04 October 2012

थाईलैंड में भी है एक अयोध्या

Photo: थाईलैंड में भी है एक अयोध्या

थाईलैंड में सदियों पुराना भारतीय प्रभाव है। एक अजीब विशेषता है। धर्म तो बौद्ध स्वीकार किया परन्तु संस्कृति हिन्दू अपनाई है। प्रत्येक राजा को ‘राम’ कहा जाता है। आधुनिक राजा ‘राम-8’ कहा जाता है। लगभग 450 वर्ष पूर
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्व इस वंश का प्रथम राजा ‘राम-1’ के नाम से विख्यात हुआ। सन् 1448 तक त्रैलोक नाम के राजा ने राज किया। उसने प्रशासन में उल्लेखनीय सुधार किए।

चौदहवीं सदी में थाईलैंड में अयोध्या की स्थापना हुई थी। वहीं थाईलैंड की राजधानी रही। इस वंश के 36 राजाओं ने 416 वर्षों तक राज किया। आधुनिक राजा के आठवें पूर्व वंशज ने राम नाम जोडऩा शुरू किया जो आज तक चल रहा है। अयोध्या को देवताओं की भूमि कहा जाता है। अद्वितीय इन्द्र देवता की नगरी। इन्द्र ने यह नगर स्थापित किया और विष्णुकरन ने इसका निर्माण किया था। इस राज्य की स्थापना राजा यूथोंग ने चायो फराया नदी के पास की थी। इसे स्याम नाम से भी जाना जाता था।

1782 में बर्मा के आक्रमण के बाद थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में बनाई गई। अयोध्या आज भी इस देश की पुरानी सांस्कृतिक धरोहर की गवाह है। राजा मागेंकुट राजा बनने से पूर्व 27 वर्ष तक बौद्ध भिक्षु रहा। उसने पाली व संस्कृति का पूरा ज्ञान प्राप्त किया। राजा बनने पर उसे राम-4 कहा गया। यहां की भाषा का मूल संस्कृत है।

लोकतंत्र में भी राजशाही का इतना सम्मान यहां की विशेषता है। राजा को आज भी दैवीय शक्ति सम्पन्न माना जाता है। चार सदियों तक रहे यहां की अयोध्या के राजा तो स्वयं को विष्णु का अवतार मानते थे। वर्तमान राजा भूमिवोन अदुलमादेज पिछले 62 वर्षों से राज ङ्क्षसहासन पर हैं। यह विश्व में किसी भी राजा के लिए सर्वाधिक अवधि है। राजमहल में प्रतिदिन की पूजा विशेष भारतीय ब्राह्मण रीति से होती है। भारतीय वंश के ब्राह्मण पुजारी भारतीय वेश में पूजा करवाते हैं। यह पूजा थाई राष्ट्रवाद के लिए की जाती है जिसके तीन स्तम्भ माने गए हैं-थाई सार्वभौमिकता, धर्म और राजशाही। मैं सोच रहा हूँ अगर भारत में यदि भारत के राष्ट्रपति भवन में इस प्रकार की पूजा होने लगे तो भारतीय सैकुलरवादी कितना हो-हल्ला मचाएंगे, उल्टी दस्त हो जायेंगे इन्हें ।

यहां के टी.वी. चैनल का नाम ‘राम चैनल’, और हवाई पत्तन का नाम ‘स्वर्णभूमि हवाई पत्तन’ है। कई सड़कों का नाम ‘राम’ पर है। सैंकड़ों साल पहले जब जहाज, सड़कें नहीं थीं, तब ‘राम’ का नाम ऐसा यहां आया कि आज भी सड़क से लेकर राजा तक राम छाए हुए हैं और भारत में राम के जन्मस्थान पर राम का मंदिर नहीं बन पा रहा।

थाईलैंड में सदियों पुराना भारतीय प्रभाव है। एक अजीब विशेषता है। धर्म तो बौद्ध स्वीकार किया परन्तु संस्कृति हिन्दू अपनाई है। प्रत्येक राजा को ‘राम’ कहा जाता है। आधुनिक राजा ‘राम-8’ कहा जाता है। लगभग 450 वर्ष पूर्व इस वंश का प्रथम राजा ‘राम-1’ के नाम से विख्यात हुआ। सन् 1448 तक त्रैलोक नाम के राजा ने राज किया। उसने प्रशासन में उल्लेखनीय सुधार किए।

चौदहवीं सदी में थाईलैंड में अयोध्या की स्थापना हुई थी। वहीं थाईलैंड की राजधानी रही। इस वंश के 36 राजाओं ने 416 वर्षों तक राज किया। आधुनिक राजा के आठवें पूर्व वंशज ने राम नाम जोडऩा शुरू किया जो आज तक चल रहा है। अयोध्या को देवताओं की भूमि कहा जाता है। अद्वितीय इन्द्र देवता की नगरी। इन्द्र ने यह नगर स्थापित किया और विष्णुकरन ने इसका निर्माण किया था। इस राज्य की स्थापना राजा यूथोंग ने चायो फराया नदी के पास की थी। इसे स्याम नाम से भी जाना जाता था।

1782 में बर्मा के आक्रमण के बाद थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में बनाई गई। अयोध्या आज भी इस देश की पुरानी सांस्कृतिक धरोहर की गवाह है। राजा मागेंकुट राजा बनने से पूर्व 27 वर्ष तक बौद्ध भिक्षु रहा। उसने पाली व संस्कृति का पूरा ज्ञान प्राप्त किया। राजा बनने पर उसे राम-4 कहा गया। यहां की भाषा का मूल संस्कृत है।

लोकतंत्र में भी राजशाही का इतना सम्मान यहां की विशेषता है। राजा को आज भी दैवीय शक्ति सम्पन्न माना जाता है। चार सदियों तक रहे यहां की अयोध्या के राजा तो स्वयं को विष्णु का अवतार मानते थे। वर्तमान राजा भूमिवोन अदुलमादेज पिछले 62 वर्षों से राज ङ्क्षसहासन पर हैं। यह विश्व में किसी भी राजा के लिए सर्वाधिक अवधि है। राजमहल में प्रतिदिन की पूजा विशेष भारतीय ब्राह्मण रीति से होती है। भारतीय वंश के ब्राह्मण पुजारी भारतीय वेश में पूजा करवाते हैं। यह पूजा थाई राष्ट्रवाद के लिए की जाती है जिसके तीन स्तम्भ माने गए हैं-थाई सार्वभौमिकता, धर्म और राजशाही। मैं सोच रहा हूँ अगर भारत में यदि भारत के राष्ट्रपति भवन में इस प्रकार की पूजा होने लगे तो भारतीय सैकुलरवादी कितना हो-हल्ला मचाएंगे, उल्टी दस्त हो जायेंगे इन्हें ।

यहां के टी.वी. चैनल का नाम ‘राम चैनल’, और हवाई पत्तन का नाम ‘स्वर्णभूमि हवाई पत्तन’ है। कई सड़कों का नाम ‘राम’ पर है। सैंकड़ों साल पहले जब जहाज, सड़कें नहीं थीं, तब ‘राम’ का नाम ऐसा यहां आया कि आज भी सड़क से लेकर राजा तक राम छाए हुए हैं और भारत में राम के जन्मस्थान पर राम का मंदिर नहीं बन पा रहा।

क्या आप जानते हैं कि...... मुस्लिमों द्वारा प्रयुक्त किया जाने वाला अंक 786 क्या है...???

Photo: क्या आप जानते हैं कि...... मुस्लिमों द्वारा प्रयुक्त किया जाने वाला अंक 786 क्या है...???

मुस्लिम तथा इस्लाम के पुरोधा 786 अंक को विस्मिल्लाह का रूप बताते हैं.... और, सीधे सीधे इस अंक को अपने अल्लाह से जोड़ते हैं...!

परन्तु आप यह जान कर हैरान हो जायेंगे कि .... इस्लाम का 786 और कुछ नहीं .... बल्कि.... हम हिन्दुओं तथा विश्व का पहला एवं पवित्रम अक्षर ॐ है...!

दरअसल ऐसा इसीलिए है कि....... मुस्लिमों द्वारा अपने अराध्य के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द ""अल्लाह"" भी..... हिन्दुओं के वेद से ही चुराया गया है.... और, जो ""अल्ला"" का अपभ्रंश रूप है..... जिसका अर्थ ""अम्बा, अक्का, अथवा शक्ति होता है"...!

तो.... उन्होंने एक काल्पनिक अल्लाह बना लिया ..... और, वैदिक रीति के अनुसार ही दिन में 5 बार उनकी पूजा(आराधना) सुनिश्चित कर ली........ परन्तु , ""ओंकार"" के उच्चारण के बिना उन्हें अपने हर किये धरे पर पानी फिरता नजर आया..... क्योंकि उन्हें भी यह मालूम था कि.... ॐ ही साश्वत है..... और, अंतिम सत्य है...!


अपनी इस्लाम की इस विसंगति को दूर करने लिए..... उन्हें भी ॐ सरीखा ही कोई ""अदभुत और सर्वशक्तिमान"" अक्षर चाहिए था.... जो कि उन्हें नहीं मिला.... क्योंकि, पूरे ब्रह्माण्ड में ॐ एक ही है...!

इसीलिए उन्होंने..... लाचार होकर हमारे ""अदभुत और सर्वशक्तिमान"" अक्षर ॐ को ही अपना लिया...... परन्तु, उन्होंने ॐ के तीनों भागों को थोडा दूर दूर लिखा (उल्टा कर लिखा .... क्योंकि, अरबी और इस्लाम में सब चीज उल्टा कर ही लिखा जाता है).... जिससे कि..... यह एक अंक ७८६ सरीखा दिखने लगा , जिसे उन्होंने जस के तस अपना लिया......!

इस तरह ...... हम निर्विवाद रूप से यह साबित कर सकते हैं कि........ इस्लाम की पूजा (नमाज) पद्धति, उनका अल्लाह ..... यहाँ तक कि उनका पवित्रतम अंक 786 हमारे वेदों से ही चुरा कर बनाया गया है...... और, इस्लाम कोई नया धर्म अथवा संप्रदाय नहीं है...!


इन सब बातों से..... एक महत्वपूर्ण बात यह भी साबित होती है कि..... इस पूरे ब्रह्माण्ड में हिन्दू सनातन धर्म के अलावा और किसी दूसरे धर्म अथवा संप्रदाय का कोई अस्तित्व नहीं है..... और, सारे के सारे धर्म तथा संप्रदाय ........ हमारे हिन्दू सनातन धर्म से चोरी कर..... अथवा, प्रेरणा लेकर तैयार किये गए हैं....!

यही कारण है कि..... सारे दुनिया के विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा ... लाख प्रयास करने के बावजूद भी..... आज तक कोई हमारे हिन्दू सनातन धर्म का बाल भी बांका नहीं कर पाया है..... और, हम आज भी दुनिया में ....... सबसे सम्मानित तथा आदरणीय धर्म की संज्ञा पाते हैं....!

हमारा हिन्दू सनातन धर्म ही ..... ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के साथ बना है..... और, यही.... अंत तक.... तथा , इसी गौरव के साथ विद्यमान रहेगा...!


बाकी के सारे धर्म धर्म और संप्रदाय.... पानी के बुलबुले की तरह आए हैं..... और, उसी प्रकार विलुप्त भी हो जायेंगे...!


इसीलिए..... गर्व करें कि हम सनातनी हैं ... और , सर्वश्रेष्ठ हिन्दू धर्म का हिस्सा हैं....!


जय महाकाल...!!!


मुस्लिम तथा इस्लाम के पुरोधा 786 अंक को विस्मिल्लाह का रूप बताते हैं.... और, सीधे सीधे इस अंक को अपने अल्लाह से जोड़ते हैं...!

परन्तु आप यह जान कर हैरान हो जायेंगे कि .... इस्लाम का 786 और कुछ नहीं .... बल्कि.... हम हिन्दुओं तथा विश्व का पहला एवं पवित्रम अक्षर ॐ है...!



दरअसल ऐसा इसीलिए है कि....... मुस्लिमों द्वारा अपने अराध्य के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द ""अल्लाह"" भी...हिन्दुओं  के वेद से ही चुराया गया है.... और, जो ""अल्ला"" का अपभ्रंश रूप है..... जिसका अर्थ ""अम्बा, अक्का, अथवा शक्ति होता है"...!

तो.... उन्होंने एक काल्पनिक अल्लाह बना लिया ..... और, वैदिक रीति के अनुसार ही दिन में 5 बार उनकी पूजा(आराधना) सुनिश्चित कर ली........ परन्तु , ""ओंकार"" के उच्चारण के बिना उन्हें अपने हर किये धरे पर पानी फिरता नजर आया..... क्योंकि उन्हें भी यह मालूम था कि.... ॐ ही साश्वत है..... और, अंतिम सत्य है...!


अपनी इस्लाम की इस विसंगति को दूर करने लिए..... उन्हें भी ॐ सरीखा ही कोई ""अदभुत और सर्वशक्तिमान"" अक्षर चाहिए था.... जो कि उन्हें नहीं मिला.... क्योंकि, पूरे ब्रह्माण्ड में ॐ एक ही है...!

इसीलिए उन्होंने..... लाचार होकर हमारे ""अदभुत और सर्वशक्तिमान"" अक्षर ॐ को ही अपना लिया...... परन्तु, उन्होंने ॐ के तीनों भागों को थोडा दूर दूर लिखा (उल्टा कर लिखा .... क्योंकि, अरबी और इस्लाम में सब चीज उल्टा कर ही लिखा जाता है).... जिससे कि..... यह एक अंक ७८६ सरीखा दिखने लगा , जिसे उन्होंने जस के तस अपना लिया......!


