भास्कराचार्य उज्जैन में स्थित वेधशाला के प्रमुख थे।
यह वेधशाला प्राचीन भारत में गणित और खगोल शास्त्र का अग्रणी केंद्र था। जब इन्होंने "सिद्धान्त शिरोमणि" नामक ग्रन्थ लिखा तब वें मात्र 36 वर्ष के थे। "सिद्धान्त शिरोमणि" एक विशाल ग्रन्थ है जिसके चार भाग हैं (1) लीलावती (2) बीजगणित (3) गोलाध्याय और (4) ग्रह गणिताध्याय।
लीलावती भास्कराचार्य की पुत्त्री का नाम था। अपनी पुत्री के नाम पर ही उन्होंने पुस्तक का नाम लीलावती रखा। यह पुस्तक पिता-पुत्री संवाद के रूप में लिखी गयी है। लीलावती में बड़े ही सरल और काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को समझाया गया है। इस पुस्तक से लिया गया एक उद्धरण है,
लीलावती अपने पिता भास्कराचार्य प्रश्न पूछती है, "पिताजी, यह पृथ्वी, जिस पर हम निवास करते हैं, किस पर टिकी हुई है?" । इसके उत्तर में भास्कराचार्य ने कहा, "बाले लीलावती, कुछ लोग जो यह कहते हैं कि यह पृथ्वी शेषनाग, कछुआ या हाथी या अन्य किसी वस्तु पर आधारित है तो वे गलत कहते हैं। यदि यह मान भी लिया जाए कि यह किसी वस्तु पर टिकी हुई है तो भी प्रश्न बना रहता है कि वह वस्तु किस पर टिकी हुई है और इस प्रकार कारण का कारण और फिर उसका कारण... यह क्रम चलता रहेगा"।
लीलावती ने कहा फिर भी यह प्रश्न बना रहता है कि पृथ्वी किस चीज पर टिकी है? तब भास्कराचार्य ने कहा कि पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है। पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है और आकर्षण के कारण वह जमीन पर गिरते हैं। पर जब आकाश में समान ताकत चारों ओर से लगे, तो कोई कैसे गिरे? अर्थात् आकाश में ग्रह निरावलम्ब रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्व शक्तियाँ संतुलन बनाए रखती हैं। आजकल हम कहते हैं कि न्यूटन ने ही सर्वप्रथम गुरुत्वाकर्षण की खोज की, परन्तु उसके 550 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति को विस्तार में समझा दिया था।
लीलावती के बारे में एक कथा प्रचलित है। भास्कराचार्य ने लीलावती की कुंडली का अध्ययन किया जिससे उन्हें पता चला कि अगर लीलावती की शादी एक विशेष समय पर नहीं हुई तो उनके पति की जल्द ही मृत्यु हो जायेगी। उस विशेष समय का पता लगाने के लिए उन्होंने एक यन्त्र का निर्माण किया। इस उपकरण में पानी से भरे हुए एक बड़े बर्तन के ऊपर एक छोटा खाली बर्तन रखा गया था। छोटे बर्तन में एक छेद बनाया गया था ताकि पानी बड़े बर्तन से छोटे बर्तन में आ सके। इस यन्त्र को इस तरह से व्यवस्थित किया गया कि विशेष समय पर छोटा बर्तन बड़े बर्तन में पूरी तरह डूब जाये। यंत्र को व्यवस्थित करके भास्कराचार्य ने लीलावती को इससे दूर रहने का निर्देश दिया और अपने कार्य में लग गए। लेकिन लीलावती उत्सुकता वश उस उपकरण को ऊपर से देखने लगी और उसका एक मोती उपकरण में जा गिरा। इससे उपकरण सही समय नहीं बता पाया। गलत मुहूर्त में शादी होने के कारण लीलावती जल्द ही विधवा हो गयी।
भास्कराचार्य ने गणित और खगोलशात्र में महत्वपूर्ण शोध किये जिससे इन क्षेत्रों में भारत वर्ष का नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है।
लीलावती भास्कराचार्य की पुत्त्री का नाम था। अपनी पुत्री के नाम पर ही उन्होंने पुस्तक का नाम लीलावती रखा। यह पुस्तक पिता-पुत्री संवाद के रूप में लिखी गयी है। लीलावती में बड़े ही सरल और काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को समझाया गया है। इस पुस्तक से लिया गया एक उद्धरण है,
लीलावती अपने पिता भास्कराचार्य प्रश्न पूछती है, "पिताजी, यह पृथ्वी, जिस पर हम निवास करते हैं, किस पर टिकी हुई है?" । इसके उत्तर में भास्कराचार्य ने कहा, "बाले लीलावती, कुछ लोग जो यह कहते हैं कि यह पृथ्वी शेषनाग, कछुआ या हाथी या अन्य किसी वस्तु पर आधारित है तो वे गलत कहते हैं। यदि यह मान भी लिया जाए कि यह किसी वस्तु पर टिकी हुई है तो भी प्रश्न बना रहता है कि वह वस्तु किस पर टिकी हुई है और इस प्रकार कारण का कारण और फिर उसका कारण... यह क्रम चलता रहेगा"।
लीलावती ने कहा फिर भी यह प्रश्न बना रहता है कि पृथ्वी किस चीज पर टिकी है? तब भास्कराचार्य ने कहा कि पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है। पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है और आकर्षण के कारण वह जमीन पर गिरते हैं। पर जब आकाश में समान ताकत चारों ओर से लगे, तो कोई कैसे गिरे? अर्थात् आकाश में ग्रह निरावलम्ब रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्व शक्तियाँ संतुलन बनाए रखती हैं। आजकल हम कहते हैं कि न्यूटन ने ही सर्वप्रथम गुरुत्वाकर्षण की खोज की, परन्तु उसके 550 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति को विस्तार में समझा दिया था।
लीलावती के बारे में एक कथा प्रचलित है। भास्कराचार्य ने लीलावती की कुंडली का अध्ययन किया जिससे उन्हें पता चला कि अगर लीलावती की शादी एक विशेष समय पर नहीं हुई तो उनके पति की जल्द ही मृत्यु हो जायेगी। उस विशेष समय का पता लगाने के लिए उन्होंने एक यन्त्र का निर्माण किया। इस उपकरण में पानी से भरे हुए एक बड़े बर्तन के ऊपर एक छोटा खाली बर्तन रखा गया था। छोटे बर्तन में एक छेद बनाया गया था ताकि पानी बड़े बर्तन से छोटे बर्तन में आ सके। इस यन्त्र को इस तरह से व्यवस्थित किया गया कि विशेष समय पर छोटा बर्तन बड़े बर्तन में पूरी तरह डूब जाये। यंत्र को व्यवस्थित करके भास्कराचार्य ने लीलावती को इससे दूर रहने का निर्देश दिया और अपने कार्य में लग गए। लेकिन लीलावती उत्सुकता वश उस उपकरण को ऊपर से देखने लगी और उसका एक मोती उपकरण में जा गिरा। इससे उपकरण सही समय नहीं बता पाया। गलत मुहूर्त में शादी होने के कारण लीलावती जल्द ही विधवा हो गयी।
भास्कराचार्य ने गणित और खगोलशात्र में महत्वपूर्ण शोध किये जिससे इन क्षेत्रों में भारत वर्ष का नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है।
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