07 October 2012

आहार-संबंधी कुछ महत्वपूर्ण बातों का रखें ध्यान !!!



आयुर्वेद की एक प्रचलित कहावत है- जैसा भोजन वैसा ही भेष। निरोगी शरीर, स्वस्थ तन, मन और हमारी लंबी उम्र, ये सब निर्भर करता है हमारे द्वारा ग्रहण किए जाने वाले भोजन पर। पर्याप्त भोजन और भोजन करने की सही विधि हमारी शारीरिक और मानसिक क्षमता में असीमित वृध्दि करता है। शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि सही भोजन से हम अपने शरीर को बीमार होने से बचा सकते हैं।



आयुर्वेद के अनुसार हमारे भोजन को पचाने वाली आग की जठराग्नि कहा जाता है। ये आग ही हमारे शरीर के अंदर भोजन को पचाने का कार्य करती है। इस आग का सटीक संतुलन ही भोजन के शरीर के रग-रग तक पहुंचाने में समर्थ होता है। चीनी चिकित्सा में यह माना जाता है कि पेट और प्लीहा एक दूसरे से बंधे होते हैं। हमारे पेट में क्वी नामक जीवनी शक्ति होती है। जिसकी अनुपस्थिति हमारे लिए घातक हो सकती है। अच्छी सेहत के लिए क्वी का बनना बहुत महत्वपूर्ण है जो कि स्वस्थ पेट से निकलती है। हमारे पेट को हमेशा नमी की आवश्यकता होती है और अगर इसकी नमी सूख जाए तो कर्ठ प्रकार की बीमारियां जैसे सांस-संबंधी समस्याएं, मुंह और मसूढ़े संबंधी समस्याएं पैदा होती है।

स्वस्थ सेहत के आयुर्वेदिक नुस्खे:-

अपनी जठराग्नि को उत्तेजित करने के लिए अदरक का प्रयोग जरूरी है। अदरक के एक टुकड़े को नींबू के रस में डुबोकर उस पर नमक डालकर खा लें। यह सामान्य सा प्रयोग लार ग्रंथियों की मदद से जठराग्नि को तेज करताहै। ये भोजन को पचाकर शरीर को कई तरह की ऊर्जा प्रदान करता है। जिनका प्रयोग हमारा शरीर कई प्रकार से करता है।

दोपहर के समय जठराग्नि अपने चरमोत्कर्ष पर होती है। इसलिए ये खाने को पचा पाने में पूरी तरह सक्षम होती है। दोपहर के समय में फेरबदल नहीं करना चाहिए। साथ ही इस बात की भी कोशिश करनी चाहिए कि सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद कुछ भी न खाएं।

सुबह का नाश्ता दिन में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए नाश्ता अच्छा और पौष्टिक होना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार सुबह के नाश्ते को न करना शरीर पर अत्याचार करने के जैसा है।

खाना तभी खाएं जब आपको भूख लगे। संभवत: इतनी भ देर न कर दें कि आप के शरीर को कष्ट होने लगे खासकर सुबह के समय में।

ठंडे पेय और आइसक्रीम रहित दुनिया-हमारी जठराग्नि ठंडे भोज्य पदार्थों जैसे ठंडे पेय पदार्थ और आइसक्रीम आदि के संपर्क में आकर मंदी हो जाती है। जिसके कारण भोजन सही ढंग से पच नहीं पाता और हमें पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिलती। 

इसलिए हमें हमेशा पके हुए और गर्म भोजन को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। ऐसा भोजन आसानी से पचता है। खाना खाते समय हमें पानी नहीं पीना चाहिए। लेकिन अगर आवश्यक हो जाए तो हल्का गर्म पानी या फिर अदरक वाली चाय पीने चाहिए क्योंकि खाने के दौरान पानी या कोई अन्य द्रव्य लेने से पाचक रस पतला हो जाता है जिससे वह सही ढंग से पच नहीं पाता। खाने से एक घंटे पहले या एक घंटे के बाद पानी पीने का सही समय होता है।

भोजन का आदर करें:- 

आयुर्वेद के अनुसार भोजन करने से पहले हमें ध्यानमग्न होकर प्रार्थना करनी चाहिए क्योंकि भोजन स्वयं को समाप्त कर हमें संतुष्टि और शक्ति प्रदान करना है। इसलिए कम से कम हमें खाने के समय इसका आदर करना चाहिए।

