04 October 2012

मै दुर्गा की जयेष्ट-पुत्री,क्षात्र-धर्म की शान रखाने आई हूँ !

Photo: मै दुर्गा की जयेष्ट-पुत्री,क्षात्र-धर्म की शान रखाने आई हूँ !

मै सीता का प्रतिरूप ,सूर्य वंश की लाज रखाने आई हूँ!1!



मै कुंती की अंश लिए ,चन्द्र-वंश को धर्म सिखाने आई हूँ !

मै सावित्री का सतीत्त्व लिए, यमराज को भटकाने आई हूँ !२!



मै विदुला का मात्रत्व लिए, तुम्हे रण-क्षेत्र में भिजवाने आई हूँ !

मै पदमनी बन आज,फिर से ,जौहर की आग भड़काने आई हूँ !३!



मै द्रौपदी का तेज़ लिए , अधर्म का नाश कराने आई हूँ !

मै गांधारी बन कर ,तुम्हे सच्चाई का ज्ञान कराने आई हूँ !४!



मै कैकयी का सर्थीत्त्व लिए ,तुम्हे असुर-विजय कराने आई हूँ !

मै उर्मिला बन ,तुम्हे तम्हारे क्षत्रित्त्व का संचय कराने आई !५!



मै शतरूपा बन ,तुम्हे सामने खडी , प्रलय से लड़वाने आई हूँ!

मै सीता बन कर ,फिर से कलयुगी रावणों को मरवाने आई हूँ!६!



मै कौशल्या बन आज ,राम को धरती पर पैदा करने आई हूँ !

मै देवकी बन आज ,कृष्ण को धरती पर पैदा करने आई हूँ !७!



मै वह क्षत्राणी हूँ जो, महा काळ को नाच नचाने आई हूँ !

मै वह क्षत्राणी हूँ जो ,तुम्हे तुम्हारे कर्तव्य बताने आई हूँ !८!



मै मदालसा का मात्रत्त्व लिए, माता की माहिमा,दिखलाने आई हूँ !

मै वह क्षत्राणी हूँ जो ,तुम्हे फिर से स्वधर्म बतलाने आई हूँ !९!



हाँ तुम जिस पीड़ा को भूल चुके, मै उसे फिर उकसाने आई हूँ !

मै वह क्षत्राणी हूँ ,जो तुम्हे फिर से क्षात्र-धर्म सिखलाने आई हूँ !१०!

“जय क्षात्र-धर्म ”

जो ललकारे उसे ना छोड़े



ओ सीमा के प्रहरी वीरों !सावधान हो जाना

इधर जो देखे आँख उठाकर ,उसको मार गिराना ||

बडे भाग्य से समय मिला है,उसको व्यर्थ ना खोना

भारत-हित बलि-भेंट चढ़ा कर,बीज सुयश के बोना ||



भाई और पड़ोसी होकर,छुरा भौंकते अपने

हथियारों के बल पर निशिदिन,देख रहे है सुख सपने |

अत्याचारी चीन,पाक को,बढ़ बढ़ हाथ दिखाना

घर बैठे गंगा आई है,न्हाना पुन्य कमाना ||



सीखा है धरती पर तुमने,करना वरण मरण का

साक्षी है इतिहास धारा पर,रावण सिया हरण का |

दे दो आज चुनौती,कह दो,हम है भारत वाले

हमें ना छेडो,हम उद्जन बम,हम रॉकेट निराले ||



चंद्रगुप्त,पोरस,सांगा -सा ,करना है रखवाली

भारत माँ के वीर सपूतो!तुम हो गौरवशाली |

पीछे रहे,न रहे कभी भी,माँ की रक्षा करने

जो ललकारे उसे ना छोड़े,डटे मारने मरने ||

जयजयकार किया करती है,जनता नर-हीरो की ,

जर जमीन,जोरू यह तीनो होती है वीरो की ||

मै दुर्गा की जयेष्ट-पुत्री,क्षात्र-धर्म की शान रखाने आई हूँ !
मै सीता का प्रतिरूप ,सूर्य वंश की लाज रखाने आई हूँ!1!

मै कुंती की अंश लिए ,चन्द्र-वंश को धर्म सिखाने आई हूँ !
मै सावित्री का सतीत्त्व लिए, यमराज को भटकाने आई हूँ !२!

मै विदुला का मात्रत्व लिए, तुम्हे रण-क्षेत्र में भिजवाने आई हूँ !
मै पदमनी बन आज,फिर से ,जौहर की आग भड़काने आई हूँ !३!

मै द्रौपदी का तेज़ लिए , अधर्म का नाश कराने आई हूँ !
मै गांधारी बन कर ,तुम्हे सच्चाई का ज्ञान कराने आई हूँ !४!

मै कैकयी का सर्थीत्त्व लिए ,तुम्हे असुर-विजय कराने आई हूँ !
मै उर्मिला बन ,तुम्हे तम्हारे क्षत्रित्त्व का संचय कराने आई !५!

मै शतरूपा बन ,तुम्हे सामने खडी , प्रलय से लड़वाने आई हूँ!
मै सीता बन कर ,फिर से कलयुगी रावणों को मरवाने आई हूँ!६!

मै कौशल्या बन आज ,राम को धरती पर पैदा करने आई हूँ !
मै देवकी बन आज ,कृष्ण को धरती पर पैदा करने आई हूँ !७!

मै वह क्षत्राणी हूँ जो, महा काळ को नाच नचाने आई हूँ !
मै वह क्षत्राणी हूँ जो ,तुम्हे तुम्हारे कर्तव्य बताने आई हूँ !८!

मै मदालसा का मात्रत्त्व लिए, माता की माहिमा,दिखलाने आई हूँ !
मै वह क्षत्राणी हूँ जो ,तुम्हे फिर से स्वधर्म बतलाने आई हूँ !९!

हाँ तुम जिस पीड़ा को भूल चुके, मै उसे फिर उकसाने आई हूँ !
मै वह क्षत्राणी हूँ ,जो तुम्हे फिर से क्षात्र-धर्म सिखलाने आई हूँ !१०!

“जय क्षात्र-धर्म ”

जो ललकारे उसे ना छोड़े

ओ सीमा के प्रहरी वीरों !सावधान हो जाना
इधर जो देखे आँख उठाकर ,उसको मार गिराना ||
बडे भाग्य से समय मिला है,उसको व्यर्थ ना खोना

भारत-हित बलि-भेंट चढ़ा कर,बीज सुयश के बोना ||

भाई और पड़ोसी होकर,छुरा भौंकते अपने
हथियारों के बल पर निशिदिन,देख रहे है सुख सपने |
अत्याचारी चीन,पाक को,बढ़ बढ़ हाथ दिखाना
घर बैठे गंगा आई है,न्हाना पुन्य कमाना ||

सीखा है धरती पर तुमने,करना वरण मरण का
साक्षी है इतिहास धारा पर,रावण सिया हरण का |
दे दो आज चुनौती,कह दो,हम है भारत वाले
हमें ना छेडो,हम उद्जन बम,हम रॉकेट निराले ||

चंद्रगुप्त,पोरस,सांगा -सा ,करना है रखवाली
भारत माँ के वीर सपूतो!तुम हो गौरवशाली |
पीछे रहे,न रहे कभी भी,माँ की रक्षा करने
जो ललकारे उसे ना छोड़े,डटे मारने मरने ||
जयजयकार किया करती है,जनता नर-हीरो की ,
जर जमीन,जोरू यह तीनो होती है वीरो की ||

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