्ष पूर्व होने के पुख्ता प्रमाण ढूँढ लिए गए हैं।

वेद के कुल चार विभाग हैं:

ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।

१. ऋग-स्थिति,
२. यजु-रूपांतरण,
३. साम-गति‍शील और
४. अथर्व-जड़।

ऋक को धर्म, यजुः को मोक्ष, साम को काम, अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है।

इन्ही चारों के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई।

ऋग्वेद : ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान। इसमें 10 मंडल हैं और 1,028 ऋचाएँ। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियाँ और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है। इसमें 5 शाखाएँ हैं - शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन।

यजुर्वेद : यजुर्वेद का अर्थ : यत् + जु = यजु। यत् का अर्थ होता है गतिशील तथा जु का अर्थ होता है आकाश। इसके अलावा कर्म। श्रेष्ठतम कर्म की प्रेरणा। यजुर्वेद में 1975 मन्त्र और 40 अध्याय हैं। इस वेद में अधिकतर यज्ञ के मन्त्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। यजुर्वेद की दो शाखाएँ हैं कृष्ण और शुक्ल।

सामवेद : साम अर्थात रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इसमें 1875 (1824) मन्त्र हैं। ऋग्वेद की ही अधिकतर ऋचाएँ हैं। इस संहिता के सभी मन्त्र संगीतमय हैं, गेय हैं। इसमें मुख्य 3 शाखाएँ हैं, 75 ऋचाएँ हैं और विशेषकर संगीतशास्त्र का समावेश किया गया है।

अथर्ववेद : थर्व का अर्थ है कंपन और अथर्व का अर्थ अकंपन। ज्ञान से श्रेष्ठ कम करते हुए जो परमात्मा की उपासना में लीन रहता है वही अकंप बुद्धि को प्राप्त होकर मोक्ष धारण करता है। अथर्ववेद में 5987 मन्त्र और 20 कांड हैं। इसमें भी ऋग्वेद की बहुत-सी ऋचाएँ हैं। इसमें रहस्यमय विद्या का वर्णन है।

उक्त सभी में परमात्मा, प्रकृति और आत्मा का विषद वर्णन और स्तुति गान किया गया है। इसके अलावा वेदों में अपने काल के महापुरुषों की महिमा का गुणगान व उक्त काल की सामाजिक, राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थिति का वर्णन भी मिलता है।

छह वेदांग : (वेदों के छह अंग)- (1) शिक्षा, (2) छन्द, (3) व्याकरण, (4) निरुक्त, (5) ज्योतिष और (6) कल्प।

छह उपांग : (1) प्रतिपदसूत्र, (2) अनुपद, (3) छन्दोभाषा (प्रातिशाख्य), (4) धर्मशास्त्र, (5) न्याय तथा (6) वैशेषिक।

ये 6 उपांग ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इसे ही षड्दर्शन कहते हैं, जो इस तरह है:- सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत।

वेदों के उपवेद : ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्ववेद और अथर्ववेद का स्थापत्यवेद ये क्रमशः चारों वेदों के उपवेद बतलाए गए हैं।

आधुनिक विभाजन : आधुनिक विचारधारा के अनुसार चारों वेदों का विभाजन कुछ इस प्रकार किया गया-

(1) याज्ञिक, (2) प्रायोगिक और (3) साहित्यिक।

वेदों का सार है...... उपनिषदें और उपनिषदों का सार...... 'गीता' को माना है।

इस क्रम से वेद, उपनिषद और गीता ही धर्मग्रंथ हैं, दूसरा अन्य कोई नहीं।

स्मृतियों में वेद वाक्यों को विस्तृत समझाया गया है।

जबकि....वाल्मिकी रामायण और महाभारत को इतिहास तथा पुराणों को पुरातन इतिहास का ग्रंथ माना है।

विद्वानों ने भी वेद, उपनिषद और गीता के पाठ को ही उचित बताया है।

ऋषि और मुनियों को दृष्टा कहा गया है..... और, वेदों को ईश्वर वाक्य।

वेद ऋषियों के मन या विचार की उपज नहीं है.... और, ऋषियों ने वह लिखा या कहा जैसा कि... उन्होंने पूर्णजाग्रत अवस्था में देखा... सुना और परखा।

मनुस्मृति में श्लोक (II.6) के माध्यम से कहा गया है कि वेद ही सर्वोच्च और प्रथम प्राधिकृत है... और, वेद किसी भी प्रकार के ऊँच-नीच, जात-पात, महिला-पुरुष आदि के भेद को नहीं मानते।

ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं..... जिनमें से लगभग 30 नाम महिला ऋषियों के हैं।

जन्म के आधार पर जाति का विरोध ऋग्वेद के पुरुष-सुक्त (X.90.12), व श्रीमद्‍भगवत गीता के श्लोक (IV.13), (XVIII.41) में मिलता है।

श्लोक : श्रुतिस्मृतिपुराणानां विरोधो यत्र दृश्यते।
तत्र श्रौतं प्रमाणन्तु तयोद्वैधे स्मृति‌र्त्वरा॥
अर्थात : जहाँ कहीं भी वेदों और दूसरे ग्रंथों में विरोध दिखता हो, वहाँ वेद की बात की मान्य होगी।-वेद व्यास

प्रकाश से अधिक गतिशील तत्व अभी खोजा नहीं गया है..... और, न ही मन की गति को मापा गया है।

परन्तु.... हमारे ऋषि-मुनियों ने..... मन से भी अधिक गतिमान ....किंतु, अविचल का साक्षात्कार किया और उसे 'वेद वाक्य' या 'ब्रह्म वाक्य' बना दिया।

अथ वेद कथा....

जय महाकाल...!!!


वैश्विक षड्यन्त्र ...


देश की लगभग 99 % जनता को लगता है कि देश व दुनियाँ जैसे सामने से दिख रही है वैसे ही सरलता, सहजता, समरसता, प्रेम, सदभावना, समझदारी, लोकतान्त्रिक एवं न्यायपूर्ण तरीको से चल रही है। दुर्भाग्य से जैसे हमें दिख रहा है वैसे दुनियाँ नहीं चल रही है। उदाहरण के तौर पर हम चार विषय प्रस्तुत कर रहे हैं।

1. राजनैतिक षड्यन्त्र : 

भारत का प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, विदेशमंत्री व रक्षामंत्री ऐसा व्यक्ति बनना चाहिए जो अमेरिका व अमेरिकन कंपनियों तथा अन्य विदेशी कंपनियों के हित में नितियाँ बनाने वाला हो, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय नितियों व विषयों पर अमेरिका के नितियों का समर्थन हो, इसके लिए विदेशी ताकतें सामाजिक व आर्थिक रूप से एक लम्बी कार्ययोजना के तहत काम करती हैं। मिडिया मैनेजमेन्ट से लेकर इमेज-बिल्डिंग के लिए बहुत ही बुद्धिमत्ता के साथ काम करती हैं। आने वाले 5 वर्षों से लेकर 50 वर्षों तक भारत के विकास के माडल कैसे हों जिससे कि विदेशी कंपनियाँ अपनी तकनीक, अपनी फैक्ट्रियाँ एवं अनुसंधान उसी दिशा में करें और विदेशों की प्रतिबंधित दवा, हथियार व अन्य उत्पाद भारत में खपते रहें, भारत एक डैम्पिंग सेन्टर बन जाए, इस प्रकार बहुत से ऐसे विषय हैं। हमारी संसद में भी अमेरिका, यूरोप व अन्य विदेशी कंपनियों तथा उन देशों के समर्थक लोगों को बाकायदा फाइनेंश करके तथा अनेक प्रकार से परोक्ष रूप से मदद करके संसद में तथा विधानसभाओं में भेजा जाता है, जिससे की देश के जल, जंगल, जमीन, भू-सम्पदाओं पर विदेशी कंपनियों का कब्जा हो सके। F.D.I.यानी विदेशी पूँजी निवेश के जरिए विदेशी कंपनियों व भ्रष्टाचार करके देश को लूटने वाले लोगों का भारत के सभी आर्थिक संस्थानों, रिटेल से लेकर शेयर मार्केट तक पूरी अर्थव्यवस्था पर इनका वर्चस्व कायम हो सके, इसके लिए वे बहुत ही कूटनीतिक तरीके से ये विदेशी ताकतें तात्कालिक, मध्यकालिक व मध्यकालिक व दिर्घकालिक योजना के तहत काम करती हैं।

2. आर्थिक षड्यन्त्र : 

किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत होती है वहाँ की मजबूत अर्थव्यवस्था। पहले देशों को भौगोलिक रूप से गुलाम बनाकर आर्थिक रूप से लूटा जाता था। अब आर्थिक रूप से गुलाम बनाने का बहुत बड़ा कुचक्र चल रहा है। इस आर्थिक लूट के चक्रव्यूह के जाल का ताना-बाना ऐसे बुना जाता है कि सामान्य व्यक्ति की समझ में तो ये बातें आ ही नहीं सकती। बड़े-बड़े बुद्धिमान लोग भी धोखा खा जाते हैं। किसी भी देश की G.D.P.यानी अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य आधार होते हैं। अग्रीकल्चर, इन्डस्ट्री एवं सर्विसेज। हमारे जल, जंगल, जमीन, भू-सम्पदा एवं बौद्धिक सम्पदाओं का विदेशी कंपनियाँ पूरा शोषण व दोहन कर रही हैं। आज रिटेलर से लेकर शेयर मार्केट तक, हैल्थ, एजुकेशन, रिसर्च एण्ड डेवलप्मेन्ट, मीडिया, रक्षा सामान, पेट्रोलियम प्रोडक्ट से लेकर हमारे देवी-देवता, बच्चों के खिलौने, टी.वी., गाड़ी, मोबाईल, साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट से लेकर जीवन की हर जरूरत का हर सामान विदेशी कंपनियाँ बेच रही हैं। एक तरह से हमने अपना पूरा देश विदेशी कंपनियों के हाथों में गिरवी रख दिया है। अमेरिका, चीन, जर्मनी व जापान आदि स्वदेशी के रास्ते पर चलकर खुद को स्वावलम्बी बना रहे हैं। हम भारतवासी भी बिना स्वदेशी के अपने देश को स्वावलम्बी नहीं बना सकते।

3. सामाजिक षड्यन्त्र : 

सामाजिक रूप से देश का कौन नेतृत्व करेगा, सामाजिक आवाज के रूप में किसे सुना जायेगा। किसे आर्थिक, राजनैतिक व अन्य विषयों में विशेषज्ञ का दर्जा मिलेगा। कौन विश्वसुन्दरी होगी? शोश्यल एक्टिविस्ट के रूप में देश में किसे स्थापित करना है। इसके लिए विदेशी सरकारें, विदेशी कंपनियाँ एवं विदेशी फाउंडेशन्स भारतीय एन.जी.ओ. को दान करती हैं। जो विदेशी कंपनियाँ अमेरिका व यूरोप के हितों में काम करें, उसे बाकायदा अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जाता है। जिससे उनकी देश में प्रतिष्ठा बढ़े, उन्हें विश्वसुन्दरी आदि के पुरस्कार दिये जाते हैं, जिससे कि विदेशी कंपनियों का सामान बेचने के लिए उनका इस्तेमाल किया जा सके। ऐसे कानून पास करवाने के लिए भी विदेशी कंपनियाँ एन.जी.ओ. को दान देती हैं, जिससे उस देश से उनको जरूरी सुचनाएँ प्राप्त करने में आसानी हो और सरकारी संस्थाएँ कमजोर पड़ें जिससे विदेशी कंपनियों व प्राईवेट क्षेत्र के बड़े-बड़े पूँजीपति अपना स्वार्थ सिद्ध कर सकें। ये सब कार्य इतनी होशियारी से किया जाता है कि इनके खिलाफ उठाने वाले व्यक्ति को ही ये अपराधी या दोषी के रूप में प्रमाणित कर देते हैं।

4. नैतिक षड्यन्त्र : 

हमारे देश कि संस्कृति, सभ्यता, संयम, सदाचार एवं प्राचीन मूल्य, आदर्शों व गौरव के सभी प्रतीकों, हमारे महापुरुषों, देवी-देवताओं, गौ, गंगा, गायत्री व वेदों से लेकर भगवान राम, कृष्ण व शिव आदि महापुरुषों के बारे में झूठी बातें प्रचारित करना। महापुरुषों को काल्पनिक बताना तथा रामायण व महाभारत आदि महाकाव्यों को उपन्यास बताकर अपने प्राचीन गौरव को झुठलाने का प्रयास करना। टी.वी. पर ऐसे सीरियल व मनोरंजन के नाम पर ऐसी फिल्में बनवाना व उसमें भोग विलास व दुराचार को ग्लैमर के साथ प्रस्तुत करके देश के लोगों के पुरुषार्थ व चरित्र को नष्ट करने का एक बहुत बड़ा षड्यन्त्र रचा जाता है। ऐसे अश्लील कार्यक्रमों के लिए विज्ञापन खूब मिलें, इसके लिए टी.आर.पी. तय करने वाली कंपनी भी 100% विदेशी नियन्त्रण वाली है। वह टी.आर.पी. बताने वाली विदेशी कंपनी परोक्ष रूप से देश के सभी चैनलों का नियन्त्रण करती हैं। देश की भाषा, भेषज्, भजन, भोजन, भाव व संस्कृति के विनाश का बहुत बड़ा षड्यन्त्र चल रहा है। देश के चरित्र को नष्ट करने का ये चक्रव्यूह हमने नहीं तोड़ा तो देश की बहुत बड़ी हानि हो रही है और आगे बड़ा खतरा आने वाला है। इसी तरह देश में जाति, धर्म व मजहब के नाम पर भी बहुत प्रकार के षड्यन्त्र चलते रहते हैं।