इस तरह ...... हम निर्विवाद रूप से यह साबित कर सकते हैं कि........ इस्लाम की पूजा (नमाज) पद्धति, उनका अल्लाह ..... यहाँ तक कि उनका पवित्रतम अंक 786 हमारे वेदों से ही चुरा कर बनाया गया है...... और, इस्लाम कोई नया धर्म अथवा संप्रदाय नहीं है...!
इन सब बातों से..... एक महत्वपूर्ण बात यह भी साबित होती है कि..... इस पूरे ब्रह्माण्ड में हिन्दू सनातन धर्म के अलावा और किसी दूसरे धर्म अथवा संप्रदाय का कोई अस्तित्व नहीं है..... और, सारे के सारे धर्म तथा संप्रदाय ........ हमारे हिन्दू सनातन धर्म से चोरी कर..... अथवा, प्रेरणा लेकर तैयार किये गए हैं....!

यही कारण है कि..... सारे दुनिया के विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा ... लाख प्रयास करने के बावजूद भी..... आज तक कोई हमारे हिन्दू सनातन धर्म का बाल भी बांका नहीं कर पाया है..... और, हम आज भी दुनिया में ....... सबसे सम्मानित तथा आदरणीय धर्म की संज्ञा पाते हैं....!

हमारा हिन्दू सनातन धर्म ही ..... ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के साथ बना है..... और, यही.... अंत तक.... तथा , इसी गौरव के साथ विद्यमान रहेगा...!
बाकी के सारे धर्म धर्म और संप्रदाय.... पानी के बुलबुले की तरह आए हैं..... और, उसी प्रकार विलुप्त भी हो जायेंगे...!

इसीलिए..... गर्व करें कि हम सनातनी हैं ... और , सर्वश्रेष्ठ हिन्दू धर्म का हिस्सा हैं....!


जय महाकाल...!!!

हिन्दुओ अपने सत्य इतिहास को पहचानो, उससे सबक लो..........

जिस हिन्दू ने नभ में जाकर, नक्षत्रो को दी है संज्ञा.
जिसने हिमगिरी का वक्ष चीर, भू को दी है पावन गंगा.
जिसने सागर की छाती पर, पाषानो को तैराया है.
हर वर्तमान की पीड़ा को, जिसने इतिहास बनाया है.
जिसके आर्यों ने घोष किया, "कृण्वन्तो विश्वमार्यम" का.
जिसका गौरव कम कर न सकी, रावण की स्वर्णमयी लंका.
जिसके यज्ञो का एक हव्य, सौ- सौ पुत्रोँ का जनक रहा.
जिसके आँगन में भयाक्रांत, धनपति बरसाता कनक रहा.
जिसके पावन बलिष्ठ तन की, रचना तन दे दाधीच ने की.
राघव ने वन-वन भटक-भटक, जिस तन में प्राण प्रतिष्ठा की.
जौहर कुंडो में कूद-कूद , सतियो ने जिसमे दिया सत्व.
गुरुवो-गुरु पुत्रो ने जिसमे, चिर बलिदानी भर दिया तत्व.
वो शाश्वत हिन्दू जीवन क्या, स्मरणीय मात्र रह जाएगा?
इसका पावन गंगा का जल, क्या नालो में बह जाएगा?
इसके गंगाधर शिवशंकर, क्या ले समाधि सो जायेंगे?
इसके पुष्कर, इसके प्रयाग, क्या गर्त मात्र रह जायेंगे?
यदि तुम ऐसा नहीं चाहते, तो तुमको जगना होगा.
हिन्द राष्ट्र का बिगुल बजाकर, दानव दल को दलना होगा.



धर्म की वेदी पर प्राण न्योछावर करने वाले पिता-पुत्र शाहबेग सिंह और शाहबाज सिंह

अठारहवी शताब्दी का उत्तराद्ध चल रहा था. देश पर मुगलों का राज्य था. भाई शाहबेग सिंह लाहौर के कोतवाल थे. आप अरबी और फारसी के बड़े विद्वान थे और अपनी योग्यता और कार्य कुशलता के कारण हिन्दू होते हुए भी सूबे के परम विश्वासपात्र थे. मुसलमानों के खादिम होते हुए भी 
हिन्दू और सिख उनका बड़ा सामान करते थे. उन्हें भी अपने वैदिक धर्म से अत्यंत प्रेम था और यही कारण था की कुछ कट्टर मुस्लमान उनसे मन ही मन द्वेष करते थे. शाहबेग सिंह का एकमात्र पुत्र था शाहबाज सिंह. आप १५-१६ वर्ष के करीब होगे और मौलवी से फारसी पढने जाया करते थे. वह मौलवी प्रतिदिन आदत के मुताबिक इस्लाम की प्रशंसा करता और हिन्दू धर्म को इस्लाम से नीचा बताता. आखिर धर्म प्रेमी शाहबाज सिंह कब तक उसकी सुनता और एक दिन मौलवी से भिड़ पड़ा. पर उसने यह न सोचा था की इस्लामी शासन में ऐसा करने का क्या परिणाम होगा.

मौलवी शहर के काजियों के पास पहुंचा और उनके कान भर के शाहबाज सिंह पर इस्लाम की निंदा का आरोप घोषित करवा दिया.पिता के साथ साथ पुत्र को भी बंदी बना कर काजी के सामने पेश किया गया. काजियों ने धर्मान्धता में आकर घोषणा कर दी की या तो इस्लाम काबुल कर ले अथवा मरने के लिए तैयार हो जाये.जिसने भी सुना दंग रह गया. शाहबेग जैसे सर्वप्रिय कोतवाल के लिए यह दंड और वह भी उसके पुत्र के अपराध के नाम पर. सभी के नेत्रों से अश्रुधारा का प्रवाह होने लगा पर शाहबेग सिंह हँस रहे थे. अपने पुत्र शाहबाज सिंह को बोले “कितने सोभाग्यशाली हैं हम, इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे की मुसलमानों की नौकरी में रहते हुए हमें धर्म की बलिवेदी पर बलिदान होने का अवसर मिल सकेगा किन्तु प्रभु की महिमा अपार हैं, वह जिसे गौरव देना चाहे उसे कौन रोक सकता हैं. डर तो नहीं जाओगे बेटा?” नहीं नहीं पिता जी! पुत्र ने उत्तर दिया- “आपका पुत्र होकर में मौत से डर सकता हूँ? कभी नहीं. देखना तो सही मैं किस प्रकार हँसते हुए मौत को गले लगता हूँ.”

पिता की आँखे चमक उठी. “मुझे तुमसे ऐसी ही आशा थी बेटा!” पिता ने पुत्र को अपनी छाती से लगा लिया.

दोनों को इस्लाम काबुल न करते देख अलग अलग कोठरियों में भेज दिया गया.

मुस्लमान शासक कभी पिता के पास जाते , कभी पुत्र के पास जाते और उन्हें मुसलमान बनने का प्रोत्साहन देते. परन्तु दोनों को उत्तर होता की मुसलमान बनने के बजाय मर जाना कहीं ज्यादा बेहतर हैं.


एक मौलवी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए पुत्र से बोला “बच्चे तेरा बाप तो सठिया गया हैं, न जाने उसकी अक्ल को क्या हो गया हैं. मानता ही नहीं? लेकिन तू तो समझदार दीखता हैं. अपना यह सोने जैसा जिस्म क्यों बर्बाद करने पर तुला हुआ हैं. यह मेरी समझ में नहीं आता.”

शाहबाज सिंह ने कहाँ “वह जिस्म कितने दिन का साथी हैं मौलवी साहिब! आखिर एक दिन तो जाना ही हैं इसे, फिर इससे प्रेम क्यूँ ही किया जाये. जाने दीजिये इसे, धर्म के लिए जाने का अवसर फिर शायद जीवन में इसे न मिल सके.”


मौलवी अपना सा मुँह लेकर चला गया पर उसके सारे प्रयास विफल हुएँ.

दोनों पिता और पुत्र को को चरखे से बाँध कर चरखा चला दिया गया. दोनों की हड्डियां एक एक कर टूटने लगी , शरीर की खाल कई स्थानों से फट गई पर दोनों ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया और हँसते हँसते मौत को गले से लगा लिया.अपने धर्म की रक्षा के लिए न जाने ऐसे कितने वीरों ने अपने प्राण इतिहास के रक्त रंजित पन्नों में दर्ज करवाएँ हैं. आज उनका हम स्मरण करके ,उनकी महानता से कुछ सिखकर ही उनके ऋण से आर्य जाति मुक्त हो सकती हैं

.हिंदू-मुस् लिम भाई-भाई,पर हिंदू-हिंदू कभी ना भाई.....!!
''जब याद गोधरा आता है आँखों में आँसू आते हैं,
कश्मीरी पंडितों की पीड़ा कुछ हिंदू भूल क्यों जाते हैं।
हर बार विधर्मी शैतानों ने धर्म पर हैं प्रहार कीये,
हर बार सहिष्णू बन कर हमने जाने कितनेकष्ट सहे।
अब और नहीं चुप रहना है अब और नहीं कुछसहना है,
जैसा आचरण करेगा जो, वो सूद समेत दे देना है।

क्या भूल गये राजा प्रथ्वी ने गौरी कोक्षमा-दान दिया,
और बदले में उसने राजा की आँखों को निकाल लिया।
ये वंश वही है बाबर का जो राम का मंदिरगिरा गया,
और पावन सरयू धरती पर बाबरी के पाप को सजा गया।
अकबर को जो कहते महान क्या उन्हें सत्य का ज्ञान नहीं,
या उनके हृदय में जौहर हुई माताओं के लिए सम्मान नहीं।
औरंगज़ेब की क्रूरता भी क्या याद पुन:दिलवाऊँ मैं,
टूटे जनेऊ और मिटे तिलक के दर्शन पुन: कराऊँ मैं।
तुम भाई कहो उनको लेकिन तुमको वो काफ़िर मानेंगे,
और जन्नत जाने की खातिर वो शीश तुम्हारा उतारेंगे।
धर्मो रक्षति रक्षित: के अर्थ को अब पहचानो तुम,
धर्म बस एक 'सनातन' है, कोई मिथ्या-भ्रम मत पालो तुम। '

श्लोक :

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यः मानो धर्मो हतोवाधीत् ॥

The Ancient Science - Spinal Column




SPINAL COLUMN:

Before proceeding to the study of Nadis and Chakras we have to know something about the Spinal Column, as all the Chakras are connected with it.


Spinal Column is known as Meru Danda. This is the axis of the body just as Mount Meru is the axis of the earth. Hence the spine is called ‘Meru’. Spinal column is otherwise known as spine, axis-staff or vertebral column. Man is microcosm. (Pinda - Kshudra-Brahmanda). All things seen in the universe,—mountains, rivers, Bhutas, etc., exist in the body also. All the Tattvas and Lokas (worlds) are within the body.

The body may be divided into three main parts:—head, trunk and the limbs, and the centre of the body is between the head and the legs. The spinal column extends from the first vertebra, Atlas bone, to the end of the trunk.

The spine is formed of a series of 33 bones called vertebrae; according to the position these occupy, it is divided into five regions:—

1. Cervical region (neck) 7 vertebrae
2. Dorsal region (back) 12 vertebrae
3. Lumbar region (waist or loins) 5 vertebrae.
4. Sacral region (buttocks, Sacrum or gluteal) 5 vertebrae.
5. Coccygeal region (imperfect vertebrae Coccyx) 4 vertebrae.


The vertebral bones are piled one upon the other thus forming a pillar for the support of the cranium and trunk. They are connected together by spinous, transverse and articular processes and by pads of fibro-cartilage between the bones. The arches of the vertebrae form a hollow cylinder or a bony covering or a passage for the spinal cord. The size of the vertebrae differs from each other.

For example, the size of the vertebrae in cervical region is smaller than in dorsal but the arches are bigger. The body of the lumbar vertebrae is the largest and biggest. The whole spine is not like a stiff rod, but has curvatures that give a spring action. All the other bones of the body are connected with this spine.

Between each pair of vertebrae there are apertures through which the spinal nerves pass from the spinal cord to the different portions and organs of the body. The five regions of the spine correspond with the regions of the five Chakras: Muladhara, Svadhishthana, Manipura, Anahata and Vishuddha.

