09 December 2012

** कागज के टुकड़े **


एक बार एक बूढ़े आदमी ने अफवाह फैलाई कि उसके पड़ोस में रहने वाला नौजवान चोर है। यह बात दूर-दूर तक फैल गई। आसपास के लोग उस नौजवान से बचने लगे। नौजवान परेशान हो गया। कोई उस पर विश्वास ही नहीं करता था। तभी चोरी की एक वारदात हुई और शक उस नौजवान पर गया। उसे गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन कुछ दिनों के बाद सबूत के अभाव में वह निर्दोष साबित हो गया। निर्दोष साबित होने के बाद वह नौजवान चुप नहीं बैठा। उसने बूढ़े आदमी पर गलत आरोप लगाने के लिए मुकदमा दायर कर दिया।

अदालत में बूढ़े आदमी ने अपने बचाव में न्यायाधीश से कहा- मैंने जो कुछ कहा था वह एक टिप्पणी से ज्यादा कुछ नहीं था। किसी को नुकसान पहुंचाना मेरा मकसद नहीं था। न्यायाधीश ने बूढ़े आदमी से कहा- आप एक कागज के एक टुकड़े पर वो सब बातें लिखें जो आपने उस नौजवान बारे में कही थीं और जाते समय उस कागज के टुकडे़-टुकड़े करके घर के रास्ते पर फेंक दें। और कल फैसला सुनने के लिए आ जाएं। बूढ़े व्यक्ति ने वैसा ही किया। अगले दिन न्यायाधीश ने बूढ़े आदमी से कहा कि फैसला सुनने से पहले आप बाहर जाएं और उन कागज के टुकड़ों को जो आपने कल बाहर फेंक दिए थे, इकट्ठा कर ले आएं। बूढ़े आदमी ने कहा- मैं ऐसा नहीं कर सकता। उन टुकड़ों को तो हवा कहीं से कहीं उड़ा कर ले गई होगी। अब वे नहीं मिल सकेंगे। मैं कहां-कहां उन्हें खोजने के लिए जाऊंगा?

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