10 October 2012

हौसले की होती है हमेशा जीत



जब भी दृढ इच्छाशक्ति की बात निकलती है तो दुष्यंत कुमार का यह शेर हमें बरबस याद आ जाता है- कैसे आकाश में सूराख हो नहीं सकता/ एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों..। साधनों की कमी की शिकायत करते हुए खुद कोई प्रयास न करना तो बेहद आसान है। ज्यादातर लोग करते भी यही हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनकी इच्छाशक्ति ही उनकी सबसे बडी पूंजी होती है। बिहार के गया जिले के छोटे से गांव ...गहलौर के दलित मजदूर दशरथ मांझी की जिद के आगे पर्वत को भी झुकना पडा। उन्होंने राह रोकने वाले पहाड का सीना चीर कर 365 फीट लंबा और 30 फीट चौडा रास्ता बना दिया। दरअसल पहाडी का रास्ता बहुत संकरा और उबड-खाबड था। उनकी पत्नी उसी रास्ते से पानी भरने जाती थीं। 


एक रोज उन्हें ठोकर लग गई और वह गिर पडीं। पत्नी के शरीर पर चोट के निशान देख दशरथ को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उसी दम ठान लिया कि अब वह पहाडी को काटकर ऐसा रास्ता बनाएंगे, जिससे किसी को भी ठोकर न लगे। वह हाथों में छेनी-हथौडा लेकर पहाड काटने में जुट गए। तब लोग उन्हें पागल और सनकी समझते थे कि कोई अकेला आदमी पहाड काट सकता है भला! .पर उन्होंने अपनी जिद के आगे किसी की नहीं सुनी। वह रोजाना सुबह से शाम तक अपने काम में जुटे रहते। उन्होंने 1960 में यह काम शुरू किया था और इसे पूरा करने में उन्हें 22 वर्ष लग गए। ..लेकिन अफसोस कि उनका यह काम पूरा होने से कुछ दिनों पहले ही उनकी पत्नी का निधन हो गया। वह अपनी सफलता की यह खुशी उनके साथ बांट न सके। उनकी इस कोशिश से ही बेहद लंबा घुमावदार पहाडी रास्ता छोटा और सुगम हो गया। अब दशरथ इस दुनिया में नहीं हैं पर वह रास्ता आज भी हमें उनके जिद्दी और जुझारू व्यक्तित्व की याद दिलाता है। उनकी दृढ इच्छाशक्ति को सम्मान देते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने कर्मचारियों के लिए दशरथ मांझी पुरस्कार की शुरुआत की है।

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