Sushumna Nadi passes through the hollow cylindrical cavity of the vertebral column and Ida is on the left side and Pingala on the right side of the spine

धर्मो रक्षति रक्षितः



जो धर्म की रक्षा करता है वह स्वयं रक्षित होता है।

इस उद्घोष का कोई तो कारण होगा। आखिर क्यों हमारी संस्कृति में धर्म को इतना महत्व दिया गया है। धर्म का क्या अर्थ है? क्या सच्चरित्रता धर्म है? क्या नैतिकता धर्म है? क्या पूजा धर्म है? ऐसे ना जाने कितने प्रश्न हमें घेरे रहते हैं।


असल में धर्म वह धरती है जिस पर चरित्र, विवेक, शील, नैतिकता और कर्तव्यपरायणता आदि जैसे गुण विकसित होते हैं। यदि धर्म का आधार न हो तो इन गुणों का भी कोई अस्तित्व न हो। धर्म एक संस्कृत शब्द है जिसका आज तक किसी अन्य भाषा में अनुवाद नहीं हो पाया। यह केवल और केवल भारतीय संस्कृति का ही अंग रहा है। आमतौर पर लोग इसका अंग्रेज़ी अनुवाद रिलीजन के रूप में करते हैं, किन्तु यह उससे कहीं अधिक व्यापक है। धरती जितना विस्तारित, या शायद उससे भी अधिक। इसकी कोई सीमा नहीं और यदि है तो उस सीमा के बाहर कुछ भी नहीं।

धर्म के बिना जीवन का कोई अस्तित्व नहीं। धरा का प्रत्येक जीव धर्म से बंधा है। नदी का धर्म है उपर से नीचे की ओर बहना। यदि वह अपने इस धर्म का पालन न करे तो उसका अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। वह झील या सरोवर होकर रह जायेगी। प्रकृति, मनुष्य, पालन, पोषण, जन्म-मृत्यु, जीव, वनस्पति आदि सभी धर्म से संचालित हैं।

सरल शब्दों में कहें तो जीवन का विधान ही धर्म है। देश को चलाने के लिए कानून की आवश्यकता होती है। यहाँ तक कि छोटी से छोटी इकाई को चलने के लिए भी नियम होते हैं। इन नियमों के बिना उनका कोई अस्तित्व नहीं। ठीक इसी प्रकार जीवन को चलाने के लिए भी नियम की आवश्यकता होती है। जीवन के यह नियम ही धर्म है। आप जिस भी रूप में जीवन को पायें, आपके लिए कुछ नियम होंगे। आप उन नियमों का पालन करते हैं तो धर्मी हैं, नहीं करते तो अधर्मी।

अगला प्रश्न जो मन में आता है, वह है कि कैसे जानें धर्म क्या है? तो उसका उत्तर है कि समय-समय पर महापुरुषों का आचरण ही धर्म को प्रकट करता है। स्वामी विवेकानंद एक महात्मा ना रहकर आज एक विचार बन चुके हैं। आचार्य शंकर एक व्यक्ति ना रहकर परम्परा बन चुके हैं। धर्मराज युधिष्ठिर से पूछे गये यक्ष प्रश्नों में एक यह भी था – कः पन्थः? रास्ता क्या है? तब धर्मराज उसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि धर्म तत्व गहन है। इसे महापुरुषों के आचरण से ही समझा जा सकता है। महापुरुष जिस मार्ग पर चले कालांतर में वही धर्म हो गया। रामः विग्रह्धर्मः। राम स्वयं धर्मविग्रह हैं।

धर्म शाश्वत है। व्यक्ति विशेष के विचार और देश काल से यह प्रभावित नहीं होता। यह परिवर्तनशील नहीं है। धर्म का आधार श्रद्धा एवं विश्वास है। तर्क-वितर्क से परे हटकर हमें मनीषियों और महापुरुषों के आचरण से प्रेरणा प्राप्त कर धर्मपूर्वक आचरण करना चाहिये क्योंकि – ‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनं’

ऋषि दधीचि द्वारा समझाया गया पंच-कोष-

Photo: ऋषि दधीचि द्वारा समझाया गया पंच-कोष-

“मूर्ति में नज़र आने वाला पत्थर तो केवल बाहरी प्राचीर है; शेष प्राचीर तो हम मनुष्यों के अंदर ही है। हमारे शरीर के अंदर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड विद्यमान है। जिसमें तीनों काल छुपे हैं; भूत, वर्तमान और भविष्य- सब हममें ही निहित हैं।

मनुष्य के भीतर स्थित पाँच-कोषों को खोलकर ही आत्मा का परमात्मा से मिलन संभव है। इन पाँचों कोशों में सबसे निम्न स्तर पर है, अविद्या। इस अन्न-जल रुपी ‘अन्नमय-कोष’ से मनुष्य कभी बाहर निकल ही नहीं पाता। इसकी प्रत्येक परत मानो किसी पुष्प की कोंपल के समान होती है। जैसे-जैसे इसकी पंखुड़ियाँ खुलती हैं, आत्म-ज्ञान की सुगंध उतनी ही अधिक मिलती है। ‘मूलाधार चक्र’ को योग द्वारा सक्रिय करके इस अन्नमय कोष से बाहर निकला जा सकता है।

अन्नमय कोष से मुक्ति पाकर मनुष्य ‘प्राणमय कोष’ के स्तर पर पहुँचता है। इस कोष को प्राण-वायु फलीभूत करता है और अधिकांश मनुष्य प्राण-वायु के विकार के कारण ही ‘अज्ञान और अहंकार’ से ग्रस्त होते हैं। नाभि में स्थित ‘स्वाधिष्ठान चक्र’ को जागृत करके ‘प्राणमय कोष’ से मानुष को मुक्ति मिल सकती है।

इससे ऊपर ‘मनोमय कोष’ है। जिसके द्वारा मनुष्य द्वेष के अंकुश में उलझ जाता है; और स्वार्थ उसकी जीवन-शैली का अभिन्न अंग बन जाता है। ‘ह्रदय चक्र’ के समीप पहुँचते ही मनुष्य अपने विचारों और चिंतन को एक गंतव्य तक निर्धारित कर सकता है। ऐसा करके मनोमय कोष को नियंत्रित किया जा सकता है।

इससे ऊपर स्थित ‘विज्ञानमय कोष’ मनुष्य के ‘अहं-भाव’ के कारक होते हैं, जिससे ‘अहंकार’ भाव उत्पन्न होते हैं। कंठ में स्थित ‘आनंदमय चक्र’ को जागृत करके मनुष्य अपनी अधीरता और व्याकुलता को नियंत्रित कर सकता है। ऐसे व्यक्ति सुख-दुःख, प्रत्येक परिस्थिति में भाव-विभोर और तन्मय रहते हैं।

ललाट के मध्य में स्थित है सबसे शक्तिशाली चक्र, ‘आज्ञा-चक्र’। इस चक्र को जागृत करके मनुष्य अपनी छठीं इन्द्रिय को गतिशील करते हुए, आत्मा को परमात्मा के समीप ले आता है। जब मनुष्य सुख्कारका भाव अथवा दुःख-कारक भाव को तटस्थ करने के योग्य हो जाता है, तब वह आनंद-कोष को प्राप्त कर जाता है!

... और फिर मनुष्य अपने गंतव्य, शिव को प्राप्त करता है! शिवोsहं! शिवोsहं!

“मूर्ति में नज़र आने वाला पत्थर तो केवल बाहरी प्राचीर है; शेष प्राचीर तो हम मनुष्यों के अंदर ही है। हमारे शरीर के अंदर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड विद्यमान है। जिसमें तीनों काल छुपे हैं; भूत, वर्तमान और भविष्य- सब हममें ही निहित हैं।

मनुष्य के भीतर स्थित पाँच-कोषों को खोलकर ही आत्मा का परमात्मा से मिलन संभव है। इन पाँचों कोशों में सबसे निम्न स्तर पर है, अविद्या। इस अन्न-जल रुपी ‘अन्नमय-कोष’ से मनुष्य कभी बाहर निकल ही नहीं पाता। इसकी प्रत्येक परत मानो किसी पुष्प की कोंपल के समान होती है। जैसे-जैसे इसकी पंखुड़ियाँ खुलती हैं, आत्म-ज्ञान की सुगंध उतनी ही अधिक मिलती है। ‘मूलाधार चक्र’ को योग द्वारा सक्रिय करके इस अन्नमय कोष से बाहर निकला जा सकता है।

अन्नमय कोष से मुक्ति पाकर मनुष्य ‘प्राणमय कोष’ के स्तर पर पहुँचता है। इस कोष को प्राण-वायु फलीभूत करता है और अधिकांश मनुष्य प्राण-वायु के विकार के कारण ही ‘अज्ञान और अहंकार’ से ग्रस्त होते हैं। नाभि में स्थित ‘स्वाधिष्ठान चक्र’ को जागृत करके ‘प्राणमय कोष’ से मानुष को मुक्ति मिल सकती है।

इससे ऊपर ‘मनोमय कोष’ है। जिसके द्वारा मनुष्य द्वेष के अंकुश में उलझ जाता है; और स्वार्थ उसकी जीवन-शैली का अभिन्न अंग बन जाता है। ‘ह्रदय चक्र’ के समीप पहुँचते ही मनुष्य अपने विचारों और चिंतन को एक गंतव्य तक निर्धारित कर सकता है। ऐसा करके मनोमय कोष को नियंत्रित किया जा सकता है।

इससे ऊपर स्थित ‘विज्ञानमय कोष’ मनुष्य के ‘अहं-भाव’ के कारक होते हैं, जिससे ‘अहंकार’ भाव उत्पन्न होते हैं। कंठ में स्थित ‘आनंदमय चक्र’ को जागृत करके मनुष्य अपनी अधीरता और व्याकुलता को नियंत्रित कर सकता है। ऐसे व्यक्ति सुख-दुःख, प्रत्येक परिस्थिति में भाव-विभोर और तन्मय रहते हैं।

ललाट के मध्य में स्थित है सबसे शक्तिशाली चक्र, ‘आज्ञा-चक्र’। इस चक्र को जागृत करके मनुष्य अपनी छठीं इन्द्रिय को गतिशील करते हुए, आत्मा को परमात्मा के समीप ले आता है। जब मनुष्य सुख्कारका भाव अथवा दुःख-कारक भाव को तटस्थ करने के योग्य हो जाता है, तब वह आनंद-कोष को प्राप्त कर जाता है!
... और फिर मनुष्य अपने गंतव्य, शिव को प्राप्त करता है! शिवोsहं! शिवोsहं!

हिन्दू पलायनवादी क्यों है?

Photo: हिन्दुओं का पलायनवाद : आखिर कब तक
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हिन्दू पलायनवादी क्यों है?

हिन्दू कब तक सहेंगे और कब तक समझौतावादी बने रहेंगे। समझौतावाद ही हमारी कमजोरी बन गया है। और जब तक ये समझोतावाद बना रहेगा तब तक दुसरे लोग हमे ऐसे ही झुकाते रहेंगे। और ऐसे ही हम अपनी इस मात्रभूमि, जन्मभूमि, कर्मभूमि, पुण्यभूमि भारत वर्ष का बटवारा होते देखते रहेंगे।

सर्वपर्थम अरबों ने सिंध पर हमला किया, राजा दाहिर अकेले लड़े बाकि पूरा भारत देखता रहा। परिणाम, अरबों की जीत हुई,

मुहम्मद बिन कासिम ने सिन्धी हिन्दुओ और बौद्धों का कत्लेआम किया, औरतों को गुलाम बनाकर फारस, बगदाद और दमिश्क के बाजारों में बेचा। जबरन धर्मांतरण करा कर मुस्लमान बनाया।

सिंध भारत वर्ष से अलग हो गया। बाकि हिन्दुओं ने सोचा कि इस्लाम की आंधी उन तक नहीं आयेगी, वे चुप रहे।

और सिंध से पलायन कर गए।

फिर बारी आई मुल्तान और गंधार की। मुल्तान जिसका वर्णन ऋग्वेद समेत लगभग सभी वैदिक ग्रंथो में है। मुल्तान का सूर्य मंदिर पुरे भारत वर्ष में काशी विश्वलनाथ की तरह पूजनीय था।

अरबों ने हमला किया सब तहस नहस कर दिया। सूर्य मंदिर तोड़ा, हिन्दुओं का कत्लेआम किया, तलवार की नोंक पर मुसलमान बनाया। पूरा भारत वर्ष चुप रहा। सोचा चलो मुल्तान गया बाकि भारत तो बचा।

अब इस्लाम की आंधी और आगे नहीं बढ़ेगी। प्रतिकार नहीं किया।

मामा शकुनी का गंधार गया। राजा विजयपाल का साथ किसी ने नहीं दिया। हम फिर पलायन कर गए।

सोचा बस इस्लाम की आंधी और आगे नहीं बढ़ेगी, बाकी भारत तो हमारे पास है।

अगर सिंध, मुल्तान, गंधार के समय ही हिन्दुओं ने प्रतिकार किया होता तो इस्लाम की आंधी वही रुक जाती।

परन्तु हमारा समझौतावादी और पलायनवादी रवैया जारी रहा।

आज हम गांधीवाद का रोना रो रहे है, अरे तब तो गाँधी नहीं था ।

गजनी ने सोमनाथ तोड़ा। गुजरात को छोड़ कर सारा भारत चुप रहा।

क्या सोमनाथ केवल गुजरात का था।

सोमनाथ बारह ज्योतिर्लिंगों में से सर्वप्रथम है जिसका वर्णन ऋग्वेद में भी है। उस सोमनाथ के टूटने पर सारा भारत चुप रहा। गजनी यहीं नहीं रुका उसने मथुरा का श्रीकृषण जन्मभूमि मंदिर तोड़ा, मोहम्मद गोरी ने काशी विशाव्नाथ तोड़ा, बाबर ने श्रीराम जन्मभूमि का मंदिर तोड़ा और उस पर बाबरी मस्जिद बनवाई, औरंगजेब ने सोमनाथ, काशी विश्वनाथ और श्रीकृष्णा जन्मभूमि को पुनः तोड़कर पवित्र जगहों पर मस्जिदे बनवाई।

मगर हम चुप रहे, सब कुछ सह गए।

हमारे समझोतावादी और पलायनवादी रुख ने हमे फिर ठगा।

जब जब सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा और काशी पर किसी भी मुस्लिम शासक का राज हुआ उसने मंदिरों को तोड़ने के नए कीर्तिमान बनाये।

इतिहासकार सीताराम गोयल, अरुण शौरी, रामस्वरुप के अनुसार मुस्लिमों ने इस देश में दो हजार मंदिरों को तोड़ कर उनके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण कराया।

क्या इतिहास में कभी किसी हिन्दू शासक ने कोई मस्जिद तुड़वाकर उसके स्थान पर मंदिर बनाया।

क्या कोई हमें बताएगा।

और तो और मुगलों के शासन के बाद जब अयोध्या, मथुरा, काशी पर हिन्दू मराठों का शासन आया तो भी उन्होंने पवित्र मंदिरों को तोड़ कर गर्भगृह की जगह पर बनाई गई मस्जिदों को नहीं हटाया।

