07 October 2012

हार्ट अटैक :सामान्य जानकारी






हृदय हमारे शरीर में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है।संपूर्ण शरीर मे रक्त परिसंचरण हृदय की मांसपेशी के जरिये ही होता है।कोरोनरी धमनी के माध्यम से दिल की मांसपेशियों को रक्त की आपूर्ति होती रहती है और इसी प्रक्रिया से दिल की पेशियां जीवंत रकर कार्यक्षम बनी रहती है।जब इन रक्त वाहिकाओं में खून का थक्का जमने से रक्त परिभ्रमण रूक जाता है तो हार्ट अटैक का दौरा पड जाता है। हृदय की जिन मांस पेशियों को रक्त की आपूर्ति नहीं होती हैं वे मरने लगती हैं। हार्ट अटैक पडने के बाद के १-२ घंटे रोगी के जीवन को बचाने की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण होते हैं।बिना देर किये फ़ौरन मरीज को किसी बडे अस्पताल में पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिये। प्राथमिक चिकित्सा के तौर पर रोगी की जिबान के नीचे सोर्बिट्रेट और एस्प्रिन की गोली रखना चाहिये। समय पर ईलाज मिलने से रक्त का थक्का घुल जाता है और प्रभावित मांसपेशी फ़िर से काम करने लगती है।


हार्ट अटैक के प्रमुख लक्षण--




रोगी को छाती के मध्य भाग में दवाब,बैचेनी,भयंकर दर्द,भारीपन और जकडन मेहसूस होती है। यह हालत कुछ समय रहकर समाप्त हो जाती है लेकिन कुछ समय बाद ये लक्षण फ़िर उपस्थित हो सकते हैं।

अगर यह स्थिति आधा घंटे तक बनी रहती है और सोर्बिट्रेट गोली के इस्तेमाल से भी राहत नहीं मिलती है तो यह हृदयाघात का पक्का प्रमाण माना चाहिये। छाती के अलावा शरीर के अन्य भागों में भी बेचैनी मेहसूस होती है।भुजाओं ,कंधों,गर्दन,कमर और जबडे में भी दर्द और भारीपन मेहसूस होता है।

छाती में दर्द होने से पहिले रोगी को सांस में कठिनाई और घुटन के लक्षण हो सकते हैं। अचानक जोरदार पसीना होना,उल्टी होना और चक्कर आने के लक्षण भी देखने को मिलते हैं। कभी-कभी बिना दर्द हुए दम घुटने जैसा मेहसूस होता है।

जैसा कि ऊपर बताया गया है हार्ट अटैक के लक्षण प्रकट होते ही रोगी को एस्प्रिन की गोली देना चाहिये। घुलन शील एस्प्रिन(डिस्प्रिन) मिल जाए तो आधी गोली पानी में घोलकर पिलानी चाहिये। सोर्बिट्रेट गोली तुरंत जिबान के नीचे रखना चाहिये। एस्प्रिन में रक्त को पतला करने का गुण होता है। रक्त पतला होकर थक्का घुलने लगता है और प्रभावित मांस पेशी को खून मिलने से वह पुन: काम करने लगती है।

इसके बाद हार्ट अटैक रोगी को तुरंत किसी बडे अस्पताल में जहां ईसीजी और रक्त की जांच के साधन हो, पहुंचाने की व्यवस्था करें। साधन विहीन अस्पताल में समय नष्ट करने से रोगी अक्सर मौत के मुंह में चले जाते हैं।रोगी को एक या ज्यादा से ज्यादा डेढ घंटे में बडे अस्पताल में पहुंचाना बेहद जरूरी है। याद रखें, आधे से ज्यादा हृदयाघात के मरीज अस्पताल पहुंचने से पहिले ही मर जाते हैं।


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