04 December 2012

** चांद में दाग और दीपक तले अंधेरा **


एक व्यक्ति अक्सर रात में चांद को निहारता रहता था। वह चांद की सुंदरता और शीतलता के बजाय उसके दाग-धब्बों को देखकर सोचता कि चांद में दाग-धब्बे क्यों हैं? इसी तरह एक दिन जब उसकी पत्नी ने रात के समय घर में दीया जलाया तो उसने दीये को उठाया और बोला, 'दीपक तले अंधेरा क्यों है?' वह कई लोगों से यह प्रश्न करता। सभी उसके इस प्रश्न को सुनकर चुप हो जाते थे। वह व्यक्ति सोचता, जब तक इन प्रश्नों का जवाब नहीं पा लूंगा चैन से नहीं बैठूंगा। एक दिन उसने सुकरात का नाम सुना।

वह अपने प्रश्नों का जवाब पाने के लिए उनके पास गया और बोला, 'भला चांद में दाग-धब्बे क्यों और दीपक तले अंधेरा क्यों? प्रकृति ने जब इनको बनाया तो इनमें कमी क्यों पैदा की?' उसकी इस बात पर सुकरात बोले, 'भले मानस यह बताओ, ईश्वर ने इंसान बनाया तो उसमें कमी क्यों है? तुम दीपक और चांद की कमी को देख रहे हो। उनकी कमी का बखान कर रहे हो। क्या तुम अपने अंदर की कमी का बखान भी ऐसे ही घूम-घूम कर सबके सामने कर सकते हो?' उसकी बात पर व्यक्ति कुछ सोचता रहा। उसे सोच में पड़े दे खकर सुकरात बोले, 'जिसकी जैसी दृष्टि होती है, उसे वैसा ही दिखाई देता है।

हर वस्तु की अच्छाई देखने का स्वभाव बनाओ, बुराई की ओर ध्यान ही मत दो। जिस तरह तुम दीपक और चांद की कमी देख रहे हो, उसी तरह उनके गुणों की ओर देखो। चांद दाग-धब्बों से ग्रसित होकर भी शीतलता और रोशनी प्रदान करता है, उसी तरह दीपक तले अंधेरा रहने पर भी वह सबको प्रकाश देता है, अपनी ऊष्मा व ज्योति से भटके लोगों को प्रकाश देता है।' यह सुनकर व्यक्ति सुकरात के आगे नतमस्तक होकर बोला, 'हां महाराज, वाकई मैं सब में बुराई देखने के कारण बुरी प्रवृत्ति की ओर ही ध्यान देता था लेकिन अब मैं अच्छाई की ओर प्रवृत्त रहूंगा।' उसे अपने प्रश्नों का जवाब मिल गया था।

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