अयोध्या, मथुरा, काशी कोई गली नुक्कड़ पर बने हुए मंदिर नहीं थे।

काशी विश्वनाथ, ऋग्वेद में वर्णित बारह ज्योतिर्लिंगों में से सर्वोच्च।

अयोध्या का मंदिर जहा राम जी का जन्म हुआ।

मथुरा का मंदिर जहाँ कृष्णि का जन्म हुआ ये पलायनवाद और समझौतावाद आज तक जारी है।

नेहरु, गाँधी और कांग्रेस ने देश का बंटवारा कराया हम चुप रहे।

जिन्नाह और मुस्लिम लीग से ज्यादा देश के बटवारे के लिए यही लोग जिम्मेदार थे।

ऋग्वेद की जन्मस्थली सिंध चला गया।

वो सिंध जहाँ हमारी सभ्यता का जन्म हुआ।

गुरुओं की धरती पंजाब चला गया।

वो पंजाब जहाँ भगत सिंह का जन्म हुआ।

पूर्वी बंगाल चला गया, जहाँ इक्यावन आदि शक्ति पीठों में से छ: शक्ति पीठ मौजूद है।

जिनकी दुर्दशा आज वहां की सरकार और जनता ने बना दी है।

मगर इस देश में मस्जिदें आज भी सीना ताने खड़ी है।

हम फिर पलायन कर गए, नेहरु और गाँधी की बातों में आकर बंटवारा स्वीकार कर लिया।

किसका बंटवारा भारत माँ का बंटवारा।

भाग कर ”सेकुलर इंडिया” में आ गए।

आ गए या मारकर भगाए गए ये हम सब जानते है।


आधा कश्मीर गया हम तब भी चुप रहे।

कश्मीर में मस्जिदों से नारे लगाये गए। ”हिन्दू मर्दों के बिना, हिन्दू औरतों के साथ, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान”।

हम क्यों चुप रहे। क्या कश्मीर केवल कश्मीरी हिन्दुओं की समस्या है

हमारी नहीं।

जरा याद करो कैसे फिलिस्तीन के मुसलमानों के लिए सारी दुनिया के मुसलमान एक हो जाते है।

तो फिर कश्मीर के हिन्दुओं के लिए हम क्यों एक नहीं हुए।

वो कहते है ”हंस के लिया पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिंदुस्तान” और हम अब भी कह रहे है कि पाकिस्तान के साथ बात करेंगे।

हम क्यों नहीं सोचते सिंध, पश्चिम पंजाब और पूर्वी बंगाल को वापस लेने की।

आखिर वो भी तो हमारी भारत माँ के अंग है।

जिस दिन हम ऐसा सोचने लगेंगे उस दिन से भारत वर्ष फिर बढ़ने लगेगा और अखंड भारत फिर साकार रूप लेगा।...........जय महाकाल !!!

हिन्दू कब तक सहेंगे और कब तक समझौतावादी बने रहेंगे। समझौतावाद ही हमारी कमजोरी बन गया है। और जब तक ये समझोतावाद बना रहेगा तब तक दुसरे लोग हमे ऐसे ही झुकाते रहेंगे। और ऐसे ही हम अपनी इस मात्रभूमि, जन्मभूमि, कर्मभूमि, पुण्यभूमि भारत वर्ष का बटवारा होते देखते रहेंगे।

सर्वपर्थम अरबों ने सिंध पर हमला किया, राजा दाहिर अकेले लड़े बाकि पूरा भारत देखता रहा। परिणाम, अरबों की जीत हुई,


मुहम्मद बिन कासिम ने सिन्धी हिन्दुओ और बौद्धों का कत्लेआम किया, औरतों को गुलाम बनाकर फारस, बगदाद और दमिश्क के बाजारों में बेचा। जबरन धर्मांतरण करा कर मुस्लमान बनाया।

सिंध भारत वर्ष से अलग हो गया। बाकि हिन्दुओं ने सोचा कि इस्लाम की आंधी उन तक नहीं आयेगी, वे चुप रहे।

और सिंध से पलायन कर गए।

फिर बारी आई मुल्तान और गंधार की। मुल्तान जिसका वर्णन ऋग्वेद समेत लगभग सभी वैदिक ग्रंथो में है। मुल्तान का सूर्य मंदिर पुरे भारत वर्ष में काशी विश्वलनाथ की तरह पूजनीय था।

अरबों ने हमला किया सब तहस नहस कर दिया। सूर्य मंदिर तोड़ा, हिन्दुओं का कत्लेआम किया, तलवार की नोंक पर मुसलमान बनाया। पूरा भारत वर्ष चुप रहा। सोचा चलो मुल्तान गया बाकि भारत तो बचा।

अब इस्लाम की आंधी और आगे नहीं बढ़ेगी। प्रतिकार नहीं किया।

मामा शकुनी का गंधार गया। राजा विजयपाल का साथ किसी ने नहीं दिया। हम फिर पलायन कर गए।

सोचा बस इस्लाम की आंधी और आगे नहीं बढ़ेगी, बाकी भारत तो हमारे पास है।

अगर सिंध, मुल्तान, गंधार के समय ही हिन्दुओं ने प्रतिकार किया होता तो इस्लाम की आंधी वही रुक जाती।

परन्तु हमारा समझौतावादी और पलायनवादी रवैया जारी रहा।

आज हम गांधीवाद का रोना रो रहे है, अरे तब तो गाँधी नहीं था ।

गजनी ने सोमनाथ तोड़ा। गुजरात को छोड़ कर सारा भारत चुप रहा।

क्या सोमनाथ केवल गुजरात का था।

सोमनाथ बारह ज्योतिर्लिंगों में से सर्वप्रथम है जिसका वर्णन ऋग्वेद में भी है। उस सोमनाथ के टूटने पर सारा भारत चुप रहा। गजनी यहीं नहीं रुका उसने मथुरा का श्रीकृषण जन्मभूमि मंदिर तोड़ा, मोहम्मद गोरी ने काशी विशाव्नाथ तोड़ा, बाबर ने श्रीराम जन्मभूमि का मंदिर तोड़ा और उस पर बाबरी मस्जिद बनवाई, औरंगजेब ने सोमनाथ, काशी विश्वनाथ और श्रीकृष्णा जन्मभूमि को पुनः तोड़कर पवित्र जगहों पर मस्जिदे बनवाई।

मगर हम चुप रहे, सब कुछ सह गए।

हमारे समझोतावादी और पलायनवादी रुख ने हमे फिर ठगा।

जब जब सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा और काशी पर किसी भी मुस्लिम शासक का राज हुआ उसने मंदिरों को तोड़ने के नए कीर्तिमान बनाये।

इतिहासकार सीताराम गोयल, अरुण शौरी, रामस्वरुप के अनुसार मुस्लिमों ने इस देश में दो हजार मंदिरों को तोड़ कर उनके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण कराया।

क्या इतिहास में कभी किसी हिन्दू शासक ने कोई मस्जिद तुड़वाकर उसके स्थान पर मंदिर बनाया।

क्या कोई हमें बताएगा।

और तो और मुगलों के शासन के बाद जब अयोध्या, मथुरा, काशी पर हिन्दू मराठों का शासन आया तो भी उन्होंने पवित्र मंदिरों को तोड़ कर गर्भगृह की जगह पर बनाई गई मस्जिदों को नहीं हटाया।

अयोध्या, मथुरा, काशी कोई गली नुक्कड़ पर बने हुए मंदिर नहीं थे।

काशी विश्वनाथ, ऋग्वेद में वर्णित बारह ज्योतिर्लिंगों में से सर्वोच्च।

अयोध्या का मंदिर जहा राम जी का जन्म हुआ।

मथुरा का मंदिर जहाँ कृष्णि का जन्म हुआ ये पलायनवाद और समझौतावाद आज तक जारी है।

नेहरु, गाँधी और कांग्रेस ने देश का बंटवारा कराया हम चुप रहे।

जिन्नाह और मुस्लिम लीग से ज्यादा देश के बटवारे के लिए यही लोग जिम्मेदार थे।

ऋग्वेद की जन्मस्थली सिंध चला गया।

वो सिंध जहाँ हमारी सभ्यता का जन्म हुआ।

गुरुओं की धरती पंजाब चला गया।

वो पंजाब जहाँ भगत सिंह का जन्म हुआ।

पूर्वी बंगाल चला गया, जहाँ इक्यावन आदि शक्ति पीठों में से छ: शक्ति पीठ मौजूद है।

जिनकी दुर्दशा आज वहां की सरकार और जनता ने बना दी है।

मगर इस देश में मस्जिदें आज भी सीना ताने खड़ी है।

हम फिर पलायन कर गए, नेहरु और गाँधी की बातों में आकर बंटवारा स्वीकार कर लिया।

किसका बंटवारा भारत माँ का बंटवारा।

भाग कर ”सेकुलर इंडिया” में आ गए।

आ गए या मारकर भगाए गए ये हम सब जानते है।


आधा कश्मीर गया हम तब भी चुप रहे।

कश्मीर में मस्जिदों से नारे लगाये गए। ”हिन्दू मर्दों के बिना, हिन्दू औरतों के साथ, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान”।

हम क्यों चुप रहे। क्या कश्मीर केवल कश्मीरी हिन्दुओं की समस्या है

हमारी नहीं।

जरा याद करो कैसे फिलिस्तीन के मुसलमानों के लिए सारी दुनिया के मुसलमान एक हो जाते है।

तो फिर कश्मीर के हिन्दुओं के लिए हम क्यों एक नहीं हुए।

वो कहते है ”हंस के लिया पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिंदुस्तान” और हम अब भी कह रहे है कि पाकिस्तान के साथ बात करेंगे।

हम क्यों नहीं सोचते सिंध, पश्चिम पंजाब और पूर्वी बंगाल को वापस लेने की।

आखिर वो भी तो हमारी भारत माँ के अंग है।

जिस दिन हम ऐसा सोचने लगेंगे उस दिन से भारत वर्ष फिर बढ़ने लगेगा और अखंड भारत फिर साकार रूप लेगा।...........जय महाकाल !!!

!!! सच जानो और सोचो !!!

Photo: ज़ाकिर नायक इन गवारो को समझा समझा कर थक गया की मुर्दों की इबादत मत करो , मूर्तियों और कब्रों की इबादत मत करो . पर मुल्ले है की मानते ही नहीं | मोहम्मद चाहे लूटेरा था .. बच्चियों की इज्जत लूटने वाला वहशी था पर इन मुल्लो का तो पैगम्बर था , वो बिचारा भी सारी जिंदगी रोता रहा की कब्रों की पूजा मत करो और यह मुल्ले फातिमा की कब्र पर इबादत पढ़ रहे है | :p

जो लोग नहीं जानते उन्हें हम बता देते है की मुल्लो का चरित्र स्थिर नहीं है , एक बार इधर डोलता है तो एक बार उधर... और यह लोग समाज के सामने कुछ ओर बोलते है और करते कुछ ओर है | कहते है मुसलमान बन जाओ सच को अपनाओ . जन्नत मिलेगी ..हाहः .. मोहम्मद खुद बचपन में जब वो मुसलमान नहीं बना था तब वो काबा के मंदिर में पूजा करता था तो अभी तक तो वो भी जन्नत के बाहर बैठा है :D ....कहते है मुसलमान में सिर्फ एक भगवान है ..अल्लाह जिसकी इबादत करते है ..तो वो खुनी ख्वाजा कौन है , वो हजरत बल क्या है ?? हाजी अली क्या है और ऐसी कितनी ही जगह जहा यह सब मुल्ले नाक रगड़ने जाते है ?? पीर फकीर पैगम्बर ख्वाजा रसूल फ़रिश्ते और जिहादी किताब कुरआन की भी पूजा करते है .. फिर कहते है सिर्फ अल्लाह को मानते है हम .. दोहरा चरित्र ||
यह कहते है हमारे यहाँ भेदभाव नहीं होता दलित और स्वर्ण में| तो मुहाजीर क्या होते है ?? भारत के मुल्लो को तो इस्लामिक देशो में मुसलमान का दर्ज़ा भी नहीं मिलता है .. ऊँचे रसूख वाले शैख़ निचले दर्जे के मुसलमान के हाथ का पानी नहीं पीते, सिया सुन्नी आदि बाते तो आप जानते ही होंगे |
मक्काह मदीना में गैर मुस्लिम को जाने की आगया नहीं है .. और भारत के दलितो को सामान हक की बात कह कर बहकाते है |
पूरी दुनिया तबाह हो रही है इन मुल्लो के दोहरे चरित्र की वजह से ..कहते है इस्लाम शान्ति फैलाने के लिए है .. मान लिया .. पर क्या मुसलमान शान्ति फैलाने के लिए बने है?? ..यहाँ मूर्ति पूजा कर रहे है और भारत में आकार शिवालय तोडते है |
खुद एक इंसान की बनायी हुई जिहादी किताब कुरान का अनुसरण करते है और गीता रामायण को कहानी बताते है | खुद हिंदू-मुस्लिम, जात पात का भेदभाव रखते है, और भारत के दलितो को इस्लाम काबुल करने के लिए भडकाते है |
कहते है साडी में औरत की इज्जत नहीं और बुरखे में इज्जत है और खुद की बहिन के साथ निकाह कर लेते है ..