आंदोलन का नेतृत्व करने वाले कार्यकर्ताओं को इन सब बातों का गंभीरता से ध्यान रखकर सावधानी पुर्वक खुद इन षड्यन्त्रों से बचना चाहिए व सामान्य कार्यकर्ताओं को भी सावधान करते रहना चाहिए।



घुटनों का दर्द - कमर का दर्द - बुखार का रामबाण



गठिया या संधिबात का की सबसे अछि दावा है मेथी, हल्दी और सुखा हुआ अदरक माने सोंठ , इन तीनो को बराबर मात्रा में पिस कर, इनका पावडर बनाके एक चम्मच लेना गरम पानी के साथ सुभाह खाली पेट तो इससे घुटनों का दर्द ठीक होता है, कमर का दर्द ठीक होता है, देड़ दो महिना ले सकता है ।

और एक अछि दावा है , एक पेड़ होता है उसे हिंदी में हाड़सिंगार कहते है, संस्कृत पे पारिजात कहते है, बंगला में शिउली कहते है , उस पेड़ पर छोटे छोटे सफ़ेद फूल आते है, और्फूल की डंडी नारंगी रंग की होती है, और उसमे खुसबू बहुत आती है, रात को फूल खिलते है और सुबह जमीन में गिर जाते है । इस पेड़ के पांच पत्ते तोड़ के पत्थर में पिस के चटनी बनाइये और एक ग्लास पानी में इतना गरम करो के पानी आधा हो जाये फिर इसको ठंडा करके पियो तो बीस बीस साल पुराना गठिया का दर्द इससे ठीक हो जाता है  


और येही पत्ते को पीस के गरम पानी में डाल के पियो तो बुखार ठीक कर देता है और जो बुखार किसी दावा से ठीक नही होता वो इससे ठीक होता है ; जैसे चिकनगुनिया का बुखार, डेंगू फीवर, Encephalitis , ब्रेन मलेरिया, ये सभी ठीक होते है

बुखार की और एक अछि दावा है अपने घर में तुलसी पत्ता ; १० - १५ तुलसी के पत्ते तोड़ो, तीन  चार काली मिर्च ले लो पत्थर में पीस के एक ग्लास गरम पानी में मिलके पी लो .. इससे भी बुखार ठीक होता है ।

बुखार की एक और दावा है नीम की गिलोय, अमृता भी कहते है, उडूनची भी कहते है, इसको थोडासा चाकू से काट लो , पत्थर में कुचल के पानी में उबाल लो फिर वो पानी पी लेना तो ख़राब से ख़राब बुखार ठीक हो जाता है ३ दिन में । कभी कभी बुखार जब बहुत जादा हो जाते है तब खून में श्वेत रक्त कनिकाएं , प्लेटलेट्स बहुत कम हो जाते है तब उसमे सबसे जादा काम आती है ये गिलोय ।

नंदी / Nandi


नन्दी भगवान शिव के प्रधान अनुचर एवं भक्त हैं। बिना नन्दी के शिव तत्त्व का उद्देश्य समझना कठिन है। नन्दी का शाब्दिक अर्थ हर्ष, प्रसन्नता आदि है। भगवान शिव का परिवार समग्र विश्व में एक अद्वितीय उदाहरण है, जहां परस्पर विरोधी तत्त्व वास करते हैं और सभी प्रसन्न रहते हुए भक्तों की प्रसन्नता के लिए सदैव चिंतित रहते हैं।

