"हिग्स बोसोन\गॉड पार्टिकल"
इस सदी की सबसे बड़ी खोज .............
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.......ब्रह्मांड में पाई जानेवाली हर चीज के द्रव्य की वजह हिग्स बोसोन ही है। वरना ब्रह्मांड बनने के समय बने कण यू हीं अंतरिक्ष में प्रकाश की गति से चलते हुए खो जाते। न आकाशगंगा बनती न तारे बनते न हम होते।जब हमारा ब्रह्मांड अस्तित्व में आया था, तो उससे पहले सब कुछ हवा में तैर रहा था, किसी चीज का तय आकार या वजन नहीं था, जब हिग्स बोसोन भार ऊर्जा लेकर आया तो सभी तत्व उसकी वजह से आपस में जुड़ने लगे और उनमें मास या आयतन पैदा हो गया।हिग्स बोसोन की वजह से ही आकाशगंगाएं, ग्रह, तारे और उपग्रह बने। पिछले कई प्रयोगों से इसके प्रमाण मिल रहे थे।ब्रह्मांड के वजूद के पीछे हिग्गस बोसोन कण है, लेकिन कभी भी इसके वजूद के प्रमाण नहीं मिल सके थे। हिग्स बोसोन बनने के कुछ पल में ही नष्ट हो जाता है। लेकिन इस दौरान वह लंबे समय तक टिकने वाले दूसरे कण में बदल जाता है ।
"लार्ज हेड्रोन कोलाइडर" (एलएचसी) मशीन के जरिये हिग्स बोसॉन का पता लगाने का प्रयास।"
.............दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला स्विट्जरलैंड के "सर्न" में चल रहे बरसों के प्रयोग के बाद मंगलवार को वैज्ञानिकों ने दावा किया कि हिग्स बोसोन कण के वजूद के प्रमाण मिल गए हैं।२७ किमी लंबी सुरंग में अति सूक्ष्म कणों को आपस में टकराकर विज्ञानी इस पार्टिकल की खोज कर रहे हैं। सर्न के अंदर दो प्रयोग किए जा रहे हैं। इनका नाम एटलर और सीएमस है। दोनों का लक्ष्य हिग्स कण का पता लगाना था । जिसमें तीन साल से भी ज्यादा समय से प्रयोग चल रहा था। यहां बिग बैंग विस्फोट जैसा माहौल तैयार किया गया था, ताकि इसके रहस्यों को समझा जा सके। वैज्ञानिकों ने कहा है कि वे साल के अंत तक ब्रह्मांड की उत्पत्ति की पहेली सुलझा लेंगे।
........."यदि हिग्स बोसोन का पता चल जाता है तो सृष्टि का निर्माण कैसे हुआ, का पता चल जाएगा। यह खोज पहली शताब्दी की प्रमुख उपलब्धियों में से एक होगी और आइंस्टीन के पहले क्वांटम फिजिक्स के पहले जाने जैसा होगा।यह ब्रह्मांड के सभी मूलभूत तत्वों के रहस्यों को सामने लाने की शुरुआत होगी। भविष्य में ब्रह्मांड को लेकर होने वाले शोध आसान हो जाएंगे। अभी तक वैज्ञानिकों को केवल५ % ही ब्रह्मांड की जानकारी है। बाकी का हिस्सा डार्क एनर्जी या डार्क मैटर के नाम से जाना जाता है।"
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हमारे वेद और शास्त्रों में कण-कण में भगवान की थ्योरी पहल से ही मौजूद है। ऋग्वेद में तो पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति का लेखा-जोखा ही मौजूद है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सबसे मान्यता प्राप्त महाविस्फोट का सिद्धांत है। यह सिद्धांत ऋग्वेद की ऋचाओं से कितना मेल खाता है, यह देखते हैं।
द बिग बैंग थ्योरी
महाविस्फोट सिद्धांत में कहा गया है कि 10 से 20 खरब साल पहले ब्रह्मांड के सभी कण एक-दूसरे से पास थे। इतने पास कि सभी एक ही जगह थे, एक ही बिंदु पर। सारा ब्रह्मांड एक बिंदु की शक्ल में था। यह बिंदु महासूक्ष्म था। इस स्थिति में भौतिकी, गणित या विज्ञान का कोई भी नियम काम नहीं करता है। यह वह स्थिति है, जब मनुष्य किसी भी प्रकार अनुमान या विश्लेषण करने में असमर्थ है। काल या समय भी इस स्थिति में रुक जाता है।
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ऋग्वेद में क्या है
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ऋग्वेद में सृष्टि सृजन की श्रुति में कहा गया है- सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था। छिपा था कहां क्या, किसने देखा था। उस पल तो अगम, अटल जल भी कहां था। बस एक बिंदु था। ऋग्वेद ।
ऋग्वेद इससे आगे भी रहस्य खोलता है। उसमें लिखा है कि ब्रह्म स्वयं प्रकाश है। उसी से ब्रह्मांड प्रकाशित है। उस एक परम तत्व ब्रह्म में से ही आत्मा और ब्रह्मांड का प्रस्फुटन हुआ है। ब्रह्म और आत्मा में सिर्फ इतना फर्क है कि ब्रह्म महाआकाश है तो आत्मा घटाकाश। घट का आकाश।
संस्कृत के विद्धान और गोविंद देव पंचांग के संपादक आचार्य कामेश्वर नाथ चतुर्वेदी कहते हैं कि उपनिषद में एक जगह उल्लेख है कि ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा, यह तीन तत्व ही हैं। ब्रह्म शब्द 'ब्रह्' धातु से बना है, जिसका अर्थ बढ़ना या फूट पड़ना होता है। ब्रह्म वह है, जिसमें से संपूर्ण सृष्टि और आत्माओं की उत्पत्तिहुई है या जिसमें से ये फूट पड़े हैं। विश्व की उत्पत्तिा, स्थिति और विनाश का कारण ब्रह्म है।
पदार्थ का विघटित रूप ही परम अणु
पदार्थ का विघटित रूप ही परम अणु है। जेनेवा प्रयोग में वैज्ञानिकों ने द्रव्य और द्रव्यमान के लिए इसी 'गॉड पार्टिकल' को जिम्मेदार माना। तैत्तिरीय उपनिषद में इसी द्रव्य के बारे में समझाया गया है। कृष्णमूर्ति ज्योतिष की जानकार शालिनी द्विवेदी कहती हैं कि तैत्तिरीय उपनिषद में साफ कहा गया है कि परमेश्वर से आकाश अर्थात जो कारण रूप द्रव्य सर्वत्र फैल रहा था, उसको इकट्ठा करने से अवकाश उत्पन्न होता है। वास्तव में आकाश की उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि बिना अवकाश के प्रकृति और परमाणु कहां ठहर सके और बिना अवकाश के आकाश कहां हो। अवकाश अर्थात जहां कुछ भी नहीं है और आकाश जहां सब कुछ है।
उनके अनुसार उपनिषद कहता है कि पदार्थ का संगठित रूप जड़ है और विघटित रूप परम अणु है। इस अणु को ही वेद परम तत्व कहते हैं और श्रमण पुद्गल। इसी उपनिषद में आगे कहा गया है कि आकाश के पश्चात वायु, वायु के पश्चात अग्नि, अग्नि के पश्चात जल, जल के पश्चात पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि, औषधियों से अन्न, अन्न से वीर्य, वीर्य से पुरुष अर्थात शरीर उत्पन्न होता है
.............................................. जय महाकाल !!! —
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