ज़ाकिर नायक इन गवारो को समझा समझा कर थक गया की मुर्दों की इबादत मत करो , मूर्तियों और कब्रों की इबादत मत करो . पर मुल्ले है की मानते ही नहीं | मोहम्मद चाहे लूटेरा था .. बच्चियों की इज्जत लूटने वाला वहशी था पर इन मुल्लो का तो पैगम्बर था , वो बिचारा भी सारी जिंदगी रोता रहा की कब्रों की पूजा मत करो और यह मुल्ले फातिमा की कब्र पर इबादत पढ़ रहे है | :p

जो लोग नहीं जानते उन्हें हम बता देते है की मुल्लो का चरित्र स्थिर नहीं है , एक बार इधर डोलता है तो एक बार उधर... और यह लोग समाज के सामने कुछ ओर बोलते है और करते कुछ ओर है | कहते है मुसलमान बन जाओ सच को अपनाओ . जन्नत मिलेगी ..हाहः .. मोहम्मद खुद बचपन में जब वो मुसलमान नहीं बना था तब वो काबा के मंदिर में पूजा करता था तो अभी तक तो वो भी जन्नत के बाहर बैठा है :D ....कहते है मुसलमान में सिर्फ एक भगवान है ..अल्लाह जिसकी इबादत करते है ..तो वो खुनी ख्वाजा कौन है , वो हजरत बल क्या है ?? हाजी अली क्या है और ऐसी कितनी ही जगह जहा यह सब मुल्ले नाक रगड़ने जाते है ?? पीर फकीर पैगम्बर ख्वाजा रसूल फ़रिश्ते और जिहादी किताब कुरआन की भी पूजा करते है .. फिर कहते है सिर्फ अल्लाह को मानते है हम .. दोहरा चरित्र ||
यह कहते है हमारे यहाँ भेदभाव नहीं होता दलित और स्वर्ण में| तो मुहाजीर क्या होते है ?? भारत के मुल्लो को तो इस्लामिक देशो में मुसलमान का दर्ज़ा भी नहीं मिलता है .. ऊँचे रसूख वाले शैख़ निचले दर्जे के मुसलमान के हाथ का पानी नहीं पीते, सिया सुन्नी आदि बाते तो आप जानते ही होंगे |

मक्काह मदीना में गैर मुस्लिम को जाने की आगया नहीं है .. और भारत के दलितो को सामान हक की बात कह कर बहकाते है |
पूरी दुनिया तबाह हो रही है इन मुल्लो के दोहरे चरित्र की वजह से ..कहते है इस्लाम शान्ति फैलाने के लिए है .. मान लिया .. पर क्या मुसलमान शान्ति फैलाने के लिए बने है?? ..यहाँ मूर्ति पूजा कर रहे है और भारत में आकार शिवालय तोडते है |

खुद एक इंसान की बनायी हुई जिहादी किताब कुरान का अनुसरण करते है और गीता रामायण को कहानी बताते है | खुद हिंदू-मुस्लिम, जात पात का भेदभाव रखते है, और भारत के दलितो को इस्लाम काबुल करने के लिए भडकाते है |

कहते है साडी में औरत की इज्जत नहीं और बुरखे में इज्जत है और खुद की बहिन के साथ निकाह कर लेते है ..

!!! गौ मूत्र का सच !!!



अमेरिका ने गौ मूत्र का पेन्टेट किया है उसका नं. 6410059 है। इसका शीर्षक है- फार्मास्युटिकल कम्पोजीशन कन्टेनिंग काऊ यूरिन, डिस्टीलेट एंड एन एन्टीबायोटिक। इससे कैंसर के उपचार में मदद ली जा रही है।

रुसी वैज्ञानिक शिरोविच ने अपने शोध के परिणाम उजागर किये हैं, जिनमें कहा गया है कि गाय का दूध एटामिक रेडीएशन से रक्षा करने में सर्वाधिक शक्ति रखता है।पर हमारे यहाँ अगर इसी तरह ज्ञानियों को
सरकार जेल में डालती रही तो हर कोई विदेश ही जाना पसंद करेगा हमारे देश का सेंकडो नहि बल्की हजारो साल पुराने ज्ञान को आज हमारे ही देश में पूछ नहीं मिल रही हैं और दुसरे देश उस ज्ञान को समझ कर परख कर अपने यहाँ अपने नाम से पेटेंट कर रहें है


साथ ही अपने देश वासियों की भलाई में उसका इस्तेमाल भी कर रहें हैं .. देश तो मेरा वाकई में कमाल है पर यह सरकार उस से भी ज़यादा गड- बड -झोलझाल है आने वाले समय में भी यदि भारतीय नहीं जगे तो आर्य व्रत में इससे भी बुरे दिन देखने को मिलेंगे जिसके लिए हम खुद ही ज़िम्मेदार होंगे और हमारी आने वाली पीढ़िय हमेशा हमे कोसती रहेंगी

जिस तरह आज भारत के बटवारे के लिए ,कश्मीर की समस्या के लिए ,तिब्बत की समस्या ,आसाम की समस्या के लिए पुराने नेताओं को कोसते है उनकी नीतियों को गली देते हैं यही सब हमे भी सुनने को मिलेगा इसलिए अभी भी समय है जाग जाओं .. माँ भारती आप सभी का मार्ग प्रशस्त करे जय माँ भारती ..

क्या आप को पता है सिमेन्ट की अधिकतम आयु मात्र 100 साल है ?

Photo: निचे लिंक पे जाके सुने नही तो लेख पड़े -----
http://www.youtube.com/watch?v=f0jRLlQvCBk

क्या आप को पता है सिमेन्ट की अधिकतम आयु मात्र 100 साल है ? कुछ वैज्ञानिकों का कहना है अगर 'cracks' को आधार बनाया जाये तो सिमेन्ट की आयु 5 साल भी नही है | भारत के सारे पुराने किले चूना पत्थर से बने हैं एवं चूने की नुन्यतम आयु 500 साल है और अधिकतम 2000 से 2500 साल । चूना एवं सिमेन्ट का 'raw material ' एक ही है।

आज से 150 साल पहले तक भारत के जादातर घर चूने से बनते थे नही तो मिटटी से। परन्तु पिछले हजारो साल में चूना बनाने की जो तकनीक विकसित हुई अंग्रेजो ने उसे ban किया और एक कानून बना दिया गया के चूने का काम करना अवैध है एवं सिमेन्ट से घर बनाना वैध |इसका कारण यह था की अंग्रेजो को अंपने देश का सिमेन्ट बिकवाना था और चूने के उद्योग को नष्ट करना था ।

भारत मे पहले चूना बनाने के छोटे-छोटे केंद्र होते थे , लगभग हर गाँव में एक । सिमेन्ट बनाने की जो तकनीक है वो इतना जटिल है के कोइ गाँव में नही बन सकता, इसके लिए बहुत ऊर्जा चाहिए किन्तु वहीं चूना बनाने के लिए कुछ नही चाहिए।
सिमेन्ट बनाने के लिए बिजली चाहिए , बिजली के लिए कोयला निकलना है , कोयले के साथ जल भी चाहिए , जल हमको खेती और पीने के लिए चाहिए लेकिन वो कहते है पहले बिजली के लिए चाहिए, पानी एकत्र करने के लिए नदी में बांध देना चाहिए, और यदि कहीं बांध टूट जाये तो बाढ़ ही बाढ़ ।

इससे अच्छा तो भारत की तकनीक है जिसमे चूना पत्थर, दूध और एक बैल चाहिए मात्र ।

क्या आप को पता है सिमेन्ट की अधिकतम आयु मात्र 100 साल है ? कुछ वैज्ञानिकों का कहना है अगर 'cracks' को आधार बनाया जाये तो सिमेन्ट की आयु 5 साल भी नही है | भारत के सारे पुराने किले चूना पत्थर से बने हैं एवं चूने की नुन्यतम आयु 500 साल है और अधिकतम 2000 से 2500 साल । चूना एवं सिमेन्ट का 'raw material ' एक ही है।

आज से 150 साल पहले तक भारत के जादातर घर चूने से बनते थे नही तो मिटटी से। परन्तु पिछले हजारो साल में चूना बनाने की जो तकनीक विकसित हुई अंग्रेजो ने उसे ban किया और एक कानून बना दिया गया के चूने का काम करना अवैध है एवं सिमेन्ट से घर बनाना वैध |इसका कारण यह था की अंग्रेजो को अंपने देश का सिमेन्ट बिकवाना था और चूने के उद्योग को नष्ट करना था ।

भारत मे पहले चूना बनाने के छोटे-छोटे केंद्र होते थे , लगभग हर गाँव में एक । सिमेन्ट बनाने की जो तकनीक है वो इतना जटिल है के कोइ गाँव में नही बन सकता, इसके लिए बहुत ऊर्जा चाहिए किन्तु वहीं चूना बनाने के लिए कुछ नही चाहिए।



सिमेन्ट बनाने के लिए बिजली चाहिए , बिजली के लिए कोयला निकलना है , कोयले के साथ जल भी चाहिए , जल हमको खेती और पीने के लिए चाहिए लेकिन वो कहते है पहले बिजली के लिए चाहिए, पानी एकत्र करने के लिए नदी में बांध देना चाहिए, और यदि कहीं बांध टूट जाये तो बाढ़ ही बाढ़ ।

इससे अच्छा तो भारत की तकनीक है जिसमे चूना पत्थर, दूध और एक बैल चाहिए मात्र ।

"शिवतत्त्व" / ऋग्वेद में क्या है"


"हिग्स बोसोन\गॉड पार्टिकल"
इस सदी की सबसे बड़ी खोज .............

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.......ब्रह्मांड में पाई जानेवाली हर चीज के द्रव्य की वजह हिग्स बोसोन ही है। वरना ब्रह्मांड बनने के समय बने कण यू हीं अंतरिक्ष में प्रकाश की गति से चलते हुए खो जाते। न आकाशगंगा बनती न तारे बनते न हम होते।जब हमारा ब्रह्मांड अस्तित्व में आया था, तो उससे पहले सब कुछ हवा में तैर रहा था, किसी चीज का तय आकार या वजन नहीं था, जब हिग्स बोसोन भार ऊर्जा लेकर आया तो सभी तत्व उसकी वजह से आपस में जुड़ने लगे और उनमें मास या आयतन पैदा हो गया।हिग्स बोसोन की वजह से ही आकाशगंगाएं, ग्रह, तारे और उपग्रह बने। पिछले कई प्रयोगों से इसके प्रमाण मिल रहे थे।ब्रह्मांड के वजूद के पीछे हिग्गस बोसोन कण है, लेकिन कभी भी इसके वजूद के प्रमाण नहीं मिल सके थे। हिग्स बोसोन बनने के कुछ पल में ही नष्ट हो जाता है। लेकिन इस दौरान वह लंबे समय तक टिकने वाले दूसरे कण में बदल जाता है ।

"लार्ज हेड्रोन कोलाइडर" (एलएचसी) मशीन के जरिये हिग्स बोसॉन का पता लगाने का प्रयास।"

.............दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला स्विट्जरलैंड के "सर्न" में चल रहे बरसों के प्रयोग के बाद मंगलवार को वैज्ञानिकों ने दावा किया कि हिग्स बोसोन कण के वजूद के प्रमाण मिल गए हैं।२७ किमी लंबी सुरंग में अति सूक्ष्म कणों को आपस में टकराकर विज्ञानी इस पार्टिकल की खोज कर रहे हैं। सर्न के अंदर दो प्रयोग किए जा रहे हैं। इनका नाम एटलर और सीएमस है। दोनों का लक्ष्य हिग्स कण का पता लगाना था । जिसमें तीन साल से भी ज्यादा समय से प्रयोग चल रहा था। यहां बिग बैंग विस्फोट जैसा माहौल तैयार किया गया था, ताकि इसके रहस्यों को समझा जा सके। वैज्ञानिकों ने कहा है कि वे साल के अंत तक ब्रह्मांड की उत्पत्ति की पहेली सुलझा लेंगे।


........."यदि हिग्स बोसोन का पता चल जाता है तो सृष्टि का निर्माण कैसे हुआ, का पता चल जाएगा। यह खोज पहली शताब्दी की प्रमुख उपलब्धियों में से एक होगी और आइंस्टीन के पहले क्वांटम फिजिक्स के पहले जाने जैसा होगा।यह ब्रह्मांड के सभी मूलभूत तत्वों के रहस्यों को सामने लाने की शुरुआत होगी। भविष्य में ब्रह्मांड को लेकर होने वाले शोध आसान हो जाएंगे। अभी तक वैज्ञानिकों को केवल५ % ही ब्रह्मांड की जानकारी है। बाकी का हिस्सा डार्क एनर्जी या डार्क मैटर के नाम से जाना जाता है।"
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हमारे वेद और शास्त्रों में कण-कण में भगवान की थ्योरी पहल से ही मौजूद है। ऋग्वेद में तो पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति का लेखा-जोखा ही मौजूद है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सबसे मान्यता प्राप्त महाविस्फोट का सिद्धांत है। यह सिद्धांत ऋग्वेद की ऋचाओं से कितना मेल खाता है, यह देखते हैं।

द बिग बैंग थ्योरी

महाविस्फोट सिद्धांत में कहा गया है कि 10 से 20 खरब साल पहले ब्रह्मांड के सभी कण एक-दूसरे से पास थे। इतने पास कि सभी एक ही जगह थे, एक ही बिंदु पर। सारा ब्रह्मांड एक बिंदु की शक्ल में था। यह बिंदु महासूक्ष्म था। इस स्थिति में भौतिकी, गणित या विज्ञान का कोई भी नियम काम नहीं करता है। यह वह स्थिति है, जब मनुष्य किसी भी प्रकार अनुमान या विश्लेषण करने में असमर्थ है। काल या समय भी इस स्थिति में रुक जाता है।
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ऋग्वेद में क्या है
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ऋग्वेद में सृष्टि सृजन की श्रुति में कहा गया है- सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था। छिपा था कहां क्या, किसने देखा था। उस पल तो अगम, अटल जल भी कहां था। बस एक बिंदु था। ऋग्वेद ।

ऋग्वेद इससे आगे भी रहस्य खोलता है। उसमें लिखा है कि ब्रह्म स्वयं प्रकाश है। उसी से ब्रह्मांड प्रकाशित है। उस एक परम तत्व ब्रह्म में से ही आत्मा और ब्रह्मांड का प्रस्फुटन हुआ है। ब्रह्म और आत्मा में सिर्फ इतना फर्क है कि ब्रह्म महाआकाश है तो आत्मा घटाकाश। घट का आकाश।


