09 December 2012

दिखावे पर मत जाओ अपनी अकल लगाओ!


चीनी, कैँडी और च्युइँगगम का प्रयोग बंद करो और यदि मीठा खाना ही है तो गुड़ खाओ! जानिए चीनी का प्रयोग कैसे हानिकारक है और गुड़ किस प्रकार लाभदायक है! पढ़िए और सोचिये !!!

1- चीनी मिलें हमेशा घाटे में रहती हैं। चीनी बनाना एक मँहगी प्रक्रिया है और हजारों करोड़ की सब्सिडी और चीनी के ऊँचे दामों के बावजूद किसानों को छह छह महीनों तक उनके उत्पादन का मूल्य नहीं मिलता है!

2-चीनी के उत्पादन से रोजगार कम होता है वहीं गुड़ के उत्पादन से भारत के तीन लाख से कहीं अधिक गाँवों में करोड़ों लोगों को रोजगार मिल सकता है।

3- चीनी के प्रयोग से डायबिटीज, हाइपोग्लाइसेमिया जैसे घातक रोग होते हैं!

4-चीनी चूँकि कार्बोहाइड्रेट होता है इसलिए यह सीधे रक्त में मिलकर उच्च रक्तचाप जैसी अनेक बीमारियों को जन्म देता है जिससे हर्ट अटेक का खतरा बढ़ जाता है!

5-चीनी का प्रयोग आपको मानसिक रूप से भी बीमार बनाता है। यहाँ पढ़ेंwww.macrobiotics.co.uk/sugar.htm

6-गुड़ में फाइबर और अन्य पौष्टिक तत्व बहुत अधिक होते हैं जो शरीर के बहुत ही लाभदायक है!

7-गुड़ में लौह तत्व और अन्य खनिज तत्व भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं!

8- गुड़ भोजन के पाचन में अति सहायक है। खाने के बाद कम से कम बीस ग्राम गुड़ अवश्य खाएँ। आपको कभी बीमारी नहीं होगी!

9-च्युइँगगम और कैँडी खाने से दाँत खराब होते हैं!

10-गुड़ के निर्माण की प्रक्रिया आसान है और सस्ती है जिससे देश को हजारों करोड़ रुपए का लाभ होगा और किसान सशक्त बनेगा!


जय हिंद! जय भारतवर्ष!! =





** कागज के टुकड़े **


एक बार एक बूढ़े आदमी ने अफवाह फैलाई कि उसके पड़ोस में रहने वाला नौजवान चोर है। यह बात दूर-दूर तक फैल गई। आसपास के लोग उस नौजवान से बचने लगे। नौजवान परेशान हो गया। कोई उस पर विश्वास ही नहीं करता था। तभी चोरी की एक वारदात हुई और शक उस नौजवान पर गया। उसे गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन कुछ दिनों के बाद सबूत के अभाव में वह निर्दोष साबित हो गया। निर्दोष साबित होने के बाद वह नौजवान चुप नहीं बैठा। उसने बूढ़े आदमी पर गलत आरोप लगाने के लिए मुकदमा दायर कर दिया।

अदालत में बूढ़े आदमी ने अपने बचाव में न्यायाधीश से कहा- मैंने जो कुछ कहा था वह एक टिप्पणी से ज्यादा कुछ नहीं था। किसी को नुकसान पहुंचाना मेरा मकसद नहीं था। न्यायाधीश ने बूढ़े आदमी से कहा- आप एक कागज के एक टुकड़े पर वो सब बातें लिखें जो आपने उस नौजवान बारे में कही थीं और जाते समय उस कागज के टुकडे़-टुकड़े करके घर के रास्ते पर फेंक दें। और कल फैसला सुनने के लिए आ जाएं। बूढ़े व्यक्ति ने वैसा ही किया। अगले दिन न्यायाधीश ने बूढ़े आदमी से कहा कि फैसला सुनने से पहले आप बाहर जाएं और उन कागज के टुकड़ों को जो आपने कल बाहर फेंक दिए थे, इकट्ठा कर ले आएं। बूढ़े आदमी ने कहा- मैं ऐसा नहीं कर सकता। उन टुकड़ों को तो हवा कहीं से कहीं उड़ा कर ले गई होगी। अब वे नहीं मिल सकेंगे। मैं कहां-कहां उन्हें खोजने के लिए जाऊंगा?

