03 October 2012

राजगृह कहां है **


एक बार एक व्यक्ति गौतम बुद्ध के पास आकर बोला-तथागत्, मैं तो बहुत प्रयत्न करता हूं पर जीवन में धर्म का कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता। इस पर बुद्ध ने सवाल किया- क्या तुम बता सकते हो कि राजगृह यहां से कितनी दूर है? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया- दो सौ मील। बुद्ध ने फिर पूछा- क्या तुम्हें पक्का विश्वास है कि यहां से राजगृह दो सौ मील है? 

व्यक्ति ने कहा- हां, मुझे निश्चित मालूम है कि राजगृह यहां से दो सौ मील दूर है। बुद्ध ने फिर प्रश्न किया- क्या तुम राजगृह का नाम लेते ही वहां अभी तुरंत पहुंच जाओगे? यह सुनकर वह व्यक्ति आश्चर्य में पड़ गया। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि बुद्ध इस तरह के सवाल क्यों कर रहे हैं? फिर उसने थोड़ा सकुचाते हुए कहा- अभी मैं राजगृह कैसे पहुंच सकता हूं। 

अभी तो मैं आपके सामने खड़ा हूं। राजगृह तो तब पहुंचूंगा जब वहां के लिए प्रस्थान करूंगा और दो सौ मील की यात्रा करूंगा। यह सुनकर बुद्ध मुस्कराए। फिर बोले-यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। तुम राजगृह को तो जानते हो पर वहां तभी तो पहुंचोगे जब वहां के लिए प्रस्थान करोगे। यात्रा के कष्ट उठाओगे। उसके सुख-दुख झेलेगो। केवल जान लेने भर से तो वह चीज तुम्हें प्राप्त नहीं हो जाएगी। यही बात धर्म को लेकर भी लागू होती है। धर्म को सब जानते हैं पर उस तक वास्तव में पहुंचने के लिए प्रयत्न नहीं करते। उसके लिए कष्ट नहीं उठाना चाहते। 

उन्हें लगता है सब कुछ आसानी से बैठे-बिठाए मिल जाए। इसलिए अगर तुम वास्तव में धर्म का पालन करना चाहते हो तो पहले लक्ष्य का निर्धारण करो फिर उस दिशा में चलने की कोशिश करो। वह व्यक्ति बुद्ध की बातों को समझ गया। उसने तय किया कि वह धर्म के रास्ते पर चलेगा।

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