संस्कृत के विद्धान और गोविंद देव पंचांग के संपादक आचार्य कामेश्वर नाथ चतुर्वेदी कहते हैं कि उपनिषद में एक जगह उल्लेख है कि ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा, यह तीन तत्व ही हैं। ब्रह्म शब्द 'ब्रह्' धातु से बना है, जिसका अर्थ बढ़ना या फूट पड़ना होता है। ब्रह्म वह है, जिसमें से संपूर्ण सृष्टि और आत्माओं की उत्पत्तिहुई है या जिसमें से ये फूट पड़े हैं। विश्व की उत्पत्तिा, स्थिति और विनाश का कारण ब्रह्म है।

पदार्थ का विघटित रूप ही परम अणु

पदार्थ का विघटित रूप ही परम अणु है। जेनेवा प्रयोग में वैज्ञानिकों ने द्रव्य और द्रव्यमान के लिए इसी 'गॉड पार्टिकल' को जिम्मेदार माना। तैत्तिरीय उपनिषद में इसी द्रव्य के बारे में समझाया गया है। कृष्णमूर्ति ज्योतिष की जानकार शालिनी द्विवेदी कहती हैं कि तैत्तिरीय उपनिषद में साफ कहा गया है कि परमेश्वर से आकाश अर्थात जो कारण रूप द्रव्य सर्वत्र फैल रहा था, उसको इकट्ठा करने से अवकाश उत्पन्न होता है। वास्तव में आकाश की उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि बिना अवकाश के प्रकृति और परमाणु कहां ठहर सके और बिना अवकाश के आकाश कहां हो। अवकाश अर्थात जहां कुछ भी नहीं है और आकाश जहां सब कुछ है।

उनके अनुसार उपनिषद कहता है कि पदार्थ का संगठित रूप जड़ है और विघटित रूप परम अणु है। इस अणु को ही वेद परम तत्व कहते हैं और श्रमण पुद्गल। इसी उपनिषद में आगे कहा गया है कि आकाश के पश्चात वायु, वायु के पश्चात अग्नि, अग्नि के पश्चात जल, जल के पश्चात पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि, औषधियों से अन्न, अन्न से वीर्य, वीर्य से पुरुष अर्थात शरीर उत्पन्न होता है

.............................................. जय महाकाल !!! —

जो ये समझते हैं कि "राम या रामायण" एक काल्पनिक कथा या पात्र थे वो इसे अवश्य पढ़ें !!



"हम भारतीय विश्व की प्राचीनतम सभ्यता के वारिस है तथा हमें अपने गौरवशाली इतिहास तथा उत्कृष्ट प्राचीन संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। किंतु दीर्घकाल की परतंत्रता ने हमारे गौरव को इतना गहरा आघात पहुंचाया कि हम अपनी प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति के बारे में खोज करने की तथा उसको समझने की इच्छा ही छोड़ बैठे। परंतु स्वतंत्र भारत में पले तथा पढ़े-लिखे युवक-युवतियां सत्य की खोज करने में समर्थ है तथा छानबीन के आधार पर निर्धारित तथ्यों तथा जीवन मूल्यों को विश्व के आगे गर्वपूर्वक रखने का साहस भी रखते है। श्रीराम द्वारा स्थापित आदर्श हमारी प्राचीन परंपराओं तथा जीवन मूल्यों के अभिन्न अंग है। वास्तव में श्रीराम भारतीयों के रोम-रोम में बसे है। रामसेतु पर उठ रहे तरह-तरह के सवालों से श्रद्धालु जनों की जहां भावना आहत हो रही है,वहीं लोगों में इन प्रश्नों के समाधान की जिज्ञासा भी है। हम इन प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयत्**न करे:- श्रीराम की कहानी प्रथम बार महर्षि वाल्मीकि ने लिखी थी। वाल्मीकि रामायण श्रीराम के अयोध्या में सिंहासनारूढ़ होने के बाद लिखी गई। महर्षि वाल्मीकि एक महान खगोलविद् थे। उन्होंने राम के जीवन में घटित घटनाओं से संबंधित तत्कालीन ग्रह, नक्षत्र और राशियों की स्थिति का वर्णन किया है। इन खगोलीय स्थितियों की वास्तविक तिथियां 'प्लैनेटेरियम साफ्टवेयर' के माध्यम से जानी जा सकती है। भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत पुष्कर भटनागर ने अमेरिका से 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' नामक साफ्टवेयर प्राप्त किया, जिससे सूर्य/ चंद्रमा के ग्रहण की तिथियां तथा अन्य ग्रहों की स्थिति तथा पृथ्वी से उनकी दूरी वैज्ञानिक तथा खगोलीय पद्धति से जानी जा सकती है। इसके द्वारा उन्होंने महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित खगोलीय स्थितियों के आधार पर आधुनिक अंग्रेजी कैलेण्डर की तारीखें निकाली है। इस प्रकार उन्होंने श्रीराम के जन्म से लेकर 14 वर्ष के वनवास के बाद वापस अयोध्या पहुंचने तक की घटनाओं की तिथियों का पता लगाया है।

"श्रीराम की जन्म तिथि :

महर्षि वाल्मीकि ने बालकाण्ड के सर्ग 18 के श्लोक 8 और 9 में वर्णन किया है कि श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ। उस समय सूर्य,मंगल,गुरु,शनि व शुक्र ये पांच ग्रह उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे। ग्रहों,नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति इस प्रकार थी-सूर्य मेष में,मंगल मकर में,बृहस्पति कर्क में, शनि तुला में और शुक्र मीन में थे। चैत्र माह में शुक्ल पक्ष नवमी की दोपहर 12 बजे का समय था।

जब उपर्युक्त खगोलीय स्थिति को कंप्यूटर में डाला गया तो 'प्लैनेटेरियम गोल्ड साफ्टवेयर' के माध्यम से यह निर्धारित किया गया कि 10 जनवरी, 5114 ई.पू. दोपहर के समय अयोध्या के लेटीच्यूड तथा लांगीच्यूड से ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति बिल्कुल वही थी, जो महर्षि वाल्मीकि ने वर्णित की है। इस प्रकार श्रीराम का जन्म 10 जनवरी सन् 5114 ई. पू.(7117 वर्ष पूर्व)को हुआ जो भारतीय कैलेण्डर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है और समय 12 बजे से 1 बजे के बीच का है।

श्रीराम के वनवास की तिथि :

वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड (2/4/18) के अनुसार महाराजा दशरथ श्रीराम का राज्याभिषेक करना चाहते थे क्योंकि उस समय उनका(दशरथ जी) जन्म नक्षत्र सूर्य, मंगल और राहु से घिरा हुआ था। ऐसी खगोलीय स्थिति में या तो राजा मारा जाता है या वह किसी षड्यंत्र का शिकार हो जाता है। राजा दशरथ मीन राशि के थे और उनका नक्षत्र रेवती था ये सभी तथ्य कंप्यूटर में डाले तो पाया कि 5 जनवरी वर्ष 5089 ई.पू.के दिन सूर्य,मंगल और राहु तीनों मीन राशि के रेवती नक्षत्र पर स्थित थे। यह सर्वविदित है कि राज्य तिलक वाले दिन ही राम को वनवास जाना पड़ा था। इस प्रकार यह वही दिन था जब श्रीराम को अयोध्या छोड़ कर 14 वर्ष के लिए वन में जाना पड़ा। उस समय श्रीराम की आयु 25 वर्ष (5114- 5089) की निकलती है तथा वाल्मीकि रामायण में अनेक श्लोक यह इंगित करते है कि जब श्रीराम ने 14 वर्ष के लिए अयोध्या से वनवास को प्रस्थान किया तब वे 25 वर्ष के थे।

खर-दूषण के साथ युद्ध के समय सूर्यग्रहण :

वाल्मीकि रामायण के अनुसार वनवास के 13 वें साल के मध्य में श्रीराम का खर-दूषण से युद्ध हुआ तथा उस समय सूर्यग्रहण लगा था और मंगल ग्रहों के मध्य में था। जब इस तारीख के बारे में कंप्यूटर साफ्टवेयर के माध्यम से जांच की गई तो पता चला कि यह तिथि 5 अक्टूबर 5077 ई.पू. ; अमावस्या थी। इस दिन सूर्य ग्रहण हुआ जो पंचवटी (20 डिग्री सेल्शियस एन 73 डिग्री सेल्शियस इ) से देखा जा सकता था। उस दिन ग्रहों की स्थिति बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी वाल्मीकि जी ने वर्णित की- मंगल ग्रह बीच में था-एक दिशा में शुक्र और बुध तथा दूसरी दिशा में सूर्य तथा शनि थे।

"अन्य महत्वपूर्ण तिथियां :

किसी एक समय पर बारह में से छह राशियों को ही आकाश में देखा जा सकता है। वाल्मीकि रामायण में हनुमान के लंका से वापस समुद्र पार आने के समय आठ राशियों, ग्रहों तथा नक्षत्रों के दृश्य को अत्यंत रोचक ढंग से वर्णित किया गया है। ये खगोलीय स्थिति श्री भटनागर द्वारा प्लैनेटेरियम के माध्यम से प्रिन्ट किए हुए 14 सितंबर 5076 ई.पू. की सुबह 6:30 बजे से सुबह 11 बजे तक के आकाश से बिल्कुल मिलती है। इसी प्रकार अन्य अध्यायों में वाल्मीकि द्वारा वर्णित ग्रहों की स्थिति के अनुसार कई बार दूसरी घटनाओं की तिथियां भी साफ्टवेयर के माध्यम से निकाली गई जैसे श्रीराम ने अपने 14 वर्ष के वनवास की यात्रा 2 जनवरी 5076 ई.पू.को पूर्ण की और ये दिन चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी ही था। इस प्रकार जब श्रीराम अयोध्या लौटे तो वे 39 वर्ष के थे (5114-5075)।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम से श्रीलंका तक समुद्र के ऊपर पुल बनाया। इसी पुल को पार कर श्रीराम ने रावण पर विजय पाई। हाल ही में नासा ने इंटरनेट पर एक सेतु के वो अवशेष दिखाए है, जो पॉक स्ट्रेट में समुद्र के भीतर रामेश्वरम(धनुषकोटि) से लंका में तलाई मन्नार तक 30 किलोमीटर लंबे रास्ते में पड़े है। वास्तव में वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि विश्वकर्मा की तरह नल एक महान शिल्पकार थे जिनके मार्गदर्शन में पुल का निर्माण करवाया गया। यह निर्माण वानर सेना द्वारा यंत्रों के उपयोग से समुद्र तट पर लाई गई शिलाओं, चट्टानों, पेड़ों तथा लकड़ियों के उपयोग से किया गया। महान शिल्पकार नल के निर्देशानुसार महाबलि वानर बड़ी-बड़ी शिलाओं तथा चट्टानों को उखाड़कर यंत्रों द्वारा समुद्र तट पर ले आते थे। साथ ही वो बहुत से बड़े-बड़े वृक्षों को, जिनमें ताड़, नारियल,बकुल,आम,अशोक आदि शामिल थे, समुद्र तट पर पहुंचाते थे। नल ने कई वानरों को बहुत लम्बी रस्सियां दे दोनों तरफ खड़ा कर दिया था। इन रस्सियों के बीचोबीच पत्थर,चट्टानें, वृक्ष तथा लताएं डालकर वानर सेतु बांध रहे थे। इसे बांधने में 5 दिन का समय लगा। यह पुल श्रीराम द्वारा तीन दिन की खोजबीन के बाद चुने हुए समुद्र के उस भाग पर बनवाया गया जहां पानी बहुत कम गहरा था तथा जलमग्न भूमार्ग पहले से ही उपलब्ध था। इसलिए यह विवाद व्यर्थ है कि रामसेतु मानव निर्मित है या नहीं, क्योंकि यह पुल जलमग्न, द्वीपों, पर्वतों तथा बरेतीयों वाले प्राकृतिक मार्गो को जोड़कर उनके ऊपर ही बनवाया गया था।"

भगवान राम का वंश

Photo: भगवान राम का वंश


हिंदू धर्म में राम को विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता है। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे - इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध। राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था। जैन धर्म के तीर्थंकर निमि भी इसी कुल के थे। मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि, निमि और दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए। इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र, रोहित, वृष, बाहु और सगर तक पहुँची। इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल देश के राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी। रामायण के बालकांड में गुरु वशिष्ठजी द्वारा राम के कुल का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है

ब्रह्माजी से मरीचि हुए.
मरीचि के पुत्र कश्यप हुए.
कश्यप के पुत्र विवस्वान थे.
विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए. वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था.
वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की।
इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए.
कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था.
विकुक्षि के पुत्र बाण हुए.
बाण के पुत्र अनरण्य हुए.
अनरण्य से पृथु हुए.
पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ.
त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए.
धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था.
युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए.
मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ.
सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित.
ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।
भरत के पुत्र असित हुए.
असित के पुत्र सगर हुए.
सगर के पुत्र का नाम असमंज था.
असमंज के पुत्र अंशुमान हुए.
अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए.
दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतरा था.
भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे.
ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए. रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब राम के कुल को रघुकुल भी कहा जाता है।
रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए.
प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे.
शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए.
सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था.
अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए.
शीघ्रग के पुत्र मरु हुए.
मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे.
प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए.
अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था.
नहुष के पुत्र ययाति हुए.
ययाति के पुत्र नाभाग हुए.
नाभाग के पुत्र का नाम अज था.
अज के पुत्र दशरथ हुए.
दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए. इस प्रकार ब्रम्हा की उन्चालिसवी पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ.