शिव पुराण के अनुसार ऋषि सनत्कुमार ने भगवान शिव के अनुचर नन्दी से पूछा कि आप भगवान शिव के अंश से कैसे उत्पन्न हुए और आपने शिवत्व को कैसे प्राप्त किया, इसके विषय में मुझे कृपा करके कुछ बताएं।

इसके पश्चात् भगवान नन्दी ने अपने संदर्भ में बताते हुए कहा कि जब ऋषि शिलाद को पितरों के उद्धार की इच्छा से संतान प्राप्ति की इच्छा हुई, तब शिलाद ने देवराज इंद्र की प्रसन्नता के लिए तप किया। इंद्र ने प्रसन्न होकर शिलाद से कहा, ‘मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूं, आप वर मांगो।’ शिलाद ने कहा, ‘हे देवराज इंद्र, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो आप मुझे एक अयोनिज अमर पुत्र दीजिए।’ इंद्र ने कहा, ‘हे मुनिश्रेष्ठ मैं तुम्हें अयोनिज मृत्यरहित पुत्र नहीं दे सकता। मैं, देवराज इंद्र और ब्रह्मा-विष्णु कोई भी आपकी इस कामना को पूर्ण नहीं कर सकते।’

अत: इस प्रकार के पुत्र की इच्छा से महादेव भगवान शिव की अराधना करो, वे ही तुम्हें ऐसा पुत्र देंगे। इनके अनन्तर ऋषि शिलाद भगवान महादेव की तपस्या में संलग्न हो गए।

ऋषि की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान महादेव ने उन्हें वर देते 
हुए कहा, ‘हे तपस्वी ब्राह्माण! मैं तुम्हारे घर नन्दी नामक अयोनिज पुत्र के रूप में प्रकट होऊंगा और तुम तीनों लोकों के पिता हो जाओगे।’

‘ऐसा कह कर भगवान महोदव अन्तर्ध्यान हो गए और शिलाद अपने आश्रम में आकर यज्ञ की तैयारी करने लगे। उसी समय मैं शिलाद पुत्र प्रलयकाल की अग्नि के सदृश देदीप्यमान होकर प्रकट हुआ। देवताओं और ऋषियों ने शिलाद के घर मेरे उत्पन्न होने की प्रसन्नता में फूलों की वर्षा कर स्तुतिगान किया। शिलाद ने भी मुझे प्रलयकार के सूर्य के सदृश त्रिनेत्र, चतुर्भुज जटामुकुटधारी बालक के रूप में देख कर कहा, ‘हे प्रभो, आपने मुझे हर्ष और आनंद से आह्लादित किया है, अत: आपका नाम नन्दी होगा और मैं आपको प्रणाम करता हूं।’ मैंने अपना दिव्यरूप छोड़ कर मानव रूप धारण किया।

पांच वर्ष में ही मैंने सभी शास्त्रों एवं वेदों का अध्ययन पूर्ण कर लिया था। सात वर्ष पूर्ण होने पर मित्तावरुण नाम के दो मुनि मुझे (नन्दी) देखने आए और उन्होंने शिलाद से कहा, ‘सभी शास्त्रों के ज्ञाता नन्दी की एक वर्ष आयु शेष है।’ यह सुन कर पुत्र वत्सल शिलाद पुत्र का आलिंगन कर रोने लगे। इसके बाद नन्दी ने कहा, ‘आप क्यों दु:खी हो रहे हैं। देव, दानव, काल और कोई भी मुझे मारना चाहे तो भी मेरी अल्प मृत्यु नहीं हो सकती। मैं आपकी शपथ खाकर सत्य कह रहा हूं।’ शिलाद ने कहा, ‘कौन तप? कौन ज्ञान, कौन योग और कौन तुम्हारा स्वामी है, जो तुम्हें इस दु:ख से दूर करेगा।’ तब पुत्र नन्दी ने कहा, ‘न तप से, न विद्या से। मैं मात्र महादेव शिव के भजन से मृत्यु को जीत सकता हूं।’ इसके बाद मैं पिता को प्रणाम कर उत्तम वन की ओर चला गया।

