एक बार देवताओं ने सभा की | उस सभा में एक प्रस्ताव स्वीकृत हुआ कि गंगा जी मृत्युलोक में सभी प्राणियों के पापों को लेती है अतः वह सबसे बड़ी पापिनी है और अब उन्हें सभा में नहीं आने दिया जाएगा | जब गंगा जी ने सुना तो वे सभा में आकर बोलीं, देवताओं ! यह आपका कहना ठीक है कि मैं मृत्युलोक में सब के पापों को लेती हूं किन्तु मैं तो सारे पापों को समुंद्र में डाल देती हूं | अपने पास नहीं रखती | देवताओं ने कहा ‘यह बात तो ठीक है |
अच्छा ! तो वरुण देवता अब सभा से बाहर हो जांय क्योंकि वे सबसे बड़े पापी हैं |’ वरुण देवता ने हाथ जोड़कर कहा कि देवताओं ! मैं गंगा जी से पाप तो लेता अवश्य हूं किन्तु मैं भी उसे अपने पास नहीं रखता | उन पापों को मैं मेघों को दे देता हूं |” देवताओं ने पुनः विचार किया कि बात तो ठीक है | फिर यह निश्चय हुआ कि अब मेघराज हम लोगों कि सभा में नहीं आ सकेंगे |
मेघराज भी उठ खड़े हुए और उन्होंने हाथ जोड़कर कहा ‘देवताओं ! मेरी भी एक बात आप सुनें | यह बिलकुल ही सत्य है कि मैं समुद्र से सबके पापों को ले लेता हूं किन्तु मैं भी अपने
पास नहीं रखता हूं | देवताओं ने पूछा कि आप उन पापों का क्या करते हैं ?
इस पर मेघराज जी ने उत्तर दिया कि “मैं लोगों के पापों और कर्मों को इन्हीं पर बरसा देता हूँ|”
मित्रो, इस कहानी से आप क्या शिक्षा लेते हैं? कृपया लिखें ।
मेघराज भी उठ खड़े हुए और उन्होंने हाथ जोड़कर कहा ‘देवताओं ! मेरी भी एक बात आप सुनें | यह बिलकुल ही सत्य है कि मैं समुद्र से सबके पापों को ले लेता हूं किन्तु मैं भी अपने
पास नहीं रखता हूं | देवताओं ने पूछा कि आप उन पापों का क्या करते हैं ?
इस पर मेघराज जी ने उत्तर दिया कि “मैं लोगों के पापों और कर्मों को इन्हीं पर बरसा देता हूँ|”
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