हिंदू धर्म में राम को विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता है। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे - इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध। राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था। जैन धर्म के तीर्थंकर निमि भी इसी कुल के थे। मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि, निमि और दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए। इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र, रोहित, वृष, बाहु और सगर तक पहुँची। इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल देश के राजा थे और इनकी राजधनी अयोध्या थी। रामायण के बालकांड में गुरु वशिष्ठजी द्वारा राम के कुल का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है

ब्रह्माजी से मरीचि हुए.
मरीचि के पुत्र कश्यप हुए.
कश्यप के पुत्र विवस्वान थे.
विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए. वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था.
वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की।
इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए.
कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था.
विकुक्षि के पुत्र बाण हुए.
बाण के पुत्र अनरण्य हुए.
अनरण्य से पृथु हुए.
पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ.
त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए.
धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था.
युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए.
मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ.
सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित.
ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।
भरत के पुत्र असित हुए.
असित के पुत्र सगर हुए.
सगर के पुत्र का नाम असमंज था.
असमंज के पुत्र अंशुमान हुए.
अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए.
दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतरा था.
भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे.
ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए. रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब राम के कुल को रघुकुल भी कहा जाता है।
रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए.
प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे.
शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए.
सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था.
अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए.
शीघ्रग के पुत्र मरु हुए.
मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे.
प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए.
अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था.
नहुष के पुत्र ययाति हुए.
ययाति के पुत्र नाभाग हुए.
नाभाग के पुत्र का नाम अज था.
अज के पुत्र दशरथ हुए.
दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए. इस प्रकार ब्रम्हा की उन्चालिसवी पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ.

क्या सच में हमारा परिवर्तन सही दिशा में हो रहा है...?????


कहा जाता है कि.... परिवर्तन संसार का नियम है..... और, परिवर्तन ही प्रशस्ती का मार्ग प्रशस्त करता है...

लेकिन... क्या सच में हमारा परिवर्तन सही दिशा में हो रहा है...?????

नमस्कार को टाटा खाया.... नूडल ने खा गया आटा !

देखो भाइयो, इस साली... अंग्रेजी के चक्कर में... हुआ..... बडा ही घाटा !!

सोचो कहाँ आ गए....?

माताजी को मम्मी खा गयी......पिता को खाया डैड.... !
दादाजी को ग्रैंडपा खा गये.........सोचो कितना बैड... !!

सोचो कहाँ आ गए....?

गुरुकुल को स्कूल खा गया.... गुरु को खाया चेला... !
अंग्रेजों के प्रभाव में आकर ...
सरस्वती की प्रतिमा पर साला सेकुलर मारे ढेला... !!

सोचो कहाँ आ गए....?

चौपालों को बीयर बार खा गया.... रिश्तों को खा गया टी.वी..... !
देख सीरियल.......... लगा लिपिस्टिक........ बक-बक करती बीबी !!

सोचो कहाँ आ गए....?

रसगुल्ले को केक खा गया ...... दूध पी गया अंडा.....!
दातून को टूथपेस्ट खा गया.......छाछ पी गया ठंढा.. !!

सोचो कहाँ आ गए....?

परंपरा को कल्चर खा गया..... हिंदी को खा गया अंग्रेजी .........!
दूध-दही के बदले...... चाय-कॉफ़ी पी पी कर बन गए हम लेजी !!

सोचो कहाँ आ गए...??

प्रेम से बोलो जय महाकाल की .....!!!

Foods with Folic Acid

The following foods are great sources for folic acid. This list isn’t expansive but is a great place to get started. As always, I do recommend organic if available.
Spinach Folic Acid Food

1. Dark Leafy Greens

It should come as no surprise that one of the planet’s healthiest foods is also one of the highest in folate. For an immediate boost in folic acid, consider adding more spinach, collard greens, kale, turnip greens and romaine lettuce into your daily diet. Just one large plate of these delicious leafy greens can provide you with almost all of your daily needs for folic acid.


Below is a short list of leafy greens that are high in folic acid.

Spinach — 1 cup = 263 mcg of folate (65% DV)
Collard Greens — 1 cup = 177 mcg of folate (44% DV)
Turnip Greens — 1 cup = 170 mcg of folate (42% DV)
Mustard Greens — 1 cup = 103 mcg of folate (26% DV)
Romaine Lettuce — 1 cup = 76 mcg of folate (19% DV)


2. Asparagus



This woody treat is perhaps the most nutrient dense foods with folic acid out of the entire vegetable kingdom. Eating just one cup of boiled asparagus will give you 262 mcg of folic acid, which accounts for approximately 65% of your daily needs. Not only is asparagus a delicious snack, but it’s also full of nutrients your body craves, including Vitamin K, Vitamin C, Vitamin A and Manganese.


3. Broccoli



Not only is broccoli one of the best detox foods you can eat, it’s also a great source for folic acid. Eating just one cup of broccoli will provide you with approximately 24% of your daily folic acid needs, not to mention a whole host of other important nutrients. We recommend eating organic broccoli raw or lightly steamed.

4. Citrus Fruits





Many fruits contain folic acid, but citrus fruits rank the highest. Oranges are an especially rich source of folic acid. One orange holds about 50 mcg, and a large glass of juice may contain even more. Other folate-rich fruits include papaya, grapefruit, grapes, banana, cantaloupe and strawberries. Here is a short list of fruits high in folic acid.
Papaya — One papaya = 115 mcg of folate (29% DV)
Oranges — One orange = 40 mcg of folate (10% DV)
Grapefruit — One grapefruit = 30 mcg of folate (8% DV)
Strawberries — 1 cup = 25 mcg of folate (6.5% DV)
Raspberries — 1 cup = 14 mcg of folate (4% DV)


5. Beans, Peas and Lentils





Beans and pulses especially high in folic acid include pinto beans, lima beans, green peas, black-eyed peas and kidney beans. A small bowl of any type of lentils will give you the majority of your recommended daily amounts for folate. Here is a short list of how much which beans have the most folic acid. 

Lentils — 1 cup = 358 mcg of folate (90% DV)
Pinto Beans — 1 cup = 294 mcg of folate (74% DV)
Garbanzo Beans — 1 cup = 282 mcg of folate (71% DV)
Black Beans — 1 cup = 256 mcg of folate (64% DV)
Navy Beans — 1 cup = 254 mcg of folate (64% DV)
Kidney Beans — 1 cup = 229 mcg of folate (57% DV)
Lima Beans — 1 cup = 156 mcg of folate (39% DV)
Split Peas — 1 cup = 127 mcg of folate (32% DV)
Green Peas — 1 cup = 101 mcg of folate (25% DV)
Green Beans — 1 cup = 42 mcg of folate (10% DV)


6. Avocado




The most beloved vegetable of Mexican fare, the buttery avocado holds up to 90mcg of folate per cup, which accounts for appoximately 22% of your daily needs. Not only are avocados one of the best foods with folic acid, but it’s also an excellent source of fatty acids, vitamin K and dietary fiber. Adding them to sandwiches or salads will make for an extra-healthy treat.

7. Okra





The world’s slimiest veggie is also one of the most nutrient rich. Okra has the distinct ability to simultaneously offer vitamins and minerals while cleansing the entire digestive tract from toxic build-up. When it comes to folate, Okra is a great source. Just one cup of cooked okra will give you approximately 37 mcg of folic acid.

8. Brussel Sprouts





While brussel sprouts probably isn’t your favorite vegetable, there is no denying that they are one of the best foods with folic acid. Eating one cup of boiled brussel sprouts will give you approximately 25% of your daily recommended amount. Brussel sprouts are also high in vitamin C, vitamin K, vitamin A, manganese and potassium. Even with the abundance of nutrients, it still remains incredibly difficult to convince your kid to give them a try.


9. Seeds and Nuts




It doesn’t matter if it’s pumpkin, sesame, sunflower or flax seeds, eating them raw or sprouted, or sprinkling them onto your next salad will add a healthy dose of folic acid. Sunflower seeds, flax seeds and peanuts are especially high in folate, with one cup offering up to 300 mcg. Nuts are also very high in folic acid, with both peanuts and almonds ranking especially high. Below is a short list of the best seeds and nuts for folic acid.

· Sunflower Seeds — ¼ cup = 82 mcg of folate (21% DV)

· Peanuts — ¼ cup = 88 mcg of folate (22%)
· Flax Seeds — 2 tbs = 54 mcg of folate (14% DV)
· Almonds — 1 cup = 46 mcg pf fp;ate (12% DV)



10. Cauliflower

Cauliflower has folate


This cruciferous vegetable is typically regarded as one of the best vitamin C foods, but it’s also a great source for folic acid. Eating just one cup of boiled cauliflower will give you approximately 55 mcg of folate, accounting for 14% of your recommended daily value. We recommend adding fresh cauliflower to a salad with some of the other folic acid foods on this list.

11. Beets






Beets are a great source for antioxidants that provide detox support, making them one of the best liver cleanse foods on the planet. While that’s a great reason to add them to your diet, beets are also known as one of the best foods with folic acid. Eating one cup of boiled beets will provide you with approximately 136 mcg of folate, accounting for 34% of your daily needs.

12. Corn






You probably have a can of corn in your pantry right now. This popular vegetable also contains plenty of folate. Just one cup of cooked corn will give you approximately 76 mcg of folic acid, accounting for almost 20% of your daily needs. We would recommend avoiding canned veggies and opting for fresh and organic.

13. Celery






Celery is commonly regarded as a great food to help with kidney stones, but did you know it’s also a great source for folic acid? Just one cup of raw celery will give you approximately 34 mcg of folate, accounting for 8% of your daily needs.

14. Carrots






Carrots are another extremely popular vegetable that is probably in your home right now. Just one cup of raw carrots will give you almost 5% of your daily recommended needs for folic acid. Eat baby carrots as a snack or add them to your salads for a folate boost!

15. Squash



Squash may not be the most popular vegetable for your family, but there is no denying its nutritional benefits. Whether it’s summer squash or winter squash, adding this veggie to your diet will help give you a boost in folic acid. Here is a breakdown of how much folate can be found in squash. 

Winter squash — 1 cup = 57 mcg of folate (14% DV)
Summer Squash — 1 cup = 36 mcg of folate (9% DV)


03 October 2012

पुराणों में श्लोकों की संख्या



  • ब्रह्मपुराण: १४०००
  • पद्मपुराण: ५५०००
  • विष्णुपुराण: २३०००
  • शिवपुराण: २४०००
  • श्रीमद्भावतपुराण: १८०००
  • नारदपुराण: २५०००
  • मार्कण्डेयपुराण: ९०००
  • अग्निपुराण: १५०००
  • भविष्यपुराण: १४५००
  • ब्रह्मवैवर्तपुराण: १८०००
  • लिंगपुराण: ११०००
  • वाराहपुराण: २४०००
  • स्कन्धपुराण: ८११००
  • वामनपुराण: १००००
  • कूर्मपुराण: १७०००
  • मत्सयपुराण: १४०००
  • गरुड़पुराण: १९०००
  • ब्रह्माण्डपुराण: १२०००

इस प्रकार सारे पुराणों के श्लोकों की कुल संख्या लगभग ४०३६०० (चार लाख तीन हजार छः सौ) है. इसके अलावा रामायण में लगभग २४००० एवं महाभारत में लगभग ११०००० श्लोक हैं.

!!! पीपल के पेड़ का महत्व !!!


पीपल के पेड़ की हिन्दू बहुत मनोयोग से पूजा करता है और इसको देव वृक्ष समझता है| इसको काटना घोर अपराध माना गया है अब तो वैज्ञानिको ने भी इस पेड़ को प्रकृति और आयुर्वेदिक दवाओ के लिए लाभकारी सिद्ध कर दिया है भगवान् श्री कृष्ण कहते है 

ऊर्ध्वमूलमध:शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् ।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ।।1।। 

अर्थात:-आदि पुरुष परमेश्वर रूप मूल वाले और ब्रह्म रूप मुख्य शाखा वाले जिस संसार रूप पीपल के वृक्ष को अविनाशी कहते हैं; 

तथा वेद जिसके पत्ते कहे गये हैं- उस संसार रूप वृक्ष को जो पुरुष मूल सहित तत्त्व से जानता है, वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है |

आइये हम भी जाने की पीपल के पेड़ से हमें क्या क्या लाभ मिलता है-

  • - यह 24 घंटे ऑक्सीजन देता है .
  • - इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आँख में लगाने से आँख का    दर्द ठीक हो जाता है (भगवत गीता अध्याय 26 ).
  • - पीपल की ताज़ी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी है .
  • - पीपल के ताज़े पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता ...है .
  • - हाथ -पाँव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाए .
  • - पीपल की छाल को घिसकर लगाने से फोड़े फुंसी और घाव और जलने से हुए घाव भी ठीक हो जाते है .
  • - सांप काटने पर अगर चिकित्सक उपलब्ध ना हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच ३-४ बार पिलायें .विष का प्रभाव कम होगा .
  • - इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुष में वृद्धि होती है .
  • - पीलिया होने पर इसके ३-४ नए पत्तों के रस का मिश्री मिलाकर शरबत पिलायें .३-५ दिन तक दिन में दो बार दे .
  • - कुक्कुर खांसी में छाल का 40 मी ली. काढा दिन में तीन बार पिलाने से लाभ होता है . 
  • - इसके पके फलों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से हकलाहट दूर होती है और वाणी में सुधार होता है .
  • - इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है .
  • - इसके फल और पत्तों का रस मृदु विरेचक है और बद्धकोष्ठता को दूर करता है .
  • - यह रक्त पित्त नाशक , रक्त शोधक , सुजन मिटाने वाला ,शीतल और रंग निखारने वाला है .

राजगृह कहां है **


एक बार एक व्यक्ति गौतम बुद्ध के पास आकर बोला-तथागत्, मैं तो बहुत प्रयत्न करता हूं पर जीवन में धर्म का कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता। इस पर बुद्ध ने सवाल किया- क्या तुम बता सकते हो कि राजगृह यहां से कितनी दूर है? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया- दो सौ मील। बुद्ध ने फिर पूछा- क्या तुम्हें पक्का विश्वास है कि यहां से राजगृह दो सौ मील है? 