‘एकांत में जाकर मैंने कठोर तप कर बुढ़ापे और शोक नाश के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव ने कहा, ‘हे वत्स तुम्हें यह भय कैसे हुआ? उन दोनों मुनियों (ब्राह्माणों) को मैंने ही भेजा था। तुम नि:संदेह मेरे समान हो। तुम अपने पिता तथा मित्रजनों के साथ अजर-अमर, दु:खरहित अविनाशी गणपति हो। तुम मेरे बल हो, सदा हमारे साथ रहोगे, मेरे प्रिय होगे। मेरी कृपा दृष्टि से तुम्हें कभी बुढ़ापा नहीं आएगा। न मृत्यु होगी और न ही तुम्हारा कभी अंत होगा।’ भगवान शिव ने निर्मल जल लेकर मुझ पर छिड़कते हुए कहा, तुम नन्दी हो जाओ। इसके बाद भगवान शिव ने अपने गणेशों का स्मरण किया और उन्हें कहा कि नन्दी मेरा प्रिय पुत्र है। इन्हें सभी गणेश्वरों में प्रमुख स्वीकार करो। विष्णु, इंद्रादि देवों के साथ सभी गणेशों ने नन्दी का अभिषेक किया। भगवान नन्दी की पूजा एवं प्रार्थना से अभीष्ट की प्राप्ति होती है।


___खीरा के असरकारी नुस्खे................





ग्रीष्म ऋतु के आगमन के साथ ही बाजारों में खीरे व ककड़ी की बहार आ जाती है। खीरे का सेवन भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक किया जाता है। खीरा देश के हर भाग में उपलब्ध है।

**आयुर्वेद के अनुसार खीरा

स्वादिष्ट, शीतल, प्यास, दाहपित्त तथा रक्तपित्त दूर करने वाला रक्त विकार नाशक है।खीरा व ककड़ी एक ही प्रजाति के फल हैं। खीरे में विटामिन बी व सी, पोटेशियम, फास्फोरस, आयरन आदि विद्यमान होते हैं।

* पेट की गैस, एसिडिटी, छाती की जलन में नियमित रूप से खीरा खाना लाभप्रद होता है।

* जो लोग मोटापे से परेशान रहते हैं उन्हें सवेरे इसका सेवन करना चाहिये। इससे वे पूरे दिन अपने आपको फ्रेश महसूस करेंगे। खीरा हमरी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।

* खीरे को भोजन में सलाद के रूप में अवश्य लेना चाहिये। नमक, काली मिर्च व नींबू डालकर खाने से भोजन आसानी से पचता है व भूख भी बढ़ती है।

* आप यदि उदर विकार से परेशान हैं तो दही में खीरे को कसकर उसमें पुदानी, काला नमक, काली मिर्च, जीरा व हींग डालकर रायता बनाकर खाएं। आराम मिलेगा।

* घुटनों के दर्द को भी दूर भगाता है खीरे का सेवन। घुटनों के दर्द वाले व्यक्ति को खीरे अधिक खाने चाहिये तथा साथ में एक लहसुन की कली भी खा लेनी चाहिये।

* पथरी के रोगी को खीरे का रस दिन में दो-तीन बार जरूर पीना चाहिये। इससे पेशाब में होने वाली जलन व रुकावट दूर होती हैं।
सेहत के लिए गुणकारी : खीरा रक्तचाप को भी काबू में रखने में कारगार है। इसमें मौजूद पोटेशियम ज्यादा और कम दोनों तरह के रक्तचाप को नियंत्रित रखता है। अगर आपके नाखून बार-बार टूट जाते हैं तो आज ही खीरे का सेवन शुरू करें, यह आपके नाखूनों को मजबूती देता है। गैस की समस्या में भी खीरा बेहद लाभदायक होता है। अगर आप किडनी या लीवर की समस्या से परेशान हैं तो खीरे का नियमित रूप से सेवन करने से आपके बालों को भी फायदा होगा। अपने बालों का सेहतमंद रखने के लिए खीरे के जूस का सेवन करें। इसके नियमित इस्तेमाल से बाल लंबे और घने होते हैं। दांतों और मसूढ़े से जुड़ी समस्या और पायरिया जैसे रोग में भी खीरा फायदेमंद है।

****************************
खीरे का उपयोग करते समय कुछ सावधानियां भी बरतें जैसे :-

$ खीरा कभी भी बासी न खाएं।
$ जब भी खीरा खरीदें यह जरूर देख लें कि वह कहीं से गला हुआ न हो।
$ खीरे का सेवन रात में न करें। जहां तक हो सके, दिन में ही इसे खाये।
$ खीरे के सेवन के तुरंत बाद पानी न पियें।
-------------------------------------------------------------------