भोजन करते समय पूरा ध्यान भोजन की तरफ ही होना चाहिए। इस समय टीवी देखना, पुस्तक आदि पढ़ना या कोई अन्य काम नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से हमारे पाचन की गति कम होती है और हमारे संवेदनशील पेट पर इसका गहरा असर पड़ता है। जितनी भूख हो खाना उतना ही खाना चाहिए। भूख से अधिक या भूख से कम खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकरक हो सकता है। इससे पाचक रस का ज्यादा बहाव हो जाने के कारण खाना नीचे की ओर सरकने लगता है जो कि पेट की मांसपेशियों और पाचन को नकारात्मक तौर पर प्रभावित करता है।


हमेशा खुले और शांत माहौल में ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। खड़े होकर खाना नुकसानदायक हो सकता है।

खाना हमेशा चबा-चबाकर और धीरे-धीरे खाना चाहिए। जिससे खाना जल्दी पचता है। भोजन की प्रकृति को देखते हुए भोजन को तीन रूपों में बांटा गया है। सात्विक भोजन, राजसी भोजन और तामसी भोजन।

सात्विक भोजन : 

सात्विक भोजन हमारे चित्त को शांत और स्वभाव को स्नेहपूर्ण बनाते हैं। इससे हमारी मानसिकता सुधरती है। बादाम, शहद ताजे फल, दूध, आदि इसके अंतर्गत आते हैं।

राजसी भोजन: 

राजसी भोजन हमारी मानसिकता को ऐशोआराम पसंद और भड़काऊ बनाता है। विभिन्न प्रकार के पकवान, मिठाई, लस्सी, मसालेदार चीजें इसका अंग है।

तामसी भोजन : 

तामसी भोजन के अंतर्गत मांस-मंदिरा, प्याज, लहसुन आदि आता है जो हमारे आलस्य को बढ़ाता है। हमारे व्यवहार को खराब करता है ओर हमें बुरी चीजों की ओर आकर्षित करता है।

खाने की चीजों का तालमेल जरूरी- कई बार अपने स्वाद को और अधिक बढ़ाने के लिए हम कई सारी चीजों को एक साथ मिला देते हैं जिससे उनके गुण समाप्त हो जाते हैं। कुछ फल जैसे आम, पपीता, संतरा आदि को दूध में मिलाया जाता है जिसे आयुर्वेद में निषेध माना गया है। किसी भी दो फलों और सब्जियों को आपस में मिला देना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। इसलिए एक बार में एक फल या एक ही सब्जी खाएं।
ताजा दही और गरम चावल, खट्टे फल और दूध, नमकयुक्त मसालेदार भोजन के तुरंत बाद दूध आदि नहीं लेना चाहिए।

वितरीत मौसम की फल व सब्जियां भी नुकसानदायक हो सकती है।

संपूर्ण भोजन- 

भोजन नीचे दिए गए क्रम में करना चाहिए !



संपूर्ण भोजन पुष्टिकर और स्वास्थ्यवर्ध्दक होता है। संपूर्ण भोजन का मतलब देखने में सुन्दर, अच्छी खुशबू वाला और छ: प्रकार के रसों से युक्त होना चाहिए। 

जैसे - खट्टा मीठा, नमकीन, मसालेदार, कसैला और सुगंधित। भोजन में इन सभी रसों की मात्रा एक निश्चित अनुपात में होनी चाहिए।

इसमें किसी भी रस का मौजूद न होना भोजन को असंपूर्ण बनाता है। ये सारे रस ज्यादातर फलों में पाए जाते हैं।

भोजन जरूरत से ज्यादा पका हुआ नहीं होना चाहिए। इससे कई बीमारियों का न्यौता मिलता है।

बासी भोजन नहीं खाना चाहिए। खाना पकने के तीन घंटे बाद बासी हो जाती है। इसलिए इसे पुन: गरम करने से बचना चाहिए।


खाना खाते वक्त पानी को नहीं भूलना चाहिए। हमारे शरीर में 70 भाग पानी है। ये हमारे शरीर से कइ्र विषैले पदार्थों को बाहर निकालता ळै। पानी को उबालकर ठंडा करके पीना चाहिए। पानी में हमें कई पोषक तत्त्वों को अलग से मिला सकते हैं। पानी हमारी त्वचा में नमी बनाए रखने में भी सहायक होती है।


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