व्यक्ति ने कहा- हां, मुझे निश्चित मालूम है कि राजगृह यहां से दो सौ मील दूर है। बुद्ध ने फिर प्रश्न किया- क्या तुम राजगृह का नाम लेते ही वहां अभी तुरंत पहुंच जाओगे? यह सुनकर वह व्यक्ति आश्चर्य में पड़ गया। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि बुद्ध इस तरह के सवाल क्यों कर रहे हैं? फिर उसने थोड़ा सकुचाते हुए कहा- अभी मैं राजगृह कैसे पहुंच सकता हूं। 

अभी तो मैं आपके सामने खड़ा हूं। राजगृह तो तब पहुंचूंगा जब वहां के लिए प्रस्थान करूंगा और दो सौ मील की यात्रा करूंगा। यह सुनकर बुद्ध मुस्कराए। फिर बोले-यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। तुम राजगृह को तो जानते हो पर वहां तभी तो पहुंचोगे जब वहां के लिए प्रस्थान करोगे। यात्रा के कष्ट उठाओगे। उसके सुख-दुख झेलेगो। केवल जान लेने भर से तो वह चीज तुम्हें प्राप्त नहीं हो जाएगी। यही बात धर्म को लेकर भी लागू होती है। धर्म को सब जानते हैं पर उस तक वास्तव में पहुंचने के लिए प्रयत्न नहीं करते। उसके लिए कष्ट नहीं उठाना चाहते। 

उन्हें लगता है सब कुछ आसानी से बैठे-बिठाए मिल जाए। इसलिए अगर तुम वास्तव में धर्म का पालन करना चाहते हो तो पहले लक्ष्य का निर्धारण करो फिर उस दिशा में चलने की कोशिश करो। वह व्यक्ति बुद्ध की बातों को समझ गया। उसने तय किया कि वह धर्म के रास्ते पर चलेगा।

ठंडा मतलब toilet cleaner


दोस्तो आपको याद होगा ये नवंबर-दिसंबर सन् 2005 की बात है अमिताभ बच्चन अपने स्वर्गीय पिता हरिवंश राय बच्चन की जयंती के अवसर पर अपने परिवार के साथ उत्तर प्रदेश गए हुए थे. उन्होंने वहाँ एक समारोह में हिस्सा लिया लेकिन पेट दर्द के बाद उन्हें सोमवार सुबह साढ़े दस बजे दिल्ली के एस्कोर्ट्स अस्पताल में भर्ती करवाया गया था और हमारे देश की सर्वकालिक महान कांग्रेसी मीडिया ने इसे 24 घंटे दिखाकर राष्ट्रीय शोक घोषित करके सभी लोगोँ से ये कहा था कि अमिताभ बच्चन गंभीर रूप से बीमार है अपना सब लोग अपना काम-धाम छोड़ के भगवान से प्रार्थना करो !!!!

पूज्य राजीव दीक्षित अपने व्याख्यान मेँ सभा को संबोधित करते हुये कहते हैँ
http://www.youtube.com/watch?v=6JpOoS0bIBk&feature=plcp
कि- अमिताभ बच्चन नाम का एक फिल्म एक्टर है थोड़े समय पहले ये बीमार पड़ा और इसका ऑपरेशन हुआ और ऑपरेशन पूरे 9 घंटे चला उसे कुछ कोलाइटिस टाइप की नाम की आंतो अंतड़ियोँ के सड़ जाने की बीमारी थी तो जिस डॉक्टर ने उसका ऑपरेशन किया उससे मैँने पूछा की 9 घंटे तक आपने क्या ऑपरेशन किया ? ??

डॉ. बोला उसकी बड़ी आँत सड़ गई थी जगह जगह से उसको काटकर निकलना पड़ा तो फिर मैँने पूछा आपने ये 9 घंटे तक आँत काटकर क्योँ निकाला डॉ. बोला नहीँ निकालता तो ये मर जाता तो बचाने के लिये ये करना पड़ा !

फिर राजीव भाई जी लोगोँ से कहते हैँ बड़ी आँत सामान्य लोगोँ की नहीँ सड़ती है जो लोग "गाय का माँस (BEAF) सुअर का माँस (PORK) लाल माँस (RED MEAT) , शराब,सिगरेट,गुटखा,पिज्जा,बर्गर,हॉट-डॉग,मैगी ये सब खाते हैँ उन लो गोँ की बड़ी आँत सड़ती है" लेकिन अमिताभ बच्चन तो इनमेँ से कुछ नहीँ करता (वैसे वो अभी टीवी विज्ञापनोँ पर 5 रुपये की छोटू मैगी खाता दिख जायेगा) तो मैँने डॉ से पूछा फिर कैसे उसकी बड़ी आँत सड़ गई ?

तो डॉ. बोला "वो पेप्सी और कोकाकोला जैसे कोल्ड ड्रिँक पीता है और दस साल से पी रहा है और इससे भी अंतड़िया सड़ जाती हैँ" मैँने डॉ. से कहा कि क्या आपने अमिताभ बच्चन को इस बारे मे बताया ? डॉ बोला हाँ बता दिया। मैँने पूछा कि उसने क्या कहा उसका क्या रियेक्शन था ? तो डॉ बोला अमिताभ बच्चन ने अब से पेप्सी कोकाकोला का विज्ञापन करना बंद दिया पहले वो खूब एड करता था पर अब बंद कर दिया ! आज 2012 तक अमिताभ बच्चन pepsi coke की ad नहीं करता !(सभा मेँ तालियाँ गूंज उठी)

राजीव भाई जी बोले जब मुझे कन्फर्म हो गया तब मैँने अमिताभ बच्चन को E-Mail किया और उससे पूछा तो उसने कहा Yes It Is All True यह सब सच है कि मेरी आंते पेप्सी कोक पीने से सड़ गयीँ थी और उसे काट के निकाला गया।

मैँने बोला अमिताभ से कि आप ये सब टीवी./मीडिया पर बोल दो (सभा मेँ उपस्थित सभी लोग हँसने लगे) और अपने साथ ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर को भी बिठा दो वो भी बतायेगा कि कैसे मैँने 10 साल तक पेप्सी पी और आँते सड़ गईँ और उसे काट के निकालना पड़ा। तो अमिताभ ने कहा कि मैँ ये नहीँ कर सकता तो मैँने बोला कि इसपे एक 3 घंटे की फीचर फिल्म बना दो कि कैसे पेप्सी-कोक से आँते सड़ जाती हैँ उसने कहा कि मैँ ये भी नहीँ कर सकता मैँने पूछा क्योँ नहीँ कर सकते ! क्या तकलीफ है ??

अमिताभ बच्चन बोला-मैँने कोल्डड्रिँक कंपनियोँ से 100 करोड़ रुपये लिये हैँ और जब रुपये लिये तब कंपनी ने मुझसे एग्रीमेँट मेँ लिखवा लिया की जब तक ये दोनों अमेरीकन कंपनिया पेप्सी,कोक भारत मेँ रहेँगी मैँ उनके खिलाफ एक भी बात नहीँ बोलूंगा ऐसा समझौता हुआ है।


और अगर मैँने ऐसा उनके खिलाफ बोला तो वो मुझ पर 500 करोड़ का दावा ठोँक देँगी और ये 500 मुझे देना पड़ेगा और मेरा पास इतना पैसा नहीँ है मैँ कंगाल और भिखारी हो जाऊंगा (ध्यान दीजिये ये सन् 2005 की बात है फालतू के ख्याल दिमाग मेँ मत लायेँ) इसीलिये मैँ कंपनी के खिलाफ नहीँ जा सकता। मैँने पूछा मैँ बोलू इनके खिलाफ तो उसने बोला हाँ आप बोल दो, आपने तो कोई समझौता नहीँ किया है। मैँने फिर पूछा आपका नाम लेकर बोलूं तो अमिताभ बच्चन ने कहा हाँ मेरा नाम लेकर बोल दो अगर मेरा नाम लेके लोगोँ का भला होता है तो बोल दो कि अमिताभ बच्चन को ठंडा मतलब कोकाकोला पीने से ये हुआ है तो मुझे कोई समस्या नहीँ है, आप मेरा नाम लेकर बोल सकते हैँ

अब राजीव भाई सभा मेँ उपस्थित लोगोँ से कहते हैँ कि अब आप लोग देख लो कि ये पेप्सी-कोकाकोला आदि कोल्डड्रिँक्स कितनी खतरनाक हैँ इसीलिये कभी गलती से भी मत पीना और कभी आपके घर मेँ मेहमान-अतिथि आयेँ तो उन्हेँ भी बिल्कुल मत पिलाना,हमारी संस्कृति कहती है ! अतिथि देवो भव ! अतिथि भगवान के समान होते हैँ !और उन्हेँ टॉयलेट क्लीनर या संडास साफ करने का पानी नहीँ पिलाया करते (सभा मेँ उपस्थित सभी लोग हँसने लगे) ये आप ध्यान रखे !!
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और एक बात अगर आपको लगता है कि ठंडा मतलब toilet cleaner ये बात किसी ने मज़ाक मे बोली है ! तो आप से बड़ा मूर्ख कोई नहीं है !! नीचे link पर click कर दूसरी post पढे
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=456275441080138&set=a.137060829668269.14827.100000930577658&type=3&theater


इसके बाद पूज्य राजीव जी अगले विषय पर व्याख्यान देने लगे जिसे हम अगले भाग मेँ पोस्ट करेँगे

तब तक आप यहाँ जरूर जरूर एक बार click करे ! और अपने कानो से सारी बात सुने !!
http://www.youtube.com/watch?v=6JpOoS0bIBk&feature=plcp

वन्देमातरम !!

सिकलसेल जानकारी और उपाय



Sickle cell disease is also called an invisible disease because you are not from the outside can see if someone has sickle cell disease. Sickle cell disease is a kind of anemia (anemia).

In most people, blood consists for a large part of red blood cells, also known aserythrocytes mentioned. These red blood cells ensure that your body gets enough oxygen. This oxygen is attached to a red pigment called hemoglobin A . In people with sickle cell disease is this red dye slightly differently than in healthy people.People with sickle cell have hemoglobin S . This causes the abnormal red blood cells change shape, once they have a certain amount of oxygen delivered. Then you lower hemoglobin level and get your blood cells than the shape of a sickle and fall apart quickly (hemolysis). In the blood of people with sickle cell disease sees a lot of sickle red cells: the sickle cells . Hence the name: sickle cell disease or sickle cell anemia (anemia). Only by blood test (called Hb electrophoresis), one can find out whether you have sickle cell disease or carrier.


Sickle cell disease (SCD) is a heterogeneous disorder, with  Clinical manifestations including chronic haemolysis, an increased susceptibility to infections and vaso-occlusive  Complications often requiring medical care. Patients with SCD can develop specific and sometimes life-threatening  complications, as well as extensive organ damage reducing both their quality of life and their life expectancy. Proven effective treatment options for sickle cell patients are limited to hydroxyurea, blood transfusions and bone marrow transplantation. With the increasing prevalence of SCD in the Netherlands, a fundamental understanding of its pathophysiology and clinical syndromes is of importance for local medical practitioners.

Sickle cell disease (SCD) is clinically one of the most important haemoglobinopathies. It is characterised by haemolytic anaemia, an increased susceptibility to infections and vaso-occlusion that occurs in almost all vascular beds leading to ischaemic tissue injury with organ dysfunction and early death. Outcome is difficult to predict, and few effective therapeutics are available. The prevalence of SCD is on the rise in the Netherlands due to an increased immigration of people from Surinam, the Netherlands Antilles and African countries.1 A recent survey (with only a 30% response) covering more than 400 Dutch hospital departments where patients with aemoglobinopathies could be registered indicated a population of at least 450 SCD patients (PC Giordano, manuscript in preparation).

आपको सिकलसेल कैसे होता है

Sickle cell disease is a disease that your parents get. Daddy or Mommy must sickle little cells in their blood to pass to you. 

1. If mom and dad no sickle cell gently than there is no chance that you have it. This is called the doctors called AA type of blood. 

2. If only your mom or dad carrier is a 50% chance of 100% that you are a carrier. This is called the doctors called AS type of your blood. 

3. If Mom and Dad both have sickle cell disease then you have it.

Why does it have to be so a pain during a crisis?

As you already know, a sickle in the shape of a half moon. Great people say sometimes sickle shape. Your blood little cells are oxygen shortly. Your sickle cell gently be faster through your body broken and disappear from your body. remain fewer red blood cell little about, you then have enough blood in your body, the adults call this anemia. Actually it is good that your body is the sickle cell gently degrades because the sickle cell gently blocking the normal small cells. If this happens you will really bother your bones and it does really hurt. You can also have pain somewhere else, that could be because the blockages at several places in your leg or your arms and even your little toe! By The pain often can not breathe and you'll have more oxygen too short. Because you have so little oxygen, there will be a yellow color in your own eyes or on your skin, the doctors call it a fancy word "bilirubin "but you do not remember though!


हर्बल उपचार


believe in the power of nature and that nature has healing power. So most plants, vegetables and herbs are also used as medicines against diseases.This also applies to sickle cell anemia. Therefore it is good to eat healthy. Use meals rich in saccharine, nitrogen, iron, vitamin C, B12, D1 and fats. Useful all diet rich in vitamin B12 such as various livers, cheese, and all kinds of meat. Eat lots of products containing iron such as: pineapple, chestnut, spinach, lettuce, olives, parsley, prunes, honey, grapes, eggs, milk, fish, tajerblad, sopropo, antroewa, dagoeblad, bita wiri, clarion, purslane, ocher, many Ansje / eggplant.