08 July 2013

!!! कौन हैं वेद व्यास और सूतजी ???


सूतजी- पुराणों में सूतजी को परम ज्ञानी ऋषि कहा गया है। वे भागवत की कथा सुनाते हैं। कथा सुनने वालों में शौनक सहित 84 हजार ऋषि शामिल हैं। शौनक- ये भी ऋषि हैं। जिज्ञासु और भागवत कथा के रसिक हैं। वे सूतजी से कथा सुनते हैं।

वेद व्यास- ये विष्णु के अंशावतार माने गए हैं। उन्होंने ब्रह्मासूत्र, महाभारत के अलावा भागवत सहित 18 पुराण लिखे। इन्होंने ही वेदों का विभाजन किया। इसलिए इन्हें वेद व्यास कहा जाता है |



जवान मां के बूढ़े बच्चे हैं ये

यह सुनने में अजीब लगता है लेकिन सत्य है। श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा यहीं से शुरू होती है। ये कथा भागवत का महात्म्य है। हर ग्रंथ के शुरुआत में उसका महात्म्य होता है। भागवत के इसी महात्म्य में यह कथा है, 

जब नारद मृत्युलोक यानी पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं और उन्हें एक युवती रोती दिखाई देती है। उसकी गोद में सिर रख दो बूढ़े पुरुष सो रहे हैं, दोनों बहुत कमजोर और बीमार दिखाई दे रहे हैं। जब नारद उस युवती से पूछते हैं तो वह बताती है कि दोनों बूढ़े पुरुष उसके पुत्र हैं। यह सुनकर नारद को बड़ा आश्चर्य होता है, एक जवान स्त्री के बच्चे इतने बूढ़े कैसे हो सकते हैं। 

तब वह युवती बताती है कि वह भक्ति है और उसके दोनों बूढ़े पुत्र पहले स्वस्थ्य और जवान थे लेकिन कलियुग में उनकी यह दुर्दशा हो गई है। दोनों पुत्रों के नाम थे ज्ञान और वैराग्य। तब नारद भक्ति को श्रीमद् भागवत का श्रवण करने का उपाय बताते हैं, 


जिससे उसके बूढ़े बच्चे ज्ञान और वैराग्य फिर स्वस्थ्य और जवान हो गए। कथा यह बताती है कि कलियुग यानी आधुनिक युग में लोगों में भक्ति तो होगी लेकिन ज्ञान और वैराग्य का अभाव होगा। ज्ञान इसलिए नहीं होगा क्योंकि लोग धर्म शास्त्रों का अध्ययन करना छोड़ देंगे। ज्ञान नहीं होगा तो मन में वैराग्य का भाव नहीं आएगा। भक्ति अधूरी ही रहेगी, ज्ञान और वैराग्य के बिना। परम ज्ञान के लिए भागवत का अध्ययन सबसे श्रेष्ठ उपाय है। इससे हमें सारी सृष्टि का ज्ञान होता है और जीवन को नई दृष्टि मिलती है।

भक्ति सिखाती है भागवत


श्रीमद् भागवत कथा भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को स्थापित करती है। नारदजी कहते हैं अनेक जन्मों के पुण्य इकट्ठे होते हैं तो सत्संग मिलता है जिससे मनुष्य का मोह-मद का अंधकार हट जाता है तथा विवेक का उदय होता है। भागवत में धुंधुकारी प्रसंग बताता है कि किस तरह मनुष्य वेश्यारूपी पांच इंद्रियों की इच्छाएं पूरी करने में जीवन नष्ट कर देता है और अंत में वह प्रेत बन जाता है, जिसे भागवत कथा सुनने के बाद मुक्ति मिलती है। 

भागवत के पहले स्कंध में प्रमुख रूप से कलियुग से प्रभावित राजा परीक्षित की मुक्ति का प्रसंग हमें संदेश देता है कि जीवन का मुख्य लक्ष्य जीवन-मरण के चक्कर से मुक्ति पाना है। जीवन का जो समय बचा है उसे इस दिशा में ले जाएं।

भागवत में स्कंध-दर-स्कंध आगे बढ़ती कथा के विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से यही समझाया गया है कि इस संसार के पहले भी एकमात्र ईश्वर था और इस दिखाई देने वाले सारे संसार में वही ईश्वर है। जब यह संसार खत्म होगा तो यही ईश्वर शेष रह जाएगा। 


प्राणियों के शरीर के रूप में पंचभूत (आकाश, पृथ्वी, वायु, जल और अग्नि) ईश्वर हैं तो आत्मा के रूप में ईश्वर है। कहने का तात्पर्य यही है कि संपूर्ण संसार में एकमात्र ईश्वर ही है। ईश्वर ही वास्तविकता है। इसलिए हमें सभी में ईश्वर को ही देखना चाहिए।


श्रीमद् भागवत हमें ईश्वर को समझने के लिए पहले भक्ति सिखाती है, फिर इसका ज्ञान देती है। भक्ति और ज्ञान से जब हम ईश्वर की सत्ता को समझ लेते हैं तो मन वैराग्य की ओर मुड़ जाता है। इस स्थिति में श्रीमद् भागवत हमें वास्तविक वैराग्य से परिचित कराती है।


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