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¤¤ ज़िन्दगी का कड़वा सच ¤¤



एक भिखारी था| वह न ठीक से खाता था, न पीता था, जिस वजह से उसका बूढ़ा शरीर सूखकर कांटा हो गया था| उसकी एक-एक हड्डी गिनी जा सकती थी| 

उसकी आंखों की ज्योति चली गई थी| उसे कोढ़ हो गया था| बेचारा रास्ते के एक ओर बैठकर गिड़गिड़ाते हुए भीख मांगा करता था| एक युवक उस रास्ते से रोज निकलता था| भिखारी को देखकर उसे बड़ा बुरा लगता|


उसका मन बहुत ही दुखी होता| वह सोचता, वह क्यों भीख मांगता है? जीने से उसे मोह क्यों है? भगवान उसे उठा क्यों नहीं लेते?


एक दिन उससे न रहा गया| वहभिखारी के पास गया और बोला - "बाबा, तुम्हारी ऐसी हालत हो गई है फिर भी तुम जीना चाहते हो? 

तुम भीख मांगते हो, पर ईश्वर से यह प्रार्थना क्यों नहीं करते कि वह तुम्हें
अपने पास बुला ले?"

भिखारी ने मुंह खोला - "भैया तुम जो कह रहे हो, वही बात मेरे मन में भी उठती है| मैं भगवान से बराबर प्रार्थना करता हूं, पर वह मेरी सुनता ही नहीं| शायद वह चाहता है कि मैं इस धरती पर रहूं, जिससे दुनिया के लोग मुझे देखें और समझें कि एक दिन मैं भी उनकी ही तरह था, लेकिन वह दिन भी आ सकता है, जबकि वे मेरी तरह हो सकते हैं| इसलिए किसी को घमंड नहीं करना चाहिए|"


लड़का भिखारी की ओर देखता रह गया| उसने जो कहा था, उसमें
कितनी बड़ी सच्चाई समाई हुई थी| यह जिंदगी का एक कड़वा सच था, जिसे मानने वाले प्रभु की सीख भी मानते हैं|

कृपया सोने से पहले भगवान को एकबार सच्चे मन से याद करेँ। !!!!!


!!! ऐतिहासिक एवं भाषाई प्रमाण !!!





१००० ईसा पूर्व महाभारत में गुप्त और मौर्य कालीन राजाओं तथा जैन(१०००-७०० ईसा पूर्व) और बौद्ध धर्म(७००-२०० ईसा पूर्व) का भी वर्णन नहीं आता। 


साथ ही शतपथ ब्राह्मण (११०० ईसा पूर्व) एवं छांदोग्य-उपनिषद(१००० ईसा पूर्व) में भी महाभारत के पात्रों का वर्णन मिलता हैं। अतएव यह निश्चित तौर पर १००० ईसा पूर्व से पहले रची गयी होगी।

६००-४०० ईसा पूर्व पाणिनि द्वारा रचित अष्टाध्यायी(६००-४०० ईसा पूर्व) में महाभारत और भारत दोनों का उल्लेख हैं तथा इसके साथ साथ श्रीकृष्ण एवं अर्जुन का भी संदर्भ आता है अतएव यह निश्चित है कि महाभारत और भारत पाणिनि के काल के बहुत पहले से ही अस्तित्व में रहे थे।

प्रथम शताब्दी यूनान के पहली शताब्दी के राजदूत डियोक्ररायसोसटम (Dio Chrysostom) यह बताते है 
की दक्षिण-भारतीयों के पास एक लाख श्लोकों का एक ग्रंथ है, जिससे यह पता चलता है कि महाभारत पहली शताब्दी में भी एक लाख श्लोकों का था। महाभारत की कहानी को ही बाद के मुख्य यूनानी ग्रंथों इलियड और ओडिसी में बार-बार अन्य रुप से दोहराया गया, जैसे धृतराष्ट्र का पुत्र मोह, कर्ण-अर्जुन प्रतिसपर्धा आदि।

संस्कृत की सबसे प्राचीन पहली शताब्दी की एमएस स्पित्ज़र पाण्डुलिपि में भी महाभारत के १८ पर्वों की अनुक्रमणिका दी गयी है


, जिससे यह पता चलता है कि इस काल तक महाभारत १८ पर्वों के रुप में प्रसिद्ध थी, यद्यपि १०० पर्वों की अनुक्रमणिका बहुत प्राचीन काल में प्रसिद्ध रही होगी, क्योंकि वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना सर्वप्रथम १०० पर्वों में की थी, जिसे बाद में सूत जी ने १८ पर्वों के रुप में व्यवस्थित कर ऋषियों को सुनाया था।

______________________@भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है|