07 October 2012

आयुर्वेद मे 13 तरह की अग्नियाँ (fire ) बताई गई हैं ,जिनमे से एक है जठराग्नि !



जिगर की आग यानि पेट की अग्नि (जठराग्नि) की ,जो हमारे स्वस्थ रहने का एक मुख्य साधन है ! जब तक हमारी जठराग्नि सही है ,तब तक हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा है,और जहाँ यह अनियमित हुई वहीँ पेट की बीमारियों को आमंत्रण शुरू हो जाता है !

आयुर्वेद मे 13 तरह की अग्नियाँ (fire) बताई गई हैं ,जिनमे से एक है जठराग्नि ! जठर=पेट (stomach) अग्नि =आग (fire)

जिस तरह रसोई मे खाना पकाने के लिए हमें गैस की जरुरत होती है , उसी तरह पेट मे गया हुआ खाना पचाने के लिए हमें जिस उर्जा की जरुरत होती है उसे ही जठराग्नि कहते हैं !

आपने देखा होगा कई व्यक्ति बहुत गरिष्ठ (भारी), heavy खाना खाकर भी उसे आराम से पचा लेते हैं,जबकि कई मूंग की खिचड़ी जैसा हल्का भोजन भी नहीं पचा पाते ! कभी हमें भूख बहुत अच्छी लगती है, तो कभी हमारा खाने की तरफ देखने का भी मन नहीं करता ,है ना?

दोस्तों इसके पीछे कई कारण काम करते हैं ,जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे!

जठराग्नि 4 तरह की होती है-

1 . समाग्नी- जब खाया हुआ अन्न अच्छे से पच जाए!

2 . विषमाग्नि-जब कभी तो खाना पच जाये,कभी नहीं पचे, digestion irregular हो !

3 . मन्दाग्नि -जब हमारी पेट की गैस का बर्नर बिलकुल sim पर हो और बहुत हल्का खाना भी नहीं पचे !

4 . तिक्ष्नाग्नी -बड़ी गैस भट्टी के बड़े बर्नर से निकलती तेज आंच जैसी अग्नि जो non veg . ,उरद का हलुवा जैसे heavy food को भी आसानी से पचा लेती है!

अब ये तो अग्नि की भिन्नता के आधार पर व्यक्तियों के 4 प्रकार हुए ! जिनमे समाग्नी ही स्वास्थ्य की परिचायक है! जरुरी नहीं की जिस व्यक्ति की जो अग्नि है ,वही जिंदगी भर उसके पेट मे बनी रहे !

जठराग्नि को प्रभावित करने वाले कारक factor -

1. काल (टाइम)  


आपने देखा होगा की December, January मे हमारे पेट की अग्नि अपनी पूर्णता पर होती है, हम जो भी खाते हैं आसानी से पच जाता है! हमे अच्छी भूख लगती है ,शरीर मे भी हल्कापन रहता है, इसीलिए गाजर का हलवा या उरद के लड्डू (मुहं मे पानी आ गया ना ) जैसी गरिष्ठ चीजे भी हम बड़ी आसानी से पचा जाते हैं !

वहीँ जून ,जुलाई मे जब गर्मी, बारिश, उमस (humidity) से हमारा शरीर आक्रांत रहता है, हमे भूख नहीं लगती है , २ रोटी भी पचाना मुश्किल होता है, है ना? ये काल का प्रभाव है !

2 . अनियमित खानपान (irregular diet)

दोस्तों कुदरत ने हमारे शरीर की प्रत्येक गतिविधि को बड़े ही practically एक समय की सारणी मे आबद्ध किया है ! इसे हम आम भाषा मे जैविक घडी biological clock कहते हैं !

ऐसा अधिकतर होता है की बिना अलार्म के ठीक 5 बजे हमारी नींद खुल जाती है, बिस्तर से उतरते ही हमे nature call (motion) आ जाता है, ठीक 11 बजे हमे भूख लग आती है ,रात मे ठीक 10 या 11 बजे हमे नींद आने लगती है, होता है ना? लेकिन ये उन खुशकिस्मत लोगो के साथ होता है जिनकी नियमित दिनचर्या होती है !


दोस्तों जठराग्नि मतलब वो पाचक रस जो खाने को पचाते हैं ! हमारा शरीर हमारी जैविक घडी के अनुसार एक निश्चित समय पर , एक निश्चित मात्रा मे पेट मे पाचक रस स्रावित करता है जो की उस अन्न को पचाने के लिए आवश्यक होता है ! और उस पाचक स्राव की मात्रा और secretion के टाइम का निर्धारण हर इंसान की जैविक घडी के अनुसार अलग अलग होता है!

मान लीजिये आप नियम से रोजाना सुबह 11 बजे और शाम 8 बजे खाना खाते हैं, तब आपका शरीर बिना नागा रोज fix time पर पेट मे पाचक रस का स्राव कर देता है और पेट मे आया अन्न सही तरीके से पच कर आपकी सेहत को बनाये रखता है !

दोस्तों समस्या तब होती है जब हमारा खाने का समय निश्चित नहीं होता कभी हम 9 बजे ही खा लेते हैं तो कभी काम की व्यस्तता मे दिन के २-३ बजे तक पेट मे खाना डालने की फुर्सत भी नहीं मिलती है ,ऐसे मे आपके शरीर का biological system , जो स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है वो disturb हो जाता है ! फिर ऐसा होने लगता है की जब आपका पेट पाचक रस (जठराग्नि) छोड़ता है, खाना पचाने के लिए तब पेट मे खाना नहीं होता 


और अपने काम से निबट कर अपनी सहूलियत से जब आप पेट मे खाना डालते हैं तब पाचक रस का स्राव नहीं होता ! 

क्योंकि शरीर की biological clock तो अपने ही नियम से चलेगी , ना की आपके मूड से, है ना ?

ये कुछ उसी तरह है की जब गैस की लो (आंच) तेज होती है तब उस पर पकाने के लिए कुछ नहीं होता ,बर्तन खाली होता है तो जाहिर है बर्तन ज्यादा गरम हो जाएगा या जल जाएगा (एसिडिटी की शुरुआत ) और जब आप गैस चूल्हे पर बर्तन मे बहुत सारी चीजें पकाने के लिए रखते हैं तो पता पड़ता है की गैस ही ख़तम हो गई है ! इसी दिनचर्या से फिर शुरुआत होने लगती है पेट की परेशानियों (भूख ना लगना ,constipation, acidity, gastritis जैसी बिमारियों की ).............

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