04 October 2012

!!! काशी विश्वनाथ महिमा !!!

Photo: विश्वनाथ -



सातवाँ ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ है ,यह मंदिर वाराणसी{ उत्तर प्रदेश } में स्थित है, भगवान् को यहाँ विश्वनाथ , विश्वेश्वर आदि नामों से पुकारा जाता है ,अर्थात पूरे विश्व का स्वामी . वाराणसी पुरी मोक्षदायिनी है , प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता।इस मंदिर को कई बार मुसलमानों ने तोडा पर हिन्दुओं ने बार बार फिरसे बनवाया उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बतलायी जाती
है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने का कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये।

सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राण्ाी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है। विश्वेश्वर के आनंद-कानन में पांच मुख्य तीर्थ हैं:-

दशाश्वेमघ,

लोलार्ककुण्ड,

बिन्दुमाधव,

केशव और

मणिकर्णिका

और इनहीं से युक्त यह अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है

ॐ ॐ
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सातवाँ ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ है ,यह मंदिर वाराणसी{ उत्तर प्रदेश } में स्थित है, भगवान् को यहाँ विश्वनाथ , विश्वेश्वर आदि नामों से पुकारा जाता है ,अर्थात पूरे विश्व का स्वामी . वाराणसी पुरी मोक्षदायिनी है , प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता।इस मंदिर को कई बार मुसलमानों ने तोडा पर हिन्दुओं ने बार बार फिरसे बनवाया उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बतलायी जाती 
है। 

इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने का कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये।

सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राण्ाी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है। विश्वेश्वर के आनंद-कानन में पांच मुख्य तीर्थ हैं:-
  • दशाश्वेमघ,
  • लोलार्ककुण्ड,
  • बिन्दुमाधव,
  • केशव और
  • मणिकर्णिका

और इनहीं से युक्त यह अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है


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