11 December 2012

!!! गुरु बनना हंसी खेल नहीं !!!



एक महात्मा जी अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे | रास्ते में एक सांप घायल अवस्था में पड़ा हुआ था और उस पर तमाम चींटियाँ लग रही थी | सांप हिल सकता नहीं था बैचैन होकर अपना फन उठाता था फिर गिर जाता था |

महात्मा जी उसे देखकर रो पड़े | शिष्यों को समझ में नहीं आया | उन्होंने कहा कि महाराज जी आप क्यों रो रहे हैं ? महात्मा जी बोले कि कर्मों का ऐसा विधान है जिसे जीव अपनी अज्ञानता में नहीं समझ पाता है | यह सांप कभी गुरु बना था | महात्माओं की नक़ल की और इतने शिष्य बनाये | इसने शिष्यों से तरह तरह की तन मन धन की सेवा ली लेकिन उनकी आत्माओं का कल्याण नहीं कर सका | क्योंकि इसने अपनी आत्मा का भी कल्याण नहीं किया था | अब कर्मी के जाल में फंसकर वह गुरु सांप बना और उसके सारे शिष्य चींटियाँ बन गये हैं | अब ये चींटिया इस घायल सांप को काट रही हैं और कह रही हैं कि मेरी सेवाओं का बदला दो | तुमने मुझे क्यों धोखे में रक्खा , मेरा आत्म कल्याण नहीं किया और ये बेचारा सांप ऐसी अधोगति में पड़ा हुआ पीड़ा सह रहा है और कुछ कर नहीं पा रहा है |

महात्मा जी ने आगे कहा कि गुरु बनना कोई हंसी खेल नहीं है , सबसे ख़राब काम है | चेले बनाकर उनकी सेवाओं को लेकर अगर आत्म कल्याण उनका न किया तो वो आत्माएं अपना बदला मांगती है | गृहस्थों के खून पसीने की कमाई की रोटी खाकर जो साधू उनका कल्याण नहीं करता तो ये रोटियां उसके आँतों को फाड़ देती हैं |

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